Saturday, June 30, 2018

किसानों की खेती के साथ फिर बढ़ जाएंगी गोप्रताड़ना, बनेंगे अवैध बाड़े, होगी पशु क्रूरता, शासन प्रशासन मौन, हिंदुत्ववादी संगठन बने रहेंगे तमाशबीन, मात्र होगी वोट बैंक की राजनीति, गोवंश न डाल पाएंगे वोट इसलिए नही सुनी जाएगी मूक बेजुबान की आवाज ( मामला देश प्रदेश में हो रहे पशु प्रताड़ना पर जहां मजबूर किसान खेती बचाने बनाते हैं अवैध बाड़े जहां घुट घुट कर मर जाते हैं मूक बेजुबान पशु)

दिनांक 30 जून 2018, गढ़, रीवा-मप्र,

(कैथा श्री हनुमान मंदिर से, शिवानन्द द्विवेदी)

     आज जब हम सब किसान एक बार फिर खरीफ धान की खेती प्रारम्भ करने वाले हैं हममें से कुछ गोवंश और पशु प्रेमी किसान यह बात जरूर सोच रहे होंगे की अब इस वर्ष क्या होगा? क्या हमारी सारी धान की फसलें आवारा पशुओं द्वारा चर ली जाएंगी या यह बच पाएगी? क्या सरकार आवारा पशुओं के लिए व्यवस्था करेगी य यूं ही हमारे स्वयं के द्वारा आवारा छोंड़ दिए गए इन पशुओं से हमारी स्वयं की फसलें तबाह हो जाएंगी?

    शायद कुछ किसान अथवा गोवंश प्रेमी यह भी सोच रहे होंगे की एकबार फिर गायों की दुर्दशा देखने को मिलेगी जहां आवारा पशुओं को एकत्रित करके जबरन किसी बाड़े में ठूस दिया जाएगा जहां न तो इनके लिए चारा पानी की व्यवस्था होगी और न ही किसी छत्रछाया की. उन्ही अवैध रूप से ग्रामीणों द्वारा बनाये गए बाड़ों में यह बेजुबान पशु भूंख प्यास वर्षा सहते हुए कुछ सप्ताह अथवा महीनों में घुट घुट कर मर जाएंगे.

  आवारा पशुओं का क्या है समाधान 

    आज समाज और सरकार दोनो के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है की समाज द्वारा आवारा छोंड़ दिए गए इन पशुओं का क्या समाधान है? इनको कौन पाले? कौन इनकी व्यवस्था करे? जब तक गायें दूध देती हैं तब तक दूध बहुत प्रिय है. हमे चाय तो दूधवाली चाहिए, बच्चों को भी देशी गाय का ही दूध चाहिए, साथ ही मठ्ठा, दही, लस्सी, घी, मख्खन पनीर सब कुछ चाहिए. परंतु जैसे ही गाय दूध देना बन्द कर देती है वैसे ही वह आजकल के फैशन में बूढ़े माँ-बाप की तरह बेकाम हो जाती हैं और उन्हें मरने के लिए छोंड़ देते हैं. आज भारतीय समाज में जिस प्रकार से वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम बढ़ रहे हैं उसी प्रकार आवारा छोंड़ दिए गए गायों के लिए भी कुछ गिने चुने बचे हुए गोप्रेमी लोगों द्वारा मिलजुलकर अथवा सरकार पर दबाब डालकर और अधिक बड़ी गोशालाएं बनाई जानी चाहिए. आने वाला भारतीय समाज और भी आधुनिक होगा जहां पर पुरानी परंपराओं और रीति रिवाजों के लिए कोई विशेष जगह नही बचेगी. यदि परंपराएं बड़ी मुश्किल से चलेंगी भी तो मात्र औपचारिकता के रूप में.

   दशकों पूर्व थी पशुओं की अधिक उपयोगिता 

   आज गोवंशों के प्रति निरंतर हो रही क्रूरता और उपेक्षा के पीछे सबसे बड़ा कारण इनकी उपयोगिता का कम हो जाना है. शहरों में तो कभी भी दूध डेयरी के अतिरिक्त पशुपालन होता नही. कहें की हज़ारों में कोई एकाध गो प्रेमी हों जो अपने घर में एक गाय रखे हों वह अलग बात है. गायों और पशुओं की उपयोगिता सबसे अधिक ग्रामीण समाज में रहती थी. भारत में चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, इशाई हो या सिक्ख सभी धर्मों और सम्प्रदायों के ऐसे लोग जो ग्रामों में निवास करते थे और जिनके पास दो चार एकड़ अथवा अधिक की भूमि थी जब तक मशीन का ईजाद नही हुआ था तब तक अपने ग्रामों में पशुओं को पाल कर रखते थे. गाय से बैल उत्पन्न होता था और बैल हल में जोतने का कार्य करता था साथ ही गहाई मिजाई में भी काम आता था. पहले आज जैसे न तो मिटी का तेल पर्याप्त था और न ही गैस वगैरह अतः पशुओं से प्राप्त गोबर का प्रयोग ईंधन और खेत में उपयोग होने वाली खाद के रूप में किया जाता था.

मशीनीकरण और आधुनिकता है मुख्य वजह

   पर आज जब पशुओं से लेकर आदमी तक की जगह मशीनें और रोबोट लेने लगे हैं स्वाभाविक रूप से पशुओं के साथ साथ आदमी की भी उपयोगिता कम होती जा रही है. अतः आज के इस कलयुगी समाज में यदि किसी को भी सम्मान पूर्वक जीवित बने रहना है तो इस स्वार्थी समाज के किसी न किसी उपयोग में आना होगा. धर्म कर्म और संस्कार की आज बात करना लगभग फालतू हो चुका है. जो धर्म की बात करते हैं उन्हें पागल और साम्प्रदायिक कहते हैं और जो कर्तव्य की बात करते हैं उन्हें यह तथाकथित आधुनिक समाज मूर्ख और 18 वीं सदी का बताता है. अतः बहुत से लोग इसके चलते आधुनिकता और मशीनीकरण के दौर में वह सब अनर्थ करते जा रहे हैं और वही सब अनर्थ आज उनके संस्कार बनते जा रहे हैं.

  ट्रेक्टर, जेसीबी, थ्रेशर, और अन्य मशीनों ने पशुओं का कर दिया काम तमाम

   गाय को माँ कहना भूल जाईये, आज का कुछ आधुनिक समाज अपनी माँ को भी माँ कहने में झिझकता है. यदि माँ-बाप बूढ़े और ग्रामीण कम पढ़े लिखे हैं तो आज का तथाकथित मॉडर्न व्यक्ति उन्हें अपना नौकर अथवा गांव वाला कहकर इंट्रोड्यूस करता है. इससे बढ़कर विडंबना और क्या हो सकती है.

    गाय तो बहुत दूर की वस्तु है. गाय का देशी दूध सभी को चाहिए, दुग्ध उत्पाद सभी को चाहिए लेकिन गायों के प्रति संवेदनशील कोई नही होना चाहता. गाय के बच्चे अर्थात बैल को कोई देखना नही चाहता.

    जब तक बैल हलों में चलते थे और उपयोगी थे तब तक वह सभी के लिए महत्व के थे अब मशीनों के चलते उनका महत्व समाप्त हो चुका है.

  फिर बनेंगे अवैध बाड़े, फिर बढ़ेगी पशु क्रूरता

     खरीफ वर्ष 2018 की फसल के साथ ही आवारा छोंड़ दिए गए गोवंशों की प्रताड़ना फिर बढ़ने वाली हैं. जगह जगह गांव गांव में किसानों काश्तकारों की लाठियां और डंडे के साथ साथ टांगा और कुल्हाड़ी खाते हुए यह गोवंश घायल अवस्था में भूंखे प्याशे फिर मरेंगे, गांव गांव इनके लिए नाज़ी युग में यहूदियों के लिए बनाये गए गैस चैम्बर और डिटेंशन कैम्प की तरह बांस बल्ली और कटीले तारों के बनाये गए अवैध बाड़ें होंगे जहां इन्हें अपर्याप्त व्यवस्था के साथ रखा जाएगा. न तो वहां पर कोई किसी प्रकार की छाया होगी और न ही पैरा भूषा की. ऐसे में कुछ दिनों बाद यह पशु प्रताड़ित होकर मरेंगे यही इनकी किस्मत में हर वर्ष लिखा रहता है. 

  जनकहाई और गदही के गो अभ्यारण्य का क्या हुआ?

    सिरमौर क्षेत्र रीवा में पिछले कई वर्षों से गोवंश प्रताड़ना के केस सामने आये हैं जिनमे सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोवंश राइट्स एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी द्वारा पशुओं के साथ हो रही क्रूरता को सोशल मीडिया एवं मीडिया के माध्यम से निरंतर उठाया जाता रहा है साथ ही ऐसे दर्जनों प्रकरणों में पूरे सबूत के साथ घटनास्थल पर जाकर उच्चधिकारियों द्वारा कार्यवाही भी करवाई गई है, अवैध बाड़े तोड़वाकर पशुओं को आज़ाद करवाया गया है, उनकी जाने बचाई गई हैं और साथ ही दोषियों को दंडित करवाने का भी प्रयाश किया गया है.

      पिछले वर्षों समाजिक कार्यकर्ता के इन्ही प्रयाशों के चलते रीवा ज़िले में गोअभ्यारण्य बनाये जाने की पहल की गई हैं जिनमे जनकहाई में प्रपोजल का डीपीआर हुआ था और साथ ही हिनौती के गदही में हज़ार एकड़ से अधिक शासकीय भूभाग में भी गोअभ्यारण्य बनाये जाने के लिए प्रपोजल ज़िला कलेक्टर रीवा एवं केंद्रीय मंत्रालय के निर्देश पर एसडीएम केपी पांडेय की जांच के दौरान उठा था. लेकिन जनकहाई एवं गदही के प्रपोजल का क्या हुआ इसकी कोई जानकारी नही है. एकबार फिर अकस्मात शासन चौंक पड़ेगा जब नित नए रोज गोप्रताड़ना के किस्से सोशल मीडिया एवं मीडिया में छाए रहेंगे.

