Date: 10/01/2017,
Place: - Rewa (MP)
“गायों की सुरक्षा मानवता की आवश्यकता - भारतीय स्वदेशी गाय का वैज्ञानिक महत्त्व”
(गढ़, रीवा मप्र – शिवानन्द द्विवेदी) भारतीय गाय की सुरक्षा मानवता के लिए तो आवश्यक है ही साथ ही प्राकृतिक संतुलन हेतु भी जरुरी है. आज कई स्वदेशी गायों की नस्लें या तो समाप्त हो चुकी हैं अथवा समाप्त होने की कगार पर हैं. शायद कम लोगों को ही जानकारी होगी जी जर्सी नस्ल की गायें मूलतः गाय और सूअर के जेनेटिक कॉम्बिनेशन द्वारा उत्पन्न हुई हैं. यूरोपियन ठन्डे प्रदेशों और पश्चिमी सभ्यता के हिसाब से वहां के वातावरण अनुकूल जर्सी गायों की जरुरत है उन्ही सभ्यताओं मात्र को है. भारत जैसे गरम भौगोलिक क्षेत्र में स्वदेशी नश्ल की गायें ही उपयुक्त हैं.
स्वदेशी नश्ल के गौवंश भारतीय संस्कृति की पहचान
जहाँ तक प्रश्न भारतीय सभ्यता का है वहां पर यह कहना होगा की देशी नस्ल की गायें ही हमारी भारतीय सभ्यता की पहचान रही हैं. चाहे वह बालक श्रीकृष्ण जी के बचपन के दिनों में अपनी लीलाओं को लेकर हो अथवा हिन्दू संस्कृति में गोदान, तर्पण आदि से सम्बंधित रहा हो. हर एक भारतीय संस्कारों में गायों का अभूतपूर्व धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. बिना गौवंश के भारतीय मानव वंश की कोई पहचान नहीं है. हाँ यदि गौवंश नहीं रहेगा तो भारतीय संस्कृति किसी पश्चिमी संस्कृति में समाहित हो जाएगी और अपना स्वयं का वजूद खो देगी. और निश्चित तौर पर जहाँ तक सवाल अस्तित्व का है तो किसी भी लहजे से यह भारतीय मानव के लिए कोई उपलब्धि नहीं होगी बल्कि उसके अंत का सूचक जरूर हो सकता है. और ये कहें की भारतीय मानव ही नहीं सम्पूर्ण मानवीय सभ्यता के अंत का सूचक हो सकता है.
गायें ऑक्सीजन लेकर अपेक्षाकृत ज्यादा ऑक्सीजन ही छोड़ती है
शायद यह बात सब को ज्ञात न होगी पर यह सच्चाई वैज्ञानिक अभिलेखों से प्राप्त हुई है की गाय और गौवंश ही धरती के कुछ विरले प्राणी हैं जो स्वयं भी ऑक्सीजन अर्थात प्राणवायु लेता है और अपेक्षाकृत प्राणवायु ही अपनी सांसों से छोड़ता भी है. वैज्ञानिक कारण यह है कि गायों/गौवंशों के फेंफडे प्राकृतिक तौर से ऐसे बने होते हैं वह खींची गयी ज्यादा ऑक्सीजन को डाइजेस्ट नहीं कर पाते अतः काफी ऑक्सीजन श्वांस प्रक्रिया द्वारा बाहर निकाल दी जाती है. आज जब वातावरण में अत्यधिक जहरीली गैसों और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा घुलती जा रही है ऐसे में स्वार्थी किस्म के मानव के लिए ऐसे जीवों का महत्व तो और अधिक होना चाहिए जो स्वयं दूध, घी, दही, दुग्ध उत्पाद तो दे ही रहा है साथ ही अपने गोबर-मूत्र से भी औषधीय तत्त्व देकर अपनी हर एक साँस से भी जीवनदायनी प्राणवायु दे रहा है. क्या ऐसे में गौवंशों की महत्वा और अधिक नहीं होनी चाहिए? चलिए मानाकि आज अत्यधिक स्वार्थी हो चुके मानव के लिए हर वस्तु में फायदे नुकसान दीखते हैं तो भी क्या गौवंशों की सुरक्षा मानव के हित में नहीं है?
