दिनांक 18 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा मप्र
लोकतांत्रिक परंपरा में वैचारिक अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक अंग होता है जिसके चलते हम अपनी बातों को समाज और शासन प्रशासन के समक्ष रखकर उसके विषय मे निष्कर्ष निकालते हैं।
आरटीआई एक्टिविस्ट कौन हैं? प्रश्न खड़ा करके देश की अपेक्स कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों ने यद्यपि इस विषय पर नयी चर्चा प्रारम्भ कर दिया है लेकिन इसके बाबजूद भी सही मायनों में आरटीआई एक्टिविस्ट अथवा सिविल एक्टिविस्ट होना अपने आप मे काफी चुनौतीपूर्ण और जिम्मेदारीपूर्ण कार्य है। माननीय जजों ने यद्यपि प्रश्न किया कि क्या यह कोई पेशा हो सकता है? निश्चित ही यह पेमेंट प्राप्त करने वाला पेशा भले ही न हो जिसमें की सरकार अथवा कोई कंपनी/संस्था किसी को काम के बदले पैसा पे करे लेकिन समाज के उद्धार, भ्रष्टाचार के निरोधन, पारदर्शिता लाने में मदद करने वाले जुनूनी लोगों के लिए यह किसी बिना पेमेंट वाले पेशे से बिल्कुल ही कम नहीं।
एक्टिविस्ट जुनूनी होते हैं
एक्टिविस्ट चाहे जो भी हों ज्यादातर जुनूनी होते हैं। एक्टिविस्टों को उस कार्य को पूरा करने का जुनून होता है। शायद माननीय लोग इसे न समझ पाएं क्योंकि उनकी कानून की किताबों में जुनून की परिभाषा हो अथवा न हो।
एक्टिविस्ट का कार्य असंभव को संभव करने जैसा होता है। जिसे कल तक समाज यह कहता है कि अरे छोड़ो यह तो हो ही नही सकता, समाज की नजरों में उसी कभी न हो सकने वाले कार्य को ही एक्टिविस्ट और जुनूनी सम्भव कर दिखाते हैं और फिर आने वाले भविष्य में वही असंभव सम्भव होकर नया नियम अथवा समाज का आधार बन जाता है। ऐसा ज्यादातर देखा गया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट होना चुनौतीपूर्ण
सभी प्रकार के एक्टिविस्ट की तरह आरटीआई एक्टिविस्ट होना भी काफी चुनौतीपूर्ण है। अपने जेब और मेहनत के पैसे से आरटीआई फ़ाइल करना, जबाब न मिलने पर उसकी प्रथम और द्वितीय अपील करना, शासन प्रशासन के साथ माफियाओं और समाज से लड़ना यह सब चुनौतीपूर्ण कार्य आरटीआई एक्टिविस्ट ही करते हैं।
माननीयों ने तो कह दिया कि आरटीआई एक्टिविस्ट ब्लैकमेलिंग के माध्यम हैं अथवा आरटीआई एक्टिविस्ट लिखना आपराधिक धमकी जैसा है पर आरटीआई एक्टिविस्ट माननीयों से अनुरोध करेंगे कि आप थोड़ा आरटीआई के लिए कार्य करने वाले एक्टिविस्टों की स्थिति और उनकी स्थिति पर भी गौर करें कि उन्हें कौन सी सुरक्षा और कौन सी तनख्वाह मिलती है।
एक्टिविस्टों का पारदर्शिता लाने में अभूतपूर्व सहयोग
शायद सरकार अथवा न्यायपालिका यदि अकेले ही देश, तंत्र और समाज मे पारदर्शिता ला पाती तो चौथे स्तंभ मीडिया की जरूरत ही न पड़ती। ठीक वैसे ही एक्टिविस्ट भी वही रोल आज समाज मे अदा कर रहे हैं। मीडिया की ही तरह अपनी जान जोखिम में डालकर समाज के उत्थान के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सिविल राइट्स एक्टिविस्ट, एनिमल राइट्स वर्कर सभी का कहीं न कहीं एक ही उद्देश्य होता है कि कैसे वह अपने दायित्यों को पूर्ण करते हुए समाज के बेहतरी सासन प्रशासन में जबाबदेही और पारदर्शिता के लिए कार्य करते रहें।
उच्चशिक्षित होते हैं बहुतायत एक्टिविस्ट
ज्यादातर एक्टिविस्ट अंगूठा और झोलाछाप न होकर काफी शिक्षित और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझने वाले होते हैं। कुछ तो हाई लेवल की शिक्षा दीक्षा प्राप्तकर जब सरकारी कामकाज और सामाजिक ढांचों में व्याप्त बुराइयों को देखते हैं तो वह समाज के लिए कुछ न कुछ अच्छा ठानकर कार्य करते हैं। कोई सामाजिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार देखकर सामाजिक कार्यकर्ता बन जाता है तो कोई बेजुबानों की दुर्दशा देख एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट बन जाता है। तो कोई प्रशासनिक और सरकारी क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार को देख आरटीआई के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर समाज के समक्ष भ्रष्टाचार उजागर करने में मदद करता है।
