Friday, April 27, 2018

नरवाई और मेढ़ों में आग लगाना मतलब अपनी हरी भरी फसल में आग लगाना (मामला किसानों द्वारा अपने खेतों के नरवाई और मेढ़ों में आग लगाने का, जिससे जमीन के पोषक तत्व समाप्त होकर जमीन हो रही बंजर)

दिनांक 27 अप्रैल 2018, स्थान रीवा मप्र

(कैथा, रीवा मप्र - शिवानन्द द्विवेदी)

 फसल की कटाई के साथ ही गर्मियों में एक बार फिर खेतों की नरवाई एवं मेढ़ों को आग के हवाले कर देने का सिलसिला चल पड़ा है.

  किसानों द्वारा किये जा रहे इस कृत्य से जहां पशुओं को गर्मियों में मिलने वाले चारे पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है वहीं दूसरी तरफ फसल की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए आवश्यक जीवाणुओं और खाद का भी सत्यानाश हो जाता है. 

    कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर यह प्रश्न उठाया जाता रहा है की सरकार इस पर शख्ती बरते जिससे किसान इस कृत्य से बाज आएं. गांव गांव जाकर किसान मित्रों और कृषि विस्तार अधिकारियों द्वारा इस विषय में जनता को जागरूक न कर पाना भी एक बहुत बड़ा कारण है. सरकारी तौर पर किसानों को गांव गांव जाकर यह बताया जाना चाहिए की खेत और मेढ़ों की नरवाई जलाना एक अवैधानिक कृत्य है जिससे जुर्माना और जेल भी हो सकती है.

खेतों और मेढ़ों की नरवाई में आग से पशु भी भटकते हैं चारा बिना

  गर्मियों में देखा गया है की कुछ छोड़ दिए गए पशु इसी नरवाई और मेढ़ों की घास से जिंदा रहते हैं तो जहां एक तरफ वैसे भी निरंतर उपेक्षा के शिकार हुए पशुओं की संख्या कम होती जा रही है और जो बचे हुए भी हैं नरवाई और मेढ़ों की घास फूस को आग के हवाले कर देने से मारे मारे फिरेंगे और गर्मियों में चारा पानी बिना बेमौत मारे जाएंगे.

खेतों और मेढ़ों के आग लगाना भारतीय संस्कृति के भी विरुद्ध

    वैसे देखा जाय तो भारतीय संस्कृति अहिंसा को बढ़ावा देने वाली है जिसमे वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे वाक्यों का हमारे धर्मशात्रों में कथन आता है. इसका तात्पर्य है की सभी जीवों की रक्षा हो सभी को जीने का अधिकार है. और यह सम्पूर्ण सृस्टि एक सनातनधर्मी की दृष्टि में एक परिवार की तरह है. अब ऐसे में आज इस कलयुग में कहां हम भारतवासी इस बात का पालन कर रहे हैं. खेतों और मेढ़ों में अनायास ही आग लगा देने मात्र से उसके अंदर असंख्य जीव जंतु नष्ट हो जाते है, पशु पक्षी आहार की कमी के कारण मर जाते हैं तो कहीं न कहीं हम स्वयं भी इस हत्या के लिए जिम्मेदार बन जाते हैं अतः धर्म की दृष्टि से भी हमे अपने अंदर दया का भाव जागृत रखकर ऐसे समस्त कृत्यों से बचना चाहिए जिसमे अनायास ही बिना किसी कारण के किसी जीव की हत्या करनी पड़े और जैसा की बताया गया की खेतों की नरवाई और मेढ़ों में आग लगाने से जीवों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बिना किसी कारण के हत्या की जा रही है जो पूरी तरह से हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध है.

संलग्न - रीवा ज़िले में विभिन्न स्थानों में किसानों द्वारा खेतों की नरवाई एवं मेढ़ों में लगाए गए आग का दृश्य.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,रीवा मप्र

  मोबाइल - 7869992139, 9589152587

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