Friday, April 13, 2018

वन समितियों की हिटलरशाही - वन विभाग ने मानसेवियों को 14 माह से नही दिया पेमेंट

दिनांक 13 अप्रैल 2018, स्थान - सिरमौर वन परिक्षेत्र, रीवा मप्र,

(कैथा, रीवा मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

   आजकल प्रदेश के ज्यादातर जंगली क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा ग्राम वन समितियों के मात्र 25 सौ रुपये प्राप्त करने वाले मानसेवी चौकीदारों के हवाले है. वन विभाग के नियमित अधिकारी कर्मचारी वातानुकूलित कमरों और बंद ए सी कारों में घूमते हैं.

      अब यदि इतने में भी उन बेचारे वन समितियों के मानसेवियों को 25 सौ रुपये तक नही दिए गए तो बड़े ही दुर्भाग्य की बात है. और इससे बड़ी सर्मिन्दगी और क्या होगी. वहरहाल, वनों में बढ़ते वन अपराध और शिकार की घटनाएं तो दिन प्रतिदिन समाचार पत्रों में उजागर हो ही रही हैं अभी हाल ही में पनगड़ी में जंगल में आग लगने की भी घटना प्रकाश में आयी थी जिसमे जंगल का एक विस्तृत भूभाग जलकर खाक हुआ था तब दौरे के समय जो सच्चाई सामने आयी थी वह काफी भयावह और चौकाने वाली थी. घटनास्थल में मात्र कुछ मानसेवी चौकीदार ही मिले थे और कोई भी नियमित अधिकारी कर्मचारी नही दिखा था. अभी भलघटी पनगड़ी गोहत्या कांड में भी यही देखने को मिला जिसमे पूरा इतना विस्तृत वन परिक्षेत्र मात्र एक रामसिया साकेत और राघुवेन्द्र पांडेय नामक दो मानसेवी चौकीदारों की सुरक्षा के हवाले था. 

रामसिया साकेत और राघुवेन्द्र पांडेय को 14 माह से नही मिला वेतन 

      ग्राम वन समिति पनगड़ी के मानसेवी चौकीदारों रामसिया साकेत और राघुवेन्द्र पांडेय द्वारा बताया गया की उन्हें पिछले 14 माह अर्थात जनवरी 2017 के बाद से 25 सौ रुपये मासिक मात्र दी जाने वाली वेतन नही दी गई है जिसकी की जानकारी अनुविभागीय अधिकारी वन और संबंधित वन परिक्षेत्र अधिकारी से लेकर डीएफओ और सीसीएफ को भी होनी चाहिए.

   इस पर दोनो पीड़ितों द्वारा बताया गया की ऐसे में वह वन की सुरक्षा कैसे देख पाएंगे. उन्होंने इसकी शिकायत सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी के समक्ष की और बताया की यदि वह इसकी शिकायत सीधे विभाग में करेंगे तो रेंजर और अनुविभागीय अधिकारी उनको नौकरी से निकाल देंगे. इस प्रकार उन्होंने शिकायत की बात न करने तक की बात कही. 

    जिस प्रकार से दोनो मानसेवी कर्मचारियों द्वारा विभाग के अंदर की स्थिति बताई गई इससे लगता है की विभाग के अधिकारी ही नीचे वाले छोटे कर्मचारियों का भरपूर शोषण कर रहे हैं जो की मानवाधिकार और लेबर के भी अधिकार का हनन है और ऐसे में विभागीय जिम्मेदारों के ऊपर भी कार्यवाही होनी चाहिए.

मानसेवी चौकीदारों की पेमेंट रोकना मानवाधिकार और लेबर के अधिकार का हनन

    आखिर क्या कारण है की आज 14 माह से मजदुरी कर रहे मानसेवी चौकीदारों की मात्र 25 सौ रुपये दी जाने वाली पेमेंट को रोक कर रखा गया है? यह मामला मात्र पनगड़ी के मानसेवी चौकीदारों तक ही सीमित नही है जानकारी एकत्रित करने पर बताया गया की सर्रा, देउर, घूमा, सरई, क्योटी आदि वन समिति के चौकीदारों की भी पेमेंट रोक करके रखी गई है जो सभी सिरमौर वन परिक्षेत्र के ही अंतर्गत आते हैं. अब यदि सिरमौर वन परिक्षेत्र के यह हालात हैं तो बांकी वन परिक्षेत्रों के कैसे होंगे यह विचारणीय विंदु है. अब प्रश्न यह भी उठता है की 50 हज़ार से अधिक पेमेंट पाने वाले शासकीय और नियमित अधिकारियों और कर्मचारियों की यदि एक या दो माह की पेमेंट रोक दी जाए तो इनकी क्या स्थिति होगी? क्या यह आंदोलन पर उतारू नही हो जाएंगे? तो प्रश्न यह उठता है की मात्र 25 सौ रुपये पेमेंट पाने वाले छोटे मानसेवी चौकीदारों के ऊपर यह वन विभाग इतना बड़ा जुर्म क्यों कर रहा है? यदि इनके ऊपर किसी अनुशासनात्मक कार्यवाही के तौर पर ऐसा किया जा रहा हो अथवा इन्हें किसी वन अपराध में दोषी पाया गया हो और कार्यवाही के तौर पर दंडित किया जा रहा हो तो उसका भी जबाब वन विभाग को देना चाहिए, कोई तो सूचना इन्हें दी जानी चाहिए. अब बिना किसी कारण के पेमेंट रोकना कहां तक जायज़ है? क्या मानसेवी कर्मचारियों के घर परिवार बाल बच्चे नही है?

संलग्न - रीवा के सिरमौर वन परिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले पनगड़ी बीट एरिया के पीड़ित दो मानसेवी चौकीदारों रामसिया साकेत और राघुवेन्द्र पांडेय की तस्वीर,

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र, मोबाइल 7869992139, 9589152587

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