Monday, July 11, 2016

प्रधानमंत्री भारत सरकार के नाम खुला पत्र - रीवा के किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, के.सी.सी. का सही लाभ मिले और फसलों को सही-सही फसलवार अधिसूचित किया जाये

Dated: 11/07/2016. Place: Rewa (MP)
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प्रति,             
श्रीमान प्रधानमंत्री महोदय,
प्रधानमत्री कार्यालय, नई दिल्ली.
भारत सरकार, भारत.
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विषय – रीवा जिले की फसल बीमा के लाभ, किसान क्रेडिट कार्ड, एवं ओला-पाला-सूखा आदि मुआबजा वितारानार्थ अधिसूचित की जाने वाली फसलों का पुनर्सर्वेक्षण करने हेतु तथा यह सर्वेक्षण फसलवार छमाही आधारित करने हेतु.


सन्दर्भ १) अधिसूचित फसलों का छमाही आधारित फसलावर (रवी और खरीफ में अलग-अलग) सही सर्वे न होने से फसल बीमा एवं किसान क्रेडिट कार्ड का सही लाभ किसानों को नहीं मिलने सम्बन्धी २) ओला-पाला-सूखा आदि के मुआबजा वितरण में भी वास्तविक फसल अधिसूचित रिकॉर्ड में दर्ज न होने के कारण सही एवं न्यायपूर्ण मुआबजा कृषकों को न मिल पाने सम्बन्धी ३) सम्पूर्ण रीवा जिले में कौन सी फसल सिंचित है और कौन सी असिंचित इस विषय में भी पटवारी तहसीलदार द्वारा सही सूचना न लिखने के कारण के.सी.सी. एवं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के सही लाभ कृषकों न मिलने सम्बन्धी.

महोदय,

     कृपया उपरोक्त विषयान्तर्गत एवं संदर्भित प्रकरणों का अवलोकन करने का कष्ट करें. उपरोक्त सभी बिन्दुओ में मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा और मांग करूंगा की रीवा जिले के किसानों के हित में यहाँ की सभी तहसीलों में छमाही फसल आधारित फसलों को अधिसूचित किया जाये और वहां पर वास्तविक लोकेशन पर पटवारी, कानूनगो और तहसीलदार द्वारा जाकर देखा जाये की किस ग्राम में ज्यादातर कौन सी फसल की बुवाई हुई है और फिर वास्तविक परिश्थिति को देखकर ही फसलों को अधिसूचित किया जाये जिससे सभी कृषकों को उनकी बोई हुई फसलों का उचित फसल बीमा लाभ, ओला-पाला-सूखा मुआबजा तथा साथ ही साथ उनके के.सी.सी. में भी उचित और सही ऋण उपलब्ध करवाया जा सके.
       सम्पूर्ण रीवा जिले में कृषकों की फसल बीमा, ओला-पाला-सूखा और के.सी.सी. से सम्बंधित निम्नलिखित मूल समस्याएं देखी गयी हैं.

अधिसूचित फसलों का छमाही फसलावर (रवी और खरीफ में अलग अलग) सही सर्वे न होने से फसल बीमा एवं किसान क्रेडिट कार्ड (के.सी.सी.) का सही लाभ कृषकों को नहीं मिलने सम्बन्धी

