स्थान: पडुआ (गढ़,
गंगेव)
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विषय - जिला
रीवा में ब्लाक गंगेव अंतर्गत आने वाली पडुआ ग्राम पंचायत में दर्जनों हितग्राहियों
के खाद्यान और पेंशन सालों से रुके. सरपंच और सचिव द्वारा बताया जाता है की आई डी.
गड़बड़ है.
साथियों नमस्कार!
(रीवा, गंगेव, पडुआ) सरकार चाहे कोटि उपाय कर ले
लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है की वह अपने कर्मचारियों की मानसिकता को कभी नहीं बदल
सकती. योजनायें, विकास, बढ़ता भारत, उगता भारत, ग्रामोदय से भारत उदय आदि शब्द
खोखले साबित हो रहे हैं. कारण मात्र कार्यपालिका की सोच और उसकी निष्क्रियता. रीवा
जिला अंतर्गत गंगेव ब्लाक की पडुआ पंचायत के मिसिरा नामक गाँव में तीन ऐसे
हितग्राहियों का प्रकरण सामने आया है जिन्हें पिछले छः माह से ऊपर से न तो उनको
सरकारी रासन की दुकान में खाद्यान मिला और न ही उनको सामाजिक सुरक्षा पेंशन की
मासिक राशि दी जा रही है.
(न तो पेंशन और न ही खाद्यान) यह
हरिजन आदिवासी बस्ती मिसिरा के लोग हैं जिनके नाम क्रमशः बद्री प्रसाद साकेत पिता
महगू साकेत, चैतू साकेत पिता महगू साकेत और कोलई साकेत सभी निवासी मिसिरा हैं ग्राम
पंचायत पांडुआ, ब्लाक गंगेव जिला रीवा हैं. इन हितग्राहियों ने कई मर्तबा पंडुआ के
सरपंच शेषमणि कुशवाहा और वहां के सचिव से भी यह बात रखी लेकिन मामले का कोई समाधान
नहीं निकला. मात्र यह कहकर बात को टाल दिया गया की इन हितग्राहियों की आई. डी. में
मिस्टेक है जो रीवा और भोपाल से ही सुधर पायेगी. इस प्रकार ये गरीब हरिजन पिछले छः
माह से पी.डी.एस. प्रणाली का खाद्यान प्राप्त नहीं कर सके हैं. आई.डी. में गलती
बताकर कोटेदार भी इनको खाद्यान नहीं दे रहा है.
(म.प्र. में ग्राम संसद, ग्रामोदय से भारत उदय सब
मात्र दिखावा – जनता के पैसे की बर्वादी) बात
मात्र खाद्यान न मिलने तक ही सीमित नहीं है. अभी पिछले वर्षों पोस्ट ऑफिस के खातों
में हुए भारी भ्रष्ट्राचार के चलते रीवा जिले सहित अन्य जिलों में कलेक्टरों के
निर्देश के बाद सभी सामजिक सुरक्षा पेंशन पाने वालों के खातें बैंकों में स्थानांतरित
करवा दिए गए थे. परन्तु इस स्थानांतरण में भी भारी घोटाला हुआ. क्योंकि इन हरिजन आदिवासियों के कई बैंक खातों को
गलत फीड कर दिया गया अथवा जान बूझकर उनकी आई. डी. में गलती कर दी गयी. कई बार इन
हितग्राहियों ने इसके विषय में सरपंच सचिव और सी.ई.ओ. को अवगत कराया परन्तु कोई भी
सुनवाई नहीं हुई. अब हाल यह है की पूरे रीवा जिले में ऐसे हजारों हितग्राही हैं
जिनकी सौ दो सौ रुपये मिलने वाली पेंशन तो बंद ही है उनको कोटेदारों द्वारा
खाद्यान भी नहीं दिया जा रहा है. इस बात को सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा कई बार
कलेक्टर के संज्ञान में लाने का प्रयास किया गया और कई बार अब पूरी तरह से फ्लॉप
हो चुकी म.प्र. शासन की सी.एम. हेल्पलाइन में भी रखा गया लेकिन कोई सुनवाई नहीं
हुई. बड़ी दुखदायी स्थिति है की सालों साल बीत रहा है बैंकों में खाते खुले और आई.
