Tuesday, December 31, 2019

(Rewa, MP) पूर्वा 310 में ठंड में ही बांध दिए गए गोवंश (मामला जिला रीवा के गंगेव जनपद अन्तर्गत आने वाले पूर्वा 310 ग्राम पंचायत का जिंसमे की सरपंच अजय गुप्ता के द्वारा पिछले वर्षों की भांति मवेशियों को खुले में बांधकर छोड़ दिया गया, यद्यपि यदाकदा पैरा डाला जाता है लेकिन पानी और छाया की व्यवस्था का बना है अभाव, मवेशी ठंड में दे रहे जान)

दिनांक 31 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा मप्र

  जैसे ही आप नए ईसवी वर्ष 2020 के आगोश में समा रहे होंगे शायद ही आपको पता होगा की मांसाहारी समाज के लिए कितनो जीवों को इस जश्न के लिए बलि चढ़ाया जा रहा होगा. विश्व की 8 अरब को छूती आबादी में से मात्र 5 प्रतिशत से भी कम आबादी शुद्ध शाकाहारी हो सकती है इसमें से यद्यपि अन्य 10 प्रतिशत के आसपास की आबादी शायद बीफ यानी गोवंश और भैंस -भैसों की मांस न खाती हो फिर भी विश्व की 85 प्रतिशत के आसपास की आवादी अभी भी ऐसी हो सकती है जो बीफ का सेवन करती है.

एशिया समेत यूरोप अमेरिका अफ्रीका और अरब देश बीफ पर आश्रित

  बताते चलें की एशिया समेत विश्व के बड़े महाद्वीपों जैसे ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अरब देश और अफ्रीका यह सब देश ऐसे हैं जहां हिन्दू अथवा अन्य शाकाहारी भोजन को मान्यता देने वाले सम्प्रदाय के लोग कम ही रहते हैं. ऐसे में यहां पाए जाने वाले बहुतायत लोग बीफ अर्थात गोवंशों के मांस, बहिंसों के मांस और पोर्क अर्थात सुअर के मांस को खाना प्रेफर करते हैं. कारण यह अपनी संस्कृति बताते हैं और साथ में ठंडा क्लाइमेट का होना बताते हैं. लेकिंन सच्चाई यह है की इनकी संस्कृति ही पूरी इस प्रकार से मांसाहारी किश्म की है जो शायद ही पुराने सनातन धर्म को मानने वाले और जैन धर्म को मानने वालों को राश आये.

  गंगेव के पूर्वा 310 में भी सड़क के किनारे बांधा है गोवंशों को

   गंगेव निवासी सामाजिक कार्यकर्ता धीरेंद्र शेखर पांडेय द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चला की गंगेव से पूर्व की तरफ देवतालाब की तरफ जाने वाली सड़क के किनारे पुरवा 310 ग्राम पंचायत सरपंच द्वारा पूर्व की भांति इस वर्ष भी बिना किसी समुचित व्यवस्था के ही सड़क के किनारे रस्सी में बांधकर पशुओं को छोड़ दिया गया है. किसी प्रकार की छाया की व्यवस्था न होने से हाड़ गला देने वाली ठंड में पशु तड़प कर जान दे रहे हैं. यद्यपि लोगों ने बताया की पशुओं को खाने के लिए धान के पैरे की व्यवस्था समय समय पर की जाती है जिससे उनको खाने के लिए कुछ मिल पा रहा है. लोगों ने माग की है की इन्हों ठंड से बचाव के लिए भी शेड की व्यवस्था की जाए साथ में इनको समय समय पर पीने के पानी की भी व्यवस्था की जाय. लोगों ने माग की है की जल्द से जल्द गोशालाओं का कार्य समाप्त कर इसमे पशुओं के लिए व्यवस्था की जाय.

  गोशालाओं का कार्य अभी भी अधूरा

  बता दें की मप्र शासन की तरफ से प्रदेश में बनाई जाने वाली 900 गोशालाओं का कार्य अभी भी पूरा नही होने के चलते जगह जगह पशु क्रूरता का शिकार हो रहे हैं.
   इस विषय में बता दें की किसानों और पशु पलकों द्वारा बेसहारा छोड़ दिए गए गोवंशों को कोई ठिकाना नही मिलने से यह बेसहारा पशु जब भ्रमण करते हुए चारा पानी की तलास में खेतों में पहुचते हैं तो किसानों की खड़ी फसल को नुकासन पहुचा देते हैं जिससे क्रोधित होकर यह किसान न आव देखते न ताव बस झुंड के झुंड मवेशियों को पकड़कर तार की बाड़ियों में कैद कर देते हैं जिंसमे न तो समुचित छाया की व्यवस्था होती है और न ही चारा पैरा और पानी की व्यवस्था जिससे पशु तड़प कर जान दे देते हैं. 
  किसानों और गोवंशों दोनो का जीवन संकट

    इस प्रकार की पशु क्रूरता की घटनाएं आमतौर पर फसल के सीजन में ज्यादा देखने को मिल रही है. अब जब इस समय किसानों ने गेहूं और अन्य फसलों की बोवनी की हुई है वह उसको रात रात भर ठंड में सींचकर उगा रहे हैं ऐसे में स्वाभाविक है की जब यह बेसहारा गोवंश खेतों को नुकसान पहुचाते हैं तो किसान को गुस्सा आ जाता है. गुस्से में किसान अनर्थ कर डालते हैं. आज इसके लिए यदि कोई सबसे अधिक जिम्मेदार है तो वह हैं पशुपालक. क्योंकि पशुपालक गॉयों को तब तक रखते हैं जब तक वह दूध दे रही होती हैं और जैसे ही गायें दूध देना बन्द कीं अथवा उनके बछड़े पैदा हुए वैसे ही वह उन्हें छोड़कर फुरसत हो जाते हैं जिसका खामियाजा किसानों को बेसहारा पशुओं को भुगतना पड़ रहा है.

 हर जनपदों में बनेगी अतिरिक्त 12 गोशालाएं

   बता दें की मध्य प्रदेश के हर जनपद में इन 900 गोशालाओं के अतिरिक्त भी अन्य 12 नयी गोशालाओं को बनाये जाने का प्रावधान बन चुका है जिसके सिलसिले में पशु चिकित्सा विभाग से प्राप्त जानकारी अनुसार सभी ऐसी ग्राम पंचायतों को चिन्हित कर उनसे जानकारी माँगी जा रही है. इस जानकारी में ग्राम सभा का प्रस्ताव, सरकारी 6 एकड़ की खाली पड़ी जमीन प्रमुख है. यह जानकारी संबंधित ब्लॉक सीईओ के माध्यम से पशु चिकित्सा विभाग को प्रेषित किया जाना है जहां इसका निर्धारण होगा की किन 12 पंचायतों का चयन किया जाय. यद्यपि पशु चिकित्सा विभाग द्वारा यह भी जानकारी मिली है की अब सरकार हर ग्राम पंचायत से यह जानकारी माग रही है जिससे भविष्य में ऐसी समस्त ग्राम पंचायतों को इन कार्ययोजना में सम्मिलित किया जा सके. अब देखना यह होगा की पहले प्रथम चरण में निर्माणाधीन 900 गोशालाएं कब तक पूर्ण हो पाती हैं.
  संलग्न  - कृपया संलग्न देखने का कष्ट करें खुले में रखे हुए मवेशी जो बिना किसी समुचित व्यवस्था के ही हैं.

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता 
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

Monday, December 30, 2019

(MP News) काल बनकर आई ठंड ले रही गोवंशों की जान (मामला जिले और प्रदेश में गोवंशों की स्थिति पर जहाँ भीषण ठंड में अवैध बाड़ो में कैद मवेशी मर रहे बेमौत, किसान और गोवंश दोनो की स्थिति हुई दयनीय, 1000 गोशालाओं का सपना अभी भी अधूरा)

दिनांक 30 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा मप्र

   प्रदेश में निर्माणाधीन 900 सरकारी गोशालाओं का कार्य पूरा न होने से गोवंशों की स्थिति दयनीय बनी हुई है.
   जगह जगह बेसहारा मवेशी दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं, अवैध बाड़ो में चारा पानी, छाया बिना दम तोड़ रहे हैं तो कहीं नहरों घाटियों और जलप्रपातों में जीवित ही झुंडों में फेंके जा रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे घोर कलयुग आ चुका है जब गोवंशों को पूरी तरह से समाज से बहिष्कृत किया जा चुका है. 

  खा रहे लाठी डंडे, कुल्हाड़ी से हो रहा स्वागत

   गोवंशों को यत्रतत्र क्रूरता का शिकार होना पड़ रहा है. अवैध बांडे तो आज आम बात हो चुके हैं, इसके साथ साथ गोवंशों को धारदार हथियारों से नुकसान पहुचाया जा रहा है. उनके पैरों और मुह जीभ को भी निर्दयी लोग तार से बांध देते हैं जिससे खानापानी न ले पाने के चलते मर जाते हैं. घाव में कीड़े पड़ जाते हैं जिससे उनकी मौत हो जाती है. लाठी डंडे कुल्हाड़ी से पैर और शरीर में घाव कर दिया जाता है. यह वाकया आजकल आम हो चला है. ऐसा लगता है जैसे मानवता समाप्त हो चुकी है.

 जगह जगह हो रहे दुर्घटना का शिकार 

  मवेशी सड़कों में भी झुंड लगाकर बैठ जाते हैं जिससे आने जाने वाले वाहनों से टकराकर भी दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं. यह एक बड़ी समस्या है. अमूमन वाहनों की गर्मी और प्रकाश के चलते मवेशी सड़कों पर आ जाते हैं जिससे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.

  अवैध बाड़ो का लग गया अंबार

   फसल नुकसानी को बचाने के लिए किसान अवैध तरीके से बाड़ो का निर्माण करते हैं जहां न तो समुचित छाया की व्यवस्था होती है और न ही पानी भूषा की व्यवस्था, जिसके चलते मवेशी अवैध बाड़ो में मरने लगते हैं. यह एक बड़ी समस्या है जिसको देखने वाला कोई नही है. इन बाड़ो में ठंड के मौसम में सबसे अधिक तकलीफ का सामना करना पड़ता है क्योंकि न तो इनके खाने के लिए कुछ होता है और न ही छाया होती है.

