Sunday, May 13, 2018

भाग 3 - दास्तां ए किसानी - रवी बोवनी 29 एकड़, लागत 165200 रु, कुल उपज 316080 रु (मामला मप्र के जिला रीवा अंतर्गत थाना गढ़ ग्राम बड़ोखर के 20 सदस्यीय परिहार किसान परिवार का जिसमे उद्यमी शिवेंद्र सिंह एवं उनके भाईयों की कड़ी मेहनत ने मौसम विरुद्ध राई की खेती में बनाना चाहा पहाड़)

दिनांक 13 मई 2018, स्थान - कैथा, रीवा मप्र,

(कैथा, रीवा मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

  5 से 10 एकड़ अर्थात 2 से 4 हेक्टेयर के आसपास तक के किसानों की परंपरागत किसानी तो पहले ही प्रश्नवाचक दायरे में है जहां ऐसे छोटे और मझले किसानों के लिए जीवन यापन तक करना असंभव हो रहा है. अब देखते हैं कुछ ऐसे किसानों परिवारों को जिनके पास अपेक्षाकृत सामूहिक तौर पर 2 अथवा 4  हेक्टेयर से अधिक की किसानी की गई. मप्र के रीवा ज़िला अंतर्गत थाना गढ़ के बड़ोखर ग्राम निवासी सुरसरी सिंह परिहार का परिवार है. सुरसरी सिंह के 5 पुत्र हैं जिनमे से एक जितेंद्र सिंह आर्मी पुलिस में आरक्षक के पद पर कार्यरत हैं. वहीं उनके शेष 4 पुत्र घर में ही रहकर खेती किसानी का कार्य देखते हैं. सुरसरी सिंह की कुल जमीन 14 एकड़ के आसपास है जिसमे अभी उन्ही के नाम पर है और पुत्रों के मध्य कोई बटवारा नही हुआ है. सुरसरी सिंह के घर में रहने वाले 4 पुत्र क्रमसः धीरेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह और शिवेंद्र सिंह हैं. सबसे बड़े वाले पुत्र धीरेंद्र सिंह शारीरिक रूप से अक्षम हैं क्योंकि वह एक असाध्य बीमारी से ग्रस्त हैं जिसमे उनका पूरा शरीर लकवे की तरह हो गया है जिसमे कोई किसी भी प्रकार का मूवमेंट नही होता. बीमार सुरसरी सिंह स्वयं भी 80 वर्ष के ऊपर होने के कारण शारीरिक रूप से अक्षम हैं और घर गृहस्थी का कार्य मात्र उनके तीनो पुत्र शिवेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह के हवाले है. कार्यक्षमता के तौर पर देखा जाए तो सम्पूर्ण खेती किसानी के कार्य का मालिकाना शिवेंद्र सिंह के हाँथ में है. कहां पर क्या बुवाई करना है, व्यवस्था कैसे देखने है यह कार्य शिवेंद्र सिंह करते हैं बांकी सहयोगी के तौर पर उनके अन्य बड़े भाई वीरेंद्र सिंह और देवेंद्र सिंह भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.

  कर्ता अर्थात लीज में की जाने वाली खेती -

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  किसान शिवेंद्र सिंह द्वारा जानकारी दी गई की उनके पिता के नाम कुल 14 एकड़ के रकबे के अतिरिक्त भी उन्होंने रवी वर्ष 2018 में कुछ जमीन कर्ता अर्थात छमाही लीज के तौर पर ली थी. जब किसी किसान के पास पर्याप्त जमीन न हो और उसे खेती-किसानी का शौक हो तो वह ग्रामीण क्षेत्रों की प्रथा अनुरूप किसी सक्षम जमीदार से आवश्यकतानुरूप जमीन लीज अर्थात कर्ता के तौर ले सकता है. इस प्रकार लीज में ली जाने वाली जमीन की हर स्थान पर अपनी अलग अलग कीमत हुआ करती है. जहां जैसी जमीन की गुणवत्ता और पैदावार हो उस हिसाब से लीज में ली जाने वाली जमीन की कीमत किसान तय करते हैं. यहां पर बडियोर निवासी दिनेश सिंग से 15 एकड़ कर्ता अर्थात लीज में ली गई इस जमीन के लिए किसान शिवेंद्र सिंह ने 18 हज़ार रुपये की रकम दिनेश सिंह को दिया.