 मनगवां तहसील में विशेषकर और सम्पूर्ण रीवा जिले में ज्यादातर ग्रामीण अंचल के किसानों को न तो किसान क्रेडिट कार्ड का ही सही लाभ मिल पा रहा है और न ही फसल बीमा का. जिला रीवा के मनगवां, गुढ़, त्योंथर, जवा, सिरमौर, मऊगंज आदि तहसीलों में लगभग प्रत्येक राजस्व क्षेत्र में किसानों की फसलों को पटवारियों, राजस्य निरीक्षकों, और तहसीलदारों द्वारा अपने तहसील कार्यालय में ही बैठ कर अधिसूचित कर लिया जाता है. अधिकतर पटवारी और राजस्व निरीक्षक अपने फील्ड में नहीं पंहुचते है. किसानों और ग्रामीणों को इन कर्मचारियों को दर-दर ढूँढना पड़ता है. उदहारण के लिए मनगवां तहसील, इटहा हल्का, और गढ़ सर्किल के अंतर्गत आने वाले ग्रामों में पिछले वर्ष 2014-2016 के मध्य सूखा अकाल की स्थिति थी. इस दौरान पटवारियों द्वारा सही फसल सर्वे नहीं किया गया जिससे किसानों को फसल बीमा का भी लाभ नहीं मिला है. जो फसल बीमा आयी है वह औसत से बहुत नीचे है और कुछ ही किसानों को मिली है. क्योंकि फसल का वास्तविक धरातल पर जाकर कभी भी सही निरीक्षण और सर्वे नहीं किया जाता है इसलिए जो फसल रिकॉर्ड और कागजों में आज से दस साल से पहले से दर्ज है वही आज भी दर्ज है. जबकि वास्तविकता यह है की प्रति वर्ष आज का किसान मौसम के हिसाब से अपने फसल का चयन करता है. जब ज्यादा बारिस की गुंजाईश होती है तो धान की खरीफ में ज्यादा बोवाई और जब कम बारिश या सूखे जैसी स्थिति रही है तो फसल का चुनाव किसान उस हिसाब से करते हैं और फसलों में सोयाबीन, अरहर, मूग, उरद आदि फसलें चुनते हैं जबकि गर्मियों में रवी के मौसम में ज्यादातर रीवा के किसान प्याज की फसल का उत्पादन करते हैं. जैसे उदहारण के तौर पर इसी वर्ष पूरे रीवा जिले में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मध्य भारत में सूखा-अकाल को देखते हुए किसानों ने प्याज की फसल की बहुतायत में खेती की. अब क्योंकि प्याज बहुतायत में हो गयी इस कारण प्याज़ को खरीदने वाला कोई ग्राहक नहीं मिला जिससे किसानों की टनों प्याज नष्ट हो गयी और उसे फ़ेंक दिया गया. यह एक सामान्य प्रश्न हो सकता है कि क्या भोपाल और दिल्ली में बैठी हुई सरकारें मात्र तमाशा देखने के लिए है? जब किसानों की ऐसी दुर्दशा हो रही है तो सरकार किस लिए बैठी है? क्या सरकारी राजस्व के कर्मचारी और अन्य कृषि और अन्य विभागों के क्षेत्रीय कर्मचारी/अधिकारी और विभिन्न अन्य संस्थान सो रहे होते हैं? सरकारों को तो यह भली भांति पता होना चाहिए की किस ग्राम में, किस तहसील में और किस जिले में किस समय कौन सी फसल किसानों मने बो रखी है, और उसकी क्या स्थिति है? मानाकि यदि किसानों ने बहुतायत में प्याज़ की बोवनी की है तो इस स्थिति में सरकारों को तो चाहिए की अपने तंत्र की मदद से पहले से ही यह आंकलन कर लें की जब यह प्याज अथवा कोई भी अन्य फसल का उत्पादन होगा तो किसानों का खरीददार कौन बनेगा? क्या साहूकार, व्यापारी वर्ग पहले से तैयार है इतनी प्याज़ अथवा कोई भी फसल को उचित और सही मूल्य पर लेने के लिए? व्यापारी इन फसलों का क्या मूल्य देगा? यदि व्यापारी कम मूल्य देगा तो सरकार को किसानों गरीबों और इन रात दिन ग्रामों में मेहनत करने वालों के लिए क्या तरीके ढूंढें जाने चाहिए जिससे किसानों के हितों की रक्षा हो सके? यदि इन प्रश्नों को गंभीरता से लिया जाये तो आम गरीब किसानों के हितों की रक्षा करने वाली कोई भी सरकार के लिए उत्तर ढूँढने में ज्यादा कठिनाई नहीं होनी चाहिए.
