Sunday, April 29, 2018

14 हज़ार लेनदेन की शिकायत आते ही बिजली अधिकारियों को लगा 440 वोल्ट का करंट - अमिलिया ग्राम के 6 महीने से जले 2 ट्रांसफॉर्मर बदले गए (मामला ज़िले के कटरा डीसी अंतर्गत अमिलिया ग्राम के दो जले हुए ट्रांसफॉर्मर का)

दिनाँक 29 अप्रैल 2018, स्थान गढ़/गंगेव रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानंद द्विवेदी)

  जब गरीब किसानों की आवाज़ कहीं न सुनी गई तो उन्होंने अपना सारा दुख दर्द सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया के समक्ष आकर रो दिया. उनकी आवाज़ में इतनी पीड़ा थी की उस आवाज़ की गूंज मीडिया के माध्यम से भोपाल और दिल्ली तक सुनी गई. आखिर ऐसा कौन सा नियम है जो गरीब किसानों को बिजली जलाने से रोकता है? जब एक तरफ सरकारें इंडस्ट्री और औद्योगिक जगत को भरपूर बिजली सप्लाई दे रही हैं और बेरोकटोक सब्सिडी दिए जा रही हैं तो आखिर देश का अन्नदाता जो दिन रात खेतों में गर्मी सर्दी वर्षा के वावजूद भी कड़ी मेहनत करके अन्न उगाए जा रहा है उसको बिजली और ट्रांसफार्मर से क्यों वंचित रखा जाय? मप्र सरकार ने किसानों के हित में कई अच्छे निर्णय लिए हैं जिसका नतीज़ा है उन्हें आसान किस्तों में कम राशि पर मोटर पंप का कनेक्शन, अटल बिजली योजना, राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन, और अब शौभाग्य योजनांतर्गत घर घर बिजली. फिर भी यूं कहें की विभागीय लापरवाही अथवा कुछ अन्य कारण. फिर भी कहीं न कहीं ये बात महत्वपूर्ण है की योजनायों का सही तरीके से और समयावधि में क्रियान्वयन किया जाए. क्रियान्वयन में समस्याओं और लेटलतीफी की वजह से आम जनता को परेशानी से गुजरना पड़ता है. 

   शूखे अकाल में मात्र 20 प्रतिशत बिजली बिल जमा पर ही किसानों के बदले जाते हैं जले ट्रांसफार्मर 

    ग्रामीण इलाकों में किसानों की सिंचाई से जुड़े हुए ट्रांसफार्मर बदलने संबंधी नित नए नियम समय समय पर निकलते रहते हैं. अभी पिछले साल के शूखे के पहले तक यह 60 प्रतिशत रखा गया था इसके बाद यह घटकर 40 प्रतिशत हुआ और जब सरकार ने देखा की किसान सूखा अकाल में मारा गया है और उसके पास कुछ बचा नही है तो इस स्थिति में सरकार ने इसे घटाकर मात्र 20 प्रतिशत कर दिया था. अर्थात जिस ट्रांसफार्मर से संबंधित कुल लोड का बिजली बिल यदि 20 प्रतिशत तक भर दिया गया है तो वहां ट्रांसफार्मर लगा दिया जाएगा.

पर बिजली कंपनी नही मानती सरकार के फरमान

    अब यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है की काफी कुछ पहुच पर निर्भर करता है. यदि किसी गांव में कोई बहुत पहुच वाला है किसी नेता से संपर्क में है, मंत्री से संपर्क है तो उस स्थिति में ट्रांसफार्मर लगाने संबंधी विशेष नियम कायदों को फॉलो नही किया जाता. परंतु यदि बेचारे गांव वालों की कोई पहचान नही है तो उनके लिए जले हुए ट्रांसफार्मर बदलवाना टेढ़ी खीर हो जाता है. फिर उनकी कोई सुनवाई नही होती.

आम नागरिक और किसानों का मात्र मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता ही बनते हैं सहारा 

   ऐसे में मात्र मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता अथवा गांव का कोई चलता फिरता व्यक्ति जब इन गरीबों की आवाज़ उठाये तभी कुछ हो सकता है. जैसा की कटरा डीसी अन्तर्गत अमिलिया गांव के किसानों के साथ हुआ, जब अमिलिया के किसानों की 6 माह से कोई सुनवाई नही हुई तो वह थक हारकर सामाजिक कार्यकर्ताओं के पास आये और अपनी पीड़ा व्यथा बतायी. गनीमत तो यह थी मामला जोरदार तरीके से मीडिया में रखा गया जिसमे पूरे गांव भर के इकठ्ठा हुए दर्जनों लोगों ने पहली बार कैमरे के सामने आकर दिल खोलकर पीड़ा व्यथा रखी जो यूट्यूब में वायरल हुआ और साथ ही रीवा ज़िले से प्रकाशित होने वाले लगभग कई महत्वपूर्ण अखबारों में आया तो कटरा डीसी और त्योंथर डी ई के अधिकारियों की नीद हराम हो गई. 

  मामला यहीं आकर नही रुका बल्कि पुनः आज से कल होता देख मामले को सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा ऊर्जा मंत्री पारस जैन के निज सचिव पुराणिक मंदर और संभागीय बिजली अधिकारियों के पास तक पहुचा दिया गया तब और भी उथल पुथल मच गई.

   आनन फानन में कटरा डीसी के जे ई अभिषेक सोनी और त्योंथर डी ई पटेल सहित बजाज कंपनी के एरिया इंजीनियर अनिल द्विवेदी एवं राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन योजना के कार्यभार लिए हुए ओ पी द्विवेदी ने भी हाँथ पैर मरना प्रारम्भ कर दिया. बताया गया की आरजीवी योजना में गड़बड़ी की वजह से जेई और डीई को उलझना पड़ा वरना यह कार्य मात्र आरजीवी वालों का ही था.

  अमिलिया के दोनो जले ट्रांसफार्मर बदल दिए गए

     आज जहां कई ग्रामों में सालों से जले हुए ट्रांसफार्मर आज तक नही बदल पाए हैं वहीं मीडिया के प्रभाव और सामाजिक कार्यकर्ताओं की सीधे जनहित के मुद्दे को लेकर एकजुट प्रहार से अमिलिया ग्राम के दोनो ही ट्रांसफार्मर बदल दिए गए. दिनांक 29 अप्रैल को सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को त्योंथर डी ई द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार अब अमिलिया ग्राम खुशहाल स्थिति में है और 29 अप्रैल को ही दोनो ट्रांसफार्मर बदल दिए गए हैं. 

पिछले 2 सप्ताह से हुए अथक प्रयास का नतीज़ा है दोनो ट्रांसफार्मर का बदलना

   पिछले दो सप्ताह से लगातार प्रतिदिन इस विषय पर जेई, डीई, आरजीवी, बजाज कंपनी, एसई, और ऊर्जा मंत्री तक के निरंतर संज्ञान में लाया गया तब जाकर आज यह दोनो ट्रांसफार्मर एक साथ बदले हैं. इसके साथ ही अमिलिया ग्रामवासियों का अधिकारियों द्वारा पैसा लेकर ट्रांसफार्मर बदलने का आरोप भी काफी महत्वपूर्ण था जिस पर संबंधित अधिकारियों की नीद हराम हो चुकी थी.

पूरे जिले में सैकड़ों अमिलिया जैसे उदाहरण फिर भी किसानों की कोई सुनवाई नही

    आज लगभग रोज ही मीडिया में यह खबर आम है की अमुक ग्राम में ट्रांसफार्मर जला हुआ है लेकिन बदला नही गया है. पर इन खबरों का कोई विशेष प्रभाव नही हो रहा है. आखिर क्यों? इसका सबसे बड़ा कारण यह है की खबर तो चल जाती है लेकिन उस ग्राम क्षेत्र के आसपास और साथ ही जनप्रतिनिधि इस पर कोई संज्ञान नही लेते हैं. आज जो काम सरपंचों, विधायकों, सांसदों, और अन्य जन प्रतिनिधियों का होना चाहिए वह मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता कर रहे हैं. आखिर सबसे बड़ा प्रश्न यही है की जिस ग्राम का ट्रांसफार्मर जला हुआ है उस गांव का सरपंच क्या सो रहा है? उस क्षेत्र का जनपद और ज़िला पंचायत सदस्य कहां गया? वहां का विधायक और सांसद कहां गया? इन प्रश्नों से स्पष्ट है कि भारत का लोकतंत्र आज मात्र दिखावा बन कर रह गया है. सभी जनप्रतिनिधि अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं और आम जनता और किसान मरने के लिए मजबूर है.

  किसान सम्मान यात्राओं के ढोंग की खुलती पोल

     इसका अंदाजा इसी बात के लगाया जा सकता है की ये नेता और समाज के ठेकेदार कितना बड़ा ढोंग और प्रोपोगंडा करते हैं. अभी अभी पूरे प्रदेश में किसानो के नाम पर किसान सम्मान यात्रा निकाली गई. किसानों की रैली निकाल दिखावे के तौर पर किसानों को सम्मानित किया गया. जब किसान मर रहा है उसकी कोई सुनवाई नही हो रही तो काहे की किसान सम्मान रैली? किसान को उसकी फसल के उचित दाम नही मिल रहे. किसान द्वारा फसल में लगाए गयी पूंजी तक वसूल नही हो पा रही है, किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है, किसान के पिछले 6 माह और साल भर से जले हुए ट्रांसफार्मर तक नही बदले गए हैं तो फिर काहे की किसान सम्मान रैली? क्या पार्टियों के कार्य कर रहे नुमाइंदे ग्राम में भ्रमण के दौरान किसानों की इन मूलभूत समस्याओं के विषय में नही पूंछते? क्या किसान इन ठेकेदारों को यह नही बताते की उनको क्या तकलीफ है? सच्चाई तो यह है सब को सब कुछ पता है लेकिन समस्या के उन्मूलन के लिए कोई प्रयास नही करना चाहता मात्रा दिखावा और ढोंग करना चाहता है जिसका परिणाम है की आज किसान और आम नागरिक विभिन्न प्रकार की मानवाधिकार संबंधी समस्याओं से ग्रस्त है और उसकी कहीं कोई सुनवाई नही हो रही है.

संलग्न - त्योंथर डीई द्वारा ग्रामीणों से बनवाया गया पंचनामा जिसमे शिकायतकर्ताओं से हस्ताक्षर करवाया गया है कि दोनों जले हुए ट्रांसफार्मर बदल दिए गए हैं। साथ ही इस विषय मे शिकायतकर्ता शैलेन्द्र पटेल से चर्चा के कुछ अंश जिसमे पूरे प्रकरण को वह बता रहा है। साथ ही अन्य संलग्न फ़ाइल।

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र,

  मोबाइल 7869992139, 9589152587

Saturday, April 28, 2018

दास्ताँ ए प्रशासन- आज़ादी के 70 साल, न आवादी न पट्टा (मामला ज़िले के मनगवां तहसील अंतर्गत इटहा हल्का नंबर 2 के कैथा हरिजन आदिवासी बस्तियों के 50 परिवारों का)

दिनांक 28 अप्रैल 2018, स्थान - गढ़/गंगेव रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

    प्रदेश और केंद्र सरकारें हरिजन आदिवाशियों और दलितों के नाम पर बड़ी बड़ी योजनाओं की बातें कर रही हैं, खूब वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं, लोक लुभावने वादे कर रही हैं. हरिजन आदिवाशियों को उनके आवादी पट्टे वितरित किये जाने के नित नए नियम निकाले जा रहे हैं लेकिन वास्तविक धरातल पर ग्रामीण अंचलों में आज भी स्थिति स्वतंत्रता पूर्व जैसी ही बनी हुई है.

   पिछले कई दसकों से यह गरीब हरिजन आदिवासी जिस भूमि पर काबिज थे आज भी वहीं पर काबिज हैं लेकिन उनके नाम के आवादी पट्टे आज तक वितरित नही किये गए हैं जबकि सरकार ने तो इस विषय में कई नोटिफिकेशन तक जारी किये हुए हैं की सभी भूमिहीनों को उनका आवादी और पट्टे वितरित किये जायें।

 आवादी पट्टा हर भूमिहीन का है मौलिक अधिकार

   वास्तव में देखा जाए तो हर एक भूमिहीन परिवार को उसकी एक दशक से अधिक में काबिज भूमि का आवादी पट्टा मिलना चाहिए. परंतु इसके उलट हितग्राहियों को उनकी भूमि के आवादी पट्टे वितरित नही हुए हैं. यह एक समस्या का विषय है क्योंकि भूअधिकार और पट्टे न मिलने से हितग्राही मूलक योजनाओं का लाभ ले पाना मुश्किल होता है. अब पीएम आवास और शौचालय निर्माण की ही बात करलें तो बता दें की इनमे से किसी भी योजना का लाभ तब तक नही मिलेगा जब तक उस हितग्राही की स्वयं की कुछ जमीन न हो. आखिर पीएम आवास सैंक्शन होने के बाद भी हितग्राही मकान कहां बनाये? हरिजन आदिवासियों के मामलों में यह देखने में आया है की ग्रामीण अंचलों में इनके पूर्वज किसी जमीदार द्वारा खेतों में काम और मजदूरी के उद्देश्य से बसाए जाते थे. सब तो ठीक था परंतु उन तथाकथित जमीदारों ने आज तक उन हितग्राहियों का आवादी और पट्टा नही बनवाया साथ ही अपने जमीन से बेदखल कर देने की धौंस अलग से देते रहते हैं. इसी डर बस उन हरिजन आदिवशियों के लिए जमीदारों के विरुद्ध कुछ बोल पाना भी मुश्किल हो जाता है. आखिर उनको यह डर तो बना ही रहता है की कहीं जमीदार उन्हें अपने जमीन से बेदखल न कर दें. यद्यपि देखा जाय तो दसकों से काबिज भूमिहीन हरिजन आदिवासी परिवारों को बेदखल कर पाना जमीदारों को उतना आसान भी नही होता. लेकिन फिर भी मनोवैज्ञानिक दबाब बनाकर रखना और अपने खेती किसानी और मजदूरी के काम में दबाब देकर लगाए रखने का फायदा जमीदारों को जरूर मिलता है. आज भी कई स्थानों पर यह भूमिहीन बंधुआ मजदूर की तरह ही काम कर रहे हैं।

   इस प्रकार यदि भूमिहीनों को उनके काबिज़ आवासीय भूमि का भूअधिकार और पट्टे न दिए गए तो न यह किसी सरकारी योजना का ठीक ठाक तरीके से लाभ ले सकते हैं और न ही शांति ही प्राप्त कर सकते हैं इस प्रकार देखा जाए तो यह गरीबों और भूमिहीनों के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों का बहुत बड़ा हनन है जिस पर सरकारों को काफी गंभीरता से लेना चाहिए.

कैथा के 50 परिवारों को दसकों से नही मिला उनका आवादी और पट्टा

     ज़िले के मनगवां तहसील अंतर्गत इटहा हल्का पटवारी नंबर 2 जो की गढ़ सर्किल के अंतर्गत आता है इसके ग्राम कैथा 74 में कैथा निवासी जमीदार परिवार स्व. रामानंद पटेल के पुत्र जगदीश पटेल की आराज़ी नंबर 91/1/1 में 4 दशक से काबिज़ 50 हरिजन आदिवाशी परिवार के भूमिहीन मुखिया को आज दिनांक तक उनका आवादी पट्टा नही दिया गया है. 

    बंसपती साकेत पिता साधूलाल साकेत, अर्जुन कोल, अम्बिका कोल, मुन्नी कोल आदि द्वारा बताया गया की उन्हें और उनके परिवार को आज से कई दशक पूर्व स्व. रामानंद पटेल द्वारा अपनी भूमि पर मजदूरी करने के लिए बुलाया गया था और बसाया गया था. आगे बताया गया की रामानंद और उनके परिवार ने कहा था की इन हरिजन आदिवाशियों को कोई नही भगाएगा. लेकिन उन्हें आज तक उनके काबिज भूमि का आवादी और पट्टा नही दिया गया. अब रामानंद के मृत्यु उपरांत उनके वंशजों जगदीश पटेल और अन्य द्वारा इन गरीब हरिजन आदिवाशी परिवारों को निरंतर धमकियां दी जाती हैं की यदि इन्होंने जमीदारों की बातें नही मानी और उनके कहने के विरुद्ध किसी अन्य को वोट दिया या उनके जमीन और खेतों में काम नही किये तो इन वाशिन्दों को भगा दिया जाएगा. इस बात की शिकायत काफी समय से प्राप्त होती रही है. 

   अभी हाल ही में यह भी बताया गया की काबिज भूमिहीन हरिजन आदिवशियों के लिए पीएम आवास, मुख्यमंत्री आवास, और इंदिरा आवास आदि योजनायों सहित शौचालय एवं अन्य हितग्राही मूलक योजनाओं की राशि भी आकर वापस चली गई क्योंकि उनकी खुद की कोई पट्टे की जमीन नही होने के कारण बसाए टिकाए गई भूमि पर उन्हें मकान नही बनाने दिया गया. 

   इस प्रकार देखा जा सकता है की ग्रामीण अंचलों में अभी भी जमीदारों और धूर्त किश्म के लोगों द्वारा गरीबों का निरंतर शोषण होता चला आ रहा है और इसमें कोई विशेष बदलाव नही देखा जा रहा है.

 मानवाधिकार कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा मामला मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग में भी उठाया गया

   ज्ञात हो की कैथा में भूमिहीन हरिजन आदिवशियों के आवादी पट्टे, आवास, शौचालय आदि संबंधी मामला सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा कई बार उठाया जा चुका है. स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली संस्था सीजी नेट में भी कई पीड़ितों के बयान और वक्तव्य रिकॉर्ड करवाये गए थे जो सबंधितों तक भेजे जा चुके हैं. इसी प्रकार सीएम हेल्पलाइन में भी मामलों को रखा जा चुका है. यदि मानवाधिकार आयोग की बात करें तो भूमिहीनों के आवास और आवादी संबंधी मसले को मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग भोपाल एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली तक उठाया जा चुका है. 

मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग की रीवा कलेक्टर को नोटिस और हुई मात्र आंशिक कार्यवाही

    जब इस प्रकरण को सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता द्वारा मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग अरेरा हिल्स पर्यावास भवन भोपाल में रखा गया तो उस पर कार्यवाही के तौर पर ज़िला कलेक्टर रीवा राहुल जैन को आयोग ने नोटिस जारी कर दी और आवास संबंधी मानवाधिकार के उल्लंघन के इस विषय पर कलेक्टर से तत्काल जबाब तलब कर लिया जिस पर कलेक्टर ने आगे की प्रक्रिया में मनगवां तहसीलदार ए के सिंह और एस डी एम के पी पांडेय को नोटिफिकेशन जारी किया और आंशिक कार्यवाही के तौर पर तब के इटहा हल्का पटवारी संदीप गौतम और इस समय पदस्थ पटवारी रावेंद्र त्रिपाठी ने जांच की और जांच में सभी बिंदु सही पाए गए जिसमे अभी हरिजन आदिवाशी अपने पूर्वजों की तरह जगदीश पटेल और उसके पिता रामानंद पटेल की जमीन आराज़ी नंबर 91/1/1 पर बसाए मिले और अभी भूमिहीन थे अतः स्वाभाविक रूप से नियमानुसार वैधानिक तरीके से सभी हरिजन आदिवाशी वर्ग के भूमिहीन परिवार का आवादी पट्टा होना अनिवार्य पाया गया. और यही जानकारी मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग को भी पटवारी तहसीलदार कलेक्टर द्वारा भेजी गई. 

कैथा के 50 एस सी एस टी परिवार अभी भी जमीदारों के रहमोकरम पर

    यदि सही मायने में देखा जाए तो प्रथम जांच के उपरांत पूरा मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया. पटवारी हल्का इटहा नंबर 2 रावेंद्र त्रिपाठी द्वारा एक सात पन्ने का फॉर्म सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता को दिया गया जिसे पूरे 40 प्रतियों में भरवाए गए और बाद में सभी काबिज़ हरिजन आदिवाशी वर्ग में लोगों के हस्ताक्षर और अंगूठे निसानी के साथ पुनः पटवारी और तहसीलदार को दे दिया गया की अग्रिम कार्यवाही हो लेकिन पूरे 6 माह तक वह पूरा पड़ा तहसीलदार मनगवां के कार्यालय में गड्ड लगा रहा और अंत में क्या हुआ इसका आज तक कोई पता नही है. बीच में कुछ हरिजनों और अदिवशियों द्वारा बताया गया था की पटवारी द्वारा कुछ पैसों की माग की गई थी की पैसा दोगे तो एसडीएम साहब जल्दी कार्यवाही करवा देंगे.

   आज भी उन 25 आवेदनों के पावती सामाजिक कार्यकर्ता के पास है जिसे वापस मानवाधिकार आयोग को भेजा गया है. 

    अब देखना यह होगा की मप्र और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के विरुद्ध कार्यवाही पर इन जिलाधिकारियों पर क्या कुछ कार्यवाही आयोग करता है. 

कैथा हरिजन आदिवासी परिवार के 25 मुखिया जिन्होंने किया आवेदन

     अभी तक जिन 25 हरिजन आदिवाशी परिवार के मुखिया ने अपने पुस्तैनी काबिज़ भूमि पर आवादी और पट्टे का आवेदन किया है वह इस प्रकार हैं -

1) रामलाल पटेल पिता साधूलाल साकेत, 2) शिव सागर कोल पिता सुफल को;, 3) काशी कोल पिता गयानाथ कोल, 4) गयानाथ कोल पिता स्व. भवानी कोल, 5) दिवाकर साकेत पिता मोतीलाल साकेत, 6) दिनेश साकेत पिता मोतीलाल साकेत, 7) अम्बिका प्रसाद कोल पिता सुफल कोल, 8) सुरेंद्र कोल पिता सुफल कोल, 9) कैलास साकेत पिता शिवप्रसाद साकेत, 10) राजकुमार कोल पिता स्व. सुखलाल कोल, 11) रामनरेश साकेत पिता मोतीलाल साकेत, 12) राजबहोर साकेत पिता बंसपती साकेत, 13) श्रीमती मुन्नी कोल पति स्व. छोटेलाल कोल, 14) चंद्रशेखर कोल पिता अम्बिका प्रसाद कोल, 15) अर्जुन कोल पिता रामसजीवन कोल, 16) रामसजीवन कोल पिता स्व. सुखलाल कोल, 17) पन्नालाल साकेत पिता रामलाल साकेत, 18) राजेश साकेत पिता गणेश साकेत, 19) चंदन साकेत पिता रामावतार साकेत, 20) मदन मोहन कोल पिता गयानाथ कोल, 21) रामावतार साकेत पिता स्व. साधूलाल साकेत, 22) शिवप्रसाद साकेत पिता स्व. साधूलाल साकेत, 23) मोतीलाल साकेत पिता स्व. परागे साकेत, 24) कमलेश साकेत पिता रामाश्रय साकेत, 25) विमलेश साकेत पिता रामाश्रय साकेत आदि.

संलग्न - कुछ हरिजन आदिवशियों की फ़ोटो और उनके काबिज़ भूमि और उनके आवासों की फ़ोटो साथ ही वह पुख्ता प्रमाण जो हल्का पटवारी इटहा नंबर रावेंद्र त्रिपाठी द्वारा सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता को पावती के तौर पर लिखित दिया गया था.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र,

  मोबाइल नंबर 7869992139, 9589152587

Friday, April 27, 2018

नरवाई और मेढ़ों में आग लगाना मतलब अपनी हरी भरी फसल में आग लगाना (मामला किसानों द्वारा अपने खेतों के नरवाई और मेढ़ों में आग लगाने का, जिससे जमीन के पोषक तत्व समाप्त होकर जमीन हो रही बंजर)

दिनांक 27 अप्रैल 2018, स्थान रीवा मप्र

(कैथा, रीवा मप्र - शिवानन्द द्विवेदी)

 फसल की कटाई के साथ ही गर्मियों में एक बार फिर खेतों की नरवाई एवं मेढ़ों को आग के हवाले कर देने का सिलसिला चल पड़ा है.

  किसानों द्वारा किये जा रहे इस कृत्य से जहां पशुओं को गर्मियों में मिलने वाले चारे पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है वहीं दूसरी तरफ फसल की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए आवश्यक जीवाणुओं और खाद का भी सत्यानाश हो जाता है. 

    कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर यह प्रश्न उठाया जाता रहा है की सरकार इस पर शख्ती बरते जिससे किसान इस कृत्य से बाज आएं. गांव गांव जाकर किसान मित्रों और कृषि विस्तार अधिकारियों द्वारा इस विषय में जनता को जागरूक न कर पाना भी एक बहुत बड़ा कारण है. सरकारी तौर पर किसानों को गांव गांव जाकर यह बताया जाना चाहिए की खेत और मेढ़ों की नरवाई जलाना एक अवैधानिक कृत्य है जिससे जुर्माना और जेल भी हो सकती है.

खेतों और मेढ़ों की नरवाई में आग से पशु भी भटकते हैं चारा बिना

  गर्मियों में देखा गया है की कुछ छोड़ दिए गए पशु इसी नरवाई और मेढ़ों की घास से जिंदा रहते हैं तो जहां एक तरफ वैसे भी निरंतर उपेक्षा के शिकार हुए पशुओं की संख्या कम होती जा रही है और जो बचे हुए भी हैं नरवाई और मेढ़ों की घास फूस को आग के हवाले कर देने से मारे मारे फिरेंगे और गर्मियों में चारा पानी बिना बेमौत मारे जाएंगे.

खेतों और मेढ़ों के आग लगाना भारतीय संस्कृति के भी विरुद्ध

    वैसे देखा जाय तो भारतीय संस्कृति अहिंसा को बढ़ावा देने वाली है जिसमे वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे वाक्यों का हमारे धर्मशात्रों में कथन आता है. इसका तात्पर्य है की सभी जीवों की रक्षा हो सभी को जीने का अधिकार है. और यह सम्पूर्ण सृस्टि एक सनातनधर्मी की दृष्टि में एक परिवार की तरह है. अब ऐसे में आज इस कलयुग में कहां हम भारतवासी इस बात का पालन कर रहे हैं. खेतों और मेढ़ों में अनायास ही आग लगा देने मात्र से उसके अंदर असंख्य जीव जंतु नष्ट हो जाते है, पशु पक्षी आहार की कमी के कारण मर जाते हैं तो कहीं न कहीं हम स्वयं भी इस हत्या के लिए जिम्मेदार बन जाते हैं अतः धर्म की दृष्टि से भी हमे अपने अंदर दया का भाव जागृत रखकर ऐसे समस्त कृत्यों से बचना चाहिए जिसमे अनायास ही बिना किसी कारण के किसी जीव की हत्या करनी पड़े और जैसा की बताया गया की खेतों की नरवाई और मेढ़ों में आग लगाने से जीवों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बिना किसी कारण के हत्या की जा रही है जो पूरी तरह से हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध है.

संलग्न - रीवा ज़िले में विभिन्न स्थानों में किसानों द्वारा खेतों की नरवाई एवं मेढ़ों में लगाए गए आग का दृश्य.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,रीवा मप्र

  मोबाइल - 7869992139, 9589152587

Thursday, April 26, 2018

मेंटेनेंस के अभाव में दिलीप बिल्डकॉन सड़क के उड़ने लगे परखच्चे (मामला ज़िले के क्योटी से कलवारी वाया लालगांव-भठवा-हिनौती सड़क मार्ग का)

दिनांक 26 अप्रैल 2018, स्थान - लालगांव/भठवा, रीवा मप्र 

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

   अभी पिछले दो वर्ष पहले ही दिलीप बिल्डकॉन प्राइवेट कंपनी लिमिटेड द्वारा बनाई गई क्योटी से कलवारी वाया लालगांव-भठवा टू लेन एमपीआरडीसी सड़क के परखच्चे उड़ने लगे हैं. इस सड़क में डैमेज तो काफी समय से बताए जा रहे हैं लेकिन ज्यादातर ओवरलोडेड वाहनों की वजह से समस्या का होना बताया गया था. ओवरआल सड़क की स्थिति अब तक ठीक ठाक थी।

    एक लंबे अरसे से यह देखा जा रहा है की इस टू लेन सड़क के किनारों पर डाली हुई मोरम वाहनों की ट्रैफिक और साथ ही पानी के वहाब की वजह से कट गई है जिससे हर स्थान पर किनारों पर गड्ढेनुमा आकृतियां बन रही हैं. जिस प्रकार से किसी भी नई सड़क में किनारों में मोरम और गिट्टी का सपोर्ट होता है उस प्रकार इस सड़क में नही बचा है. पहले पहल तो किनारों पर मोरम डाली हुई थी लेकिन अब बहाब की वजह से कट चुकी है जिसके कारण क्योटी से लेकर कलवारी तक हर स्थान पर सड़क के किनारे यह समस्या देखी जा रही है.

    अभी दिनांक 26 अप्रैल को सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा इस विषय को गंभीरता से लेते हुए शिसवा, भठवा, हिनौती, कलवारी, लालगांव, डाढ़, भलुहई और अन्य स्थानों का सर्वे किया गया और पाया गया की यदि समय रहते इस पर ध्यान नही दिया गया तो वर्ष 2018 की बरसात और मानसून का सीजन आते आते यह कटाव का दायरा आगे बढ़कर सड़क को बीचोंबीच से नुकसान पहुचा देगा. 

एमपीआरडीसी दिलीप बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड को जल्दी जारी करे नोटिस 

    इस विषय को गंभीरता से लेते हुए एमपीआरडीसी अर्थात मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेन्ट कारपोरेशन द्वारा तत्काल सड़क निर्माता कंपनी दिलीप बिल्डकॉन प्राइवेट कंपनी लिमिटेड को नोटिस जारी किया जाना चाहिए और उनको याद दिलाया जाना चाहिए की इस सड़क की गारंटी 10 वर्ष की बतायी गई थी अतः इसको दुरुस्त किया जाना चाहिए. अमूमन देखा जाए तो यह सड़क रीवा ज़िले में पिछले कुछ वर्षों में किसी भी कंपनी द्वारा बनाई गयी टू लेन सड़कों में सबसे मजबूत है क्योंकि इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की आज दो वर्ष का समय व्यतीत होने पर भी क्योटी से कलवारी वाया लालगांव-भठवा सड़क मार्ग रिमार्केबल तरीके से तो छतिग्रस्त नही हुआ है. इसमे अब तक ज्यादातर किनारों में कटाव ही देखा गया है. डाढ़ आदि ग्रामों में निश्चित ही यह सड़क बीचोंबीच फट रही है अतः यह भी ध्यान दिया जाना आवश्यक हो जाता है. इस सड़क के बनते ही ओवरलोडेड ट्रैफिक का आवागमन प्रारम्भ हो गया था जिसकी समय समय पर शिकायतें भी कीं गई थी. परंतु ओवरलोडेड ट्रैफिक कभी बन्द नही हुआ है. अभी भी दिन और विशेषतौर पर रात में सतना से इलाहाबाद की तरफ जाने वाले ज्यादातर ओवरलोडेड ट्रक इसी रास्ते से गुजरते हैं. जानकारों से पता चला की मनगवां और रायपुर कर्चुलियान के बीच टोलप्लाजा में टैक्स बचाने के लिए भी भारी वाहन वाले इस रास्ते से गुजरते हैं.

    यदि तुलनात्मक तौर पर देखा जाए तो जहां टू लेन क्योटी से कलवारी वाया लालगांव-हिनौती सड़क अभी भी बेहतर स्थिति में है वहीं फोर लेन सड़क मनगवां से चाकघाट जहां जहां बन कर कम्पलीट हुई है वहां वहां साल भर पहले ही बुरी तरह से उखड़ चुकी है जबकि बजट के हिसाब से भी देखा जाए तो फोर लेन सड़क का वजट टू लेन से ज्यादा होता है. वैसे यह भी भलीभांति विदित है की दोनो ही मार्गों को बनाने का कार्य दिलीप बिल्डकॉन प्राइवेट कंपनी लिमिटेड को ही मिला था तो जहां मनगवां से चाकघाट मार्ग टॉपबर्थ कंपनी द्वारा दिलीप बिल्डकॉन को पेट्टी कॉन्ट्रैक्ट में मिला था वहीं क्योटी से कलवारी वाया लालगांव-हिनौती सड़क मार्ग सीधे दिलीप बिल्डकॉन कम्पनी ने अपने कॉन्ट्रैक्ट में लिया था.

बरसात के पहले मेंटेनेंस नही हुआ तो पूरी सड़क होगी छतिग्रस्त

    यदि क्योटी से कलवारी वाया लालगांव-हिनौती सड़क मार्ग का मेंटेनेंस इस बरसात के पहले नही किया गया और विशेषतौर पर किनारों में हो रहे कटाव को रोकने के लिए पर्याप्त मोरम और गिट्टी नही डाला गया तो इस मानसून सीजन 2018 तक इस गड़क मार्ग में भारी छति हो सकती है और आज बेरोकटोक होने वाला आवागमन प्रभावित होने लगेगा साथ ही पूरी सड़क बदहाल होने के आम जनता के टैक्स का पैसा बर्बाद होगा. और यदि अभी समय रहते इस सड़क मार्ग को दिलीप बिल्डकॉन द्वारा मेंटेनेंस कर दिया गया तो जहां एक तरफ सड़क की मजबूती बढ़ जाएगी वहीं दूसरी तरफ़ आम जनता को भी काफी राहत मिलेगी. आखिर अच्छी सड़क, मकान, स्वक्छ पेयजल, और बिजली की उपलब्धता होना आज हर एक भारतीय नागरिक का मानवाधिकार जो है और इस मानवाधिकार की रक्षा करना हर एक देश की लोकतांत्रिक सरकार का वैधानिक दायित्व है.

जब इस संदर्भ में बड़े मुश्किल से जिम्मेदारों के नंबर नेट से ढूंढकर इनसे बात की गयी तो देखिए इनके क्या जबाब थे।

  मैं आपको मोबाइल फ़ोन पर इनसे बात की ऑडियो फ़ाइल ही भेजे दे रहा हूँ।
   
1) पीए मैनेजिंग डायरेक्टर एम पी आर डी सी के बोल - "आप एम डी साहब से बात नही कर सकते मैं आपको एक अन्य नंबर बताती हूँ जिस पर सम्पर्क करें और मेंटेनेंस संबंधी बात बता दें। मेंटेनेंस का कार्य चीफ इंजीनियर आलोक चतुर्वेदी देखते हैं" 
संपर्क 0755 276 5217

2) आलोक चतुर्वेदी, चीफ इंजीनियर और मेन्टेनेन्स इन चार्ज एम पी आर डी सी भोपाल -"आपको हमारा नंबर किसने दिया, ठीक है यदि आपको हमारा नंबर नेट से मिला है तो वहीं पर नीचे एक अन्य नंबर ललित कुमार दुबे का देखिए। ए डी बी का काम मेंटेनेंस का काम एल के दुबे ही देखते हैं। मैं नही देख रहा हूँ।" मोबाइल 9425111725

3) ललित कुमार दुबे, इन चार्ज चीफ इंजीनियर, ए डी बी भोपाल एम पी आर डी सी -" मेंटेनेंस का काम आलोक चतुर्वेदी ही देखते हैं। वही इसके इन चार्ज हैं। मैं अभी नया नया आया हूँ। लेकिन फिर भी मैं मंगलवार तक आफिस में आता हूँ तो दिखवाता हूँ। आप सारी जानकारी फ़ोटो सहित हमारे व्हाट्सएप्प नंबर में भेज दें। हम कार्यवाही करवाएंगे।" मोबाइल 9981050208

संलग्न - ज़िला रीवा के क्योटी से कलवारी वाया लालगांव - भठवा-हिनौती सड़क मार्ग के विभिन्न स्थलों शिसवा, लालगांव, भठवा, हिनौती, भलुहई, डाढ़, जमुई और कलवारी पर सड़क के किनारे उखड़ी हुई पट्टियां जो आगे बढ़कर पूरे सड़क को नुकसान पहुचाने की स्थिति में हैं.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,रीवा मप्र,

  मोबाइल - 7869992139, 9589152587

Monday, April 23, 2018

कैथा अगडाल पीएम सड़क की हुई एस क्यू एम जांच, बताया सब ठीक है, बोला जाकर पी डब्लू डी सड़कें देख लें (मामला मऊगंज पीएमजीएसवाई अंतर्गत आने वाली अगडाल से कैथा प्रधानमंत्री सड़क का जिसकी गुणवत्ता को लेकर प्रश्न उठाये जा रहे थे)

दिनांक 23 अप्रैल 2018, गढ़/गंगेव रीवा मप्र

(कैथा, रीवा मप्र - शिवानन्द द्विवेदी)

   ज़िले के मऊगंज प्रधानमंत्री सड़क विभाग अंतर्गत आने वाले गंगेव ब्लॉक की स्टेट क्वालिटी मॉनिटर एवं नेशनल क्वालिटी मॉनिटर के द्वारा समय समय पर जांच होती रहती हैं लेकिन यह जांचें ज्यादातर कागजों पर ही होती हैं. इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नही होता. क्योंकि यदि वास्तविकता से कोई लेना देना होता तो इस योजना के अंतर्गत बनाई जाने वाली सड़कों की गुणवत्ता में कोई तो परिवर्तन दिखता. यहां तो जांच में सब कुछ पहले से ही ठीक बताया जा रहा है. अर्थात मैच फिक्स्ड है, बॉलिंग करते रहने से कोई लाभ नही है. बैट्समैन नॉटआउट ही रहेगा और ओवर पूरे होने के पहले ही ठेकेदारों द्वारा पीएमजीएसवाई का मैच जीत लिया जाएगा.

तीन जगहों पर सड़क खोदा और हो गया काम पूरा

   भोपाल से आये एस क्यू एम आर पी शर्मा ने अगडाल से कैथा पीएम सड़क को तीन स्थानों पर खुदवाया जिसकी तस्वीर भी सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा ली गई है. इन तीनों स्थानों पर जो देखने को मिला वह बड़ा ही अजीब था. यह बात समझ के परे थी की खोदे गए मटेरियल के अनुपात के विपरीत कहीं उससे कई गुना ज्यादा मटेरियल का ढेर क्यों लगाया गया था इसी से काफी हद तक संदेह जाहिर हुआ. आखिर जब एक तगाड़ी डब्लू एम एम की खुदाई हुई थी तो दस तगाड़ी का ढेर क्यों लगाया गया था? लगे ढेरों को गौर के देखने पर पता चला की कहीं बाहर से या यूं कहें की अपने साथ गाड़ी में लाये गए 40 एमएम, 20 एमएम, गिट्टी और बालू को एकत्रित करके उनके अलग अलग अनुपात में फ़र्ज़ी तरीके से ढेर लगाकर फ़ोटो ले लिए गए थे. वास्तव में ढेर लगा हुआ मटेरियल उस सड़क के खोदे गए भाग का था ही नही जिसका की पुख्ता प्रमाण इसी से लग गया की जितनी सड़क की खोदाई से मटेरियल निकला था वह वहां अलग ढेर लगाए गए मटेरियल से 10 गुना कम था. तब इतना मटेरियल कहाँ से आया? वहां तो साइड में मोरम डाली हुई थी तो इसका मतलब यह हुआ की चलाई के नाम पर इन्होंने अलग से लाया हुआ अच्छा मटेरियल फ़ोटो खींचने के लिए और ऊपर तक भेजने के लिए बाहर से ही लाया था. तो ऐसा है यह पूरा फर्जीवाड़ा. सबसे बड़ी बात तो यही है की जब एस क्यू एम आर पी शर्मा स्वयं यह बोल ररहे हैं की आप प्रधानमंत्री सड़क के ही पीछे पड़े हो जाकर पी डब्लू डी की सड़क देखो तो पता चले की पीएम सड़क कितनी अच्छी बन रही है. इसी बात से समझ आता है की इनको क्वालिटी की नही पड़ी है मात्र यह तुलनात्मक काम देख रहे हैं की यदि पी डब्लू डी सड़क में भष्ट्राचार है तो उसे देखा जाए न की इनके स्वयं  के भष्ट्राचार को. मतलब ध्यान बांटने का प्रयाश है की इनके काम को कोई ध्यान न दे. ऐसे स्टेट क्वालिटी मॉनिटर टीम का क्या औचित्य बनता है जो जनता के सवालों का जबाब भी न दे जबकि जनता के लिए बनाई गयी सड़क को चेक करने के लिए आये हैं. इनको रिटायरमेंट के वावजूद भी सरकार काम में लगाकर पैसा दे रही है और यह भस्ट्राचारी जनता को उल्टा पुलटा जबाब देकर फुर्सत होना चाह रहे हैं.

    एस क्यू एम आर पी शर्मा ने  बताया सब कुछ एक नंबर का है, आप जाके पी डब्लू डी की सड़कें देखिए

     जांच दल में आये कोई आर पी शर्मा ने बताया की हमने पीएम सड़क को खोदकर देख लिया है सड़क बिल्कुल एक नंबर की है जिसमे किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी नही है. हमने पूरे स्टेट की सड़कों को देखा है और सब सड़कें सही हैं, विशेष कर रीवा की पीएम सड़कें बिल्कुल दुरुस्त हैं. और आपकी कैथा से अगडाल पीएम सड़क में तो कोई खराबी है ही नही.

     ऐसा लगा सब पहले से ही फिट था. जबकि देखा जाए तो लौरी नंबर 3 के निवासी योगेंद्र शर्मा के घर के पास ट्रांसफार्मर के पास की रोड बनने के 21 दिन के भीतर ही उखड़ गई थी जिसकी की शिकायतें तो हुईं ही साथ ही न्यूज़पेपर में भी मामले को रखा गया था. इसी प्रकार बिना 8 टन का ही वाहन चले ही साइड से इस सड़क में जगह जगह दरारें आ चुकी है।

देखिए स्टेट क्वालिटी मॉनिटर की तरफ से आये अधिकारियों ने क्या कुछ कहा

1) "आपके प्रश्नों का कोई अंत नही है अतः सबका जबाब तो हम नहीं दे पाएंगे पर आपको बता दें की अगडाल से कैथा प्रधानमंत्री सड़क बहुत ही अच्छी बनायी गई है. हमने अपने लेवल पर इसकी जांच की है जो हमे सही मिली. सैंपल और डेटा इकट्ठा कर लिया है आगे भेज दूंगा. मैं स्टेट क्वालिटी मॉनिटर टीम से हूँ जो पूरे देश के रिटायर्ड अधिकारियों की बनाई जाती है. रीवा में जांच करने के लिए मुझे भेजा गया है. आपको इस सड़क की प्रसंसा करनी चाहिए की इतनी सुंदर सड़क बनाकर दी जा रही है." - आर पी शर्मा, स्टेट क्वालिटी मॉनिटर प्रमुख, भोपाल, मप्र

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2) " देखिए द्विवेदीजी हम तो आप के बीच के ही हैं. हमारी तो आपसे हर दूसरे तीसरे दिन बात होती रहती है. हम कल आकर मामले को समझ लेंगे. आज आप जांच कर लेने दीजिये, यह टीम एस क्यू एम की है जो सीधे भोपाल से आई हुई है. यह रूटीन जांच है. इसके बाद हम कल आते हैं और आगे सड़क में क्या गड़बड़ी है उसको देखते हैं. वैसे हमारी तरफ से पूरे प्रयास किये जा रहे हैं की ठेकेदार मनमानी न करने पाएं." - उपयंत्री अमित गुप्ता, पीएमजीएसवाई, मऊगंज, रीवा मप्र

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3) "हम एक टीम लीडर की हैसियत से आये हैं. हम सड़क की जांच करने समय समय पर आते हैं. हमे सूचना थी की स्टेट क्वालिटी मॉनिटर की टीम आ रही है अतः उसके सदस्यों के साथ हम आये हैं. डामरीकृत सड़क की विभिन्न परतों को खोदकर हम उसमे हर एक की मात्रा देखते हैं की उसमे कितना 40 एमएम, कितना 20 एमएम की गिट्टी है और उसमे कितना बालू या जीएसबी मिला होता है. साथ ही एक विशेष मसीन में हम डामर की परत को घोल बनाकर डालते हैं और देखते हैं की डामर वगैरह का सही अनुपात है की नही. इस मसीन में यही किया जा रहा है" - महेंद्र सिंह, टीम लीडर (टीएल) पीएमजीएसवाई, मऊगंज, रीवा मप्र

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4) "कुल मिलाकर रोड में लीपापोती करके मामले को रफा दफा किया जा रहा है. जैसा की आपको भी पता है की कई बार कंप्लेन होने से ठेकेदार का पैसा रोक दिया गया होगा जिससे अब ये अधिकारी जांच करने के लिए आये हैं और लीप पोत करके चले जाएँगे. पूरे देश में तो यही चल रहा है. आखिर स्टेट क्वालिटी मॉनिटर हमारे बताए हुए स्थान पर चलकर जांच करें जहां हम दिखाते हैं कितनी घटिया रोड बनाई गई थी. अब देखिए अभी पिछले दौरे में उपयंत्री और जीएम द्वारा बताया गया था की अप्रैल अंत तक का टारगेट दिया हुआ है 7 किमी सड़क बनाने के लिए, अब आज 23 अप्रैल हो चुका है और जीएसबी भी अच्छे से नही डाली गई है. क्या ऐसे ही काम चलेगा. जल्दी जल्दी में फिर घटिया काम करके फुरसत कर देंगे. ठेकेदार बोलते हैं की हमारे बइब्रो और जेसीबी लेबर बारात चले गए हैं. कभी बोलेंगे की जेसीबी खराब है तो कभी बइब्रो खराब है तो कभी डम्पर ही नही है. जब इन ठेकेदारों के पास कुछ नही रहता तो इनको एकसाथ इतने बड़े बड़े ठेके कैसे मिल जाते हैं. चलिए एक ठेका की बात हो तो अलग, इन्हें आधा दर्जन सड़कों को बनाने के ठेके मिले हुए हैं. कैसे और किस आधार पर इनको इनकी क्षमता से अधिक का ठेका मिला. तमाम यही फर्जीवाड़ा चल रहा है और इस पीएमजीएसवाई विभाग की मिलीभगत से होता है चाहे यह सब रीवा से हो रहा या भोपाल या दिल्ली से तमाम यही फर्जीवाड़ा है. पनगड़ी के रहवासी परेशान हैं और उनकी पीएम सड़क आज 6 साल से नही बनी है. कहां गए थे तब यह स्टेट क़्वालिटी मॉनिटर और नेशनल कॉलिटी मॉनिटर? क्या इन्हें तब नही दिख रहा था की काम अधूरा पड़ा हुआ है." - योगेंद्र शर्मा, निवासी लौरी नंबर 3, गंगेव, रीवा मप्र.

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संलग्न - कृपया संलग्न देखें अगडाल से कैथा प्रधानमंत्री सड़क की जांच करने आये एस क्यू एम आर एस शर्मा की टीम साथ ही तीन जगह खोदे गए गड्ढे और फ़र्ज़ी तरीके से फ़ोटो खींचने के लिए फैलाया गया मटेरियल।

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शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र। 7869992139, 9589152587

Sunday, April 22, 2018

झोलाछाप का बोलबाला, एक का ग्यारह देने पर भी जान से हाँथ धो रहे, न दवा और न ही जीवन की कोई गारंटी, सुप्रीम कोर्ट तक के निर्देशों की कोई कीमत नही (मामला ज़िले की हज़ारों प्राइवेट क्लिनिक और झोलाछाप डक्टरों का)

दिनांक 22 अप्रैल 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी) 

    कहते हैं सबसे सुखी निरोगी काया, पर इस मॉनव तन में रोग व्याधि भी समय समय पर आते ही रहते हैं. कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनका इलाज करवाने से राहत मिल जाती है और कुछ ऐसी व्याधियां लग जाती हैं जो शरीर के अंत के साथ ही समाप्त होती हैं.

    पुराने समय में बीमारी की स्थिति में गांव के वैद्य की दवा काफी कारगढ़ साबित होती थी. तब आयुर्वेद और जड़ी बूटियों में काफी ताकत होती थी और तब की जड़ी बूटियां स्वच्छ वातावरण में पैदा होती थीं. तब का खान पान भी इतना प्रदूषित नही था जितना आज का हो गया है. आज तो हर एक पदार्थ में दवा और प्रिजरवेटिव मिले रहते हैं. दूध में सोड़ा और यूरिया मिला रहता है, अनाज की बुवाई से कटाई और घर में स्टोर करने तक यूरिया, डीएपी, कीटनाशक, सल्फास और पता नही क्या क्या डाला रहता है. ऐसे में आज जब हम यह भोजन करते हैं तो यह जहर हमारे शरीर में प्रवेश कर हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधक शक्ति को कमजोर कर विभिन्न प्रकार की साध्य और असाध्य बीमारी का तोहफा दे जाता है जिससे लड़ने के लिए हमारा जीवन पर्याप्त नही हो पाता.

   बीमारी तो होना आजकल एक आम बात हो गई है, और मौसमी से लेकर विभिन्न बीमारियां, पर यदि उसका अच्छे डॉक्टर से समय पर इलाज हो जाए तो निजात मिल जाती है. पर आज ग्रामों कस्बों में अच्छे डॉक्टरों का अभाव है जिससे झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला हो गया है. आज फार्मेसी की डिग्री और मेडिकल स्टोर खोल पाने की डिग्री धारक भी एम बी बी एस, एम डी, और सर्जरी का काम कर रहे हैं. अभी पिछले दिनों थाना गढ़ अंतर्गत इटहा ग्राम के हीरालाल पटेल ने बताया की उसकी पत्नी को डायबिटीज की समस्या थी और उसका इलाज चल रहा था इसी बीच उसकी तबियत अचानक खराब हो गई और वह पास ही स्थित गढ़ कस्बा के किसी डॉक्टर के पास गया और अपनी पत्नी का इलाज करवाया. इन बंगाली और बनारसी किश्म के डक्टरों ने कुछ ऐसा इलाज कर दिया की बिना जांच पड़ताल के 50 का ग्लूकोस बोतल 500 में चढ़ा दिया और हीरालाल की औरत का शुगर लेवल अचानक बढ़ कर कंट्रोल से बाहर हो गया. जब वह पूरी तरह से मरने लायक हो गई तो डॉक्टर साहब ने कहा की अब आप इन्हें रीवा या अन्यत्र लेकर चले जाएं हमारे बस की बीमारी नही है. रीवा जाते जाते और भर्ती कराते कराते उसकी पत्नी ने अंतिम सांस ले ली. हीरालाल ने बताया की उनकी अभी बेटी भी शादी करने योग्य है. उसकी पत्नी के अकस्मात मरने से उसका जीवन नीरस हो गया है।

     इसी प्रकार पिछले दो वर्ष पहले कैथा निवासी अम्बिका मिश्रा भी किसी हिनौती के झोलाछाप डॉक्टर के चक्कर मे पड़कर अपनी जान गवां बैठे। मामला जब अंतिम स्थित में आया तो गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया जहाँ बीच रास्ते मे ही अम्बिका की मृत्यु हो गयी।

गढ़, गंगेव, हिनौती, कटरा, कलवारी, भठवा और लालगांव में चलता है झोलाछाप का बोलबाला 

    वैसे तो पूरे ही ज़िले और संभवतः प्रदेश में ही आज फ़र्ज़ी किश्म की डिग्री लिए हुए, फार्मेसी और मेडिकल की दुकान खोलने की डिग्री लिए हुए फ़र्ज़ी डॉक्टर सर्जरी और मेडिसिन जैसे बड़े डॉक्टरों का काम कर रहे हैं परंतु सबसे ताजुब्ब की बात यह है की इस सबको सीएमएचओ और फूड्स एंड ड्रग्स डिपार्टमेंट के अधिकारी जानते हैं लेकिन सबकी मासिक बंधी होने के चलते कोई कार्यवाही नही होती. 

    ज़िले के सभी छोटे बड़े कस्बों में इन झोलाछाप का बोलबाला है परंतु यह सब जानते हुए भी शासन प्रशासन कार्यवाही से कतरा रहा है. थाना गढ़ और लालगांव चौकी क्षेत्र में ही अकेले गढ़, तेंदुआ, परासी, कलवारी, कटरा, हिनौती, लालगांव, भठवा सहित अन्य जगहों पर इन झोलाछाप डॉक्टरों ने अपनी दुकानें खोल कर रखी हैं. इनमे ज्यादातर मेडिकल स्टोर में संचालित होते हैं. मेडिकल स्टोर के नाम पर अपना आला पाला रखे हुए यह झोलाछाप डॉक्टर आम जनता की खूब जमकर लूटाई कर रहे हैं. 

   बेचारे गांव के लोग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अभाव और साथ ही जहां भी ऐसे केंद्र बने हुए भी हैं वहां उचित तरीके से संचालित न होने के कारण इन झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में पड़ने को मजबूर हो जाते हैं. छोटी बीमारी की स्थिति में भी मेडिकल दुकान में जाएंगे और मेडिकल दुकान पर बैठे झोलाछाप के चंगुल में पड़ जाएंगे. 2 रुपये का इंजेक्शन 200 रुपये में और 40 रुपये का बॉटल 800 रुपये में चढ़ाएंगे. 

फ़र्ज़ी क्लिनिक तक हैं संचालित, बिना साइन पर्ची, एक्सपायरी डेट की दवाईयां 

   बात मात्र 1 का 11 बसूलने तक ही सीमित नही है. यहां तो बहुत सी समस्याएं हैं जिन्हें गौर किया जाना चाहिए

  --- चूंकि क्लिनिक फ़र्ज़ी होती हैं अतः दवा पर्ची में कौन डॉक्टर इलाज किया इसका कोई सबूत नही छोड़ा जाता. किसी भी पर्ची में डॉक्टर के हस्ताक्षर नही होते. इन दवा पर्चियों में मरीजों के नाम भी नही लिखे रहते.

 --- इन फ़र्ज़ी क्लीनिकों पर कोई ओ पी डी रजिस्टर नही होता. जिससे इस बात की कोई जनकारी नही होती की कौन से मरीज कहाँ से कब आया किसका इलाज किया गया और उसको क्या बीमारी डायग्नोज़ की गई. यह सब इसलिए होता है क्योंकि यदि कहीं भूल से ओ पी डी रजिस्टर बनाया गया तो उससे इन फ़र्ज़ी क्लीनिक पर कार्यवाही हो अक्ति है.

 --- जिस प्रकार एक एम बी बी एस अथवा एम डी डिग्री धारक डॉक्टर अंग्रेज़ी दवा से इलाज करते समय उसका उचित डोज़ और उसके रिएक्शन के होने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के लिए दूसरी दवाईयों की पुख्ता जानकारी रखता है उसके विपरीत इन झोलाछाप डॉक्टरों के पास इसकी कोई जानकारी नही होती. ज्यादातर देखा गया है की मर्ज़ के इलाज के वक्त पहले से ही यह झोलाछाप डॉक्टर एक दो एविल की टेबलेट खिला दिया करते हैं जिससे रिएक्शन ही न हो. पर बिना रिएक्शन हुए ही एविल की गोली खिलाना भी उचित नही. रिएक्शन और दुष्प्रभाव से होने वाली मौत बढ़ रही हैं. जब झोलाछाप के बस में नही रह जाता तो आनन फानन में मरीज को रिलीव करके कट लेते हैं.

 --- क्योंकि मरीज के नाम पर कोई पुख्ता रशीद नही होती इसलिए जी एस टी और अन्य टैक्सेशन से बचे रहते हैं जिससे सरकार के खजाने में चूना लगता रहता है. 

 --- संबंधित ग्रामीण अंचलों में यह झोलाछाप डॉक्टर अपने आपको शांतिदूत बताकर इलाज करते हैं. इनका कहना होता है की यदि आप शहर में जाएंगे तो वहां डॉक्टर आपसे भारी भरकम 500 रुपये की फीस लेगा और दुनिया भर की तकलीफें होंगी. हमारी कोई फीस नही है. इस प्रकार झांसा देकर यह झोलाछाप गरीब और अनपढ़ ग्रामीणों को अपने चंगुल में फंसा लेंगे और उस फीस की वशूली इंजेक्शन, गोली दवा और बॉटल में कर लेंगे. 2 रुपये के इंजेक्शन की कीमत 200 रुपये और 2 रुपये की गोली की कीमत 20 रुपये लेते हैं. इसी प्रकार बिना किसी बीमारी के ही दनादन बोतल चढ़ाते जाएँगे जिस पर जमकर वशूली करेंगे.

रीवा हार्ट स्पेशलिस्ट के डी सिंह ने कहा इस मृत को अब यहां लेकर क्यों आये हो फेंक दो इसे रोड में

अभी हाल ही में कैथा निवासी रामखेलावन द्विवेदी पिता स्व. लोकनाथ द्विवेदी भी इन झोलाछाप और अधूरे ज्ञान वाले डॉक्टरों के चंगुल में फंस गए. गनीमत तो यह थी की आनन फानन में रामखेलावन को रीवा रेफेर किया गया जहां से उनकी स्थिति में सुधार न होने पर भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनका हफ्तों इलाज चला  और तब जाकर राहत मिली. 

   मामला यूं था की रामखेलावन द्विवेदी को डायबिटीज और हार्ट की तकलीफ बतायी गई थी जिसका पहले से रीवा स्थित हार्ट विशेषज्ञ के डी सिंह से इलाज चल रहा था. फिर दवा खत्म होने के कारण गांव में उन्हें तकलीफ बढ़ गई जिस पर उन्होंने कटरा स्थित किसी अधूरी डिग्री और अधूरे ज्ञान वाले झोलाछाप डॉक्टर को दिखा दिया. उस डॉक्टर महाशय ने रामखेलावन को बॉटल ठोंक दिया जिससे ग्लूकोस अधिक हो जाने से शुगर लेवल हाई हो गया. हार्ट में अचानक दर्द बढ़ गया, फेंफड़े में पानी भर गया. जब स्थिति कंट्रोल से बाहर दिखी तो डॉक्टर महाशय ने जबाब दे दिया. रामखेलावन को उहापोह में रीवा लेजाकर संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनके पहले वाले डॉक्टर के डी सिंह को बुलाया गया. के डी सिंह ने जब मरीज को इस स्थिति में देखा तो यहां तक कह दिया की इस मृत शरीर को मेरे पास लेकर क्यों आये हो जाकर फेंक दो रोड में. मतलब यह था की स्थिति 80 प्रतिशत कंट्रोल से बाहर थी. बताया गया की रामखेलावन का हार्ट 80 प्रतिशत डैमेज हो चुका था और बचने के चांस नही थे. इस पर उनके परिजनों ने उन्हें चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया जहां किसी दिल्ली से आये हार्ट विशेषज्ञ आर के सिंह ने जाकर हफ्तों इलाज किया और रामखेलावन को मृत्युशैया से वापस लाया. तो यह कहानी है हमारे देश की मेडिकल फैसिलिटी और चिकित्सकीय अव्यवस्था की. इस पर ध्यान देने वाला कोई नही है जबकि लगभग रोज ही इन झोलाछाप डॉक्टरों के काले कारनामे किसी न किसी मीडिया ग्रुप और न्यूज़पेपर में उजागर होते रहते हैं. इस विषय मे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी गाइड लाइन जारी कर रखी है लेकिन कोई अमल नही हो रहा।

संलग्न - ऐसे ही झोलाछाप डक्टरों की लिखी कुछ दवा पर्चियां जो ग्रामीण मरीजों को दी गईं थी जो वह लाकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को दिखाए हैं यहां पर संलग्न हैं.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र

 मोबाइल - 7869992139, 9589152587

Saturday, April 21, 2018

14 हज़ार लाओ, ट्रांसफार्मर लगवाओ (त्योंथर डी ई और कटरा डीसी में दलाली का दौर जारी, किसानों को 6 माह से किया जा रहा परेशान, जबकि गांव का बिल 75 प्रतिशत से अधिक पूर्ण, मामला कटरा डीसी का)

दिनाँक 21 अप्रैल 2018, स्थान - कटरा डीसी रीवा मप्र

(कैथा, रीवा मप्र - शिवानन्द द्विवेदी)

    ज़िले के विद्युत वितरण केंद्रों में जले हुए ट्रांसफार्मर को बदल कर नए ट्रासंफार्मर लगाए जाने के नाम पर दलाली का दौर जारी है. पुख्ता जानकारी के अनुसार कटरा विद्युत वितरण केंद्र में आज से 6 माह पूर्व अमिलिया ग्राम के दोनो ट्रांसफार्मर जल गए थे. कारण था - कभी भी लाइन मेंटेनेंस का काम का न होना. हाई टेंशन लाइन में फाल्ट और साथ ही एल टी लाइन में भी लगातार लगने वाले फाल्ट की वजह से आज आये दिन नए नए ट्रांसफार्मर जल जाया करते हैं और बिजली विभाग की नजरअंदाजी और उपेक्षा की वजह से करोड़ों की चपत सरकारी ख़ज़ाने में लग रही है.         आखिर रोज़ इतने ट्रांसफार्मर क्यों जल रहे हैं इसके पीछे क्या कारण हैं? ट्रांसफार्मर बदलने में फिर देरी क्यों हो रही है? क्यों आम जनता को अनायास ही परेशान किया जा रहा है जबकि देखा जाए तो औसत और मनमुताबिक बिलिंग का काम लगातार जारी है उसमे कोई सुधार नही हो रहा है. इन सब बातों को लेकर बिजली कंपनी पहले से ही कठघरे में खड़ी है.

राजीव गांधी योजना का ट्रासंफार्मर लगाने के बाद भी नही किया चालू

    वहीं अमिलिया तालाब के पूर्व एवं उत्तर के कोने में मंदिर के पास गरीबों और बीपीएल हितग्राहियों के लिए एक योजना विशेष के अंतर्गत लगाया गया राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन का ट्रांसफार्मर ठेकेदार ने चालू ही नही किया. बताया गया की ठेकेदार सामग्री और चिमनी का तेल आदि लेकर ही भाग गया. ग्रामीणों ने सीएम हेल्पलाइन और थाने में भी रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन कोई सुनवाई नही हुई.

    अमिलिया के उपभोक्ताओं में वैद्यनाथ पटेल ने बताया की मिशन अंतर्गत लगाया  गया ट्रासंफार्मर यदि चालू हो जाता तो गांव के बिजली का काफी हद तक लोड भी नियंत्रित हो जाता जिससे रोज रोज़ ट्रांसफार्मर जलने का टंटा भी टूट जाता. कौसल पटेल द्वारा बताया गया की यद्यपि राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन योजना का ट्रांसफार्मर आज से कई माह पूर्व लगाया गया है और आज तक लाइन सप्लाई नही दी गई है फिर भी मनमुताबिक और औसत बिलिंग भेजी जा रही है. गरीबों को 5 सौ से ऊपर के बिजली बिल भेजे जा रहे हैं जबकि न तो कोई मीटर रीडिंग लेने आता और न ही यह पता करने की कहाँ बिजली चालू है और कहां बन्द. शैलेन्द्र पटेल द्वारा बताया गया की बिजली कंपनी पूरी तरह दलाली और शोषण पर आमादा है. सभी ने के स्वर में बताया की मुख्यमंत्री गरीबों और किसानों के लिए बड़ी बड़ी योजनाओं की बातें कर रहे हैं पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सभी ने राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन अंतर्गत लगाए गए ट्रांसफार्मर को चालू किये जाने की भी बात कही है और बताया है की यदि उनकी बिजली समस्याओं का समाधान समय पर नही हुआ तो सभी ग्रामीण आंदोलन करेंगे जिसकी जिम्मेदार यह शासन प्रशासन होगा.

  6 माह पहले जला ट्रांसफार्मर, नया लगाने के लिए दिया गया 14 हज़ार रुपये का घूस

    त्योंथर डी ई एवं कटरा विद्युत वितरण केंद्र अंतर्गत आने वाले अमिलिया ग्राम के दोनो ट्रांसफार्मर आज से 6 माह पहले जल गए थे. किसानों ने जब गुहार लगाई तो बताया गया की आपके गांव के ट्रांसफार्मर इसलिए नही लगाए जा रहे क्योंकि आपके बिजली बिल बकाया हैं. परंतु गांव वालों ने जल्दी ही बकाया का 40 प्रतिशत से अधिक की बिजली बिल जमा कर दिया और त्योंथर डी ई और कटरा जे ई को नया ट्रांसफार्मर लगाने की गुहार लगाई. तब फिर गांव वालों को बताया गया की 14 हज़ार लाइये तो नया ट्रांसफार्मर लगेगा, इस प्रकार सभी उपभोक्ताओं ने चंदा करके 14 हज़ार इकठ्ठा किया और जब इंजीनियर को दिया तब जाकर एक ट्रांसफार्मर लगा. 

   दूसरे ट्रांसफार्मर के लिए अभी भी माग रहे अतिरिक्त 5 हज़ार रुपये

    ग्राम अमिलिया के ही नियमित बिजली उपभोक्ता और कृषि कार्य हेतु मोटर पंप का कनेक्शन लिए हुए  हितग्राहियों में वैद्यनाथ पटेल पिता राम स्वयंबर पटेल अमिलिया 

आई वी आर एस नंबर -5347051658220,  कौसल पटेल पिता राजधर पटेल अमिलिया,  रामराज पटेल पिता राम पियारे पटेल अमिलिया,  शैलेंद्र पटेल पिता राजेश पटेल अमिलिया,  बृजनंदन पटेल पिता अम्बिका पटेल अमिलिया,  लल्लू पटेल पिता रामसखा पटेल अमिलिया आदि उपभोक्ताओं ने बताया की उन्होंने 6 माह पहले जले ट्रांसफार्मर को बदलने के लिए काफी प्रयाश किये लेकिन बताया गया की अलग से पैसे लगेंगे तभी ट्रांसफार्मर लग पायेगा. अभी बताया गया की जे ई और डी ई ने जमुई सरपंच राहुल पटेल की उपस्थिति में 5 हज़ार अतिरिक्त की माग की है तभी ट्रांसफार्मर लगेगा. इस बाबत सभी ग्रामवशियों ने इकठ्ठा होकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के समक्ष अपनी पीड़ा व्यथा बताई और अमिलिया हायर सेकेंडरी स्कूल परिषर में ट्रांसफार्मर के पास अपना वक्तव्य और साक्षात्कार भी दिया है. जिसमे सभी ने 14 हज़ार और 5 हज़ार दलाली के तौर पर लिए जाने वाले राशि को एकमत से स्वीकारा है और साथ ही अपने ट्रांसफार्मर को लगाए जाने की माग की है. लोगों ने बताया कि उनके घूस में लिए गए पैसे की वापसी होनी चाहिए साथ ही बिजली न उपयोग किये जाने के कारण 6 माह से लगातार दिया जा रहा अवैधानिक बिल भी काटा जाना चाहिए।

   आज इस सूखा अकाल में किसान पहले से ही मारा गया है और ऐसे में यदि सरकारी विभागों द्वारा इस प्रकार उन्हें टार्चर और शोषण किया जाएगा तो किसान का त्रस्त होकर और अधिक मरना और अतमहत्या करना तय है और तब सरकारें इस बात को गंभीरता से नही देखेंगी आखिर क्या वजहें थीं की किसान आत्महत्या कर रहे हैं. अब प्रश्न यह उठता है की ग्रामीण इलाकों में सरकारी नियमानुसार पूरे गांव के बकाया का 20 प्रतिशत और उपोभोक्ताओं की संख्या का 50 प्रतिशत में से दोनो में से कोई भी कंडीशन की पूर्ति होने पर आज तत्काल 24 घंटे में नया ट्रांसफार्मर लगाए जाने का प्रावधान है तो जब सभी कंडीशन पूर्ण हो रही हैं तो आखिर यह बिजली कंपनी क्यों मनमानी करने में तुला है ? आखिर बिजली कंपनी को सरकार के फरमान के अनुरूप काम करने में क्या आपत्ति है? आखिर किसान और परेशान जनता बिजली कंपनी के अधिकारियों को क्यों अलग के घोंस दें? जो बिजली अधिकारी यह घूंस की मांग कर रहे हैं और पूरा गांव इस बात को एक स्वर में बोल रहा है तो इनके ऊपर लोकायुक्त और ई ओ डब्लू द्वारा प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही क्यों न की जाए?

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   जब इस विषय मे जिम्मेदारों से बात की गयी तो उनका यह कहना था

 1) "कटरा डीसी में कुछ ट्रांसफॉर्मर जले थे जिनमें एक को बदल दिया गया है। हमारी त्योंथर डी ई से बात हुई है। ट्रांसफार्मर एक दो दिन में आ जाएंगे तो जल्दी ही बदल दिए जाएंगे। 14 हज़ार लेकर ट्रांसफॉर्मर बदले जाने की जानकारी हमे नही है। राजीव गांधी विद्युतीकरण मिशन योजना अन्तर्गत ट्रांसफार्मर के विषय मे जानकारी हमे नही थी। पर आपने बताया है तो हम बजाज कंपनी का काम देखने वाले एरिया इंजीनियर अनिल द्विवेदी से कहकर जल्द ही सुधार कार्य करवा देंगे।" - अभिषेक सोनी, कनिष्ठ यंत्री पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण केंद्र कटरा, रीवा मप्र।

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2) "अभी तक यह बात हमारे संज्ञान में नही थी कि अमिलिया ग्राम का ट्रांसफॉर्मर जला हुआ है। लेकिन आपने बताया है तो हम जे ई कटरा से जायज़ा लेकर जल्द ही बदलवाने का प्रयास करेंगे। हम इसको जल्द ही दिखवाते हैं।" - त्योंथर डी ई श्री पटेल

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   संलग्न - ज़िले के कटरा डीसी और त्योंथर डी ई अंतर्गत आने वाले अमिलिया ग्राम के त्रस्त और परेशान किसान और उनके परिवार जो की 6 माह से जले पड़े ट्रांसफार्मर के पास खड़े हुए हैं और साथ ही पास स्थित एक वृहद तालाब और उसके पास अमिलिया हायर सेकेंडरी स्कूल.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र

  मोबाइल  - 7869992139, 9589152587

Friday, April 20, 2018

चंद महीने में ही पीसीसी सड़क के उड़े परखच्चे (मामला गंगेव जनपद अंतर्गत मदरी पंचायत के संतोष शुक्ला के घर के पास बनी पीसीसी सड़क का, रीवा मप्र)

दिनांक 21 अप्रैल 2018, स्थान - गंगेव जनपद रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र - शिवानन्द द्विवेदी)

   ज़िले के गंगेव ब्लॉक में एक और भष्ट्राचार का मामला प्रकाश में आया है जिसमे जनपद के मदरी पंचायत में कैलाश हायर सेकेंडरी प्राइवेट स्कूल के पीछे और संतोष शुक्ला के घर के पास अभी महज़ कुछ महीने पहले बनाई गई पीसीसी सड़क के परखच्चे उड़ गए हैं. 

सचिव सरपंच के आगे जनपद और ज़िला सीईओ भी हुए नतमस्तक

    ग्राम मदरी निवासी अवधेश गर्ग, राकेश शर्मा उपाध्याय, गौरव शुक्ला, स्वतंत्र शुक्ला, सौरभ शुक्ला, संतोष शुक्ला, पास स्थित हरिजन परिवार, और अन्य पंचायती हितग्राहियों द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को बताया गया की पिछले 4 से 5 माह पहले बनाई गई इस पीसीसी सड़क के विषय में सीएम हेल्पलाइन और अन्य लिखित माध्यमो से शिकायत जनपद और ज़िला स्तर पर की गई थी लेकिन कोई सुनवाई नही हुई. मदरी के किसान और कांट्रेक्टर राकेश शर्मा उपाध्याय द्वारा बताया गया की उन्होंने इस बात को लेकर लिखित कंप्लेन दर्ज करवाई थी लेकिन कोई कार्यवाही नही हुई. बता दें की मदरी ग्राम पंचायत में मनरेगा और पंच परमेश्वर के कार्यों में भारी अनियमितता देखी गई है जिस पर समय समय पर आवाज़ उठाई जाती रही है लेकिन मदरी ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिव दिनेश उपाध्याय ने मिलकर पूरे पंचायती कार्यों की व्हाट लगा दी है और जनपद सीईओ और ज़िला सीईओ भी इनके सामने बौने साबित हो रहे हैं.

शान्तिधाम, खेल मैदान, चबूतरे सहित दर्जनों पंचायती कार्यों में हुआ भष्ट्राचार

     ग्राम पंचायत मदरी के हितग्राहियों सौरभ शुक्ला, अवधेश शुक्ला, राकेश उपाध्याय, स्वतंत्र शुक्ला, सहित दर्जनों लोगों ने बताया की मात्र पीसीसी सड़क ही नही यहां तो पूरे पंचायती कार्यों में ही फर्ज़ीवाड़ा चल रहा है. शान्तिधाम, खेल मैदान, चबूतरा निर्माण सहित सड़क एवं पीसीसी रोड के निर्माण में भारी धांधली देखने को मिली है. बताया गया की पीएम आवास में भी मनमानी का दौर जारी है जिसमे अपात्र लोगों के नाम आवास योजना का लाभ दिया जा रहा है जबकि वास्तविक हितग्राहियों को पीछे छोंड़ दिया गया है.

मनरेगा जॉबकार्ड धारकों का ए टी एम लेकर निकाला जा रहा है पैसा

  बताया गया की आजकल मनरेगा जॉबकार्ड धारकों के संबंधित बैंक खातों का ए टी एम बैंक कर्मियों की सांठगांठ से इशू करवा लिया जाता है, जिसे सरपंच सचिव और उनके चमचे अपने पास रखते हैं और बिना मनरेगा हितग्राहियों की जानकारी के ही दनादन पैसा निकाला जा रहा है. यह फर्जीवाड़ा भी किसी एक पंचायत तक सीमित नही है. जनपद और ज़िले और संभवतः इस पूरे प्रदेश में आज यही चल रहा है जिसकी भी शिकायतें समय समय पर की जाती रही हैं.

   बिना काम के ही फ़र्ज़ी मस्टर रोल जारी करना, अपने पक्ष के कुछ चमचों का सरपंचों सचिवों द्वारा उस फ़र्ज़ी मस्टर रोल में नाम दर्ज कर देना जिससे जांच के दौरान बयान न बदल पाएं, उन मजदूर चमचों को कुछ दो चार सौ रुपये देकर फुरसत कर देना और बांकी का माल अपने पास रख लेना यह आज लगभग सभी पंचायतों में आम बात है. 

   दूसरे सब्दों में देखा जाए तो केंद्र सरकार की यह बहु उद्देशीय मनरेगा योजना फ्लॉप साबित हो रही है या यूं कहें की मनरेगा के नाम पर माजदूरों का शोषण किया जा रहा है जिसकी जानकारी तक माजदूरों को नही हो पाती और जिन्हें हो भी पाती है उनको कुछ दो चार सौर रुपये पकड़ाकर चुप करवा दिया जाता है.

संतोष शुक्ला के घर के पास पीसीसी सड़क की गुणवत्ता की जांच कर हो रेकवरी

  मदरी निवासी संतोष शुक्ला, गौरव शुक्ला, हरिजन बस्ती, अवधेश शुक्ला, राकेश शर्मा उपाध्याय सहित कई लोगों ने इस पीसीसी सड़क निर्माण में हुए गुणवत्ता की अनदेखी और फ़र्ज़ीवड़े की गहन जांच कर पूरे शासकीय राशि के रिकवरी की बात कही है और साथ ही सरपंच सचिव के ऊपर भष्ट्राचार उन्मूलन के तहत ई ओ डब्लू और लोकायुक्त के माध्यम से भी कार्यवाही की अपील की है. आगे बताया है की इस बात को ज़िले से लेकर प्रदेश और यहां तक की पी एम ओ लेवल तक उठाया जाएगा और पंचायती राज अधिनियम की धारा 40 और 92 के तहत कार्यवाही की माग की है. इस विषय में यदि तत्काल कार्यवाही कर दोषियों को दंडित नही किया गया तो पंचायत वाशियों ने याचिका दायर करने की भी बात कही है.

संलग्न - कृपया संलग्न पीसीसी सड़क की फ़ोटो देखने का कष्ट करें.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता,रीवा मप्र

 मोबाइल - 7869992139, 9589152587

Thursday, April 19, 2018

शौचालय और पानी का गहरा रिश्ता इसलिए भी स्वच्छ भारत मिशन हुआ फ्लॉप, साथ ही पीएम आवास के रोके 30 हज़ार से अधिक की राशि, बिना कमीशन के न तो निकासी और न ही जमा, शौचालय के गड्ढे खोदकर छोड़े (मामला हिरुडीह, हिनौती सहित गंगेव ब्लॉक रीवा की अधिकतर पंचायतों का)

दिनांक 19 अप्रैल 2018, स्थान - गंगेव ब्लॉक रीवा, मप्र

(कैथा, रीवा मप्र- शिवानन्द द्विवेदी)

    केंद्र सरकार की बहुचर्चित प्रधानमंत्री आवास योजना भी दलालों के चंगुल में फसती जा रही है. बहुत पहले से ही इस योजना पर शिकायतें आ रही थीं की दलालों को बिना कमीशन दिए तीन से 4 मुख्य किस्तों में दिया जाने वाला दो क़िस्त का 40 हज़ार प्रति क़िस्त की राशि और 25, 15 एवं 18 हज़ार की राशि हितग्राहियों के खातों में सही समय पर नही भेजी जा रही थी. पहले पहल इस योजना में प्रथम दो क़िस्त 40 हज़ार की रखी गई थी और तीसरी क़िस्त 25 हज़ार की थी इस प्रकार 1 लाख पांच हज़ार रुपये की राशि छत डाले जाने तक हितग्राही के खाते में भेजी जाती थी. शेष 15 हज़ार की राशि छत डाले जाने के बाद प्लास्टर और छपाई के लिए भेजी जाती थी. शेष बचे 30 हज़ार में 18 हज़ार रुपये पक्का मकान बनाने के लिए मनरेगा की मजदूरी होती थी जो मनरेगा स्कीम द्वारा हितग्राहियों के सीधे खातों में भेजे जाने का प्रावधान है. इस प्रकार डेढ़ लाख में अभी भी शेष 12 हज़ार बचते हैं जो उन हितग्राहियों को जिनके घरों में शौचालय नही बने हुए हैं शौचालय बनाये जाने के लिए खातों में डाले जाने चाहिए. पर अब हम आपको रिसर्च करने पर जो जानकारी ग्रामीणों से एकत्रित हुई है वह वास्तविकता बताते हैं. मामले तो लगभग सभी पंचायतों में हैं लेकिन यहां पर हम केवल एक दो पंचायतों का ही जिक्र करेंगे जिससे पीएम स्कीम की हकीकत का काफी हद तक वास्तविकता का पता चल जाएगा.

कैथा, हिरुडीह और हिनौती पंचायत की हरिजन बस्ती में नही बने शौचालय, बने भी होते तो बिन पानी के किस काम के

       अभी पिछले दिनों पानी के संकट के सिलसिले में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा कैथा, हिरुडीह, हिनौती सहित कई पंचायतों का भौतिक परीक्षण के उद्देश्य से जाया गया और वहां जो हकीकत सामने आई वह रीवा ज़िले क्या पूरे प्रदेश के ग्राम क्षेत्रों की दुर्दशा को ही बयां करती है.

     हरिजन बस्ती हिरुडीह के दो तीन महिला हितग्राहियों द्वारा उनके घरों के पीछे बनाये गए पुराने शौचालय को दिखाया गया जिसकी की फ़ोटो भी संलग्न है जिसमे पाया गया की मात्र तीन साइड से दीवाल बनी हुई है. शौचालय के दीवाल की ऊँचाई 4 फ़ीट भी नही है. उसके अंदर बैठना तो दूर कोई घुस भी नही सकता था. शौचालय में कोई गेट नही लगे थे. शौचालय खंडहर बने थे. भाठे थे. किसी काम के नही थे. मात्र दिखावे के तौर पर बने थे. शौचालय की राशि निकाल ली गई और जनता और सरकार को चूना लगा दिया गया था. कई तो मात्र गढ्ढे बस खोदकर छोड़ दिये थे।

    अब प्रश्न यह भी था की यदि यह शौचालय बने हुए भी होते तो इस गर्मी में 4 महीने किस काम के थे. क्या बिना पानी के उपयोग किये जा सकते थे? नही, बिल्कुल नही. पीने के लिए पानी ही नही तो शौचालय के लिए पानी कहाँ से मिलता. 

   अब आ जाते हैं हिनौती पंचायत में तो यहां भी हिरुडीह हरिजन बस्ती से ज्यादा बेहतर स्थिति नही है. हिनौती पंचायत के हरिजन आदिवाशी बस्ती में जाकर देखा और लोगों से मिला तो हितग्राहियों ने वही पीड़ा व्यक्त की. पहले तो शौचालय बने ही नही हैं. जो बने थे वह खंडहर थे. किसी काम के नही थे. मात्र गढ्ढे खोदकर छोंड़ दिए गए थे. अब यदि मान लिया जाए की बने भी होते तो क्या किसी काम के होते? नही, क्योंकि बिना पानी के इन गर्मियों के 4 माह मात्र शोपीस बने रहते.

     अमृतलाल साकेत, पार्वती साकेत, भैयालाल साकेत सहित कई हितग्राहियों ने बताया की स्वच्छ भारत मिशन हमारे यहां पूरी तरह से नाकाम है और हमे कोई जानकारी नही की शौचालय के नाम पर बांटी गई राशि का क्या हुआ, किसे मिली किसे नही मिली. हिनौती पंचायत में बताया गया की उनकी पंचायत उत्कृष्ट पंचायत है और 50 हज़ार का केंद्र से इनाम भी पा चुकी है. अब यह इनाम भष्ट्राचार में अग्रणी होने के लिए दिया गया या विकास के लिए क्योंकि विकास तो कहीं दिख नही रहा.

   हिरुडीह,  हिनौती सहित अधिकतर पंचायतों में पीएम आवास में कमीशन खोरी 

  हिरुडीह निवासी अमृतलाल साकेत द्वारा बताया गया की उसे चार क़िस्त में दी जाने वाली राशि पूरी नही दी गई है और सहायक सचिव और सचिव ने उनसे कमीशन लिया है. जिन्होंने कमीशन नही दिया उनकी राशि रोक कर रखी और घर बनाने में कमियां गिना दी. बता दिया की सीईओ और पीसीओ साहब पास नही कर रहे. अमृतलाल साकेत ने बताया की उसे मनरेगा की मजदूरी के नाम पर दिए जाने वाले 18 हज़ार रुपये भी अभी तक पूरे नही डाले गए हैं जबकि उसने मकान काफी समय पहले बनवा लिया है। जबकि कई बार अमृतलाल साकेत सहित कई हितग्राहियों ने गुहार लगाई है. लेकिन कहीं कोई सुनवाई नही की जा रही है. इसी प्रकार हिनौती पंचायत के कई हितग्राहियों ने भी क़िस्त डालने में देरी, मनरेगा मजदूरी में देरी और साथ ही कमिशनखोरी की बात कही है. इन सभी समस्याओं के चलते आज तक पीएम आवास के पूरे पैसे हितग्राहियों को नही मिल पा रहे हैं साथ ही उनके घरों में शौचालय भी नही बने हुए हैं.

संलग्न - 1) हिरुडीह हितग्राही अमृतलाल साकेत और उसके परिवार की फ़ोटो, गंगेव ब्लॉक रीवा मप्र.

    2) हिरुडीह पंचायत के दो बुजुर्ग हरिजन महिलाओं की उनके घरों के पीछे दसकों पुराने बनाये गए अधूरे पड़े यूजलेस शौचालयों की फ़ोटो, गंगेव ब्लॉक रीवा मप्र.

    3) हिनौती पंचायत के हरिजन बस्ती के बने हुए घटिया शौचालय, अधूरे पड़े गड्ढे खुदे पड़े, और उसके पास दुर्दशा दिखाते हिनौती पंचायत के हितग्राही, गंगेव ब्लॉक रीवा मप्र.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,रीवा मप्र,

   मोबाइल - 7869992139, 9589152587,

Tuesday, April 17, 2018

भोपाल कार्यपालन यंत्री अनुराग श्रीवास्तव की अगुआई में पी एच ई टीम ने रीवा ज़िले का किया दौरा (गंगेव की बांस पानी टंकी, हिरुडीह सहित टंकियों की राशि जारी काम का चल रहा इन्तेज़ार, त्योंथर की डाढ़, कलवारी और जमुई पंचायत का भी लिया व्योरा, ग्रामीणों को कार्य पूर्ण करने का आश्वासन )

दिनाँक 17 अप्रैल 2018, स्थान - गंगेव/त्योंथर रीवा मप्र।

(कैथा, रीवा मप्र - शिवानंद द्विवेदी)

    पिछले कुछ सप्ताह पहले सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा प्रदेश पी एच ई विभाग और मानवाधिकार आयोग तक उठाये गए जल संकट के विषय मे कार्यवाही के तौर पर प्रदेश स्तरीय अधिकारी भोपाल इंजीनियर इन चीफ द्वारा गठित बहु सदस्यीय टीम दिनाँक 17 अप्रैल 2018 को गंगेव और त्योंथर ब्लॉक पहुची जिसके सदस्यों में भोपाल से कार्यपालन यंत्री अनुराग श्रीवास्तव, रीवा जिले के कार्यपालन यंत्री शरद कुमार सिंह, गंगेव उपयंत्री अखिलेश उइके, मऊगंज कार्यपालन यंत्री पी एस बुंदेला, एस डी ओ इन चार्ज त्योंथर आनंद तिवारी सहित अन्य कर्मचारी थे।

    अपने आगमन के पूर्व इन अधिकारियों द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता को फ़ोन में सूचित किया गया जिनकी उपस्थिति में कैथा, हिनौती, डाढ़, बांस,  हिरुडीह पंचायतों में जाकर बन्द पड़ी नलजल योजना और काम न कर रहे नलकूपों की जानकारी ली गई। लोगों से संपर्क कर उनकी समस्याएं सुनीं और निराकरण का आश्वासन दिया। 

    जानकारी के तौर पर अधिकारियो द्वारा बताया गया कि हिनौती की नलजल योजना को प्रारम्भ करने की कार्ययोजना चल रही है। सरपंच के खाते में पिछले साल कुछ 46 हज़ार रुपये भेजे गए हैं लेकिन अब तक क्यों कार्य नही हुआ, क्यो मोटर पंप नही डाला गया इस पर अधिकारियों ने सरपंच को अल्टीमेटम दिया है। बांस के दौरे में रीवा कार्यपालन यंत्री शरद कुमार द्वारा बताया गया कि बांस पानी की टंकी से पाइप लाइन जोड़ने का काम उनके कार्यालय के पास है जिस पर कार्य चल रहा है। जल्द ही पूरा होगा। हिरुडीह पंचायत के विषय मे रीवा कार्यपालन यंत्री सिंह द्वारा बताया गया कि 2 लाख रुपये के आसपास पंचायत के खाते में भेजे जा चुके हैं और सरपंच के काम का इनतजार चल रहा है। काम पूरा नही होने पर सभी सरपंचों के ऊपर कार्यवाही की प्रक्रिया और धारा 40 की कार्यवाही हेतु अनुविभागीय एवं दंडाधिकारी के पास प्रस्ताव भेजा जाएगा।

    हिनौती के बड़ोखर ग्राम में हरिजनों की पानी के समस्या के विषय मे बताया गया कि करहिया ग्राम में मोटर पंप लगे हुए बोरवेल के पास एक सिंटेक्स पानी की टंकी रखकर पानी की सप्लाई की जाएगी जिसके लिए विभाग ने पंचायत से प्रस्ताव की माग की है। जितना जल्दी प्रस्ताव बन जायेगा उतना जल्दी नलकूप पानी की टंकी रख दी जाएगी।

    करहिया लोनियान टोला के पास प्रजापति बस्ती के पास स्थित बोरवेल में हैंडपम्प नही डाले जाने के पीछे जानकारी लेने पर बताया गया कि यह नलकूप पंचायत विभाग द्वारा कराया गया है अतः हैंडपम्प भी पंचायत ही डाले। इसमे पी एच ई का कोई रोल नही है। 

    इस विषय मे भी त्योंथर जनपद सीईओ महावीर जाटव और सीईओ जिला पंचायत मयंक अग्रवाल को भी सूचित किया जा चुका है और कार्यवाही का आश्वासन मिला है।

   भोपाल से आये कार्यपालन यंत्री अनुराग श्रीवास्तव द्वारा जानकारी दी गयी कि अगले दौर में हनुमना जाएंगे जहां पानी की समस्या और जमीनी हकीकत का जायज़ा लेंगे।

संलग्न - अपने गंगेव दौरे के दौरान हिनौती, बांस और बड़ोखर आदि ग्रामों में नलजल योजना की हकीकत की जानकारी लेते अधिकारी। 

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शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र। 7869992139

पानी की कहानी प्यासों की जुबानी - त्योंथर की 17 पंचायतों को पानी के लिए दिए 25 लाख रुपये, अब तक काम शून्य (मामला ज़िले के त्योंथर ब्लॉक अंतर्गत 17 पंचायतों का जिसमे 12 को दिए लगभग 1 लाख और 5 को ज़िला पंचायत से मिले लगभग 2 लाख, फिर भी कोई काम नही, पूरी राशि हजम करने की कर ली तैयारी, ज़िला और जनपद पंचायत बना अनजान)

दिनांक 17 अप्रैल 2018, स्थान - त्योंथर ब्लॉक, रीवा मप्र

(कैथा, रीवा मप्र - शिवानन्द द्विवेदी)

  ज़िले में जल संकट दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है और आम जनता का पानी के लिए जद्दोजहद रोज बढ़ती जा रही है पर यहां के ज़िला प्रसाशन की चाल ढाल में कोई परिवर्तन नही दिख रहा है. ज़िले भर में प्रतिदिन हज़ारों शिकायतें सीएम हेल्पलाइन, मोबाइल फोन और लिखित मौखिक तौर पर आम जनता प्रेषित कर रही है लेकिन जुजबी ही कुछ शिकायतों को निपटाकर पल्ला झाड़ लिया जा रहा है.

  आम जनता की आवाज को सुनने वाला कोई नही मात्र मीडिया ही सहारा बना है जो पानी की भीषण समस्या को रोज़ अखबारों के माध्यम से उठा रहा है.

  त्योंथर पी एच ई कोऑर्डिनेटर अमित मिश्रा ने डाढ़ जमुई पंचायत का किया दौरा

  दिनांक 16 अप्रैल को दोपहर त्योंथर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कोऑर्डिनेटर अमित मिश्रा ने नजदीकी ग्राम पंचायतों डाढ़ और जमुई का दौरा कर नलजल योजनाओं और नलकूप की स्थिति का जायज़ा लिया. बताया गया की न ही डाढ़ और न ही जमुई में सही तरीके से नलजल योजना संचालित हो रही है. डाढ़ में थोड़ी स्थित कंट्रोल में है पर जमुई पंचायत में लगभग 1 लाख 30 हज़ार के आसपास ज़िला पंचायत के खाते से पंचायत के खाते में पिछले साल भेजे जाने के वावजूद भी अब तक नलजल योजनायों की पानी की टंकी में कोई पानी नही आया है और कोई पाइप लाइन भी अब तक नही बिछ पायी हैं.

     अमित मिश्रा ने आगे करहिया का रुख किया और लोनियान टोला प्रजापति बस्ती के पास पंचायत द्वारा कराए गए नलकूप को देखा जिसमे आज साल भर से कोई हैंडपम्प नही पड़ा है. अमित मिश्रा ने आगे बताया की त्योंथर के विधायक कोटे और पंचायतों के कई नलकूपों के यही हाल हैं. यह सब ठेकेदारों की मिलीभगत का परिणाम है.

   बिन्नू पाठक द्वारा करवाये गए नलकूप उत्खनन में काफी है शिकायतें

    बताया गया की करहिया के प्रजापति बस्ती में पिछले वर्ष हुए नलकूप उत्खनन सहित दर्जनों विधायक निधि वाले नलकूप उत्खनन का काम बरहट निवासी बिन्नू पाठक बोरवेल कंपनी द्वारा करवाया गया है और इनके द्वारा कराए गए ज्यादातर बोरवेल में धंस जाने से लेकर घटिया सामग्री डालना और यहां तक की करहिया प्रजापति लोनियान बस्ती जैसे बोर में हैंडपम्प तक न डालना जैसी शिकायतों का अम्बार है जिससे पी एच ई विभाग स्वयं परेशान है. पी एच ई अधिकारियों द्वारा नाम न बताए जाने की शर्त पर बताया गया की किसी एक सरपंच ने तो यहां तक कहा की जितने पैसे में पी एच ई विभाग एक नलकूप का उत्खनन करवाता है पंचायत उतने में तीन नलकूप उत्खनन करवा सकती है. तब ऐसे में गुणवत्ता से लेकर अधिक राशि तक की प्रति नलकूप उत्खनन जैसे कई गंभीर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं.

  त्योंथर की 17 पंचायतों को लगभग 22 लाख से अधिक राशि ग्रीष्मकालीन जल संकट से निपटने मात्र के लिए जिला पंचायत से दी गई

    लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों  द्वारा बताया गया की जो जानकारी उन्हें है उसके मुताबिक मात्र ज़िला पंचायत के द्वारा ही नलजल योजनायों के क्रियान्वयन के लिए त्योंथर ब्लॉक की 17 पंचायतों को 25 लाख के आसपास की राशि दी गई है जिसका की भौतिक धरातल पर कोई रता पता नही है. इन 17 पंचायतों में 12 पंचायत ऐसी हैं जिनको प्रति पंचायत कुछ कम अर्थात लगभग 1 लाख के आसपास की राशि दी गई है जबकि 5 पंचायतें ऐसी हैं जिन्हें लगभग 2 लाख की राशि दी गई है. लेकिन आज पिछले वर्ष से पंचायतों के खातों में इस राशि के समायोजन के बाद भी पंचायती भष्ट्रचार के कारण कोई भी काम नही हो पा रहा है. पंचायत के सरपंचों की हिटलरशाही के चलते जनता बूंद बूंद पानी के लिए तड़प नही है. मनरेगा में धांधली तो बहुत आम बात थी अब पानी के नाम पर जनता के खून चूसने का भी दौर चल पड़ा है।

त्योंथर सीईओ महावीर जाटव ने कार्यवाही का दिया मात्र आश्वासन

   दिनाँक 17 अप्रैल की सुबह जनपद त्योंथर सीईओ महावीर जाटव से सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता शिवानन्द विवेदी की बात हुई जिसमे जाटव द्वारा बताया गया की उन्हें इसकी जानकारी नही थी और इसे दिखवा कर कार्यवाही करवाएंगे. डाढ़ पंचायत के करहिया ग्राम में लोनियान टोला की प्रजापति बस्ती के विषय में बताए जाने पर की पंचायत द्वारा करवाये गए नलकूप में हैंडपम्प नही पड़ा है, इस पर मात्र कार्यवाही का आश्वाशन मिला. अब देखना यह है की यह पंचायत विभाग वाले आगे क्या गुल खिलाते हैं.

सीईओ ज़िला पंचायत मयंक अग्रवाल द्वारा जानकारी लेकर कार्यवाही का आश्वासन

   इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता की ज़िला पंचायत सीईओ मयंक अग्रवाल से भी बात हुई जिस पर मानवाधिकार कार्यकर्ता द्वारा व्हाट्सएप्प पर ज़िला पंचायत सीईओ को ब्लॉक गंगेव और त्योंथर की बन्द पड़ी नलजल योजनाओं और दुर्दशापूर्ण नलकूपों की स्थिति बताई गई. साथ ही रोज़ अखबारों में प्रकाशित मानवाधिकार का हनन सम्बंधी भीषण जल संकट की स्थिति की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियां भी भेजीं गईं.

   ज़िला पंचायत रीवा सीईओ द्वारा बताया गया की वह इसे गंभीरता से लेंगे. पानी की समस्या एक महत्वपूर्ण इशू है और सॉल्व किया जाएगा. वहरहाल अभी तक मात्र हर स्थान के आश्वासन ही मिल पाया है. 

   बता दें की गंगेव जनपद अंर्तगत हिनौती पंचायत, बांस पंचायत और हिरुडीह पंचायत की बुरी तरह से ठप्प पड़ी नलजल योजनाओं का स्वयं भौतिक सत्यापन कर सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा यह मुद्दा मीडिया के माध्यम से उठाया गया था. जिस पर सभी विभागों के होश उड़े हुए हैं.

  जल संकट का मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष भी गया

    बात यहीं तक नही रुकी है, मॉनव के मूलभूत अधिकारों में से एक पीने का स्वच्छ पानी की समस्या ज़िले से लेकर प्रदेश स्तर और यहां तक की राष्ट्रीय स्तर तक पहुचाई जा चुकी है. भोपाल में बैठे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी के इंजीनियर इन चीफ, जबलपुर जोन पी एच ई के चीफ इंजीनियर गौड़ से लेकर अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली तक मामला उनके संज्ञान में लाया जा चुका है और कार्यवाही भी प्रारम्भ हो चुकी है.

   भोपाल से पी एच ई के विशेष दल की रीवा संभाग विजिट, मामला जिले में जल संकट की जांच का और उस पर कार्यवाही का

    जैसा की पहले भी बताया गया था की जब ज़िले में जल संकट का मामला भोपाल इंजीनियर इन चीफ के समक्ष रखा गया था तो वहां से कई सदस्यीय टीम का गठन कर जांच करने के उद्देश्य से भेजे जाने की बात आई थी. उसी सिलसिले में कार्यपालन यंत्री रीवा शरद कुमार सिंह द्वारा जानकारी दी गई की श्री श्रीवास्तव की अगुआई में टीम रीवा पहुच चुकी है जो दिनाँक 17 अप्रैल को गंगेव ब्लॉक में दौरा कर जल संकट की वास्तविक स्थिति का जायज़ा लेंगे.

  त्योंथर ब्लॉक में मऊगंज कार्यपालन यंत्री पी एस बुंदेला का भी होगा दौरा

     पिछले दिनों मऊगंज कार्यपालन यंत्री पी एस बुंदेला द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता को बताया गया की त्योंथर ब्लॉक की घाट के ऊपर की पंचायतों का जल्द ही दौरा किया जाकर पानी की स्थिति का जायज़ा लिया जाएगा. मऊगंज कार्यपालन यंत्री को ब्लॉक के जलसंकट के विषय में मौखिक, मोबाइल फ़ोन और व्हाट्सएप्प आदि के जरिये कई बार सूचित किया जा चुका है.

 जांचों और सरकारी दौरों के नाम पर होगी कोरम पूर्ति अथवा होगी कोई सार्थक कार्यवाही?

    अब देखना यह होगा की सरकारी अधिकारियों के इन दौरों और जांचों का आम जन जीवन में व्याप्त भीषण जल संकट का क्या असर पड़ता है? क्या पहले जैसे ही यह भी मात्र कोरम पूर्ति बनकर रह जाएंगी की इनकी आधिकारिक विजिट और दौरों का कुछ असर भी पड़ेगा? क्योंकि हर वर्ष ही गर्मियों में जब पानी को लेकर हाहाकार मचता है तो सभी की नींदें उड़ जाती हैं और हाँथ पैर हिलाना चालू कर देतें हैं. आश्वासन और जांचों का दौर प्रारम्भ हो जाता है, दौरे होते हैं, बजट पास होता है, राशि और सामग्री का कागजों पर खूब आवंटन किया जाता है. कागजों में हर पंचायतों में मोटर पंप की स्वीकृति की जाती है और वह राशि संबंधित विभागों के खातों में भी भेज दी जाती है पर वास्तविक तौर पर देखा जाए तो आने वाले हर वर्ष में स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है. आख़िर इतनी जांचें और इतनी राशि का क्या होता है? क्यों भौतिक धरातल पर कोई कार्यवाही नही होती? क्या आम जनता मात्र कागजों पर और आश्वासन का पानी पीकर अपनी प्यास तृप्त कर सकती है? यह सभी अनुत्तरित प्रश्न इस देश के जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों से पूँछ रहे हैं की क्या इसी प्रकार से जनता और देश की सेवा के लिए इन अधिकारी कर्मचारियों ने नौकरी की थी? क्या यही आशय लेकर सरकारी नौकरी में आये थे? यदि हमारे देश के यह अधिकारी कर्मचारी अपने कर्तव्यों के प्रति और इस जनता के टैक्स से प्राप्त होने वाले पैसे जिसमे की इन्हें पेमेंट दी जाती है उसके प्रति जिम्मेदार हो जाएं तो फिर किस आसमाजिक तत्व और किस दो कौड़ी के नेता में इतनी दम है की देश के विकास को रोक पाए. आज आवश्यकता है ऐसे सभी अधिकारियों को अपने जमीर में झांकने की और वो दिन याद करने की जब वह स्कूल कॉलेज में थे और देश की  दुर्दशा को देखकर उनके मन में देश सेवा की जो ललक उठती थी उसे याद करने का समय है. 

संलग्न - 1) त्योंथर सीईओ महावीर जाटव से बातचीत के अंश

    2) सीईओ ज़िला पंचायत मयंक अग्रवाल के बातचीत के अंश.

    3) मऊगंज कार्यपालन यंत्री पी एस बुंदेला से बातचीत के अंश,

   4) बदहाल पानी की स्थिति और परेशान लोग.

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  -शिवानंद द्विवेदी सामाजिक मानवाधिकार कार्यकर्ता रीवा मप्र। 7869992139, 9589152587