Tuesday, July 5, 2016

रीवा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनवाडी केन्द्रों की दुर्दशा - केन्द्रों में लटकते हैं ताले , न कोई निगरानी न कोई योजना, सब कुछ बस कागजों में

दिनांक: 06/07/2016, रीवा (म.प्र.)
------------------------------------

रीवा जिले की ग्रामीण अंचल में संचालित आंगनवाडी केन्द्रों में नहीं दिया जाता कुपोषित बच्चों और महिलाओं का पोषण आहार, आंगनवाडी कार्यकर्ताओं के घरों में रख कर कर ली जाती है कालाबाजारी, और खिला दिया जाता है दुधारू पशुओं को. मंगल दिवस में अमंगल, और सबलाओं को बनाया जा रहा निर्बला.
-----------------------------

      (रीवा- हिनौती एवं गढ़ सेक्टर) राज्य और केंद्र सरकारों के अभी हाल ही में प्रसारित बजट में लगभग सभी शिक्षित वर्ग ने यह तो देखा होगा की किस तरह बजट आवंटन में महिला एवं बाल विकास या एकीकृत बाल विकास सेवा को लगभग सभी विभागों से ज्यादा बजट का आवंटन हुआ. यह आवंटन किसलिए हुआ? क्या इस आवंटन का लाभ उन बच्चों और कुपोषित बालिकाओं महिलाओं को मिल रहा है जिनके लिए सरकारें दावा करती हैं? इसकी निगरानी कौन करेगा? क्या बजट आवंटित कर देने मात्र से कार्य संपन्न हो गया? कौन कौन सी योजनायें है जो शहरी और ग्रामीण अंचल के बी.पी.एल, कुपोषित, असहाय, और ऐसे ही नीचे के आर्थिक और सामाजिक स्तर के समुदायों के लिए सरकार द्वारा चलाये जा रहे हैं? इसी प्रकार के दर्जनों प्रश्नों के उत्तर आज आम जनता को सरकारों से चाहिए. क्या सरकार इन सबके उत्तर देने के लिए तैयार है? निश्चित रूप से सरकार तो हमेशा ही तैयार है क्योंकि उसने तो पूरा का पूरा बजट ही आवंटित कर दिया है पर प्रश्न फिर वही घूमकर खड़ा हो जायेगा की इन सब बजट और योजनायों का सही तरीके से क्रियान्वयन कहाँ हो रहा है और कैसे हो रहा है?
      आइये इन सभी बिन्दुओं को लेकर एक बहुत छोटे स्तर से प्रारंभ करते है. और रीवा के गंगेव ब्लाक अंतर्गत हिनौती और गढ़ सेक्टर के लगभग साठ  पैंसठ केन्द्रों को आधार बनाकर फिर यही विश्लेषण और वस्तुस्थिति को पूरे जिले, पूरे प्रदेश और संभवतः पूरे देश में ज़ूम करके देखने का प्रयाश करते है.

