दिनांक 29 जून 2018, स्थान - गंगेव, रीवा-मप्र
(कैथा से, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)
अभी हाल ही में 1 से 10 जून तक किसान आंदोलन हुआ जिसे गांव बंद बताया गया. कुछ जिलों को छोंड़कर गांव बन्द का विशेष प्रभाव सरकार को नही पड़ा. चिंता तो सरकार की तब बढ़ती जब अच्छा खासा गांव बन्द का प्रभाव पड़ता. लेकिन किसानों की एकजुटता की कमी और कमजोरी के चलते सरकार का पलड़ा भारी पड़ जाता है. सरकार उन्ही की सुनती है जिनसे उसे खतरा बना रहता है. सरकार गिरने का खतरा, लॉ एंड आर्डर का खतरा अथवा सरकार चला रही पार्टी के लिए वोट बैंक का खतरा. लेकिन 1 से 10 जून तक गांव बन्द में किसानों की एकजुटता न हो पाने से सरकार के आर्थिक ढांचे में कोई विशेष प्रभाव नही पड़ा.
किसानों की आत्महत्या में कोई अंतर नही
पूरे प्रदेश या यूं कहें की सम्पूर्ण देश में जगह जगह गरीब और कमज़ोर किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं. प्रतिदिन कोई न कोई घटना ऐसी घटित हो रही है जिंसमे किसान कर्ज़ के बोझ, शूखे की मार, अथवा अन्य कृषि संबंधी कारणों से मजबूर होकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड के डेटा इस बात के पूरे गवाह हैं की किसानों की बदहाली में कोई विशेष अंतर नही दिख रहा है.
बोवनी आधी होने को आई पर कृषि विभाग में बीज नही
आज पूरे प्रदेश में खरीफ फसल की बोवनी चल रही है आधा बोवनी का समय व्यतीत होने को है लेकिन ज़िले और प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विभाग में बीज ही नही है. कुछ बीज जरूर आये हैं परंतु वह पहले से ही कम से कम 15 दिन विलंब से हैं. मसलन गंगेव कृषि विभाग रीवा में अब तक जो बीज किसानों के लिए उपलब्ध बताया जा रहा है वह है सबसे ज्यादा समय लेने वाली धान कावेरी-199 का बीज. यही धान पिछले वर्ष भी गंगेव ब्लॉक में भेजी गयी थी और बताया गया था की यह प्रदर्शन वाली धान है जिसे कुछ विशेष ग्रामों में किसानों को देकर देखा जाता है की इसकी उपज कैसे होती है. पिछले वर्षों गंगेव ब्लॉक के कृषि विस्तार कार्यालयों के जिन ग्रामों में इस धान को बोया गया था वहां पर किसान ज्यादा खुश नही है. इसे पकने में साढ़े चार माह के आसपास का समय लगा था. पिछले वर्ष रीवा में आषाढ़ श्रावण में एक दो बार जमकर बारिश हो गई थी जिससे खेतों में भराव हो गया था इसके बाद बारिश चली गई और मात्र कुछ स्थानों पर धान के पकने के समय बारिश हुई. जिन जिन किसानों ने इस कावेरी धान को बोया था और जिनके पास स्वयं बोरवेल और पानी की व्यवस्था थी वह किसी तरह से रो गाकर धान पकाए लेकिन जिन किसानों के पास सिंचित भूमि नही थी उन्हें काफी दिक्कत हुई. या की उन्होंने अपने पडोस वाले किसान से पैसा में पानी खरीदकर इस धान को पकाया अथवा उनकी पूरी फसल पकने के बहुत पहले ही सूख गई. खैर कृषि विस्तार अधिकारियों ने तो यह भी जानकारी लेने का प्रयाश नही किया की बोई गई ध्यान का हुआ क्या? क्या धान पकी की नही पकी? यदि नही पकी तो इसके आधार पर कृषि विभाग को फीडबैक देना चाहिए की रीवा क्षेत्र में पानी के अभाव के कारण हल्की किश्म की धान जो 70 से 90 दिन में पकती है उसे बढ़ावा देना चाहिए न की ऐसी धान जिसके लिए क्षेत्र के वातावरण के विपरीत लगाया जाय. कावेरी जैसा की नाम ही बता रहा है की यह साउथ इंडियन टाइप की धान हैं जहां वर्ष में धान की 3 खेती की जा सकती है और जहां पानी का बहुतायत रहता है. लेकिन मप्र के रीवा जैसे संभाग में जहां अक्सर ही अल्प वृष्टि देखी जाती है और साथ ही बोरवेल भी सूख जाते हैं , कावेरी जैसी बजनी धानों को प्रमोट करने की क्या जरूरत है?
