दिनांक 14 अप्रैल 2018, स्थान - गंगेव जनपद, रीवा मप्र
(कैथा, रीवा, शिवानन्द द्विवेदी
आज भारतीय लोकतंत्र 70 वर्ष से अधिक का हो रहा है. हर वर्ष भारतीय लोकतंत्र की वर्षगांठ मनाई जाती है. याद दिलाया जाता है की हमे इतने सदियों की गुलामी के बाद आजाज़ी मिली. इस आजादी को प्राप्त करने में हमारे देश के वीर शहीदों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की बलि वेदी में आहुति दी.
यह सब तो ठीक है पर क्या यह भी कभी गंभीरता से विचार किया गया की आज इतने दसकों के बाद भी आखिर मूलभूत मानवाधिकारों की समस्याओं को हल क्यों नही किया गया? क्या मूलभूत अधिकारों की समस्या से स्वतंत्रता प्राप्त हुई है? प्रकाश के लिए बिजली, पीने के लिए स्वच्छ जल, सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु, रहने के लिए उचित आवास, जीवित रहने के लिए भोजन यह प्रत्येक लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गए देश की आम जनमानस को हर हाल में उपलब्ध करवाना उस देश के संवैधानिक कर्तव्य होते हैं.
आज जब 21 वीं सदी का दौर चल रहा है और मानव अपने विकास गाथा का वर्चस्व धरती से लेकर अम्बर तक स्थापित करना चाह रहा है. वर्चस्व की लड़ाई के लिए महायुध्य हो रहे हैं. वैज्ञानिक अविष्कारों ने पुरानी सभी परिभाषाएं और मान्यताओं को बदल दिया हैं. भौतिक विज्ञान नित नए आयाम तलास रहा है. व्यक्ति धरती पर जीवन से थक हारकर अन्यत्र ग्रहों में जीवन पानी हवा की तलाश कर रहा है, ऐसे में यह सोचना पड़ेगा की यदि मॉनव इस धरती रूपी माता के गोद जिसमे पला बढ़ा और खेला खाया उसमे यदि जीवन सुचारू रूप से नही चला पाया तो बड़ी सर्मिन्दगी की बात होगी की दूसरे अजनबी ग्रहों जिनके की जीवन के पैमाने भी नही तय हुए हैं उनमे कैसे शांति और जीवन तलाश पायेगा. यह सब देखकर बड़ा ही अजीब लगता है की मृगतृष्ना के पीछे दौड़ने वाला यह मानव आज अपना ही अंत करने में तुला है. आज दुनिया कई मायनों में विनाश की कगार पर खड़ी है. अगले महायुध्य की ध्वनियां स्पष्ट सुनाई दे रही हैं.
धरती का पानी बर्वाद कर ढूँढ़ने चले मंगल और चंद्रमा पर
बड़ी अजीब दास्तान है की आज धरती पर जल प्रबंधन कर पाने में असफल सरकारें अपनी प्यासी मानवता के लिए मानवाधिकारों में से एक स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध करवा पाने में असफल हैं और अन्यत्र ग्रहों चंद्रमा, मंगल, आदि में पानी और जीवन की तलास के लिए अरबों खरबों बर्वाद कर रही हैं. यह किसी एक देश के हाल नही हैं बल्कि आज ज्यादातर विश्व के देशों में फैशन बन चुका है की चाहे उस देश में खाने के लिए दाने न हो लेकिन अपना वर्चस्व बताने के लिए न्यूक्लिअर और एटॉमिक प्रोग्राम में पानी की तरह पैसे और ह्यूमन रिसोर्स बहाने के लिए पर्याप्त समय और पैसा है. चाहे उस देश में भुखमरी चल रही हो, सब मर रहे हों लेकिन देश और विदेश से आयातित हथियार अवस्य होने चाहिए. विश्व के समस्त देशों के पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट पावर को जोड़ दिया जाए तो ये ऐसी ताकतें बन चुकी हैं की चाहें तो यह पूंजीपति एक एक देश को गोद लेकर सालों साल उनकी आम जनमानस को खिला पिला सकते हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नही करेंगे जो भी करेंगे वह मात्र कुछ ऐसा करेंगे कि उस पैसे और संपदा एवं मैन पावर का ऐसा उपयोग करेंगे जिससे ज्यादातर ऐसे पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट पावर का वर्चस्व स्थापित हो. बिल गेट्स, ज़ुकेरबर्ग, टाटा और अजीम प्रेमजी जैसे कम ही लोग होंगे जो अपना पैसा चैरिटी और मॉनव की सेवा में लगाना चाहेंगे.
