Saturday, July 7, 2018

बारिस में बिलम्ब से किसान मायूस, कब बरसेंगे मेघा कब लगेगी लेउ (रीवा में अब तक बारिश की कमी से किसान मात्र झुरिया फसल बो पाये,  उड़द, मूग, अरहर के अतिरिक्त थोड़ी बहुत सोयाबीन की हुई बोवाई, लेउ और रोपा धान की नही हो सकी बुवाई, असिंचित क्षेत्र के किसान मात्र ईश्वर पर निर्भर)

दिनाँक 07 जुलाई 2018, स्थान - गढ़/ गंगेव, रीवा मप्र 

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी, रीवा-मप्र)

     देश प्रदेश के कुछ हिस्सों में चाहे भले ही अब तक औसत और औसत से अधिक बारिश हुई हो लेकिन प्रदेश के रीवा ज़िले में बारिश की स्थिति अब तक चिंताजनक बनी हुई है. सबसे अधिक चिंता अन्नदाता के लिए है. 

     किसान आसमान की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं की कब बारिश हो और वह लेउ तथा रोपा लगाएं. कुछ किसान तो मायूस होकर झुरिया की ही खेती कर रहे है. पिछले दो तीन दिनों से काफी किसान 80 से 90 दिवश में पकने वाली धान जैसे आई आर 50, 64, 1010, लोचई, नीलम, ॐ थ्री आदि धानों की बुवाई करने लगे हैं. यह धान के बीज परंपरागत तरीके से बोए जा रहे हैं. धान का शूखे खेतों में छिटाव करने के बाद ट्रेक्टर से जुताई की जा रही है. खेतों में दूर दूर तक कहीं पानी के नामोनिशान नही है. 

झुरिया खेती ही बच रहा एकमात्र विकल्प

   तेरा कातिक तीन आषाढ़ की पुरानी कहावत है. क्षेत्रीय किसानी परंपरा के अनुसार कार्तिक मास के 13 दिन काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं जब गेहूं रवी सीजन की खेती की जाती है इसी प्रकार आषाढ़ महीने के तीन दिन बहुत मत्वपूर्ण माने जाते हैं. कहने का तात्पर्य यह हुआ की आषाढ़ महीने में तोरा बहुत महत्वपूर्ण होता है. यदि तोरा आर्थात समय बीत गया तो किसानी का उतना लाभ नही मिल पाता जितनी उम्मीद की जाती है.

   अब जब इस वर्ष 2018 खरीफ में 7 जुलाई तक ज़िले में बारिश नही हुई है अथवा जहां हुई भी है वहां बहुत हल्की फुल्की हुई है ऐसे में किसानों के लिए जो विकल्प बचा हुआ है वह मात्र झुरिया की खेती का ही है. झुरिया अर्थात शूखे खेत में बीज डालकर हल चलाना झुरिया खेती कहलाता है. झुरिया खेती के लिए पानी की कम मात्रा भी ठीक रहती है.

   कैथा और आसपास के किसानों ने बोया झुरिया धान 

   कैथा और आसपास के बहुतायत किसान जो असिंचित क्षेत्र अंतर्गत आते हैं और अधिक पानी का इंतज़ार नही कर पा रहे हैं. यहां बता दें की कैथा और उसके आसपास के ग्रामों से संबंधित भौगोलिक परिस्थितयों में मनगवां तहसील के हल्का इटहा नंबर 2, बांस, लौरी गढ़, सिरमौर तहसील के हिनौती हल्का नंबर 39, सर्किल लाल गांव, त्योंथर तहसील के पटवारी हल्का जमुई नंबर 31 सहित अन्य आसपास के पचासों ग्रामों में अब तक नईगढ़ी सूक्ष्म सिंचाई परियोजना की नहर सुविधा उपलब्ध नही हो पायी है जिससे अभी भी यह क्षेत्र सूखा ही है. यहां पर जमीन के नीचे का जलस्तर भी काफी नीचे पहुच चुका है. जिन किसानों के पास बोरवेल अथवा ट्यूबवेल हैं उनका भी जलस्तर काफी नीचे होने की वजह से पर्याप्त पानी नही मिल पा रहा है. साथ ही दूसरी समस्या बिजली की बनी हुई है जिंसमे कटरा डीसी अंतर्गत एक 5 एमवीए का बड़ा और मुख्य ट्रांसफार्मर फैल हो जाने की वजह से वाधित बिजली आपूर्ति हो रही है. हर आधे घंटे में बिजली ट्रिप कर रहीं है. 

  झुरिया धान में ज्यादा लॉगत, पैदावार कम

    इस क्षेत्र में बोई जाने वाली झुरिया धान में लॉगत ज्यादा होती है पर उपज कम. सबसे बड़ी बात यह है की धान जैसी फसल मात्र पानी की ही फसल है. जितना पानी मिले धान उतनी ही उपज देती है. हाँ यह बात जरूर है की धान में इतना पानी न भरा रहे की धान डूब में आ जाए ऐसे में धान सड़ जाती है. 

