दिनांक 01 अप्रैल 2018,
स्थान – तेंदून/नौपथा जंगली क्षेत्र से, सिरमौर वन परिक्षेत्र रीवा मप्र,
(कैथा, शिवानंद द्विवेदी)
गर्मी आते ही ज़िले के वन परिक्षेत्र मे जंगली आग का सिलसिला एक बार फिर चल पड़ा है। अभी हाल ही मे डभौरा वन परिक्षेत्र मे आग लगाए जाने की खबर कुछ ही दिनों पूर्व रीवा से प्रकाशित होने वाले प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय अखबारों मे आई थी।
गौहत्या के लिए कुख्यात पनगड़ी बीट के जंगलों मे फिर लगाई गई आग
अभी पिछले एक सप्ताह से सिरमौर वन परिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले कुख्यात पनगड़ी बीट के जंगलों मे भी एक बार फिर दावानल ने भीषण रूप ले लिया है। खबर थी की त्योंथर और जनकहाई क्षेत्र से घाट के ऊपर पश्चिम क्षेत्र से पिछले सप्ताह आग ऊपर की ओर आ रही है जिस पर वन विभाग काबू पाने मे असफल रहा जो आगे बढ़कर पनगड़ी के जंगलों मे आ गई जिससे तेदून, नौपथा, मछेहुआ के जंगलों तक बढ़ते हुये नादघाट और रवार एरिया तक पहुच गई। जब आग रवार क्षेत्र के पास पहुची और रहवाशी एरिया मे आने लगी तब जाकर लोगों ने हल्ला गुल्ला मचाया और तब जाकर लालगाँव उप-वनपरिक्षेत्र के डेप्युटी रेंजर तिवारी और इनके कुछ मुंसी चौकीदारों और अन्य कर्मचारियों ने आग पर काबू करने के नाकाफी प्रयास किए।
केचुआ पंचायत निवासी कल्लू आदिवाशी को थी आग लगने की जानकारी
त्योंथर वन परिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले केचुआ पंचायत के निवासी कल्लू आदिवाशी का कहना है की यह आग आज से महीनों पहले से लगी हुई है जिसकी जानकारी लालबिहारी सिंह डेप्युटी रेंजर त्योंथर को थी। कल्लू आदिवाशी और उसका परिवार तेदून के जंगलों के बीच निवास करता है साथ ही पैरा ग्राम का पुस्तईनी निवासी भी है। कल्लू आदिवाशी ने बताया की जंगल के बीचोबीच उसकी पट्टे की जमीन है। यह जमीन उसके पट्टे मे कैसे आई यह बिलकुल स्पष्ट नहीं है।
डेप्युटी रेंजर त्योंथर लालबिहारी सिंह को बिंझन मे लगी आग की थी जानकारी
केचुआ निवासी कल्लू आदिवाशी द्वारा बताया गया की आज से 15 दिन पूर्व जब पनगड़ी के जंगल अंतर्गत आने वाले बिंझन महादेव मंदिर के पास आग लगी थी और जंगल धू धू करके जल रहा था तब उसी समय डेप्युटी रेंजर त्योंथर लालबिहारी सिंह ने एक ट्रैक्टर से भरी गिट्टी पत्थर जंगली क्षेत्र से पकड़ी हुई थी और जिस जगह आग लगी थी वहीं से ट्रैक्टर लेकर निकले थे तब कैसे संभव है की लालबिहारी सिंह ने इस आग को विभाग को सूचित नहीं किया। जब आग बिंझन के जंगलों से बढ़ती हुई घाट के ऊपर तेदून, नौपथा से होते हुये नादघाट तक पहुच गई तब जाकर वन विभाग सिरमौर के पदस्थ रेंजर,डेप्युटी रेंजर और अन्य कर्मचारियों की आँख खुली।
जंगल मे आग के पीछे महुआ बीनने वालों पर लगाया गया आरोप
इस आग लगने के पीछे जिम्मेदारों मे जंगली क्षेत्रों मे घुस कर रात दिन बराबर महुआ बीनने वालों को दोषी बताया जाता है। बताया गया की महुआ बीनने आने वाले लोग खर-पतवार और पत्तों मे आग लगा देते हैं जिससे महुआ के पेंड के नीचे के पत्ते और कचड़ा जल जाता है इस प्रकार फिर आराम पूर्वक महुआ बीनने के काम करते हैं।
अनुविभागीय अधिकारी एस पी एस गहरवार ने यूपी पुलिश को डभौरा आग के लिए जिम्मेदार ठहराया था
