दिनाँक 20 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र
(कैथा श्रीहनुमान मंदिर से, शिवानन्द द्विवेदी)
बरसात के मौसम में आमतौर पर मवेशियों में कई बीमारियां फैल जाती हैं. जिस प्रकार से इंसानों में मौसमी बुखार, वायरल इन्फेक्शन, मलेरिया एवं टॉयफायड, मस्तिष्क ज्वर आदि बीमारियां फैल जाती हैं उसी प्रकार पशुओं में भी कई बीमारियां आ जाती हैं. ज्यादातर मवेशी बाद अर्थात फुट एंड माउथ डिजीज एफएमडी की चपेट में आते हैं. बाद के नाम से जानी जाने वाली यह बीमारी एक प्रकार से महामारी की तरह है क्योंकि बाद के आने के बाद मवेशियों का मुँह और पैर बुरी तरह से सड़ने लगता है या उसमे जब मक्खियां बैठती हैं तो इन्फेक्शन से कीड़े पड़कर घाव सड़न लेने लगता है. बाद या एफएमडी एक प्रकार की संक्रामक बीमारी होती है जिंसमे यदि एक प्रभावित हुआ तो शेष सभी जो भी उसके संपर्क में आते हैं सब प्रभावित होने लगते हैं.
बाद या एफएमडी की तरह ही गलघोंटू, परपरहवा आदि बीमारियां भी पशुओं में फैलती हैं जिनकी वजह से पशु मर जाया करते हैं.
समय रहते टीकाकरण है समस्या का समाधान
पशुओं में बरसात के मौसम के बाद होने वाली ज्यादातर बीमारियों की रोकथाम के लिए समय पर टीकाकरण की व्यवस्था ही एकमात्र समाधान है. एक बार बीमारी होने के बाद उससे निजात पाना काफी मुश्किल होता है अतः बेहतर यही होता है जिन जिन बीमारियों के टीके उपलब्ध हैं किसान और पशु पालक समय रहते मई जून से लेकर जुलाई अगस्त के बीच लगने वाले टीके लगवातें रहें जिससे इन बीमारियों के प्रति पशुओं में रोगप्रतिरोधक शक्ति निर्मित होने से मवेशी स्वस्थ्य रहते हैं.
गंगेव ब्लॉक में वर्षों से नही लगे एफएमडी के टीके
गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले कई क्षेतों जैसे गढ़ एवं लालगांव अन्तर्गत आने वाले ग्रामों में पशुओं को टीके नही लगाए गए जिसकी वजह से आज यह समस्या पैदा हुई है. वैसे कागजों में सरकार ने बहुत ज्यादा अभियान चलाया हुआ है जिंसमे गोकुल अभियान काफी मुख्य रहा जिंसमे गांव गांव कैम्प लगाकर पशुओं का इलाज करना, उनका पोषण की जानकारी इकठ्ठा करना, पशुओं को विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों से बचाव के टीके लगाना आदि. लेकिन दुर्भाग्य से भारत में जिस प्रकार से ज्यादातर योजनाएं मात्र कागजों पर ही संचालित होती हैं उसी तरह टीकाकरण ड्राइव एवं गोकुल महोत्सव भी मात्र कागजों तक ही सीमित रहा. पशु चिकित्सा विभाग ने ज्यादातर फ़र्ज़ी पंचनामा बनवाकर सरकार को पेश कर दिए और बता दिए की टीकाकरण हो गया जिसकी वजह से स्थिति यह हो गई की सरकार की नजर में तो टीकाकरण हो गया लेकिन ग्रामों में ग्राउंड में स्थितियां यथावत ही बनी रह गईं.