कावेरी धान को नही पसंद करते किसान
रीवा ज़िले के गंगेव कृषि विभाग सहित अन्य कृषि विभागों में आने वाली कावेरी धान को किसान कम पसंद करते हैं. यद्यपि यह धान प्रदर्शन की होने के कारण फ्री ऑफ कॉस्ट उपलब्ध करवाई जाती है इसलिए किसान ले तो जाते हैं लेकिन फिर भी बोवनी के समय काफी चिन्तित रहते हैं की क्या पता इसकी पैदावार हो भी की न हो. हाँ आज अधिकतर किसानों के पास बोरवेल ट्यूबवेल है इसलिए पानी की ज्यादा दिक्कत न होने के कारण रिस्क ले लेते हैं. लेकिन ज्यादातर किसान अभी भी अधिक पैदावार देने वाली हल्की किश्म की धान जैसे आई आर 50 अथवा 64 या 1010 ही ज्यादा बोते हैं.
कृषि कर्मचारियों की हड़ताल के कारण भारी समस्या
पिछले महीने भर से कृषि विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल ने भी किसानों की समस्याओं को काफी हद तक बढ़ा दिया है. बताया गया की बीज खाद का भंडारण समय पर न हो पाने के कारण वितरण भी लेट हो रहा है. किसानों द्वारा बताया गया की 15 जून तक कावेरी जैसे बजनी किश्म की 140 दिन के ऊपर का समय लेने वाली धानों का बीज डाल दिया जाना चाहिए नही तो समय पर पकने में दिक्कत होती है.
प्रदर्शन के अतिरिक्त कोई बीज नही
यदि किसान कृषि विभाग द्वारा लाया गया अच्छा और मानक बीज पैसे से भी लेना चाहे तो यहाँ प्रदर्शन वाले कावेरी बीज के अतिरिक्त अन्य कोई बीज उपलब्ध नही है. यह एक बहुत बड़ी बिडम्बना है. प्रदर्शन वाला कावेरी बीज भी बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है. बताया गया की जो भी उपलब्ध है वह कुछ गिने चुने किसानों को ही दिया जा सकता है. इस प्रकार देखा जाए तो जितनी बीज की मात्रा गोदाम में भंडारित दिखी है उससे पूरे गंगेव ब्लॉक के 88 ग्रामों के किसानों को लिया जाए तो मात्र एक ग्राम के एक या दो किसान को ही दिया जा सकता है.
जिनकी जितनी पहुच उनको उतना बीज
गंगेव ब्लॉक में यह देखा गया की किसानों को बीज खाद और कीटनाशक वितरित करने का कोई नियम कायदा नही है. यहां सारा कार्य दबाब पद्धति से किया जाता है. मसलन जिसकी जितनी पहुच होती है उसे उतनी सामग्री मिलती है. यदि कोई आम किसान बिना किसी जान पहचान के पहुच जाए चाहे उसके पास 20 एकड़ की ही भूमि क्यों न हो उसे कुछ नही दिया जाएगा. उसे सीधे बताया जाता है की बीज अभी तक आया ही नही. लेकिन यदि वही किसान हो हल्ला मचाना प्रारम्भ कर दिया और ऊपर तक कंप्लेन करने लगे तो फिर उसे बीज दे दिया जाएगा.
