Sunday, April 22, 2018

झोलाछाप का बोलबाला, एक का ग्यारह देने पर भी जान से हाँथ धो रहे, न दवा और न ही जीवन की कोई गारंटी, सुप्रीम कोर्ट तक के निर्देशों की कोई कीमत नही (मामला ज़िले की हज़ारों प्राइवेट क्लिनिक और झोलाछाप डक्टरों का)

दिनांक 22 अप्रैल 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी) 

    कहते हैं सबसे सुखी निरोगी काया, पर इस मॉनव तन में रोग व्याधि भी समय समय पर आते ही रहते हैं. कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनका इलाज करवाने से राहत मिल जाती है और कुछ ऐसी व्याधियां लग जाती हैं जो शरीर के अंत के साथ ही समाप्त होती हैं.

    पुराने समय में बीमारी की स्थिति में गांव के वैद्य की दवा काफी कारगढ़ साबित होती थी. तब आयुर्वेद और जड़ी बूटियों में काफी ताकत होती थी और तब की जड़ी बूटियां स्वच्छ वातावरण में पैदा होती थीं. तब का खान पान भी इतना प्रदूषित नही था जितना आज का हो गया है. आज तो हर एक पदार्थ में दवा और प्रिजरवेटिव मिले रहते हैं. दूध में सोड़ा और यूरिया मिला रहता है, अनाज की बुवाई से कटाई और घर में स्टोर करने तक यूरिया, डीएपी, कीटनाशक, सल्फास और पता नही क्या क्या डाला रहता है. ऐसे में आज जब हम यह भोजन करते हैं तो यह जहर हमारे शरीर में प्रवेश कर हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधक शक्ति को कमजोर कर विभिन्न प्रकार की साध्य और असाध्य बीमारी का तोहफा दे जाता है जिससे लड़ने के लिए हमारा जीवन पर्याप्त नही हो पाता.

   बीमारी तो होना आजकल एक आम बात हो गई है, और मौसमी से लेकर विभिन्न बीमारियां, पर यदि उसका अच्छे डॉक्टर से समय पर इलाज हो जाए तो निजात मिल जाती है. पर आज ग्रामों कस्बों में अच्छे डॉक्टरों का अभाव है जिससे झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला हो गया है. आज फार्मेसी की डिग्री और मेडिकल स्टोर खोल पाने की डिग्री धारक भी एम बी बी एस, एम डी, और सर्जरी का काम कर रहे हैं. अभी पिछले दिनों थाना गढ़ अंतर्गत इटहा ग्राम के हीरालाल पटेल ने बताया की उसकी पत्नी को डायबिटीज की समस्या थी और उसका इलाज चल रहा था इसी बीच उसकी तबियत अचानक खराब हो गई और वह पास ही स्थित गढ़ कस्बा के किसी डॉक्टर के पास गया और अपनी पत्नी का इलाज करवाया. इन बंगाली और बनारसी किश्म के डक्टरों ने कुछ ऐसा इलाज कर दिया की बिना जांच पड़ताल के 50 का ग्लूकोस बोतल 500 में चढ़ा दिया और हीरालाल की औरत का शुगर लेवल अचानक बढ़ कर कंट्रोल से बाहर हो गया. जब वह पूरी तरह से मरने लायक हो गई तो डॉक्टर साहब ने कहा की अब आप इन्हें रीवा या अन्यत्र लेकर चले जाएं हमारे बस की बीमारी नही है. रीवा जाते जाते और भर्ती कराते कराते उसकी पत्नी ने अंतिम सांस ले ली. हीरालाल ने बताया की उनकी अभी बेटी भी शादी करने योग्य है. उसकी पत्नी के अकस्मात मरने से उसका जीवन नीरस हो गया है।

     इसी प्रकार पिछले दो वर्ष पहले कैथा निवासी अम्बिका मिश्रा भी किसी हिनौती के झोलाछाप डॉक्टर के चक्कर मे पड़कर अपनी जान गवां बैठे। मामला जब अंतिम स्थित में आया तो गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया जहाँ बीच रास्ते मे ही अम्बिका की मृत्यु हो गयी।

गढ़, गंगेव, हिनौती, कटरा, कलवारी, भठवा और लालगांव में चलता है झोलाछाप का बोलबाला 

    वैसे तो पूरे ही ज़िले और संभवतः प्रदेश में ही आज फ़र्ज़ी किश्म की डिग्री लिए हुए, फार्मेसी और मेडिकल की दुकान खोलने की डिग्री लिए हुए फ़र्ज़ी डॉक्टर सर्जरी और मेडिसिन जैसे बड़े डॉक्टरों का काम कर रहे हैं परंतु सबसे ताजुब्ब की बात यह है की इस सबको सीएमएचओ और फूड्स एंड ड्रग्स डिपार्टमेंट के अधिकारी जानते हैं लेकिन सबकी मासिक बंधी होने के चलते कोई कार्यवाही नही होती. 