  समस्या इस बात की है कागजों में जो नतीजे और विवरण सरकारी कर्मचारियों एजेंसियों और विभागों द्वारा दिए जा रहे हैं वह असत्य और निराधार हैं. उनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है. यदि सम्पूर्ण रीवा जिले में रिकॉर्ड प्याज का उत्पादन हुआ तो इससे साफ़ जाहिर है की अकाल और सूखा में भी किसानों के पास सिंचाई की सुविधा तो थी तब ऐसा हुआ? यदि घर में सिंचाई न होती तो कैसे प्याज जैसी फसल जो की पानी की इतनी अधिक मांग करती है बची रहती, सब नष्ट हो न हो जाती? पर दुर्भाग्य देखिये देश का कि सम्पूर्ण रीवा जिले में आज के दिनांक में आप स्वतंत्र सर्वेक्षण करवा लें और आप पाएंगे की रिकॉर्ड और कागजों में दर्ज सिंचाई सम्बन्धी जानकारी आज से दश वस्ढ़ से भी अधिक पुरानी है. ऐसा क्यों है? ऐसा मात्र तहसीलदार, राजस्व निरीक्षकों और पटवारियों की निष्क्रियता और भ्रष्ट होने की वजह से है. सामान्य तौर पर यदि सरकारें चाहें तो बड़ी आसानी से पता लगा सकती हैं की विजली विभाग द्वारा किन किन कृषकों को सिंचाई के लिए दो हार्स पॉवर या उससे अधिक का कनेक्शन प्रत्येक वितरण केंद्र में दिया गया है. इस सूचना के आधार पर और तहसील कार्यालय से जानकारी लेकर यह बड़ी आसानी से अपडेट किया जा सकता है कि कौन कौन किसानों के कितने रकबे सिंचित है. कभी कभी ऐसा भी होता है की ग्रामों में एक किसान के पास यदि सिच्न्हाई सुविधा है तो अन्य भी कुछ आसपास के किसान इसका कुछ किराया देकर लाभ ले लिया करते हैं. पर यह सिंचित अथवा असिंचित होने का आधार नहीं बनाया जा सकता है. क्योंकि वही फसल और रकबे सिंचित की श्रेणी में आने चाहिए जीने पास या तो तालाब की सुविधा है, सिच्न्हाई के लिए मोटर पंप का कनेक्शन है अथवा आसपास ग्रामों में नहर की सुविधा है. ऐसे ही कृषकों को सिंचित की श्रेणी में रखा जाना चाहिए. और यह काम ज्यादा कठिन नहीं है. मात्र पंचायती क्षेत्र के पटवारी, ग्राम सेवक, समिति सेवक, और पंचायत सचिव के माध्यम से यह जानकारी पूर्ण कर फीड की जा सकती है. पर रीवा जिले के किसों का दुर्भाग्य ही है की उनके खून पसीने की कमाई मौज से खाने वाले यह सरकारी कर्मचारी किसानों, मजदूरों और गरीबों के हित में कोई कार्य नहीं कर सकते. पर प्रश्न यह भी उठता है की क्या एस.डी.एम., कलेक्टर, और अन्य सम्बंधित जिला और प्रदेश स्तर के अधिकारी सो रहे होते हैं की इतनी सी.एफ.टी, ग्राम संसद, ग्रामोदय से भारतोदय, आदि पता नहीं कितने कार्यक्रम हुए पर हुआ कहीं कुछ नहीं. किसानों ग्रामीणों की स्थितियां यथावत बरक़रार हैं.

