गौ हत्याओं और पशु प्रताड़ना पर रीवा जिला प्रशासन नहीं लगा पा रहा रोक
(गढ़, रीवा मप्र – शिवानन्द द्विवेदी) कहने को तो पशुओं और गौवंशों की सुरक्षा के लिए इतने कानून बने हैं पर देखना होगा की उन नियमों का पालन क्या कहीं भी पूरे मप्र में सही तरीके से हो पा रहा है. मप्र में विशेष तौर पर गौवंश प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक वर्ष 2010/12 में पारित किया गया जिसमे गौवंशों के वध पर और प्रताड़ना पर पांच हज़ार तक का जुर्माना और अधिकतम सात साल के कैद का प्रावधान है और यह अपराध संज्ञेय भी है साथ ही आरोपी को अपने आप को दोषमुक्त सिद्ध करना पड़ेगा ऐसा प्रावधान है. इसी प्रकार पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अंतर्गत भी कई प्रावधान हैं जिन्हें यदि कड़ाई से लगाया जाये तो पशुओं और गौवंशों के विरुद्ध अत्याचार और क्रूरता काफी हद तक बंद की जा सकती है. भारतीय दंड संहिता की धारा 428 एवं 429 के अंतर्गत भी पशुओं के विरुद्ध क्रूरता पर एफ आई आर दर्ज कर कार्यवाही करने का प्रावधान है.
लालगांव पंचायत में हर्दी-अटरिया के बीच बनाया गया है गौवंशों का अवैध बांड़ा
अवैध बांडे एक जो सबसे भयावह दृश्य था वह है लालगांव पंचायत में हर्दी-अटरिया के बीच बनाया गया अवैध बांड़ा जो की वहीँ आसपास के लोग जैसे विजय सिंह, मुन्ना राजा, काशी सिंह, रावेन्द्र मिश्रा द्वारा कानून को धता बताकर बनाया गया है. चश्मदीखों के अनुसार यहाँ पर पिछले कई महीनों से गौवंशों को कैद करके रखा गया है जिसमे न तो चारे, भूसे की व्यवस्था है और न ही किसी पशुशेड की. ठण्ड में पांच डिग्री के नीचे के तापमान पर आज गौवंश भूंख, प्यास, छाया बिना तड़प-तड़प कर जान दे रहे हैं जिन्हें देखने वाला न तो कोई कलेक्टर है और न ही कोई मंत्री मिनिस्टर. खैर गाँव वालों का क्या कहना यह बाड़े तो उन्ही के द्वारा बनाये गए हैं. हर्दी-अटरिया स्थित यह अवैध पशु-कैदखाना लालगांव के किसी गुप्ता की खाली पड़ी हुई जमीन में बनाया गया है. परन्तु चश्मदीखों के अनुसार यह अवैध बांड़ा बनवाया वहीँ हर्दी, बर्रेही, लालगांव और अटरिया के तथाकथित कृषकों द्वारा हैं.
भाजपा मंडल अध्यक्ष शंकर सिंह और उनके सहयोगियों द्वारा बनवाया गया सोनवर्षा डांडी का अवैध बांड़ा
इसी क्षेत्र में दूसरा अवैध बांड़ा लालगांव पंचायत के सोनवर्षा डांडी नामक स्थान पर बनाया गया है जो वहीँ के यादव समुदाय की जमीन पर बना हुआ है. दो जनवरी 2017 की रात गढ़ पुलिश के सहयोग से यह अवैध बांड़ा हटाये जाने के बाद अगले दिन इसी क्षेत्र के भाजपा मंडल अध्यक्ष शंकर सिंह स्वयं जिला पंचायत प्रत्यासी राकेश शर्मा उपाध्याय के साथ थाना गढ़ पहुचे और उन्होंने स्वीकार किया की सोनवर्षा का यादवों की जमीन पर बनाया गया बाड़ा उनके और सहयोगियों की माध्यम से बनाया गया था. यह हाल हैं गौवंश के लिए समर्पित और हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए कार्य कर रहे भाजपा के कार्यकर्ताओं के. यदि ऐसा है तो वह लोग ज्यादा बेहतर हैं जो गौवंशों को अपने आहार के लिए प्रयोग कर रहे हैं. कम से कम गौवंशों को प्रताड़ना देकर घुट-घुट कर अवैध बांडो में चारे, पानी, छाया बिना कड़ाके की ठण्ड में मारने से तो अच्छा है उन्हें एक बार में मौत के घाट उतार दिया जाना?
गौवंशों और बेजुबान पशुओं के साथ क्रूरता मानवीय संवेदनाओं के अंत का द्योतक
यह भारतीय संस्कृति का दुर्भाग्य है की आज मात्र गौवंशों और पशुओं की सुरक्षा के लिए भी राजनीति की जा रही है. अब कम से कम आम जनता के समक्ष यह बात भली-भांति स्पष्ट हो जाएगी की क्या यह राजनीतिक पार्टियाँ मात्र मानवीय संवेदनायों को आधार बनाकर ही तो राजनीतिक लाभ ले रही हैं. न ही इन्हें गौवंशों की सुरक्षा से कोई लेना देना है और न ही आम किसान और आम जनता से.
यह बात सत्य है की आवारा पशुओं से आज हर एक किसान और कास्तकार त्रस्त है परेशान है पर प्रश्न यह भी है की क्या आवारा पशुओं और गौवंशों को अवैध रूप से बनाये गए बिना किसी उचित व्यवस्था के बांडो में चारा, पानी, भूसा, छत बिना कड़ाके की ठण्ड में तड़पने मरने के लिए छोंड देने से किसानों की समस्या का समाधान हो जायेगा? किसान यह कैसे भूल सकता है की यही गौवंश हैं जिनके दूध, दही, घी, और दुग्ध उत्पाद खा पीकर वह पला बढ़ा है और उसके बाल बच्चे इन्ही गौवंशों के दुग्ध उत्पाद से पल बढ़ रहे हैं. क्या हर सुबह जब हम एक कप चाय पीते हैं तो इस बात का एहसास नहीं करते की इस चाय में डाला गया दूध किसी
दुधारू पशु से ही प्राप्त हुआ होगा?
