Sunday, September 30, 2018

आर टी आई लगा इलाहाबाद बैंक से रुपे डेबिट कार्ड की माँगी जानकारी (मामला ज़िले के घूम कटरा इलाहाबाद बैंक का जहाँ पर आर टी आई आवेदक पुष्पराज तिवारी निवासी डाढ़ ने माँगी महत्वपूर्ण जानकारी, बता दें मनरेगा में रुपे डेबिट कार्ड का सरपंच सचिवों द्वारा किया जा रहा दुरुपयोग)

दिनांक 30 सितंबर 2018, स्थान - कटरा, रीवा मप्र

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी)

  राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा पीएम जनधन योजना अन्तर्गत खोले गए जीरो बैलेंस खातों से जुड़े हुए रुपे डेबिट/एटीएम कार्ड के दुरुपयोग को देखते हुए त्योंथर ब्लॉक डाढ़ पंचायत निवासी पुष्पराज तिवारी नामक युवक आर टी आई  कार्यकर्ता ने इलाहाबाद बैंक घूम कटरा ब्रांच के बैंक मैनेजर से दिनांक 18 सितंबर 2018 को आर टी आई आवेदन दाखिल कर बैंक द्वारा पीएम जनधन खातों से संबंधित सभी रुपे डेबिट कार्ड की जानकारी माँगी है.

  जनपद पंचायतों में रुपे डेबिट कार्ड का हुआ है दुरुपयोग 

  बता दें कि त्योंथर जनपद पंचायत सहित संभवतः रीवा एवं प्रदेश की कई पंचायतों में मनरेगा की मजदूरी के आहरण में हो रही अनियमितता के चलते जारी किये जा रहे डेबिट कार्डों को सरपंच सचिव अथवा इनके दलाल अपने पास रख लेते हैं और जब जब मनरेगा की मजदूरी संबंधित मजदूर के बैंक खाते में आती है तो सरपंच के दलाल जाकर उसी रुपे कार्ड अथवा डेबिट/एटीएम कार्ड से बिना मजदूर की जानकारी के ही राशि का आहरण कर लिया करते हैं. कुछ मामलों में सौ दो सौ रुपये मजदूर को दे दिया जाता है. ऐसे मामले कई हो चुके हैं जिंसमे त्योंथर जनपद पंचायत की कुछ पंचायतों में मजदूरों की जानकारी के वगैर ही उनके खाते खुल गए और पैसे की निकासी भी बता दी गई. 

  कितने रुपे डेबिट कार्ड जारी हुए, कितने उपयोग हुए

 इसी बात को ध्यान में रखते हुए आर टी आई आवेदक पुष्पराज तिवारी ने इलाहाबाद बैंक घूम कटरा ब्रांच में आर टी आई दाखिल कर जानना चाहा है की बैंक में जितने भी पीएम जनधन खाते खोले गए हैं उनसे संबंधित कितने रुपे डेबिट/एटीएम कार्ड जारी किये हैं उसकी प्रमाणित सूची की माग की गई है. इसी प्रकार यह भी जानकारी चाही गई है की जो भी एटीएम कार्ड जारी किये गए हैं उनमे से कितने उपयोग किये जा रहे हैं अर्थात उपयोग हो रहे एटीएम कार्ड की भी प्रमाणित प्रति की माग की है.

  बैंक मैनेजर ने आर टी आई आवेदन हाँथ में लेने से किया इनकार 

  आर टी आई आवेदक पुष्पराज तिवारी द्वारा जानकारी दी गई की सबसे पहले आवेदक सीधे बैंक मैनेजर इलाहाबाद बैंक घूम कटरा के पास गया था और आर टी आई दाखिल करने की चाही तो बैंक मैनेजर ने आवेदन ही लेने से इनकार कर दिया. इसके बाद आवेदक के पास आवेदन को स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजे जाने के अतिरिक्त कोई दूसरा तरीका नही था. इस प्रकार आवेदक पुष्पराज तिवारी ने दिनाँक 18 सितंबर को ही पोस्ट आफिस जाकर सीधे स्पीड पोस्ट किया जिसका पंजीयन क्रमांक  आरआई447112005आईएन है.

संलग्न - संलग्न आर टी आई आवेदन एवं आवेदक पुष्पराज तिवारी निवासी पंचायत डाढ़, ब्लॉक त्योंथर, ज़िला रीवा मप्र.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

Wednesday, September 26, 2018

नेवरिया हरिजन बस्ती में आवागमन अवरुद्ध, पानी का भीषण संकट, नही है कोई नलकूप, 2 किमी दूर से हरिजन ढोते हैं पानी, बरसात में खेत तैर कर आते हैं बाहर ( मामला ज़िले के गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले सेदहा पंचायत के नेवरिया ग्राम का जिंसमे 50 की आवादी के बीच नही है कोई नलकूप, हरिजन 2 किमी दूर से पानी लाने मजबूर, सरपंच बोलता है जिसे वोट दिए हो उसी से ले लो पानी)

दिनांक 27 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी)

  आज आजादी के 70 साल बाद भी यदि आम भारतीय नागरिकों को पीने का स्वच्छ जल नही मिले तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है. देश में विकाश के नाम पर नित नए दावे किये जा रहे हैं, हरिजन आदिवाशियों की सुरक्षा और विकाश के नाम पर एससी एसटी एक्ट और आरक्षण की बातें तो की जाती हैं लेकिन वास्तव में इन सबका लाभ आज देश का गरीब तबका नही ले पा रहा है. सभी योजनाओं का लाभ वही हरिजन आदिवाशी ले रहे हैं जो पहले से सक्षम हैं जिसे क्रीमी लेयर के नाम से जाना जाता है. एक कलेक्टर हरिजन आदिवाशी का बच्चा जरूर कम योग्यता में ही कलेक्टर बन जाएगा लेकिन एक गरीब हरिजन आदिवाशी कुछ नही बन सकता, उसका जीवन मजदूरी करने और अंधेरे में ही व्यतीत होने वाला है.

    और वास्तव में यही सच्चाई भी है. क्योंकि यदि किसी को विश्वास न हो तो वह स्वयं भी ग्रामों में आकर देख ले की आज 70 वर्षों की आजादी के बाद भी गांव का गरीब हरिजन आदिवाशी परिवार गरीब ही बना हुआ है उसे किसी भी सरकारी योजना का लाभ मिलना समझ नही आता. यहां तक की ऐसे भी हरिजन आदिवाशी परिवार अभी भी हैं जिन्हें मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजनान्तर्गत दिया जाने वाला अनाज भी नही मिल रहा है. 

   नेवरिया ग्राम के 50 हरिजनों के बीच नही है कोई नलकूप

    जनपद पंचायत गंगेव अन्तर्गत आने वाले नेवरिया ग्राम के 50 हरिजन परिवारों के बीच में आज तक पानी की कोई सुविधा उपलब्ध नही है. रामदुलारे साकेत, रामलोचन साकेत बाबूलाल साकेत आदि के रहने वाले परिवारों के लिए न तो पंचायत विभाग और न ही किसी विधायक अथवा सांसद निधि से ही कोई नलकूप उत्खनन नही हुआ जबकि देखा जाए तो हरिजनों का समूह कई बार जाकर मनगवां विधायक के समक्ष अपनी बातें रख चुका है. जहां तक सवाल सरपंच से आवेदन का है तो उसके लिए लोग लगभग हर महीने ही जाकर नलकूप उत्खनन की माग करते हैं. लेकिन दुर्भाग्य इस देश में व्याप्त भस्ट्राचार का की जहां आवश्यकता है वहां नलकूप नही हुआ परंतु ऐसे घरों के आंगन में नलकूप हो गए जिन्हें न तो नलकूप की जरूरत थी और न ही वह इतने अक्षम थे की नलकूप न करवा सकें. आज यह भलीभांति स्पष्ट है की जितने भी सरकारी नलकूप हो रहे हैं उनका वास्तविक तौर पर अच्छा खासा दुरुपयोग किया जा रहा है. घर आंगन और खेतों के बीच कराए जा रहे इन नलकूपों में स्वयं के मोटर पंप डाले जा रहे हैं और गांव के गरीब लोगों को पानी पीने से रोंका जा रहा है.