लोगों का सहयोग भी नकारात्मक
यदि देखा जाए तो सरकार की योजनाओं और टीकाकरण आदि में मात्र पशु चिकित्सा विभाग ही मात्र जिम्मेदार नही है. इसके लिए विभाग के साथ साथ समाज भी जिम्मेदार है. अमूमन यह देखा गया है की जब भी कोई टीकाकरण करने के लिए डॉक्टर आता है तो गांव के लोग भी सहयोग नही देते. यदि 2 अथवा 5 रुपये प्रति टीकाकरण राशि ली जाती है तो लोग कहते हैं की चलो जाओ हम टीका नही लगवाएंगे. ऐसे में कई बार ऐसा होता है की पशु चिकित्सा विभाग के कर्मचारी गांव गांव जाकर कई बार खाली लौट आते हैं और टीकाकरण नही हो पाता. टीकाकरण के लिए गांव गांव जाकर एक सप्ताह पूर्व से जानकारी भी नही दी जाती. विज्ञापन के अभाव के कारण लोगों को पहले से जानकारी भी नही हो पाती.
हिनौती, रवार, गदही, सन्नसिया डांडी में पड़े हैं इन्फेक्टेड पशु
अभी हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता एवं एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी एवं साथ में बड़ोखर निवासी शिवेंद्र सिंह सहित जंगली क्षेत्रों एवं उसके आसपास के ग्रामों में जाकर भ्रमण किया गया तो पाया गया की सैकड़ों आवारा और घरेलू गोवंश एफएमडी से संक्रमित हो चुके हैं. जगह जगह पड़े मिले इन गोवंशों की स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है. लोगों द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चला की पिछले कई दिनों से मवेशी मर भी रहे हैं. एफएमडी के संक्रमण में आने के बाद मवेशियों के मुँह और पैर काम करना बन्द कर देते हैं जिससे उनके मुँह पैर में घाव की वजह से कीड़े पड़ने लगते हैं और निरंतर सड़कर खून मवाद बहता रहता है.
लगभग दो दर्ज़न ऐसे मवेशी मिले हैं जो पूरी तरह से चल पाने में निःशक्त थे वजह मात्र उनके पैरों का काम न करना था.
पूरी जानकारी वेटेरिनरी विभाग को दी गई
यह समस्त वाकया गढ़ पशु चिकित्सा विभाग के सहायक पशु सर्जन विवेक मिश्रा एवं हिनौती औषधालय में कार्यरत समयलाल साहू को दी गई. जिस पर अगले दिन प्रभावित क्षेत्र में जाकर टीकाकरण करने की बात कही गई है.
रेहवा घाटी में फंसे दर्ज़नों गोवंश अभी भी नही निकल पाए
पिछले दिनों असामाजिक एवं आपराधिक तत्वों द्वारा सिरमौर वन परिक्षेत्र के जंगली क्षेत्र एवं रेहवा घाटी में धकेल दिए गए दर्ज़नों मवेशियों को निकालने का प्रयाश कुछ सामाजिक सहयोग से सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं ग्रामीणों के सहयोग से किया गया था जिंसमे दो तीन दिन की जद्दोजहद के बाद मात्र एक गाय और उसके पांच दिन के जन्मे बछड़े को निकाला जा सका था. अभी भी 1000 फीट गहरी घाटी में ऐसे दर्ज़नों गोवंश हैं जो उतार दिए गए थे और अभी तक घाट के ऊपर नही चढ़ाए जा सके थे.
कुछ जंगली क्षेत्रों में भ्रमण करने वाले लोगों का कहना था यह मवेशी संभवतः घाट के नीचे नीचे चलकर दूसरे ग्रामों में नीचे से ही चले जाएंगे. लेकिन जिस प्रकार से घाट के तलहटी क्षेत्र में कोई स्पष्ट रास्ता नही देखा गया इससे स्पष्ट है की फंसे हुए पचासों मवेशियों के लिए अंदर ही अंदर बाहर निकल पाना कठिन नही असंभव भी होगा.
संलग्न - संलग्न फ़ोटो में देखें सामाजिक कार्यकर्ता की उपस्थिति में मवेशियों में एफएमडी का सर्वे किया गया जिंसमे बहुतायत में आवारा पशुओं में बाद अर्थात एफएमडी की समस्या पायी गई .
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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,
ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587.
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