   गदही में गो अभयारण्य बनाया जाना अति आवश्यक

    यदि गढ़ थाना क्षेत्र में गोवंश प्रताड़ना पर रोक लगाना है तो या की ऐसा कृत्य करने वालों के ऊपर सीधे एफआईआर दर्ज हो अथवा गोवंशों की समुचित व्यवस्था की जाए जिससे किसानों की फसल नुकसानी पर रोक लगे. उसके लिए आवश्यक है की गंगेव ब्लॉक एवं सिरमौर तहसील अन्तर्गत आने वाला गदही ग्राम पर हज़ार एकड़ से अधिक के शासकीय भूभाग पर गोअभ्यारण्य बनाया जाए.

गो अभ्यारण्य से स्थापित होगा उद्योग

   यदि थाना गढ़ क्षेत्र एवं सिरमौर तहसील के अन्तर्गत आने वाले गदही ग्राम के शासकीय राजस्व के भूभाग में गो अभ्यारण्य बनाये जाने की पहल शासन प्रशासन करता है तो इससे न केवल गोवंशों की सुरक्षा होगी बल्कि गोवंश जनित उद्योग की भी एक प्रकार से स्थापना हो जाएगी. गोवंशों के गोबर से जैविक खाद, गोबर की खाद, गोबर गैस, गोमूत्र से दवा का निर्माण, पंचगव्य का निर्माण, दूध से दुग्ध उत्पाद आधारित सामग्री आदि का निर्माण किया जाकर कई लोगों को इस रोजगार से भी जोड़ा जा सकता है.

गोहत्या पर सीधी हो फांसी की सजा का प्रावधान 

    वास्तव में जब तक गाय को संरक्षित राष्ट्रीय पशु की संज्ञा में नही लाया जाता तब तक गाय की रक्षा सुरक्षा हो पाना काफी मुश्किल बात है.  सबसे पहले सरकार को चाहिए देश से बीफ उत्पाद के निर्यात पर पूरी तरह से बैन लगा देना चाहिए. साथ ही जानबूझकर गाय की हत्या करने वाले को कड़ी से कड़ी सजा और यहां तक की फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए. 

कैसे बढ़ाई जाए गोवंशों की उपयोगिता

    आज तथाकथित आधुनिक मॉडर्न समाज में गाय की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है. गोवंश की उपयोगिता मात्र दूध खाने तक ही सीमित रह गई है. आज न तो हल में बैल की जरूरत है न ही बैलगाड़ी में, इसी प्रकार कोल्हू में भी बैल नही लगता, मिजाई, गहाई, दमरी आदि में बैल की उपयोगिता समाप्त हो चुकी है अतः यह आवश्यक है की बूढ़े और कमजोर हो चुके बैलों से लेकर सभी प्रकार के गोवंशों की उपयोगिता पर पुनर्विचार किया जाए. 

   कृत्रिम और रासायनिक खादों से बढ़ रही बीमारियां, समाप्त हो रही उर्वराशक्ति

   कृत्रिम और रासायनिक खादों के उपयोग से बीमारियां बढ़ रही हैं और साथ ही जमीन की उर्वराशक्ति भी समाप्त होती जा रही है जिससे वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर जैविक खेती पर बल दिया जा रहा है. जैविक खेती करने के लिए सरकारें भी प्रोत्साहित कर सब्सिडी दे रही हैं लेकिन अभी भी हरित क्रांति के बाद से इतना अधिक रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाने लगा है की जैविक और गोबर की खाद के विषय में कोई सोच ही नही रहा है. अब जब इस प्रदूषित खान पान और केमिकल से नित नई बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं ऐसे में वैज्ञानिक और डॉक्टर भी चिंतित हो रहे हैं की ऐसे में उत्पादन से अधिक सरकार का खर्च तो बीमारियों के इलाज में खर्च हो रहा है ऐसे में वैज्ञानिक और सरकारें कम से कम रासायनिक खाद के प्रयोग पर बल दे रही हैं साथ ही जैविक खाद और जैविक खेती का प्रचार प्रसार कर रही हैं. यह बात तो आज आम है की हरित क्रांति के बाद ज्यादा उत्पादन की होड़ में हो रही बेतरतीब रासायनिक खाद के प्रयोग से हमारी इतनी उर्वर धरती भी बंजर होकर रेगिस्तान में बदलती जा रही है. शायद इस विषय में आम किसान और नागरिक आज विचार न कर रहा होगा परंतु जब तक विचार करेगा शायद तब तक काफी देर हो चुकी होगी अतः आज आवश्यकता है एकबार पुनः वैदिक खेती की जिंसमे न तो जीवों की हत्या होती और न ही गोवंशों की. इन्ही गोवंशों के सहारे अधिक से आधिक उत्पादन प्राप्त कर लाभ कमाया जाकर जीवन यापन किया जा सकता है. हाँ एक बात जरूर है की गोवंशों और पशु आधारिक वैदिक खेती में एक व्यक्ति को फुलटाइम समय देना पड़ता है जिंसमे माल मवेशियों की देखभाल से लेकर खेती किसानी करना. परंतु चूंकि आज के इस भागते दौड़ते जीवन में किसी को समय ही नही है अतः हर कोई चाहता है की ट्रेक्टर से 2 घंटे में जोतबोकर फुरसत हुआ जाए और जाकर आगे का पैसा कमाया जाए, क्यो पूरा समय खेती किसानी के ही चक्कर में पड़ा रहा जाए. 

दोषारोपण बन्द कर समस्या का निकले मानवीय समाधान 

    इस प्रकार इस विश्लेषण से यह भलीभांति समझा जा सकता है की गोवंशों की उपयोगिता इस मसीनी युग में ढूंढ पाना एक टेढ़ी खीर ही है. ऐसे में तो बस यही लगता है की आने वाले समय में कहीं इन गोवंशों की और अधिक दुर्दशा न बढ़े. आखिर किसी भी प्रकार के वृहद और सर्वांगीड़ परिवर्तन के लिए पूरे देश और समाज को सामने आना पड़ेगा, इसका रास्ता ढूंढना पड़ेगा अन्यथा समाज का सरकार को दोष देना और सरकार का समाज को दोष देने का सिलसिला चलता रहेगा और गोवंशों की स्थिति दिन प्रतिदिन बदतर होती जाएगी. 

संलग्न - संलग्न चित्र में देखा जा सकता है रीवा ज़िले में गर्मियों के समय ऐरा चरते हुए मवेशी जो अभी कुछ सप्ताह बाद अवैध बाड़ों में ठूस दिए जाएंगे और अपने जीवन के अंतिम दिन गिनना प्रारम्भ कर देंगे.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट

ज़िला रीवा मप्र, मोब 7869992139, 9589152587

Friday, June 29, 2018

विभाग में बीज तक नही और करेंगे किसान का कल्याण (मामला ज़िले के किसान कल्याण एवं कृषि विभाग का जहां पर खरीफ सीजन का बीज खाद नही पहुचा, जो पहुचा भी वह आधा अधूरा और उचित नही, हल्की धान का बीज नही, मात्र 140 दिन से अधिक वाली धान कावेरी-199 का है बीज उपलब्ध, अरहर उडद वगैरह का बीज गायब)

दिनांक 29 जून 2018, स्थान - गंगेव, रीवा-मप्र

(कैथा से, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

   अभी हाल ही में 1 से 10 जून तक किसान आंदोलन हुआ जिसे गांव बंद बताया गया. कुछ जिलों को छोंड़कर गांव बन्द का विशेष प्रभाव सरकार को नही पड़ा. चिंता तो सरकार की तब बढ़ती जब अच्छा खासा गांव बन्द का प्रभाव पड़ता. लेकिन किसानों की एकजुटता की कमी और कमजोरी के चलते सरकार का पलड़ा भारी पड़ जाता है. सरकार उन्ही की सुनती है जिनसे उसे खतरा बना रहता है. सरकार गिरने का खतरा, लॉ एंड आर्डर का खतरा अथवा सरकार चला रही पार्टी के लिए वोट बैंक का खतरा. लेकिन 1 से 10 जून तक गांव बन्द में किसानों की एकजुटता न हो पाने से सरकार के आर्थिक ढांचे में कोई विशेष प्रभाव नही पड़ा.

  किसानों की आत्महत्या में कोई अंतर नही

  पूरे प्रदेश या यूं कहें की सम्पूर्ण देश में जगह जगह गरीब और कमज़ोर किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं. प्रतिदिन कोई न कोई घटना ऐसी घटित हो रही है जिंसमे किसान कर्ज़ के बोझ, शूखे की मार, अथवा अन्य कृषि संबंधी कारणों से मजबूर होकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है.  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड के डेटा इस बात के पूरे गवाह हैं की किसानों की बदहाली में कोई विशेष अंतर नही दिख रहा है.