  आम नागरिक को पानी से वंचित रखना मानवाधिकार का घोर उल्लंघन

    जिस प्रकार से गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत सेदहा पंचायत नेवरिया ग्राम के 50 की आवादी वाले हरिजन परिवारों को नलकूप की व्यवस्था सरकार एवं पंचायत द्वारा नही की गई है जबकि इसकी गुहार के मर्तबा लगाई जा चुकी है इससे स्पष्ट है की सेदहा पंचायत और पीएचई विभाग मानवाधिकार के घोर उल्लंघन के लिए सीधे जिम्मेदार है. पीएचई विभाग में कार्यरत नलकूप मैकेनिक एवं अन्य इंजीनियर वगैरह का दायित्व बनता है की वह समय समय पर ग्रामों बस्तियों का दौरा कर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार करते रहें और सरकार को भेजते रहें जिससे अगली कार्ययोजनाओं में सरकार अथवा विभाग नवीन नलकूप उत्खनन करवाता रहे. जिस प्रकार से नेवरिया हरिजन बस्ती का मामला सामने आया है उससे स्पष्ट है गरीबों की मूलभूत मनवाधिकरों की समस्याओं जैसे पानी, बिजली अथवा सड़क की फिक्र न तो पंचायत को है और न ही लोकल प्रशासन को वरना कैसे हो सकता है की जब आज घर आंगन में रसूखदारों के पट्टे में विधायक एवं सांसद निधि से सरकारी नलकूप उत्खनन करवाकर उनके मोटर पंप डाल लिए जा रहे हैं तो भला ऐसे वंचित हरिजनों के लिए पीने के पानी की सुविधा क्यों मुहैय्या न कराई जाती. इस सबसे से स्पष्ट है की राजनीति एवं अकर्मण्यता के चलते ही ऐसे 50 की आवादी  वाले हरिजनों को पीने के पानी से वंचित रखा गया है. सही मायनों में मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में लाकर ऐसे मानवाधिकार के घोर उल्लंघन की मामलों पर दोषियों के ऊपर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान होना चाहिए.

  इन हरिजनों को चलने के लिए रास्ता तक नही

   सेदहा पंचायत के नेवरिया हरिजन बस्ती में रहने वाले लगभग 50 हरिजनों के परिवारों को चलने के लिए रास्ता तक नही है. जो परिवार नेवरिया हरिजन बस्ती में निवासरत है उनमे से कुछ की प्राप्त जानकारी में बताया गया की बाबूलाल साकेत के घर में 4 सदस्य, रामदुलारे साकेत के घर में 2 सदस्य, पुष्पराज साकेत के घर में 5 सदस्य, रजनीश साकेत के घर में 8 सदस्य, रंजीत साकेत के घर में 5 सदस्य अभी भी वहां मौके पर निवासरत हैं जबकि लगभग इतने ही परिवार अभी कामकाज के सिलसिले में बाहर गए हैं जो समय समय पर पलायन करते रहते हैं. क्योंकि ग्राम पंचायत में मनरेगा का कोई भी कार्य इन मजदूरों को नही मिलता एवं जेसीबी एवं मसीनों सके करवाया जा रहा है जिसकी वजह से इन्हें कार्य के सिलसिले में बाहर शहरों की तरफ पलायन करते रहना पड़ता है. 

हरिजनों ने पानी और सड़क की लगाई गुहार 

   इन सभी हरिजन परिवारों ने एक स्वर में बताया की इन्हें न तो पीने के लिए पानी है और न ही इनको चलने के लिए आवागमन मार्ग. यह सभी परिवार जमीदारों के खेतों के बीच में फंसे हुए हैं जिससे आवागमन में असुविधा के साथ अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. सभी ने सरकार प्रशासन से पानी और सड़क की माग की है.

संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें नेवरिया हरिजन बस्ती में निवासरत कुछ हरिजन परिवार जिन्हें न तो पीने का पानी है और न ही चलने के लिए सड़क मार्ग.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा, मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

आयुष औषधालय जमुई स्वयं बीमार, कैसे करेंगे मरीजों का इलाज (मामला ज़िले के थाना गढ़ अन्तर्गत आयुष औषधालय जमुई का जहां नही है कोई परमानेंट डॉक्टर, चपरासियों और सेवकों के हवाले अस्पताल, अस्पताल भवन हुआ जीर्णशीर्ण)

दिनांक 26 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा से शिवानन्द द्विवेदी)

   ज़िला रीवा में थाना गढ़ अन्तर्गत स्थित आयुष औषधालय जमुई मात्र नाम का अस्पताल है जहां कोई परमानेंट डॉक्टर नही है. मात्र बाबुओं, सेवादारों और चपराशियों के हवाले पूरे अस्पताल को छोड़ दिया गया है. 

विभिन्न बीमारियों के इलाज के दावे

    जमुई शासकीय आयुष अस्पताल के सामने दीवाल पर लगाए गए नोटिस में कई बीमारियों के इलाज के दावे किये गए हैं जिनमे सोमवार से लेकर शुक्रवार तक अलग अलग दिनों के हिसाब से अलग अलग बीमारियों के इलाज की सूचना लगायी हुई है.

      असंचारी बीमारियों के इलाज के लिए सोमवार को उच्च रक्तचाप क्लिनिक, मंगलवार को संधिवात-आमवात क्लिनिक, बुधवार को मधुमेह क्लिनिक, वृहस्पतिवार को अर्श क्लिनिक एवं शुक्रवार को रक्ताल्पता क्लिनिक नाम से नोटिस चस्पा किया गया है. वहीं संचारी रोग के इलाज के विषय में डेंगू, मलेरिया एवं फ्लू की बात कही गई है. साथ ही मातृ कल्याण योजना में एएनसी एवं प्रसव सुविधा की बात भी नोटिस बोर्ड में चस्पा है. शिशु कल्याण के नाम पर टीकाकरण एवं बाल कुपोषण सम्बधी सूचना भी चस्पा की गई है.

  ग्रामीणों का कहना है की सब दिखावा है, कहीं कुछ नही होता

   अब बात करते हैं वास्तविक धरातल पर नोटिस बोर्ड में चस्पा की हुई बीमारियों के इलाज और शासकीय आयुष अस्पताल में मिलने वाली शुविधाओं की तो वहीं पास ही स्थित ग्रामीणजनों द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को अवगत कराया गया की शासकीय आयुष आयुर्वेद अस्पताल जमुई में जो भी बातें नोटिस बोर्ड में चस्पा कर बीमारियों के इलाज किये जाने की बातें कहीं गई हैं वह सब हवा हवाई हैं. वास्तव में कहीं कुछ नही होता. जमुई के रामाधार साकेत द्वारा बताया गया की यहाँ डॉक्टर ही नही हैं तो इलाज कौन करेगा. साथ ही जिस कंपाउंडर को चार्ज दिया गया है वह ज्यादातर समय अनुपस्थित रहती हैं, यहां आम जनता को कोई सुविधा उपलब्ध नही है. यहां तक की यदि पेट में गड़बड़ी और सामान्य गैस की बीमारियों के चूर्ण भी लेने जाते हैं तो बता दिया जाता है की यहां पर उपलब्ध नही है रीवा से आ नही रहा है. इसी प्रकार वहीं पास ही स्थित एक अन्य जमुई निवासी जिनकी दुकान भी जमुई मंदिर के पास है दिनेश कुमार कोल का कहना था की न तो यहाँ डॉक्टर हैं और न ही दवाईयां, और आज तक जमुई और आसपास के लोगों को समझ नही आया की आयुष विभाग से किस प्रयोजन के लिए यह आयुर्वेदिक औषधालय खोला हुआ है. यहां पर कुछ नही मिलता, और जो भी जानकारी नोटिस बोर्ड में चस्पा की गई है वह मात्र एक दिखावा है.

  कार्यस्थल पर मात्र महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता मिलीं

    जब शासकीय आयुष औषधालय जमुई में दिनाँक 24 सितंबर को दौरा किया गया तो शुबह लगभग साढ़े दस बजे मात्र महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता श्रीमती राजकुमारी सिंह उपस्थित मिलीं. वहीं पर एक सफाई कर्मी भी मिले जिनका नाम विनायक कोल बताया. इस प्रकार जब सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा पूंछा गया की अस्पताल में क्या कुछ सुविधाएं उपलब्ध हैं और क्या कुछ बीमारियों के इलाज किये जा रहे हैं तो कोई स्पष्ट उत्तर नही मिल पाया और बताया गया की वह मात्र स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं इन सबकी ज्यादा जानकारी मात्र डॉक्टर से ही मिल पाएगी. परंतु आयुष अस्पताल जमुई में कोई डॉक्टर उस समय उपलब्ध नही था और साथ ही यहां पर पदस्थ भी नही, मात्र एक कम्पाउण्डर लेडी है. पूंछा गया की आप लोगों की ड्यूटी कब से कब तक रहती है तो उनके द्वारा बताया गया की शुबह साढ़े आठ से 12 बजे तक और इसके बात 2 से 4 बजे तक. पास ही नोटिस बोर्ड में देखा गया तो कुछ अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों के पद एवं उनके नंबर दिए गए थे जिनमे श्रीमती कल्पना सिंह कंपाउंडर, रामलाल पांडेय औषधालय सेवक, विनायक कोल चपरासी एवं सफाई करता, एवं श्रीमती राजकुमारी सिंह  स्वास्थ्य कार्यकर्ता जिन्होंने यह सब जानकारी दी.