     झुरिया धान में चूंकि पानी का अभाव रहता है इसलिए इसमे खर पतवार और चारा घास बहुत उत्पन्न होता है. ऐसे में या की चारा घास नष्ट करने वाली दवा का प्रयोग किया जाए जो धान के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छी नही मानी जाती और साथ ही हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी नही है. दूसरा विकल्प परंपरागत रूप से खेतों में की जाने वाली निरवायी है. निरवायी से बोई गई धान के अतिरिक्त अन्य चारा घास और लमेरा झरगा फसही, गोंदिला आदि किश्म के चारा घास मजदूरों द्वारा उखाड़ फेंके जाते हैं. 

  झरगा, फसही, गोंदिला, लमेरा चारा घास निरवायी का बढ़ जाता है खर्च

    देखा जाए तो झुरिया की खेती आज बहुत कम किसान करना पसंद कर रहे हैं. इसका मुख्य कारण जैसा की ऊपर बताया गया इसकी लॉगत है. लॉगत की वजह से झुरिया की खेती काफी महँगी पड़ रही है और उपज पैदावार भी कुछ विशेष नही होती. झरगा, फसही, गोंदिला, लमेरा और अन्य चारा घास को साफ करने में मजदूरों को दी जाने वाली निरवायी की मजदूरी किसानों को और अधिक महँगी पड़ जाती है. ऐसा भी नही की एक बार निरवायी करवाने से सब चारा घास साफ हो जाता है. इसे समय समय पर कई बार निरवायी करवाना पड़ता है. जिससे लॉगत बढ़ती जाती है. निरवायी न भी हो तो घास फूस नष्ट करने की दवा डालने से भी खर्चा अधिक आता है तथा साथ ही स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है.

   झुरिया धान की खेती में पानी का भराव भी है हानिकारक

   यदि देखा जाए तो झुरिया धान की खेती में पानी का अधिक भराव भी हानिकारक होता है. लेउ तथा नर्सरी द्वारा रोपा पद्धति से लगाई गई धान की तुलना में चूंकि खेतों को झुरिया फसल हेतु बनाया जाता है अतः पानी का ज्यादा भराव भी हानिकारक होता है जिससे धान सड़ जाती है. सबसे बड़ी बात यह होती है की झुरिया धान में जुताई के बाद धान का बीज काफी नीचे गड़ जाता है जिससे उसकी जड़ें काफी नीचे चली जाती हैं अतः यदि पानी का भराव ज्यादा समय तक हुआ तो यह धान सड़ने लगती है. जबकि लेउ और रोपा में बिल्कुल इसके विपरीत होता है. एक कहावत भी है जिसे जैसे संस्कार मिलते हैं उसकी वैसी ही प्रवृति निर्मित होती है. झुरिया धान के संस्कार पानी विहीन अथवा कम पानी की खेती के होते हैं अतः इसे कम पानी ही चाहिए जबकि लेउ और रोपा पद्धति के द्वारा लगाई गई धान को प्रारम्भ से ही पानी चाहिए य यूं कहें की पानी से ही उत्पन्न ही होती हैं इसलिए लेउ रोपा धान पानी की अधिकता के वावजूद भी आसानी से नही सड़तीं.

लेउ धान के लिए बुवाई हो रही लेट

  7 जुलाई तक आवश्यक बारिश न हो पाने से लेउ धान की बोवाई संभव नही हो पा रही है. लेउ धान की बोवाई के लिए काफी पानी की आवश्यकता होती है. जब बारिश का पानी खेतों में पूरी तरह से भर जाता है और पूरी खेत की जमीन पानी से लबालब हो जाती है ऐसे में एक दो बाह जुताई किया हुआ खेत को ट्रेक्टर में चैन लगाकर जोत दिया जाता है जिससे खेत में उपस्थित खरपतवार और घासफूस उसी कीचड़ में गड़ जाती है. इसके बाद खेत बनने के बाद उसी में पहले से ही अंकुरित अथवा भींगे हुए बीज को बीजोपचार के पश्चात बो दिया जाता है. चूंकि खेतों को लेउ पद्धति से बुवाई के बाद चारा घास गड़ जाता है अतः यह अतिरिक्त खर्चा किसानों का बच जाता है जिंसमे या की निरवायी करवानी ही नही पड़ती अथवा यदि करवानी पड़ती है तो काफी कम निरवायी करनी होती है.

