दिनांक 01 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा/भोपाल, मप्र
(शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)
वर्ष 2005 में भारत सरकार द्वारा देश में पारदर्शिता लाने, आम जनमानस को सरकारी कामकाजों की जानकारी आसानी से मुहैय्या हो सके, देश और समाज में भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके, लोक सेवक अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहें, और आम जनता भी अपने अधिकारों को अच्छे से समझकर उसका सदुपयोग कर सके इन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर आर टी आई अर्थात सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लाया गया था. सूचना का अधिकार हर भारतवासी का संवैधानिक अधिकार है. तब से लेकर अब तक और वर्ष 2015 में इसमे कुछ अमेंडमेंट भी हुए हैं.
आर टी आई अधिनियम में क्या क्या जानकारी माग सकते हैं
सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत देश प्रदेश की सरकारी काम काज और लोक सेवकों से संबंधित वह समस्त जानकारी माँगी और प्राप्त की जा सकती है जो आर टी आई की धारा 8 एवं 24 के तहत प्रतिबंधित न हो. जैसे देश की खुफिया जानकारी जिससे देश की सुरक्षा के संकट उत्पन्न हो जाएं, शाशकीय गुप्त बात अधिनियम 1923 के तहत छूट, अथवा अन्य इसी प्रकार की जानकारी देने का प्रावधान आर टी आई कानून में नही है. इसके अतिरिक्त लोक सेवकों और सरकार के काम काज बजट, राशि के आय व्यय, सरकारी कार्यों के विषय में उनके लेखे जोखे, उपलब्ध कागज़ात सभी की जानकारी आर टी आई कानून के तहत प्राप्त की जा सकती है.
कैसे फ़ाइल करते हैं आर टी आई आवेदन
आर टी आई आवेदन फ़ाइल करने का एक विशेष प्रोफार्मा होता है जिसके अन्तर्गत आप 10 रुपए के शासकीय शुल्क जिसमे आई पी ओ अथवा राज्य स्तरीय स्टाम्प शुल्क सम्मिलित है उसके साथ में एक धारा 6(1) के तहत आवेदन बनाकर संबंधित लोक सूचना अधिकारी के नाम भेज सकते हैं. यह हांथोहाथ भी दिया जा सकता था और पोस्ट के माध्यम से भी भेजा जा सकता है.
आर टी आई की प्रथम एवं द्वितीय अपील
जब चाही गई जानकारी प्रथम आर टी आई आवेदन पर अधिकतम 30 दिवश के भीतर उपलब्ध न करवाई जाए तो प्रथम अपील का प्रावधान होता है जो आर टी आई की धारा 19(1) के तहत की जाती है. इसमे आवेदन प्रोफार्मा के साथ अपीलकर्ता को 50 रुपये स्टाम्प शुल्क अथवा आई पी ओ के साथ अपील करना होता है. इसकी समयावधि 45 दिवश के भीतर होती है. यदि इस दरम्यान अपीलकर्ता को जानकारी संबंधित कार्यालय द्वारा उपलब्ध न करवाई जाए तो आवेदक को द्वितीय और अंतिम अपील के लिए जाना होता है
आरटीआई की धारा 19(3) के तहत दायर द्वितीय अपील दो तरह के कार्यालयों में भेजी जाती है. एक तो यदि प्रकरण या मूल आवेदन राज्यस्तरीय कार्यालयों और राज्य सरकार के कार्यालयों में भेजा गया था तो वह संबंधित राज्य के राज्य सूचना आयुक्त के नाम की जाती है, और यदि मूल आवेदन किसी केंद्रीय कार्यालय या केंद्रीय लोक सेवक के विरुद्ध दायर किया गया था तो उसमे केंद्रीय सूचना आयोग में आयुक्त के नाम पर अंतिम एवं द्वितीय अपील की जाती है.
अंतिम विकल्प हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट
यदि इतने में भी जानकारी अपीलकर्ता को उपलब्ध न हो तो वह संबंधित राज्य की उच्च न्यायालय में केस दायर कर सकता है और उसमे लोक सूचना अधिकारी से लेकर प्रथम अपीलीय अधिकारी एवं राज्य सूचना आयोग को पार्टी बना सकता है. हाई कोर्ट से भी रिलीफ न मिलने पर यही सब कुछ उच्चतम न्यायालय में भी दायर किया जा सकता है.