सम्पूर्ण मनगवां तहसील में मात्र 15 प्रतिशत से भी कम सिंचित की श्रेणी में –

यदि हम बात करें अपने क्षेत्र की मनगवां तहसील की तो पाएंगे की यहाँ अधिकतम पंद्रह प्रतिशत भी किसानों को सिंचित की श्रेणी में नहीं रखा गया है. सूखा क्षेत्रों की बात तो अलग है मनगवां और गंगेव के मध्य से जो बाणसागर नहर निकली है उसके भी किनारों के कृषकों को अशिंचित दर्शाया गया है. यह कैसे हो सकता है की जहाँ से नहर गुजरे वह भूमि असिंचित हो? क्या नहर में पिछले ४-५ सालों से पानी नहीं छोड़ा गया? अथवा बाँध ही सूखा था? इसी प्रकार अन्य भी क्षेत्र जहाँ नहर नहीं भी है जैसे की गढ़, लालगांव सर्किल और इसी प्रकार चकघाट सर्किल अंतर्गत जमुई कला हल्का तथा आसपास के अन्य पटवारी हल्कों में भी यही स्थिति है. हमारी यही मांग है की तत्काल ऐसे सभी कृषकों को सिंचित की श्रेणी में रखा जाये जिनके पास मोटर कनेक्शन, तालाब, आसपास नहर आदि की सिंचाई सुविधाएँ है. इससे सबसे बड़ा फायदा तो के.सी.सी. में होगा जहाँ इनके ऋण लेने की सीमा में बढ़ोत्तरी होगी और साथ ही सही जानकारी सरकार के पास तक पंहुचेगी जिससे योजनायें बनाने और उनके क्रियान्वयन में भी मदद मिल सके. शायद एक स्थान हो सकता है जहाँ किसानों को नुक्सान होगा और वह है फसल बीमा की राशि मिलने में. क्योंकि यदि कमतर सिंचित क्षेत्र भी पूर्ण सिंचित चिन्हित हो गए तब किसानो को फसल बीमा का शायद उतना अधिक लाभ न मिल पाए. पर यह भी एक गलत ही धरना है. क्योंकि आज जो भी सर्वे होगा और जो भी फसल बीमा सम्बंधित जानकारी संप्रेषित की जाएगी वह जी.पी.एस. रीडिंग और फोटोग्राफ्स आदि लेकर की जाएगी. अतः ऐसी स्थति में यदि योजनायों का क्रियान्वयन सही तरीके से हुआ तो संदेह की कम स्थति रहेगी. 

जब वास्तविक कृषकों के नाम ही शूखा सर्वे सूची में नहीं जोड़े गए तब फसलों को छमाही और रवी-खरीफ के आधार पर ग्रामवार/कृषकवार अधिसूचित कैसे किया जायेगा?

आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है की फसलों को अधिसूचित किस प्रकार किया जा रहा है? क्या तहसील कार्यालय में बैठकर फसलों को अधिसूचित किया जा सकता है? कम से कम रीवा में तो ऐसा ही चल रहा है. आप प्रत्येक हल्के में जाएँ और देखें कि उस हल्के में किसानों ने पिछले दो सालों में कौन-कौन सी फसलों की बुवाई की है. यह आंकड़ा मिलने पर आप आश्चर्य चकित रह जायेंगे कि फिर तहसील कार्यालय और पटवारी कानूनगो के रिकॉर्ड में अधिसूचित फसलें पिछले दशक की क्यों दर्शाई जा रही हैं? अभी हाल ही में पिछले वर्ष २०१४-१६ में पड़े भीषण सूखे में हमने तीनों तहसीलों मनगवां, त्योथर और सिरमौर का वाकया देखा. मैं स्वयं प्रत्यक्ष उदहारण हूँ की दर्ज़नों सी.एम. हेल्पलाइन में शिकायतें की गंयीं (शिकायत क्र. 1403875, 1404035, 1404296, 1405821, 1405974, 1409259, 1409286, 1409324, 1409692, 1471423, 1450846, 1516382, 1516433, 1579576, 1597835, 1625395 आदि) और तहसीलदार एस.डी.एम. को लिखित भी दिया गया कि हिनौती हल्का 39, जमुई कला हल्का 31 के जिन किसानों का सूखा सर्वे में नाम छूट गया है उन किसानों के नाम जोड़े जांयें. परन्तु पटवारी, राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार, एस.डी.एम, से लेकर कलेक्टर रीवा तक बात रखी गयी पर कोई समाधान न निकला. कलेक्टर रीवा श्री राहुल जैन का कहना था की जब प्रथम सर्वे सूची वनकर आ जाएगी और पंचायतों में नोटिस बोर्ड में चस्पा होगी तो दावा आपत्ति के अंतर्गत नाम जोड़ने के लिए आवेदन दें. सबसे बड़ी बात तो यह की सूची कब आयी और कब नोटिस बोर्ड में लगी इसकी भी कोई जानकारी कृषकों को नहीं हुई, और जिनको जानकारी हुई उन्होंने जब दावा आपत्ति के अंतर्गत आवेदन दिया तो उनके नाम भी पटवारी तहसीलदार द्वारा यह कहकर नहीं जोड़े गए की अब जो होना था वह हो गया, सरकार के पास फण्ड नहीं है और अब और अधिक नाम नहीं जोड़े जांयेंगे. सबसे बड़ी बात तो यह है की नाम ही कब जोड़े गए थे तो और अधिक नाम नहीं जोड़े जायेंगे? कब सर्वे हुआ और किन कृषकों को सर्वे के दौरान उनके खेत में बुलाया गया क्या इसकी जानकारी पटवारी तहसीलदार दे सकते हैं? क्या उन कृषकों के हस्ताक्षर, फोटोग्राफ्स या विडियो तहसीलदार कलेक्टर के पास उपलब्ध हैं जब सर्वे हो रहा था? सबसे दुर्भाग्य पूर्ण रवैया सिरमौर तहसीलदार मुनीन्द्र तिवारी और त्योंथर तहसीलदार देवांगन का था. सैकड़ो में से मात्र दश-बीस के नाम जोड़े गए शेष के नाम छोंड दिए गए. वास्तव में हुआ यह की इन हलकों में पटवारी ग्रामसेवक सर्वे करने ही नहीं आये. हिनौती हल्का 39 लालगांव सर्किल एवं सिरमौर तहसील के अंतर्गत आता है वहां का पटवारी प्रमोद पाण्डेय है. यह व्यक्ति प्रमोद पाण्डेय चौबीस घंटों में अठारह घंटे बराबर शराब के नशे में धुत्त रहता है. यह कभी भी हल्का में नहीं रहता. कई बार इसकी शिकायतें दर्ज़नों लोगों ने की पर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं हुई. सिरमौर का तहसीलदार मुनीन्द्र तिवारी कई बार स्वयं भी इसका पक्ष लिया. मुनिद्र तिवारी के समक्ष ही पटवारी प्रमोद पाण्डेय ने चार-पांच अन्य हिनौती के हितग्राही ब्रिजेश उपाध्याय, अखिलेश उपाध्याय, और दिनेश सिंह निवासी लोटनी और मेरी उपस्थिति में सभी से बदतमीजी सिरमौर तहसील कार्यालय के अन्दर किया. परन्तु इस तहसीलदार मुनीन्द्र तिवारी ने न ही कोई इस पटवारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की और न ही कोई दंडात्मक कार्यवाही की अनुशंसा. इस बात को बाद में मध्य प्रदेश शासन की पूरी तरह से फ्लॉप हो चुकी सी.एम. हेल्पलाइन (डायल 181) में भी रखा गया था. और उसमे भी मात्र प्रथम लेवल से चौथे लेवल तक का ही खेल चलता रहा और कुछ नहीं हुआ.   
 इसी प्रकार त्योंथर तहसील जिला रीवा अंतर्गत चाकघाट सर्किल में आने वाले जमुई कला 31 के पटवारी कमलेश पाण्डेय का भी यही हाल रहा. कमलेश पाण्डेय ने जमुई हल्का 31 में सही सर्वे नहीं किया. प्रमोद पाण्डेय की तरह कमलेश पाण्डेय ने भी हितग्राहियों से पैसे रुपये लेकर बिना नुकसानी और बिना कृषि योग्य जमीन का ही मुआबजा बना दिया और जिन हितग्राहियों जैसे करहिया के दर्ज़नों लोनिया लोगों का जिनका की वास्तविक नुक्सान हुआ था और इसी प्रकार कैथा निवासी कुछ केवट समुदाय और चौबे, पाण्डेय, द्विवेदी लोगों की जो जमीन करहिया ग्राम अंतर्गत थी उनमे से भारी नुकसान के वावजूद भी कोई मुआबजा नहीं बनाया गया. सभी लिखित शिकायतों की पावती और सी.एम. हेल्पलाइन की शिकायतें इस बात को प्रत्यक्ष बयां करती हैं की किस तरह से तहसील कार्यालयों में पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार और तहसीलदार फर्जीवाडा कर रहे हैं काले धंधे में संलिप्त हैं और इसको सुनने देखने वाला कोई मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नहीं है. ऐसे पटवारी, तहसीलदारों को तत्काल प्रभाव के साथ निलंबित कर देना चाहिए और जुर्माने के तौर पर पांच-पांच साल की इनकी तनख्वाह काट लेनी चाहिए और इस कटी तनख्वाह को उस तहसील और पटवारी हल्के क्षेत्र के गरीब किसानों को बरावर-बराबर वांट देना चाहिए. तब जाकर सही न्याय कहलायेगा.