अभी हाल ही पिछले दिनों प्रकाश मे आए इसी प्रकार के एक अन्य घटना क्रम मे ज़िले मे पदस्थ अनुविभागीय अधिकारी वनविभाग एस पी एस गहरवार ने यूपी पुलिश के मत्थे ठीकड़ा मढ़ दिया था और बताया था की चोर डकैत तलाशने के लिए यूपी पुलिश ने आग लगाई होगी।
ऐसे यदि बयानवाजी की गई तो किसी को भी आग लगाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है परंतु जब हर वर्ष के यही हाल हैं की गर्मी आते आते रीवा के जंगलों का सत्यानाश होने लगता है तो विभाग सो क्यों रहा होता है? आखिर इस वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी किस बात के लिए पेमेंट पाते हैं। आज कोई भी जाये तो यह ज़्यादातर अधिकारी अपने वातानुकूलित कारों और कमरों मे पड़े ज़िंदगी के आनंद ले रहे होंगे,इनके लिए वन और पर्यावरण जाये भाड़ मे। क्योंकि यदि यही किस्सा नहीं होता तो जब हर वर्ष आग लगती है तो ये अपने कर्मचारियों को पहले से मुस्तैद क्यों नहीं करते? मानते हैं की महुआ बीनने वाले और दूसरे अपराधी लोग ऐसे घटनाक्रम को अंजाम देते होंगे पर सालों साल यही चल रहा है तो पूरे जंगलों की बाउंडरी को सील क्यों नहीं कर दिया जाता? महुआ जंगल की संपत्ति है किसी की बपौती तो नहीं। अब यदि महुआ की शराब भी पीएंगे और जंगल का सत्यानाश भी करेंगे तो ऐसे लोगों को जंगली एरिया मे घुसने क्यों दिया जाय?
रीवा वन विभाग की सह से ही होते हैं ज़्यादातर वन अपराध
सही मायनों मे देखा जाये तो जो भी वन अपराध आज हो रहे हैं सब वन विभाग की जानकारी मे रहते हैं। वन विभाग के अधिकारी मात्र अंजान बनने का नाटक भर करते हैं। और तो और कितने तो ऐसे वन अपराध हैं जो सीधे इनके सज्ञान मे लाया जाता है परंतु फिर भी ले दे कर यह मामले को रफा दफा कर देते हैं और कोई दंडात्मक कार्यवाही की पहल नहीं करते। अभी जब भलघटी और पनगड़ी मे सैकड़ों गोवंशों को घाट के नीचे मौत का घाट उतारा गया था तो क्या वन विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों को यह जानकारी नहीं रही होगी? जब यह गोहत्या की वारदात पिछले कई महीने से निरंतर की जा रही थी तो वन विभाग ने इस पर कार्यवाही क्यों नहीं किया? इसी प्रकार इसी घटना क्रम के दौरान अवैध तरीके से कार्य कर रहे क्रशर के पास पनगड़ी मे भी एक जंगली सूअर को मार कर उसे पकाया जाकर भूनकर खाया गया था जिसके पूरे ढांचे सहित कंकाल पाया गया था और सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा यह सभी घटनाक्रम वन मंडलाधिकारी, मुख्य वनसंरक्षक से लेकर अनुविभागीय अधिकारी और रेंजर डेप्युटी रेंजर सभी को बताया गया था। पूरी विडियोग्राफी की गई थी सभी की फोटो मीडिया और अन्य माध्यमों से भेजी गई थी परंतु वनविभाग अब तक सचेत नहीं हुआ। ऐसी घटना इनके रोज के कार्यप्रणाली मे सम्मिलित है जिस पर शिकायतों के बाद मात्र खानापूर्ति होती है।
पनगड़ी जंगल अग्निकांड का कौन है जिम्मेदार?
अब सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है की इस प्रकार के आपराधिक घटनाक्रम का कौन जिम्मेदार है? किसने पनगड़ी और बिंझन के जंगलों मे आग लगाई है? चूंकि हर वर्ष का यही किस्सा है और महुआ बीनने के समय ही होता है अतः महुआ बीनने वालों को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जाता? क्या वन पर्यावरण की सुरक्षा से ज्यादा महुआ और महुआ की शराब महत्वपूर्ण है?