  नहरों में फेंक रहे जीवित गोवंशों को

   बकिया बराज नहर और उसके आसपास के ग्रामों से लगे क्षेत्र में निर्दयी तत्व मवेशियों को लाकर नहरों में धकेल देते हैं जिसके कारण 40 से 50 फीट गहरी नहर से बाहर न आ पाने के कारण यह मवेशी झुंड में वहीं नहर के बीचोंबीच ठंड और भूंख से तड़प कर मर जाते हैं. रीवा के टीएचपी और चचाई पावर प्लांट में लगे छन्ने में प्रतिदिन ऐसे दर्जनों मृत मवेशियों को देखा जा सकता है.
  सरकार तो बस वादा करती है

   जहां तक गोवंशों के प्रति दया की बात है तो सरकार से दया की अपेक्षा करना ही बेमानी है क्योंकि आज दया होती तो शायद भारत विश्व के सबसे अग्रणी बीफ या गोमांश उत्पादक देशों की श्रेणी में नही होता. पर फिर भी यदि सरकार के वादे की बात करें तो कम से कम मप्र सरकार को तो 1000 गोशालाओं को पूर्ण कर ही देना चाहिए था मगर अब तक गोशालाओं का निर्माण कार्य अधर में लटके रहने के कारण हालात यह हैं की न तो किसान खुश है और न ही गोवंशों को राहत है. दोनो का ही जीवन संकट बरकरार है.
  गांव गांव बने गोशालाएं

   वास्तव में देखा जाए तो आज एक ब्लॉक में मात्र 3 या 4 गोशालाएं बनाने से कुछ खास नही होने वाला है क्योंकि जिस तरह से गोवंशों का झुंड बेसहारा गांव गांव घूम रहा है इससे साफ जाहिर है की यहाँ गांव गांव गोशालाएं बनाये जाने की आवश्यकता है.
  हर ब्लॉक में 12 अन्य गोशालाएं बनेगी

  अभी हाल ही में मप्र सरकार द्वारा पुनः एकबार हर एक ब्लॉक में 12 अन्य गोशालाएं खोले जाने सम्बन्धी प्रपोजल लांच किया गया है जिसमे संबंधित पंचायतों से जानकारी माँगी जा रही है. जिसके तहत हर एक ऐसी पंचायतों से ग्राम सभा का प्रस्ताव मंगवाया गया है और साथ में उन सभी पंचायतों से जमीन के कागजात भी चाहे गए हैं. बताया गया है की जिन पंचायतों को गोशालाएं चाहिए उन्हें कम से से 6 एकड़ जमीन देनी पड़ेगी.
  हिनौती गोशाला का काम अधूरा

   गंगेव ब्लॉक की हिनौती ग्राम पंचायत अन्तर्गत आने वाली गदही ग्राम की निर्माणाधीन 27 लाख और 62 हजार की लागत से बनाई जा रही गोशाला का कार्य अभी भी अधूरा है. दिनांक 30 दिसंबर 2019 की स्थिति में हिनौती गोशाला मात्र दीवाल स्तर तक ही पूर्ण हो पायी है. वहां पर उपस्थित रोजगार सहायक प्रकाश उपाध्याय ने बताया की 5 जनवरी 2020 को गोशाला का लोकार्पण किया जाना है इसके संबंध में अभी हाल ही में जिला पंचायत सीईओ अर्पित वर्मा द्वारा नईगढ़ी ब्लॉक में विजिट के दौरान सभी जनपद सीईओ को कारण बताओं नोटिस भी जारी की जा चुकी है. अब देखना यह होगा की कारण बताओ नोटिस का कोई प्रभाव पड़ता है की नही. ज्ञातव्य है कि पूरे जिले में प्रथम फेज में 33 गोशालाए बनाई जानी हैं जबकि पूरे प्रदेश में इनकी संख्या 900 के पार जानी है।
  संलग्न -  सड़कों और बाड़ो में अपनी मौत की बारी का इंतजार करते गोवंश.

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

Sunday, December 29, 2019

(MP news) खरीदी केंद्र बने भ्रष्टाचार के केंद्र, खरीदी केंद्रों में मची है लूट, 42 किलो तक हो रही तुलाई, किसानों ने किया कार्यवाही की मांग, कार्यवाही नहीं हुई तो होगा आंदोलन (मामला जिले के धान खरीदी का जहाँ आर्द्रता और अन्य चार्ज के नामपर चल रही है लुटाई, हिनौती, गंगेव, देवास, त्योंथर, जवा आदि खरीदी केंद्रों भी शामिल)

दिनांक 29 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा मप्र

    जिले के खरीदी केंद्रों में किसानों की लुटाई अनवरत जारी है. शिकायतों और मीडिया के बाबजूद भी खरीदी केंद्र प्रबंधकों और उनके दलालों पर कोई विशेष प्रभाव नही पड़ रहा है.

   एक तो पूरे जिले और संभाग में खरीदी लेट प्रारम्भ हुई वहीं ऊपर से किसानों पर ठंडी का भी सितम जारी है. ऐसे में अन्नदाता अपनी धान ट्रेक्टर में लादकर जगह जगह की ठोकर खाने पर मजबूर है जिसको देखने वाला कोई शासन प्रशासन नही है.


   वजन से अधिक हो रही तुलाई

   बता दें की जिले अथवा संभाग का शायद ही कोई ऐसा खरीदी केंद्र हो जहाँ प्रति बोरी धान की तुलाई वास्तविक वजन से अधिक न हो रही हो. आमतौर पर खाली बोरी का वजन 500 से 600 ग्राम माना जाता है ऐसे में प्रति बोरी सहित धान का वजन 40 किलो 600 ग्राम तक होता है लेकिन खरीदी केंद्रों में बैठे दलाल और प्रबंधक किसानों से 41 से 45 किलो तक वजन की धान ले रहे हैं. जो किसान इसका विरोध करते हैं उनकी तुलाई ही नही की जाती और वापस कर दिया जाता है.


आर्द्रता के नाम पर मची है लूट

  किसानों से आर्द्रता के नाम पर लूट की जा रही है. वैसे सामान्यतौर पर धान की आर्द्रता 17 पॉइंट तक होती है और यदि 17 से अधिक की आर्द्रता हुई तो धान नही ली जाती. लेकिन जिन किसानों की आर्द्रता 17 से अधिक होती है उनसे अतिरिक्त धान तुलाई की जाती है साथ ही उनसे पैसे भी लिए जाते हैं. 17 से अधिक आर्द्रता वाले किसानों से 42 किलो तक धान ली जाती है.


धान भराई और तुलाई के नाम पर लुटाई

  इसी प्रकार सभी समितियों और खरीदी केंद्रों में धान भराई और तुलाई के नाम पर भी लूट मची हुई है. बता दें की यह नागरिक आपूर्ति निगम खाद्य विभाग और सहकारिता विभाग की जिम्मेदारी होती है वह अपने लेबरों और तुलावटी को खरीदी केंद्रों पर रखे क्योंकि शासन इसके वास्ते प्रबंधकों को अलग से पैसे देती है लेकिन समस्या बताकर किसानों से प्रति बोरी 5 से 10 रुपये तक लिया जाता है. आमतौर पर यह सभी खरीदी केंद्रों में देखा जा सकता है।


प्रासंगिक व्यय की राशि में भी धांधली

  इसी प्रकार सभी समितियों के खरीदी केंद्रों में शासन द्वारा तुलाई, भराई, बोरे की सिलाई, उठाई, लदाई के नाम पर, किसानों के लिए खरीदी केंद्रों पर व्यवस्था के लिए एवं खरीदी गयी धान की सुरक्षा के लिए अमूमन 5 से 10 लाख के बीच की राशि दी जाती जो सीधे समितियों से सम्बद्ध रहती है लेकिन चूंकि यह देखा जा सकता है की किसी भी खरीदी केंद्र में न तो उचित छाया टेंट की व्यवस्था होती है और न ही अन्य किसी प्रकार की सुविधा होती है. जहाँ तक सवाल धान का है तो वह खुले आसमान के नीचे पड़ी सड़ती रहती है तो साफ जाहिर है की यह प्रासंगिक व्यय राशि का सीधा सीधा घालमेल कर दिया जाता है और संबंधित समिति खरीदी केंद्रों के मालिक मिलकर इसको भी चट कर जाते हैं.


खरीदी में ऐसे चलता है करोड़ो के भ्रष्टाचार का खेल

  अब आइए समझते हैं की खरीदी केंद्रों में धान गेहूं तुलाई का खेल किस कदर करोड़ो के भ्रष्टाचार का रूप ले लेता है. मानाकि हिनौती खरीदी केंद्र का उदाहरण लेते हैं पर यह सिस्टम सभी खरीदी केंद्रों में लागू होता है. हिनौती ए एवं बी खरीदी केंद्रों के नाम से चल रहे भमरिया और भठवा खरीदी केंद्रों में कुल मिलाकर 80 हजार क्विंटल धान खरीदी की लिमिट का प्रावधान है. 

   ऐसे में यदि ऊपर के सिस्टम से देखा जाय तो यदि 80 हज़ार क्विंटल का दुगुना किया जाए तो 160 हज़ार बोरियां से अधिक खरीदी होना पाया जाता है. ऐसे में यदि प्रति बोरी आर्द्रता के नाम पर एक किलो धान भी बचाई जाती है तो यह 160 हज़ार किलो धान अर्थात 1600 क्विटल धान की अतिरिक्त खरीदी होगी जो रिकॉर्ड में खरीदी गई धान में नही है. अब 1815 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से देखा जाय तो यह राशि 29 लाख 4 हज़ार रुपये बनती हैं. मतलब 29 लाख रुपये सीधे समिति प्रबंधक मात्र एक बार की धान की खरीदी में बचा रहा है. इसमे से 4 से 5 लाख रुपये तक शिकायतों पर जांच के नाम पर और कमीसन के नाम पर सहकारिता, फ़ूड विभाग और नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों को चली जाएगी. क्योंकि यह तो समझिए ही कि जब आम खरीदी केंद्रों की शिकायतें करेंगे तो जांच होगी फिर जांच के नाम पर हीलाहवाली के लिए ऊपर वालों को खिलाना पिलाना पड़ेगा. इस प्रकार का यह खेल आर्द्रता और अतिरिक्त खरीदी का हुआ. इसके अतिरिक्त लेबरों के लिए प्रति बोरी कम से कम 2 रुपये रखा जाए तो 160 हज़ार बोरी धान मतलब 3 लाख 20 हज़ार रुपये कम से कम हुआ. इससे साफ जाहिर है की लेबरों के लिए तो मजदूरी से भी अधिक तो 2 रुपये प्रति बोरी वाले मामले से ही निकल आया. शेष देखें की यह 5 लाख कम से कम प्रासंगिक व्यय वाली राशि का क्या होता है. यह राशि किसी भी प्रासंगिक व्यय में खर्च नही होती है यह सीधे समिति प्रबंधक और उनसे जुड़े खा जाते हैं. 


अभी खेल खत्म नही हुआ, धान को खुले में क्यों रखते हैं?

   अभी भ्रष्टाचार का खेल खत्म थोड़ी हुआ है. अभी भी कई सीन बांकी हैं. अब समझिए की धान को ट्रांसपोर्ट करने में देरी और खुले में रखने से क्या फायदा होता है? 

   यदि धान को जल्दी ट्रांसपोर्ट कर दिया जाता है अथवा खुले में न रखकर उसे ढककर अथवा गोदामो में रखा जाता है तो कोहरे, शीत और पानी की वजह से खरीदी गयी धान का वजन आटोमेटिक रूप से बढ़ जाता है जिससे जो धान 42 किलो प्रति बोरी के हिसाब से खरीदी गयी है वह बढ़कर 45 किलो तक हो जाती है क्योंकि पानी खाकर धान की वजन बढ़ जाती है. अब यह धान समिति प्रबंधक और खरीदी केंद्र प्रबंधक सीधे निकालकर बोरियों को खाली करके उन्ही से अन्य कई बोरियां बना डालते हैं यह उस 29 लाख में दुगुने से भी अधिक का कार्य करता है और भ्रष्टाचार की कमाई सीधे 29 लाख से बढ़कर करोड़ तक पहुच जाती है.

  तो समझ आया पूरा मामला. कैसे बिना किसी मेहनत के मात्र खरीदी केंद्रों के प्रबंधक बनकर एक ही वर्ष में करोड़पति बन सकते हैं. कौन इसे देखेगा? कौन इसकी जांच करेगा? सबसे बड़ी बात कौन स्वार्थी किसान इसकी आवाज उठाएगा?


  कुछ खरीदी केंद्रों में भ्रष्टाचार के पुख्ता उदाहरण

  रीवा जिले के जिन जिन खरीदी केंद्रों में यह शोध किया गया और समस्या विशेष तौर पर किसानों से बातकर पूँछी गयी जिनके की काफी फ़ोटो और वीडियो उपलब्ध हैं उनमे से गंगेव ब्लॉक के हिनौती ए और बी, देवास ए और बी, भठवा, भमरिया, घुमा-कटरा, भीर-कोट, खर्रा-लौरी-गढ़ आदि प्रमुख हैं. यहां तो जमकर लूट मची है. अब सवाल यह है कि इसे कौन देखेगा। इस पर जांच कौन करेगा?