डी. बनवाए पर आज तक इन गरीबों को न तो खाद्यान दिया जा रहा है और न ही उनके नए
खुले बैंक खातों में पेंशन आ रही है. जबकि यदि देखा जाये तो इन्ही समस्याओं के
समाधान के लिए सरकार प्रशासन के सी.एफ.टी., ग्राम संषद, ग्रामोदय से भारत उदय आदि
ढकोसले किये पर वास्तव में यह सब ढकोसले ही रह गए. क्योंकि यदि ऐसा न होता तो भला
इतना सब कुछ होने के बाद भी ये गरीब अपने खाद्यान और पेंशन के लिए भटक रहे होते.
वाह धन्य है म.प्र. और हमारी भारत सरकार और धन्य हैं इसके कर्मचारी!
(कम से कम सम्पूर्ण रीवा जिले में तत्काल समग्र
जांच की आवश्यकता और जल्द से जल्द सभी मामलों का हो तत्काल निपटारा) इस सन्दर्भ में सरकार को तत्काल पूरे रीवा जिले
के सामाजिक सुरक्षा पाने वाले खातों की जाँच के आदेश देने चाहिए. ब्लाकवार और
पंचायतवार सभी ऐसे लोगों के नामों की तत्काल सचिवों सरपंचों द्वारा सूची बनाई जानी
चाहिए जिन्हें साल भर पहले तो पेंशन मिल रही थी और अब नए खाते खुलने की वजह से बंद
हो गयी है. सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की सौ दो सौ रुपये पाने वाले ये
पेंशन हितग्राही साठ वर्ष के ऊपर के बुजुर्ग, विधवा महिलाएं, वृद्ध महिलाएं,
शारीरिक एवं मानशिक रूप से विकलांग हितग्राही हैं. इनकी पेंशन में अथवा खाद्यान
में देरी इनके लिए नई मुसीबतों का सबब बनेगी क्योंकि ज्यादातर ये सब इसी पर आश्रित
रहते हैं. एक बात और भी समझ के परे है की क्या जिला कलेक्टर और सामाजिक सुरक्षा
विभाग सो रहा है की उसने आज तक यह जानकारी जनपद और पंचायतों से नही मागी की कितने
ऐसे हितग्राही हैं जिन्हें पेंशन मिल रही है और कितने बैंक खतों में अथवा फीडिंग
में गलती है? प्रश्न यह उठता है की यदि छः माह और साल भर से पेंशन धारियों के
खातों में पैसे नहीं जा रहे हैं तो क्या यह बात सी.ई.ओ. सहित सामाजिक सुरक्षा विभाग
में बैठे निष्क्रिय कर्मचारियों को ज्ञात
नहीं है? यह बड़ा ही दुर्भाग्य है की पूरा का पूरा शासन-प्रशासन ही चरमराया हुआ है.
क्योंकि यदि ऐसी गड़बड़ी है तो तत्काल कलेक्टर को इन सभी विन्दुओं से अवगत होना
चाहिए और उसे एक सप्ताह के भीतर सभी खातों की जानकारी मागनी चाहिए और सम्बंधित
दोषी सचिवों और सरपंचों सहित सी.ई.ओ. तक के ऊपर विभागीय कार्यवाही करनी चाहिए.
समाधान तो सब संभव है पर समस्या इस बात की है की आज के प्रशासन में उच्च पदों पर
आशीन अधिकारियों के पास न तो वह सोच है और न ही वह जज्बा. क्योंकि कोटे में
खाद्यान न मिलने और सामाजिक सुरक्षा पेंशन के सौ दो सौ रूपये न देने में नेता तो
कोई वाधा कम से कम न ही पंहुचाते होंगे. मानाकि नेता काफी हस्तक्षेप करते हैं और
वह भी भारत की ववर्तमान दुर्दशा का एक बहुत बड़ा कारण है पर इन छोटे बिन्दुओं में
क्या नेतागिरी होती होगी. यह तो सब यदि इक्षाशक्ति हो तो कलेक्टर और अन्य जिला जनपद
के अधिकारी थोडा प्रयाश से सुनिश्चित कर ही सकते हैं की सबसे निचले स्तर पर खडा
हुआ व्यक्ति अपने अधिकार को प्राप्त कर सके और वह सरकार और प्रशासन से मिलने वाले
लाभ को ले सके.
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शिवानन्द द्विवेदी
(सामजिक, एवं आर टी आई कार्यकर्ता)
ग्राम कैथा पोस्ट अमिलिया थाना गढ़
तहसील मनगवां जिला रीवा म. प्र.
मोबाइल – 7869992139
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