भारतीय संस्कृति
और जीवात्मा: प्रथम
हरिः ॐ!!! भारतीय
एवं वैदिक संस्कृति में वेदों एवं वेदान्तों का वैसे ही महत्व है जैसे की जीव में
आत्मा का. जैसे बिना आत्मा के जीव मृत है वैसे ही बिना वेदों और वेदान्तों के
भारतीय संस्कृति भी मृत तुल्य ही है. वेदों को अपौरुषेय कहा गया है अर्थात जो किसी
व्यक्ति अथवा पुरुष द्वारा नही लिखा गया हो वह अपौरुषीय कहलाता है. वेदों में
संहिता भाग अर्थात जिन्हें हम चारों वेदों के रूप में समझते हैं वह मानव संस्कृति
में सबसे प्राचीन ग्रन्थ माने जाते हैं. क्योंकि संसार के सभी ज्ञात और लिखे गए
ग्रंथों में भी वेद मानव इतिहास के सबसे प्राचीन और लिखित प्राप्त ग्रन्थ हैं. इन
तथ्यों के अतिरिक्त प्रत्येक हिन्दू अथवा वैदिक संस्कृति को मानने वाला व्यक्ति
वेदों को श्रुति ग्रन्थ मानता है अर्थात जो किसी अन्य श्रोत अथवा शक्ति से सुना गया
हो न की किसी व्यक्ति के द्वारा लिखा गया हो. प्रत्येक हिन्दू वैदिक मतावलंबी वेदों
को ईश्वर की वाणी मानता है. हिन्दू वैदिक मतों के अनुसार वैदिक मन्त्र ऋषि मुनियों
द्वारा समाधिस्थ अवस्था में ईश्वर से प्राप्त किये गए थे और तदोपरांत ऋषि मुनियों
ने इन मंत्रो को लिपिबद्ध किये और इसीलिए आज हम इन वैदिक मन्त्रों को कही भी हिन्दू
धर्म की पुस्तकों में लिखा हुआ पाते हैं. वैदिक ज्ञान में जीव मात्र के सभी अवस्था
के विषय में वर्णन मिलता है. इन वैदिक मन्त्रों में मानव के विभिन्न पड़ाव के विषय
में उनके रहन सहन के विषय में और षोडशोपचार के विषय में पूर्ण ज्ञान मिलता है.
इसीलिए जब से बच्चा गर्भ में रहता है तब से लेकर मृत्युपरांत तक सोलह संस्कार कहलाते
हैं और इन सभी संस्कारों में मानव को क्या कुछ करना चाहिए इन सबका वर्णन इसमें
मिलता है. इसीलिए हम देख सकते हैं की जब भी शादी व्याह होता है अथवा यज्ञोपवीत या
फिर मुंडन आदि संस्कार होता है तो इन वैदिक मंत्रो का उच्चारण वैदिक पुरोहितों
द्वारा किया जाता है. (क्रमशः)
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