दिनांक 29 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा मप्र
जिले के खरीदी केंद्रों में किसानों की लुटाई अनवरत जारी है. शिकायतों और मीडिया के बाबजूद भी खरीदी केंद्र प्रबंधकों और उनके दलालों पर कोई विशेष प्रभाव नही पड़ रहा है.
एक तो पूरे जिले और संभाग में खरीदी लेट प्रारम्भ हुई वहीं ऊपर से किसानों पर ठंडी का भी सितम जारी है. ऐसे में अन्नदाता अपनी धान ट्रेक्टर में लादकर जगह जगह की ठोकर खाने पर मजबूर है जिसको देखने वाला कोई शासन प्रशासन नही है.
वजन से अधिक हो रही तुलाई
बता दें की जिले अथवा संभाग का शायद ही कोई ऐसा खरीदी केंद्र हो जहाँ प्रति बोरी धान की तुलाई वास्तविक वजन से अधिक न हो रही हो. आमतौर पर खाली बोरी का वजन 500 से 600 ग्राम माना जाता है ऐसे में प्रति बोरी सहित धान का वजन 40 किलो 600 ग्राम तक होता है लेकिन खरीदी केंद्रों में बैठे दलाल और प्रबंधक किसानों से 41 से 45 किलो तक वजन की धान ले रहे हैं. जो किसान इसका विरोध करते हैं उनकी तुलाई ही नही की जाती और वापस कर दिया जाता है.
आर्द्रता के नाम पर मची है लूट
किसानों से आर्द्रता के नाम पर लूट की जा रही है. वैसे सामान्यतौर पर धान की आर्द्रता 17 पॉइंट तक होती है और यदि 17 से अधिक की आर्द्रता हुई तो धान नही ली जाती. लेकिन जिन किसानों की आर्द्रता 17 से अधिक होती है उनसे अतिरिक्त धान तुलाई की जाती है साथ ही उनसे पैसे भी लिए जाते हैं. 17 से अधिक आर्द्रता वाले किसानों से 42 किलो तक धान ली जाती है.
धान भराई और तुलाई के नाम पर लुटाई
इसी प्रकार सभी समितियों और खरीदी केंद्रों में धान भराई और तुलाई के नाम पर भी लूट मची हुई है. बता दें की यह नागरिक आपूर्ति निगम खाद्य विभाग और सहकारिता विभाग की जिम्मेदारी होती है वह अपने लेबरों और तुलावटी को खरीदी केंद्रों पर रखे क्योंकि शासन इसके वास्ते प्रबंधकों को अलग से पैसे देती है लेकिन समस्या बताकर किसानों से प्रति बोरी 5 से 10 रुपये तक लिया जाता है. आमतौर पर यह सभी खरीदी केंद्रों में देखा जा सकता है।
प्रासंगिक व्यय की राशि में भी धांधली
इसी प्रकार सभी समितियों के खरीदी केंद्रों में शासन द्वारा तुलाई, भराई, बोरे की सिलाई, उठाई, लदाई के नाम पर, किसानों के लिए खरीदी केंद्रों पर व्यवस्था के लिए एवं खरीदी गयी धान की सुरक्षा के लिए अमूमन 5 से 10 लाख के बीच की राशि दी जाती जो सीधे समितियों से सम्बद्ध रहती है लेकिन चूंकि यह देखा जा सकता है की किसी भी खरीदी केंद्र में न तो उचित छाया टेंट की व्यवस्था होती है और न ही अन्य किसी प्रकार की सुविधा होती है. जहाँ तक सवाल धान का है तो वह खुले आसमान के नीचे पड़ी सड़ती रहती है तो साफ जाहिर है की यह प्रासंगिक व्यय राशि का सीधा सीधा घालमेल कर दिया जाता है और संबंधित समिति खरीदी केंद्रों के मालिक मिलकर इसको भी चट कर जाते हैं.
खरीदी में ऐसे चलता है करोड़ो के भ्रष्टाचार का खेल
अब आइए समझते हैं की खरीदी केंद्रों में धान गेहूं तुलाई का खेल किस कदर करोड़ो के भ्रष्टाचार का रूप ले लेता है. मानाकि हिनौती खरीदी केंद्र का उदाहरण लेते हैं पर यह सिस्टम सभी खरीदी केंद्रों में लागू होता है. हिनौती ए एवं बी खरीदी केंद्रों के नाम से चल रहे भमरिया और भठवा खरीदी केंद्रों में कुल मिलाकर 80 हजार क्विंटल धान खरीदी की लिमिट का प्रावधान है.