बोवनी आधी होने को आई पर कृषि विभाग में बीज नही

  आज पूरे प्रदेश में खरीफ फसल की बोवनी चल रही है आधा बोवनी का समय व्यतीत होने को है लेकिन ज़िले और प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विभाग में बीज ही नही है. कुछ बीज जरूर आये हैं परंतु वह पहले से ही कम से कम 15 दिन विलंब से हैं. मसलन गंगेव कृषि विभाग रीवा में अब तक जो बीज किसानों के लिए उपलब्ध बताया जा रहा है वह है सबसे ज्यादा समय लेने वाली धान कावेरी-199 का बीज. यही धान पिछले वर्ष भी गंगेव ब्लॉक में भेजी गयी थी और बताया गया था की यह प्रदर्शन वाली धान है जिसे कुछ विशेष ग्रामों में किसानों को देकर देखा जाता है की इसकी उपज कैसे होती है. पिछले वर्षों गंगेव ब्लॉक के कृषि विस्तार कार्यालयों के जिन ग्रामों में इस धान को बोया गया था वहां पर किसान ज्यादा खुश नही है. इसे पकने में साढ़े चार माह के आसपास का समय लगा था. पिछले वर्ष रीवा में आषाढ़ श्रावण में एक दो बार जमकर बारिश हो गई थी जिससे खेतों में भराव हो गया था इसके बाद बारिश चली गई और मात्र कुछ स्थानों पर धान के पकने के समय बारिश हुई. जिन जिन किसानों ने इस कावेरी धान को बोया था और जिनके पास स्वयं बोरवेल और पानी की व्यवस्था थी वह किसी तरह से रो गाकर धान पकाए लेकिन जिन किसानों के पास सिंचित भूमि नही थी उन्हें काफी दिक्कत हुई. या की उन्होंने अपने पडोस वाले किसान से पैसा में पानी खरीदकर इस धान को पकाया अथवा उनकी पूरी फसल पकने के बहुत पहले ही सूख गई. खैर कृषि विस्तार अधिकारियों ने तो यह भी जानकारी लेने का प्रयाश नही किया की बोई गई ध्यान का हुआ क्या? क्या धान पकी की नही पकी? यदि नही पकी तो इसके आधार पर कृषि विभाग को फीडबैक देना चाहिए की रीवा क्षेत्र में पानी के अभाव के कारण हल्की किश्म की धान जो 70 से 90 दिन में पकती है उसे बढ़ावा देना चाहिए न की ऐसी धान जिसके लिए क्षेत्र के वातावरण के विपरीत लगाया जाय. कावेरी जैसा की नाम ही बता रहा है की यह साउथ इंडियन टाइप की धान हैं जहां वर्ष में धान की 3 खेती की जा सकती है और जहां पानी का बहुतायत रहता है. लेकिन मप्र के रीवा जैसे संभाग में जहां अक्सर ही अल्प वृष्टि देखी जाती है और साथ ही बोरवेल भी सूख जाते हैं , कावेरी जैसी बजनी धानों को प्रमोट करने की क्या जरूरत है?

कावेरी धान को नही पसंद करते किसान

  रीवा ज़िले के गंगेव कृषि विभाग सहित अन्य कृषि विभागों में आने वाली कावेरी धान को किसान कम पसंद करते हैं. यद्यपि यह धान प्रदर्शन की होने के कारण फ्री ऑफ कॉस्ट उपलब्ध करवाई जाती है इसलिए किसान ले तो जाते हैं लेकिन फिर भी बोवनी के समय काफी चिन्तित रहते हैं की क्या पता इसकी पैदावार हो भी की न हो. हाँ आज अधिकतर किसानों के पास बोरवेल ट्यूबवेल है इसलिए पानी की ज्यादा दिक्कत न होने के कारण रिस्क ले लेते हैं. लेकिन ज्यादातर किसान अभी भी अधिक पैदावार देने वाली हल्की किश्म की धान जैसे आई आर 50 अथवा 64 या 1010 ही ज्यादा बोते हैं. 

कृषि कर्मचारियों की हड़ताल के कारण भारी समस्या

   पिछले महीने भर से कृषि विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल ने भी किसानों की समस्याओं को काफी हद तक बढ़ा दिया है. बताया गया की बीज खाद का भंडारण समय पर न हो पाने के कारण वितरण भी लेट हो रहा है. किसानों द्वारा बताया गया की 15 जून तक कावेरी जैसे बजनी किश्म की 140 दिन के ऊपर का समय लेने वाली धानों का बीज डाल दिया जाना चाहिए नही तो समय पर पकने में दिक्कत होती है.

प्रदर्शन के अतिरिक्त कोई बीज नही 

   यदि किसान कृषि विभाग द्वारा लाया गया अच्छा और मानक बीज पैसे से भी लेना चाहे तो यहाँ प्रदर्शन वाले कावेरी बीज के अतिरिक्त अन्य कोई बीज उपलब्ध नही है. यह एक बहुत बड़ी बिडम्बना है. प्रदर्शन वाला कावेरी बीज भी बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है. बताया गया की जो भी उपलब्ध है वह कुछ गिने चुने किसानों को ही दिया जा सकता है. इस प्रकार देखा जाए तो जितनी बीज की मात्रा गोदाम में भंडारित दिखी है उससे पूरे गंगेव ब्लॉक के 88 ग्रामों के किसानों को लिया जाए तो मात्र एक ग्राम के एक या दो किसान को ही दिया जा सकता है.

जिनकी जितनी पहुच उनको उतना बीज

  गंगेव ब्लॉक में यह देखा गया की किसानों को बीज खाद और कीटनाशक वितरित करने का कोई नियम कायदा नही है. यहां सारा कार्य दबाब पद्धति से किया जाता है. मसलन जिसकी जितनी पहुच होती है उसे उतनी सामग्री मिलती है. यदि कोई आम किसान बिना किसी जान पहचान के पहुच जाए चाहे उसके पास 20 एकड़ की ही भूमि क्यों न हो उसे कुछ नही दिया जाएगा. उसे सीधे बताया जाता है की बीज अभी तक आया ही नही. लेकिन यदि वही किसान हो हल्ला मचाना प्रारम्भ कर दिया और ऊपर तक कंप्लेन करने लगे तो फिर उसे बीज दे दिया जाएगा.

कृषि कमर्चारी कहते हैं उनका कोई दोष नही

  गंगेव कृषि विभाग में पदस्थ एसएडीओ वीरेंद्र सिंह चौहान और अन्य ग्राम केवकों की दलील है की इसमे हमारा कोई दोष नही है. यह सीधे सरकार का मामला है. यदि सरकार और ऊपर विभाग हमारे पास कुछ भेजेंगे ही नही तो हम कैसे दे पाएँगे. कृषि कर्मचारियों ने यह भी बताया की ज्यादातर किसान हल्की किस्म की धान पसंद करते हैं लेकिन विभाग बार बार ऊपर से कावेरी ही भेज देता है.

कृषि विभाग में पारदर्शिता का अभाव एक बड़ी समस्या

  कृषि विभाग रीवा में पारदर्शिता की व्यापक समस्या है. जिसके कारण किसान पूरी तरह से अंधेरे में रहता है. किसान को इसकी कोई जानकारी नही रहती की कब बीज का भंडारण किया जा रहा है और कब वितरण. जब तक किसान स्वयं जाकर लड़ झगड़कर ब्लॉक आफिस में जानकारी न ले तब तक उसे किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नही दी जाती.

आर टी आई की जानकारी तक छुपाने का प्रयाश

   और तो और अभी पिछले वर्षों कृषि विभाग गंगेव में कई आर टी आई दाखिल कर जानकारी प्राप्त करने का प्रयाश किया गया की किस ग्राम में कौन से आर ए ई ओ कार्यरत हैं कौन किसान मित्र हैं, खरीफ और रवी वाइज कौन कौन सी योजनाओं में क्या क्या बीज खाद कीटनाशक किन किन किसानों को वितरित किये गए. क्या क्या सामग्री सरकार द्वारा ब्लॉक कार्यालय में भेजी गई. कृषि विभाग द्वारा गांव गांव जाकर क्या क्या कार्यक्रम किये गए और इसके कितने खर्च आये. यह सब जानकारी कृषि विभाग गंगेव से चाही गई लेकिन कहीं कुछ जानकारी दिए गए समय सीमा में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को उपलब्ध नही करवाई गई. उल्टे कृषि विभाग त्योंथर के एसडीओ मनीष मिश्रा द्वारा और साथ ही ब्लॉक गंगेव के एसएडीओ द्वारा कहा गया की आर टी आई लगाने की क्या जरूरत है जब हम लोग आपको सब सामग्री उपलब्ध करवा देते हैं. 

मतलब आर टी आई को भूल जाईये, आपका काम होगा

    जिस प्रकार से गंगेव कृषि विभाग में निरंतर पारदर्शिता का अभाव बना हुआ है उससे स्पष्ट है की पूरे ज़िले के कृषि विभाग में मनमानी चलती रहेगी इसमे कोई अंतर नही आने वाला. जो कृषक और हितग्राही आर टी आई लगाएगा उसे पटाने का प्रयाश किया जाएगा और जिनको कुछ नही मिल रहा उन्हें कभी कुछ नही मिलेगा. 

ग्राम सेवक को सीधा पिसान लेकर ढूंढना पड़ता है

  यहां गंगेव ब्लॉक अंतर्गत आने वाले ज्यादातर किसानों को यह जानकारी ही नही है की उनके ग्राम सेवक और कृषि विस्तार अधिकारी कौन हैं कहां रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर कहाँ मिलेंगे. जब कभी किसी जरूरी कागजातों में हस्ताक्षर करवाने होते हैं तो ग्राम सेवक को सीधा पिसान लेकर ढूंढना पड़ता है.

गंगेव कृषि विभाग में सप्ताह में बड़े मुश्किल से एकबार आते हैं ग्राम सेवक

  यदि किसी किसान को ग्राम सेवकों की जरूरत है तो उसे ब्लॉक कृषि विभाग जाना पड़ेगा जहां सप्ताह में मात्र वृहस्पतिवार को मुलाकात हो सकती है. यद्यपि वृहस्पतिवार मीटिंग का दिन बताया गया है लेकिन इसकी कोई गारंटी नही रहती की कृषि विभाग में भी ग्राम सेवकों से मुलाकात हो ही जाए.

नही है अरहर उड़द का बीज 

  गंगेव ब्लॉक में अरहर और उड़द का बीज उपलब्ध नही है. जानकारी मिली की अरहर और उड़द का बीज इस वर्ष अभी आया ही नही जबकि नियमानुसार बोवनी का आधा समय व्यतीत हो चुका है. कई किसान अरहर उड़द का बीज लेने के लिए ब्लॉक आफिस गए लेकिन मायूस होकर खाली हाँथ लौट आये. 