पूंजीपति और कॉर्पोरेट वर्ल्ड को मानवाधिकार संरक्षण में आगे आना चाहिए
यद्यपि यह कहने और सुनने में बड़ा अटपटा सा लग सकता है लेकिन यदि विश्व के पूंजीपति और कॉर्पोरेट वर्ल्ड के लोग अपना थोड़ा थोड़ा भी योगदान चैरिटी के लिए देने लगे तो काफी हद तक विश्व की मूलभूत समस्याओं से निजात मिल जाएगा. सभी गरीब कमज़ोर और नीडी लोग अपनी मूलभूत अवश्यकताओं की पूर्ति कर पाने में सफल होंगे जिससे वह अपने जीवन को रोज़ की रोटी, कपड़ा, पानी, खाना, स्वास्थ की जद्दोजहद को छोड़कर अपने जीवन को सार्थक बनाने में लगा पाएंगे और इस जीवन को समझ पाएंगे. आज पूरे विश्व की 75 प्रतिसत से अधिक की आवादी अपने रोज़ की जीवन की जद्दोजहद में ही पड़ी हुई है, उसे अपने मॉनव होने का एहसास भी नही है. इन ज्यादातर लोगों के लिए अपने रोजमर्रा की अवश्यकताओं की पूर्ति ही इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य है.
देश दुनिया की बातों को विराम देते हैं और आते हैं मप्र के रीवा में और देखते हैं की एक जिले के ग्रामों की समस्या कैसे इस पूरे देश और यहां तक की पूरे विश्व के लिए एक प्रोटोटाइप है.
भारत में भष्ट्रचार का कोई अंत नही है. यहां तक कि लोग आज यह भी कहने लगे हैं की भारत की आबोहवा में भी अब भष्ट्रचार फैल चुका है. जो भी हो पर इसमे कोई दो राय वाली बात नही की मानवीय अवश्यकताओं के साथ ही समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं.
बांस पंचायत में 15 वर्ष से बनी पानी की टंकी में भरा है हवा, हैंडपम्प उगल रहे आग
अभी पिछले दिनों पर्यावरण एवं मानवाधिकार के संरक्षण के लिए कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा ज़िले के गंगेव ब्लॉक अंतर्गत कई पंचायतों में भ्रमण किया गया और पानी संबंधी जमीनी हकीकत का व्योरा लिया गया. जो सच्चाई सामने आयी वह भारतीय परिवेश के हिसाब से ज्यादा चौकाने वाली नही थी.
ग्राम बांस के रोहित कुमार मिश्रा, शिवम मिश्रा, राजू तिवारी, अरुणेंद्र गौतम, सुमित्री सेन, जोधाबाई सेन, रविराज साकेत, अनुराग मिश्रा, आदि रहवाशियों ने बताया की ग्राम में 50 हज़ार क्षमता की पानी टंकी आज से 15 वर्ष पहले बनाई गई थी जिसमे मात्र 10 दिन के लिए ही पानी भरा गया था और उसके बाद कभी इस टंकी में पानी देखने को नही मिला. रोहित मिश्रा ने बताया की इस विशाल पानी टंकी को हमारे ग्राम में बनवाने के पीछे शासन प्रशासन की क्या मंशा रही होगी उन्हें आज तक समझ नही आया क्योंकि जब से पानी की टंकी बनाई गई है तब से लेकर आज तक न कहीं पाइप लाइन का पता है और न ही किसी रखरखाब करने वाले कर्मचारी का. शिवम मिश्रा और सुमित्री सेन द्वारा बताया गया की इस पानी की टंकी में जब एकबार पानी भरा गया था तब इसमे लीकेज था और पूरा पानी बह गया था. आज जब देखा गया तो लोगों ने पानी के टंकी के नीचे अपने अपने माल मवेशी बांध दिए थे.
