दिनांक 25 मई 2018, स्थान - भठवा/गढ़/गगेव, रीवा मप्र
(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)
हिन्दू पंचांग के पवित्र मलमास अथवा पुरुषोत्तम मास में जगह जगह धार्मिक अनुष्ठानों और आयोजनों का सिलसिला निरंतर चल रहा है. इस बीच पावन पुनीत यज्ञस्थली कैथा से सटे हुए ग्राम हिनौती-बड़ोखर में भी पिछले दिनों 20 मई से भागवत सप्ताह महायज्ञ का प्रारम्भ हुआ जो सतत चल रहा है.
पुर्णाहुति और हवन 27 को
मुख्य यजमान के रूप में भागवत कथा का श्रवनपान कर रहे सुरसरी सिंह परिहार और शिवकुमारी परिहार ने ज्यादा से ज्यादा भक्तों की उपास्थिति की अपील की है. कार्यक्रम में कथा प्रवचन और परायण का कार्य आचार्य राशिरामण तिवारी एवं अनिल तिवारी के मुखारबिंद से हो रहा है. दोनो आचार्यगण परिहार परिवार के कुलगुरु हैं.
कार्यक्रम में पुर्णाहुति और हवन का कार्यक्रम दिनांक 27 मई को रखा गया है जबकि सार्वजनिक भंडारे एवं ब्राह्मण भोज का कार्यक्रम 28 मई को होगा.
भागवत श्रवण है मोक्ष का द्वार
आचार्य श्री राशिरमण तिवारी जी ने बताया की कलयुग के प्रभाव और नियति के अधीन महाराज परीक्षित को ब्राह्मण पुत्र का श्राप लगता है तो वह मृत्यु के भय से घबरा जाते हैं. उनकी मृत्यु 7 दिन में बतायी जाती है. ऐसे में अपने पुरोहितों के समक्ष उपास्थित होकर परीक्षित जी अपनी गलती और पूरी व्यथा बताते हैं. उनके कुलगुरु और पुरोहितगण उन्हें व्यासपुत्र शुकदेव जी के पास भेजते हैं. तब शुकदेव जी कहते हैं की है राजन आपका मृत्यु से भय आपका अज्ञान है. अतः आप 7 दिवश तक भागवत कथा का श्रवण पान करें जिससे आपका अज्ञान नष्ट होकर आप मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेंगे.
7 दिवश में ही प्राण त्याग होते हैं
7 दिवश तक निरंतर भागवत कथा का श्रवण पान करने के पश्चात जब ब्राह्मण पुत्र के द्वारा दिए गए श्राप की बात आती है और महाराज परीक्षित पुनः विचलित होते हैं तब शुकदेव जी कहते हैं की है राजन अभी तक आपका अज्ञान लगता है नष्ट नही हुआ. याद करिये की भगवान श्रीकृष्ण जी ने गीता के उपदेश में क्या कहा था. मरता तो मात्र हमारा यह शरीर है न की आत्मा. आत्मा अजर अमर शाश्वत सनातन और ईश्वर अंश है अतः शरीर नष्ट होने के उपरांत भी यह आत्मा नष्ट नही होती है. और आज नही तो कल इस शरीर का नष्ट होना तय है तो फिर आप शोक क्यों कर रहे हैं.
आचार्य जी ने बताया की परीक्षित की मृत्यु 7 दिवश में होनी बतायी गई थी इसका तात्पर्य यह है की हम सभी की मृत्यु 7 दिवश में ही होनी है. सप्ताह में मात्र 7 दिन ही होते हैं अतः आठवां दिन किसी की मृत्यु नही होती. इस प्रकार परीक्षित जी को तत्काल ब्रह्मज्ञान हो जाता है और तक्षक नाग रूपी काल आकर परीक्षित जी को डसता है और ईश कृपा से परीक्षित जी की आत्मा परमात्मा में विलीन होकर परम पद को प्राप्त करती है. समस्या मृत्यु से नही है बल्कि समस्या है मृत्यु के भय से है, जैसे ही भय से मुक्ति मिल गयी मानो मृत्यु पर विजय मिल गयी. आचार्य जी ने बताया की व्यक्ति अज्ञानवश यह समझ बैठता है की वह इस धरती पर आया है तो सदैव ही बना रहेगा जबकि वह स्वयं रोज देखता है की किस प्रकार इस नश्वर संसार में आने वाला हर जीव दिन प्रतिदिन यहां से पलायन कर रहा है. परंतु अज्ञान के अंधकार में जकड़ा हुआ मॉनव मोह माया के चंगुल में इस प्रकार पड़ा रहता है की वह इस नश्वर संसार को छोंड़ना नही चाहता.
महाराज जनक थे जीवनमुक्त
अतः श्रीमद भगवद कथा के निरन्तर श्रवण पान करते रहने से जीव का मोह नष्ट होकर आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और आत्मज्ञान से ही व्यक्ति को वास्तविक मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. मुक्ति शास्त्रों में दो प्रकार की बतायी गई है. एक शरीर त्याग के बाद की मुक्ति जबकि दूसरी जीवन रहते ही मुक्ति की प्राप्ति. आचार्य जी ने बताया की राजा जनक जीवन्मुक्त के उदाहरण हैं जिन्होंने आत्मज्ञान से जीते जी ही मुक्ति प्राप्त कर ली थी इसीलिए उन्हें विदेह भी कहा जाता था. विदेह का तात्पर्य है इस शरीर में आत्मा रहते हुए भी शरीर के भाव का एहसास न होना बल्कि आत्मा में अवस्थित होना ही जीवन मुक्ति है.
संलग्न - रीवा ज़िले के थाना गढ़ अंतर्गत आने वाले हिनौती-बड़ोखर ग्राम में आयोजित श्रीमद भगवद भक्ति ज्ञान यज्ञ का दृश्य.
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शिवानन्द द्विवेदी, राष्ट्रीय संयोजक एवं प्रचारक श्रीमद भगवद कथा धर्मार्थ समिति भारत, मोबाइल 07869992139, 09589152587
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