  हज़ारों क्विंटल की परमिट वाले किसानों के भी काले कारनामे देखते चलें

   जिन जिन समितियों और खरीदी केंद्रों की बातें की गईं हैं उनमे से सभी में ऐसे भी किसान हैं जिनकी सैकड़ों हेक्टेयर की जमीनें हैं. इसमे से काफी जमीन परती भी पड़ी हुई है जिसमे की कुछ बोया ही नही जाता लेकिन यह रसूखदार किसान पटवारी तहसीलदार से मिल बैठकर उस जमीन का हज़ारों क्विंटल की परमिट बनवा डालते हैं और बनिकों और व्यापारी वर्ग से संपर्क कर कमीसन पर वह धान भी अपने एकाउंट में डलवा लेते हैं. पूरे जिले और प्रदेश में देखा जाय तो हज़ारों ऐसे किसान हैं जो की व्यापारियों से मिलकर यह अवैध धंधा चला रहे हैं. यह सब सहकारिता, खाद्य विभाग और नागरिक आपूर्ति निगम की समिति प्रबंधकों से मिली भगत के चलते होता है. अब बताएं कौन इस संगठित अपराध और माफिया पर कार्यवाही करेगा?


संलग्न - कृपया संलग्न देखने का कष्ट करें खरीदी केंद्रों पर डंप पड़ी हुई शीत पानी खा रही धान और किसानों का समूहआदि की फ़ोटो शॉट.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587.

Saturday, December 21, 2019

(Rewa, MP) धान खरीदी में घपला, किसानों से ले रहे 41 किलो से अधिक धान, पूंछने पर आर्द्रता का बता रहे कारण (मामला जिले के खरीदी केंद्रों का जहां किसानों का जमकर चल रहा शोषण, 40 किलो 600 ग्राम से अधिक की की जा रही खरीदी, किसान परेशान कोई नही सुन रहा किसानों की समस्या)

दिनाँक 21 दिसंबर 2019, स्थान - गढ़/कोट/भठवा, रीवा मप्र

     खरीफ धान की खरीदी के साथ ही खरीदी केंद्रों में धांधली और अव्यवस्था भी फैल चुकी है. आर्द्रता और कंडों रोग के नाम पर किसानों को जमकर लूटा जा रहा है. किसान आवाज उठा रहे हैं लेकिन कोई अधिकारी सुनने को तैयार नही है.

  आर्द्रता बताकर ले रहे ज्यादा धान

    जब किसान खरीदी केंद्रों पर जाते हैं तो उन्हें बताया जाता की है की आपकी धान अभी गीली है अतः आपको ज्यादा देनी पड़ेगी. किसानों का कहना है की हमारी धान 15 से 18 के बीच में आर्द्रता टेस्ट में रहती है. 95 प्रतिशत धान 17 पॉइंट आर्द्रता के भीतर रहती है फिर भी उनसे बोरी और बारदाना की वजन के नाम पर ज्यादा धान ली जा रही है. बताया गया की एक बोरी में मात्र 40 किलो और 600 ग्राम भरे जाने का प्रावधान है जबकि इसका भराव ज्यादा किया जा रहा है. कई किसानों ने बताया की उनसे 41 से 42 किलो के बीच में धान ली जा रही है.

  सैंपल के नाम पर हिनौती समिति में चल रही लुटाई

   गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले हिनौती ए और बी दोनो ही खरीदी केंद्रों में सैंपल लिए जा रहे हैं. खरीदी केंद्र प्रबंधक राजेन्द्र सिंह एवं वर्कर कोटेदारों द्वारा बताया गया की यह सैंपल तीन भागों में में रखा जाता है. जबकि खाद्य विभाग में फ़ूड कंट्रोलर राजेन्द्र सिंह ठाकुर और गंगेव फ़ूड इंस्पेक्टर गौरी मिश्रा से पूंछने पर पता चला की सैंपल जैसी कोई बात नही है. सैंपल लेकर उसकी आर्द्रता देखी जाती है और इसके बाद उसे किसान को वापस कर दिया जाता है. जबकि हिनौती खरीदी केंद्रों में पॉलीथिन में प्रति किसान तीन किलो धान लेकर पता नही कहां रखा जाता है. कुछ लोगों ने बताया की सैंपल वैम्पल कुछ नही रहता है रात के अंधेरे में एकत्रित की गई धान को बोरी में भरकर किसी चमचे वाले किसान के खाते में डाल दिया जाता है जिससे किसानों को पता भी नही चल पाता कि क्या घालमेल है. वैसे यह कोई नई प्रथा नही है और पुराना पैसा कमाने का जरिया है सब.

  कोटेदार यहां भी किसानों को नही बख्शते

  बताया गया की जिले के ज्यादातर खरीदी केंद्र कोटेदारों के हवाले रहता है. यही कोटेदार खरीदी में समिति प्रबंधकों की मदद करते हैं. सामान्यतया नपाई तुलाई में जो सिस्टम इनका कोटों में रहता है वही खरीदी केंद्रों में भी रहता है. यहां भी कांटों के माध्यम से भी किसानों की लूट हो रही है. किसान यदि बोलते हैं तो उनकी धान को वापस कर देने और पैसे रोकने की धमकी दी जाती है. किसानों ने इसकी सख्त जांच की माग की है.

  प्रासंगिक व्यय के नाम पर भी लूट

   मात्र नपाई तुलाई तक ही बात नही रह जाती. यदि देखा जाय तो लुटाई काफी आगे तक है. बता दें की प्रत्येक खरीदी केंद्रों को बारदाने की सिलाई, ढुलाई, एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने लेबर चार्ज, किसानों को छाया उपलब्ध कराने, जनरेटर, शेड, बिजली पानी की व्यवस्था करने, उचित रेट पर भोजन चाय की व्यवस्था करने आदि के लिए प्रासंगिक व्यय के नाम से राशि प्रत्येक समिति के खरीदी केंद्रों में सरकार द्वारा भेजी जाती है जो लाखों में होती है लेकिन उसका कोई उपयोग नही किया जाता सब समिति प्रबंधक और खरीदी केंद्र प्रबंधक अपने पास रखकर हजम कर लेता है जिसकी जांच की माग भी किसानों ने की है.

  किसानों से प्रति बोरी 5 से 10 रुपये एक्स्ट्रा

   बात यहीं आकर नही रुकती बताया गया की जब किसान ट्रेक्टर में धान लेकर खरीदी केंद्रों पर जाते हैं तो उनको बताया जाता है की या की खुद तौल कराओ नही तो एक्स्ट्रा 5 से लेकर 10 रुपये प्रति बोरी तक चार्ज दो. किसान यदि यह राशि देने से मना करता है तब उसकी धान वापस कर दी जाती है. जबकि इस विषय में जब खाद्य विभाग से जानकारी चाही गई तो खाद्य नियंत्रक राजेन्द्र सिंह ठाकुर द्वारा बताया गया की ऐसी कोई राशि किसानों को देने की जरूरत नही है. क्योंकि किसान से कोई राशि वसूली नही जाएगी और जहां भी ऐसा हो रहा है वह गलत है. तुलावटी और नापतोल करने वाले लेबरों को पहले से ही खरीदी केंद्रों द्वारा सरकार के व्यय से राशि दी जाती है. 

 खरीदी केंद्रों पर डंप पड़ी है धान, उठाव नही

   बता दें कुछ खरीदी केंद्रों में अभी भी दर्जनों ट्रक धान डंप पड़ी हुई है जिसकी खरीदी के बाद उठाव नही हो पाया है. वैसे भी मौसम काफी खराब चल रहा है ऐसे में पता नही कब इंद्र देव का मूड बिगड़ जाए और किसानों से 17 की आर्द्रता की कहकर खरीदी गई धान 50 पॉइंट की आर्द्रता हो जाए.

   धान सड़ाने और भींगाने से प्रबंधकों को होता है लाभ

   बता दें की धान सड़ाने का भी एक फंडा होता है. जानकार सूत्रों ने बताया की जब धान खरीदी 17 और उसके नीचे की आर्द्रता में की जाती है तब उसमे ज्यादा मात्रा चढ़ती है पर जैसे ही शीत अथवा पानी गिरने से धान भीग जाएगी तो स्वाभाविक रूप से उसकी आर्द्रता बढ़ने से धान कम मात्रा में तौल होगी जिससे समिति प्रबंधक बोरियों से धान निकाल लेंगे और उनको उसी धान का भी फायदा हो जाएगा.

   पूरा सिस्टम लगा है काले धंधे में

    यदि सूत्रों की माने तो इस धंधे में नीचे से लेकर ऊपर तक के लोग लगे हुए हैं. यह कार्य मात्र समिति प्रबंधक अथवा खरीदी केंद्रों का मुखिया बस नही करता है बल्कि इसमे फ़ूड और नागरिक आपूर्ति निगम से लेकर सहकारिता विभाग तक के कर्मचारी अधिकारी मिले हुए रहते हैं.

   जब इसकी शिकायत की जाती है तो जांच के नाम पर मात्र खानापूर्ति होती है. नियमतः जब धान खरीदी हो तो उसी रात इसका उठाव भी सुनिश्चित हो जाए. यदि किसी कारण बस उठाव नही भी हो पाया तो उस रात धान को ढकने और शीत पानी से बचाने के उचित प्रबंध करने चाहिए लेकिन ऐसा कुछ होता नही है और किसानों से उच्च गुणवत्ता बताकर खरीदी गई धान निम्न गुणवत्ता में नॉन को भेजी जाती है. 

   संलग्न - कृपया संलग्न खरीदी केंद्रों की फ़ोटो देखें जहां पर धान खरीदी के नाम पर धांधली चल रही है. किसान परेशान हैं लेकिन कोई सुनने वाला नही.

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शिवानन्द द्विवेदी
समाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

Friday, December 20, 2019

MP हाइकोर्ट नोटिस के बाद भी नही थम रही गोवंश प्रताड़ना, अवैध बाड़ों में भूंख प्यास ठंड से तड़प कर मर रहे गोवंश (मामला जिले में बनाये जा रहे अवैध बाड़ों का जहां एकबार शासन प्रशासन की अनदेखी के चलते पुनः घुट घुट कर दम तोड़ रहे गोवंश)

दिनांक 20 दिसंबर 2019, स्थान - कटरा/नईगढ़ी, रीवा मप्र

     जिले एवं प्रदेश में सरकार द्वारा बनाई जा रही गोशालाओं के निर्माण में देरी होने के एक बार फिर गोवंशों का जीवन संकट बना हुआ है.

    यद्यपि मप्र की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने अपने चुनावी एजेंडे में बेसहारा गोवंशों और फसल नुकसानी बचाने के लिए 1000 गोशालाएं बनाए जाने के दावे किये थे लेकिन आज साल भर बाद भी इस को जमीनी स्तर पर पूरा नही किया गया लिहाजा गोवंशों और किसानों दोनो की दुर्दशा बनी हुई है.
  
   पुरानी गोशालाएं बनी नहीं, आ गए नए प्रपोजल

    अभी हाल ही में रीवा जिले में 33 गोशालाएं और पूरे प्रदेश में लगभग 900 गोशालाएं खोले जाने के लिए कार्ययोजना बनाई गई थी और यह कार्य मनरेगा योजना द्वारा किया जाना था जिसके बाद कार्य तो प्रारम्भ हुआ लेकिन पूरा न हो सका. अभी रीवा में 33 में से मात्र 2 ही गोशालाओं का लोकार्पण हो पाया है जबकि विदित हो की तत्कालीन रीवा कलेक्टर ओम प्रकाश श्रीवास्तव द्वारा इन्हें 30 नवंबर तक पूरे करने के निर्देश दिए गए थे.
     जहां 28 सामान्य और 3 वृहद गोशालाएं अभी भी पूरी नही हो पायी हैं शासन प्रशासन से प्राप्त जानकारी से पता चला है की सरकार सभी पंचायतें जिनके पास की सरकारी 6 एकड़ तक का भूभाग है उनसे प्रपोजल मंगाया जा रहा है. 