रोहित और शिवम द्वारा जानकारी दी गई की उनके ग्राम में सैकड़ों नलकूप पंचायत, विधायक, और सांसद आदि निधियों से बनाये गए हैं लेकिन 90 प्रतिशत से अधिक हैंडपम्प आज हवा और आग उगल रहे हैं. हैंडपम्प मैकेनिक से लेकर पंचायत कर्मियों और सरपंच को जानकारी दी गई लेकिन समस्या का समाधान नही किया गया.
सभी रहवाशियों द्वारा एक स्वर में बताया गया की लोग बहुत परेशान हैं और बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं और कोई सुनवाई नही हो रही है.
शिवम और रोहित ने आगे बताया की उन्होंने यह जानकारी यहां से चुने गए जिला पंचायत सदस्य को भी दी थी लेकिन जिस दिन से चुनाव सम्पन्न हुआ है उस दिन से आज तक वोट और पद प्राप्त करने के बाद कोई भी जन प्रतिनिधि नही दिखा है जब वोट लेना होगा तो फिर मुह उठाये दौड़े चले आएंगे और बोलेंगे की हमे वोट की भीख के दो.
बांस ग्राम में ताला खुला पड़ा हुआ है पंप हाउस, स्टार्टर और इलेक्ट्रिक समान में लग गया जंग
ग्राम बांस के राजू तिवारी, शिवम मिश्रा और रोहित मिश्रा ने पंप हाउस के अंदर घुसकर दिखाया जिसमे कोई ताला नही लगा हुआ था. एक खुला हुआ ताला वहीं पर लटक रहा था. रहवाशियों ने पंप हाउस के अंदर घुसकर दिखाया तो वहां का नजारा देखते ही बनता था जिसमे मोटर स्टार्टर, केबल, टूटे फूटे इलेक्ट्रिक के सामान आदि बिखरे पड़े थे जो स्पष्ट रूप से पंप हाउस के काम न करने और वहां की अव्यवस्था को दिखा रहे थे.
बांस पानी की टंकी से संबंधित पंप हाउस के पीछे एक हैंडपम्प भी लगा हुआ मिला जो बनने के बाद कभी चला ही नही. हैंडपम्प चलाकर दिखाया तो उसका हैंडल जम्प कर रहा था.
रीवा पी एच ई कार्यपालन यंत्री शरद सिंह को जानकारी नही
जब बांस की पानी की टंकी की दुर्दशा के विषय में ज़िले के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री शरद सिंह से बात की गई तो उनका कहना था की इस पानी की टंकी के विषय में उन्हें कोई जानकारी नही है. कार्यपालन यंत्री द्वारा कहा गया की चूंकि जानकारी दी जा रही है तो अनुविभागीय अधिकारी एवं उपयंत्री को भेजकर दिखवाएंगे.
50 हज़ार से अधिक क्षमता वाली पानी की टंकी की जानकारी ज़िले के कार्यपालन यंत्री को न होना एक अचंभा ही है. हाँ यह माना जा सकता है कि छोटी नलजल योजना संबंधी पानी की टंकी और सामान्य नलकूप की जानकारी का न होना समझ आता है पर आज जब पिछले कई सप्ताह से ज़िले में निरंतर पानी की भीषण समस्या को अखबार और विभिन्न मीडिया स्रोतों और कंप्लेन के द्वारा बताया जा रहा है ऐसे में इन अधिकारियों को चाहिए की पूरे ज़िले के डेटा को इकठ्ठा कर उसमे युध्यस्तर पर कार्यवाही कराएं.