तेंदुपत्ता तोड़ाई के समय भी जंगलों को पहुचाया जाता है भारी नुकसान
एक तरफ तो सरकारें नासामुक्ति की बातें करेंगी और दूसरी तरफ बीड़ी पीने के लिए तेंदू पत्ता तोड़वाने लिए सरकारी ठीके देंगी, इसमे कौन सा लॉजिक है? क्या राजस्व इकठ्ठा करने का इन सरकारों के पास और कोई दूसरा तरीका नहीं? तेंदू के पेड़ों मे शाखकर्तन का कार्य किया जाता है जिसमे शाखकर्तन के नाम पर भी जंगलों का सफाया किया जाता है। यद्यपि नियमावली मे भी शाखकर्तन मे तेंदू की ऐसी शाखाओं को काटा जाता है जो काफी पतली होती हैं परंतु शाखकर्तन मे मोटी-मोटी डालियों को काट दिया जाता है जिससे तेंदू के पेड़ों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है। तेंदूपत्ता के नाम पर इसी गर्मी के समय जमकर पेड़ों की अवैध कटाई भी की जाती है और बहाना तेंदूपतों का बताया जाता है। आज जबसे सरकारी तौर पर तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य होने लगा तब से जंगली पेड़ों की ऐसी की तैसी हो गई है। यदि तेंदूपत्ता संग्रहकर्ताओं को देखा जाये तो उसी समय तेंदू और दूसरे सेधा छिवला वगैरह की हरी लकड़ी की जमकर कटाई भी होती है। यह सब स्वयं सिद्ध है क्योंकि पहले भी इस बात को कई बार सीएम हेल्पलाइन और अन्य माध्यमों से उठाया जाता रहा है।
रीवा के जंगलों की सुरक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी मात्र 2500 रुपये प्रतिमाह पाने वाले वन समितियों के मानसेवियों के ऊपर
वन विभाग जंगल की सुरक्षा संबंधी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेता। जब भी कोई वन अपराध की जानकारी संबंधितों को प्रेषित की जाती है तो उसे गलत निराकरण देकर रफा दफा किया जाता है। वन विभाग के ज़्यादातर कर्मचारी अधिकारी अपने घर और कार्यालय मे ही आराम फरमाना पसंद करते हैं। ऐसा बहुत ही कम होता है की कोई भी नियमित वन कर्मचारी अधिकारी कभी भी जंगली क्षेत्र मे भ्रमण करने आया हो। जब बहुत बार शिकायतें की जाती हैं तब कहीं जाकर आते हैं। आम तौर पर यह देखा गया है की वन की सुरक्षा की ज़्यादातर ज़िम्मेदारी साल भर मे मात्र एक बार बमुस्किल तंख्वाह पाने वाले ग्राम वनसमितियों के मानसेवी चौकीदारों के हवाले होती हैं। इन मानसेवी चौकीदारों को कांट्रैक्ट बेसिस पर रखा जाता है जिन्हे मात्र 2500 के आसपास की प्रतिमाह की पेमेंट दी जाती है। कई मर्तबा इस पेमेंट देने मे भी देरी होती है। कई बार नहीं बल्कि यदि देखा जाये तो हमेशा ही 2500 रुपये मात्र दी जाने वाली यह पेमेंट इन वनकर्मियों को साल मे अथवा छह माह मे एक बार दी जाती है। इन मानसेवियों ने यहाँ तक कहा की शासकीय नौकरी करने वाले नियमित अधिकारी कर्मचारी इनका शोषण करते हैं और आवश्यकता से ज्यादा काम लेते हैं। इनकी पेमेंट मे भी कटौती कर ली जाती है। समय पर तो कभी भी पेमेंट नहीं दी जाती।
अतः चूंकि मानसेवी कर्मचारी पूरी तरह से शोषित हो चुके हैं उनका भी मनोबल गिरा हुआ रहता है और वन की सुरक्षा जैसे जुमलों से थक चुके होते हैं। लोगों का कहना होता है की नियमित मुंशी, चौकीदार, डेप्युटी रेंजर और रेंजर कभी भी जंगली क्षेत्र का दौरा नहीं करते। जब इन्हे दबाब देकर किसी वन अपराध की जानकारी दी जाती है तब जाकर इनके कानों मे जू रेंगती है। और यदि सही मायनों मे देखा जाये तो आज जंगल की जो दुर्दशा हो रही है मात्र उसके पीछे वनविभाग के नियमित और सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों की अकर्मण्यता और भष्ट्राचार ही जिम्मेदार है। अब इससे ज्यादा क्या सबूत दिये जा सकते हैं की आँख के आगे होते हुये वन अपराधों को दिखाने पर और पकड़वाने पर भी और पूरे विडियो फोटो के साथ उपलब्ध करवाने पर भी इन वन अधिकारियों ने कोई कार्यवाही नहीं की।
क्या ऐसे निकम्मे वन अधिकारियों कर्मचारियों को मुफ्त का खाया जाने वाला जनता के टैक्स और सरकार का पैसा इन्हे कभी भी पच पाएगा?
संलग्न – रीवा ज़िले के सिरमौर वन परिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले पनगड़ी बीट के तेदून, नौपथा,मछेहुआ, नादघाट एवं रवार एरिया मे आपराधिक तत्वों द्वारा लगाई गई आग से तहस नहस हुये जंगली परिक्षेत्र का दृश्य।
------------------
शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक, पर्यावरण,एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र।
मोबाइल – 7869992139, 9589152587
No comments:
Post a Comment