कृषि कमर्चारी कहते हैं उनका कोई दोष नही
गंगेव कृषि विभाग में पदस्थ एसएडीओ वीरेंद्र सिंह चौहान और अन्य ग्राम केवकों की दलील है की इसमे हमारा कोई दोष नही है. यह सीधे सरकार का मामला है. यदि सरकार और ऊपर विभाग हमारे पास कुछ भेजेंगे ही नही तो हम कैसे दे पाएँगे. कृषि कर्मचारियों ने यह भी बताया की ज्यादातर किसान हल्की किस्म की धान पसंद करते हैं लेकिन विभाग बार बार ऊपर से कावेरी ही भेज देता है.
कृषि विभाग में पारदर्शिता का अभाव एक बड़ी समस्या
कृषि विभाग रीवा में पारदर्शिता की व्यापक समस्या है. जिसके कारण किसान पूरी तरह से अंधेरे में रहता है. किसान को इसकी कोई जानकारी नही रहती की कब बीज का भंडारण किया जा रहा है और कब वितरण. जब तक किसान स्वयं जाकर लड़ झगड़कर ब्लॉक आफिस में जानकारी न ले तब तक उसे किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नही दी जाती.
आर टी आई की जानकारी तक छुपाने का प्रयाश
और तो और अभी पिछले वर्षों कृषि विभाग गंगेव में कई आर टी आई दाखिल कर जानकारी प्राप्त करने का प्रयाश किया गया की किस ग्राम में कौन से आर ए ई ओ कार्यरत हैं कौन किसान मित्र हैं, खरीफ और रवी वाइज कौन कौन सी योजनाओं में क्या क्या बीज खाद कीटनाशक किन किन किसानों को वितरित किये गए. क्या क्या सामग्री सरकार द्वारा ब्लॉक कार्यालय में भेजी गई. कृषि विभाग द्वारा गांव गांव जाकर क्या क्या कार्यक्रम किये गए और इसके कितने खर्च आये. यह सब जानकारी कृषि विभाग गंगेव से चाही गई लेकिन कहीं कुछ जानकारी दिए गए समय सीमा में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को उपलब्ध नही करवाई गई. उल्टे कृषि विभाग त्योंथर के एसडीओ मनीष मिश्रा द्वारा और साथ ही ब्लॉक गंगेव के एसएडीओ द्वारा कहा गया की आर टी आई लगाने की क्या जरूरत है जब हम लोग आपको सब सामग्री उपलब्ध करवा देते हैं.
मतलब आर टी आई को भूल जाईये, आपका काम होगा
जिस प्रकार से गंगेव कृषि विभाग में निरंतर पारदर्शिता का अभाव बना हुआ है उससे स्पष्ट है की पूरे ज़िले के कृषि विभाग में मनमानी चलती रहेगी इसमे कोई अंतर नही आने वाला. जो कृषक और हितग्राही आर टी आई लगाएगा उसे पटाने का प्रयाश किया जाएगा और जिनको कुछ नही मिल रहा उन्हें कभी कुछ नही मिलेगा.
ग्राम सेवक को सीधा पिसान लेकर ढूंढना पड़ता है
यहां गंगेव ब्लॉक अंतर्गत आने वाले ज्यादातर किसानों को यह जानकारी ही नही है की उनके ग्राम सेवक और कृषि विस्तार अधिकारी कौन हैं कहां रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर कहाँ मिलेंगे. जब कभी किसी जरूरी कागजातों में हस्ताक्षर करवाने होते हैं तो ग्राम सेवक को सीधा पिसान लेकर ढूंढना पड़ता है.
गंगेव कृषि विभाग में सप्ताह में बड़े मुश्किल से एकबार आते हैं ग्राम सेवक
यदि किसी किसान को ग्राम सेवकों की जरूरत है तो उसे ब्लॉक कृषि विभाग जाना पड़ेगा जहां सप्ताह में मात्र वृहस्पतिवार को मुलाकात हो सकती है. यद्यपि वृहस्पतिवार मीटिंग का दिन बताया गया है लेकिन इसकी कोई गारंटी नही रहती की कृषि विभाग में भी ग्राम सेवकों से मुलाकात हो ही जाए.
