Saturday, June 10, 2023

Breaking: चीफ इंजीनियर ने बांधों को लेकर कह दी यह बड़ी बात, जानकर रह जायेंगे हैरान // सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन अनुसार कम से कम 10 प्रतिशत भाग रहना चाहिए जलमग्न// तालाबों को पूरी तरह खाली रखना सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन और संविधान का खुला उल्लंघन// भारत का संविधान देता है सभी जीव जंतुओं को जीवन जीने का अधिकार// सिंचाई और जल संग्रहण के लिए बनाए गए बांधों से पानी खींचकर कर दिया जाता है खाली// मानव के साथ जीव जंतुओं पशु पक्षियों पर भी डैम के पानी पर नैसर्गिक अधिकार//

*Breaking: चीफ इंजीनियर ने बांधों को लेकर कह दी यह बड़ी बात, जानकर रह जायेंगे हैरान // सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन अनुसार कम से कम 10 प्रतिशत भाग रहना चाहिए जलमग्न// तालाबों को पूरी तरह खाली रखना सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन और संविधान का खुला उल्लंघन// भारत का संविधान देता है सभी जीव जंतुओं को जीवन जीने का अधिकार// सिंचाई और जल संग्रहण के लिए बनाए गए बांधों से पानी खींचकर कर दिया जाता है खाली// मानव के साथ जीव जंतुओं पशु पक्षियों पर भी डैम के पानी पर नैसर्गिक अधिकार//*
दिनांक 11 जून 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

   सरकार द्वारा बनवाए गए जिले के बड़े बांधों की स्थिति का जायजा लिया जा रहा है जिसकी ग्राउंड जीरो से रिपोर्टिंग पहुंचाई जा रही है। मीडिया के इतिहास में बांधों, बड़े जलाशयों और तालाबों के विषय में शायद ही अब तक इतनी डिटेल्ड विस्तृत और व्यापक जानकारी पहले कभी भी पहुंचाई गई हो। अब तक का फोकस रहा है रीवा संभाग का वह क्षेत्र जिसे आजादी के बाद से जल अभाव ग्रस्त घोषित किया गया था। जिसके लिए सरकार ने पुनर्जीवित करने के बड़े प्रयास किए। मऊगंज और हनुमना क्षेत्र पहाड़ी पथरीले होने के साथ लगभग बंजर और जल अभावग्रस्त क्षेत्र थे जिनमे आजादी के बाद इन्हे बेहतर बनाने के कुछ प्रयास किए गए जहां बड़े बड़े बांध और सरकारी जलाशय बनवाए गए। अभी भी यदि कोई जल संग्रहण अथवा सिंचाई परियोजना की बात होती है तो मऊगंज और हनुमना के किसान प्राथमिकता में होते हैं। 
    इसी सिलसिले में मऊगंज तहसील के अटरिया शिवप्रसाद ग्राम पंचायत के पास स्थित वन पाड़र ग्राम में बनाए गए पाड़र बांध की स्थिति का जायजा लिया गया। इस बीच मौके पर शिवानंद द्विवेदी के साथ जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर एसबीएस परिहार और आसपास की ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। 
   *जिले के बड़े बांध चढ़ गए व्यापक भ्रष्टाचार की बलि, मेंटिनेंस का पैसा तक डकार गए भ्रष्ट कमीशनखोर अधिकारी*

  जहां तक सवाल बांध में पानी, बांध की कंडीशन, इसके रखरखाव और मेंटेनेंस आदि के लिए आने वाली राशि के बंदरबांट को लेकर था उसके विषय में तो यह स्पष्ट हो चुका है कि बांधों का रखरखाव बिल्कुल नहीं किया गया है और उनके मेंटिनेंस के लिए शासन के द्वारा दी जाने वाली राशि का बेजा दुरुपयोग जल संसाधन विभाग के भ्रष्ट और कमीशनखोर अधिकारियों के द्वारा किया गया। इसके विषय में पिछले महीने भर से चलाए जा रहे जल जीवन जागरण यात्रा के दौरान एक-एक बांध में सरकार की कथनी और करनी की कलई खुलती जा रही है। जल संसाधन विभाग के मुलाजिम अपना मुंह छिपाए घूम रहे हैं। हकीकत और लाइव वीडियो आने के बाद जल संसाधन विभाग के भ्रष्ट और कमीशनखोर अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं बचा है। अब तो बस सब इस चक्कर में रहते हैं कि कब उनका नंबर लगे और कब उनकी कलई खुल जाए। ग्राउंड जीरो पर ड्यूटी में लगाए गए उपयंत्री और एसडीओ अपने कार्य से नदारद रहते हैं और मात्र कागजी घोड़ा दौड़ाकर सब कुछ ओके है इस प्रकार बताकर कागजी खानापूर्ति कर देते हैं। लेकिन सब कुछ ठीक है ऐसे बताए जाने वाले बांधों की स्थिति इन वीडियो के माध्यम से स्पष्ट हो ही चुकी है कि उनकी कितनी दुर्दशा हो गई है और सभी बांध क्षतिग्रस्त होकर लगभग टूटने की कगार पर हैं जिनमें मेंटिनेंस की सख्त आवश्यकता है। ऐसा नहीं है कि बांधों के मेंटिनेंस के लिए राशि नहीं आई है बल्कि उस राशि को किस प्रकार जल उपभोक्ता समितियों के साथ मिलकर हजम कर लिया गया है उसका जीता जागता उदाहरण इस जल जीवन जागरण यात्रा में एक-एक करके सामने आ चुका है। यहां पर यह उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार अकेले मात्र जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के द्वारा ही नहीं किया गया बल्कि हर ग्राम पंचायत में नहरों और बांधों की सुरक्षा और रखरखाव के लिए बनाई गई जल उपभोक्ता समितियों और उनके जन प्रतिनिधियों के द्वारा मिलकर इसका बंदरबांट किया गया है।
*बड़ा सवाल: क्या प्राकृतिक जल पर मानव मात्र का ही अधिकार?*