आखिर इन गौधनों की इतनी बड़ी दुर्दशा क्यों? क्या यही हमारे ग्रामीण किसान भाई हर एक ग्राम पंचायत में स्वयमेव ऐसी व्यवस्था नहीं बना सकते कि एक-दो पशु सभी लोग अपने घरों में बाँध लें और अन्य पशुओं की तरह ही इनकी भी व्यवस्था बना लें?
पशु और गौवंश न होने पर प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ेगा प्रतिकूल असर
आज अज्ञानता अथवा हेकड़ी बस भले ही किसानों और भारतीयों को यह बात समझ न आ रही हो पर यह बात तय है की यदि गौवंश और पशुधन न रहेंगे तो पूरी भूमि बंजर हो जाएगी. प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जायेगा. उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. शांस लेने के लिए हवा न मिलेगी और पीने के लिये पानी नहीं होगा. ऐसा समय आयेगा की मानवता एक-एक दाने के लिए तरस जाएगी. क्योंकि आज विज्ञान भी इस बात को मान रहा है की रासायनिक खादों के हो रहे निरंतर प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति कमजोर पड़ रही है जिससे हर वर्ष भूमि में पिछले वर्षों की तुलना में अधिक उर्वरक और रासायनिक तत्वों का प्रयोग करना पड़ रहा है. आज कृषि विज्ञान जो गोबर अथवा बायो-खाद और बायो-उत्पाद की निरंतर बात कर रहा है वह इसी वजह से कर रहा है कि लगातार बढ़ रही मानवीय आवादी के पालन-पोषण के लिए निरंतर बंजर हो रही भूमि की उर्वरा शक्ति कैसे बढ़ाई जाए.
प्रदेश के हर जिले में कलेक्टर के संज्ञान में है पशुपालन एवं पशु संवर्धन समिति
जिला स्तरीय समितियों की यदि बात किया जाए तो गौधन और पशुधन के पालन को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश के हर जिले में विशेष निगरानी समितियों का गठन होता है जो सदैव जिला कलेक्टर के संज्ञान में रहता है. जिला कलेक्टर यदि चाहे तो या की मनरेगा की उप योजना अंतर्गत अथवा पशुपालन विभाग द्वारा तीन-चार पंचायतों के बीच में आवारा गौवंशों की सुरक्षा और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए बजट का आवंटन करवा कर इस समस्या का दीर्घकालीन समाधान कर सकता है. परन्तु यह सब इच्छाशक्ति और योजनायों के सही क्रियान्वयन पर निर्भर करता है. आज यह जिले में भली भांति विदित है की पशु चिकित्सा विभाग की मदद से कई पंचायतों में गौ संवर्धन केंद्र बनाने बाबत बजट दिया गया था परन्तु वह सब भ्रष्ट्राचार की बलि चढ़ गया. क्या यह सब देखने वाला कोई नहीं है? आखिर क्या जिला कलेक्टर के संज्ञान में यह बातें नहीं हैं? क्या किसानों की आवारा पशुओं सम्बन्धी समस्या जो किसी न किसी माध्यम से रोज ही मीडिया में छाई रहती है जिला प्रशासन अथवा प्रदेश स्तर पर ज्ञात नहीं है? सबको सब कुछ ज्ञात है, मात्र आवश्यकता है उसके सही क्रियान्वयन की और समस्या के उचित निराकरण की.
पशुओं के विरुद्ध क्रूरता पर स्थानीय पुलिश द्वारा दर्ज किये जाने चाहिए अपराधिक प्रकरण
अब यदि किसान कास्तकार यह चाहें की बेजुवां पशुओं को अवैध तरीके से बिना चारा, पानी, भूसा, और छत्रछाया के कड़ाके की ठण्ड में तड़प कर मरने के लिए छोंड दिया जायेगा और कोई कुछ नहीं करेगा तो यह बहुत बड़ी भ्रान्ति है. क्योंकि हर व्यक्ति आज यह जान ले की जितने कड़े कानून मानव की सुरक्षा के लिए बने हैं वैसे ही कानून घरेलु पशुओं और वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए भी बने हैं. समस्या यह है की शासन प्रशासन इन कानून को कड़ाई से नहीं लगा पा रहा है अन्यथा कम से कम छः माह की जेल और एक हज़ार रुपये का जुर्माना तो तय है, और दोषी पाए जाने पर यह सजा पांच हज़ार के जुर्माना के साथ यह सात साल तक हो सकती है.
संलग्न – 1) नीचे अवैध बांडो में कैद पशुओं के देखें संलग्न यूट्यूब विडियो जो की पशुओं के विरुद्ध अत्याचार और क्रूरता को दर्शाते हैं. 2) इसी विषय में अवैध बांडो के लिए गए फोटोग्राफ जिनमे कुछ पशु मृत पड़े हैं तो कुछ मरने की कगार पर खड़े हैं.
-------------------
Sincerely Yours,
Shivanand Dwivedi
(Social, Environmental, RTI and Human Rights Activists)
Village - Kaitha, Post - Amiliya, Police Station - Garh,
Tehsil - Mangawan, District - Rewa (MP)
Mob - (official) 07869992139, (whatsapp) 09589152587
TWITTER HANDLE: @ishwarputra - SHIVANAND DWIVEDI
No comments:
Post a Comment