हम चर्चा कर रहे थे किसानों की फसलवार होने वाले सर्वे की. तो हम देख सकते हैं की कभी-कभी पड़ने वाले सूखे-अकाल जैसी स्थति में यदि पटवारी तहसीलदारों के यह रवैये हैं कि किसानों की फसलों का सही मुआबजा तक नहीं बनाया जा रहा है तो भला ऐसे पटवारी तहसीलदार क्या ख़ाक फसलवार फसलों को अधिसूचित करेंगे? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है. और जब तक फसलों को सही तरीके से अधिसूचित नहीं किया जाता और कौन सी भूमि सिंचित है और कौन सी असिंचित इसकी सही-सही जानकारी नहीं भरी जाती तब तक चाहे प्रधानमंत्री फसल बीमा हो या राष्ट्रपति फसल बीमा इनमे से किसी भी बीमा योजना अथवा के.सी.सी. का कोई सही लाभ वास्तविक हितग्राही किसानों को भारतीय भ्रष्ट्राचार युक्त अव्यवस्था में नहीं मिल सकता. यह बात अब लगभग निश्चित हो चुकी है. सब कुछ मात्र कागजों पर ही रह जायेगा. हाँ जिन किसानों या हितग्राहियों के पास पहले से घूस-रिश्वत के रूप में इन चोरों को खिलाने के लिए पैसे हैं तो जरूर ऐसे लोगों के नाम बिना किसी जमीन जायदाद के ही मुआबजा भी बन जायेगा और उनके मन मुताबिक के.सी.सी और अन्य लाभ भी प्राप्त हो जायेंगे जैसा की हर जगह चल रहा है. अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्या इस पूरे सिस्टम में सीधे-सीधे दिखने वाले इस घोटाले को देखने वाला कोई नहीं बचा? कलेक्टर, कमिश्नर यह सब अधिकारी जिले और संभाग में क्या करते हैं? क्यों ये सीधे-सीधे दिखने वाली इन समस्याओं को ध्यान नहीं देते? कलेक्टर, एस.डी.एम आदि अपने सी.एफ.टी. और ग्रामोदय से भारतोदय, ग्राम संसद आदि यात्राओं और मीटिंग में क्या करने जाते हैं? क्या यह ग्रामीण और कृषकों की समस्याएँ देखने सुनने नहीं जाते? क्या उस पंचायत और ग्राम में जाकर यह अधिकारी सीधे ग्राम बस्ती के लोगों के बीच में जाकर संवाद स्थापित नहीं कर सकते, उनकी समस्याओं से रूबरू नहीं होते?
सम्पूर्ण मनगवां तहसील जिला रीवा के ग्रामीण क्षेत्रों की सिंचित असिंचित भूमि की जानकारी में पिछले दश वर्षों में कोई अपडेट नहीं –