   जीर्णशीर्ण है जमुई आयुष अस्पताल की स्थिति

   जमुई ग्राम में स्थित शासकीय आयुष औषधालय में डॉक्टर और दवा का टोंटा तो था ही लेकिन इसमे सबसे बड़ी समस्या यह भी थी की इस अस्पताल में लगता है कभी पुताई तक नही हुई थी. अस्पताल का नाम तक स्पष्ट लिखा नही दिख रहा था. कुलमिलाकर अस्पताल की स्थिति अच्छी नही थी. ऐसा लगा बाहरी और आंतरिक तौर पर जमुई आयुष अस्पताल की कभी पुताई तक नही हुई थी जो अस्पताल को देखकर बहुत स्पष्ट दिख रहा था.

  आयुर्वेद के प्रति समाज में जनजागरूकता का भी अभाव

   आज सबसे बड़ा प्रश्न यह भी है आयुर्वेद भारतीय चिकित्सा परंपरा से उठती सी जा रही है. आज एलोपैथी एवं अंग्रेज़ी दवाइयों के चक्कर में पड़कर सब बीमारियों का फटाफट इलाज चाह रहे हैं जबकि देखा जाए तो आयुर्वेदिक दवाओं के उपयोग से बीमारी से निजात पाने में थोड़ा समय तो लगता है ऐसे में आज आयुर्वेदिक परंपराओं से लोगों का मोहभंग हो रहा है. आयुर्वेद मात्र चटनी चूर्ण तक ही सीमित रह गया है जहां पेट अथवा गैस संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए लोग त्रिफला अथवा हरड़ के चूर्ण लेकर फुरसत हो जाते हैं बांकी आयुर्वेद की शक्ति का न तो उन्हें कोई पता है और दुर्भाग्य से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं अथवा सरकारों द्वारा इस विषय में कोई प्रचार प्रसार भी नही किया जा रहा. ऐसे में मात्र जमुई आयुष अस्पताल ही नही बल्कि देश के ऐसे बहुत से आयुर्वेदिक अथवा आयुष अस्पताल गुमनानी के अंधेरे में डूबे अपने अस्तित्व की तलास कर रहै हैं.

संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरों में देखें शासकीय आयुष अस्पताल जमुई की गुमनान पड़ी बिल्डिंग और वहां पर नोटिस बोर्ड में लिखी जानकारियां. अस्पताल प्रबंधन की नाकामी के चलते आज यह आस्पताल अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्त्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

Tuesday, September 25, 2018

कैथा पंचायत में एक और पुलिया निर्माण में एक लाख की धांधली ( मामला ज़िले के गंगेव जनपद अन्तर्गत आने वाले कैथा पंचायत का जिंसमे पंचायती पुलिया निर्माण में निरन्तर हो रही धांधली, भस्ट्राचार की हदें पार, मुरलीधर पटेल के खेत के पास मिसिरा रोड में पुलिया निर्माण में एक और भस्ट्राचार उजागर, सीईओ और उपयंत्री की सह से हो रहा भस्ट्राचार)

दिनांक 25 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी)

   ग्राम पंचायत कैथा जनपद पंचायत गंगेव पंचायती भस्ट्राचार की पनाहगार बना हुआ है. यहां पर एक के बाद एक निरन्तर हो रहे भस्ट्राचार की परतें खुलती जा रही हैं. विशेष तौर पर अब मनरेगा के बाद पंच परमेश्वर योजनाओं में भस्ट्राचार हो रहा है. पंचायती राज संचालनालय के मॉध्यम से कलवर्ट पुलिया निर्माण और भवनों के निर्माण के लिए प्राप्त हुई राशि एक एक करके भस्ट्राचार की बलि चढ़ती जा रही है जिसे देखने वाला कोई पंचायत विभाग नही है. 

मुरलीधर पटेल के खेत से मिसिरा तरफ पुलिया निर्माण में एक लाख का भस्ट्राचार

    पंचायतराज संचालनालय मप्र भोपाल द्वारा कल्वर्ट पुलिया निर्माण के नाम से निकाली गई राशि एक लाख रुपये के कार्य में भारी अनियमितता प्रकाश में आई है. इसके पहले भी संपत्ति पटेल के खेत तरफ, बुद्धसेन पटेल के घर के पास एवं उग्रसेन पटेल के घर के पास, शेषमणि पटेल के घर के पास, बृजबल्लभ पटेल के घर के पास आदि नामों से प्रत्येक के लिए सैंक्शन हुई एक लाख रुपये की लॉगत से बनाये जा रही पुलों ने निर्माण में गुणवत्ताविहीन सामग्री का प्रयोग और पुरानी घटिया किश्म की पुलिया लगाकर निर्माण होने के मामले प्रकाश में आये हैं.

   अभी हाल ही में एक अन्य पुलिया निर्माण में भस्ट्राचार प्रकाश में आया है जिसका निर्माण मुरलीधर पटेल के खेत के पास एवं मिसिरा ग्राम की तरफ जाने वाली सड़क की तरफ होना है. इस पुल के लिए वही पुराने ग्राम पंचायत भवन से निकाले गाये नींव के पत्थरों का प्रयोग स्टोन क्रशर से प्राप्त डस्ट एवं घटिया किश्म की सीमेंट से किया जा रहा है.

कुछ इस प्रकार बनाया है गया फ़र्ज़ी एस्टीमेट

    मुरलीधर पटेल के खेत से मिसिरा ग्राम की तरफ नाम में पंचायतराज संचालनालय विभाग द्वारा पंच परमेश्वर योजनान्तर्गत जारी की गई राशि रुपये एक लाख स्वीकृति दिनांक 02/10/2016 में निर्माण कार्य प्रारम्भ हो चुका है. प्राप्त बिल बाउचर के अनुसार इस पुलिया निर्माण में राजवीर ट्रेडर्स नामक विक्रेता से बिल क्रमांक 251 दिनांक 06/05/2018 को कुल 89 हज़ार एक सौ रुपये की सामग्री का क्रय किया जाना बताया गया है जिंसमे मुख्य रूप से बालू 24 हज़ार 500 रुपये प्रति हाइवा के हिसाब से एक हाइवा, सीमेंट 310 रुपये प्रति बोरी के हिसाब से कुल 60 बोरी जिसकी कुल लॉगत 18 हज़ार 600 रुपये, 40 एमएम की गिट्टी प्रति हाइवा 18 हज़ार 500 के हिसाब से दो हाइवा कुल 37 हज़ार रुपये, एवं 3 नग ह्यूम पाइप 3 हज़ार रुपये प्रति नग के हिसाब से 9 हज़ार रुपये की क्रय होनी बतायी गई है. बिल क्रमांक 251 में वर्णित समस्त क्रय की गई सामग्री की कीमत 89 हज़ार एक सौ रुपये बतायी गई है. 

फ़र्ज़ी बिल बाउचर लगाकर घटिया सामग्री से हो रहा पुल निर्माण

  इस प्रकार उपरोक्त बिल क्रमांक 251 तो मात्र दिखाबा और पैसा निकालने एवं फ़र्ज़ी भुगतान प्राप्त करने का एक जरिया मात्र है. वास्तव में राजवीर ट्रेड्स द्वारा सरपंच कैथा पंचायत के नाम से जारी किये गए बिल क्रमांक 251 द्वारा जो भुगतान होना बताया गया है वह पूरी तरह से फ़र्ज़ी है. वास्तविक धरातल पर जो कार्य हो रहा है उसमे पुराने पंचायत भवन से नींव के पत्थरों को खोदकर उसी पत्थर से पुलिया का निर्माण हो रहा है. इसमे मात्र 5 से 7 बोरी तक घटिया सीमेंट मिलाई जा रही है एवं स्टोन क्रशर की घटिया डस्ट से पुलों की जुड़ाई की जा रही है जिंसमे बेस भाग में कोई भी प्लेट नही डाली जा रही है. इस प्रकार मुश्किल से 10 हज़ार रुपये की लॉगत से एक लाख की पुलों का निर्माण कार्य किया जा रहा है. 