नही है अरहर उड़द का बीज
गंगेव ब्लॉक में अरहर और उड़द का बीज उपलब्ध नही है. जानकारी मिली की अरहर और उड़द का बीज इस वर्ष अभी आया ही नही जबकि नियमानुसार बोवनी का आधा समय व्यतीत हो चुका है. कई किसान अरहर उड़द का बीज लेने के लिए ब्लॉक आफिस गए लेकिन मायूस होकर खाली हाँथ लौट आये.
गुरुवार 28 जून को गंगेव में हंगामे के बाद ही मिल पाया बीज
जहां तक सवाल गुरुवार दिनांक 28 जून 2018 को कृषि विभाग गंगेव में एकत्रित दर्जनों किसानों को बीज वितरण का है उसके बारे में बताना पड़ेगा की ग्राम पंचायत कैथा, हिनौती और पडुआ के एकत्रित दर्जनों किसानों को नियमानुसार सारे कागजातों को जमा करने के बाद भी बीज उपलब्ध नही करवाया जा रहा था, फालतू के नियम कायदे जिनका की पालन स्वयं कृषि विभाग भी नही कर रहा ऐसे नियम बताकर किसानों को परेशान किया जा रहा था. इस बीच सभी किसानों की अगुआई सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा किया जा रहा था. इस बीच देखा गया कि जहां आम किसानों को फालतू में बैठा कर रखा गया था वहीं रसूखदारों को दनादन गोदाम खोलकर बीज बांटा जा रहा था. कई रसूखदार स्वयं ही घुसकर दो बोरी चार बोरी हाइब्रिड धान की 30 किलो की बोरियां उठा उठाकर अपने गाड़ियों में भर भर कर ढो रहे थे. यह सब वाकया देखा नही गया और इसकी सूचना संबंधित उच्च धिकारियों को दिए जाने का विचार हुआ. इस बीच भोपाल डायरेक्टरेट स्थित कृषि विभाग में जानकारी दी गई और सारा वाकया बताया गया. डायरेक्टरेट से बताया गया की पहले रीवा डिप्टी डायरेक्टर और संभागीय कृषि अधिकारी से बात की जाए और यदि मामला नही सुलझता तो फिर भोपाल में कंप्लेंट भेजी जाए. भोपाल कार्यालय से ही प्राप्त रीवा के कृषि अधिकारियों के नंबर में जानकारी प्रेषित की गई और बहुत ही स्पष्ट शब्दों में डायरेक्टर कृषि को बताया गया की यहां गंगेव कृषि विभाग में भौशा चल रहा है और यदि समस्या का समाधान नही किया जाएगा तो उपस्थित किसान आंदोलन करेंगे और कृषि विभाग से हटेंगे नही. इस पर समस्या की गंभीरता को आंकते हुए डायरेक्टर कृषि ने गंगेव के एसएडीओ वीरेंद्र सिंह चौहान को तत्काल फ़ोन लगाकर किसानों की समस्या के समाधान के लिए कहा तब जाकर गंगेव कृषि विभाग के कर्मचारियों के होश ठिकाने आये और तत्काल बीज बांटना प्रारम्भ किया.
कुछ 2 दर्ज़न किसानों को दिए बीज
इस बीच उपस्थित किसानों देवेंद्र सिंह पिता सुरसरी सिंह, पुष्पराज सिंह पिता सुमंत सिंह, सत्यभान पटेल, राम खेलावन पटेल पिता जग्गू पटेल, श्रवण कुमार पटेल, रवि सिंह पिता वीरेंद्र सिंह, राजेश पटेल पिता जगदीश पटेल, शैलेन्द्र पटेल पिता जगदीश पटेल, नरेंद्र पटेल पिता जगदीश पटेल, जगदीश पटेल पिता राम विशाल पटेल, सत्यनारायण सिंह पिता बंश बहादुर सिंह, राजनारायण सिंह पिता वंस बहादुर सिंह, अरुणेंद्र पटेल पिता हरीबन्स पटेल, शैलेन्द्र पटेल महारथी प्रसाद पटेल, लाल बहादुर पटेल पिता जमुना पटेल आदि को कुल 6 किलो प्रत्येक के हिसाब के दो दो पैकेट का बीज दिया गया. किसानों को बीज देते समय यह बताया गया की यह बीज दो एकड़ में लगाया जा सकता है और रोपा पद्धति से लगाया जाना चाहिए.