क्या है आर टी आई कानून की धारा 18
इसी बीच आवेदन से लेकर द्वितीय और अंतिम अपील के बीच की एक सीढ़ी है आर टी आई कानून की धारा 18. धारा 18 का प्रयोग आवेदक द्वारा शिकायत के रूप में किया जाता है. जब कभी लोक सूचना अधिकारी द्वारा आर टी आई आवेदक द्वारा चाही गई जानकारी छुपाने का प्रयास किया जाए, जानकारी के नाम पर घुमाया जाय, गलत जानकारी देकर आवेदक को भ्रमित किया जाय अथवा झूठी जानकारी दी जाय तब तब आवेदक संबंधित लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध संबंधित सूचना आयोग में धारा 18 का प्रयोग कर शिकायत भेज सकता है जिंसमे वह यह माग करेगा की संबंधित लोक सूचना अधिकारी द्वारा गलत जानकारी देना, जानकारी छुपाना अथवा भ्रमित करने का प्रयास किया गया अतः आर टी आई की धारा 20(1)/(2) के तहत अनुशासनात्मक और दंडात्मक कार्यवाही की माग के साथ अन्य जो उचित लगे वह कार्यवाही की माग कर सकता है. ऐसे में राज्य सूचना आयुक्त उक्त मामले को अपने संज्ञान में लेकर लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी के कार्यों को विधिविरुद्ध पाए जाने पर अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग कर धारा 18 के तहत धारा 20(1)/(2) का प्रयोग करते हुए अनुशासनात्मक एवं दंडात्मक कार्यवाही कर सकता है.
आर टी आई की धारा 18 सूचना आयोग का विशेषाधिकार की तरह है
वास्तव में आर टी आई की धारा 6(1), 19(1) अथवा 19(3) की पेचीदगी से भरी प्रक्रिया से गुजरने के साथ साथ धारा 18 की शक्तियां आर टी आई आवेदकों के लिए रामबाण साबित हो सकती हैं बशर्ते इसके प्रति आयोग भी गंभीर हो तब. लेकिन इन सबके मूल में राज्य सूचना आयोग की तत्परता ही है. यदि राज्य सूचना आयोग इसे गंभीरता से लेता है और त्वरित कार्यवाही करता है तब तो धारा 18 ठीक है वरना बहुत से ऐसे मामले होते हैं जो सूचना आयोग में वर्षों से धूल फांक रहे होते हैं. यहाँ तो द्वितीय अपील ही एंटरटेन नही की जाती हैं तो सामान्य धारा 18 के तहत शिकायतों की तो कोई गिनती ही नही हैं.
अपीलकर्ता शिवानन्द द्विवेदी बनाम मप्र शासन
अभी हाल ही में एक मामला आया जिंसमे रीवा मप्र में 75 पंचायतों के कराधान और 14वें वित्त आयोग की ग्रांट के उपयोग में अनियमितता प्रकाश में आयी. जिसके विषय में जिले के कई कार्यकर्ताओं द्वारा आवाज बुलंद की गई. उनमे से सामाजिक आर टी आई कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा भी जिला कलेक्टर रीवा के एक आदेश 2495 एवं 2498 को आधार बनाकर जिले की 75 पंचायतों जिनमे बहुतायत में 38 पंचायतें मात्र गंगेव जनपद में ही थीं जहां पर यह कराधान मामले में अनियमिता एवं भ्रष्टाचार प्रकाश में आया था इसी विषय पर अलग अलग दो लोक सूचना कार्यालयों पर आवेदन प्रस्तुत किया गया था जिनमे से दिनांक 24 एवं 25 सितंबर 2019 को क्रमशः लोक सूचना अधिकारी कार्यालय जनपद गंगेव एवं कार्यालय कलेक्टर को आर टी आई आवेदन देकर उक्त कलेक्टर द्वारा जारी पत्र पर जांच प्रतिवेदन की प्रमाणित प्रति अन्य संबंधित दस्तावेजों के साथ जजानकारी चाही गई थी.