घटिया पुल निर्माण के जांच की पंचों एवं ग्रामीणों ने की माग

   दिनाँक 25 सितंबर 2018 को लोहार बस्ती के पास उपस्थित आम जनता शैलेन्द्र पटेल, राजेश पटेल, नंदकिशोर विश्वकर्मा और साथ ही पंचों यज्ञभाव पटेल, रामानुज केवट ने इस भस्ट्राचार के जांच की माग की है और जनता के पैसे की हो रही बर्बादी की रिकवरी की माग की है साथ ही पंचायतीराज अधिनियम की धारा 40 एवं 92 के तहत कार्यवाही करते हुए ऐसे भस्ट्राचारी सरपंच संत कुमार पटेल एवं सचिव अच्छेलाल पटेल को पद से भी पृथक करने की माग की है.

संलग्न - कृपया संलग्न दस्तावेजों में देखने का कष्ट करें जिंसमे राजवीर ट्रेडर्स नामक विक्रेता द्वारा जारी बिल क्रमांक 251 दिनाँक 06/05/2018 संलग्न किया गया है साथ ही पुल निर्माण के लिए पुराने पंचायत भवन से लाये जा रहे पुराने पत्थर भी डंप पड़े हुए हैं. साथ ही निर्माण स्थल पर उपस्थित ग्रामीण जन.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

Saturday, September 22, 2018

गढ़-लालगांव क्षेत्र में "बाद" या एफएमडी बीमारी के मवेशियों का कैम्प लगाकर हुआ उपचार (ज़िले के गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले गढ़ एवं लालगांव क्षेत्र में एफएमडी या बाद के मवेशियों का कैम्प लगाकर किया गया उपचार)

दिनाँक 22 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा श्रीहनुमान मंदिर से, शिवानन्द द्विवेदी)

 बरसात में पशुओं को होने वाली "बाद" या एफएमडी फुट एंड माउथ डिजीज नामक बीमारी का इलाज करने के लिए गढ़ वेटेरिनरी सर्जन विवेक मिश्रा एवं लालगांव क्षेत्र के औषधालय में कार्यरत समयलाल साहू, अंकित पांडेय सहित अन्य कर्मचारी उपस्थित हुए जिंसमे हिनौती एवं सेदहा ग्राम पंचायत से जुड़े हुए जंगली क्षेत्रों गदही, रवार, सन्नसिया डांडी एवं भमरिया में पहुचकर इलाज किया गया. मवेशियों के घाव को धोकर उसमे दवाईयां डाली जाकर मलहम भरा गया. कुछ मवेशियों को इंजेक्शन भी लगाए गए. इस बीच ग्राम क्षेत्र के उपस्थित सहयोगियों में गोसेवक संतोष केवट, अरुणेंद्र पटेल, देवेंद्र सिंह, यज्ञनारायण केवट सहित अन्यलोग उपस्थित रहे।

एंटीबायोटिक सहित दो इंजेक्शन के साथ फिनायल से घाव धोये

 बीमारी के इलाज के दौरान घाव को सबसे पहले फिनायल से धोया गया एवं इसके बाद दो इंजेक्शन लगाए गए।

   कुल एक दर्जन 12 मवेशियों के इलाज किये गए जिनमे से पहली गाय हिनौती खरीदी केंद्र के पास बनाये गए बाड़े के पास मिले। इसके बाद डॉक्टरों की टीम ने गदही की तरफ रुख किया जहां पर सन्नसिया की डांडी में कुल 11 और इन्फेक्टेड मवेशी मिले जिनमे से बहुतायत में गायें थीं। ये गायें चल फिर पाने में पूरी तरह से असमर्थ थीं। इन गायों की खुरों से निरंतर खून प्रवाहित हो रहा था। कईयों के मुंह भी संक्रमित मिले जिनको चरने में काफी परेशानी हो रही थी। 

   सामाजिक कार्यकर्ता एवं वीएस की उपस्थिति में हुआ इलाज 

   सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी एवं गढ़ पशु चिकित्सा विभाग के सहायक पशु चिकित्सा सर्जन विवेक मिश्रा के मार्गदर्शन उपस्थित गोसेवकों अंकित पांडेय, समयलाल साहू , संतोष केवट, अरुणेंद्र पटेल, देवेंद्र सिंह ने अच्छा सहयोग देते हुये सभी संक्रमित गायों को पकड़कर इंजेक्शन एवं फिनायल से इलाज करवाने में मदद किये। समयलाल साहू एवं अंकित पांडेय ने सभी संक्रमित गायों को इंजेक्शन लगाया।

   अब अगले चरण में एकबार फिर इलाज किया जाएगा जिंसमे सोमवार को वेटेरिनरी डॉक्टर आकर पुनः मवेशियों के इलाज करेंगे एवं आवश्यकतानुरूप इंजेक्शन लगाएंगे।

 संलग्न - संलग्न तस्वीर में देखें पशु चिकित्सकों की उपस्थिति में हो रहे इलाज की फ़ोटो.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता, 

 ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

Thursday, September 20, 2018

"बाद"/एफएमडी ने मवेशियों की तोड़ी कमर, महामारी की तरह रहा फैल (मामला ज़िले के गंगेव ब्लॉक एवं गढ़-लालगांव क्षेत्र में मवेशियों में फैलने वाले फुट एंड माउथ डिजीज का जिसने पूरे ज़िले में महामारी का ले रखा रूप, ज्यादातर मवेशी आये इसकी चपेट में, वेटेरिनरी विभाग बना तमाशबीन)

दिनाँक 20 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा श्रीहनुमान मंदिर से, शिवानन्द द्विवेदी)

   बरसात के मौसम में आमतौर पर मवेशियों में कई बीमारियां फैल जाती हैं. जिस प्रकार से इंसानों में मौसमी बुखार, वायरल इन्फेक्शन, मलेरिया एवं टॉयफायड, मस्तिष्क ज्वर आदि बीमारियां फैल जाती हैं उसी प्रकार पशुओं में भी कई बीमारियां आ जाती हैं. ज्यादातर मवेशी बाद अर्थात फुट एंड माउथ डिजीज एफएमडी की चपेट में आते हैं. बाद के नाम से जानी जाने वाली यह बीमारी एक प्रकार से महामारी की तरह है क्योंकि बाद के आने के बाद मवेशियों का मुँह और पैर बुरी तरह से सड़ने लगता है या उसमे जब मक्खियां बैठती हैं तो इन्फेक्शन से कीड़े पड़कर घाव सड़न लेने लगता है. बाद या एफएमडी एक प्रकार की संक्रामक बीमारी होती है जिंसमे यदि एक प्रभावित हुआ तो शेष सभी जो भी उसके संपर्क में आते हैं सब प्रभावित होने लगते हैं.

   बाद या एफएमडी की तरह ही गलघोंटू, परपरहवा आदि बीमारियां भी पशुओं में फैलती हैं जिनकी वजह से पशु मर जाया करते हैं.

समय रहते टीकाकरण है समस्या का समाधान

   पशुओं में बरसात के मौसम के बाद होने वाली ज्यादातर बीमारियों की रोकथाम के लिए समय पर टीकाकरण की व्यवस्था ही एकमात्र समाधान है. एक बार बीमारी होने के बाद उससे निजात पाना काफी मुश्किल होता है अतः बेहतर यही होता है जिन जिन बीमारियों के टीके उपलब्ध हैं किसान और पशु पालक समय रहते मई जून से लेकर जुलाई अगस्त के बीच लगने वाले टीके लगवातें रहें जिससे इन बीमारियों के प्रति पशुओं में रोगप्रतिरोधक शक्ति निर्मित होने से मवेशी स्वस्थ्य रहते हैं.

गंगेव ब्लॉक में  वर्षों से नही लगे एफएमडी के टीके

   गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले कई क्षेतों जैसे गढ़ एवं लालगांव अन्तर्गत आने वाले ग्रामों में पशुओं को टीके नही लगाए गए जिसकी वजह से आज यह समस्या पैदा हुई है. वैसे कागजों में सरकार ने बहुत ज्यादा अभियान चलाया हुआ है जिंसमे गोकुल अभियान काफी मुख्य रहा जिंसमे गांव गांव कैम्प लगाकर पशुओं का इलाज करना, उनका पोषण की जानकारी इकठ्ठा करना, पशुओं को विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों से बचाव के टीके लगाना आदि. लेकिन दुर्भाग्य से भारत में जिस प्रकार से ज्यादातर योजनाएं मात्र कागजों पर ही संचालित होती हैं उसी तरह टीकाकरण ड्राइव एवं गोकुल महोत्सव भी मात्र कागजों तक ही सीमित रहा. पशु चिकित्सा विभाग ने ज्यादातर फ़र्ज़ी पंचनामा बनवाकर सरकार को पेश कर दिए और बता दिए की टीकाकरण हो गया जिसकी वजह से स्थिति यह हो गई की सरकार की नजर में तो टीकाकरण हो गया लेकिन ग्रामों में ग्राउंड में स्थितियां यथावत ही बनी रह गईं.