कर्ता अर्थात लीज और अधिया की जमीन में खेती नुकसानी पर मुआबजा भरपाई नही

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  अमूमन देखा जाए तो किसान के पास यह हक होता है की उसकी पट्टे की जमीन पर की गयी खेती पर यदि प्राकृतिक आपदा की वजह से नुकसानी होती है तो पट्टेदार को सरकारें भरपाई करती हैं. उनके लिए मुआबजा वितरण होता है, साथ ही पीएम फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा का भी कुछ लाभ मिल जाता है. परंतु कर्ता अर्थात लीज में ली जाने वाली और अधिया में की जाने वाली खेती में आधिकारिक तौर पर ऐसा कोई लिखित प्रमाण नही होता. यदि पट्टेदार किसान जिसकी जमीन को लीज अर्थात कर्ता अथवा अधिया में लिया गया है प्राप्त हुए मुआबजे की रकम को नैतिक तौर पर कर्ता या अधिया लिए हुए किसान को दे दे तो ठीक है वरना अधिया लिए हुए किसान के पास कोई लिखित प्रमाण नही होता की वह प्राकृतिक आपदा की स्थिति में प्राप्त मुआबजा अथवा फसल बीमा की राशि के लिए कोई भी क्लेम कर सके. यह इस लीज सिस्टम और अधिया सिस्टम की बहुत बड़ी कमी है. जिससे ऐसे किसानों के लिए हमेशा ही खतरा बना रहता है की यदि कहीं सूखा, बाढ़, अकाल, ओला, पाला, अथवा अन्य किसी भी प्रकार की प्राकृतिक विपदा आ जाए तो अधिया और कर्ता के किसान की पूरी पूंजी डूबना तय बात है. आज नैतिक तौर अच्छे जमीदार बहुत ही विरले हैं जो मुआबजे और बीमा की राशि को अधिया या कर्ता के किसान को दे दें.

शिवेन्द्र सिंह द्वारा 15 एकड़ की अतिरिक्त कर्ता जमीन पर किसानी उद्यमिता का उदाहरण

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   बड़ोखर निवासी शिवेंद्र सिंह द्वारा अपने पैतृक जमीन 14 एकड़ के अतिरिक्त बडियोर निवासी दिनेश सिंह से 15 एकड़ जमीन कर्ता अर्थात लीज में लेकर किसानी करना हिम्मत और उद्यमिता का एक सुंदर उदाहरण है. आज जब किसान वर्ग स्वयं की जमीन पर भी किसानी नही कर पा रहा ऐसे में किसी अन्य जमीदार की जमीन लीज पर लेकर सूखा अकाल की स्थिति में इतना बड़ा जुआ खेलना बहादुर किसानों के उदाहरण है. क्या होता यदि मौसम साथ नही देता? क्या होता यदि कहीं ओला पड़ जाता? क्या होता यदि कहीं अतिवृष्टि हो जाती? क्या किसान शिवेंद्र सिंह को दिनेश सिंह द्वारा सरकार से प्राप्त मुआबजा अथवा फसल बीमा की राशि दे दी जाती? यह सब प्रश्न हर एक ऐसा किसान अपनी किसानी प्रारम्भ करने के पहले जरूर अपने आप से पूछता है.

आईये अब नीचे देखते हैं किसान शिवेंद्र सिंह और उनके अन्य दो भाईयों द्वारा खरीफ वर्ष 2017-18 और रवी वर्ष 2018 में उनकी पैतृक भूमि और कर्ता की भूमि पर की गई खेती के क्या नफा नुकसान हैं.

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किसान का नाम - शिवेंद्र सिंह परिहार पिता सुरसरी सिंह परिहार निवासी ग्राम बड़ोखर, थाना गढ़, ज़िला रीवा मप्र.