ऐसे महत्वपूर्ण और त्याग वाले कार्य करने के लिए कोई दमदार त्यागी व्यक्ति ही चाहिए होता है। यह न तो सबके बलबूते की बात है और न ही इसे हर कोई समझ ही सकता है। क्योंकि यदि कोई समझ पाता तो उच्चतम न्यायिक पदों पर बैठे हुए माननीय कभी भी एक जनरलाइज़्ड टिप्पणी नहीं करते। काश माननीय समझ पाते कि कितना मुश्किल है एक्टिविस्ट होना। कभी एक्टिविस्टों की जिंदगी में भी झांकने का प्रयाश होता तो शायद एक्टिविस्टों को धमकी देने वाला न समझा जाता।
एक्टिविस्ट के नाम का दुरुपयोग संभव
फिर ऐसा भी नही की सभी एक्टिविस्ट सामाजिक चिंतन वाले और अपनी जिम्मेदारियों को समझने वाले ही हों। यह बिल्कुल माना जा सकता है कि कई लोग आरटीआई एक्टिविस्टों का चोला पहनकर कुछ अनैतिक भी कर रहे हों पर उसके लिए शासन प्रशासन को देखने की जरूरत है। यदि ऐसे लोग हों तो उन विशेष लोगों के ऊपर यथोचित कार्यवाही की जा सकती है लेकिन इसके बदले में यह कह देना की सभी आरटीआई एक्टिविस्ट यदि अपने नाम के आगे टाइटल लगाएं वह अपराध है तो यह बात इस लोकतंत्र के लिए काफी दुःखद होगी।
सरकार पारदर्शिता लाएं, एक्टिविस्ट अपना काम छोड़ देंगे
शासन प्रशासन से एक ही माग है की वह अपने सरकारी कार्यों में पारदर्शिता लाये। पारदर्शिता इतनी की स्वच्छ जल जैसे जिसमे कुछ भी देखना हो, एक गिरा हुआ तिनका अथवा पत्थर का छोटा टुकड़ा तो वह स्पष्ट और दूर से ही दिख जाए तब मानेंगे की अब समाज मे एक्टिविस्टों की जरूरत नही है और फिर माननीयों की मंशा के अनुरूप एक्टिविस्ट लोग अपने कार्य से सन्यास ले सकेंगे।
पर जब तक समाज और सरकार के कार्यों में स्वयं ही प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है और सरकार का कार्य पानी जितना स्वच्छ नहीं होता तब तक अपनी संस्कृति, अपने अधिकारों, अपने आपको अस्तित्व में रखने के लिए, हमारे स्वयं के समाज मे जुड़े हुए अपने लोगों के साथ उनके दुःखों में साथ साथ खड़ा रहने के लिए उस समाज के कुछ अग्रणी लोगों की जरूरत पड़ती ही रहेगी अतः यह इस तंत्र की महती आवश्यकता ही है कि हम न चाहते हुए भी मजबूरन हमे एक्टिविस्ट बनना पड़ रहा है वरना किसे पड़ी थी एक्टिविस्ट बनने की। क्योंकि किसे नही अच्छी लगती शांतिप्रिय और बिना चकल्लस की जिंदगी।
एक्टिविस्टों की समस्या पर भी गौर करें माननीय कोर्ट
यह बात तो स्वयं माननीयों ने ही कह दिया है कि एक्टिविस्ट होना कोई पेशा नही है। पर क्या गैरसरकारी एक्टिविस्टों को सामान्य नागरिक के बराबर तो अधिकार कम से कम मिलें ही। आज इतने बड़े सिस्टम से, सरकार से, दंड से नौकरशाहों को कोई भय नहीं लग रहा है तो भला बिना विशेष अधिकार प्राप्त आरटीआई एक्टिविस्टों से आज शासन प्रशासन भला क्यों इतना भयभीत होने लगे? भय उसे लगता है जिसमे कोई कमी हो, गलती हो। अतः बेहतर यह होगा कि पूरे सिस्टम और सरकार को कई मोर्चों पर ज्यादा बेहतर और पारदर्शी बनाया जाए जिससे ऐसी कम स्थिति निर्मित हो जिसमें आरटीआई लगाकर जानकारी निकालना पड़े। सरकारों की स्वयं ही ज्यादा से ज्यादा ऐसी व्यवस्था हो जाएं कि अधिकतर कार्य पारदर्शी रहें जिससे न तो आम जनता परेशान हो और न ही शासन प्रशासन पर बैठे अधिकारी कर्मचारी।
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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र मोबाइल 9589152587
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