  लोगों का सहयोग भी नकारात्मक

  यदि देखा जाए तो सरकार की योजनाओं और टीकाकरण आदि में मात्र पशु चिकित्सा विभाग ही मात्र जिम्मेदार नही है. इसके लिए विभाग के साथ साथ समाज भी जिम्मेदार है. अमूमन यह देखा गया है की जब भी कोई टीकाकरण करने के लिए डॉक्टर आता है तो गांव के लोग भी सहयोग नही देते. यदि 2 अथवा 5 रुपये प्रति टीकाकरण राशि ली जाती है तो लोग कहते हैं की चलो जाओ हम टीका नही लगवाएंगे. ऐसे में कई बार ऐसा होता है की पशु चिकित्सा विभाग के कर्मचारी गांव गांव जाकर कई बार खाली लौट आते हैं और टीकाकरण नही हो पाता. टीकाकरण के लिए गांव गांव जाकर एक सप्ताह पूर्व से जानकारी भी नही दी जाती. विज्ञापन के अभाव के कारण लोगों को पहले से जानकारी भी नही हो पाती.

हिनौती, रवार, गदही, सन्नसिया डांडी में पड़े हैं इन्फेक्टेड पशु

   अभी हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता एवं एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी एवं साथ में बड़ोखर निवासी शिवेंद्र सिंह सहित जंगली क्षेत्रों एवं उसके आसपास के ग्रामों में जाकर भ्रमण किया गया तो पाया गया की सैकड़ों आवारा और घरेलू गोवंश एफएमडी से संक्रमित हो चुके हैं. जगह जगह पड़े मिले इन गोवंशों की स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है. लोगों द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चला की पिछले कई दिनों से मवेशी मर भी रहे हैं. एफएमडी के संक्रमण में आने के बाद मवेशियों के मुँह और पैर काम करना बन्द कर देते हैं जिससे उनके मुँह पैर में घाव की वजह से कीड़े पड़ने लगते हैं और निरंतर सड़कर खून मवाद बहता रहता है. 

     लगभग दो दर्ज़न ऐसे मवेशी मिले हैं जो पूरी तरह से चल पाने में निःशक्त थे वजह मात्र उनके पैरों का काम न करना था. 

पूरी जानकारी वेटेरिनरी विभाग को दी गई

     यह समस्त वाकया गढ़ पशु चिकित्सा विभाग के सहायक पशु सर्जन विवेक मिश्रा एवं हिनौती औषधालय में कार्यरत समयलाल साहू को दी गई. जिस पर अगले दिन प्रभावित क्षेत्र में जाकर टीकाकरण करने की बात कही गई है.

रेहवा घाटी में फंसे दर्ज़नों गोवंश अभी भी नही निकल पाए

   पिछले दिनों असामाजिक एवं आपराधिक तत्वों द्वारा सिरमौर वन परिक्षेत्र के जंगली क्षेत्र एवं रेहवा घाटी में धकेल दिए गए दर्ज़नों मवेशियों को निकालने का प्रयाश कुछ सामाजिक सहयोग से सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं ग्रामीणों के सहयोग से किया गया था जिंसमे दो तीन दिन की जद्दोजहद के बाद मात्र एक गाय और उसके पांच दिन के जन्मे बछड़े को निकाला जा सका था. अभी भी 1000 फीट गहरी घाटी में ऐसे दर्ज़नों गोवंश हैं जो उतार दिए गए थे और अभी तक घाट के ऊपर नही चढ़ाए जा सके थे. 

   कुछ जंगली क्षेत्रों में भ्रमण करने वाले लोगों का कहना था यह मवेशी संभवतः घाट के नीचे नीचे चलकर दूसरे ग्रामों में नीचे से ही चले जाएंगे. लेकिन जिस प्रकार से घाट के तलहटी क्षेत्र में कोई स्पष्ट रास्ता नही देखा गया इससे स्पष्ट है की फंसे हुए पचासों मवेशियों के लिए अंदर ही अंदर बाहर निकल पाना कठिन नही असंभव भी होगा.

संलग्न -  संलग्न फ़ोटो में देखें सामाजिक कार्यकर्ता की उपस्थिति में मवेशियों में एफएमडी का सर्वे किया गया जिंसमे बहुतायत में आवारा पशुओं में बाद अर्थात एफएमडी की समस्या पायी गई .

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587.

Tuesday, September 11, 2018

तीजा के दिन श्रीहनुमान मन्दिर कैथा में भरेगा मेला और झूला (100 वर्ष से अधिक पुरानी परंपरा के अन्तर्गत कैथा श्रीहनुमान मन्दिर प्राँगण में होता आया है तीजे के दिन मेले का आयोजन, दूर दूर से दुकानदार आते हैं और 18 मौजा क्षेत्र के लोग लेते हैं मेले का आनंद)

दिनाँक 11 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा श्रीहनुमान मंदिर से, शिवानन्द द्विवेदी)

  यज्ञों की पावन पुनीत स्थली कैथा के अति प्राचीन श्रीहनुमान मंदिर प्राँगण में पिछले 100 से अधिक वर्षों से परंपरागत और हरितालिका तीज अर्थात बघेली में तीजा के दिन आयोजित होने वाले मेला भरेगा. इस बीच कैथा और उसके आसपास के दर्जनों ग्रामों के लोग जिनमे बहुतायत में माताएं, बहने और युवक युवतियां सम्मिलित रहते हैं मेले और झूले का लुफ्त उठाने के लिए श्रीहनुमान मन्दिर कैथा पधारते हैं. गढ़, हिनौती, लालगांव, कटरा, भठवा, और अन्य स्थानों से दूर दूर के दुकानदार अपनी विभिन्न प्रकार की सामग्रियों को बेचने के लिए दुकान लेकर आते हैं.

   बुजुर्गों ने बताया सैकड़ों वर्ष पुराना मेला

   गांव के 80 वर्ष की उम्र छूने वाले कई बुजुर्गों से जब कैथा श्रीहनुमान मंदिर में भरने वाले मेले के विषय में चर्चा हुई तो बताया गया की यह मेला बहुत पुराना है. सभी ने बताया की वह सभी लोग अपने भी पूर्वजों से इस मेले के विषय में सुनते आ रहे हैं.

   कैथा ग्राम के रामसुंदर केवट जो की इस समय 90 के ऊपर पहुचने वाले हैं उनका कहना था की उनके बचपन से यह मेला भर रहा है. कैथा के ही जगदीश पटेल उर्फ जिमीदार ने बताया की उनके बाबा दादा इस मेले के विषय में बताते थे और हम तो बचपन से देख रहे हैं इसी प्रकार कैथा के ही दिवंगत लोकनाथ द्विवेदी द्वारा बताया गया था की उनकी जानकारी से यह मेला लग रहा है. उनके पूर्वजों ने भी इस मेले के बारे में बताया था. इस प्रकार सहज ही समझा जा सकता है की सैकड़ों वर्ष प्राचीन यह मेला निरंतर अपनी परंपराओं के अनुरूप भरता आया है. 

श्रीहनुमान जी की हज़ारों वर्ष प्राचीन प्रतिमा 

   ज्ञातव्य है की कैथा श्रीहनुमान मन्दिर में उपस्थित अति प्राचीन श्री हनुमान जी की प्रतिमा विराजमान है जिसके विषय में भी इसी प्रकार की किंबदंतियाँ है जिनके अनुसार यह प्रतिमा इसी विस्तारित हिनौता तालाब से हज़ारों वर्ष पहले प्रकट हुई थी. कुछ लोगों का मानना है की श्रीहनुमान जी विशाल प्रतिमा आसपास के लोगों की पीड़ा व्यथा और दुख कष्ट को दूर करने के लिए प्रकट हुई थी.

   चाहे जो भी हो लेकिन एक बात तो तय है की ईश्वर के उद्भव को कोई जान नही सकता क्योंकि वह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी होते हुए सभी के लिए उनके कर्मो के अनुसार फल देने वाला होता है. वह अपनी इक्षा मात्र से प्रकट होता है और मूर्ति रूप में पूजे जाने का तात्पर्य है की हम ईश्वर को जी भाव में जाने और माने उसे साकार समझ कर उसकी आराधना उपासना करें. 

