Sunday, April 29, 2018

14 हज़ार लेनदेन की शिकायत आते ही बिजली अधिकारियों को लगा 440 वोल्ट का करंट - अमिलिया ग्राम के 6 महीने से जले 2 ट्रांसफॉर्मर बदले गए (मामला ज़िले के कटरा डीसी अंतर्गत अमिलिया ग्राम के दो जले हुए ट्रांसफॉर्मर का)

दिनाँक 29 अप्रैल 2018, स्थान गढ़/गंगेव रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानंद द्विवेदी)

  जब गरीब किसानों की आवाज़ कहीं न सुनी गई तो उन्होंने अपना सारा दुख दर्द सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया के समक्ष आकर रो दिया. उनकी आवाज़ में इतनी पीड़ा थी की उस आवाज़ की गूंज मीडिया के माध्यम से भोपाल और दिल्ली तक सुनी गई. आखिर ऐसा कौन सा नियम है जो गरीब किसानों को बिजली जलाने से रोकता है? जब एक तरफ सरकारें इंडस्ट्री और औद्योगिक जगत को भरपूर बिजली सप्लाई दे रही हैं और बेरोकटोक सब्सिडी दिए जा रही हैं तो आखिर देश का अन्नदाता जो दिन रात खेतों में गर्मी सर्दी वर्षा के वावजूद भी कड़ी मेहनत करके अन्न उगाए जा रहा है उसको बिजली और ट्रांसफार्मर से क्यों वंचित रखा जाय? मप्र सरकार ने किसानों के हित में कई अच्छे निर्णय लिए हैं जिसका नतीज़ा है उन्हें आसान किस्तों में कम राशि पर मोटर पंप का कनेक्शन, अटल बिजली योजना, राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन, और अब शौभाग्य योजनांतर्गत घर घर बिजली. फिर भी यूं कहें की विभागीय लापरवाही अथवा कुछ अन्य कारण. फिर भी कहीं न कहीं ये बात महत्वपूर्ण है की योजनायों का सही तरीके से और समयावधि में क्रियान्वयन किया जाए. क्रियान्वयन में समस्याओं और लेटलतीफी की वजह से आम जनता को परेशानी से गुजरना पड़ता है. 

   शूखे अकाल में मात्र 20 प्रतिशत बिजली बिल जमा पर ही किसानों के बदले जाते हैं जले ट्रांसफार्मर 

    ग्रामीण इलाकों में किसानों की सिंचाई से जुड़े हुए ट्रांसफार्मर बदलने संबंधी नित नए नियम समय समय पर निकलते रहते हैं. अभी पिछले साल के शूखे के पहले तक यह 60 प्रतिशत रखा गया था इसके बाद यह घटकर 40 प्रतिशत हुआ और जब सरकार ने देखा की किसान सूखा अकाल में मारा गया है और उसके पास कुछ बचा नही है तो इस स्थिति में सरकार ने इसे घटाकर मात्र 20 प्रतिशत कर दिया था. अर्थात जिस ट्रांसफार्मर से संबंधित कुल लोड का बिजली बिल यदि 20 प्रतिशत तक भर दिया गया है तो वहां ट्रांसफार्मर लगा दिया जाएगा.

पर बिजली कंपनी नही मानती सरकार के फरमान

    अब यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है की काफी कुछ पहुच पर निर्भर करता है. यदि किसी गांव में कोई बहुत पहुच वाला है किसी नेता से संपर्क में है, मंत्री से संपर्क है तो उस स्थिति में ट्रांसफार्मर लगाने संबंधी विशेष नियम कायदों को फॉलो नही किया जाता. परंतु यदि बेचारे गांव वालों की कोई पहचान नही है तो उनके लिए जले हुए ट्रांसफार्मर बदलवाना टेढ़ी खीर हो जाता है. फिर उनकी कोई सुनवाई नही होती.

आम नागरिक और किसानों का मात्र मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता ही बनते हैं सहारा 

   ऐसे में मात्र मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता अथवा गांव का कोई चलता फिरता व्यक्ति जब इन गरीबों की आवाज़ उठाये तभी कुछ हो सकता है. जैसा की कटरा डीसी अन्तर्गत अमिलिया गांव के किसानों के साथ हुआ, जब अमिलिया के किसानों की 6 माह से कोई सुनवाई नही हुई तो वह थक हारकर सामाजिक कार्यकर्ताओं के पास आये और अपनी पीड़ा व्यथा बतायी. गनीमत तो यह थी मामला जोरदार तरीके से मीडिया में रखा गया जिसमे पूरे गांव भर के इकठ्ठा हुए दर्जनों लोगों ने पहली बार कैमरे के सामने आकर दिल खोलकर पीड़ा व्यथा रखी जो यूट्यूब में वायरल हुआ और साथ ही रीवा ज़िले से प्रकाशित होने वाले लगभग कई महत्वपूर्ण अखबारों में आया तो कटरा डीसी और त्योंथर डी ई के अधिकारियों की नीद हराम हो गई. 

  मामला यहीं आकर नही रुका बल्कि पुनः आज से कल होता देख मामले को सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा ऊर्जा मंत्री पारस जैन के निज सचिव पुराणिक मंदर और संभागीय बिजली अधिकारियों के पास तक पहुचा दिया गया तब और भी उथल पुथल मच गई.