दोनो ही पीआईओ ने किया गुमराह
गौरतलब है की दिनांक 03/10/2019 एवं दिनांक 14/10/2019 को क्रमशः जारी पत्रों क्र. 1247 एवं 176 के माध्यम से आर टी आई आवेदक शिवानन्द द्विवेदी को सीईओ कार्यालय गंगेव एवं कलेक्टर कार्यालय रीवा के लोक सूचना अधिकारियों द्वारा पल्ला झाड़ते हुए जानकारी छुपाने के उद्देश्य, आवेदक अपीलार्थी को भ्रमित करने के उद्देश्य से बताया गया की संबंधित जानकारी उनके कार्यालय में उपलब्ध नही है बल्कि अन्य कार्यालय में उपलब्ध है.
धारा 18 के तहत राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह को शिकायत
इस बीच आवेदक द्वारा ट्विटर सोशल मीडिया के माध्यम से राज्य सूचना आयुक्त और रीवा संभाग के प्रभारी आयुक्त श्री राहुल सिंह को संदेश भेजकर शिकायत की गई और एक मार्गदर्शन मागा गया जिंसमे यह कहा गया की चूंकि संबंधित दोनो लोक सूचना अधिकारियों ने जानकारी देने से मना कर दिया है और भ्रमित करने का प्रयाश किया है अतः इस स्थिति में आवेदक को पुनः नाहक ही प्रथम एवं द्वितीय अपील की पेचीदगी से गुजरते हुए वर्षों इंतज़ार करने पड़ सकते हैं जैसा की पहले भी होता आया है.
इस पर ट्विटर के माध्यम से राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा आवेदक को उनके ईमेल एड्रेस पर आर टी आई की विशेष धारा 18 का प्रयोग करते हुए शिकायत भेजे जाने की बात कही साथ ही प्रथम अपील भी करने की सलाह दी गई.
धारा 18 के तहत शिकायत पर हुई त्वरित कार्यवाही
आर टी आई की धारा 18 के तहत शिकायत दिनांक 08 नवंबर को अपीलार्थी द्वारा राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के ईमेल में की गई जिस पर दिनांक 29 नवंबर 2019 को ठीक 3 सप्ताह में एक्शन लेते हुए निराकरण किया गया जो अब तक के मप्र के राज्य सूचना आयोग में काफी त्वरित एक्शन के तौर पर माना जा रहा है.
क्यों न तीनो पीआईओ पर प्रति 11250 रुपये का जुर्माना लगाया जाए
रीवा जिले में लगभग 8 करोड़ के कराधान घोटाले के विषय में गंगेव जनपद एवं रीवा कलेक्टर कार्यालय द्वारा जानकारी छुपाने के प्रयाश पर एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी की दिनांक 08 नवंबर की शिकायत पर राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने काफी गंभीरता से लिया. जिंसमे उन्होंने तीनों लोक सूचना आधिकारी जनपद गंगेव, जिला पंचायत रीवा एवं कलेक्टर रीवा को आड़े हांथों लिया और आर टी आई की धारा 7, 6, 7 की उपधारा 8(1), (2), (3), एवं धारा 5(5) का दोषी पाया और धारा 20(1)/(2) की कार्यवाही करते हुए अपने आदेश क्रमांक/सी-0820/रासूआ/रीवा /2019 दिनांक 29/11/2019 के माध्यम से कारण बताओ नोटिस जारी किया और पूंछा की क्यों न प्रत्येक तीनों लोक सूचना अधिकारियों के विरुद्ध जुर्माने के तौर पर 11,250/- रुपये का जुर्माना लगाया जाए.
23 दिसंबर को तीनों लोक सूचना अधिकारियों की भोपाल में होगी पेशी
जुर्माने के आशय के साथ आदेश क्रमांक/सी-0820/रासूआ/रीवा /2019 दिनांक 29/11/2019 के माध्यम से कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने न केवल जुर्माने लगाने की नोटिस दी है बल्कि तीनों संबंधित लोक सूचना अधिकारियों जनपद पंचायत गंगेव, जिला पंचायत रीवा एवं साथ में संयुक्त कलेक्टर रीवा को 23 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से भोपाल में राज्य सूचना आयोग में हाजिर होने का आदेश दिया है.