गुरुवार 28 जून को गंगेव में हंगामे के बाद ही मिल पाया बीज 

  जहां तक सवाल गुरुवार दिनांक 28 जून 2018 को कृषि विभाग गंगेव में एकत्रित दर्जनों किसानों को बीज वितरण का है उसके बारे में बताना पड़ेगा की ग्राम पंचायत कैथा, हिनौती और पडुआ के एकत्रित दर्जनों किसानों को नियमानुसार सारे कागजातों को जमा करने के बाद भी बीज उपलब्ध नही करवाया जा रहा था, फालतू के नियम कायदे जिनका की पालन स्वयं कृषि विभाग भी नही कर रहा ऐसे नियम बताकर किसानों को परेशान किया जा रहा था. इस बीच सभी किसानों की अगुआई सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा किया जा रहा था. इस बीच देखा गया कि जहां आम किसानों को फालतू में बैठा कर रखा गया था वहीं रसूखदारों को दनादन गोदाम खोलकर बीज बांटा जा रहा था. कई रसूखदार स्वयं ही घुसकर दो बोरी चार बोरी हाइब्रिड धान की 30 किलो की बोरियां उठा उठाकर अपने गाड़ियों में भर भर कर ढो रहे थे. यह सब वाकया देखा नही गया और इसकी सूचना संबंधित उच्च धिकारियों को दिए जाने का विचार हुआ. इस बीच भोपाल डायरेक्टरेट स्थित कृषि विभाग में जानकारी दी गई और सारा वाकया बताया गया. डायरेक्टरेट से बताया गया की पहले रीवा डिप्टी डायरेक्टर और संभागीय कृषि अधिकारी से बात की जाए और यदि मामला नही सुलझता तो फिर भोपाल में कंप्लेंट भेजी जाए. भोपाल कार्यालय से ही प्राप्त रीवा के कृषि अधिकारियों के नंबर में जानकारी प्रेषित की गई और बहुत ही स्पष्ट शब्दों में डायरेक्टर कृषि को बताया गया की यहां गंगेव कृषि विभाग में भौशा चल रहा है और यदि समस्या का समाधान नही किया जाएगा तो उपस्थित किसान आंदोलन करेंगे और कृषि विभाग से हटेंगे नही. इस पर समस्या की गंभीरता को आंकते हुए डायरेक्टर कृषि ने गंगेव के एसएडीओ वीरेंद्र सिंह चौहान को तत्काल फ़ोन लगाकर किसानों की समस्या के समाधान के लिए कहा तब जाकर गंगेव कृषि विभाग के कर्मचारियों के होश ठिकाने आये और तत्काल बीज बांटना प्रारम्भ किया.

कुछ 2 दर्ज़न किसानों को दिए बीज 

  इस बीच उपस्थित  किसानों देवेंद्र सिंह पिता सुरसरी सिंह, पुष्पराज सिंह पिता सुमंत सिंह, सत्यभान पटेल, राम खेलावन पटेल पिता जग्गू पटेल, श्रवण कुमार पटेल, रवि सिंह पिता वीरेंद्र सिंह, राजेश पटेल पिता जगदीश पटेल, शैलेन्द्र पटेल पिता जगदीश पटेल, नरेंद्र पटेल पिता जगदीश पटेल, जगदीश पटेल पिता राम विशाल पटेल, सत्यनारायण सिंह पिता बंश बहादुर सिंह, राजनारायण सिंह पिता वंस बहादुर सिंह, अरुणेंद्र पटेल पिता हरीबन्स पटेल, शैलेन्द्र पटेल महारथी प्रसाद पटेल, लाल बहादुर पटेल पिता जमुना पटेल आदि को कुल 6 किलो प्रत्येक के हिसाब के दो दो पैकेट का बीज दिया गया. किसानों को बीज देते समय यह बताया गया की यह बीज दो एकड़ में लगाया जा सकता है और रोपा पद्धति से लगाया जाना चाहिए.

मात्र 6 किलो प्रत्येक किसान को दिया गया बीज है बहुत कम

   किसान कल्याण एवं कृषि विभाग द्वारा उक्त किसानों को वितरित 6 किलो प्रत्येक कावेरी धान का बीज बहुत कम है. यद्यपि यह बीज तो किसानों को मुफ्त में दिया गया है लेकिन किसानों को बोवनी के रकबे के हिसाब से काफी कम था. कुछ उपस्थित किसानों ने बताया की उनका रकबा 10 से लेकर 50 एकड़ तक का है अतः उन्हें चाहे पैसे में मिले लेकिन सब्सिडी वाला हल्की धान का बीज मिल जाता तो उनके लिए बेहतर होता.

सूरज धारा स्कीम का बीज हरिजन आदिवासी कृषकों के लिए

    जब गोदाम में घुसकर देखा गया तो पता चला की कावेरी हाइब्रिड धान के बीज के अतिरिक्त भी सफेद किस्म की बोरियों में अलग से भी बीज का कुछ स्टॉक था जो लगभग 100 बोरी के आसपास समझ आया. जब इस विषय में एसएडीओ वीरेंद्र सिंह चौहान से जानकारी चाही गई तो उन्होंने बताया की यह बीज हरिजन आदिवासी कृषकों के लिए स्कीम के अन्तर्गत आया है जिसे उन्हें फ्री ऑफ कॉस्ट बाटना है. इसके लिए बताया गया की सामान्य वर्ग की ही तरह उन कृषकों के पास कम से कम एक एकड़ की भूमि होनी चाहिए. जरूरी कागजातों में ऋण पुस्तिका एवं आधार कार्ड लाना अनिवार्य है.

सरकार की कथनी और विभागों की करनी में अंतर

    यहां पर यह बात विशेष तौर से कहना उचित होगा की सरकार किसानों के कल्याण के लिए और कृषि के विकाश के लिए बड़े बड़े दावे तो कर रही हैं. मप्र में तो सरकार दर्जनों पैम्फलेट और बुकलेट भी बना बनाकर बांटे हैं लेकिन उनका कहीं क्रियान्वयन होता हुआ नही दिख रहा है. 

      सरकार के यह निकम्मे विभाग और उनके कर्मचारी अधिकारी सभी योजनाओं का क्या कर दे रहे हैं इसका कोई रता पता नही चल पा रहा है. आज सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक सबसे ससक्त माध्यम था लेकिन आर टी आई को इतना कमज़ोर कर दिया है की कहीं कोई जानकारी नही दी जा रही है. यहां तक की अपील में जाने और राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी वर्षों बाद भी जानकारी नही मिल पा रही है इसलिए सभी विभागों और अधिकारियों ने अपने मनमर्जी के हिसाब से काम चलाने का मन बना रखा है यदि आम जनता हल्ला गुल्ला और शोर शराबा भी करे तो इन्हे क्या फर्क पड़ने वाला है. विभाग सरकार से बड़े तो नही होते अतः विभाग को क्या कहना इसमे मुख्य खलनायक तो यह सरकारें ही हैं जो किसानों के लिए कुछ भी सार्थक नही कर रही हैं क्योंकि यदि विभाग गलत कर रहा है तो उस पर कार्यवाही करने का अधिकार मात्र सरकार के पास ही है. इन सरकारों को जबाब किसानों और आम जनता को एकजुट होकर देना पड़ेगा.

संलग्न - गंगेव कृषि विभाग में दिनांक 28 जून 2018 को एकत्रित किसान गण और साथ में एसएडीओ गंगेव को सौंपने को ज्ञापन जिंसमे ज्यादातर उपस्थित किसानों के सिग्नेचर थे. साथ ही रसूखदार अपनी अपनी गाड़ियों में भरते हुए मनमुताबिक बीज जिन्हें देखने वाला कोई न था.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला - रीवा मप्र, मोब 7869992139, 9589152587

Wednesday, June 27, 2018

13 जून से फैल 5 मेगावाट का ट्रांसफार्मर नही बदला, पूरे कटरा की बिजली सप्लाई प्रभावित (मामला ज़िले के कटरा डीसी एवं मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत कंपनी लिमिटेड त्योंथर संभाग का जहां पिछले दो सप्ताह से अधिक समय से कटरा डीसी का मुख्य 5 मेगा वाट का ट्रांसफार्मर अब तक नही बदला गया, पूरे कटरा डीसी की लाइन वाधित, मात्र एक ट्रांसफॉमर से काट कर दी जा रही लाइन)

दिनांक 28 जून 2018, स्थान - कटरा, रीवा-मप्र,

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी, रीवा-मप्र)

    ज़िले के मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड संभाग त्योंथर अंतर्गत आने वाले कटरा डीसी में दो प्रमुख 5 मेगा वाट ट्रांसफार्मर में से के एक पिछले 13 जून से फैल हुआ बताया जा रहा है. जिस दिन से यह 5 मेगा वाट का ट्रांसफार्मर फैल हुआ है उस दिन से पूरे कटरा विद्युत वितरण केंद्र में इलेक्ट्रिक सप्लाई वाधित है जिससे पूरे क्षेत्र को रुक रुक कर लाइन मिल पा रही है. स्वाभाविक है की जो कार्य कुल 10 मेगा वाट ट्रांसफार्मर से हो रहा था अब वह मात्र 5 मेगा वाट से हो रहा है. यदि जल्द ही फैल हुआ 5 मेगा वाट का ट्रांसफार्मर नही लगा तो पूरे कटरा क्षेत्र में बिजली के लोड को देखते हुए शेष बचा 5 मेगा वाट का ट्रांसफार्मर भी फैल होने की संभावना बनी हुई है जिससे आम आदमी की फजीहत तो बढ़ेगी ही साथ ही  बिजली विभाग की लापरवाही और लेटलतीफी से सरकार के ख़ज़ाने को और भारी नुकसान भी हो सकता है.


  चीफ इंजीनियर के एल वर्मा और अधीक्षण यंत्री रीवा संभाग खान को है सूचना

     कटरा विद्युत वितरण केंद्र एवं त्योंथर डी ई पटेल द्वारा स्वयं कटरा डीसी आकर फैल 5 मेगा वाट के ट्रांसफार्मर की जानकारी और फ़ोटो आदि ले जाकर अधीक्षण यंत्री खान एवं चीफ इंजीनियर के एल वर्मा को पहुचायी जा चुकी है लेकिन फिर भी विभागीय उदाशीनता के चलते अब तक फैल हुआ 5 मेगा वाट का ट्रांसफार्मर नही लगाया गया है. यदि समय रहते जल्द से जल्द 5 मेगा वाट का ट्रांसफार्मर नही लगता तो वर्तमान में आंशिक रूप से कार्य कर रहे 5 मेगा वाट के दूसरे ट्रांसफार्मर के भी फैल होने की संभावना बनी हुई है साथ ही आम जनता को वाधित बिजली सप्लाई मिल रही है जिससे किसानों के कार्य भी रुके हुए हैं.