   आनन फानन में कटरा डीसी के जे ई अभिषेक सोनी और त्योंथर डी ई पटेल सहित बजाज कंपनी के एरिया इंजीनियर अनिल द्विवेदी एवं राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन योजना के कार्यभार लिए हुए ओ पी द्विवेदी ने भी हाँथ पैर मरना प्रारम्भ कर दिया. बताया गया की आरजीवी योजना में गड़बड़ी की वजह से जेई और डीई को उलझना पड़ा वरना यह कार्य मात्र आरजीवी वालों का ही था.

  अमिलिया के दोनो जले ट्रांसफार्मर बदल दिए गए

     आज जहां कई ग्रामों में सालों से जले हुए ट्रांसफार्मर आज तक नही बदल पाए हैं वहीं मीडिया के प्रभाव और सामाजिक कार्यकर्ताओं की सीधे जनहित के मुद्दे को लेकर एकजुट प्रहार से अमिलिया ग्राम के दोनो ही ट्रांसफार्मर बदल दिए गए. दिनांक 29 अप्रैल को सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को त्योंथर डी ई द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार अब अमिलिया ग्राम खुशहाल स्थिति में है और 29 अप्रैल को ही दोनो ट्रांसफार्मर बदल दिए गए हैं. 

पिछले 2 सप्ताह से हुए अथक प्रयास का नतीज़ा है दोनो ट्रांसफार्मर का बदलना

   पिछले दो सप्ताह से लगातार प्रतिदिन इस विषय पर जेई, डीई, आरजीवी, बजाज कंपनी, एसई, और ऊर्जा मंत्री तक के निरंतर संज्ञान में लाया गया तब जाकर आज यह दोनो ट्रांसफार्मर एक साथ बदले हैं. इसके साथ ही अमिलिया ग्रामवासियों का अधिकारियों द्वारा पैसा लेकर ट्रांसफार्मर बदलने का आरोप भी काफी महत्वपूर्ण था जिस पर संबंधित अधिकारियों की नीद हराम हो चुकी थी.

पूरे जिले में सैकड़ों अमिलिया जैसे उदाहरण फिर भी किसानों की कोई सुनवाई नही

    आज लगभग रोज ही मीडिया में यह खबर आम है की अमुक ग्राम में ट्रांसफार्मर जला हुआ है लेकिन बदला नही गया है. पर इन खबरों का कोई विशेष प्रभाव नही हो रहा है. आखिर क्यों? इसका सबसे बड़ा कारण यह है की खबर तो चल जाती है लेकिन उस ग्राम क्षेत्र के आसपास और साथ ही जनप्रतिनिधि इस पर कोई संज्ञान नही लेते हैं. आज जो काम सरपंचों, विधायकों, सांसदों, और अन्य जन प्रतिनिधियों का होना चाहिए वह मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता कर रहे हैं. आखिर सबसे बड़ा प्रश्न यही है की जिस ग्राम का ट्रांसफार्मर जला हुआ है उस गांव का सरपंच क्या सो रहा है? उस क्षेत्र का जनपद और ज़िला पंचायत सदस्य कहां गया? वहां का विधायक और सांसद कहां गया? इन प्रश्नों से स्पष्ट है कि भारत का लोकतंत्र आज मात्र दिखावा बन कर रह गया है. सभी जनप्रतिनिधि अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं और आम जनता और किसान मरने के लिए मजबूर है.

  किसान सम्मान यात्राओं के ढोंग की खुलती पोल

     इसका अंदाजा इसी बात के लगाया जा सकता है की ये नेता और समाज के ठेकेदार कितना बड़ा ढोंग और प्रोपोगंडा करते हैं. अभी अभी पूरे प्रदेश में किसानो के नाम पर किसान सम्मान यात्रा निकाली गई. किसानों की रैली निकाल दिखावे के तौर पर किसानों को सम्मानित किया गया. जब किसान मर रहा है उसकी कोई सुनवाई नही हो रही तो काहे की किसान सम्मान रैली? किसान को उसकी फसल के उचित दाम नही मिल रहे. किसान द्वारा फसल में लगाए गयी पूंजी तक वसूल नही हो पा रही है, किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है, किसान के पिछले 6 माह और साल भर से जले हुए ट्रांसफार्मर तक नही बदले गए हैं तो फिर काहे की किसान सम्मान रैली? क्या पार्टियों के कार्य कर रहे नुमाइंदे ग्राम में भ्रमण के दौरान किसानों की इन मूलभूत समस्याओं के विषय में नही पूंछते? क्या किसान इन ठेकेदारों को यह नही बताते की उनको क्या तकलीफ है? सच्चाई तो यह है सब को सब कुछ पता है लेकिन समस्या के उन्मूलन के लिए कोई प्रयास नही करना चाहता मात्रा दिखावा और ढोंग करना चाहता है जिसका परिणाम है की आज किसान और आम नागरिक विभिन्न प्रकार की मानवाधिकार संबंधी समस्याओं से ग्रस्त है और उसकी कहीं कोई सुनवाई नही हो रही है.

संलग्न - त्योंथर डीई द्वारा ग्रामीणों से बनवाया गया पंचनामा जिसमे शिकायतकर्ताओं से हस्ताक्षर करवाया गया है कि दोनों जले हुए ट्रांसफार्मर बदल दिए गए हैं। साथ ही इस विषय मे शिकायतकर्ता शैलेन्द्र पटेल से चर्चा के कुछ अंश जिसमे पूरे प्रकरण को वह बता रहा है। साथ ही अन्य संलग्न फ़ाइल।

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र,

  मोबाइल 7869992139, 9589152587

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