   कैथा और उसके आसपास के लोगों ने बताया की पहले दशकों पूर्व यहां मंदिर प्राँगण हिनौता तालाब में तीजे के मेले के दिन कुश्ती, कबड्डी और बादी का आयोजन होता था. कबड्डी कुश्ती को तो सभी जानते हैं लेकिन बादी भी एक खेल है जिंसमे 6 लोग एक गोलाई में में होते थे जिंसमे एक खिलाड़ी मात्र एक को गोलाई में घूमकर छूता था जिंसमे खेल में हुडी हुडी कहकर खेल खेला जाता था. पुराने बुजुर्गों ने बताया की उनके समय में बादी का खेल खूब खेला जाता था लेकिन अब वर्तमान में यह खेल पूरी तरह से विलुप्त हो चुका है.

हरितालिका तीज का महत्व

    जिस हरितालिका तीज के मेले की चर्चा हो रही है वह बघेली में तीजा के नाम से जाना जाता है. तीजा का काफी महत्व है. यह त्योहार मुख्य रूप से हिन्दू महिलाओं का निर्जला व्रत के लिए जाना जाता है. पौराणिक कथा प्रसंगों में बताया जाता है माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्ति के लिए हज़ारों वर्षों तक बिना अन्न जल ग्रहण किये हुए कठिनतम व्रत रखा था जिसके फलस्वरूप उनका शरीर काफी कमजोर हो गया था और अंत में मात्र पेड़ के पत्ते खाकर जीवित रहीं थी जिसके बाद उनका नाम अपर्णा पड़ा था जिसके फलस्वरूप भगवान शिव प्रसन्न हुए और माता शती को वरदान दिया और उन्हें पति रूप में मिले.

   आज कलयुग में सभी महिलाएं उसी परंपरा के अनुरूप अपने पति देव की लंबी उम्र और शुख शांति के लिए मात्र 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. उसके बाद तीज की रात के बाद आने वाली शुबह में स्नान करती हैं और मात्र अगले दिन ही भोजन करती हैं. बताया गया की बघेली में तीजे के व्रत में खीरे का काफी महत्व है. पूजन के दौरान खीरे का उपयोग किया जाता है और इष्टदेव को चढ़ाया जाता है.

   दिनाँक 12 सितंबर को हरितालिका तीज के दिन भरने वाले इस मेले एवं झूले का आनंद लेने के लिए आसपास के लोग काफी उत्साहित हैं.

 संलग्न  - संलग्न फ़ोटो में देखें उपस्थित भक्त श्रद्धालुगण.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139 

Sunday, September 9, 2018

गंगेव अस्पताल भवन की हालात जर्जर, कभी भी हो सकता है धराशायी, मरीजों के जीवन को उत्पन्न हुआ संकट (मामला रीवा ज़िले के गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का जिंसमे 5 साल पूर्व आई 35 लाख के लगभग राशि मरम्मत में नही हो पायी उपयोग, ठेकेदार का पता नही, पीडब्ल्यूडी ने छोड़ा बीच मझधार में)

दिनांक 09 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी)

  ज़िले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति निरंतर दयनीय बनी हुई है. गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की मरम्मत के लिए आई 35 लाख रुपये के आसपास की राशि आज तक उपयोग नही हो पायी है. गंगेव अस्पताल की संलग्न तस्वीर से स्पष्ट है की यहां मॉनव का नही बल्कि कुत्ते बिल्लियों का राज है और संभवतः पशुओं के लिए ही यह अस्पताल है. गंगेव अस्पताल की अंदरूनी स्थिति देखकर विश्वास ही नही होता की यह मानवों के लिए बनाया गया अस्पताल है की जानवरों के लिए. शायद आज वेटेरिनरी औषधालय की गई गुजरी बिल्डिंग भी इतनी जर्जर और घटिया स्थिति में नही होगी जितनी की गंगेव का मानवों के लिए बनाया गया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है.

बीएमओ ने बताया राशि सैंक्शन के वावजूद भी निर्माण नही हुआ

  गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक लंबे अरसे के पदस्थ खंड चिकित्सा अधिकारी श्री देवव्रत पांडेय ने बताया की पिछले पांच वर्ष पूर्व ही 35 लाख के आसपास की भारी भरकम राशि मात्र गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के रखरखाव और मेंटेनेंस के लिए स्वास्थ्य विभाग भोपाल द्वारा दी गई थी जिस पर टेंडर प्रक्रिया के तहत पीडब्ल्यूडी एवं ठेकेदार द्वारा कुछ कार्य भी 2 वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ लेकिन फिर उस कार्य का जो हाल है वह सामने है. ठेकेदार ने कुछ समय बाद काम छोड़ दिया और अस्पताल प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग को जिम्मेदार ठहराया वहीं दूसरी तरफ जब बीएमओ एवं अस्पताल प्रबंधन से बात हुई तो उनके द्वारा बताया गया की यह सब पीडब्ल्यूडी और ठेकेदार की कारगुजारी है जिसके कारण पूरा गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कबाड़खाना बन चुका है.

जगह जगह उखड़े फर्स, टूटी छतें दे रही मौत को आमंत्रण

  अस्पताल के अंदर घुसने पर डर सा महसूस होता है क्योंकि पूरा अस्पताल की बिल्डिंग बुरी तरह से क्षतिग्रस्त समझ आती है. फर्स और टाइल्स बुरी तरह से उखड़ी हुई है. जगह जगह कुत्ते बिल्ली यहां वहां बैठे नजर आते हैं जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीक होता है मानो यही कुत्ते ही अब इस गंगेव अस्पताल की जिम्मेदारी लिए हुए हैं.

   मुख्य वृहद कक्ष के स्थान पर नर्स आफिस की गैलरी में कुछ दो चार बिस्तर लगाए गए हैं जिनमे कुछ मरीज देखे जा सकते हैं. उस गैलरी की फर्स और उसकी टाइल्स भी बुरी तरह से उखड़ी हुई है.

अस्पताल भवन के बाहर नही हुई कभी पुताई

   भवन की बाहर की दीवाल भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी जिसे मरम्मत कार्य करवाया गया है लेकिन वह भी उसमे कोई पेंट पोलिश नही कराया गया. कुलमिलाकर सम्पूर्ण अस्पताल भवन देखकर इसका कतई अंदाजा नही लगाया जा सकता की यह अस्पताल ही है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे 19 वीं सताब्दी के भुतहे किसी खंडहर में घुस चुके हैं जिंसमे से फिल्मी स्टाइल में मृत आत्माओं की आवाज़ जैसे महसूस होता है. 

   बहुत बड़ा दुर्भाग्य है की 35 लाख रुपये आने के बाद भी आज अस्पताल प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग गंगेव अस्पताल को ठीक नही करवा पाया इससे बड़े दुख की बात और क्या हो सकती है जहां पर मरीजों का इलाज करके उन्हें स्वास्थ्य लाभ देकर वापस घर भेजा जाता है आज वही गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्वयं ही बीमार पड़ा है जो अपने स्वयं के लिए किसी उचित शासन प्रशासन रूपी डॉक्टर की तलास में है की कहीं से कोई तो ध्यान दे दे जिसमे यह गंगेव का बीमार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दुरुस्त हो जाए.

बीएमओ पांडेय ने बताया ठेकेदार उठा ले गया पुरानी टाइल्स और बिल्डिंग मटेरियल

  गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर कार्यरत ब्लॉक मेडिकल अफसर श्री देवव्रत पांडेय ने आगे जानकारी दी की पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा जिस हिनौती पंचायत के ठेकेदार को मरम्मत का कार्य दिया गया था उसने हद ही कर दी. स्वास्थ्य केंद्र में पुराने लगाए हुए टाइल्स और बिल्डिंग मटेरियल को भी ठेकेदार ट्रेक्टर में भरकर लेजाकर बेंच लिया. एक बार की इसी प्रकार की घटना स्वयं बीएमओ श्री पांडेय के आंख के सामने घटित हुई जिस पर श्री पांडेय ने बताया की उन्होंने ठेकेदार को सख्त हिदायत दी की यदि एक भी पत्थर यहां से उठाया तो सीधे एफआईआर दर्ज करवा दूंगा. यहां तक की बीएमओ ने लिखित रूप से शिकायत भी ठेकेदार के खिलाफ कर दिया था लेकिन बाद में जब ठेकेदार कुछ सामग्री वापस कर दिया तो मामला जाकर शांत हुआ और फिर ठेकेदार काम छोड़कर चला गया.