क्या कहना है जिम्मेदारों का

   जब इस संदर्भ में कटरा डीसी के कनिष्ठ यंत्री अभिषेक गौरव सोनी से बात की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि 13 जून से जले 5 एम वी ए ट्रांसफॉर्मर की लिखित जानकारी त्योंथर डी ई श्री आरसी पटेल द्वारा अधीक्षण यंत्री एवं चीफ इंजीनियर को पहुचायी जा चुकी है। ऊपर से बताया गया कि कार्यवाही चल रही है जल्द ही 5 एमवीए का फैल हुआ मुख्य ट्रांसफ़ॉर्मर बदल दिया जाएगा।

संलग्न - ज़िले के मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड के त्योंथर संभाग अन्तर्गत कटरा डीसी के 13 जून 2018 से फैल हुए 5 मेगा वाट ट्रांसफार्मर की फ़ोटो और साथ ही कटरा विद्युत वितरण केंद्र का दिनांक 27 जून की शाम का परिदृश्य.

संपर्क विजली विभाग-

 1) कनिष्ठ यंत्री कटरा डीसी अभिषेक गौरव सोनी 9425824566,

 2) डी ई त्योंथर आर सी पटेल 

     मोब 9479867544,

  3) अधीक्षण यंत्री खान

  मोब 9425424302

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोब - 7869992139, 9589152587

बिजली कर्मचारियों की ईपीएफ वेतन कटौती 6 वर्षों से नही पहुच रही खातों में (मामला ज़िले के त्योंथर संभाग मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड के बिजली कर्मचारियों का)

दिनांक 28 जून 2018, स्थान - कटरा, रीवा-मप्र,

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी, रीवा ,मप्र)

    ज़िले के बिजली कर्मचारियों की उनकी ईपीएफ के वास्ते काटी जाने वाली वेतन की राशि उनके ईपीएफ खातों में नही पहुच रही है ऐसा कहना है लगभग आधा दर्जन बिजली कर्मचारियों का. बता दें की प्राप्त जानकारी के अनुसार रीवा संभाग में पदस्थ रहे बिजली कर्मचारियों जिनमे सहायक ग्रेड 3 के कर्मचारी क्रमसः आशुतोष मिश्रा, इंद्रमणि सिंह, लक्ष्मी नारायण शर्मा, भूपेंद्र सिंह सेंगर, कनिष्ठ यंत्री लालगांव उमाशंकर द्विवेदी, एवं अन्य दो कर्मचारी पुष्पेंद्र सिंह कुशवाहा और कटरा में पदस्थ भूपेंद्र सिंह बघेल सम्मिलित हैं जिन्होंने बताया की उनकी वर्ष जुलाई 2012 से ईपीएफ की वेतन कटौती की राशि उनके खातों में नही पहुची है. सभी कर्मचारियों के लिए यह एक चिंता का विषय है क्योंकि इसके लिए उन्होंने संबंधित अधीक्षण यंत्री के नाम और कलेक्टर को भी लिखित शिकायत दे रखी है लेकिन अब तक जब सुनवाई नही हुई तो सभी ने सामूहिक रूप से इकठ्ठा होकर मामला मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से रखना उचित समझा. सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी को अपनी व्यथा बताते हुए उपरोक्त कर्मचारियों ने बताया की हम सब कर्मचारी मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड त्योंथर संभाग के अधीनस्थ कार्यरत हैं जिन्हें ग्राम सेवा सहकारी समिति मर्यादित से मंडल कंपनी में सम्मिलियन किया गया है. बताया की आज दिनांक तक ईपीएफ की राशि की कटौती की जा रही है लेकिन राशि उनके खाते में नही आ रही है. कई बार लिखित एवं मौखिक रूप से कार्यपालन अभियंता, संभागीय लेखापाल से शिकायत की गई लेकिन आश्वासन के शिवाय कोई पुख्ता कार्यवाही अब तक नही हुई है. 

     इस प्रकार दिनांक 28/06/2017 को आवक क्रमांक 07 कार्यालय अधीक्षण यंत्री, दिनांक 04/07/2017 कार्यालय कार्यपालन अभियंता, दिनांक 13/07/2017 को एक अन्य संबंधित कार्यालय में इन उपरोक्त पीड़ित कर्मचारियों ने संलग्न शिकायती आवेदन लगाकर गुहार लगाई है की यदि अचानक इन कर्मचारियों की मृत्यु हो जाती है तब इन सबका परिवार इधर उधर भटक कर दाने दाने के लिए मोहताज़ होगा जिसकी तत्काल सुनवाई की जाए.

कर्मचारियों की ईपीएफ उनके खातों में न भेजना मानवाधिकार का हनन

    यदि देखा जाए तो हर एक नागरिक का अधिकार बनता है की सरकार द्वारा संवैधानिक रूप से प्रदत्त सभी लाभ नियमानुसार उसे मिले. इसके अतिरिक्त भी यदि समाज और किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का हनन हो रहा हो जिसकी जिम्मेदार स्वयं सरकार हो तो ऐसे मामलों में सरकार को तत्काल संज्ञान लेने की आवश्यकता होती है. सामान्य तौर पर गैर सरकारी कर्मचारी अथवा बेरोजगार आम नागरिक के मानवाधिकार की रक्षा जिसका कोई आधार न हो सर्वोपरि होती है परंतु जहां  तक मानवाधिकार हनन की बात है वह सभी नागरिकों के लिये समान रूप से लागू होता है. चाहे वह किसी जाति वर्ग का हो सरकारी हो गैर सरकारी हो धनवान हो अथवा गरीब. यदि मानवाधिकारों का हनन हो रहा है तो उसकी सुरक्षा की जानी अनिवार्य है.

बिजली कर्मियों के मानवाधिकार की हो सुरक्षा

     बिजली कर्मचारियों को उनके ईपीएफ के फण्ड से वंचित रखा जाना मूलभूत मानवाधिकारों का हनन की संज्ञा में आता है. जुलाई वर्ष 2012 से बिजली कर्मियों के ईपीएफ खातों में वेतन कटौती की राशि क्यों नही पहुच रही और इसका क्या कारण है इस पर तत्काल कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है. यदि बिजली कर्मचारियों को उनकी ईपीएफ राशि व्याज सहित नही मिलती तो उनके बाल बच्चे परेशानी का सामना करेंगे. जिस प्रकार से बिजली कर्मियों द्वारा अपने आवेदन में भी उल्लेखित किया गया की यदि अकस्मात उनकी मौत हो जाती है तो उनके परिवार बाल बच्चों की बदहाली का जिम्मेदार कौन होगा. 

यदि सरकारी कर्मचारियों की यह हालात तो आम नागरिक का क्या

    सही मायने में प्रशासनिक व्यवस्था में आज जिस प्रकार की अव्यवस्था छाई हुई है इसको तो देखकर यही लगता है की आम नागरिक की दुर्दशा और अधिक बढ़ेगी. जब सरकारी कर्मचारी अपने अधिकार नही हाशिल कर पा रहे तो आम नागरिक जिसका की कोई आधार भी नही और कोई प्रशासनिक अधिकारी भी उनका सहयोगी नही ऐसे में वह अपने मानवाधिकारों की सुरक्षा कैसे कर पाएंगे यह बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

    वहरहाल आज दिनांक तक त्योंथर संभाग बिजली कार्यालय के अधीनस्थ पदस्थ लगभग आधा दर्जन बिजली कर्मचारियों को उनका जुलाई वर्ष 2012 अर्थात 6 वर्ष के आसपास की ईपीएफ राशि उनके खातों में समायोजित नही हुई है और अभी कर्मचारी अपने अधिकारों को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं. अब देखना यह होगा बिजली विभाग स्वयं अपने ही कर्मचारियों के साथ कब तक न्याय कर पाता है.

संलग्न - संलग्न प्रपत्रों में देखें उपरोक्त शिकायती आवेदनों की फ़ोटो प्रतियां संलग्न है.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला - रीवा मप्र, मोब 07869992139, 09589152587

सिरमौर एसडीएम अग्निहोत्री बने तानाशाह, इनके साथ मोबाइल पर सूचना देना और बात करना हुआ अपराध (मामला ज़िले के सिरमौर तहसील के माननीय महामहिम एसडीएम महोदय अग्निहोत्री का जिनसे मोबाइल पर बात करना है अपराध, आम जनता को बोलते हैं हमे माननीय और महामहिम श्रीमान कहिए और कभी भी मोबाइल पर कॉल मत करो और अपने लेवल में रहो)

दिनांक 27 जून 2018, स्थान - सिरमौर रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

        ज़िले के सिरमौर तहसील के माननीय महामहिम श्रीमान अनुविभागीय एवं दण्डाधिकारी श्री अग्निहोत्री जी से मोबाइल पर बात करना आम नागरिक और इस देश की जनता को बहुत भारी पड़ सकता है. इसका खुलासा महामहिम एसडीएम महोदय श्री अग्निहोत्री जी ने सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी से मोबाइल पर वार्तालाप के दौरान कही और धमकी भरे अंदाज़ में बताया कि यदि मोबाइल फ़ोन किया तो खैर नही।

   सप्ताह भर से लटके आवश्यक हस्ताक्षर

     भठवा-मदरी निवासी अम्बिका पटेल द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता को फ़ोन करके अपनी व्यथा रखी गई. अम्बिका पटेल ने मोबाइल फ़ोन पर जानकारी दी की उनकी बेटी का किसी फार्मेसी में एडमिशन करवाने के लिए अंतिम तिथि निकल रही है और दिनाँक 21 जून 2018 को उन्होंने आवेदन महामहिम एसडीएम महोदय के समक्ष प्रस्तुत किया था लेकिन आज सप्ताह भर से वह अनुविभागीय आधिकारी सिरमौर के कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उनके कागज़ में एक सामान्य सा हस्ताक्षर नही हो सका है जिससे पम्बिका पटेल को डर है की कहीं उनकी बेटी का फार्मेसी में एडमिशन न रुक जाए और वह बहुत परेशान हैं. अब अमूमन कार्यालय में किसी भी अधिकारी का मोबाइल फ़ोन आज नोटिस बोर्ड में लिखा रहता है लेकिन सिरमौर में ऐसा नही है. और न ही किसी कर्मचारी ने जानकारी दी.