  रीवा जिले के प्रत्येक ब्लॉक में बननी हैं अन्य 12 गोशालाएं

   इसके अतिरिक्त रीवा जिले के प्रत्येक ब्लॉक में 12 अतिरिक्त गोशालाओं का प्रपोजल मागा गया है जिनके लिए प्रत्येक जनपद पंचायत सीईओ को इस कार्य के लिए बोला गया है साथ ही संबंधित वेटेरिनरी विभाग के वीईओ को डेटा और प्रपोजल कलेक्ट करके शासन तक पहुचाने का जिम्मा दिया गया है.
   बतौर वेटेरिनरी एक्सटेंशन अफसर गंगेव एसके पांडेय एवं वीईओ त्योंथर पी के मिश्रा उन्होंने अपने अपने ब्लॉक में सीईओ और सरपंचों से गोशाला का प्रपोजल कलेक्ट कर शासन तक पहचाने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है. इस प्रपोजल में बताया गया है कि पंचायत के पास कम से कम 6 एकड़ की सरकारी जमीन होनी अनिवार्य है साथ ही उस जमीन का नक्सा, खसरा एवं बी1 ग्रामसभा के प्रस्ताव के साथ देना अनिवार्य है।

   पनगड़ी में बनेगी 1 करोड़ लागत की गोशाला

    जिले के गंगेव ब्लॉक एवं सिरमौर तहसील अन्तर्गत आने वाले पनगड़ी कला पंचायत में लगभग 60 एकड़ के सरकारी भूभाग में एक करोड़ रुपये की लागत से गोशाला निर्माण किये जाने का प्रावधान है जिसके लिए प्राप्त जानकारी अनुसार टेंडर प्रक्रिया भी चल रही है. बताया जा रहा है की जिले एवं प्रदेश की वृहद किश्म की बनाई जा रही कुछ गोशालाएं टेंडर प्रक्रिया से बनाई जाएंगी न की मनरेगा योजना द्वारा. ज्ञातव्य हो की सामान्य गोशालाएं जिनका प्रत्येक का टीएस 27 लाख 62 हज़ार का हुआ है यह सभी गोशालाएं मनरेगा और पंचायत द्वारा बनाई जा रही है.


  गोवंश प्रताड़ना पर हाईकोर्ट की नोटिस का नही दिया जबाब

    सूत्रों से जानकारी मिली है की सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोवंश के अधिकारों के लिए लड़ने वाले शिवानन्द द्विवेदी द्वारा अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा के माध्यम से हाई कोर्ट जबलपुर में लगाई गई जनहित याचिका का जबाब अभी भी कई संबंधित विभागों ने नही दिया है. पशु चिकित्सा विभाग को हाईकोर्ट की नोटिस जारी हुई थी जिसमे जिले और प्रदेश में अवैध बाड़ों और घाटियों जलप्रपातों में हो रही पशु क्रूरता के विषय में जबाब देना था लेकिन अभी तक कई नोटिस जारी करने के बाबजूद भी इन विभागों ने कोर्ट के समक्ष जबाब प्रस्तुत नही किया है.

  अभी भी नही रुक रही पशु क्रूरता

   वैसे जिले एवं प्रदेश में पशु क्रूरता रुकने का नाम नही ले रही है. जहां तहां अवैध बाड़ों में कैद गोवंश अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहे हैं. लोग अवैध बांडे तो बना देते हैं लेकिन इस भीषण ठंड में उनके लिए कोई समुचित व्यवस्था नही करते हैं जिससे उनका जीवन संकट बना हुआ है.
   
    जिले की शायद ही कोई ऐसी पंचायत हो जहां बिना किसी समुचित व्यवस्था, बिना शेड के अवैध किश्म के बाड़े न बने हों. इन बाड़ों में मवेशी ठंड में तड़प कर मर रहे हैं लेकिन कोई देखने वाला नही है.

  बाड़ा बनाने किसान बताते हैं मजबूरी

     इसके दूसरे पहलू पर नजर डालें तो उधर से भी बड़ी दुखद और भयानक स्थिति नजर आती है. किसानों और पशुपॉलकों द्वारा गांव गांव में बेसहारा छोड़ दिए गए मवेशियों की स्थिति यह है की जब इनको भूख प्यास लगती है तब यह मवेशी किसी न किसी किसान की हरी भरी फसल को देखकर टूट पड़ते हैं और चट कर जाते हैं. स्वाभाविक है सैकड़ों भूखे प्यासे मवेशी जिस किसी भी खेत में पड़ेंगे तो नुकसान पहुचाना तो निश्चित ही है. ऐसे में मौसम और सरकार की मार झेल रहे किसान भी न आव देखते हैं न ताव बस मवेशियों को समेटा और ठूस दिया कटीले तारों से बनाये अवैध बाड़ों में जहां स्वाभाविक तौर पर बिना किसी समुचित व्यवस्था में ठंड में भूख प्यास से घुट घुट कर यह सब काल के गाल समा जाते हैं.

   पशु क्रूरता है कानूनन अपराध, है दंड का प्रावधान

   बता दें की पशु क्रूरता करना अपराध की श्रेणी में आता है. भारतीय दंड संहिता की धारा 428 एवं 429 के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से किसी भी पशु को नुकसान पहचाने के उद्देश्य से उसे मारता पीटता है अथवा उसका अंग प्रत्यंग बांधता है या तोड़ता है तो उसके विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करके कार्यवाही होगी. इसी प्रकार मप्र के प्रावधानों के अनुसार मप्र गोवंश वध प्रतिषेध अधिनियम के तहत गोवंशों जिसमे की बैल भी सम्मिलित हैं यदि उनका वध किया जाता है तब इसके लिए अर्थदंड के साथ साथ अधिकतम 10 वर्ष के कारावास का भी प्रावधान है.

   इसके साथ भारतीय दंड विधान में पशु अतिचार निवारण अधिनियम एवं पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत भी यह अपराध की श्रेणी में आता है जिंसमे हैवी जुर्माना के साथ साथ जेल तक का प्रावधान है. 

  संलग्न - कृपया बाड़ों में कैद बेजुबान मवेशियों को देखने का कष्ट करें.

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

Wednesday, December 18, 2019

आरटीआई की जानकारी समय पर नही दिया, मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने लगा दिया 15 हज़ार का जुर्माना, पीआईओ ने कई नोटिसों के जबाब में आयोग के आदेशों की किया था अवहेलना, रीवा जिला शिक्षा केन्द्र का है मामला


मामला जिला रीवा का जिसमें #RTI अपील क्रमांक A 2610 में अपीलकर्ता को छात्रावासों में व्यय की गई राशि एवं अन्य जानकारी समय पर उपलब्ध नही कराने पर सुधीर कुमार बांडा, लोक सूचना अधिकारी कार्यालय जिला परियोजना समन्वयक, जिला शिक्षा केंद्र रीवा के विरुद्ध मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने  लगाया ₹ 15000 का  जुर्माना

दिनांक 18 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा मप्र

    आरटीआई - सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदकों द्वारा चाही गयी जानकारी लोक सूचना अधिकारियों एवं प्रथम अपीलीय अधिकारियों द्वारा समय पर उपलब्ध नही कराए जाने के चलते मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह द्वारा हैवी जुर्माना लगाए जा रहे हैं। पर इसके बाबजूद भी लोक सूचना अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर कोई परिवर्तन नही दिख रहा है।

   जिला शिक्षा केन्द्र रीवा का है मामला

   मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अभी हाल ही कि अपनी एक सुनवाई में दिनांक 10 दिसंबर को जारी किए गए संलग्न आदेश में द्वितीय अपील के प्रकरण क्रमांक ए- 2610 में लोक सूचना अधिकारी जिला परियोजना समन्वयक जिला शिक्षा केन्द्र रीवा सुधीर कुमार बांडा को कारण बताओ नोटिस कर वाबजूद भी सूचना आयोग में उपस्थित न होने एवं जानकारी उपलब्ध न कराए जाने के चलते 10 दिसंबर की पेशी में 15 हज़ार रुपये का जुर्माना ठोंक दिया है।

 आयोग ने जारी किया था कारण बताओ नोटिस

    मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने दिनांक 28/08/2019 को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी जिला शिक्षा केन्द्र जिला समन्वयक अधिकारी को धारा 20(1) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी कर आवेदक को जानकारी देने के निर्देश दिए थे लेकिन लोक सूचना अधिकारी ने अवमानना की जिसके कारण दिनांक 10 दिसंबर के आदेश में 15 हज़ार की पेनाल्टी लगाई गयी। 

  साल भर पुराना है मामला, इन बिंदुओं पर माँगी थी जानकारी

   आरटीआई आवेदक विनोद कुमार मिश्र ने धारा 6(1) के तहत अपने पहले आरटीआई आवेदन में दिनांक 15 जनवरी 2019 लोक सूचना अधिकारी जिला समन्वयक जिला शिक्षा केन्द्र रीवा में आरटीआई फ़ाइल कर तीन बिंदुओं की जानकारी चाही थी जिसमे पहला बिंदु - रीवा जिले के समस्त शासकीय छात्रावासों में तीन वर्ष में व्यय की गयी राशि की मदवार जानकारी, दूसरा बिंदु - कार्यालय में पदस्थ वंशमलि प्रसाद मिश्र सहायक ग्रेड 3 की नियुक्ति आदेश, पदस्थापना आदेश एवं प्रतिनियुक्ति आदेश एवं 15-16 में पुनः प्रतिनियुक्ति आदेश समाप्त होने के आदेश, एवं तीसरे बिंदु में - वंशमलि प्रसाद मिश्र की विकलांग प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति चाही गयी थी। 

  जानकारी न मिलने पर अपीलकर्ता ने की थी अपील

   आवेदक को जब समय पर जानकारी उपलब्ध नही हो सकी तो आवेदक ने उसकी प्रथम एवं द्वितीय अपील की थी। प्रथम अपील दिनाँक 29 मार्च 2019 को प्रथम अपीलीय अधिकारी जिला कलेक्टर रीवा को की गई थी जिसको स्वयं पीआईओ ने अपने पास रख लिया।  जब जिला कलेक्टर रीवा द्वारा भी कोई सार्थक कार्यवाही समय पर नही की गई थी तब आवेदक अपीलार्थी विनोद कुमार मिश्र ने द्वितीय अपीलीय अधिकारी अर्थात मप्र राज्य सूचना आयुक्त को दिनांक 03 जून 2019 को की। 

   द्वितीय अपील आदेश की अवहेलना पर लगा जुर्माना 

     द्वितीय अपील के लिए पेशी दिनाँक 28 अगस्त 2019 वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई जिसमें रीवा संभाग के प्रभारी मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया जिसमें जानकारी समय पर उपलब्ध कराए जाने के आदेश दिए। लेकिन मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह के आदेश की अवहेलना होने अन्य धाराओं के उल्लंघन के चलते आयोग ने 250 रुपये प्रतिदिन एवं 15 हज़ार रुपये अधिकतम के हिसाब से पीआईओ पर जुर्माना लगा दिया।

  पीआईओ ने किया लोक सेवा अधिनियम के साथ आरटीआई का उल्लंघन 

    अपने आदेश दिनांक 10 दिसंबर 2019 को मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने लिखा कि लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी अपने आपको कई धाराओं में दोषी पाते हैं।
    सबसे पहले यह कि लोक सूचना अधिकारी ने लोक सेवा अधिनियम के विरुद्ध चरित्र का परिचय दिया है जिसमे आवेदक को बार बार बुलाकर उससे जानकारी छुपाई, गलत जानकारी दिया, प्रथम अपीलीय अधिकारी का नाम और पता भी नही बताया और प्रथम अपीलीय अधिकारी का पत्र स्वयं लेकर अपने पास रख लिया जिसे प्रथम अपीलीय अधिकारी अर्थात जिला कलेक्टर को भी स्थानांतरित नहीं किया।
    