जिला रीवा अंतर्गत हिनौती और गढ़ सेक्टर के पचासों आंगनवाडी केंद्र – मात्र लटकता मिलता है ताला, न कोई पोषण आहार, न कोई मध्यान भोजन, न कोई योजना का लाभ, आंगनवाडी कार्यकर्ता और बच्चे मिलते हैं नदारद –
वैसे तो सम्पूर्ण रीवा जिले के ग्रामीण अंचल के आंगनवाडी केन्द्रों की स्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं है. हम कहीं भी किसी भी आनागंवाडी केंद्र में जाएँ हमे तमाम ताले ही लटकते मिलेंगे पर जहाँ हमने लगभग अपनी आँखों से साल के तीन सौ पैसठ में से लगभग तीन सौ से अधिक दिनों में स्वयं भी देखा की गंगेव ब्लाक अंतर्गत आने वाली हिनौती एवं गढ़ सेक्टर की लगभग साठ (६०) से अधिक आंगनवाडी केन्द्रों में ज्यादातर ताला ही लटकता मिलता है, मात्र एक इटहा आंगनवाडी केंद्र को छोड़कर. ऐसे में क्या होगा महिलाओं का विकाश और क्या होगा बाल विकाश. शायद यह जानकारी कोई हमारे देश की महिला एवं बाल विकाश विभाग की केन्द्रीय मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी जी से भी साझा करले और उनके संज्ञान में रख दे तो अच्छा ही होगा. वैसे उनके कई कार्यों में से पशुओं के साथ क्रूरता को लेकर चलाये गए उनके अभियान और उनके योगदान के लिए वह बंधाई की पात्र हैं.
       जहाँ तक प्रश्न हैं आंगनवाडी सम्बन्धी इन अनियमितताओं की शिकायत का तो हम आपको बता दें की दर्जनों लिखित, दर्जनों सी.एम. हेल्पलाइन में और सैकड़ों बार मोबाइल और एस.एम.एस. से इन सभी जनहित वाले बिन्दुओं को लेकर आंगनवाडी सुपरवाइजर श्रीमती सावित्री सिंह (सेक्टर गढ़), श्रीमती निर्मला मिश्रा (सेक्टर हिनौती), गंगेव परियोजना अधिकारी, उस समय के रीवा जिला कार्यक्रम अधिकारी सौरभ सिंह, और अब के रीवा जिला कार्यक्रम अधिकारी अनिल जैन, रीवा महिला शसक्तीकरण के जिला आयुक्त नीलेश गुप्ता, कलेक्टर रीवा, सी.एम. हेल्पलाइन मध्य प्रदेश शासन, लिखित में श्रीमती पुष्पलता सिंह आयुक्त महिला एवं बाल विकास भोपाल म.प्र. शासन, श्रीमान प्रधानमंत्री महोदय भारत सरकार नई दिल्ली सहित मानवाधिकार आयोग भोपाल और पता नहीं कहाँ कहाँ इन सभी समस्याओं को लिखित और यहाँ तक की दस पांच रुपये का टिकेट/स्टाम्प भी लगा कर दिया गया लेकिन कुल टोटल परिणाम जीरो का जीरो. हमने अपनी ऊर्जा, समय, बुद्धि और पता नहीं क्या क्या बर्वाद किया पर समस्या जस की तस वहीँ पर बनी हुई है. जय हो शिनिंग इंडिया, जय हो देश बदल रहा है, जय हो उगता भारत, जय हो ग्रामोदय से भारतोदय.

भारत/राज्य सरकार की नौकरी ऊपरी कमाई का भी अच्छा जरिया:
      भारत में आप जुगाढ़ करके सरकारी नौकरी पा जाईये और फिर आप चैन आराम से बैठिये. कोई टेंशन नहीं. मासिक पगार तो पक्की है ही साथ में फर्जी टी.ए./डी.ए. बनाकर और बांकी की ऊपर की कमाई. चाहे वह महिला बाल विकास वाले केस में पोषण आहार बेंचकर, योजनायों में फर्जीवाड़ा करके, सबला योजना को निर्बला योजना में बदलकर, या फिर आंगनवाडी केन्द्रों को बंद रखने के एवज में पर्यवेक्षकों द्वारा आंगनवाडी कार्यकर्ताओं से पंद्रह सौ और दो हज़ार की घूस लेकर. सब चलता है. आप हज़ार दो हज़ार बस पर्यवेक्षकों को दे दो और वो अपने ऊपर बैठे आकाओं को भी शेयर पंहुचा देंगी बांकी  चाहे आप आंगनवाडी केन्द्रों को बंद रखो, खोल के रखो, केन्द्रों में माल-मवेशियों को बांधो, उसमे चारा भूसा रखो, या आपकी जो ईक्षा हो वो करो. कोई फर्क नही पड़ेगा. कुछ हमारे जैसे सरफिरे होंगे भी जिनको भ्रष्ट्राचार से लड़ने का भूत सवार होगा तो ज्यादा से ज्यादा दर्ज़न दो दर्ज़न शिकायतें करेंगे, हल्लागुल्ला करेंगें भी तो क्या फर्क पड़ता है. आखिर शिकायतों की जांच करने वाले तो ऊपर वाले ही अफसर न आयेंगे? ऐसे में जो पहले से ही उनको शेयर पंहुचा है उसका क्या? भारत में बस एक ही चीज़ तो कम से कम बहुत अच्छी है अधिकारी कर्मचारी कभी भी अपने विभाग के कर्मचारी अधिकारी से नमक हरामी नहीं करते. जिसका खाया है उसका अंत तक निर्वहन करते हैं. क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो भला कौन विकशित देश में ऐसा कानून होगा जहाँ सीधे सीधे आँख में पैर डालने (या आँख में धूल झोंकना) वाले काम होते होंगे? कम से भारत में तो यह संभव है? मेरा भारत महान! यहाँ पर पैसे के दम पर सब कुछ चल जाता है. बंद आंगनवाडी केंद्र कागजों में खुल जाते हैं. पंचायतों के जीरो स्तर के कार्य सौ प्रतिशन और पूर्ण गुणवत्तापूर्ण बन जाते हैं, यदि इरादतन किसी का मर्डर हुआ होगा तो वह एक्सीडेंटल बन जाता है. जहाँ एफ.आई.आर. लिखी जानी चाहिए वहां सादे कागज़ में भी रिपोर्ट नहीं ली जाती और जहाँ कुछ हुआ ही नहीं होता वहां कोर्ट केस बन जाता है, डॉक्टर बिना पढ़े और प्रेक्षा ट्रेनिंग के ही टॉप कर जाते हैं. पी.एस.सी. और आई ए एस मात्र गरीबों और मिदले क्लास वाले होनहार छात्रों के लिए हैं पैसे और पंहुच से सबल लोग तो बिना इन सबके ही प्रशासकीय अधिकारी बन जाते हैं.