 किसानों की कौन सी भूमि सिंचित है और कौन सी असिंचित इसका फसल बीमा और के.सी.सी. के लाभ में सीधा सीधा प्रभाव पड़ता है. क्योंकि जैसा पहले भी चर्चा मेंन आया कि कृषकों के के.सी.सी. के थ्रेशहोल्ड में सिंचित भूमि का सीधे प्रभाव पड़ता है. जिन कृषकों की भूमि सिंचित है उनको असिंचित वाले कृषकों की तुलना में ज्यादा ऋण उपलब्ध हो पाता है. साथ ही यदि उस भूमि पर सही-सही फसलों को अधिसूचित किया गया है अर्थात यदि महगी फसलें बोई गयी ऐसा पटवारी द्वारा बताया जाता है तो उन कृषकों को तीन-चार गुना ज्यादा ऋण मिल सकता है. जैसे उदहारण के लिए किसी कृषक ने मात्र धान की फसल एक एकड़ के रकबे में बोई है और उतने ही रकबे में किसी अन्य कृषक ने सोयाबीन अथवा मसाले की फसल बोई है तो सोयाबीन अथवा मसाले की फसल वाले कृषक को मात्र धान बोने वाले कृषक की तुलना में के.सी.सी. में ज्यादा ऋण मिलता है. परन्तु पटवारी और तहसीलदार यह सब जानकारी अपडेट नहीं करते जिससे किसानों को वास्तविक और सही लाभ नहीं मिल पा रहा है.

समस्याओं के समाधान की दिशा में कठोर कदम उठाने होंगे, ईमानदार और लोकहित चिन्तक कर्मचारियों अधिकारियों की आवश्यकता –

       शासन प्रशासन को उपरोक्त सभी समस्याओं का समाधान निकालना होगा. और यदि ये सरकारें वास्तव में गरीब, किसान और मज्दूरों का भला चाहती हैं तो बड़े कठोर कदम उठाने होंगे. बिना दंड दिए प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार नहीं हो सकता, यह भी एक अकाट्य सत्य है. जो दोषी है उसे दंड मिलना ही चाहिए. जब ऐसा होगा तो सभी अधिकारियों कर्मचारियों की आँखें खुल जाएँगी. तब जाकर इनको समझ में आयेगा की जनता के एक-एक पैसे जो टैक्स के रूप में तनख्वाह में इन्हें दिए जा रहे हैं वह कुर्सी तोड़ने के लिए नहीं है. उसके एवज़ में इन निकम्मों को काम करना पड़ेगा नहीं तो नौकरी छोंड दें. कोई भी लोकतान्त्रिक सरकारें जनता की बनाई जनता के लिए हैं और यह सभी सरकारी कर्मचारी जनता के नौकर हैं जनता के अधिकारी नहीं. यह जनता का पैसा खा रहे हैं तो इनको जनता के लिए कार्य करना पड़ेगा.
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SHIVANAND DWIVEDI
(Social, Scientific, and RTI activist)
Village KAITHA, Post  AMILIYA,
Police Station GARH, Tehsil  MANGAWAN,
District REWA, Madhya Pradesh. PIN – 486117
Mob. +917869992139

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