    इन इन धाराओं के तहत हुई कार्यवाही

   दिनांक 10 दिसंबर के अपने आदेश में मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि सर्वप्रथम लोक सूचना अधिकारी जिला परियोजना समन्वयक जिला शिक्षा केन्द्र रीवा द्वारा आवेदक विनोद कुमार मिश्र को आरटीआई अधिनियम के तहत 30 दिन के भीतर जानकारी उपलब्ध नही कराई गई अतः लोक सूचना अधिकारी धारा 7(1) के दोषी पाए गए। 
    इसके बाद लोक सूचना अधिकारी द्वारा यह भी नही बताया गया कि प्रथम अपीलीय अधिकारी कौन है और सूचना छिपाने का भी प्रयास किया गया एवं सूचना न देने का कोई युक्तियुक्त कारण नही बताया गया जिसके कारण लोक सूचना अधिकारी सूचना अधिकार कानून 2005 की धारा 7 की उपधारायें 8(1), (2), (3) का भी दोषी पाया गया।     
   अपीलकर्ता द्वारा लोक सूचना अधिकारी से कई मर्तबा संपर्क किया गया लेकिन हर बार लोक सूचना अधिकारी द्वारा अपीलकर्ता से असहयोग एवं असद्भाव पूर्वक बर्ताव किया जाकर घुमाया गया एवं भ्रमित किया गया जिसके चलते लोक सूचना अधिकारी को आरटीआई कानून की धारा 5(3) का दोषी पाया गया।

  सूचना आयुक्त ने आगे कहा कि लोकसूचना अधिकारी सुधीर कुमार बांडा गैरजिम्मेदाराना रवैया अख्तियार करते हुए सूचना के अधिकार कानून को ताक में रखते हुए जानकारी छुपाना चाहते हैं। जिस प्रकार से मप्र राज्य सूचना आयोग को धता बताकर लोक सूचना अधिकारी ने कई बार सूचना आयुक्त के आदेश का मजाक बनाया एवं आदेश की अवहेलना की एवं सुनवाई में भी अनुपस्थित रहे इससे लोक सूचना अधिकारी के ऊपर आरटीआई की धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत कार्यवाही बनती है।

  सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने दिए यह आदेश

    अंत मे मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने आदेश दिए दिए कि लोक सूचना अधिकारी सुधीर कुमार बांडा द्वारा सूचना आयोग के आदेश की अवहेलना और आरटीआई कानून की विभिन्न धाराओं की अवहेलना की गई है जिसके चलते धारा 20(1) के तहत 15 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया जाता है एवं यह राशि आदेश के एक माह के भीतर आयोग के समक्ष उचित शासकीय विधि सम्मत माध्यमों से जमा की जाय। समयावधि में जुर्माना राशि नही जमा करने पर मप्र सूचना का अधिकार (फीस एवं अपील) नियम 2005 की धारा 8(6) के तहत अग्रिम कार्यवाही की जाएगी।  
    आगे आयोग ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी सुधीर बांडा द्वारा अपीलार्थी को समस्त जानकारी बिना किसी शुल्क के जल्दी से जल्दी दी जाए। साथ ही इस आदेश की एक प्रति आइरीन सिंथिया जेपी संचालक मप्र राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल एवं अशोक भार्गव संभागायुक्त रीवा को भेजी जाय जिससे लोक सूचना अधिकार 2005 को कड़ाई से लागू किया जा सके।

   संलग्न - संलग्न आदेश की प्रतियां। एवं मप्र राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह।

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587

एक्टिविज्म पेशा या जुनून? समस्या है सरकारी पारदर्शिता की || यदि सरकार होगी पारदर्शी और जबाबदेह तो एक्टिविस्टों का कार्य भी होगा सीमित

दिनांक 18 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा मप्र

   लोकतांत्रिक परंपरा में वैचारिक अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक अंग होता है जिसके चलते हम अपनी बातों को समाज और शासन प्रशासन के समक्ष रखकर उसके विषय मे निष्कर्ष निकालते हैं। 

आरटीआई एक्टिविस्ट कौन हैं? प्रश्न खड़ा करके देश की अपेक्स कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों ने यद्यपि इस विषय पर नयी चर्चा प्रारम्भ कर दिया है लेकिन इसके बाबजूद भी सही मायनों में आरटीआई एक्टिविस्ट अथवा सिविल एक्टिविस्ट होना अपने आप मे काफी चुनौतीपूर्ण और जिम्मेदारीपूर्ण कार्य है। माननीय जजों ने यद्यपि प्रश्न किया कि क्या यह कोई पेशा हो सकता है? निश्चित ही यह पेमेंट प्राप्त करने वाला पेशा भले ही न हो जिसमें की सरकार अथवा कोई कंपनी/संस्था  किसी को काम के बदले पैसा पे करे लेकिन समाज के उद्धार, भ्रष्टाचार के निरोधन, पारदर्शिता लाने में मदद करने वाले जुनूनी लोगों के लिए यह किसी बिना पेमेंट वाले पेशे से बिल्कुल ही कम नहीं।

  एक्टिविस्ट जुनूनी होते हैं

    एक्टिविस्ट चाहे जो भी हों ज्यादातर जुनूनी होते हैं। एक्टिविस्टों को उस कार्य को पूरा करने का जुनून होता है। शायद माननीय लोग इसे न समझ पाएं क्योंकि उनकी कानून की किताबों में जुनून की परिभाषा हो अथवा न हो। 
     एक्टिविस्ट का कार्य असंभव को संभव करने जैसा होता है। जिसे कल तक समाज यह कहता है कि अरे छोड़ो यह तो हो ही नही सकता, समाज की नजरों में उसी कभी न हो सकने वाले कार्य को ही एक्टिविस्ट और जुनूनी सम्भव कर दिखाते हैं और फिर आने वाले भविष्य में वही असंभव सम्भव होकर नया नियम अथवा समाज का आधार बन जाता है। ऐसा ज्यादातर देखा गया है।

   आरटीआई एक्टिविस्ट होना चुनौतीपूर्ण

   सभी प्रकार के एक्टिविस्ट की तरह आरटीआई एक्टिविस्ट होना भी काफी चुनौतीपूर्ण है। अपने जेब और मेहनत के पैसे से आरटीआई फ़ाइल करना, जबाब न मिलने पर उसकी प्रथम और द्वितीय अपील करना, शासन प्रशासन के साथ माफियाओं और समाज से लड़ना यह सब चुनौतीपूर्ण कार्य आरटीआई एक्टिविस्ट ही करते हैं।
   माननीयों ने तो कह दिया कि आरटीआई एक्टिविस्ट ब्लैकमेलिंग के माध्यम हैं अथवा आरटीआई एक्टिविस्ट लिखना आपराधिक धमकी जैसा है पर आरटीआई एक्टिविस्ट माननीयों से अनुरोध करेंगे कि आप थोड़ा आरटीआई के लिए कार्य करने वाले एक्टिविस्टों की स्थिति और उनकी स्थिति पर भी गौर करें कि उन्हें कौन सी सुरक्षा और कौन सी तनख्वाह मिलती है। 

   एक्टिविस्टों का पारदर्शिता लाने में अभूतपूर्व सहयोग

    शायद सरकार अथवा न्यायपालिका यदि अकेले ही देश, तंत्र और समाज मे पारदर्शिता ला पाती तो चौथे स्तंभ मीडिया की जरूरत ही न पड़ती। ठीक वैसे ही एक्टिविस्ट भी वही रोल आज समाज मे अदा कर रहे हैं। मीडिया की ही तरह अपनी जान जोखिम में डालकर समाज के उत्थान के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सिविल राइट्स एक्टिविस्ट, एनिमल राइट्स वर्कर सभी का कहीं न कहीं एक ही उद्देश्य होता है कि कैसे वह अपने दायित्यों को पूर्ण करते हुए समाज के बेहतरी सासन प्रशासन में जबाबदेही और पारदर्शिता के लिए कार्य करते रहें।

   उच्चशिक्षित होते हैं बहुतायत एक्टिविस्ट 

   ज्यादातर एक्टिविस्ट अंगूठा और झोलाछाप न होकर काफी शिक्षित और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझने वाले होते हैं। कुछ तो हाई लेवल की शिक्षा दीक्षा प्राप्तकर जब सरकारी कामकाज और सामाजिक ढांचों में व्याप्त बुराइयों को देखते हैं तो वह समाज के लिए कुछ न कुछ अच्छा ठानकर कार्य करते हैं। कोई सामाजिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार देखकर सामाजिक कार्यकर्ता बन जाता है तो कोई बेजुबानों की दुर्दशा देख एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट बन जाता है। तो कोई प्रशासनिक और सरकारी क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार को देख आरटीआई के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर समाज के समक्ष भ्रष्टाचार उजागर करने में मदद करता है। 

   ऐसे महत्वपूर्ण और त्याग वाले कार्य करने के लिए कोई दमदार त्यागी व्यक्ति ही चाहिए होता है। यह न तो सबके बलबूते की बात है और न ही इसे हर कोई समझ ही सकता है। क्योंकि यदि कोई समझ पाता तो उच्चतम न्यायिक पदों पर बैठे हुए माननीय कभी भी एक जनरलाइज़्ड टिप्पणी नहीं करते। काश माननीय समझ पाते कि कितना मुश्किल है एक्टिविस्ट होना। कभी एक्टिविस्टों की जिंदगी में भी झांकने का प्रयाश होता तो शायद एक्टिविस्टों को धमकी देने वाला न समझा जाता।

   एक्टिविस्ट के नाम का दुरुपयोग संभव
 
    फिर ऐसा भी नही की सभी एक्टिविस्ट सामाजिक चिंतन वाले और अपनी जिम्मेदारियों को समझने वाले ही हों। यह बिल्कुल माना जा सकता है कि कई लोग आरटीआई एक्टिविस्टों का चोला पहनकर कुछ अनैतिक भी कर रहे हों पर उसके लिए शासन प्रशासन को देखने की जरूरत है। यदि ऐसे लोग हों तो उन विशेष लोगों के ऊपर यथोचित कार्यवाही की जा सकती है लेकिन इसके बदले में यह कह देना की सभी आरटीआई एक्टिविस्ट यदि अपने नाम के आगे टाइटल लगाएं वह अपराध है तो यह बात इस लोकतंत्र के लिए काफी दुःखद होगी। 

   सरकार पारदर्शिता लाएं, एक्टिविस्ट अपना काम छोड़ देंगे

    शासन प्रशासन से एक ही माग है की वह अपने सरकारी कार्यों में पारदर्शिता लाये। पारदर्शिता इतनी की स्वच्छ जल जैसे जिसमे कुछ भी देखना हो, एक गिरा हुआ तिनका अथवा पत्थर का छोटा टुकड़ा तो वह स्पष्ट और दूर से ही दिख जाए तब मानेंगे की अब समाज मे एक्टिविस्टों की जरूरत नही है और फिर माननीयों की मंशा के अनुरूप एक्टिविस्ट लोग अपने कार्य से सन्यास ले सकेंगे।
    पर जब तक समाज और सरकार के कार्यों में स्वयं ही प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है और सरकार का कार्य पानी जितना स्वच्छ नहीं होता तब तक अपनी संस्कृति, अपने अधिकारों, अपने आपको अस्तित्व में रखने के लिए, हमारे स्वयं के समाज मे जुड़े हुए अपने लोगों के साथ उनके दुःखों में साथ साथ खड़ा रहने के लिए उस समाज के कुछ अग्रणी लोगों की जरूरत पड़ती ही रहेगी अतः यह इस तंत्र की महती आवश्यकता ही है कि हम न चाहते हुए भी मजबूरन हमे एक्टिविस्ट बनना पड़ रहा है वरना किसे पड़ी थी एक्टिविस्ट बनने की। क्योंकि किसे नही अच्छी लगती शांतिप्रिय और बिना चकल्लस की जिंदगी।
   
