दिनाँक 11 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र
(कैथा श्रीहनुमान मंदिर से, शिवानन्द द्विवेदी)
यज्ञों की पावन पुनीत स्थली कैथा के अति प्राचीन श्रीहनुमान मंदिर प्राँगण में पिछले 100 से अधिक वर्षों से परंपरागत और हरितालिका तीज अर्थात बघेली में तीजा के दिन आयोजित होने वाले मेला भरेगा. इस बीच कैथा और उसके आसपास के दर्जनों ग्रामों के लोग जिनमे बहुतायत में माताएं, बहने और युवक युवतियां सम्मिलित रहते हैं मेले और झूले का लुफ्त उठाने के लिए श्रीहनुमान मन्दिर कैथा पधारते हैं. गढ़, हिनौती, लालगांव, कटरा, भठवा, और अन्य स्थानों से दूर दूर के दुकानदार अपनी विभिन्न प्रकार की सामग्रियों को बेचने के लिए दुकान लेकर आते हैं.
बुजुर्गों ने बताया सैकड़ों वर्ष पुराना मेला
गांव के 80 वर्ष की उम्र छूने वाले कई बुजुर्गों से जब कैथा श्रीहनुमान मंदिर में भरने वाले मेले के विषय में चर्चा हुई तो बताया गया की यह मेला बहुत पुराना है. सभी ने बताया की वह सभी लोग अपने भी पूर्वजों से इस मेले के विषय में सुनते आ रहे हैं.
कैथा ग्राम के रामसुंदर केवट जो की इस समय 90 के ऊपर पहुचने वाले हैं उनका कहना था की उनके बचपन से यह मेला भर रहा है. कैथा के ही जगदीश पटेल उर्फ जिमीदार ने बताया की उनके बाबा दादा इस मेले के विषय में बताते थे और हम तो बचपन से देख रहे हैं इसी प्रकार कैथा के ही दिवंगत लोकनाथ द्विवेदी द्वारा बताया गया था की उनकी जानकारी से यह मेला लग रहा है. उनके पूर्वजों ने भी इस मेले के बारे में बताया था. इस प्रकार सहज ही समझा जा सकता है की सैकड़ों वर्ष प्राचीन यह मेला निरंतर अपनी परंपराओं के अनुरूप भरता आया है.
श्रीहनुमान जी की हज़ारों वर्ष प्राचीन प्रतिमा
ज्ञातव्य है की कैथा श्रीहनुमान मन्दिर में उपस्थित अति प्राचीन श्री हनुमान जी की प्रतिमा विराजमान है जिसके विषय में भी इसी प्रकार की किंबदंतियाँ है जिनके अनुसार यह प्रतिमा इसी विस्तारित हिनौता तालाब से हज़ारों वर्ष पहले प्रकट हुई थी. कुछ लोगों का मानना है की श्रीहनुमान जी विशाल प्रतिमा आसपास के लोगों की पीड़ा व्यथा और दुख कष्ट को दूर करने के लिए प्रकट हुई थी.
चाहे जो भी हो लेकिन एक बात तो तय है की ईश्वर के उद्भव को कोई जान नही सकता क्योंकि वह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी होते हुए सभी के लिए उनके कर्मो के अनुसार फल देने वाला होता है. वह अपनी इक्षा मात्र से प्रकट होता है और मूर्ति रूप में पूजे जाने का तात्पर्य है की हम ईश्वर को जी भाव में जाने और माने उसे साकार समझ कर उसकी आराधना उपासना करें.
कैथा और उसके आसपास के लोगों ने बताया की पहले दशकों पूर्व यहां मंदिर प्राँगण हिनौता तालाब में तीजे के मेले के दिन कुश्ती, कबड्डी और बादी का आयोजन होता था. कबड्डी कुश्ती को तो सभी जानते हैं लेकिन बादी भी एक खेल है जिंसमे 6 लोग एक गोलाई में में होते थे जिंसमे एक खिलाड़ी मात्र एक को गोलाई में घूमकर छूता था जिंसमे खेल में हुडी हुडी कहकर खेल खेला जाता था. पुराने बुजुर्गों ने बताया की उनके समय में बादी का खेल खूब खेला जाता था लेकिन अब वर्तमान में यह खेल पूरी तरह से विलुप्त हो चुका है.
हरितालिका तीज का महत्व
जिस हरितालिका तीज के मेले की चर्चा हो रही है वह बघेली में तीजा के नाम से जाना जाता है. तीजा का काफी महत्व है. यह त्योहार मुख्य रूप से हिन्दू महिलाओं का निर्जला व्रत के लिए जाना जाता है. पौराणिक कथा प्रसंगों में बताया जाता है माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्ति के लिए हज़ारों वर्षों तक बिना अन्न जल ग्रहण किये हुए कठिनतम व्रत रखा था जिसके फलस्वरूप उनका शरीर काफी कमजोर हो गया था और अंत में मात्र पेड़ के पत्ते खाकर जीवित रहीं थी जिसके बाद उनका नाम अपर्णा पड़ा था जिसके फलस्वरूप भगवान शिव प्रसन्न हुए और माता शती को वरदान दिया और उन्हें पति रूप में मिले.
आज कलयुग में सभी महिलाएं उसी परंपरा के अनुरूप अपने पति देव की लंबी उम्र और शुख शांति के लिए मात्र 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. उसके बाद तीज की रात के बाद आने वाली शुबह में स्नान करती हैं और मात्र अगले दिन ही भोजन करती हैं. बताया गया की बघेली में तीजे के व्रत में खीरे का काफी महत्व है. पूजन के दौरान खीरे का उपयोग किया जाता है और इष्टदेव को चढ़ाया जाता है.
दिनाँक 12 सितंबर को हरितालिका तीज के दिन भरने वाले इस मेले एवं झूले का आनंद लेने के लिए आसपास के लोग काफी उत्साहित हैं.
संलग्न - संलग्न फ़ोटो में देखें उपस्थित भक्त श्रद्धालुगण.
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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,
ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139
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