हिरुडीह पंचायत में भी भीषण जल संकट, नलजल योजना में पानी के स्थान पर आम जनता को मिल रही है हवा और आग
गंगेव ब्लॉक की हिरुडीह पंचायत का किस्सा भी बांस पंचायत से कुछ ज्यादा अलग नही. दिनाँक 13 मार्च को शुबह लगभग 9 बजे के आसपास सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा हिरुडीह पंचायत की समस्याओं के सिलसिले में दौरा किया गया तो वहां को स्थिति दिखी वह भी आज पंचायती राज व्यवस्था की दुर्दशा को ही बया करती है.
हिरुडीह के दो टोलों का दौरा किया गया और वहां से जानकारी प्राप्त की गई जिसमे हिरुडीह निवासी रामगोपाल पांडेय, रामायण प्रसाद पटेल, राजेश पटेल, भगवानदीन पटेल, रामनिवास दुबे, रामलाल विश्वकर्मा, राजमणि पांडेय, विष्णुकांत शुक्ला आदि द्वारा बताया गया की लगभग तीन सरपंची पहले अर्थात लगभग 10-12 साल पूर्व उनकी पंचायत में नलजल योजना के लिए चार पानी की कम और मध्यम क्षमता वाली पानी की टंकियां बनाई गईं थी और कुछ पाइप लाइन भी बिछाई गई थी लेकिन कभी कोई पानी सप्लाई नही की गई है. सभी चारों पानी की टंकियां मात्र शोपीस बनकर खड़ी हुई हैं और आम जनता बूंद बूंद पानी के लिए तरस रही है.
इन रहवाशियों द्वारा बताया गया की इन्होंने कई बार सरपंच, सचिव, विधायक, सांसद, ज़िला एवं जनपद सदस्यों और अधिकारी कर्मचारियों सहित लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को भी सूचित किया गुहार लगाई लेकिन कोई कार्यवाही नही हुई, हाँ जब भी बात की जाती है तो अधिकारियों द्वारा बताया जाता है की काम हो जाएगा. पर आज दसक भर बीत रहे हैं लेकिन कुछ हुआ नही है. रहवाशियों द्वारा बताया गया की उनके गांव में सभी हैंडपम्प खराब पड़े हैं, ज्यादातर में पाइप ही नही पर कोई सुनने देखने वाला नही. बताया गया की कुछ हैंडपम्प में जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है.
बताया गया की गंगेव जनपद अंतर्गत हिरुडीह पंचायत में 6 ग्राम आते हैं जिनमे हिरुडीह, जरहा, कोठार उन्मूलन, मड़फा, कोती, बगहिया सामिल हैं. इन सभी ग्रामों सहित पूरे पंचायती क्षेत्र की कुल आवादी लगभग 8 हज़ार से ऊपर है. और पूरे पंचायती क्षेत्र के 80 प्रतिशत से अधिक नलकूप खराब पड़े हैं.
हरिजन बस्ती हिरुडीह के लोग पानी के लिए परेशान, दोनो नलकूप खराब और नलजल योजना की टंकी में कभी नही पहुचा पानी, पाइप और र खरखाब का पैसा भी खा गए भष्ट्राचारी
हिरुडीह ग्राम में आगे चलने पर पुरवा वाली सड़क मार्ग से जुड़ी हिरुडीह की हरिजन बस्ती आती है जहां पर लगभग 50 घर हरिजन निवास करते हैं जिनकी आवादी लगभग 200 के आसपास है. इनके घर के पास दो नलकूप खोदे गए थे जो बिल्कुल कार्य नही कर रहे हैं. दोनो नलकूप पानी नही दे रहे. एक नलकूप अभी पिछले वर्ष 2017 में ही बनाया गया है लेकिन उसका प्लेटफॉर्म भी उखड़ा मिला और जब से बनाया गया है तब से उसमे बूंद में पानी नही निकला. सभी हरिजन महिलाओं और पुरुषों ने सरपंच और पंचायत विभाग पर आरोप लगाया की उनकी समस्या की कोई सुनवाई नही की जा रही है.