    एक्टिविस्टों की समस्या पर भी गौर करें माननीय कोर्ट

    यह बात तो स्वयं माननीयों ने ही कह दिया है कि एक्टिविस्ट होना कोई पेशा नही है। पर क्या गैरसरकारी एक्टिविस्टों को सामान्य नागरिक के बराबर तो अधिकार कम से कम मिलें ही। आज इतने बड़े सिस्टम से, सरकार से, दंड से नौकरशाहों को कोई भय नहीं लग रहा है तो भला बिना विशेष अधिकार प्राप्त आरटीआई एक्टिविस्टों से आज शासन प्रशासन भला क्यों इतना भयभीत होने लगे? भय उसे लगता है जिसमे कोई कमी हो, गलती हो। अतः बेहतर यह होगा कि पूरे सिस्टम और सरकार को कई मोर्चों पर ज्यादा बेहतर और पारदर्शी बनाया जाए जिससे ऐसी कम स्थिति निर्मित हो जिसमें आरटीआई लगाकर जानकारी निकालना पड़े। सरकारों की स्वयं ही ज्यादा से ज्यादा ऐसी व्यवस्था हो जाएं कि अधिकतर कार्य पारदर्शी रहें जिससे न तो आम जनता परेशान हो और न ही शासन प्रशासन पर बैठे अधिकारी कर्मचारी।

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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र मोबाइल 9589152587

Saturday, December 14, 2019

मुझसे मिलिए मैं हूँ टिकुरी-खरहना पीडब्ल्यूडी सड़क (मामला जिले की बहुचर्चित दो जनपदों के बीच फंसी टिकुरी 37 नईगढ़ी एवं खरहना गंगेव ब्लॉक पीडब्ल्यूडी सड़क का, डेढ़ करोड़ के आसपास राशि स्वीकृत होने के बाद भी नही हुआ कोई निर्माण कार्य, पीडब्ल्यूडी विभाग एकबार पुनः कटघरे में)

दिनांक 14 दिसंबर 2019, स्थान गंगेव/नईगढ़ी, रीवा MP
   आज स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से लेकर सात दशक बीत जाएं और आपके गांव में चलने लायक सड़क न हो तो आप इसे क्या कहेंगे? विकास कहेंगे, लोकतंत्र कहेंगे या कुछ और? जी हां कुछ ऐसा ही हाल है नईगढ़ी ब्लॉक में टिकुरी 37 में प्रणामी मंदिर ट्रस्ट के पास से होते हुए सथनी प्रधानमंत्री सड़क की तरफ न मुड़कर वहां से बाएं हाँथ मुड़ने पर आपको टिकुरी नंबर 37 की ग्राम बस्तियों जिनमे से कुसवाहा बस्ती, दुबे बस्ती, यादव बस्ती, कंहार बस्ती, गौतमान बस्ती, यादव बस्ती, प्राथमिक पाठशाला कहरान टोला (टिकुरी नंबर 37) से होते हुए पकड़ियार नदी, बाणसागर नहर पुल से होते हुए खरहना ग्राम के पहले पुल क्रासिंग से होते हुए पुनः बाणसागर के पास खरहना में रामनिहोर गौतम, रामसजीवन गौतम के घर से होते हुए श्यामलाल जगदीश, तीर्थ प्रसाद, सच्चीदानंद पांडेय, रमेश गौतम से होते हुए प्राथमिक एवं माध्यमिक पाठशाला ग्राम खरहना (मढ़ी खुर्द पंचायत) से होते हुए झिरिया नाला, हरिजन बस्ती से आते हुए दिवाकर सिंह ग्राम नीबी तहसील नईगढ़ी की पट्टे की लगभग 650 मीटर की अराजी जिसमे मेढ़ से होकर रास्ता गुजरता है इस प्रकार लगभग 7.2 किमी लंबा यह मार्ग है जिसमे दिवाकर सिंह की जामीन मेढ़ को छोंड़कर सब शासकीय है और वर्ष 2008 से पीडब्ल्यूडी के शिकंजे में है जिसके निर्माण बाबत करोड़ों रुपये निकल भी चुके हैं लेकिन अब तक इस रास्ते का कोई विधिवत जीएसबी और डामर डालकर निर्माण नही कराया गया है.
 क्या कहना है ग्रामवासियों का 
    जब इस विषय में ग्रामवासियों से संपर्क किया गया और उनसे कीचड़ से सनी हुई सड़क के विषय में जायज़ा लिया गया तो यह कहना था ग्रामीणों का-
  1-”आज जब से हमारा जन्म हुआ है हमारे ग्राम में पक्की सड़क नसीब नही हुई है. हमारा पूरा जीवन इसी कीचड़ में सनते हुए निकल रहा है. पता नही टिकुरी नंबर 37 से लेकर खरहना तक की यह सड़क कब तक बनेगी.”- ददन कुसवाहा, कुसवाहा बस्ती टिकुरी नं 37 नईगढ़ी.
  2-”मैं पेशे से लाइनमैन हूँ. चाहे बरसात के 4 महीने हों अथवा बीच में असमय बारिश यहां टिकुरी नंबर 37 से लेकर खरहना और उधर प्रणामी मंदिर तक घर से निकलना दूभर हो जाता है. पूरी पगडंडी कीचड़ से सराबोर हो जाती है. यदि कोई बीमार हो जाए अथवा कोई डिलीवरी केस आ जाए तो सिर पर उठाकर अस्पताल ले जाना पड़ता है.”- अमृतलाल दुबे, दुबे बस्ती टिकुरी नंबर 37 नईगढ़ी.
 3-”हमारा जॉब सहकारी बैंक में है और हमे कार्य के सिलसिले में हर मौसम में आना जाना पड़ता है. शुबह 9 बजे खरहना से निकलते हैं और शाम को 7 या 8 बजे आते हैं. अब गौर करिए की बरसात के चार महीनों में हमारी सबकी क्या दुर्दशा होती होगी. हम कीचड़ में सनकर बाहर निकलते हैं. यह हालात बचपन से है. लगभग साढ़े सात किमी सड़क निर्माण का जिम्मा पीडब्ल्यूडी को वर्ष 2008 में मिला था लेकिन इस सड़क पर एक मुठ्ठी गिट्टी तक नही पड़ी है. पता नही करोड़ों रुपये कहां चले गए.’ -गौतम जी, ग्राम खरहना ब्लॉक गंगेव.
4-”हम अब उम्मीद छोड़ चुके हैं की इस रोड को कोई बनाएगा. कई बार सीएम हेल्पलाइन में लोगों द्वारा शिकायत भी की गयी है लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा भ्रामक और गलत निराकरण करके छोड़ दिया जाता है. सीएम हेल्पलाइन से ही पता चला था की इस सड़क का टेंडर और राशि 2008 में स्वीकृत की गई थी लेकिन साढ़े सात किमी के आसपास सड़क पर कोई कार्य नही हुआ और करोड़ों के प्रोजेक्ट का क्या हुआ आपके सामने है. हम आज भी कीचड़ पर चलने को मजबूर हैं.”- राघव शरण गौतम, भूतपूर्व सरपंच.
5-”हमारी यही माग है की सरकार हमारी टिकुरी 37 से लेकर खरहना तक की सड़क को जल्दी बनवाये जिससे हमे राहत मिल सके. हमारे छोटे छोटे बच्चे कीचड़ में सनकर स्कूल जाते हैं. एम्बुलेंस और जननी की गाड़ियां यहां घुस नही सकतीं. कोई बीमार हो जाए तो सिर में उठाकर अस्पताल ले जाना पड़ता है. यह सब अच्छा नही है. हमे तो अब लगता है जैसे शासन प्रशासन सब मर चुके हैं कोई देखने सुनने वाला नही है. हमारी समस्या का कोई तो समाधान करवा दे. हमे पक्की सड़क बनवा दे.”- शिवबालक यादव, टिकुरी 37.
  सीएम हेल्पलाइन में ऐसे शुरू हुआ खोज का सिलसिला 
   चूंकि टिकुरी 37 ग्राम पंचायत नईगढ़ी ब्लॉक में आती है और खरहना ग्राम गंगेव ब्लॉक में आता है इसलिए यह किसी को पता नही चल रहा था की आखिर इस सड़क को बना कौन रहा है और अंतरब्लोकीय सड़क का जिम्मेदार है कौन. इस बाबत एक शिकायत सीएम हेल्पलाइन में दिनांक 22/05/2019 को खरहना पंचायत मढ़ी खुर्द निवासी प्रमोद गौतम द्वारा क्रमांक 8387450 से दर्ज कराई गई. इस शिकायत में सभी बातों को स्पष्टतः रखा गया लेकिन सड़क कौन बना रहा था इसकी जानकारी किसी को नही थी. 
   सीएम हेल्पलाइन में चालू हुआ स्थानांतरण का खेल
     इस शिकायत क्रमांक 8387450 को दर्ज होने के बाद पहले इसे ग्रामीण यांत्रिकी सेवा को भेजा गया. वहां से जबाब आया की यह सड़क आरईएस द्वारा नही बनाई जा रही है. अतः यह दूसरे विभाग को भेजी जाए. इसके बाद शिकायत को पीएम सड़क विभाग को भेजा गया जिसमे इसे बताया गया की पीएमजीएसवाई यूनिट 2 मऊगंज द्वारा बनाई जा रही होगी अतः वहां स्थानांतरित किया जाय. वहां से भी जबाब मिला की यह सड़क पीएमजीएसवाई द्वारा नही बनायी जा रही है.