क्या क्या कहा राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने
आदेश क्रमांक/सी-0820/रासूआ/रीवा /2019 दिनांक 29/11/2019 के माध्यम से कारण बताओ नोटिस के साथ राज्य सूचना आयुक्त ने काफी तल्ख टिप्पड़ी की है जिसमे उन्होंने कहा की लगता है कि सूचना न देने के लिए तीनों लोक सूचना कार्यालयों में मैच फिक्सिंग जैसी हुई है. क्योंकि जिस प्रकार से आवेदकों को घुमाया जा रहा था इससे साफ जाहिर था की लोक सेवकों की सूचना की पारदर्शिता के प्रति मंसा बहुत अच्छी नहीं लगती. सूचना आयुक्त ने इस आदेश में कहा की कराधान घोटाले के मामले में आवेदक द्वारा जो जानकारी चाही गई थी वह सीधे सीधे कलेक्टर के एक आदेश 2495 एवं 2498 से संबंधित है जो स्वयं कलेक्टर द्वारा 7 दिवश के भीतर कार्यवाही चाही गई थी. आवेदक ने वह जानकारी सात दिवश के बाद चाही अतः यह पीआईओ कलेक्टर कार्यालय की जिम्मेदारी बनती थी की वह जानकारी दे न की किसी दूसरे कार्यालय को अंतरित करे. इस विषय में माननीय सूचना आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का भी हवाला दिया जिसमे बताया की बेबजह आर टी आई आवेदन अंतरित कर लोक सूचना अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से बच नही सकते.
पीआईओ जिला पंचायत रीवा को पाया धारा 5(5) का दोषी
चूंकि मूल आर टी आई आवेदन पीआईओ कलेक्टर कार्यालय रीवा द्वारा पीआईओ जिला पंचायत रीवा को अंतरित किया गया था अतः यह पीआईओ जिला पंचायत रीवा की जिम्मेदारी बनती थी की वह आवेदक को 7 दिवश के भीतर जानकारी मुहैया कराने संबंधित लिखित पत्र जारी करे जिसमे पीआईओ जिला पंचायत स्वयं असफल साबित हुए और इस आशय का कोई पत्र और जानकारी आवेदक शिवानन्द द्विवेदी को उपलब्ध नही कराया जिसमे न केवल आवेदक के साथ धारा 7 की उपधारा 8(1), (2), (3) के दोषी पाए गए बल्कि कार्यालय कलेक्टर के अंतरित आर टी आई आवेदन का जबाब कलेक्टर को न देकर कलेक्टर के साथ असहयोग भी किया इसलिए असहयोग के चलते आर टी आई की धारा 5(5) के दोषी पाए गए. जिसके फलस्वरूप राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने पीआईओ जिला पंचायत के विरुद्ध अनुशासनात्मक दंडात्मक कार्यवाही करते हुए धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत कारण बताओं नोटिस जारी किया और कहा की क्यों न आपके भी विरुद्ध 11 हज़ार 250 रुपये का जुर्माना ठोका जाय.
पीआईओ गंगेव को पाया धारा 7(1) एवं उपधारा 8(1), (2), (3) का दोषी
इस बीच अपने पत्र में मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की गंगेव जनपद के लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदक अपीलार्थी शिवानन्द द्विवेदी को जानकारी न देकर, जानकारी छुपाने के प्रयाश करने और भ्रमित करने पर धारा 7(1) के दोषी हैं साथ ही युक्तियुक्त कारण नही बताकर एवं अपीलीय अधिकारी की जानकारी एवं संपर्क उपलब्ध न कराकर धारा 7 की उपधारा 8(1), (2), (3) के भी दोषी हैं. अतः क्यों न इनके विरुद्ध भी अनुशासनात्मक कार्यवाही करते हुए धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत 11 हज़ार 250 रुपये का जुर्माना लगाया जाय.
आयोग का अभिमत - जानकारी आपके पास नही तो हवा में कहां गायब हो गई
पत्र के अंत में आयोग ने अपना अभिमत प्रस्तुत करते हुए कहा की गुणदोष के आधार पर प्रथम दृष्टया लोक सूचना अधिकारियों द्वारा जारी पत्रों एवं अपीलकर्ता की शिकायत के अवलोकन उपरांत इस प्रकरण में स्पष्ट होता है की सूचना के अधिकार अधिनियम के विपरीत विधि विरुद्ध तरीके से लोक सूचना अधिकारियों द्वारा जानबूझकर जानकारी के नाम पर एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय के बीच घुमाया जा रहा है. सवाल यह है की कार्यालय कलेक्टर जिसके आदेश पर जांच शुरू हुई उसका कहना है की जानकारी उसके पास नही है. जिस कार्यालय को पीआईओ कलेक्टर द्वारा मूल आर टी आई आवेदन 6(3) के तहत अंतरित किया गया वह कह रहा है की जानकारी उसके पास भी नही है तो आखिर जानकारी हवा में कहां गायब हो गई.