रोपा पद्धति एवं मेडागास्कर पद्धति से धान की रोपाई के लिए चाहिए पर्याप्त पानी

   सबसे ज्यादा आज रोपा पद्धति से धान की खेती प्रचलित हो रही है. यदि देखा जाए तो यह रोपा पद्धति काफी बेहतर प्रक्रिया है. इसमे सबसे पहले धान की नर्सरी डाली जाती है. जिसके तहत धान के बीज को घने रूप में किसी खेत में लेउ पद्धति से बोवाई कर दी जाती है. वैसे यह धान जब दो सप्ताह की हो जाए तभी इसे उखाड़कर खेतों में रोप दिया जाता है. सामान्यतया रोपा पद्धति की धान की किस्म के अनुसार अलग अलग प्रक्रिया होती है परंतु बहुतायत में जो धान रोपा पद्धति द्वारा लगाई जाती है उसकी दूरी कम से कम आठ अंगुल के बीच में होनी चाहिए. हाइब्रिड धान की रोपा पद्धति से की जाने वाली खेती ज्यादा पैदावार देने वाली होती है. 140 दिन में उत्पन्न होने वाली कावेरी 199 धान की नर्सरी डालकर की जाने वाली रोपाई में फायदे काफी बताए गए हैं. जिन किसानों ने कावेरी 199 की रोपा पद्धति से खेती की है उनका कहना है की धान को कम के कम 8 से 12 अंगुल की दूरी पर रोपना चाहिए जिससे जब इसमे नीचे से शाखाएं फूटें तो जगह की कमी न पड़े. किसानों द्वारा बताया गया की उनकी पिछले वर्षों बोई गई कावेरी रोपा धान में 70 से लेकर 80 तक शाखाएं नीचे से फूटी थीं जो काफी अच्छा है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कावेरी 199 धान की सही तरीके से खेती करने पर प्रति एकड़ 50 क्विंटल तक की उपज प्राप्त की जा सकती है. जबकि धरातल पर किसानी करने वाले किसानों का कहना है की अब तक उन्हें अधिकतम इसके आधे अर्थात 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ तक की ही पैदावार हुई है. यद्यपि कृषि विशेषज्ञों ने इसके पीछे पानी, खाद, मौसम को जिम्मेदार ठहराया.

खरीफ 2018 किसानों के लिए चिंताजनक 

   अब वर्तमान में जो स्थित बनी हुई है उसमे काफी किसान झुरिया की ही खेती कर रहे हैं. यह खरीफ वर्ष किसानों के लिए कुछ चिंताजनक है क्योंकि गई गुजरी हालात में जुलाई प्रारम्भ होते ही पर्याप्त पानी गिर देता था ऐसे में देखा जाए तो 7 जुलाई तक पानी कम से कम एक सप्ताह लेट है ऐसे में असिंचित किसानों के लिए चिंतित होना स्वाभाविक है.

कैथा के किसानों ने बोया झुरिया धान 

   कैथा ग्राम एवं उसके आसपास के किसान बहुतायत में झुरिया धान की खेती कर रहे हैं. दिवाकर केवट, दिलीप केवट, गोकुल केवट, राम खेलावन साकेत, बैद्यनाथ केवट, शिव मूर्ति केवट, शेषमणि पटेल, मुन्नालाल केवट, यज्ञनारायण केवट, दासरथ केवट, प्रसन्नलाल केवट, सहित रामविलाश लोनिय आदि कई लघु कृषकों ने झुरिया धान की ही बुवाई की है. जब उनसे पूंछा गया तो ज्यादातर एक से दो हेक्टेयर के छोटे किसानों का कहना था की यदि बारिश के पानी का और अधिक इंतज़ार करते हैं तो उनकी बुवाई लेट हो जाएगी जिससे आगे के रवी सीजन में बोवनी में भी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा.

कुछ किसानों ने डाला नर्सरी बीज, लगाएंगे रोपा

   कैथा और उसके आसपास के कई किसान ऐसे भी हैं जिनके पास ट्यूबवेल और मोटर पंप कनेक्शन उपलब्ध है उन ज्यादातर किसानों ने पहली दूसरी बारिश के बाद ही धान की नर्सरी डाल दिए जिसको बड़ी होने पर और पानी बरसने पर रोपा पद्धति से लगा दिया जाएगा. रोपा पद्धति से किसानी करने वाले किसानों में कैथा से सिद्धमुनि द्विवेदी, भद्रिका प्रसाद द्विवेदी, शिवशंकर द्विवेदी, भैयालाल पांडेय, भैयालाल द्विवेदी, बुद्धसेन पटेल, शम्भू पटेल, अंगद पटेल, शैलेन्द्र पटेल, राजेश पटेल, सत्यभान पटेल, जिमीदार, नरेंद्र पटेल, संपत्ति पटेल, गोपी पटेल, सोरहवा से हरीबन्स पटेल, राम नरेश पटेल, राजबहोर पटेल, सुरेश पटेल, रामाश्रय पटेल, चंद्रिका पटेल,  ग्राम बड़ोखर से मुनेंद्र सिंह परिहार, शिवेंद्र सिंह परिहार, बृजराज सिंह परिहार, ग्राम करहिया से दिनेश लोनिया, नेता लोनिया, सुरेश लोनिया, अजय तिवारी, रामचंद्र लोनिया सहित अन्य किसान सम्मिलित हैं.

संलग्न - कैथा, बड़ोखर, सोरहवा आदि आसपास क्षेत्र के झुरिया की बोवाई करते किसान.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मनवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोब 7869992139, 9589152587 

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