  इस प्रकार यह शिकायत के स्थानांतरण का खेल पूरे 27 नवंबर तक अर्थात 6 माह तक चलता रहा लेकिन यह पता नही कर पाया प्रशासन की आखिर इस सड़क का मालिक कौन था जो अपने आप में सीएम हेल्पलाइन की कार्यप्रणाली को दर्शाता है.
  27 मई को पीडब्ल्यूडी का आया जबाब
   अंततः पूरे 6 माह अंदर ही अंदर विभागीय चक्कर लगाने के बाद पीडब्ल्यूडी को जब शिकायत पहुची तो उनका जबाब आया जो अक्षरसः नीचे है - “ कार्यपालन यंत्री से प्राप्त जानकारी अनुसार शिकायतकर्ता से दिनांक 28.11.2019 को दोपहर 1.10 बजे दूरभाष पर संपर्क किया गया। शिकायतकर्ता द्वारा वर्णित गंगेव टिकुरी मार्ग लंबाई 7.20 किमी. लागत 136.85 लाख की स्वीकृति प्रमुख अभियन्ता लो.नि.वि. भोपाल के पत्र क्रमांक 1454-55/842/19/यो./2008 भोपाल दिनांक 06.3.2008 के द्वारा नावार्ड योजना के तहत प्राप्त हुई थी। उपरोक्त मार्ग में 650 मीटर पर निजी आराजी होने तथा भू-अर्जन की स्वीकृति न होने के कारण एवं मान्नीय न्यायालय द्वारा स्टे दिये जाने से 650 मीटर में तत्कालीन मार्ग निर्माण नहीं हो सका था। वर्तमान में अब शिकायतकर्ता के द्वारा मार्ग निर्माण की मांग की जा रही है। वर्तमान में उक्त मार्ग निर्माण की कोई स्वीकृति विभाग को प्राप्त नहीं है। मार्ग निर्माण की स्वीकृति शासन स्तर से संबंधित है। शिकायतकर्ता को जानकारी दे दी गई है। अतः शिकायत विलोपन योग्य है।
एक करोड़ 36 लाख 85 हज़ार कहाँ गए?
   जिस प्रकार से उपरोक्त शिकायत में देखा जा सकता है की पीडब्ल्यूडी के कर्यपालन यंत्री द्वारा निराकरण में यह स्वीकार किया गया की 1 करोड़ 36 लाख और 85 हज़ार रुपये की स्वीकृत हुई थी लेकिन विवादित 650 मीटर दिवाकर सिंह ग्राम नीबी की जमीन का भूअर्जन न हो पाने के चलते सड़क निर्माण पूरा नही हो पाया.
    यह बात तो ठीक है की 650 मीटर भूमि का भूअर्जन नही हो पाया पर क्या प्रशासन और पीडब्ल्यूडी विभाग यह बताएगा की 7 किमी और 200 मीटर स्वीकृत मार्ग में से यदि 650 मीटर विवादित मार्ग को हटा दिया जाए तो शेष उसका निर्माण क्यों नही किया गया? और मात्र इस सड़क के कुछ ही भाग में मात्र कुछ गिट्टी मोरम डालकर ही क्यों पीडब्ल्यूडी विभाग फुरसत हो गया।
  सच्चाई यह की पीडब्ल्यूडी विभाग सब खा गए
     खरहना और टिकुरी 37 ग्राम के ग्रामीण बताते हैं की सच्चाई यह है की यह राशि 2008 में मप्र शासन द्वारा स्वीकृत हुई थी जिसमे विवादित 650 मीटर के अतिरिक्त पीडब्ल्यूडी विभाग ने सड़क बनी हुई है इस प्रकार दर्शा कर अन्य सड़कों की भांति पूरी राशि हजम कर ली. और शायद यह भी जानकारी नही मिलती पर चूंकि ग्रामीण निरंतर परेशान होते रहे और आवाजें उठाई, सरकार भी इस बीच बदल गयी तो पीडब्ल्यूडी विभाग को जबाब देना पड़ा.
    अब ग्रामीण चाहते हैं की पीडब्ल्यूडी बताये की आखिर 1 करोड़ 36 लाख और 85 हज़ार की स्वीकृत राशि आखिर गई तो गई कहाँ?
   सड़क की जांच नही हुई तो ग्रामीण बैठेंगे आमरण अनशन पर, करेंगे कलेक्टर बंगले का घेराव
    इस बीच दोनो ब्लॉकों गंगेव एवं जुड़े हुए नईगढ़ी ब्लॉक से मढ़ी खुर्द स्थित खरहना और टिकुरी 37 नईगढ़ी के ग्रामीणों ददन कुसवाहा, प्रमोद गौतम , अमृतलाल दुबे, शिवबालक यादव, लोकनाथ गौतम, भूतपूर्व सरपंच राघवशरण गौतम, रामनिहोर गौतम, तीरथ प्रसाद गौतम, सच्चीदानंद, जगदीश, रमेश गौतम आदि ने बताया की यदि इस सड़क घोटाले की विधिवत कमेटी बनाकर जांच कर पीडब्ल्यूडी से जुड़े भ्रष्टाचारी अधिकारियों और इंजीनियर के ऊपर रिकवरी की कार्यवाही नही होती तो सभी ग्रामीण कलेक्टर के बंगले का घेराव करेंगे और वहीं पर आमरण अनशन करेंगे।
   सड़क है समाज का मानवाधिकार
   वास्तव में यूएनएचआरसी, एनएचआरसी, एमपीएचआरसी के परिपेक्ष्य में देखा जाय तो बिजली पानी सड़क स्वास्थ्य और शिक्षा किसी भी लोकतांत्रिक देश की सिविल सोसाइटी की जनता के मूलभूत मानव अधिकारों में से एक हैं. अतः इन मानवाधिकारों की सुरक्षा करना किसी भी देश और प्रदेश की लोकतांत्रिक चुनी हुई सरकार का संवैधानिक दायित्व है।
   आज भारत और इसके विभिन्न राज्यों में जिस प्रकार से आम और ग्रामीण जनता को इन सभी मूलभूत मानवाधिकारों से वंचित किया जा रहा है यह काफी विचारणीय मुद्दा है जिसे हरहाल में शासन सत्ता पर बैठी सरकारों को देखना पड़ेगा. आखिर उस माँ का क्या दोष जिसे बरसात में डिलीवरी हो जाए, कैसे जाएगी वह अस्पताल? आखिर उन बुजुर्गों का क्या दोष जिन्हें बरसात के समय बीमार होने पर एम्बुलेंस गांव तक नही पहुच सकती? आखिर उन स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों का क्या दोष जो कीचड़ में सनकर स्कूल जाते हैं?
  आखिर आज 21 वीं सदी में जब की मॉनव चंद्रमा और मंगल एवं अंतरिक्ष में घर बनाने, पानी खोजने, रास्ता बनाने की सोच रहा है ऐसे में क्या इस धरती में इन मूलभूत मानवाधिकारों के लिए कोई जगह नही है? इससे बेहतर तो कह सकते हैं की स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व की स्थिति रही होगी जब जगह जगह ट्रांसपोर्टेशन के लिए रेल की पटरियों का ईजाद कर लिया गया था. आखिर स्वतंत्रता प्राप्ति के 7 दशकों के बाद भी यदि आमजन और ग्रामीण क्षेत्रों में पक्की चलने योग्य सड़कें न बन पाएं तो भला इस लोकतंत्र के लिए उससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है।
   उम्मीद है शासन प्रशासन जल्द ही पक्की सड़क बनवायेगा
    यद्यपि मायूसी और लाचारी के बीच अभी भी खरहना और टिकुरी 37 के ग्रामीणों का मन टूटा नही है और उन्हें उम्मीद है की सरकार बदलने के साथ ही मप्र में शायद सड़क बनाने की प्रक्रिया में तेजी आये और उनके ग्राम में भी पक्की सड़क बन पाए. लोगों का मानना है की ग्रामीणों ने दिवाकर सिंह निवासी नीबी से भी निवेदन किया है और वह भी अब चाहते हैं की जो 650 मीटर रुकी हुई सड़क का भूअर्जन नही हुआ है वह अब हो जाए क्योंकि दिवाकर सिंह के परिवार के सदस्यों से बात करने पर यह पता चला की यह रास्ता दसकों से चल रहा है और इस सड़क के अधूरे पड़े रहने से उनकी फसल का भी नुकसान हो रहा है जिससे अब वह भी चाहते हैं की यह छूटी हुई 650 मीटर जमीन का भूअर्जन होकर पक्की सड़क बन जाए जिससे वह भी अपनी जमीन का सदुपयोग कर पाएं. क्योंकि कहीं न कहीं पक्की सड़क से जुड़ने के बाद उसी जमीन की कीमत भी कई गुना बढ़ जाती है.
  संलग्न - दिनांक 14 दिसंबर 2019 दिन शनिवार की स्थिति में ओला और बारिश होने के बाद सड़क की कीचड़ से सनी हुई स्थिति.
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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र मोबाइल 9589152587





