Monday, July 16, 2018

वन समितियों के मानसेवियों के मानवाधिकार का निरंतर किया जा रहा हनन, नही हो रही सुनवाई, सबसे ज्यादा जिम्मेदार रीवा वन विभाग (मामला ज़िले के विभिन्न ग्राम वन समितियों में कार्य करने वाले मानसेवी सुरक्षा वन कर्मियों का जिनका की वर्षों से मात्र 3 हज़ार रुपये में मासिक पेमेंट नही दी जा रही मात्र उनसे काम लिया जा रहा, शिकायत पहुची वन मंत्रालय नई दिल्ली)

दिनांक 16 जुलाई 2018, स्थान - लालगांव, रीवा मप्र 

(कैथा श्री हनुमान मंदिर से, शिवानन्द द्विवेदी)

    ज़िले के मानसेवी सुरक्षा वनकर्मियों की मुसीबत निरंतर बढ़ती जा रही है और इस पर वन विभाग निरंतर उदासीन बना हुआ है. आखिर क्या वजह है की वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संवैधानिक नियमानुसार दशकों पूर्व लाई गई ग्राम वन समिति की परिकल्पना और योजना पर वन विभाग ही पानी फेर रहा है? आखिर ग्राम वन समितियों के नष्ट होने से वन विभाग को क्या फायदा होने वाला है? अभी हाल ही में आपने देखा होगा की किस तरह से वन रक्षकों और रेंजर वगैरह ने महीने भर हड़ताल किया जिस पर वन एवं पर्यावरण का अतुलनीय नुकसान हुआ. वनों की धुआंधार अवैध कटाई की गई, अवैध शिकार हुए, अवैध उत्खनन एवं परिवहन हुए, वनों में आग लगी उसे बुझाने में महीनों लग गए. लेकिन यदि वन संपदा की उस दरम्यान थोड़ी भी सुरक्षा हुई तो वह मात्र इन्ही 3 हज़ार रुपये प्रतिमाह पाने वाले ग्राम वन समितियों के मानसेवी सुरक्षा चौकीदारों से. तब फिर आखिर वन विभाग की इन लेबरों से क्या दुश्मनी है? वन एवं पर्यवरण विभाग ग्राम वन समितियों को और अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने की अपेक्षा क्यों नष्ट करने में तुला है? 

लेबर के ह्यूमन राइट्स का भी घोर हनन

    बात मात्र सिरमौर वन रेंज अथवा रीवा डीएफओ और सीसीएफ तक ही सीमित नही रहा है. अब यह मामला मानवाधिकार आयोग तक पहुच चुका है क्योंकि इसमे सीधा सीधा लेबर के लेबर राइट्स का हनन है. आखिर दुनिया का कौन से संविधान और नियम है, आखिर दुनिया का कौन सा ऐसा लोकतांत्रिक देश होगा जहां लेबरों से ऑफिशियली काम तो करवाया जा रहा है लेकिन उनकी पेमेंट नही दी जा रही है. यह सब मात्र भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ही संभव हो सकता है.

ट्विटर पर मामला पहुचा वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार तक

     ग्राम वन समितियों के माध्यम से नियुक्त मानसेवी सुरक्षा वनकर्मियों को उनकी पेमेंट न दिए जाने का मामला अब ट्विटर के माध्यम से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय भारत सरकार के साथ साथ मप्र शासन वन विभाग भोपाल तक पहुच चुका है. निश्चित ही इस पर अब कार्यवाही भी प्रारम्भ हो चुकी है क्योंकि कुछ मानसेवी वन कर्मियों ने सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को जानकारी दी है की मानसेवियों से इस बाबत अब विभाग द्वारा जानकारी भी माँगी जाने लगी है की कौन कितने दिनों तक कार्य किये हैं. मानसेवियों ने आगे बताया की रेंज कार्यालय से उन्हें बताया गया है की उनकी अभी तीन माह की पेमेंट का बाउचर बनाया जा रहा है बांकी आखिर कौन देगा?

वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था लोकतंत्र पर काला धब्बा

   यह तो अच्छी बात है की मानसेवियों की आवाज सुनी जाने लगी है लेकिन क्या यही कार्य पहले नही हो सकता था? आखिर यदि इन निचले स्तर के छोटे वनकर्मियों के पास कोई सोर्स और इनकी आवाज़ नही होती तो क्या इनकी आवाज़ कभी भी इस भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुनी जाती? यह सब प्रश्न हैं जो भारतीय प्रशासनिक एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही चैलेंज करते हैं. इस बात पर विभाग और सरकार दोनो को ध्यान देने की आवश्यकता है.

संलग्न - रीवा सिरमौर रेंज के अन्तर्गत आने वाली पनगड़ी, देउर, रुझौही, सरई ग्राम वन समिति के मानसेवी वनकर्मी अपने अपने आवेदन और पीड़ा लिए हुए फ़ोटो के साथ.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 7869992139, 9589152587

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