ट्विटर में आयुक्त ने बताया पीआईओ के बीच मैच फिक्सिंग जैसा खेल
इस बीच ट्विटर पर की गई कार्यवाही की जानकारी देते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने काफी तल्ख टिप्पड़ी की और कहा ऐसे लगता है जैसे लोक सूचना अधिकारियों के बीच मैच फिक्सिंग जैसा चल रहा है जिसमे एक विभाग कह रहा है की जानकारी मेरे पास नही उनके पास है और उनके पास जाओ तो वह बोलते हैं मेरे पास नही तीसरे के पास जाओ. जब तीसरे के पास जाओ वह बोलते हैं पहले के पास जाओ. तो सवाल यह उठता है की मूल जांच का आदेश देने वाला कार्यालय कलेक्टर ही जब ऐसे गैर जिम्मेदाराना बर्ताव करेगा तो अन्य कार्यालयों का क्या कहना.
आर टी आई की धारा 18 की शक्तियों का प्रयोग लोकतंत्र के लिए अच्छा संदेश
आज जिस प्रकार से देश प्रदेश में लोक सूचना के अधिकार का मजाक बन चुका था उससे साफ जाहिर है आने वाले दिनों में आम जनता और आर टी आई कार्यकर्ताओं का लोक सूचना के अधिकार कानून से विश्वास उठता जा रहा है. ऐसे में मप्र के वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह एक आशा की किरण जैसे आये हैं जो न केवल सूचना आवेदनों और अपीलों का त्वरित निराकरण करने का हर संभव प्रयाश कर रहे हैं बल्कि मप्र में लोक सूचना के अधिकार का कैसे प्रचार किया जाए कैसे कार्यकर्ताओं में विश्वास पैदा किया जाय वह सभी जरूरी संभव प्रयास भी कर रहे हैं.
न केवल कार्यालयीन और कागज़ी तौर पर बल्कि सोशल मीडिया व्हाट्सएप एवं ट्विटर जैसे शसक्त आधुनिक सूचना माध्यमों का सहारा लेकर आवेदकों का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें आवश्यक जानकारी दे रहे हैं की वह कैसे और कहां अपील करें, कहां आर टी आई दाखिल करें, कैसे लोक सूचना अधिकारी के भ्रमित करने पर धारा 18 के तहत आयोग में शिकायत भेज सकते हैं आदि.
आवेदन से लेकर अपील तक थी दौड़, अब जानी धारा 18 की भी ताकत
पहले आर टी आई में मात्र आवेदन के बाद प्रथम और द्वितीय अपील तक ही ज्यादातर आवेदक सीमित रहते थे और उस पर भी इंतज़ार इतना लंबा होता था की आवेदक स्वयं थक हारकर परेशान हो जाते थे. अब जब धारा 18 के तहत लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध शिकायत पर भी त्वरित कार्यवाही हो रही है ऐसे में ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे लोकतंत्र में नई जान फूंकी जा रही है. अब देखना यह होगा की यह सिलसिला कब तक चलता है और सरकारें इस विषय में और कितने कदम उठा पाती हैं जिससे आरटीआई को और मजबूत और शसक्त बनाया जाए और जन जन तक सूचना पहुच सके और लोकतंत्र में पारदर्शिता आ सके.
वैसे यह कहना गलत नही होगा की फिलहाल तो मात्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह ही एकमात्र आशा की किरण हैं बांकी सूचना के मामले में देश की स्थिति तो सभी को स्पष्ट ही है.
संलग्न - कृपया संलग्न देखने का कष्ट करें राज्य सूचना आयुक्त महोदय श्री राहुल सिंह जी द्वारा धारा 18 की शिकायत पर की गई कार्यवाही की प्रतियां. साथ में राहुल सिंह जी की तस्वीरें. साथ में ट्विटर से स्क्रीनशॉट. आवेदक द्वारा धारा 18 के तहत भेजी गई शिकायत की पीडीएफ फ़ाइल आदि.
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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
ग्राम कैथा, पोस्ट अमिलिया, थाना गढ़, तहसील मनगवां,
1 comment:
Bahut badhiya jaankari
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