   अम्बिका पटेल की जानकारी के आधार पर श्रीमान महामहिम एसडीएम महोदय श्री अग्निहोत्री जी को सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा कॉल किया गया और अपना परिचय के साथ ही बताया गया की आपके सिरमौर क्षेत्र के कुछ हितग्राही आपका इंतज़ार कर रहे हैं और उनको कुछ विशेष दस्तावेजों में हस्ताक्षर करवाने हैं जिससे वह परेशान हैं. कार्य आवश्यक है अतः आप बताने का कष्ट करें की कहां हैं तो काम करवा लिया जाए. बस इतनी बात हुई नही की महामहिम एसडीएम महोदय सिरमौर टूट पड़े. बोले तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमे कॉल करने की. तुम मुझे कॉल नही कर सकते और तुम मुझे जानते नही जाकर हमारे बारे में पता कर लेना, जो भी है लिखित रूप से आफिस में देकर आओ. सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा जो भी जानकारी थी उसके आधार पर बताया गया की आवेदन आपके कार्यालय में पहले से ही दिया गया है और हितग्राही परेशान हैं आपका पिछले कई दिनों से कार्यालय में इंतज़ार कर रहे हैं और उनके आवश्यक कार्य रुके हुए हैं तो आखिर एक एसडीएम का कार्यालय में भी कुछ घंटे बैठना आवश्यक होता है जिससे आवश्यक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर भी हो सके. इस प्रकार महामहिम एसडीएम महोदय ने कहा की हमे नियम कायदा मत बताओ.

एसडीएम ने कहा बार बार फ़ोन करके चमकाते हो

   यह तो कुछ ज्यादा ही हो गया की एक आम नागरिक यदि इन महामहिम महोदय से आम जन मानस की समस्या रखे तो इनका कहना है की इन्हें बार बार फ़ोन करके चमकाया जाता है. इसके पूर्व इस सिरमौर एसडीएम से मात्र एक बार सामाजिक कार्यकर्ता की बात हुई थी जब कुछ भावन्तर योजना के राई और मसूर वाले हितग्राही बैकुंठपुर अंतर्गत आने आली मझगवां खरीदी केंद्र में किसानों को समस्या हो रही थी तब बड़ोखर ग्राम के एक किसान देवेंद्र सिंह परिहार के मोबाइल पर जानकारी के आधार पर इस एसडीएम अग्निहोत्री से मात्र ये आग्रह किया गया था की पिछले तीन दिन से जो किसान मझगवां खरीदी केंद्र में लाइन लगाए खड़े हुए हैं उनकी फसल को बेचने के लिए समिति प्रबंधक द्वारा कूपन नही दिया जा रहा है अतः उन्हें कूपन दिलवाया जाए जिससे 50 किमी से अधिक दूर से आये हुए किसान परेशान न हो और उनकी फसल की खरीदी हो जाए.


   परंतु इस सिरमौर एसडीएम अग्निहोत्री ने कहा की जाकर आवेदन दें. जो समस्या होगी उसका आवेदन और लिखित शिकायत के आधार पर निराकरण किया जाएगा. तब सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा कहा गया की खरीदी का अंतिम दिन कल है और आपको आज यदि आवेदन दिया जाएगा तो कब तक उसका समाधान किया जाएगा, आपकी टेबल पर आवेदन कब तक पहुचेगा और जब डेट चली जायेगी तो निराकरण क्या होगा। इसलिए समस्या की गंभीरता को देखते हुए किसानों की समस्या का ऑन स्पॉट समाधान करने की आवश्यकता है न की यहॉं लिखा पढ़ी की. यदि आवश्यक होगा तो किसान लिखा पढ़ी भी करेंगे लेकिन 3 दिन से कतार में खड़े हुए किसान अभी लिखा पढ़ी नही कर सकते. इस पर इस सिरमौर एसडीएम ने कहा की हमे नियम कानून मत बताओ और हमे आदेश मत दो. अब इस बात पर स्वयं ही समझा जा सकता है की इसमे आदेश की क्या बात थी. यह तो सामान्य बात है कि आज हर नागरिक किसी भी अधिकारी हो या प्रधानमंत्री हो उसके समक्ष रख सकता है. लेकिन इस सिरमौर एसडीएम को यह बात नागवार नही लगी.

सिरमौर एसडीएम हिटलरशाही पर उतारू

    जिस प्रकार से सामाजिक कार्यकर्ता से सामान्य जन के सामाजिक मुद्दों पर चर्चा के दौरान मोबाइल पर सिरमौर एसडीएम ने बात कही है उससे एक लोकसेवक नही बल्कि तानाशाह होने की बू आ रही है. इस प्रकार की बात एक लोकसेवक द्वारा करके आम व्यक्ति को शासन प्रशासन से दूर किया जा रहा है. उसे डराने और धमकाने का प्रयाश किया जा रहा है. लेकिन इससे बात बनने वाली नही है. शिवानन्द द्विवेदी जैसे हर एक आम गांव के व्यक्ति में हिम्मत भी नही की इस तरह बेहूदी किश्म की बात करने वाले एसडीएम से बात कर पाएंगे। स्वाभाविक है यह एसडीएम आम आदमी के साथ कैसा दुर्व्यवहार करता होगा इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है। वैसे सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा नियम से हटकर किसी भी अधिकारी कर्मचारी से कुछ भी गलत करवाने का प्रयास नही किया गया।

लोकसेवक लोकतांत्रिक परंपरा में जनता का नौकर 

   एक लोकसेवक लोकतांत्रिक परंपरा में जनता के टैक्स पर पलने वाला जनता का नौकर होता है जनता का मालिक नही. यदि सिरमौर एसडीएम अग्निहोत्री को यह लगता है की वह जनता के मालिक हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है। जनता अपने नौकरों से अपने टैक्स के एक एक पैसे की दिए जाने वाले पेमेंट की जानकारी तो लेगी ही और वह उसका पूरा अधिकार बनता है। जब लोकतंत्र हट जाएगा और तानाशाही आ जाएगी तब जनता भी उस तानाशाही का जबाब देगी। फिलहाल तो लोकतंत्र है और लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है।

एसडीएम अग्निहोत्री कई दिनों से थे अनुपस्थित 

       बता दें कि अम्बिका पटेल निवासी मदरी द्वारा जानकारी दी गयी कि सिरमौर एसडीएम अग्निहोत्री कई दिनों से अनुपस्थित थे। जब दिनाँक 26 जून को हितग्राही सिरमौर कार्यालय पहुचे तो उन्हें पता चला कि एसडीएम कई दिनों से कार्यालय में नही आये थे इसलिए फ़ाइल का अंबार लगा था। 

फ़ोन करने के बाद ही सिरमौर एसडीएम अपने कार्यालय में उपस्थित हुए

    जब सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा एसडीएम को फ़ोन किया गया तभी वह कार्यालय पहुचे और आवेदक अम्बिका पटेल को बुलाया और उनके बेटी के कागज़ में हस्ताक्षर किया। अम्बिका पटेल ने बताया कि उन्हें भी एसडीएम ने कहा कि फ़ोन करवाकर चमकवाते हो।

     अब तो ऐसे एसडीएम से बात करने में भी लोगों को डर लगेगा कि बात करने के जुर्म में कहीं जेल न करवा दें!

   सिरमौर एसडीएम अग्निहोत्री की शिकायत हुई सीएम और पीएम को

      जिस प्रकार से सिरमौर एसडीएम अग्निहोत्री ने सामाजिक कार्यकर्ता के साथ बदसलूकी से बात की और अपना हिटलरशाही वाला रुतबा दिखाया इसकी शिकायत सीधे ईमेल और पीजी पोर्टल पीएमओ पोर्टल के द्वारा ऑनलाइन कर दी गई है और ऐसे एसडीएम के ऊपर कार्यवाही करते हुए एक्शन लेने की अपील की गई है क्योंकि सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा एसडीएम अग्निहोत्री से ऐसी कोई भी बात मोबाइल फ़ोन में नही की गई है जो संवैधानिक मर्यादा के विरुद्ध हो. मात्र संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन सिरमौर एसडीएम अग्निहोत्री द्वारा किया गया है.

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संलग्न - 1) संलग्न ऑडियो फ़ाइल में देखें महामहिम एसडीएम महोदय श्री अग्निहोत्री जी का मोबाइल पर सामाजिक कार्यकर्ता को धमकाना।

2) पीएमओ पीजी पोर्टल में दर्ज शिकायत और साथ ही सीएम मध्यप्रदेश को ईमेल के माध्यम के भेजी गई शिकायत की प्रतियां भी संलग्न है. इसका स्क्रीनशॉट लिया जाकर यहां पर भेजा जा रहा है. शिकायत अंग्रेज़ी में लिखी गई है लेकिन स्पष्ट है.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोब - 7869992139, 9589152587


Monday, June 25, 2018

हिन्दू बाहुल्य समाज में गाय के साथ क्रूरता, जिम्मेदार मात्र हिन्दू (मामला ज़िले के थाना गढ़ अंतर्गत पनगड़ी एवं देउर ग्राम का जहां पर गायों को दो अलग अलग घटनाओं में धारदार हथियार से मारा)

दिनांक 26 जून 2018, स्थान - गढ़, रीवा-मप्र

(कैथा, शिवानन्द द्विवेदी, रीवा-मप्र)

   हे भगवान क्या तूने इस कलयुग में ऐसे ही दिन देखने के लिए मॉनव को पैदा किया था की भारतीय संस्कृति में पूज्य माता और देव स्वरूप उपमा प्राप्त गोमाता को आज अपने ही हिंदुओं से बर्बरता और क्रूरता का शिकार होना पड़ेगा.