खरीफ वर्ष 2017-18 की खेती का व्योरा -

कुल जमीन का रकबा - 14 एकड़, जिसमे परती छोड़ा गया 7 एकड़,

धान की बुवाई - 4 एकड़,

जुताई - 8000 रुपये,

हाइब्रिड धान बीज - 6000 रुपये,

खाद - सहकारी समिति हिनौती से ली गई 11000 रुपये,

धान रोपाई की लागत - 8500 रुपये,

कीटनाशक का खर्च - 2000 रुपये,

निराई - 4000 रुपये,

कटाई - 9500 रुपये,

गहाई - 12000 रुपये थ्रॉशेरिंग,

खरीदी केंद्र में धान पहुचाने का खर्चा - 800 रुपये,

मोटर पंप का कनेक्शन 3 एच पी - 2400 रुपये,

मोटर पंप दो बार जलने पर मरम्मत खर्च - 4300 रुपये,

उड़द बुवाई का रकबा - डेढ़ एकड़,

अरहर अर्थात तुअर की बुवाई का रकबा - एक एकड़,

मूग की बुवाई का रकबा - आधा एकड़,

देशी उडद मूग और अरहर के बीज का खर्च - 550 रुपये,

छिटुआ उडद मूग एवं अरहर का तीन एकड़ जुताई एवं बुवाई का खर्च - 2000 रुपये,

तीनों फसलों की कटाई का खर्च - 3500 रुपये,

तीनों फसलों की गहाई मिजाई का खर्च - 200 रुपये प्रति मजदूर के हिसाब से 15 मजदूरों का एक दिन का कुल खर्च 3000 रुपये,

नोट - खाद, कीटनाशक और पानी उपरोक्तानुसार.

खरीफ वर्ष 2017-18 की कुल उपज की कीमत -

4 एकड़ में बोई गई धान की उपज = 55 क्विंटल = रुपये में 55 गुणा 1550 रुपये = 85250 रुपये,

3 एकड़ रकबा में उडद मूग और अरहर की कुल उपज = 2 क्विंटल अरहर, 1.25 क्विंटल उड़द, और 60 किलो मूग जिनका मार्किट रेट, अरहर = 2 गुणा 4000 रुपये = 8000 रुपये. उडद की कीमत = 1.25 गुणा 3000 रुपये = 3750 रुपये. मूग की कुल कीमत = 0.60 गुणा 3500 रुपये = 2100 रुपये.

वर्ष 2017-18 खरीफ की 7 एकड़ रकबे में धान अरहर मूग और उडद की कुल लागत = 77550 रुपये,

वर्ष 2017-18 खरीफ की 7 एकड़ में कुल बुवाई जिसमे 4 एकड़ में धान, और तीन एकड़ में अरहर मूग और उडद की खेती की गई में कुल उपज की कीमत = 85250 धन 8000 धन 3750 धन 2100 रुपये = 99100 रुपये.

तीनों किसानों की छमाही खरीफ की मूल आमदनी 21550 रुपये -

कुल आमदनी खरीफ वर्ष 2017-18 =  कुल उपज - कुल लागत = 99100 - 77550 = 21550 रुपये.

किसान शिवेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह तीनों लोग पूरे 6 माह मिलकर यह किसानी करते हैं अतः मजदूर के तौर पर भी देखा जाए तो कम से कम 200 प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति की मजदूरी के हिसाब से तीन लोगों की 6 माह की मजदूरी 1 लाख और 8 हज़ार बनती है. इस प्रकार देखा जाए तो इस किसानी में भारी घाटा हुआ.

रवी वर्ष 2018 गेहूं और अन्य फसलों की खेती का व्योरा -

कुल बुवाई का रकबा - 14 एकड़

कर्ता की बुवाई का रकबा - 15 एकड़,

राई की बुवाई का रकबा - 5 एकड़,

गेहूं की बुवाई का रकबा - 7 एकड़,

चना की बुवाई का रकबा - आधा एकड़, जौ की बुवाई का रकबा - आधा एकड़, मसूर की बुवाई का रकबा - 1 एकड़,

कर्ता की 15 एकड़ के रकबे में राई की बुवाई की गई जिसे हिबोती-बडियोर निवासी डॉक्टर दिनेश सिंह से 18000 रुपये में कर्ता में अर्थात जमीन का एक सीजन का पैसा देकर छमाही बुवाई के लिए जमीन लीज पर ली गई.