    ज़िले के सभी छोटे बड़े कस्बों में इन झोलाछाप का बोलबाला है परंतु यह सब जानते हुए भी शासन प्रशासन कार्यवाही से कतरा रहा है. थाना गढ़ और लालगांव चौकी क्षेत्र में ही अकेले गढ़, तेंदुआ, परासी, कलवारी, कटरा, हिनौती, लालगांव, भठवा सहित अन्य जगहों पर इन झोलाछाप डॉक्टरों ने अपनी दुकानें खोल कर रखी हैं. इनमे ज्यादातर मेडिकल स्टोर में संचालित होते हैं. मेडिकल स्टोर के नाम पर अपना आला पाला रखे हुए यह झोलाछाप डॉक्टर आम जनता की खूब जमकर लूटाई कर रहे हैं. 

   बेचारे गांव के लोग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अभाव और साथ ही जहां भी ऐसे केंद्र बने हुए भी हैं वहां उचित तरीके से संचालित न होने के कारण इन झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में पड़ने को मजबूर हो जाते हैं. छोटी बीमारी की स्थिति में भी मेडिकल दुकान में जाएंगे और मेडिकल दुकान पर बैठे झोलाछाप के चंगुल में पड़ जाएंगे. 2 रुपये का इंजेक्शन 200 रुपये में और 40 रुपये का बॉटल 800 रुपये में चढ़ाएंगे. 

फ़र्ज़ी क्लिनिक तक हैं संचालित, बिना साइन पर्ची, एक्सपायरी डेट की दवाईयां 

   बात मात्र 1 का 11 बसूलने तक ही सीमित नही है. यहां तो बहुत सी समस्याएं हैं जिन्हें गौर किया जाना चाहिए

  --- चूंकि क्लिनिक फ़र्ज़ी होती हैं अतः दवा पर्ची में कौन डॉक्टर इलाज किया इसका कोई सबूत नही छोड़ा जाता. किसी भी पर्ची में डॉक्टर के हस्ताक्षर नही होते. इन दवा पर्चियों में मरीजों के नाम भी नही लिखे रहते.

 --- इन फ़र्ज़ी क्लीनिकों पर कोई ओ पी डी रजिस्टर नही होता. जिससे इस बात की कोई जनकारी नही होती की कौन से मरीज कहाँ से कब आया किसका इलाज किया गया और उसको क्या बीमारी डायग्नोज़ की गई. यह सब इसलिए होता है क्योंकि यदि कहीं भूल से ओ पी डी रजिस्टर बनाया गया तो उससे इन फ़र्ज़ी क्लीनिक पर कार्यवाही हो अक्ति है.

 --- जिस प्रकार एक एम बी बी एस अथवा एम डी डिग्री धारक डॉक्टर अंग्रेज़ी दवा से इलाज करते समय उसका उचित डोज़ और उसके रिएक्शन के होने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के लिए दूसरी दवाईयों की पुख्ता जानकारी रखता है उसके विपरीत इन झोलाछाप डॉक्टरों के पास इसकी कोई जानकारी नही होती. ज्यादातर देखा गया है की मर्ज़ के इलाज के वक्त पहले से ही यह झोलाछाप डॉक्टर एक दो एविल की टेबलेट खिला दिया करते हैं जिससे रिएक्शन ही न हो. पर बिना रिएक्शन हुए ही एविल की गोली खिलाना भी उचित नही. रिएक्शन और दुष्प्रभाव से होने वाली मौत बढ़ रही हैं. जब झोलाछाप के बस में नही रह जाता तो आनन फानन में मरीज को रिलीव करके कट लेते हैं.

 --- क्योंकि मरीज के नाम पर कोई पुख्ता रशीद नही होती इसलिए जी एस टी और अन्य टैक्सेशन से बचे रहते हैं जिससे सरकार के खजाने में चूना लगता रहता है. 