   ग्राउंड जीरो पर जब बांधों की स्थिति का जायजा लिया गया और यह देखा गया कि कई बांधों में बूंदों में पानी नहीं है और गर्मी के दिनों में इतने बड़े बड़े बांध सूख चुके हैं तो इस पर स्वाभाविक तौर पर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर एसबीएस परिहार से प्रश्न करना लाजमी समझा कि क्या बांधों और तालाबों के प्राकृतिक जल पर मानव मात्र का ही अधिकार है कि उसका दोहन कर लिया जाए और निचोड़ कर गर्मी के दिनों में बांधो  को सूखा छोड़ दिया जाए? क्य प्रकृति में उपलब्ध पंचमहाभूत में से सबसे महत्वपूर्ण पृथ्वी वायु और जल में मात्र मानव का ही अधिकार है कि उसे अपनी उपयोगिता और भौतिक सुख सुविधा के लिए वह प्रदूषित कर रहा है, उसका गलत तरीके से दोहन कर रहा है और निचोड़कर छोड़ दे रहा है। बड़ा सवाल यह था कि क्या किसी भी बड़े जलाशय बांध अथवा तालाब के पानी में लाखों-करोड़ों जीव जंतु पशु पक्षियों का अधिकार नहीं है कि इस भीषण गर्मी के दिनों में कुछ पानी इन सरकारी बांधों तालाबों में छोड़ दिया जाए जिससे प्राकृतिक जीव जंतु भी जीवित रहने के लिए इसका उपयोग कर पाएं? इस बात पर एसबीएस परिहार ने बताया कि नैतिक और नैसर्गिक तौर पर तो यह धार्मिक परंपराएं भी कहती हैं की मानवता तभी जीवित रहेगी जब उनमें परहित करने का भाव जागृत रहेगा और अपने ही समान सभी जीव जंतुओं को समझकर उनके जीवन यापन के लिए भी वह प्राकृतिक वातावरण अपने आसपास बनाए रखेंगे जिससे सभी जीव जंतु जीवित रहे। इकोसिस्टम का सिद्धांत भी यही कहता है कि अपने आसपास प्राकृतिक वातावरण बनाए रखने पर ही मानव का अस्तित्व बना रहेगा वरना इकोसिस्टम नष्ट होने के बाद मानव का अस्तित्व भी नष्ट हो जाएगा। 
*आखिर वरिष्ठ न्यायालयों के जजमेंट और भारत का संविधान जीवन जीने के अधिकार के विषय में क्या कहता है? यह भी जान लें*

  भारत का संविधान सभी की स्वतंत्रता और उनके जीवन जीने के अधिकार पर बड़े स्पष्ट तौर पर बात करता है। 
 यदि नियम कायदों के हिसाब से भी देखा जाए तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कई ऐसे आदेश भी दिए गए हैं जिसमें यह बहुत स्पष्ट किया गया है की प्राकृतिक जल स्रोतों एवं किसी भी प्रकार के बड़े जल स्रोतों जैसे बांध तालाबों में मानव अपने उपयोग के अतिरिक्त कम से कम 10 प्रतिशत पानी उन जलाशयों में उपयोग के अतिरिक्त शेष बचाए रखेगा जिसका प्रयोग कर जीव जंतु पशु पक्षी ही जीवित रहेंगे क्योंकि प्रकृति में सभी को जीने का अधिकार है और हमारा संविधान भी यही कहता है। लेकिन कितनी बड़ी विडंबना है कि आज मानव इतना स्वार्थी हो गया है कि वह सिर्फ अपने उपयोग के अतिरिक्त किसी भी प्रकार से दूसरे जीव जंतु और पशु पक्षियों के विषय में विचार नहीं कर रहा है और यह सभी सरकारी बांध तालाब जिस प्रकार जलविहीन जीवनविहीन सूखे पड़े हुए हैं यह इस बात का उदाहरण है कि मानव ने प्रकृति को मात्र अपनी निजी स्वार्थों के लिए निचोड़ लिया है और जीव जंतु पशु पक्षियों को भीषण गर्मी में मरने के लिए छोड़ दिया गया है।
    इस प्रकार देखा गया कि कैसे भारत के संविधान में जीवन जीने के अधिकार और सर्वोच्च न्यायालय के  कम से कम 10 प्रतिशत जलाशय में पानी भरे जाने के निर्णय की धज्जियां उड़ाई गई हैं। और जहां मानव किसी तरह से अपना हाथ पैर मार कर पानी की व्यवस्था कर अपना जीवन यापन कर रहा है वहीं जगह जगह जल स्रोतों में पानी का दोहन कर लिए जाने के कारण जीव जंतु और पशु पक्षी बूंद बूंद पानी के लिए मर रहे हैं। 
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

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