कुल 29 एकड़ की जुताई का खर्च = 65000 रुपये,

बुवाई का कुल 29 एकड़ का खर्च = 18000 हज़ार रुपये,

सहकारी समिति हिनौती से ली गई खाद का खर्च = 15000 रुपये,

29 एकड़ रकबे में बोई गई सभी फसलों के कुल बीज का खर्च = 18000 रुपये,

कीटनाशक का खर्च = 2000 रुपये,

मोटर पंप 3 एच पी का 6 माह का बिजली बिल = 2400 रुपये,

एक बार मोटर पंप जलने के कारण बनवाई का खर्च - 1800 रुपये,

29 एकड़ की बोई फसलों के कटाई का कुल खर्च = 25000 रुपये,

29 एकड़ में बोई गई फसलों की कुल गहाई का खर्च = 18000 रुपये,

रवी फसल वर्ष 2018 की 29 एकड़ रकबे में बोई फसल की कुल उपज -

गेहूं की कुल उपज =  60 क्विंटल = 60 गुणा 1735 रुपये = 104100 रुपये,

राई की कुल उपज = 48 क्विंटल = 48 गुणा 4000 रुपये = 192000 रुपये,

चना की कुल उपज = 3 क्विंटल = 3 गुणा 4400 रुपये = 13200 रुपये,

मसूर की कुल उपज = 90 किलो मात्र = 0.90 गुणा 4200 रुपये = 3780 रुपये,

जौ की कुल उपज = 1.5 क्विंटल = 1.5 गुणा 2000 रुपया = 3000 रुपया,

अर्थात रवी वर्ष 2018 की कुल उपज की कीमत = 104100 धन 192000 धन 13200 धन 3780 धन 3000 = 316080 रुपए,

रवी वर्ष 2018 की कुल लागत = 165200 रुपये,

तीनों किसानों की रवी की मूल आमदनी 150880 रुपये -

29 एकड़ की रवी फसल की कुल आमदनी = कुल उत्पादन - कुल लागत = 316080 - 165200 = 150880 रुपये,

रवी वर्ष 2018 में भी तीनो काश्तकारों शिवेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह एवं वीरेंद्र सिंह ने समूहिक रूप से 6 माह निरंतर खेतों में मेहनत किया अर्थात 200 रुपये कम से कम प्रतिव्यक्ति की मजदूरी प्रतिदिन की जोड़ने पर 6 माह की कुल मजदूरी 1 लाख 8 हज़ार रुपये बनता है. इस प्रकार 150880 रुपये में 108000 घटाने पर 42880 रुपये की रवी छमाही की आमदनी बनती है.  

अन्य खेती के मुकाबले देशी सरसों की उपज से बनाना चाहा राई का पहाड़

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 उपरोक्त विश्लेषण से जानकारी मिलती है की किसान शिवेंद्र सिंह और उनके अन्य दो भाईयों द्वारा हाड़ पिघलाने वाली मेहनत और सही फसल सेलेक्ट करने का परिणाम है की जहां दूसरे किसान हिम्मत हारकर किसानी बन्द कर दिए वहीं शिवेंद्र सिंह और उनके भाइयों ने पत्थर पर सोना उगाने का प्रयास किया. यदि शिवेंद्र सिंह ग्रामीण अंचल में परंपरागत रूप से की जाने वाली रवी गेहूं की फसल की खेती करते तो घाटे में रहते क्योंकि जहां पहाड़ी क्षेत्रों में मवेशियों और जंगली जानवरों का खतरा बराबर बना रहता है वहीं गेहूं की फसल का ज्यादा खयाल भी रखना पड़ता है. जबकि देशी राई अर्थात सरसौं की खेती सही समय पर किये जाने से यह लाभ हुआ की फाल्गुन और चैत्र तक इसकी कटाई हो गई और ओला से बचाव हो गया. यद्यपि शौभाग्य से इस वर्ष इस क्षेत्र में ओला का प्रकोप नही रहा. राई की खेती की नुकसानी भी कम हुई क्योंकि रोझ और नीलगाय आदि जंगली और आथ ही देशी पशु राई को अपेक्षाकृत कम नुकसान पहुचाते हैं.