 --- संबंधित ग्रामीण अंचलों में यह झोलाछाप डॉक्टर अपने आपको शांतिदूत बताकर इलाज करते हैं. इनका कहना होता है की यदि आप शहर में जाएंगे तो वहां डॉक्टर आपसे भारी भरकम 500 रुपये की फीस लेगा और दुनिया भर की तकलीफें होंगी. हमारी कोई फीस नही है. इस प्रकार झांसा देकर यह झोलाछाप गरीब और अनपढ़ ग्रामीणों को अपने चंगुल में फंसा लेंगे और उस फीस की वशूली इंजेक्शन, गोली दवा और बॉटल में कर लेंगे. 2 रुपये के इंजेक्शन की कीमत 200 रुपये और 2 रुपये की गोली की कीमत 20 रुपये लेते हैं. इसी प्रकार बिना किसी बीमारी के ही दनादन बोतल चढ़ाते जाएँगे जिस पर जमकर वशूली करेंगे.

रीवा हार्ट स्पेशलिस्ट के डी सिंह ने कहा इस मृत को अब यहां लेकर क्यों आये हो फेंक दो इसे रोड में

अभी हाल ही में कैथा निवासी रामखेलावन द्विवेदी पिता स्व. लोकनाथ द्विवेदी भी इन झोलाछाप और अधूरे ज्ञान वाले डॉक्टरों के चंगुल में फंस गए. गनीमत तो यह थी की आनन फानन में रामखेलावन को रीवा रेफेर किया गया जहां से उनकी स्थिति में सुधार न होने पर भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनका हफ्तों इलाज चला  और तब जाकर राहत मिली. 

   मामला यूं था की रामखेलावन द्विवेदी को डायबिटीज और हार्ट की तकलीफ बतायी गई थी जिसका पहले से रीवा स्थित हार्ट विशेषज्ञ के डी सिंह से इलाज चल रहा था. फिर दवा खत्म होने के कारण गांव में उन्हें तकलीफ बढ़ गई जिस पर उन्होंने कटरा स्थित किसी अधूरी डिग्री और अधूरे ज्ञान वाले झोलाछाप डॉक्टर को दिखा दिया. उस डॉक्टर महाशय ने रामखेलावन को बॉटल ठोंक दिया जिससे ग्लूकोस अधिक हो जाने से शुगर लेवल हाई हो गया. हार्ट में अचानक दर्द बढ़ गया, फेंफड़े में पानी भर गया. जब स्थिति कंट्रोल से बाहर दिखी तो डॉक्टर महाशय ने जबाब दे दिया. रामखेलावन को उहापोह में रीवा लेजाकर संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनके पहले वाले डॉक्टर के डी सिंह को बुलाया गया. के डी सिंह ने जब मरीज को इस स्थिति में देखा तो यहां तक कह दिया की इस मृत शरीर को मेरे पास लेकर क्यों आये हो जाकर फेंक दो रोड में. मतलब यह था की स्थिति 80 प्रतिशत कंट्रोल से बाहर थी. बताया गया की रामखेलावन का हार्ट 80 प्रतिशत डैमेज हो चुका था और बचने के चांस नही थे. इस पर उनके परिजनों ने उन्हें चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया जहां किसी दिल्ली से आये हार्ट विशेषज्ञ आर के सिंह ने जाकर हफ्तों इलाज किया और रामखेलावन को मृत्युशैया से वापस लाया. तो यह कहानी है हमारे देश की मेडिकल फैसिलिटी और चिकित्सकीय अव्यवस्था की. इस पर ध्यान देने वाला कोई नही है जबकि लगभग रोज ही इन झोलाछाप डॉक्टरों के काले कारनामे किसी न किसी मीडिया ग्रुप और न्यूज़पेपर में उजागर होते रहते हैं. इस विषय मे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी गाइड लाइन जारी कर रखी है लेकिन कोई अमल नही हो रहा।

संलग्न - ऐसे ही झोलाछाप डक्टरों की लिखी कुछ दवा पर्चियां जो ग्रामीण मरीजों को दी गईं थी जो वह लाकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को दिखाए हैं यहां पर संलग्न हैं.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र

 मोबाइल - 7869992139, 9589152587

1 comment:

Unknown said...

मानव मे शोषण की प्रवित्ति प्रवल है। पढ़े लिखे लोग निरक्षरो, अशिक्षितो का शोषण कर रहे है, दूसरी तरफ सरकारो का भी पूरा ध्यान बोट बैंक की राजनीति की ओर है। ऐसे में समाजसेवियों को अपनी संख्या बढ़ानी होगी, आपका कार्य सराहनीय है गुरुदेव।