   इस प्रकार बीएमओ के खुलासे से एक बात तो समझ आती है की निश्चित रूप से कहीं न कहीं स्वास्थ्य विभाग, ठेकेदार और पीडब्ल्यूडी विभाग में तालमेल न बैठ पाने की वजह से गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की भारी दुर्दशा हो चुकी है जिस पर तत्काल एक्शन लिया जाना अनिवार्य है अन्यथा ब्लॉक में एकलौते गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बीमार बने रहने से यहां के लोगों को रीवा इलाहाबाद भागने के अतिरिक्त और प्राइवेट झोलाछाप डॉक्टरों को अच्छी मोटी रकम खिलाने के अलावा कोई दूसरा तरीका शेष नही बचेगा क्योंकि बदलते पर्यावरण और बढ़ते प्रदूषण के चलते विभिन्न प्रकार की साध्य अथवा असाध्य बीमारियों को फैलने से कोई रोंक न पायेगा और ऐसे में बीमार व्यक्ति डॉक्टरों की तरफ ही दौड़ेगा चाहे वह झोलाछाप हों अथवा सरकारी डिग्री धारक.

संलग्न -  कृपया संलग्न तस्वीर में देखने का कष्ट करें किस तरह से गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है जिंसमे मॉनव नही कुत्ते बिल्लियां रहते हैं. उखड़ी टाइल्स, टूटी छतें, उखड़ी फर्स गंगेव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली की दुर्दशा की बखान कर रही हैं.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा, मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

Friday, September 7, 2018

ब्रेकिंग न्यूज़ - बड़ी खबर- सुप्रीम कोर्ट का आया निर्णय, एमपीईबी में सम्मिलियित ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों के कर्मचारियों को मिलेगा 5 वें एवं 6 वें वेतन आयोग का भी लाभ, सातवें का पहले ही मिल रहा, सम्मिलियित कर्मचारियों को नियमानुसार सभी सुविधाओं का मिलेगा लाभ

दिनांक 08 सितंबर 2018, स्थान- रीवा मप्र

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी)

   मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड द्वारा हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों के कर्मचारियों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका क्रमांक 5285-5287/2016, एवं 9146-9148/2018 दायर की गई थी जिंसमे आरईसी सोसाइटी रीवा ज़िले में कर्मचारियों को पांचवें एवं छठे वेतन आयोग का लाभ से वंचित करने की बात कंपनी द्वारा रखी गई थी. साथ ही कुछ अन्य मुद्दे थे जिनमे उस समय तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार द्वारा घाटे में देखकर मप्र में संचालित 17 में से 14 ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों को मूलतः मप्र विद्युत मंडल में सम्मिलियन कर लिया गया था. लेकिन सम्मिलियन के वावजूद भी मप्र सरकार के बिजली विभाग द्वारा सम्मिलियित कर्मचारियों को मूल संस्था एमपीईबी द्वारा प्रदत्त लाभ नही दिया जा रहा था.

आरईसी सोसाइटी कर्मचारियों ने मामला रखा हाई कोर्ट में

   इस बात को लेकर समय समय पर ग्रामीण सहकारी समितियों के कर्मचारियों ने शिकायत शिकवे तक किये. यहां तक की मामला कुछ व्यक्तिगत तौर पर कर्मचारियों द्वारा उच्च न्यायालय में भी  रखा गया था. ऐसी जानकारी प्राप्त हुई की कुछ कर्मचारियों को पदोन्नति संबंधी लाभ भी प्राप्त हुआ था जिनमे से कुछ ऐसे कर्मचारी आज डीई तक के पद पर हैं जिसको आधार बनाकर रीवा मप्र में कार्यरत वर्तमान कनिष्ठ यंत्री उमाशंकर द्विवेदी जो इस समय लालगांव में जेई के पद पर कार्यरत हैं उन्होंने ने भी मामला उच्च न्यायालय में दायर किया था जिंसमे समस्त अन्य मुद्दों के साथ मूलतः यह माग रखी थी की क्योंकि ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों को सरकार द्वारा एमपीईबी में सम्मिलियन कर लिया गया है अतः सहकारी समितियों के कर्मचारियों के साथ भेदभाव कर उन्हें ईपीएफ का लाभ न देना, वेतन आयोग का लाभ न देना, अथवा पदोन्नति रोंका जाना अनुचित और सम्मिलियित कर्मचारियों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन भी है क्योंकि संविधान स्पष्ट कहता है की एक विभाग के अंदर कार्यरत कर्मचारियों को समान कार्य के लिए समान वेतन और समान पदोन्नति के अवसर मिलने चाहिए. इस बाबत दायर किये गए हाई कोर्ट के प्रकरण में कनिष्ठ यंत्री उमाशंकर द्विवेदी को राहत मिली और हाई कोर्ट ने उनके पक्ष में निर्णय दिया. इस प्रकार चूंकि हाई कोर्ट का निर्णय किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए नही होता बल्कि उस प्रदेश के उस संस्थान में कार्यरत सभी कर्मचारियों के लिए लागू होता है, ऐसा देख मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने झट से मामला खींच कर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर डाली. चूंकि कंपनी को लगा की यदि उन्होंने हाई कोर्ट जबलपुर की बात मान ली और एक कर्मचारी को लाभ दे दिया तो आदेश के तहत सभी कर्मचारियों पर लागू करना पड़ेगा अतः अच्छा खासा पैसा बर्वाद करते हुए उच्च कोटि के वकील और एटॉर्नी टाइप के महगे वकील करके सुप्रीम कोर्ट में उमाशंकर या यूं कहें की पूरे ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों के विरुद्ध ही कंपनी ने मामला की अपील कर डाली.

सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2016 में अपील हुई 

  इस प्रकार अपील क्रमांक याचिका क्रमांक 5285-5287/2016, एवं 9146-9148/2018 के माध्यम से दर्ज अपील में भी भी मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी को हार का ही सामना करना पड़ा क्योंकि मामला मानवाधिकार के घोर उल्लंघन का था साथ ही संविधान के नियमों के समान काम समान वेतन के भी विरुद्ध था. इस प्रकार एक लंबी प्रक्रिया के बाद दिनाँक 05 सितंबर 2018 को ग्रामीण विद्युत सहकारी समिति रीवा के जेई उमाशंकर द्विवेदी के पक्ष में निर्णय करते हुए सुप्रीम कोर्ट के युगल खंडपीठ जजों श्रीमान कुरियन जोसफ एवं श्री किशन कौल ने निर्णय दिया की इस बात पर कोई दुविधा अथवा विवाद नही है की सम्मिलियित कर्मचारियों को सम्मिलियन के नियमों के विरुद्ध रखा जाए अथवा उन्हें सम्मिलियित नियमों में प्रावधानों का लाभ न दिया जाए.

पांचवें, छठे एवं सातवें वेतनमान का भी मिले लाभ

  साथ ही जस्टिस कुरियन जोसफ और श्री किशन कौल ने यह भी बड़े स्पष्ट सब्दों में कहा की रीवा ज़िले की ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों में कार्यरत सभी कमर्चारियों सहित अन्य सोसाइटी कर्मचारियों को शासकीय स्तर से लागू समस्त वेतनमान चाहे वह पांचवां हो अथवा छठा सातवां सभी का लाभ दिया जाना चाहिए. इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट की युगल खंडपीठ ने रेस्पोंडेंट उमाशंकर द्विवेदी के माध्यम से काफी हद तक आरईसी सोसाइटी के कर्मचारियों को राहत दी है. 

   अब देखना यह होगा की मानवाधिकारों के हनन संबंधी इस मसले पर मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी कितना जल्दी एक्शन लेती है और जिस प्रकार से तीन माह के भीतर पांचवें छठे एवं सातवें वेतनमान का लाभ देने का आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया है उसे कितने समय में पूरा करती है.

चीफ इंजीनियर ने जारी किये आदेश, जल्द जमा होंगे ईपीएफ खातों में पैसे

   अभी हाल ही में पिछले कुछ माह पूर्व इन्ही ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों के कर्मचारियों के मानवाधिकारों के हनन संबंधी एक अन्य समस्या भी सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा प्रकाश में आई थी जिंसमे रीवा संभाग के कई सहकारी बिजली कमर्चारियों द्वारा पीड़ा व्यक्त की गई थी की उन्हें पिछले छः वर्षों से उनके ईपीएफ एकाउंट में पेमेंट से काट लिए जाने के वावजूद भी पैसा ईपीएफ खाते में जमा नही किया जा रहा है. इस बाबत कुछ कर्मचारियों जैसे भूपेंद्र सिंह बघेल, भूपेंद्र सिंह सेंगर, उमाशंकर द्विवेदी सहित लगभग 7 कमर्चारियों ने पीड़ा व्यक्त की थी और यह भी कहा था की यदि इस दरम्यान उन्हें कुछ हो जाता है अथवा दुर्घटना बस मृत्यु ही हो जाती है तो ऐसे कर्मचारियों के परिवार का भरण पोषण कौन करेगा. यह पूरा मामला रीवा और मप्र से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में भी रखे गए थे, ट्विटर के मॉध्यम से उर्जामंत्री एवं मुख़्यमंत्री तक रखे गए थे इसके बाद बिजली विभाग कुछ हरकत में आया जिसके बाद मामला पिछले 19 जुलाई 2018 को मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष भी प्रस्तुत किया गया था जिस पर तत्काल ही श्रीमान आध्यक्ष महोदय मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग भोपाल ने मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड को नोटिस जारी कर तत्काल जबाब भी मागा था जिसके मार्फत सूचना पत्र भी आयोग द्वारा सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी को दिया गया था. 