 29 एकड़ में 6 माह की तीन किसानों की मेहनत की कुल आमदनी 150880 रुपया कुछ खास नही

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   यदि देखा जाय तो पूरे 6 माह तक तीन किसान भाईयों शिवेंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह और देवेंद्र सिंह की अथक मेहनत से रवी वर्ष 2018 में मूलतः राई की खेती से प्राप्त आमदनी 150880 रुपया कोई विशेष नही है. क्योंकि इसमे अभी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 200 रुपये के हिसाब से 6 माह की न्यूनतम मजदूरी रुपये 108000 रुपया तो जोड़ी ही नही गई. मानकर चलें की यदि यही तीनो किसान भाई शहर निकल गए होते और किसी ग्रोसरी स्टोर में नौकरी करते या कहीं चौकीदारी भी करते तो कम से कम 8 से 10 हज़ार महीने की कमाई करते जिसमे यदि आधा इनका खर्चा निकाल दिया जाए तो भी 5 हज़ार तक प्रतिमाह गिरी हुई हालात में भी बच जाते हैं. यदि थोड़ी ज्यादा समझदारी हुई और कोई अच्छा कार्य मिल गया तो निश्चित तौर पर आमदनी बढ़ जाती है. इस प्रकार स्वयं के खर्च को निकालकर तीनो किसान कम से कम 90 हज़ार से 1 लाख तक 6 माह में बचा सकते थे जिसमे अपने घर परिवार के लिए कपड़े, भोजन और बच्चों के स्वास्थ्य और स्कूली फीस की व्यवस्था बनाकर बढ़िया शांतिपूर्ण जीवन जी सकते थे. खेती किसानी में तो इतनी मेहनत पड़ती है की न तो नहाने की फुरसत और न ही खाने की होती है. हां किसानी में एक ही चीज का फायदा रहता है की व्यक्ति पूरे समय अपने घर परिवार के बीच में बना रहता है जबकि शहरों में पलायन कर नौकरी करने से यह लाभ नही मिल पाता जिससे मानसिक उद्विग्नता बनी रहती है.

किसान सुरसरी सिंह के परिवार की स्थिति

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  किसान सुरसरी सिंह के पांच पुत्रों में एक नौकरी पेशा होने के अलावा शेष चार घर में हैं जिनमे से चार शादीसुदा हैं जबकि सबसे छोटे शिवेंद्र सिंह की अभी शादी नही हुई है. पूरे संयुक्त परिवार में कुल 20 सदस्य हैं जिनका जीवन यापन भोजन कपड़ा सब कुछ इसी खेती किसानी पर आधारित है. इनके परिवार में नौकरीपेशा पुत्र जितेंद्र सिंह का योगदान काफी महत्वपूर्ण है. आज जब किसान को अपनी जमीन पर ही खेती किसानी करने के लिए समय पर जरूरी खाद बीज और नगद नही मिल पा रहा है तो भला अधिया और कर्ता के लिए लिए जाने वाले रिस्क के लिए व्यवस्था कौन भगवान करेगा? किसान शिवेंद्र सिंह दवारा बताया गया की उनके बड़े भाई जितेंद्र सिंह द्वारा खेती किसानी में पूंजी लॉगत संबंधी खर्च के लिए पूरा सहयोग मिलता है. क्योंकि यदि लॉगत पूंजी नही हुई तो उत्पाद कहां से होगा, पहले तो लगाने के लिए पूंजी चाहिए. ज्यादातर छोटे और मझले तबके के किसानों के साथ यह भी एक बड़ी समस्या रहती है की समय पर खाद बीज जुताई बुवाई के लिए नगदी और पूंजी की व्यवस्था न बन पाने के कारण उनकी सारी सोच और प्लान धरे के धरे राह जाते हैं. वही लोग हिम्मत बना सकते हैं जिन्होंने पहले से पूंजी की व्यवस्था कर रखी है अथवा जिनके घरों में कोई नौकरीपेशा व्यक्ति है जो बाहर से मदद करता है. वैसे आजकल बैंकों और सहकारी समितियों से भी किसान क्रेडिट कार्ड आदि व्यवस्था के माध्यम से खाद बीज आउर कर्ज़ मिलता है परंतु कई किसानों मौसम की मार के कारण डिफाल्टर हो जाते हैं और कर्ज़ न चुका पाने की स्थिति में उनका भविष्य की पूरी किसानी शाख खराब होने के कारण बाधित हो जाती है. इस बात को समझने वाला कोई सरकार नही है. यद्यपि चुनावी वर्ष कहें या जो भी परंतु अभी पिछले छमाही में मप्र सरकार ने इस विषय पर गौर किया है और ऐसे कालातीत किसानों के लिए ऋण अदायगी की व्यजमाफी के साथ 50 प्रतिशत अदायगी करने पर पुनः शाख बरकरार रहने वाली जो व्यवस्था की है वह काफी हद तक राहत देने वाली है.