ऐसे में यदि ऊपर के सिस्टम से देखा जाय तो यदि 80 हज़ार क्विंटल का दुगुना किया जाए तो 160 हज़ार बोरियां से अधिक खरीदी होना पाया जाता है. ऐसे में यदि प्रति बोरी आर्द्रता के नाम पर एक किलो धान भी बचाई जाती है तो यह 160 हज़ार किलो धान अर्थात 1600 क्विटल धान की अतिरिक्त खरीदी होगी जो रिकॉर्ड में खरीदी गई धान में नही है. अब 1815 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से देखा जाय तो यह राशि 29 लाख 4 हज़ार रुपये बनती हैं. मतलब 29 लाख रुपये सीधे समिति प्रबंधक मात्र एक बार की धान की खरीदी में बचा रहा है. इसमे से 4 से 5 लाख रुपये तक शिकायतों पर जांच के नाम पर और कमीसन के नाम पर सहकारिता, फ़ूड विभाग और नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों को चली जाएगी. क्योंकि यह तो समझिए ही कि जब आम खरीदी केंद्रों की शिकायतें करेंगे तो जांच होगी फिर जांच के नाम पर हीलाहवाली के लिए ऊपर वालों को खिलाना पिलाना पड़ेगा. इस प्रकार का यह खेल आर्द्रता और अतिरिक्त खरीदी का हुआ. इसके अतिरिक्त लेबरों के लिए प्रति बोरी कम से कम 2 रुपये रखा जाए तो 160 हज़ार बोरी धान मतलब 3 लाख 20 हज़ार रुपये कम से कम हुआ. इससे साफ जाहिर है की लेबरों के लिए तो मजदूरी से भी अधिक तो 2 रुपये प्रति बोरी वाले मामले से ही निकल आया. शेष देखें की यह 5 लाख कम से कम प्रासंगिक व्यय वाली राशि का क्या होता है. यह राशि किसी भी प्रासंगिक व्यय में खर्च नही होती है यह सीधे समिति प्रबंधक और उनसे जुड़े खा जाते हैं.
अभी खेल खत्म नही हुआ, धान को खुले में क्यों रखते हैं?
अभी भ्रष्टाचार का खेल खत्म थोड़ी हुआ है. अभी भी कई सीन बांकी हैं. अब समझिए की धान को ट्रांसपोर्ट करने में देरी और खुले में रखने से क्या फायदा होता है?
यदि धान को जल्दी ट्रांसपोर्ट कर दिया जाता है अथवा खुले में न रखकर उसे ढककर अथवा गोदामो में रखा जाता है तो कोहरे, शीत और पानी की वजह से खरीदी गयी धान का वजन आटोमेटिक रूप से बढ़ जाता है जिससे जो धान 42 किलो प्रति बोरी के हिसाब से खरीदी गयी है वह बढ़कर 45 किलो तक हो जाती है क्योंकि पानी खाकर धान की वजन बढ़ जाती है. अब यह धान समिति प्रबंधक और खरीदी केंद्र प्रबंधक सीधे निकालकर बोरियों को खाली करके उन्ही से अन्य कई बोरियां बना डालते हैं यह उस 29 लाख में दुगुने से भी अधिक का कार्य करता है और भ्रष्टाचार की कमाई सीधे 29 लाख से बढ़कर करोड़ तक पहुच जाती है.
तो समझ आया पूरा मामला. कैसे बिना किसी मेहनत के मात्र खरीदी केंद्रों के प्रबंधक बनकर एक ही वर्ष में करोड़पति बन सकते हैं. कौन इसे देखेगा? कौन इसकी जांच करेगा? सबसे बड़ी बात कौन स्वार्थी किसान इसकी आवाज उठाएगा?
कुछ खरीदी केंद्रों में भ्रष्टाचार के पुख्ता उदाहरण
रीवा जिले के जिन जिन खरीदी केंद्रों में यह शोध किया गया और समस्या विशेष तौर पर किसानों से बातकर पूँछी गयी जिनके की काफी फ़ोटो और वीडियो उपलब्ध हैं उनमे से गंगेव ब्लॉक के हिनौती ए और बी, देवास ए और बी, भठवा, भमरिया, घुमा-कटरा, भीर-कोट, खर्रा-लौरी-गढ़ आदि प्रमुख हैं. यहां तो जमकर लूट मची है. अब सवाल यह है कि इसे कौन देखेगा। इस पर जांच कौन करेगा?
हज़ारों क्विंटल की परमिट वाले किसानों के भी काले कारनामे देखते चलें
जिन जिन समितियों और खरीदी केंद्रों की बातें की गईं हैं उनमे से सभी में ऐसे भी किसान हैं जिनकी सैकड़ों हेक्टेयर की जमीनें हैं. इसमे से काफी जमीन परती भी पड़ी हुई है जिसमे की कुछ बोया ही नही जाता लेकिन यह रसूखदार किसान पटवारी तहसीलदार से मिल बैठकर उस जमीन का हज़ारों क्विंटल की परमिट बनवा डालते हैं और बनिकों और व्यापारी वर्ग से संपर्क कर कमीसन पर वह धान भी अपने एकाउंट में डलवा लेते हैं. पूरे जिले और प्रदेश में देखा जाय तो हज़ारों ऐसे किसान हैं जो की व्यापारियों से मिलकर यह अवैध धंधा चला रहे हैं. यह सब सहकारिता, खाद्य विभाग और नागरिक आपूर्ति निगम की समिति प्रबंधकों से मिली भगत के चलते होता है. अब बताएं कौन इस संगठित अपराध और माफिया पर कार्यवाही करेगा?
संलग्न - कृपया संलग्न देखने का कष्ट करें खरीदी केंद्रों पर डंप पड़ी हुई शीत पानी खा रही धान और किसानों का समूहआदि की फ़ोटो शॉट.
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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587.
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