आप कंप्यूटर गेम के शौक़ीन हैं तो 181 सी.एम. हेल्पलाइन में कॉल करें:-
यदि आप घर में अकेले पड़े पड़े अवसाद ग्रस्त महसूस कर रहे हैं और आपको लगता है की किसी से बात कर लेनी चाहिए तो एक शिकायत अपने गाँव, पंचायत या क़स्बा की ले लें और सी.एम. हेल्पलाइन में १८१ पर कॉल कर दें. आपका अच्छा एंटरटेनमेंट होगा. साथ ही आप कंप्यूटर गेम की तरह इसमें भी नंबर गेम खेल सकते हैं. जी हाँ क्या आपको पता नहीं है? आपकी सी.एम.हेल्पलाइन में दर्ज शिकायत पहले से चौथे लेवल तक जा सकती है. अब देखना है की चौथे लेवल तक पंहुचते पंहुचते आपकी जीत होती है या हार. ध्यान रखियेगा सी.एम. हेल्पलाइन को गंभीरतापूर्वक कभी मत लीजियेगा बस यह एक गेम है जो आपको पहले से चौथे लेवल तक पंहुचाएगा. आप जीत जाएँ तो उन लोगों का भला होगा जिनके लिए आपने यह शिकायत दर्ज करवायी थी नहीं तो कंप्यूटर गेम समझ कर भूल जाईयेगा. वहारहाल मैं यह कह रहा था की खाली टाइम में डिप्रेशन कम करने का तरीका है सी.एम. हेल्पलाइन, पर यदि आप गंभीर किस्म के व्यक्ति हैं तो थोडा सावधान रहिएगा क्योंकि म.प्र. शासन की सी.एम. हेल्पलाइन आपका डिप्रेशन बढ़ा भी सकती है क्योंकि क्या पता की आप चौथे लेवल में पंहुचकर इस गेम में हारें तो डिप्रेशन तो बढ़ सकता है ना?