अंततः परंपरागत खेती किसानी बन रहा अंतिम विकल्प

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   इस प्रकार देखा जा सकता है की यदि औषधीय अथवा फल सब्जी की खेती को फिलहाल यदि अलग रखा जाए तो परंपरागत अनाजों  की जाने वाली खेती से 30 एकड़ तक के किसान परिवारों को कोई विशेष लाभ समझ नही आ रहा है.

   सरकार किसानी की लाभ का धंधा बनाने की बात तो कर रही है पर यह ग्रामीण परिवेश की समस्याओं का सही मूल्यांकन किये बगैर भोपाल और दिल्ली में बैठकर यह कार्य कैसे करेगी बिल्कुल स्पष्ट नही है. सबसे पहले तो किसान की लॉगत और मेहनत पर ध्यान दिया जाना चाहिए. लॉगत और मेहनत यदि ज्यादा है तो फसल की कीमत भी उसी हिसाब से तय होनी चाहिए. आज फसल की जो न्यूनतम कीमत रखी गई है वह लॉगत से काफी कम है. वर्तमान में फसल की कीमत जब तक दुगुनी नही होती तब तक किसान के लिए कुछ भी अच्छा नही हो सकता. विचारणीय है की पिछले कई दशकों में कर्मचारियों के लिए कई वेतन भत्ते बढ़े, टी ए डी ए बढ़े, शहरी जिंदगी के स्टैण्डर्ड बढ़े, सभी वस्तुओं में आसमान छूती महंगाई बढ़ी लेकिन किसान की फसल का क्या हुआ. औसत तौर पर देखा जाए तो जहां अन्य क्षेत्रों में बढ़ोत्तरी दस गुना बढ़ी है वहीं किसान की फसल की कीमत और उसकी जिंदगी का स्तर दुगुना तक नही हुआ है. ऐसे में भला कौन व्यक्ति किसानी को धंधे के तौर पर अपनाना चाहेगा. हर किसान और मजदूर के लिए सबसे पहला विकल्प तो यही होगा की उसके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और वह भी शहर जाकर अच्छी नौकरी प्राप्त करें. यदि सरकारी नौकरी नही भी मिले तो कम सेके कम किसी प्राइवेट सेक्टर में कोई मजदूरी और नौकरी मिल जाय तो वह भी इस परंपरागत किसानी से ज्यादा बेहतर होगा.

आज वही किसानी कर रहे हैं जिनके घरों में बाहर से आमदनी का कोई स्रोत अर्थात कोई बैकअप है

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  आज ग्राम क्षेत्रों में वही किसान खेती कर रहे हैं जिनके परिजन बाहर शहरों में अच्छी नौकरी कर रहे हैं अथवा कोई सरकारी नौकरीपेशा है. क्योंकि बिना बाहरी आमदनी के पूंजी न हो पाने के कारण खेती में लागत लगाना असंभव है. हां ऐसे किसान जिनके पास कोई अन्य रास्ता नही है वह मजबूरी के तौर पर पेट भरने के लिए भूमि में दाना गाड़ने का काम जरूर कर रहे हैं. क्योंकि इसके अतिरिक्त वह कुछ कर भी नही सकते, या की आत्महत्या करें अथवा मजदूरी के लिए पलायन.

संलग्न - मप्र के रीवा ज़िला अंतर्गत थाना गढ़ क्षेत्र में किसान परिवार सुरसरी सिंह और उनके पुत्र शिवेंद्र सिंह आदि की फ़ोटो यहां पर संलग्न है.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र,

 मोबाइल - 07869992139, 09589152587

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