रीवा मप्र, दिनांक 30 जनवरी 2018, स्थान - त्योंथर ब्लॉक, रीवा मप्र।
(शिवानंद द्विवेदी, रीवा मप्र)
भारत सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू करके देश की जनता को सशक्त बनाने का अच्छा अवसर प्रदान किया था लेकिन आज पूरे देश मे सूचना के अधिकार की सरकारी विभागों द्वारा धज्जियां उड़ाई जा रही है।
अभी हाल ही में आवेदक पुष्पराज तिवारी निवासी डाढ़ पंचायत ब्लॉक त्योंथर रीवा द्वारा ब्लॉक में आर टी आई लगाकर मनरेगा के जॉब कार्ड सहित मनरेगा सम्बंधित जानकारी चाही गई थी जिस पर आवेदक को अब आवेदक से पीड़ित बना दिया गया है। जी हां! अब पीड़ित जनपद त्योंथर से प्राप्त और सीईओ का हस्ताक्षरित प्रपत्र लेकर घूम रहा है जिसमे सूचना देने के एवज में 85626 रुपये की फीस की माग की गई है। जबकि पीड़ित का कहना है कि उसने जो जनकारी माँगी थी वह मुश्किल से हज़ार रुपये के अंदर राशि जमा करके दी जा सकती थी। अतः सीईओ त्योंथर के प्रपत्र दिनांक 19 जनवरी 2018 से स्पष्ट है कि वांछित जानकारी उपलब्ध न करवाने और भ्रमित करने के उद्देश्य से पीड़ित आवेदक को 85626 रुपये जमा किये जाने हेतु कहा गया है।
आज दिनांक 30 जनवरी को जब पूरा देश महात्मा गांधी की पुण्यतिथि मनाने में जुटा हुआ है, ऐसे में देखना यह होगा कि गरीबों मजदूरों के हित और उनके अधिकार के लिए प्रारम्भ की गई महात्मा गांधी ग्रामीण राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के नाम पर मजदूरों को वेवकूफ बनाने और उनके शोषण का जो जरिया पंचायतों ने खोज निकाला है इस पर क्या कुछ किया जाएगा? क्या गरीबों मजदूरों को रोजगार की गारंटी के नाम पर फ़र्ज़ी मस्टर रोल और फ़र्ज़ी बैंक खाते बनाकर राशि की अंधाधुंध निकासी इसी प्रकार जारी रहेगी?
जितना काम उतना दाम जैसे वैधानिक जुमलों का क्या होगा? क्या 167 रुपये की दिन भर की मजदूरी ही बस मजदूरों को दी जाती रहेगी? जब आज दिन भर का लेबर चार्ज 300 सौ रुपये के आसपास है ऐसे में इतने कम 167 रुपये सरकारी रेट पर कौन मजदूर दिन भर पंचायती कार्यों में झक मरायेगा और काम करने के बाद पूरे छः माह अथवा साल भर इंतज़ार करेगा?
आज सरकारें कॉर्पोरेट के लिए बिक चुकीं हैं। सभी सरकारी योजनाओं में मात्र स्मार्ट सिटी, स्मार्ट शहर, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, नौकरी पेशे वालों के लिए नए नए पैकेज, नए वेतन आयोग और बहुत कुछ लेकिन किसानों और मजदूरों के लिए कहीं दूर दूर तक कुछ नही। जो भी योजनाएं आती भी हैं तो मनरेगा की तरह भ्रष्ट्राचार की भेंट चढ़ रही हैं। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि किसानों और मजदूरों का कोई सशक्त संगठन भी नही है जो इनकी गांव गांव आवाज उठाये जिससे इनको न्याय मिल पाए। ग्रामीणों मजदूरों और किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नही है।
और कब तक किसान मजदूर का शोषण होता रहेगा?
संलग्न - आवेदक पीड़ित पुष्पराज तिवारी निवासी डाढ़ पंचायत एवं मनरेगा मजदूर इंद्रलाल साकेत की फ़ोटो तथा आवेदकों द्वारा लगाया गया सूचना अधिकार आवेदन।
- शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक मानवाधिकार कार्यकर्ता रीवा मप्र। 7869992139