(थाना-गढ़, रीवा मप्र – शिवानन्द द्विवेदी) अवैध रूप से पशुओं के लिए बनाये गए काजी हाउस या पशु कैदखाना का सिलसिला मात्र सेदहा के भमरिया पर आकर ही नहीं रुकता है. यहाँ तो पूरा सैकड़ों की सूची बन जाए यदि सबको एकत्रित किया जाय.
वहरहाल हम यहाँ पर बात कर रहे हैं थाना गढ़ अंतर्गत कटरा के पास गंतीरा गाँव की जिसमे अवैध रूप से लगभग ढाई सौ से अधिक मवेशिओं के लिए बड़ा कैदखाना बनाया गया है जहाँ पर खुले ठण्ड में मवेशी चारा, पानी बिना ठण्ड से तड़प कर मर रहे हैं.
यह सब प्रशासन की निगाह तले हो रहा है और सब अंजान बने बैठे हैं. कहने को तो गौवंश संरक्षण और संवर्धन से सम्बंधित इतने विभाग और समितियां हैं की याद रखना कठिन पड़ जाए पर वास्तविक धरातल पर कहीं कुछ नहीं. जगह जगह अवैध बाड़ों में बेजुबान पशुओं और गौ माताओं को यह कुछ समाज के ठेकेदार और दबंग बिना चारा, पानी, भूसा के खुले असमान के नीचे बर्फ की तरह जमाने वाली ठण्ड में तड़पा तड़पा कर मार रहे हैं जिसे देखने वाला कोई नहीं है.
02 जनवरी को गढ़ पुलिश का गंतीरा गाँव के अवैध बांडे में रेड
अवैध रूप से बने कैदखाने जो पशुओं के लिए कब्रगाह साबित हो रहे हैं वह आज जगह-जगह बनाये गए हैं. यदि देखा जाए तो जिले की लगभग हर 4-5 पंचायतों के बीच एक न एक अवैध पशु बांड़ा बना मिल ही जायेगा जहाँ पर पशुओं को क्रूरता से समूह में इकठ्ठा करके रखा जाता है और न तो उनके लिए उचित चारे-पानी की व्यवस्था होती है और न ही वहां पर ठण्ड से बचने वास्ते छज्जा होता है. अब ऐसे में स्वाभाविक है कि कडाके की ठण्ड में सभी गौवंश तड़प-तड़प कर भूंख प्यास से मर रहे हैं. दिनांक 02 जनवरी वर्ष 2017 को पुलिश महानिदेशक मप्र भोपाल के आदेश पर जब रीवा एसपी एवं गढ़ थाना प्रभारी द्वारा कार्यवाही की गयी तो मौके वारदात पर पंहुच कर दो पशुओं को तडपता हुआ पाया गया जो या तो मृत हो चुके थे अथवा मृत होने की कगार पर थे. जी हाँ यह वाकया था कटरा के पास गंतीरा नामक स्थान का जहाँ पर लगभग 100 के आसपास गौवंश वहीँ सड़क के किनारे बांडे में कैद मिले. वहीँ पर एक व्यक्ति से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ मिश्रा परिवार और अन्य तथाकथित किसानों के द्वारा यह अवैध बांड़ा फसल नुकसानी से बचाने के लिए बनाया गया था.
अब यह बात ठीक है कि हर स्थान पर ही किसानों के फसल का नुक्सान आवारा घूम रहे पशु कर रहे हैं पर क्या अवैध तरीके से बिना किसी व्यवस्था के पशुओं को मरने के लिए कैद कर देने मात्र से समस्या का समाधान हो पायेगा? क्या यह अतिशय क्रूरता भारतीय संविधान के कानून कायदों का उल्लंघन नहीं है? आखिर पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, और गौवंश वध प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 2010/12 क्या कहते हैं? पशुओं सम्बन्धी समस्या का समाधान मानवीय तौर पर कानून तथा भारतीय संस्कृति की मर्यादा के दायरे में किया जाये न कि कानून को धता बताकर.
मानव की ही तरह सभी जीवों को जीने का है अधिकार
ऐसा नहीं है की इस धरती में मात्र मानव भर का ही अस्तित्व बना रहेगा. संसार को भूल जाईये और बात करते हैं भारतीय संविधान की तो यहाँ भी पशुओं के सुरक्षा के व्यापक अधिनियम बने हैं और उन्हें कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए. ऐसे सभी दोषियों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए. यदि किसानों के फसल की नुकसानी होती भी है तो वह जाकर सरकार से मुआबजे की माग कर सकते हैं. किसान सरकार के ऊपर दबाब बना सकते हैं की वह आवारा पशुओं से फसल की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था बनाये. यह तो बिलकुल ही उचित नहीं होगा की बेजुबान मूक पशुओं को अवैध बांडो में ठण्ड भूख, प्यास से तड़पने के लिए छोड़ दिया जाए. क्या यह पशु किसी से कुछ बोल सकते हैं? क्या यह गौवंश कोई कंप्लेंट कर सकते हैं? क्या इस समाज और मानव के अतिरिक्त इस बहुतिक संसार में इन बेजुबानों की आवाज़ को सुनने वाला कोई है? जाहिर है मानव ही है जो मानवता दिखाकर पशुओं के खिलाफ क्रूरता के विरुद्ध आवाज़ उठा सकता है और पशुओं के अधिकार के लिए लड़ सकता है. पर यदि आज वही मानव इतना निर्दयी हो गया है तो हमारे भारतीय संस्कृति के लिए यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है.
संलग्न – 1) नीचे अवैध बांडो में कैद पशुओं के देखें संलग्न यूट्यूब विडियो जो की पशुओं के विरुद्ध अत्याचार और क्रूरता को दर्शाते हैं. 2) इसी विषय में अवैध बांडो के लिए गए फोटोग्राफ जिनमे कुछ पशु मृत पड़े हैं तो कुछ मरने की कगार पर खड़े हैं.
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