आयुर्वेद में गौमूत्र अमृत तुल्य – देता है सभी बीमारियों से निजात
गाय का मूत्र इस पृथ्वी में अमृत समान है. गाय के मूत्र में मिनिरल्स जैसे पोटैशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, कॉपर, क्लोराइड एवं यूरिक एसिड आदि अत्यधिक संतुलित मात्र में होते हैं जिन्हें सेवन से मानव शरीर में कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि सभी बीमारियो से मुक्ति मिलती है. गायों का वखान भारतीय संस्कृति के मूल ग्रन्थ वेदों से लेकर शास्त्रों और पुराणों तक मिल जायेगा. गाय को भारतीय संस्कृति में माता की उपमा देना कोई सामान्य बात नहीं है. जैसे माता अपने पुत्रों को दूध पिलाने से लेकर उसके बड़े होने तक उसका सब प्रकार से ख्याल रखती है वैसे यदि देखा जाए तो गौमाता भी मानव के लिए हर प्रकार से लाभकारी है. यदि दूध और दुग्ध उत्पाद के तौर पर लिया जाए तो भी गाय का दूध अन्य पशुओं की अपेक्षा प्रोटीन, विटामिन्स, मिनिरल्स और जीवनदायनी शक्ति से भरपूर तो हैं ही साथ ही गाय का गोबर और मूत्र भी कहीं दुग्ध उत्पाद से कम लाभकारी नहीं है. आयुर्वेद में हजारों वर्षों से गौमूत्र और गोबर से विभिन्न प्रकार की असाध्य और जानलेवा बीमारियों से लड़ने के लिए औषधियां बनाई जाती रही हैं. गाय का मूत्र आवश्यक मिनिरल्स का खज़ाना है, इसमें मुख्या रूप से पोटैशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, कॉपर, क्लोराइड एवं यूरिक एसिड होता है. आज हम गायत्री शक्तिपीठ द्वारा संचालित हरिद्वार फार्मेसी अथवा बाबा रामदेव आदि के द्वारा दिव्या फार्मेसी में गौ मूत्रों से बनाये जाने वाले उत्पाद और दवाइयां कहीं भी आयुर्वेदिक स्टोर में खरीद सकते हैं जिसमे सामान्य सर्दी-बुखार से लेकर टीबी, स्थमा, पेट की बीमारियाँ से लेकर कैंसर, एड्स, आदि भयानक जानलेवा बीमारियों का उपचार संयम और खानपान में नियंत्रण से किया जा सकता है. वैसे सामान्य तौर पर गौमूत्र से लगभग 108 बेमरियाओं का इलाज़ होना बताया गया है. गौमूत्र दर्द निवारक, चर्म रोग, पेट के रोग, आंत्रशोथ, पीलिया, मुख रोग, नेत्र रोग, अतिसार, मूत्राघात, कृमिरोग, मधुमेह, मिर्गी, माइग्रेन आदि बीमारियों में लाभप्रद है. गाय के मूत्र में त्रिफला चूर्ण, गाय का दूध मिक्स करके पीने से अनीमिया रोग दूर होकर खून साफ़ होता है. गाय के मूत्र से जिगर मजबूत होकर रक्त सुद्ध होता है. आयुर्वेद के अनुसार गाय के मूत्र के नियमित सेवन से त्रिदोष नष्ट होते हैं. त्रिदोष का तात्पर्य वाट, पित्त और कफ जनक बीमारियाँ हैं जो शरीर के विभिन्न बीमारियों का कारण बनती हैं. गाय के मूत्र के सेवन से मानशिक तनाव और अनिद्रा की बीमारी से निजात मिलती है. गौमूत्र के सेवन से दिल मजबूत होता है और मानव शतायु अर्थात सौ वर्षों तक बिना किसी बीमारी के जीवन जी सकता है. शास्त्रों के अनुसार गौमूत्र के सेवन से अधिदैविक, अध्यात्मिक और अधिभौतिक तापों अर्थात कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी प्रकार की बीमारियों से निजात मिलती है.
क्या आज के वर्तमान समय में जबकि मेडिकल साइंस इतना महगा हो चुका है लगभग बिना कुछ खर्च किये यदि गौ के मूत्र से इतने लाभ प्राप्त हों तो क्या यह इस स्वार्थी मानव के लिए कम है?
सवाल है मात्र मानशिकता बदलने का. आज जो पश्चिमी सभ्यता की अंधी दौड़ में व्यक्ति अपनी मूल संस्कृति और जड़ें भूलता जा रहा है यह मानवता के लिए घातक सिद्ध होने वाली हैं. ऐसा नहीं है की गौवंशों की सुरक्षा करने से गौमाताओं पर मानव बहुत बड़ा उपकार कर देगा? वास्तव में देखा जाए तो यह उपकार मानव गौवंशों पर नहीं अपने ऊपर कर रहा है. क्योंकि यदि इस श्रृष्टि को चलते रहना है तो सभी जीव जंतुओं का इसमें अपना एक विशेष महत्त्व है और बारम्बार वही महत्व किसी न किसी माध्यम से इन लेखों द्वारा बताया जा रहा है.
