Monday, January 9, 2017

(Rewa, MP) थाना गढ़ अंतर्गत भमरिया में गौ-हत्यारों द्वारा ठण्ड भूंख प्यास से तड़पा कर एक और गाय का हुआ अंत

 दिनांक – 09/01/2017
 स्थान –  (रीवा, मप्र)



थाना गढ़ अंतर्गत भमरिया में गौ-हत्यारों द्वारा ठण्ड भूंख प्यास से तड़पा कर एक और गाय का हुआ अंत

(गढ़, रीवा मप्र – शिवानन्द द्विवेदी) यदि आप हिनौती धान खरीदी केंद्र में अपनी धान बेचने जा रहे हैं तो थोडा सावधान होकर जाएँ. जी हाँ हम बात कर रहे हैं जनपद गंगेव अंतर्गत हिनौती धान खरीदी केंद्र और हिनौती समिति की. हिनौती धान खरीदी केंद्र दारुबाजों और गांजाखोरों का अड्डा बन चुका है जिसमे पूरी रात दारुबाजों और गांजाखोरों का जमावड़ा रहता है, और इसी के पास आपको मिलेगा दिल दहलाने वाला नज़ारा जहाँ वहीँ पर भमरिया नामक स्थान पर धान खरीदी केंद्र से पचास मीटर के दायरे में लगभग 500 गौवंशों के लिए बनाया गया अवैध कैदखाना जिसमे न तो पानी, न ही चारा-भूसे और न ही किसी छाया की व्यवस्था है.



दिनांक 08 जनवरी 2017 को रात ठण्ड भूंख प्यास से मर गयी एक और गाय

भमरिया में अभी प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार घटनास्थल पर जाया गया और एक और गाय मृत पाई गयी. पता चला की यह गाय ठण्ड भूंख प्यास की वजह से तड़प कर मर गयी जिसके चास्म्दीख गवाह वहां पर हिनौती धान खरीदी केंद्र में इकठ्ठा दर्ज़नों लोग थे जिहोने पूरा वाकया सुनाया. इस प्रकार रोज़ ही कोई न कोई मवेशी खुले आसमान में ठण्ड भूंख प्यास से तड़प तड़प कर मर रहे हैं जिसके विषय में सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा कई विडियो और फोटो मीडिया और साथ ही संवंधित विभागों को कार्यवाही के लिए भेजे जा चुके हैं और समय समय पर लगातार भेजे भी जा रहे हैं.
अब सवाल यह उठता है की पूरे रीवा जिले में जो भी अवैध बांडे बनाये गए हैं उनकी संख्या सैकड़ों में है पर अब तक शासन-प्रशासन मौन क्यों है? यदि गौवंश बिना किसी उचित व्यवस्था के अवैध बने बांडो में भूंख प्यास ठंढ से तड़प-तड़प कर जान दे रहे हैं तो उनके लिए सरकार प्रशासन द्वारा कोई उचित व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है जबकि देखा जाय तो लगभग रोज़ गौवंशों के ऊपर हो रहे अत्याचार का मामला पूरे जिले और प्रदेश की मीडिया में छाया हुआ है. 

-देश प्रदेश के किसानों से गौवंशों के प्रति दया और मानवीयता की अपील-

      गौवंशों के ऊपर निरन्तर हो रहे अत्याचार को लेकर एनजीओ श्रीमद भगवद कथा धर्मार्थ समिति (भारत) द्वारा देश-प्रदेश के किसानों और अन्य नागरिकों से अपील की जाती है की भारतीय संस्कृति में विशेष दर्ज़ा प्राप्त गौवंशों के ऊपर अत्याचार न किये जाएँ. उन्हें चारा, पानी भूसा, बिना अवैध बांडो में कैद करके तड़पा-तड़पा कर न मारा जाए. उन्हें मुक्त किया जाए और उसके स्थान पर अपने-अपने खेतों की रखवाली किया जाए. अवैध बांडो के स्थान पर शासन-प्रशासन पर दबाब डालकर वैध तरीके से पंचायती गौशालाएं संचालित की जाएँ जिससे उनकी गोबर की जो खाद, दुधारू पशु से प्राप्त दूध और साथ ही आज वैज्ञानिक तरीके से गौमूत्र, गोबर से अगरवत्ती आयुर्वेदिक दवाईयां आदि का निर्माण सीखकर लोगों को तो रोजगार में लगाया ही जाए साथ ही गौवंशों की उपयोगिता भी बनी रहे और उनकी सुरक्षा भी हो सके.
      गौवंशों के प्रति अमानवीय और हिंसात्मक रास्ता अपनाने से कोई लाभ नहीं बल्कि पशु क्रूरता अधिनियम, मप्र गौवंश वध प्रतिषेध (अमेंडमेंट) बिल 2010/12, आईपीसी की धारा 428/429  आदि द्वारा दंडात्मक कार्यवाही हो सकती है और उल्टा जेल जाने की नौवत आ सकती है. इस कारण आज किसानों और अन्य नागरिकों को अपनी सोच बदलकर वैज्ञानिक दृष्टिकोंड़ अपनाने की आवश्यकता है और गौवंशों और अन्य पशुओं से वैज्ञानिक तरीके से लाभ लेकर उनके भी जीवन रक्षा के विषय में सोचकर उनकी भी उपयोगिता बढ़ाने की आवश्यकता है.