वहीं पास स्थित बगीचे के पास 50 मीटर दूरी पर एक छोटी किश्म की पानी की टंकी भी दिखी जिसमे कभी पानी नही आया. हरिजनों ने बताया की इस पानी की टंकी में पाइप लाइन भी सप्लाई नही की गई. हरिजनों ने बगीचे के पास स्थित मेढ़ की तरफ इशारा करते हुए बताया की टंकी से 50 मीटर दूर तक कभी पाइप लाइन डाली गई थी लेकिन उनके पानी की टंकी में पाइप नही जोड़ी गई. हरिजनों ने आगे जानकारी दी की बाद में लगाई गई पाइप भी खोदकर बेंच ली गई है.
हिरुडीह के हरिजनों ने आरोप लगाया की उनकी समस्याओं की कोई सुनवाई नही हो रही है. जब वोट माँगना होता है तो प्रत्यासी उनके घर में आएंगे और खाट के नीचे बैठ जाएंगे और उनका पैर दबाकर कहेंगे की हमे बस आप लोग एक बार मौका दे दो हम आपके जीवन को बदल देंगे. अब हाल यह हैं की हर पंचवर्षीय व्यतीत हो रही है लेकिन ग्रामीण परिवेश में जीवन यापन करने वाले हरिजन आदिवशियों के जीवन में आज तक कोई विशेष बदलाव देखने को नही मिले है.
सभी लोगों ने एक स्वर में माग की है कि उनकी मूलभूत समस्याओं का और विशेष तौर पर गर्मी में पानी कि समस्या का समाधान किया जाए. उनकी पानी की टंकी को प्रारम्भ कर उसमे पाइप लाइन डाली जाए और घर घर नलजल योजना के माध्यम से पानी दिया जाए।
हिरुडीह हरिजन बस्ती में बिजली, आवास जैसी मानवाधिकार की भी हैं समस्याएं
अमृत लाल साकेत एवं उनके आसपास बसे सैकड़ों हरिजन परिवारों ने बताया की उन्हें प्रधानमंत्री आवास का लाभ दिया गया था लेकिन सहायक सचिव और सरपंच द्वारा उन्हें पीएम आवास् की पूरी राशि नही दी गई है और मात्र 1 लाख 15 हज़ार ही दी गई है. उनकी मनरेगा की मजदूरी की राशि और शौचालय की राशि नही दी गई है.
सभी हरिजनों ने बताया की उनके घरों में बिना बल्ब जलाए ही बिजली के अनियंत्रित बिल भेजे जा रहे हैं. हरिजनों ने बताया की उनके कुछ घरों में तो मीटर लगा है परंतु सभी के घर मीटर भी नही है. बताया गया की बिना मीटर रीडिंग ही बिजली के मनमुताबिक बिल भेजे जा रहे हैं. जिसकी की कई बार शिकायत भी मौखिक एवं सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से की गई है पर औसत और ज्यादा बिलिंग में कोई परिवर्तन नही हुआ है. सभी ने बताया की उनके घरों में उजाला योजना के 9 या 10 वाट के एक या दो तक बल्ब जलते हैं और कोई दूसरे इलेक्ट्रिक सामान नही हैं फिर भी इतना अधिक बिल क्यों भेजा जा रहा है.
इन समस्याओं पर सभी ने एक स्वर में कार्यवाही की माग की है.
संलग्न - बांस और हिरुडीह पंचायत की बन्द पड़ी नलजल योजना की टंकियां, खराब पड़े पाइप की कमी के कारण पड़े हैंडपम्प और साथ ही बांस और हिरुडीह पंचायत के रहवासी और लोग जिनकी की समस्याओं का कोई समाधान नही किया जा रहा है. मामला गंगेव जनपद की पंचायतों का.
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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,रीवा मप्र,
मोबाइल - 7869992139, 9589152587,
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