ग्रामीण अंचलों में महिला एवं बाल विकास विभाग की कार्य प्रणाली को सुधारना होगा, नहीं तो सब दावे खोखले हैं- सभी विभागों के कार्यों के गुणवत्ता की जांच के लिए गठित की जाएँ स्पेशल और स्वतंत्र  समितियां-
      तो आपने देखा की समस्या काफी व्यापक है, जिसका की समाधान अकेले किसी देश के प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री के बस की बात नहीं हो सकती. और इतने भी इमानदार मुख्यमंत्री और प्रधानमन्त्री नहीं मिल सकते की किसी भी समस्या को उतनी गंभीरता से ले सकें. ऊपर स्तर की उनकी कार्य प्रणालियाँ तो जग जाहिर ही हैं. भला कौन नहीं जानता कौन कितना दूध का धुला है. पर फिर भी सरकार को यदि भारत में वास्तव में बदलाव लाना ही है तो सबसे पहले यह देखना पड़ेगा की सबसे नीचे के स्तर पर जो व्यक्ति/हितग्राही खड़ा है क्या उसको सरकार द्वारा प्रदत्त योजनायों का सही सही लाभ मिल पा रहा है? अब प्रश्न उठता है की यह ऑब्जरवेशन/पर्यवेक्षण करेगा कौन? तो यह पर्यवेक्षण सरकारी मुलाजिमों के तो बस की बात नहीं. क्योंकि वह तो अधिकतर इतने भ्रष्ट हो चुके हैं की किसी भी समस्या के उचित और सही निराकरण की जिम्मेदारी इनको देनी ही नहीं चाहिए. क्योंकि कुछ होने वाला नहीं है. मानाकि कुछ मुट्ठीभर कर्मचारी/अधिकारी अच्छी सोच वाले हो सकते हैं पर उनकी कोई वैल्यू भी नहीं है. क्योंकि मुट्ठीभर हर स्थान तक पंहुच भी नहीं सकते. जांच सम्बन्धी कार्य तो लोकपाल और स्वतंत्र निगरानी टीम का ही हो सकता है. जब तक लोकपाल की व्यवस्था नहीं है तब तक हर विभाग के जांच की कोई ऐसी टीम गठित की जानी चाहिए जिसमे उस विभाग से हटकर अन्य विभागों और अन्य प्रदेशों के कर्मचारी/अधिकारी सम्मिलित हों (और किसी भी प्रकार से रिश्ते नाते में न आते हों). ऐसी कोई भी टीम कम से आधा दर्ज़न कर्मियों की होनी चाहिए जिसमे अच्छे रिकॉर्ड वाले रिटायर्ड अधिकारी, अच्छे रेटेड एन.जी.ओ. सदस्य, वरिष्ठ रिटायर्ड जज, वरिष्ठ समाजसेवी, वरिष्ठ अच्छे रिकॉर्ड वाले पुलिस अधिकारी और इसी प्रकार से अच्छे चुने हुए सदस्य जांच दलों में हों और हम यह मानकर चलें की इस प्रकार से गठित जाँच दलों पर कोई प्रशासनिक दवाब अथवा नेतागिरी नहीं होगी तब जाकर काफी हद तक समस्या का सही सही आंकलन हो पायेगा. नहीं तो वर्तमान भारत की जो दुर्दशा है वह इतनी निराशावादी है की जितनी योजनायें पास हो रही हैं उसी हिसाब से दिन दूनी रात चौगुने भ्रष्ट्राचार भी हो रहे हैं. कम से कम मैं यह पूरे विश्वास और पूरे अनुभव के साथ कह रहा हूँ.
नोट/टीप – महिला एवं बाल विकास विभाग का यह प्रकरण पूर्णतया सत्य घटनाओं पर आधारित है और मेरे पास पर्याप्त सबूत भी हैं. यहाँ पर जैसा की पहले भी प्रारंभ में कहा गया है की रीवा जिले के गंगेव ब्लाक की समस्या तो मात्र एक प्रोटोटाइप समस्या है. इसी समस्या को यदि बड़े लेंस में रखकर फोकस करें तो पूरे रीवा जिले नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित आंगनवाडी केन्द्रों की दुर्दशा ठीक ऐसी ही है अथवा इससे भी निम्नस्तर की है. यदि वास्तव में उगता भारत, बढ़ता भारत और ग्रामोदय से भारतोदय जैसे मुहावरों को यथार्थ होते सच में देखना है तो सरकारों को गंभीर और सार्थक प्रयास करने पड़ेंगे नहीं तो “मेरा देश बदल रहा है” मात्र मोबाइल की रिंगटोन, गानों और कागजों तक ही सीमित रह जाएगा और वास्तव में कहीं कुछ नहीं बदला होगा सब कुछ यथावत ही रहेगा...हाँ सरकारें जरूर बदलती रहेंगी.

!!!जय हिन्द जय भारत!!!
----------------------------
शिवानन्द द्विवेदी
(सामजिक, एवं आर टी आई कार्यकर्ता)
ग्राम कैथा पोस्ट अमिलिया थाना गढ़
तहसील मनगवां जिला रीवा म. प्र.

मोबाइल – 7869992139

No comments: