दिनाँक 10 मई 2018, स्थान गढ़/गंगेव रीवा मप्र
(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानंद द्विवेदी)
किसान का नाम - गोकुल केवट पिता छोटेलाल केवट निवासी ग्राम कैथा, थाना गढ़, रीवा मप्र
खरीफ वर्ष 2017 की खेती -
बुबाई डेढ़ एकड़- 24 कुरई में
12 कुरई अधिया, 12 कुरई स्वयं,
धान बीज - 900 रुपये,
यूरिया खाद - 2 बोरी 700 रुपये,
सुपर फोस्फेट - 400 रुपये,
जुताई - 21 सौ रुपये, तीन घंटे का,
निराई - 3000 रुपये,
सिचाई - 600 रुपये (स्वयं का मोटर पंप नही)
कटाई - 3000 रुपये,
गहाई - 2000 रुपये,
कुल खर्च खरीफ वर्ष 2017 = 12 हज़ार 7 सौ रुपये।
कुल धान का उत्पाद - 12 कुरई स्वयं की बुबाई में - 8 क्विंटल , 12 कुरई अधिया का भी 8 क्विन्टल, अधिया से प्राप्त मात्र 4 क्विन्टल, अतः कुल कमाई 12 क्विन्टल के आसपास।
कुल धान की उपज वर्ष खरीफ 2017 = 12 गुणा 1550 = 18600 रुपये,
कुल कमाई धान खरीफ वर्ष 2017 = कुल धान उपज - कुल धान लॉगत = 18600 - 12700 = 5900 रुपये छमाही आमदनी. (जबकि 2 व्यक्ति 6 माह लगातार काम किये जिनका 200 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से 400 रुपये प्रतिदिन का 72 हज़ार रुपये 6 माह की मजदूरी अलग से जोड़ा जाए तो कहलायेगा भारी घाटा)
गोकुल केवट को खरीफ वर्ष 2017-18 में कितनी हुई आमदनी
गोकुल केवट की 6 माह डेढ़ एकड़ की अधिया की खेती में झक मराने से कुल 5900 रुपये की धान अर्जित किया जिसमें उनके दो सदस्यों की 400 रुपये रोज की कम से कम मजदूरी जोड़ दी जाय तो 72 हज़ार रुपये अलग से। अब ऐसे में यदि किसान खेती किसानी छोड़कर आत्महत्या न करें और पलायन न करें तो और क्या विकल्प बचता है।
रवी सीजन वर्ष 2017-18
कुल बुबाई - 60 किलो गेहूं,
रकबा लगभग एक एकड़,
गेहूं बीज - 2000 रुपये,
जुताई - 3000 रुपये,
बुवाई - 2000 रुपये,
खाद - एक बोरी डी ए पी 1200 रुपये, यूरिया एक बोरी - 350 रुपये,
सिचाई - 2000 रुपये,
कटाई - 2000 रुपये,
गहाई - 1200 रुपये घंटे के हिसाब से 2 घंटे का 2400 रुपये,
कुल लॉगत रवी वर्ष 2017-18 = 14950 रुपये,
कुल उपज गेहूं रवी वर्ष 2017-18 = 8 क्विंटल 40 किलो, अधिया वाला 4 क्विंटल तो शेष आधा अर्थात 1 क्विंटल 80 किलो अधिया वाला।
अर्थात किसान गोकुल केवट की वर्ष 2017-18 में गेहूं की आमदनी मात्र 6 क्विंटल हुआ
कुल उपज रवी गेहूं वर्ष 2017-18= 1735 गुणा 6 = 10410 रुपये,
कुल आमदनी गेहूं सीजन = कुल उपज गेहूं - कुल लॉगत गेहूं = 10410 - 14950 = - 4540 रुपये का मूल घाटा हुआ जिसमे 6 माह की की दो व्यक्तियों की 400 रुपये प्रतिदिन मजदूरी के हिसाब से 72000 रुपये अलग से)।
गोकुल केवट की रवी वर्ष 2018 की कुल आमदनी
जैसा कि उपरोक्त मूल्यांकन से जानकारी प्राप्त हुई गोकुल की छमाही रवी वर्ष 2018 की कुल आमदनी ऋणात्मक प्राप्त हुई है। कुल गेहूं की परंपरागत उपज 10410 रुपये की हुई जबकि लॉगत 14950 रुपये लगी अतः उपज से लॉगत को घटाने पर पाया कि 4540 रुपये का मूल घाटा हुआ जबकि परिवार के दो सदस्यों की 400 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 6 माह की कुल 72 हज़ार रुपये मजदूरी जोड़ दी जाय तो किसान के लिए आत्महत्या ही एकमात्र समाधान दिख रहा है क्योंकि किसान मजदूर के इस दर्द को कोई समझ नही पायेगा।
ऐसे किसानों की क्या है परिवार की आय का स्रोत ?
गोकुल केवट के परिवार के आय का स्रोत मात्र खेती नही है क्योंकि खेती में तो उन्हें भारी घाटा है। मूलरूप से उनकी आय का स्रोत मजदूरी है। ज्यादातर केवट समूह के लोग जमीदारों के यहां अधिया की खेती करके अपना खर्च चलाते हैं अथवा शहरों में पलायन करके मजदूरी करते हैं। पुराने समय में जब जेसीबी और मसीनों का इतना अधिक उद्भव नही हुआ था तब ये लोग मिट्टी की खुदाई करके जीवन यापन करते थे। गोकुल केवट के दो लड़के हैं एक का नाम दिलीप केवट और दिनेश केवट है। इनके दो बेटियां थीं जिनमे एक का व्याह कर दिया है। बड़े बेटे दिलीप केवट की शादी होने के बाद दो बच्चे भी हैं। इस प्रकार इनका परिवार बढ़ रहा है और साथ ही खर्च भी। गोकुल केवट का एक पुत्र दिनेश केवट बाहर शहरों में रहकर प्राइवेट काम करके जीवन यापन कर रहा है जबकि दूसरा घर में ही रहकर परिवार का खेतई किसानी में हाथ बंटाता है।
क्या परंपरागत खेती-किसानी से संभव है जीवन यापन?
इस प्रकार देखा जा सकता है की न तो पूरी जमीन में परंपरागत खेती से कुछ होता है और न ही अधिया की खेती से। अधिया की खेती तो और भी दर्द से भरी हुई है।
अधिया की खेती में सबकुछ लगाने के बाद कुल उपज का आधा भाग जमीदार किसान को देने पड़ते हैं। ऐसे में न तो किसान को कुछ हाशिल हो पाता है और न ही अधिया की खेती करने वाले को। अधिया की खेती करने वाले माजदूरों का पारिवारिक स्तर बहुत ही नीचे रहता है। इनकी दुर्दशा तो उपरोक्त विश्लेषण से ही लगाया जा सकता है। जब इनकी मूल लॉगत तक नही मिल पा रही है तो बांकी क्या बात करना।
अधिहर खेतिहर माजदूरों के बच्चों का क्या है भविष्य?
सही मायनों में देखा जाए तो अधिया की खेती करने वाले किसानों के जीवन स्तर में कोई सुधार तो बहुत दूर की बात है इनका पारिवारिक और सामाजिक स्तर भी दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। क्योंकि यह मजदूर वर्ग के लोग सपरिवार खेती किसानी में लगे रहते हैं और साथ ही छोटे बच्चे और बच्चियों को भी उसी काम में लगाए रहते हैं इसलिए इनके बच्चे अच्छी शिक्षा क्या बेसिक शिक्षा तक नही प्राप्त कर पाते। अच्छी शिक्षा की कामना ग्रामीण अंचलों की सरकारी स्कूलों में करना तो दिवास्वप्न की तरह है। इस प्रकार देखा जाय तो छोटे किसानों और मजदूर वर्ग के लोगों के बच्चों को गरीबी, बीमारी, अशिक्षा विरासत के रूप में मिलता है। अशिक्षित और गरीब परिवार वर्तमान संस्कारविहीन और भ्रष्ट व्यवस्था में मात्र शोषण का ही शिकार हो सकता है जो प्रत्यक्ष रूप से दिख भी रहा है। जानकारी और जागरूकता के अभाव में यह लोग न तो अपने अधिकारों को जानते हैं और न ही अपने अधिकारों की लड़ाई नही लड़ सकते। इस प्रकार पीढ़ी दर पीढ़ी इनका जीवन स्तर गिरता हुआ ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग नशे की भी लत में पड़ जाते हैं। यद्यपि संस्कारों के प्रभाव के कारण गोकुल केवट का परिवार पूरी तरह से नशामुक्त और अच्छे संस्कारों वाला है.
इस प्रकार देखा जाय तो अधिया की खेती में अनाज तो आधा ही हासिल हो पाता है परंतु दर्द पूरा सहना पड़ता है।
संलग्न - मप्र के रीवा ज़िले अंतर्गत थाना गढ़ में कैथा ग्राम के गोकुल केवट और उसके परिवार के सदस्यों के साथ फोटोग्राफ।
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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र
मोबाइल - 7869992139, 9589152587
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