दिनांक 09 जनवरी 2017 की रात भमरिया के अवैध बांडे में भूंख प्यास ठण्ड से कुछ और गायों का हुआ दुखद अंत
दिनांक 09 जनवरी की रात थाना गढ़ अंतर्गत सेदहा पंचायत के भमरिया में बने अवैध बांडे में कुछ और गायों का दुखद अंत हो गया. दिनांक 09 जनवरी की रात क्षेत्र में कुछ बारिश भी हुई जिसकी वजह से बढ़ी ठण्ड में खुले आसमान के नीचे भूंखे प्यासे गौवंशों से ठंडी वर्दास्त नहीं हुई जिससे कुछ गायों का अंत हो गया. बहरहाल यह कोई नयी घटना नहीं है और थाना गढ़ अंतर्गत आने वाले कई अवैध बांडो में भूंख, प्यास, कड़ाके की ठण्ड में गौवंश रोज़ ही मृत्यु के घाट उतर रहे हैं. इन बेजुवान पशुओं के दुःख-दर्द को सुनने वाला कोई नहीं. सब के सब मूक दर्शक बने बैठे हैं और मात्र तमासा देख रहे हैं. सूत्रों से प्राप्त जानकारी से पता चला है की इसी प्रक्रार पिछले रातों कटरा के पास गंतीरा, लालगांव के पास सोनवर्षा और हरदी के बांडो में भी दर्ज़नों गौवंश फिर मृत पाए गए हैं जिन्हें वहां से न हटा पाने के कारण रात में कुत्ते और सियार आदि मांसाहारी जानवर नोच कर खा गए. कई ऐसे भी घटनाक्रम प्रकाश में आये हैं जिनमे बांडो के अन्दर कमज़ोर हो गए गौवंशों को जीवित अवस्था में ही कुत्ते-सियार शिकार कर खा गए जो अत्यधिक दुखद और दर्दनाक है.
घटना की जानकारी रीवा कलेक्टर से लेकर केंद्रीय मंत्रालय तक
रीवा जिले में गौवंशों के अवैध बांडे के विषय में मूक-बेजुबान पशुओं के भूंख, प्यास, ठण्ड से रोज घुट-घुट कर मरने की जानकारी मीडिया में तो छाई हुई है साथ ही कलेक्टर, एसपी, डीजीपी मप्र भोपाल से लेकर पशुपालन विभाग, पशु संवर्धन बोर्ड, एनिमल राइट्स ग्रुप्स से लेकर श्रीमती मेनका गाँधी जी के कार्यालय तक संप्रेषित की जा चुकी है. पर अब तक इन पशुओं की सुरक्षा के कोई भी सार्थक इंतज़ाम नहीं हुए हैं. मात्र अब तक जानकारियां ही एकत्रित की गयीं हैं. बल्कि अभी हाल ही में खतरा उठाकर सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दबाब बनाकर पुलिश प्रशासन के सहयोग से एक-दो मर्तबा अवैध बांडो में रेड डलवाकर बांड़ा तोडवाया गया परन्तु पुनः स्थानीय सरहंगों द्वारा यथावत बनवा लिया गया है.
अब प्रश्न यह उठता है की पूरे देश भर में एनिमल राइट्स के नाम पर सरकार और जनता का पैसा हज़म करने वाले इतने विभाग बने हैं तो क्या किसी में इतनी कूबत नहीं की सरकार प्रशासन पर दबाब बनाकर इन पशुओं गौवंशों की जिंदगी को बचाया जा सके? आज यह बहुत बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर उन भूंख, प्यास, ठण्ड से तड़पती हुई गौवंशों की आत्माएं भी पूंछ रही हैं.
शायद कोई तो सुनने वाला हो?
संलग्न – 1) नीचे अवैध बांडो में कैद पशुओं के देखें संलग्न यूट्यूब विडियो जो की पशुओं के विरुद्ध अत्याचार और क्रूरता को दर्शाते हैं. 2) इसी विषय में अवैध बांडो के लिए गए फोटोग्राफ जिनमे कुछ पशु मृत पड़े हैं तो कुछ मरने की कगार पर खड़े हैं.
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Sincerely Yours,
Shivanand Dwivedi
(Social, Environmental, RTI and Human Rights Activists)
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