मप्र पूर्व क्षेत्र बिजली कंपनी से आयोग ने मांगा जबाब 

    अब तक प्राप्त जानकारी अनुसार बिजली विभाग द्वारा बताया गया है की आयोग का नोटिस जबलपुर जोनल बिजली विभाग के महाप्रबंधक को में प्राप्त होने के बाद रीवा संभागीय बिजली अधिकारी चीफ इंजीनियर कार्यालय से कार्य प्रारम्भ भी किया जा चुका है और चीफ इंजीनियर द्वारा इस मार्फत आरईसी सोसाइटी के पीड़ित कर्मचारियों के ईपीएफ खातों में काटी जाने वाली राशि जमा करने के आदेश भी जारी किये जा चुके हैं. 

 संलग्न - कृपया संलग्न देखें दिनांक 05 सितंबर 2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के युगल खंडपीठ के जजों कुरियन जोसफ एवं श्री किशन कौल द्वारा ग्रामीण विद्युत सहकारी समितियों के पक्ष में दिया गया निर्णय की प्रति. साथ ही रेस्पोंडेंट जेई उमाशंकर द्विवेदी की फ़ोटो जिनके पक्ष में निर्णय भी आया है।

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शिवानन्द द्विवेदी, समाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा, मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

गंगेव जनपद में कूड़े में डाल दिया मनरेगा प्रचार सामग्री, जमकर हो रहा मजदूरों के मानवाधिकारों का हनन (मामला रीवा ज़िले के गंगेव जनपद अन्तर्गत का जहां पर मनरेगा और अन्य सरकारी योजनाओं की प्रचार प्रसार सामग्री को कूड़े के ढेर में डाल दिया, गैलरी में लात धूल खाती पड़ी है मजदूरों और मेटों के अधिकार के पोस्टर बैनर और पैम्फलेट)

दिनांक 07 सितंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी)

   मजदूरों के अधिकारों की बात करने वाली सरकारें क्या कभी यह जान पाती हैं की आखिर मजदूरों के नाम पर इतने अधिक बनाई गई योजनाओं के बाबजूद भी क्यों मजदूरों के हित में कुछ भी अच्छा सरकारें भौतिक धरातल पर नही कर पा रही हैं. क्या बजह है की मनरेगा जैसी योजनाओं के बाबजूद भी उसका लगभग किसी भी स्तर पर सही क्रियान्वयन नही दिख रहा है. कागजों पर तो कुछ और ही लिखा होता है लेकिन वास्तविक धरातल पर मजदूरों का तो शोषण ही किया जा रहा है. मजदूरों के नाम पर निकाली जा रही मनरेगा की मजदूरी मजदूरों को नही मिल पा रही है. 

फ़र्ज़ी मस्टर रोल और एटीएम कार्ड से निकाली जा रही मजदूरों की मजदूरी

    फ़र्ज़ी मस्टर रोल जारी करना और मजदूरों के नाम पर फ़र्ज़ी तरीके से मजदूरी किसी और के खाते में डालकर निकाल लेना, अथवा मजदूरों को दो चार सौ रुपये पकड़ाकर बांकी का पैसा सरपंच सचिवों और उनके चमचों दलालों द्वारा अपनी जेब में रख लेना आज आम बात है. सरकार मनरेगा की मजदूरी दिए जाने के नाम पर तो बड़े बड़े दावे करती है लेकिन पंचायतों में कोई भी कार्य मजदूरों द्वारा नही करवाया जाता बल्कि सभी कार्य मसीनों और जेसीबी द्वारा कराए जाकर फ़र्ज़ी मस्टर रोल जारी कर कुछ ऐसे मजदूरों के नाम पर मजदूरी का भुगतान किया जाता है जो सरपंच सचिवों के खास होते हैं. उन खास लोगों द्वारा निरंतर मजदूरी का भुगतान होता है और वह खास लोग ऐसे होते हैं जो अपना मुँह भी नही खोलते. क्योंकि उन खास दलालों को दो चार सौ रुपए दिए जाकर उनका मुँह बन्द करवा दिया जाता है.

   साथ ही कई केसों में तो आज बैंकिंग सेक्टर भी पंचायत विभाग और सरपंच सचिवों के साथ मिलकर घोटाला करवा रहा है. रीवा ज़िले के ऐसे कई बैंक सामिल हैं जो रुपये कार्ड अथवा अन्य एटीएम कार्ड चुपके से जारी करके सरपंच सचिवों को दे देते हैं जिसका की मजदूरों को पता तक नही चलता और इसी एटीएम कार्ड से पूरे मजदूरी के पैसे की निकासी सरपंच सचिव अथवा उनके दलाल करते रहते हैं.

जनपद गंगेव की गैलरी में फेंक दिया मनरेगा की सामग्री

   जनपदों और ज़िले से लेकर राज्यस्तर तक बैठे इन सरकारी अधिकारियों की कारगुजारी का पता इसी से लगाया जा सकता है की मजदूरों और उनके अधिकारों के प्रति यह सरकारी नुमाइंदे कितने अधिक सचेत हैं और किस गंभीरता से मामले को लेते हैं. इनकी गंभीरता का अंदाज़ा गंगेव जनपद की गैलरी में लात और पैर के जूते चप्पल से कुचले जा रहे रास्ते में पड़े हुए लाखों रुपये के मनरेगा के प्रचार प्रसार की सामग्री से लगाया जा सकता है. जो मनरेगा के प्रचार प्रसार की सामग्री गांव गांव मजदूरों और मेटों और साथ ही आम जनता को बांटने के लिए उन्हें जागरूक करने के लिए हर वर्ष आती है उसे किस तरह से गंगेव जनपद भवन की गैलरी में नीचे पैरों के तले खुले में फेंक दिया गया है जिसे वहां से निकलने वाला हर सख्स अपने पैरों तले कुचल रहा है.

  इतेफाक से वहीं उसी गैलरी से निकलते समय इस पर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी का ध्यान अकृश्ट हो गया जिसे बाकायदा निकालकर देखा गया और पढ़ा गया साथ ही उसकी कुछ फ़ोटो भी ली गई. उन पैम्फलेट और प्रचार प्रसार की सामग्री में बहुत ही सुंदर तरीके से मनरेगा के मजदूरों के अधिकारों की बातें लिखी थीं साथ ही कुछ अन्य पैम्फलेट में मनरेगा के मेटों के भी अधिकारों की बातें लिखीं हुई थीं. यह सब देख जान कर बड़ा ही आश्चर्य हुआ की इतनी अधिक जानकारी की सामग्री जिसे की हर पंचायत द्वारा गांव गांव में मजदूरों और पंचायत निवासियों को वितरित किया जाना चाहिए और उनके अधिकारों के प्रति उन्हें जानकारी देकर सचेत किया जाना चाहिए वह किस प्रकार से लात जूते खाते हुए जनपद की गैलरी में उपेक्षित डस्ट बिन की तरह फेंक दी गई है. 

   ऐसे में यह साफ पता चलता है की क्यूंकि मनरेगा और शासकीय योजनाओं के प्रति सरकारी अफसरों का नजरिया ही दोषपूर्ण हैं, भस्ट्राचार फैलाने वाला है अतः उन्हें इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की मजदूर को उसका अधिकार मिले की न मिले और साथ ही लोग मनरेगा के बारे में जाने अथवा न जाने. इन्ही बातों से सरल ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है की क्यों मनरेगा जैसे अधिनियम में इतना भस्ट्राचार क्यूं हो रहा है. 

संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीर में देखने का कष्ट करें किस तरह से जनपद पंचायत कार्यालय गंगेव की गैलरी में मनरेगा योजना की प्रचार प्रसार की सामग्री लात और डस्ट धूल खाती हुई पड़ी है।

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा, मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139