   मानाकि यदि कोई दूसरा सम्प्रदाय वर्ग होता जहां पर गाय को मात्र उपभोग की पशु समझा जाता है वहां गोवंशों के मांस भक्षण की परंपरा तक है परंतु क्या हिन्दू बाहुल्य समाज जहां पर आज से कुछ वर्षों पहले इन्ही गोवंशों को खेत खलिहान से लेकर हरछठ में पूजने तक की परंपरा थी आज अपने ही लोगों से इन बेजुबान मूक पशुओं की जान में बन आई है.

  आये दिन हो रही पशु क्रूरता

   आज रीवा संभाग में जहां पर कभी राजशाही हुआ करती थी और हिन्दू धर्म के गो-ब्राह्मण को सुरक्षा मिलनी थी आज उसी रीवा राज्य में आये दिन पशु क्रूरता बढ़ती जा रही है. पिछले 5 वर्षों का अनुभव यह बताता है की ज्यादातर फसल नुकसानी के नाम पर शासन प्रशासन की अनदेखी और अव्यवस्था की वजह से अवैध बाड़ों में गोवंशों को कैद कर बिना चारा पानी और भूषा के छोंड़ दिया जा रहा जिससे घुट घुट कर उनकी जान जा रही है. इसके पीछे का तर्क आवारा पशुओं की वजह से किसान की फसल नुकसानी बताया जाता है लेकिन यह नही बताया जाता की आखिर किसान की इस समस्या का मानवीय समाधान क्या है और साथ ही यह भी नही बताया जाता की आखिर पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का क्या हुआ? चलिए गाय को माता न भी माना जाए, हिन्दू संस्कृति का हवाला न भी दिया जाए तो यह कोई बताए की क्या इस संविधान की किताब और आई पी सी के सेक्शन में पशुओं का कोई अधिकार नही है?

  पनगड़ी में कुएं में गिरकर गायों की हुई मौत 

   थाना गढ़ अंतर्गत पनगड़ी ग्राम के आसपास अक्सर ही गोवंशों से साथ क्रूरता की वारदातें सामने आती रहती है. अभी पिछले दिनों ही निकटतम ग्राम कठमना में पैर में चोट लगी गाय मिली थी जिसके इलाज के लिए रीवा से डॉक्टर आये थे. फिर पनगड़ी में ही दो अलग अलग घटनाओं में कुएं में गाय गिरने से एक को जीवित निकाल लिया गया था जबकि एक अन्य संकरी कुआं होने की वजह से मर गई थी.

पनगड़ी भलघटी में सैकड़ों गायों को उतारा था मौत के घाट 

  पनगड़ी से ही लगे भलघटी नामक जंगली पहाड़ी और गहरी खाईं में सैकड़ों गायों को पहाड़ के ऊपर से फेंकने का मामला सामने आया था जिंसमे पिछले वर्ष ठंड के मौसम में दिल्ली से पीपल फ़ॉर एनिमल्स, एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया, एनिमल हसबेंडरी विभाग सहित एन जी ओ ध्यान फाउंडेशन तक के लोग आये थे और घटना का संज्ञान लेकर जांच पड़ताल हुई थी. जिले की थाना गढ़ और लाल गांव चौकी की पुलिश, वेटेरिनरी विभाग, फारेस्ट विभाग और राजस्व अमला सहित घटनास्थल का निरीक्षण किया था. अज्ञात के ऊपर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश भी दये गए थे. इसके बाद क्या हुआ इसका किसी को रता पता नही है.

पनगड़ी और देउर में फिर मारा गायों को

   अभी फिर दो अलग अलग घटनाओं में दो गायों के साथ क्रूरता होने का मामला प्रकाश में आया है.


    प्राप्त जानकारी के अनुसार थाना गढ़ एवं तहसील त्योंथर अंतर्गत देउर ग्राम में समाजसेवी दिलीप सिंह ने जानकारी दी की उन्हें कहीं रास्ते में एक गाय घायल एवं लावारिश अवस्था में मिली है जिसके पीछे के पैर में खुर के पास चोट लगी है साथ ही ऊपर कूल्हा बुरी तरफ टूटा हुआ है जिससे गाय चलने में असमर्थ थी. इस जानकारी के आधार पर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा संबंधित गढ़ वेटेरिनरी सर्जन विवेक मिश्रा को जानकारी दी गई जिसके बाद कटरा अंतर्गत आने वाले कम्पाउण्डर जायसवाल को घायल गाय का इलाज करने के लिए कहा गया. तब डॉक्टर के आने के बाद सामान्य तौर पर घाव की मलहम पट्टी और इलाज हुआ.

 इसी प्रकार एक अन्य घटनाक्रम में पनगड़ी पनगड़ी निवाशी लाला शुक्ला और दिनेश त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोवंश राइट्स एक्टिविस्ट द्विवेदी को फ़ोन करके जानकारी प्रदान की गई की सुदामा यादव निवासी पनगड़ी की गाय को किसी हत्यारे ने पेट में कुल्हाड़ी से हमला करके बुरी तरह से घायल कर दिया है. जानकारी मिलने के बाद हिनौती पशु औसधालय में कार्यरत समयलाल साहू को बताया गया जिस पर साहू घटनास्थल पर पहुच कर घायल गाय का दवा इलाज किये. यद्यपि देउर और पनगड़ी दोनो ही घटनाओं में घायल गायों को मात्र दवा और मलहम पट्टी की नही बल्कि पूरे सर्जरी की आवश्यकता है जिसके लिए पशु संजीवनी हेल्पलाइन 1962 को भी सूचित कर दिया गया है. यद्यपि अभी तक कोई सर्जन उपस्थित नही हुए हैं.

सरकार और प्रशासन को संज्ञान लेकर गोवंश प्रताड़ना बन्द करवानी चाहिए

    जिस प्रकार से रीवा ज़िले में पशुओं के साथ क्रूरता दिनो दिन बढ़ रही है सरकार को चाहिए ऐसे मामलों पर तत्काल संज्ञान लेकर दोषियों के ऊपर एफआईआर दर्ज करवा कर कानूनी कार्यवाही करे. दुर्भाग्य तो यह है की सरकार से ऐसी क्या उम्मीद की जाए. यहां तो रीवा ज़िले में हो रही पशु क्रूरता की वारदातों पर एफआईआर तक दर्ज नही होती. भलघटी पनगड़ी का  मामला अभी ज्यादा पुराना नही हुआ है जहां पर सैकड़ों गायों को क्रूरता पूर्वक घाट के नीचे मौत के घाट उतार दिया गया था लेकिन दो चार दिन उथल पुथल के बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया. इसी प्रकार अवैध बाड़ों में होरही गोवंशों की मौत पर भी लिखित शिकायतों के वावजूद भी आज तक किसी मामले में एफआईआर दर्ज नही हुई है। शायद गोवंश और पशु न बोल सकते और नही वोट दे सकते इसलिए नेताओं और इस सरकार के लिए किसी काम के नही।


  संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें ज़िले के थाना गढ़ अन्तर्गत देउर और पनगड़ी ग्राम की दो अलग अलग घटनाओं में किस प्रकार से गायों के आठ क्रूरता की गई है जिंसमे एक गाय का पैर और कूल्हा टूटा हुआ है और दूसरी के पेट में कुल्हाड़ी मार दी गई है.

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शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,


ज़िला रीवा मप्र, मोब - 7869992139, 9589152587


हड़ताल का बहाना खत्म, बीज की कालाबाजारी प्रारम्भ (मामला ज़िले के गंगेव कृषि विभाग का जहाँ पर कृषि ग्राम सेवकों की हड़ताल खत्म होते ही किसानों की फजीहत शुरू हो चुकी है, किसान दर दर भटक रहा बीज के लिए)

दिनांक 25 जून 2018, स्थान - गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

            ज़िले के गंगेव ब्लॉक स्थित किसान कल्याण एवं कृषि विभाग में एकबार फिर भ्रष्ट्राचार प्रारम्भ हो चुका है। किसान का कल्याण होता नही दिख रहा। कल्याण के स्थान पर कृषि विभाग किसानों का शोषण करने में आमादा है। अभी पिछले दिनों तक कृषि विस्तार अधिकारियों की हड़तालों का बहाना था। अब जब कृषि विभाग की हड़ताल समाप्त हुई तो ग्राम सेवकों का अलग अंदाज शुरू हो गया बताया जा रहा है कि कृषि विभाग में बीज ही नही है जबकि पिछवाड़े से गोदाम से दनादन बीजों का वितरण किया जा रहा है।

        दिनाँक 25 जून को दर्ज़न भर किसान ब्लॉक जाकर मायूस होकर लौट आये।

         आज जब पीक सीजन में किसान को बोवनी के लिए बीजों की आवश्यकता है तब किसान को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। सरकार कहती है कि हमारे पास पर्याप्त बीज और सामग्री उपलब्ध है लेकिन कृषि अधिकारी अंदर कमरे में बैठ कर मजे मार रहे हैं। कभी पीक सीजन में हड़ताल का बहाना बनाएंगे तो कभी बीज भंडारण की समस्या बताएंगे ऐसे में अब सरकार ही निर्धारित करे कि समस्या कैसे हल होगी। वहरहाल ब्लॉक गंगेव के कृषि विभाग में चोरी छिपे बीज की कालाबाजारी जारी है जिसे देखने वाला कोई नही है।

   ग्राम सेवकों का नही रहता कोई रता पता 

  मानाकि पिछले कुछ समय से ज़िले और प्रदेश में कृषि विस्तार अधिकारियों की हड़तालें चल रही थीं लेकिन क्या पूरे कार्यकाल में ही हड़तालें चल रहीं थीं. प्रश्न यह है की कौन सा ग्राम सेवक अपने क्षेत्र में रहता है. किसान को यदि कोई जल क्षमता प्रमाणपत्र और कृषि विभाग का कागज़ चाहिए तो उसके लिए किसान को ब्लॉक और रीवा के चक्कर लगाने पड़ते हैं. न तो किसान मित्र कुछ जानकारी देते और न ही ग्राम सेवकों का कोई रता पता रहता. 