मात्र 6 किलो प्रत्येक किसान को दिया गया बीज है बहुत कम
किसान कल्याण एवं कृषि विभाग द्वारा उक्त किसानों को वितरित 6 किलो प्रत्येक कावेरी धान का बीज बहुत कम है. यद्यपि यह बीज तो किसानों को मुफ्त में दिया गया है लेकिन किसानों को बोवनी के रकबे के हिसाब से काफी कम था. कुछ उपस्थित किसानों ने बताया की उनका रकबा 10 से लेकर 50 एकड़ तक का है अतः उन्हें चाहे पैसे में मिले लेकिन सब्सिडी वाला हल्की धान का बीज मिल जाता तो उनके लिए बेहतर होता.
सूरज धारा स्कीम का बीज हरिजन आदिवासी कृषकों के लिए
जब गोदाम में घुसकर देखा गया तो पता चला की कावेरी हाइब्रिड धान के बीज के अतिरिक्त भी सफेद किस्म की बोरियों में अलग से भी बीज का कुछ स्टॉक था जो लगभग 100 बोरी के आसपास समझ आया. जब इस विषय में एसएडीओ वीरेंद्र सिंह चौहान से जानकारी चाही गई तो उन्होंने बताया की यह बीज हरिजन आदिवासी कृषकों के लिए स्कीम के अन्तर्गत आया है जिसे उन्हें फ्री ऑफ कॉस्ट बाटना है. इसके लिए बताया गया की सामान्य वर्ग की ही तरह उन कृषकों के पास कम से कम एक एकड़ की भूमि होनी चाहिए. जरूरी कागजातों में ऋण पुस्तिका एवं आधार कार्ड लाना अनिवार्य है.
सरकार की कथनी और विभागों की करनी में अंतर
यहां पर यह बात विशेष तौर से कहना उचित होगा की सरकार किसानों के कल्याण के लिए और कृषि के विकाश के लिए बड़े बड़े दावे तो कर रही हैं. मप्र में तो सरकार दर्जनों पैम्फलेट और बुकलेट भी बना बनाकर बांटे हैं लेकिन उनका कहीं क्रियान्वयन होता हुआ नही दिख रहा है.
सरकार के यह निकम्मे विभाग और उनके कर्मचारी अधिकारी सभी योजनाओं का क्या कर दे रहे हैं इसका कोई रता पता नही चल पा रहा है. आज सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक सबसे ससक्त माध्यम था लेकिन आर टी आई को इतना कमज़ोर कर दिया है की कहीं कोई जानकारी नही दी जा रही है. यहां तक की अपील में जाने और राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी वर्षों बाद भी जानकारी नही मिल पा रही है इसलिए सभी विभागों और अधिकारियों ने अपने मनमर्जी के हिसाब से काम चलाने का मन बना रखा है यदि आम जनता हल्ला गुल्ला और शोर शराबा भी करे तो इन्हे क्या फर्क पड़ने वाला है. विभाग सरकार से बड़े तो नही होते अतः विभाग को क्या कहना इसमे मुख्य खलनायक तो यह सरकारें ही हैं जो किसानों के लिए कुछ भी सार्थक नही कर रही हैं क्योंकि यदि विभाग गलत कर रहा है तो उस पर कार्यवाही करने का अधिकार मात्र सरकार के पास ही है. इन सरकारों को जबाब किसानों और आम जनता को एकजुट होकर देना पड़ेगा.
संलग्न - गंगेव कृषि विभाग में दिनांक 28 जून 2018 को एकत्रित किसान गण और साथ में एसएडीओ गंगेव को सौंपने को ज्ञापन जिंसमे ज्यादातर उपस्थित किसानों के सिग्नेचर थे. साथ ही रसूखदार अपनी अपनी गाड़ियों में भरते हुए मनमुताबिक बीज जिन्हें देखने वाला कोई न था.
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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,
ज़िला - रीवा मप्र, मोब 7869992139, 9589152587
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