समाज और सरकारें गौवंशों की उपयोगिता पर विचार कर उनकी रक्षा करें

यदि आज गौवंशों और नाकाम हो चुके पशुओं की यह वर्तमान दुर्दशा है तो कहीं न कहीं कारण इनकी उपयोगिता का भी कम होना है. आज सरकार और विभिन्न सरकारी/गैर-सरकारी संगठनों को जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है. मानाकि आज वैज्ञानिक उपकरणों और कृषि यंत्रों से किसान और आम नागरिक का जीवन ज्यादा विलाशी और सुलभ हो गया है पर इसका तात्पर्य यह बिलकुल भी नहीं की इस जीवन का सारा कार्य विज्ञान और मशीनें ही कर लेंगी उसमे किसी पशु की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी. सच्चाई बिलकुल उसके विपरीत है और भले ही आज तात्कालिक रूप से किसानों और नागरिकों को यह लग रहा है गौवंश और पशु उनके लिए बोझ बन गए हैं पर यदि दूरदृष्टि लगाईं जाए तो समझ आएगा यदि पशु, मवेशी, जीव जंतु नहीं होंगे तो यह प्राकृतिक संतुलन पूरी तरह से विगड़ जायेगा. आज विज्ञान बार-बार इस बात को कह रहा है की गोबर की खाद, बायो-खाद, बायो-उत्पाद की बेहद आवश्यकता है. आज जो हमारी दिनचर्या में इतनी अधिक बीमारियाँ और स्वास्थ्य सम्बन्धी तकलीफें बढ़ रही हैं तो उसका कारण आज का वातावरण ही है जो कहीं न कहीं पूरी तरह से केमिकल उत्पादों, केमिकल खादों, जहरीली दवाओं आदि पर निर्भर होता जा रहा है.

      आज आवश्यकता है एकबार पुनः सोचने की और अपनी पूर्व की जीवनचर्या अपनाने की. प्रकृति के नजदीक ही पंहुच कर हमे शांति भी मेलेगी, सुख भी और स्वास्थ भी. मात्र आवश्यकता है परम्पराओं में थोड़ी सी वैज्ञानिक सोच की जो की दाल में नमक का कार्य करेगा और हमारे जीवन के सस्वाद को अत्यधिक बढ़ा देगा.


पशुओं के विरुद्ध क्रूरता पर स्थानीय पुलिश द्वारा दर्ज किये जाने चाहिए अपराधिक प्रकरण

      अब यदि किसान कास्तकार यह चाहें की बेजुवां पशुओं को अवैध तरीके से बिना चारा, पानी, भूसा, और छत्रछाया के कड़ाके की ठण्ड में तड़प कर मरने के लिए छोंड दिया जायेगा और कोई कुछ नहीं करेगा तो यह बहुत बड़ी भ्रान्ति है. क्योंकि हर व्यक्ति आज यह जान ले की जितने कड़े कानून मानव की सुरक्षा के लिए बने हैं वैसे ही कानून घरेलु पशुओं और वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए भी बने हैं. समस्या यह है की शासन प्रशासन इन कानून को कड़ाई से नहीं लगा पा रहा है अन्यथा कम से कम छः माह की जेल और एक हज़ार रुपये का जुर्माना तो तय है, और दोषी पाए जाने पर यह सजा पांच हज़ार के जुर्माना के साथ यह सात साल तक हो सकती है.  

संलग्न – 1) नीचे अवैध बांडो में कैद पशुओं के देखें संलग्न यूट्यूब विडियो जो की पशुओं के विरुद्ध अत्याचार और क्रूरता को दर्शाते हैं. 2) इसी विषय में अवैध बांडो के लिए गए फोटोग्राफ जिनमे कुछ पशु मृत पड़े हैं तो कुछ मरने की कगार पर खड़े हैं.














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Sincerely Yours,
Shivanand Dwivedi
(Social, Environmental, RTI and Human Rights Activists)
Village - Kaitha, Post - Amiliya, Police Station - Garh,
Tehsil - Mangawan, District - Rewa (MP)
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