हिनौती क्षेत्र का ग्राम सेवक बीज की करता है कालाबाजारी

  यदि किसानों की मानें तो राजबहोर पटेल, हरिबंश पटेल, काशी पटेल, सुरसरी सिंह, पुष्पराज सिंह, आदि किसानों को जब सब्सिडी और प्रदर्शन वाले बीज की आवश्यकता पड़ी तो इन्होंने ग्राम सेवक तिवारी से संपर्क किया. ग्राम सेवक ने बताया की प्रदर्शन वाला बीज आपको नही मिलेगा मात्र पैसे में बीज मिलेगा. इस प्रकार प्रदर्शन वाला बीज ही नगद पैसे में बिना रशीद दिए बेंच दिया जबकि अन्य कुछ किसानों ने जानकारी दी की हमने मामला सीएम हेल्पलाइन में रखा तो हमे बुलाकर मुफ्त में बीज दिया गया. इस प्रकार देखा जा सकता है जिन किसानों से शिकायत का डर बना रहता है उन्हें तो ग्राम सेवक मुफ्त मे बीज दे देता है लेकिन जिनसे पता है की कोई शिकायत नही होगी उन्हें कुछ नही मिलता मात्र घुमाफिराकर जबाब दे दिया जाता है.

संलग्न - संलग्न तस्वीर में ब्लॉक गंगेव के कृषि विभाग में अंदर बैठे मजे मार रहे कृषि अधिकारी।

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, रीवा मप्र, 78699992139, 9589152587

Saturday, June 23, 2018

उमरी कैप में मौसम की मार खा रहा खुले में रखा हज़ारों टन गेहूं (मामला ज़िले के सिरमौर तहसील अंतर्गत आने वाले उमरी कैप का जहां पर डंपिंग पॉइंट मे खुले में हज़ारों टन पड़ा गेहूं मौसम की मार खा रहा, बाहर से बाउंड्री वाल न होने और प्रॉपर फेंसिंग की व्यवस्था न बन पाने से मवेशियों का भोज बन रहा किसान का गेहूं)

दिनांक 24 जून 2018,  स्थान - उमरी कैप, सिरमौर रीवा मप्र 

(कैथा, रीवा-मप्र, शिवानन्द द्विवेदी)

   सरकार ने गेहूं की खरीदी तो कर ली है पर उसकी व्यवस्था कैसे करनी है शायद शासन में बैठे नुमाइईंदों को यह पता नही है. मप्र सरकार कहती है की हमारे पास पर्याप्त वेयर हाउसेस हैं जहाँ पर गेहूं और चावल को स्टोर किया जा सकता है परंतु सरकार के दावे तब खोंखले दिखते हैं जब सिरमौर के पास उमरी कैप और रीवा के हृदय में स्थित करहिया मंडी की तरफ ध्यान जाता है. तब समझ आता है की मात्र कह देने भर से कुछ नही होता. शुक्र है की मीडिया की तीसरी आंख पूरे खरीदी से लेकर उठाव और भंडारण करने तक के पूरे घटनाक्रम में नजर बैठाए हुए रहती है वरना यदि सब कुछ सरकार की मान ली जाए तो कल्याण ही हो जाए, 

उमरी कैप में खुले में पड़ा सड़ रहा है अन्नदाता की गाढ़ी कमाई 

   अभी हाल ही में दिनांक 22 जून को सिरमौर होते हुए बैकुंठपुर वाले रास्ते से उमरी पहुचा गया. पूंछने पर पता चला की उमरी चौराहे से दांए स्थित है उमरी कैप जहां पर धान और गेहूं की खरीदी के बाद डंप किया जाता है और फिर वहीं से या की सीधे राइस मिल में धान को भेज दिया जाता है या फिर कैप में सड़ने के लिए रख दिया जाता है. जहां तक गेहूं का सवाल है तो वहां कार्यरत सुरक्षा चौकीदारों  जन्मेजय कुमार तिवारी,  विजय कुमार यादव,  राजभान लोद, सत्यभान लोद, कृष्णकांत मिश्रा, लंकेश मिश्रा से जानकारी मिली की इस वर्ष अभी भी स्टोर हाउसेस खाली न मिल पाने की वजह से गेहूं की वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर वहीं पर खुले में डंप किया गया है जिसे वेयर हाउस खाली होने के साथ ही उठाव कर लिया जाएगा.

     परंतु वर्तमान में जो स्थिति दिखी वह संतोषजनक तो बिल्कुल नही कही जा सकती है. यद्यपि बारिश के मौसम में भी पन्नी और प्लास्टिक आदि की पर्याप्त व्यवस्था की हुई दिखी जिसमे गेहूं को ढका हुआ था फिर भी यदि मूसलाधार बारिस होने लगे तो ऐसे में पानी को संभालना और साथ ही आर्दता से गेहूं को बचा पाना काफी मुश्किल पड़ जाएगा. यदि किसी तरह से पन्नी वगैरह लगाकर गेहूं को ढक भी लिया गया तो कई दिनों तक चलने वाली बारिश की वजह से आने वाली आर्दता से गेहूं को बचा पाना मुश्किल ही नही असंभव कार्य है. आर्दता की वजह से गेहूं में कीड़े लग जाते और देखते ही देखते पूरा गेहूं सड़ जाता है.

   कहां गए सरकार के वेयर हाउस

     सरकार कहती है की हमारे पास खरीदे गए अनाज के भंडारण की पर्याप्त और समुचित व्यवस्था है लेकिन प्रश्न यह है की यदि पर्याप्त और समुचित व्यवस्था होती तो आखिर गेहूं धान को इस प्रकार उमरी कैप अथवा करहिया मंडी में खुले में क्यों रखा जाता. सरकार की महत्वाकांशी और किसान को राहत देने वाली योजनाएं जिनमे धान-गेहूं की खरीदी की जाकर सरकार उसकी व्यवस्था देखे उचित और सराहनीय है, परंतु सरकार को इस खरीदे हुए अनाज के समुचित भंडारण में विशेष ध्यान देने की जरूरत है. यदि सरकार के पास स्वयं के वेयर हाउस न भी हों तो प्राइवेट वेयर हाउस को को किराये में लेकर अनाज का समुचित भंडारण करना चाहिए. किसान के खून पसीने से पैदा हुआ एक-एक दाना बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसे नष्ट होने से बचाया जाना चाहिए. 

उमरी कैप के कर्ताधर्ता मात्र कुछ चौकीदार 

    ज़िले के सिरमौर स्थित उमरी कैप में पहुच कर जानकारी प्राप्त करने पर पता चला की कैप प्रबंधक मौजूद नही थे और मात्र पूरे सुरक्षा की जिम्मेदारी चंद लोगों के हवाले थी जिंसमे जन्मेजय कुमार तिवारी, विजय कुमार यादव, राजभान लोद, सत्यभान लोद, कृष्णकांत मिश्रा, लंकेश मिश्रा थे जिन्हें बारी बारी से सुरक्षा का जिमा दिया गया था साथ ही सावित्री साकेत, साधना साकेत नामक दोनो महिला झाड़ू और साफ सफाई कर्मचारी के रूप में थीं. वहीं पर वृष्णुदत्त महाराज नामक पुजेरी भी मिले जिन्होंने बताया की वह सिद्ध दानव मामा गंगा बहरी में पूजा अर्चना का कार्य करते हैं.

शुक्ला वेयर हाउस के पास ट्रकों में लदा अनाज खा रहा पानी

    सबसे बड़े ताज्जुब की बात तो यह है की उमरी कैप के नजदीक ही स्थित शुक्ला वेयरहाउस है जिसके पास दर्जनों लोडेड ट्रक खड़े मिले. जानकारी प्राप्त हुई की यह ज्यादातर ट्रक उमरी गेहूं कैप से ही लोड हुए हैं जो हफ्तों से अनलोड होने का इंतज़ार कर रहे हैं और साथ ही मौसम की बारिश खाते हुए खड़े हैं जिंसमे गेहूं बुरी तरह भींग रहा है. मात्र प्रबंधन की अनदेखी और लापरवाही की वजह से किसान के खून पसीने की गाढ़ी कमाई की ऐसी तैसी की जा रही है.

 चारों तरफ से खुला है उमरी कैप, कोई पुख्ता सुरक्षा नही 

      देखने पर पता चला की उमरी कैप जहां पर इतनी अधिक मात्रा में गेहूं और अनाज को खरीदी के बाद डंप किया हुआ है उसकी बाउंड्री वाल नही है. सुरक्षा गार्ड जन्मेजय तिवारी द्वारा उमरी कैप के प्राँगण में अंदर घुसे हुए पशुओं और सुअर की तरफ इशारा करते हुए बताया गया की चारों तरफ से सही फेंसिंग व्यवस्था न हो पाने की वजह के यह जानवर कैप के अंदर घुसे रहते हैं जिससे खुले में रखा हुआ अनाज खाते और नुकसान पहुचाते रहते हैं. 

      बाउंड्री के तौर पर देखा जाए तो मात्र कटीले तार लगे हुए थे जो की खंभों में बांधकर लगाए गए थे. चेक पॉइंट अथवा चुंगी के पास तो खम्भे भी धराशायी हो गए थे जिससे कटीले तार भी जमीदोंज हो गए थे जहां से मवेशियों का आना जाना ज्यादा सुलभ था. जन्मेजय तिवारी और उनके अन्य सुरक्षा गार्ड साथियों द्वारा माग की गई की उमरी कैप के चारों तरफ बाउंड्री वाल बनाई जानी चाहिए जिससे खरीदी के समय खुले में रखे हुए अनाज की सुरक्षा की जा सके.

संलग्न - संलग्न तस्वीरों में देखें उमरी कैप के अंदर का दृश्य जहां पर खुले आसमान के नीचे हज़ारों टन गेहूं पड़ा सुरक्षा की गुहार लगा रहा है साथ ही हमारे किसानों के खून पसीने की कमाई नष्ट हो रही है. एक अन्य तस्वीर में देखें शुक्ला वेयरहाउस के पास खड़े दर्जनों ट्रक जिन्हें अनलोड नही किया गया. साथ ही सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी लिए हुए चौकीदार और टूटी पड़ी बाउंड्री.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल - 7869992139, 9589152587