Sunday, December 1, 2019

आर टी आई कानून में धारा 18 की शक्तियों का प्रयोग लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत (मामला कुछ मप्र राज्य सूचना आयोग के प्रकरणों का जहाँ राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा आरटीआई की धारा 18 की शक्तियों के तहत की जा रही त्वरित कार्यवाहियां, हाल ही में एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी बनाम मप्र शासन का एक कराधान का आरटीआई प्रकरण रहा काफी अहम)

दिनांक 01 दिसंबर 2019, स्थान - रीवा/भोपाल, मप्र
  (शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)
  वर्ष 2005 में भारत सरकार द्वारा देश में पारदर्शिता लाने, आम जनमानस को सरकारी कामकाजों की जानकारी आसानी से मुहैय्या हो सके, देश और समाज में भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके, लोक सेवक अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहें, और आम जनता भी अपने अधिकारों को अच्छे से समझकर उसका सदुपयोग कर सके इन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर आर टी आई अर्थात सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लाया गया था. सूचना का अधिकार हर भारतवासी का संवैधानिक अधिकार है. तब से लेकर अब तक और वर्ष 2015 में इसमे कुछ अमेंडमेंट भी हुए हैं.
  आर टी आई अधिनियम में क्या क्या जानकारी माग सकते हैं
   सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत देश प्रदेश की सरकारी काम काज और लोक सेवकों से संबंधित वह समस्त जानकारी माँगी और प्राप्त की जा सकती है जो आर टी आई की धारा 8 एवं 24 के तहत प्रतिबंधित न हो. जैसे देश की खुफिया जानकारी जिससे देश की सुरक्षा के संकट उत्पन्न हो जाएं, शाशकीय गुप्त बात अधिनियम 1923 के तहत छूट, अथवा अन्य इसी प्रकार की जानकारी देने का प्रावधान आर टी आई कानून में नही है. इसके अतिरिक्त लोक सेवकों और सरकार के काम काज बजट, राशि के आय व्यय, सरकारी कार्यों के विषय में उनके लेखे जोखे, उपलब्ध कागज़ात सभी की जानकारी आर टी आई कानून के तहत प्राप्त की जा सकती है.
   कैसे फ़ाइल करते हैं आर टी आई आवेदन
   आर टी आई आवेदन फ़ाइल करने का एक विशेष प्रोफार्मा होता है जिसके अन्तर्गत आप 10 रुपए के शासकीय शुल्क जिसमे आई पी ओ अथवा राज्य स्तरीय स्टाम्प शुल्क सम्मिलित है उसके साथ में एक धारा 6(1) के तहत आवेदन बनाकर संबंधित लोक सूचना अधिकारी के नाम भेज सकते हैं. यह हांथोहाथ भी दिया जा सकता था और पोस्ट के माध्यम से भी भेजा जा सकता है.
आर टी आई की प्रथम एवं द्वितीय अपील
   जब चाही गई जानकारी प्रथम आर टी आई आवेदन पर अधिकतम 30 दिवश के भीतर उपलब्ध न करवाई जाए तो प्रथम अपील का प्रावधान होता है जो आर टी आई की धारा 19(1) के तहत की जाती है. इसमे आवेदन प्रोफार्मा के साथ अपीलकर्ता को 50 रुपये स्टाम्प शुल्क अथवा आई पी ओ के साथ अपील करना होता है. इसकी समयावधि 45 दिवश के भीतर होती है. यदि इस दरम्यान अपीलकर्ता को जानकारी संबंधित कार्यालय द्वारा उपलब्ध न करवाई जाए तो आवेदक को द्वितीय और अंतिम अपील के लिए जाना होता है 
   आरटीआई की धारा 19(3) के तहत दायर द्वितीय अपील दो तरह के कार्यालयों में भेजी जाती है. एक तो यदि प्रकरण या मूल आवेदन राज्यस्तरीय कार्यालयों और राज्य सरकार के कार्यालयों में भेजा गया था तो वह संबंधित राज्य के राज्य सूचना आयुक्त के नाम की जाती है, और यदि मूल आवेदन किसी केंद्रीय कार्यालय या केंद्रीय लोक सेवक के विरुद्ध दायर किया गया था तो उसमे केंद्रीय सूचना आयोग में आयुक्त के नाम पर अंतिम एवं द्वितीय अपील की जाती है.
  अंतिम विकल्प हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट
   यदि इतने में भी जानकारी अपीलकर्ता को उपलब्ध न हो तो वह संबंधित राज्य की उच्च न्यायालय में केस दायर कर सकता है और उसमे लोक सूचना अधिकारी से लेकर प्रथम अपीलीय अधिकारी एवं राज्य सूचना आयोग को पार्टी बना सकता है. हाई कोर्ट से भी रिलीफ न मिलने पर यही सब कुछ उच्चतम न्यायालय में भी दायर किया जा सकता है.
   क्या है आर टी आई कानून की धारा 18
   इसी बीच आवेदन से लेकर द्वितीय और अंतिम अपील के बीच की एक सीढ़ी है आर टी आई कानून की धारा 18. धारा 18 का प्रयोग आवेदक द्वारा शिकायत के रूप में किया जाता है. जब कभी लोक सूचना अधिकारी द्वारा आर टी आई आवेदक द्वारा चाही गई जानकारी छुपाने का प्रयास किया जाए, जानकारी के नाम पर घुमाया जाय, गलत जानकारी देकर आवेदक को भ्रमित किया जाय अथवा झूठी जानकारी दी जाय तब तब आवेदक संबंधित लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध संबंधित सूचना आयोग में धारा 18 का प्रयोग कर शिकायत भेज सकता है जिंसमे वह यह माग करेगा की संबंधित लोक सूचना अधिकारी द्वारा गलत जानकारी देना, जानकारी छुपाना अथवा भ्रमित करने का प्रयास किया गया अतः आर टी आई की धारा 20(1)/(2) के तहत अनुशासनात्मक और दंडात्मक कार्यवाही की माग के साथ अन्य जो उचित लगे वह कार्यवाही की माग कर सकता है. ऐसे में राज्य सूचना आयुक्त उक्त मामले को अपने संज्ञान में लेकर लोक सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी के कार्यों को विधिविरुद्ध पाए जाने पर अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग कर धारा 18 के तहत धारा 20(1)/(2) का प्रयोग करते हुए अनुशासनात्मक एवं दंडात्मक कार्यवाही कर सकता है.
  आर टी आई की धारा 18 सूचना आयोग का विशेषाधिकार की तरह है
   वास्तव में आर टी आई की धारा 6(1), 19(1) अथवा 19(3) की पेचीदगी से भरी प्रक्रिया से गुजरने के साथ साथ धारा 18 की शक्तियां आर टी आई आवेदकों के लिए रामबाण साबित हो सकती हैं बशर्ते इसके प्रति आयोग भी गंभीर हो तब. लेकिन इन सबके मूल में राज्य सूचना आयोग की तत्परता ही है. यदि राज्य सूचना आयोग इसे गंभीरता से लेता है और त्वरित कार्यवाही करता है तब तो धारा 18 ठीक है वरना बहुत से ऐसे मामले होते हैं जो सूचना आयोग में वर्षों से धूल फांक रहे होते हैं. यहाँ तो द्वितीय अपील ही एंटरटेन नही की जाती हैं तो सामान्य धारा 18 के तहत शिकायतों की तो कोई गिनती ही नही हैं.
   अपीलकर्ता शिवानन्द द्विवेदी बनाम मप्र शासन 
   अभी हाल ही में एक मामला आया जिंसमे रीवा मप्र में 75 पंचायतों के कराधान और 14वें वित्त आयोग की ग्रांट के उपयोग में अनियमितता प्रकाश में आयी. जिसके विषय में जिले के कई कार्यकर्ताओं द्वारा आवाज बुलंद की गई. उनमे से सामाजिक आर टी आई कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा भी जिला कलेक्टर रीवा के एक आदेश 2495 एवं 2498 को आधार बनाकर जिले की 75 पंचायतों जिनमे बहुतायत में 38 पंचायतें मात्र गंगेव जनपद में ही थीं जहां पर यह कराधान मामले में अनियमिता एवं भ्रष्टाचार प्रकाश में आया था इसी विषय पर अलग अलग दो लोक सूचना कार्यालयों पर आवेदन प्रस्तुत किया गया था जिनमे से दिनांक 24 एवं 25 सितंबर 2019 को क्रमशः लोक सूचना अधिकारी कार्यालय जनपद गंगेव एवं कार्यालय कलेक्टर को आर टी आई आवेदन देकर उक्त कलेक्टर द्वारा जारी पत्र पर जांच प्रतिवेदन की प्रमाणित प्रति अन्य संबंधित दस्तावेजों के साथ जजानकारी चाही गई थी.
  दोनो ही पीआईओ ने किया गुमराह
   गौरतलब है की दिनांक 03/10/2019 एवं दिनांक 14/10/2019 को क्रमशः जारी पत्रों क्र. 1247 एवं 176 के माध्यम से आर टी आई आवेदक शिवानन्द द्विवेदी को सीईओ कार्यालय गंगेव एवं कलेक्टर कार्यालय रीवा के लोक सूचना अधिकारियों द्वारा पल्ला झाड़ते हुए जानकारी छुपाने के उद्देश्य, आवेदक अपीलार्थी को भ्रमित करने के उद्देश्य से बताया गया की संबंधित जानकारी उनके कार्यालय में उपलब्ध नही है बल्कि अन्य कार्यालय में उपलब्ध है.
  धारा 18 के तहत राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह को शिकायत
   इस बीच आवेदक द्वारा ट्विटर सोशल मीडिया के माध्यम से राज्य सूचना आयुक्त और रीवा संभाग के प्रभारी आयुक्त श्री राहुल सिंह को संदेश भेजकर शिकायत की गई और एक मार्गदर्शन मागा गया जिंसमे यह कहा गया की चूंकि संबंधित दोनो लोक सूचना अधिकारियों ने जानकारी देने से मना कर दिया है और भ्रमित करने का प्रयाश किया है अतः इस स्थिति में आवेदक को पुनः नाहक ही प्रथम एवं द्वितीय अपील की पेचीदगी से गुजरते हुए वर्षों इंतज़ार करने पड़ सकते हैं जैसा की पहले भी होता आया है.

   इस पर ट्विटर के माध्यम से राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा आवेदक को उनके ईमेल एड्रेस पर आर टी आई की विशेष धारा 18 का प्रयोग करते हुए शिकायत भेजे जाने की बात कही साथ ही प्रथम अपील भी करने की सलाह दी गई.
  धारा 18 के तहत शिकायत पर हुई त्वरित कार्यवाही
   आर टी आई की धारा 18 के तहत शिकायत दिनांक 08 नवंबर को अपीलार्थी द्वारा राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के ईमेल में की गई जिस पर दिनांक 29 नवंबर 2019 को ठीक 3 सप्ताह में एक्शन लेते हुए निराकरण किया गया जो अब तक के मप्र के राज्य सूचना आयोग में काफी त्वरित एक्शन के तौर पर माना जा रहा है.
  क्यों न तीनो पीआईओ पर प्रति 11250 रुपये का जुर्माना लगाया जाए
   रीवा जिले में लगभग 8 करोड़ के कराधान घोटाले के  विषय में गंगेव जनपद एवं रीवा कलेक्टर कार्यालय द्वारा जानकारी छुपाने के प्रयाश पर एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी की दिनांक 08 नवंबर की शिकायत पर राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने काफी गंभीरता से लिया. जिंसमे उन्होंने तीनों लोक सूचना आधिकारी जनपद गंगेव, जिला पंचायत रीवा एवं कलेक्टर रीवा को आड़े हांथों लिया और आर टी आई की धारा 7, 6, 7 की उपधारा 8(1), (2), (3), एवं धारा 5(5) का दोषी पाया और धारा 20(1)/(2) की कार्यवाही करते हुए अपने आदेश क्रमांक/सी-0820/रासूआ/रीवा /2019 दिनांक 29/11/2019 के माध्यम से कारण बताओ नोटिस जारी किया और पूंछा की क्यों न प्रत्येक तीनों लोक सूचना अधिकारियों के विरुद्ध जुर्माने के तौर पर 11,250/- रुपये का जुर्माना लगाया जाए.
  23 दिसंबर को तीनों लोक सूचना अधिकारियों की भोपाल में होगी पेशी
   जुर्माने के आशय के साथ आदेश क्रमांक/सी-0820/रासूआ/रीवा /2019 दिनांक 29/11/2019 के माध्यम से कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने न केवल जुर्माने लगाने की नोटिस दी है बल्कि तीनों संबंधित लोक सूचना अधिकारियों जनपद पंचायत गंगेव, जिला पंचायत रीवा एवं साथ में संयुक्त कलेक्टर रीवा को 23 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से भोपाल में राज्य सूचना आयोग में हाजिर होने का आदेश दिया है.
 क्या क्या कहा राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने
  आदेश क्रमांक/सी-0820/रासूआ/रीवा /2019 दिनांक 29/11/2019 के माध्यम से कारण बताओ नोटिस के साथ राज्य सूचना आयुक्त ने काफी तल्ख टिप्पड़ी की है जिसमे उन्होंने कहा की लगता है कि सूचना न देने के लिए तीनों लोक सूचना कार्यालयों में मैच फिक्सिंग जैसी हुई है. क्योंकि जिस प्रकार से आवेदकों को घुमाया जा रहा था इससे साफ जाहिर था की लोक सेवकों की सूचना की पारदर्शिता के प्रति मंसा बहुत अच्छी नहीं लगती. सूचना आयुक्त ने इस आदेश में कहा की कराधान घोटाले के मामले में आवेदक द्वारा जो जानकारी चाही गई थी वह सीधे सीधे कलेक्टर के एक आदेश 2495 एवं 2498 से संबंधित है जो स्वयं कलेक्टर द्वारा 7 दिवश के भीतर कार्यवाही चाही गई थी. आवेदक ने वह जानकारी सात दिवश के बाद चाही अतः यह पीआईओ कलेक्टर कार्यालय की जिम्मेदारी बनती थी की वह जानकारी दे न की किसी दूसरे कार्यालय को अंतरित करे. इस विषय में माननीय सूचना आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का भी हवाला दिया जिसमे बताया की बेबजह आर टी आई आवेदन अंतरित कर लोक सूचना अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से बच नही सकते.
  पीआईओ जिला पंचायत रीवा को पाया धारा 5(5) का दोषी
   चूंकि मूल आर टी आई आवेदन पीआईओ कलेक्टर कार्यालय रीवा द्वारा पीआईओ जिला पंचायत रीवा को अंतरित किया गया था अतः यह पीआईओ जिला पंचायत रीवा की जिम्मेदारी बनती थी की वह आवेदक को 7 दिवश के भीतर जानकारी मुहैया कराने संबंधित लिखित पत्र जारी करे जिसमे पीआईओ जिला पंचायत स्वयं असफल साबित हुए और इस आशय का कोई पत्र और जानकारी आवेदक शिवानन्द द्विवेदी को उपलब्ध नही कराया जिसमे न केवल आवेदक के साथ धारा 7 की उपधारा 8(1), (2), (3) के दोषी पाए गए बल्कि कार्यालय कलेक्टर के अंतरित आर टी आई आवेदन का जबाब कलेक्टर को न देकर कलेक्टर के साथ असहयोग भी किया इसलिए असहयोग के चलते आर टी आई की धारा 5(5) के दोषी पाए गए. जिसके फलस्वरूप राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने पीआईओ जिला पंचायत के विरुद्ध अनुशासनात्मक दंडात्मक कार्यवाही करते हुए धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत कारण बताओं नोटिस जारी किया और कहा की क्यों न आपके भी विरुद्ध 11 हज़ार 250 रुपये का जुर्माना ठोका जाय.
  पीआईओ गंगेव को पाया धारा 7(1) एवं  उपधारा 8(1), (2), (3) का दोषी
   इस बीच अपने पत्र में मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की गंगेव जनपद के लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदक अपीलार्थी शिवानन्द द्विवेदी को जानकारी न देकर, जानकारी छुपाने के प्रयाश करने और भ्रमित करने पर धारा 7(1) के दोषी हैं साथ ही युक्तियुक्त कारण नही बताकर एवं अपीलीय अधिकारी की जानकारी एवं संपर्क उपलब्ध न कराकर धारा 7 की उपधारा 8(1), (2), (3) के भी दोषी हैं. अतः क्यों न इनके विरुद्ध भी अनुशासनात्मक कार्यवाही करते हुए धारा 20(1) एवं 20(2) के तहत 11 हज़ार 250 रुपये का जुर्माना लगाया जाय.
 आयोग का अभिमत - जानकारी आपके पास नही तो हवा में कहां गायब हो गई
   पत्र के अंत में आयोग ने अपना अभिमत प्रस्तुत करते हुए कहा की गुणदोष के आधार पर प्रथम दृष्टया लोक सूचना अधिकारियों द्वारा जारी पत्रों एवं अपीलकर्ता की शिकायत के अवलोकन उपरांत इस प्रकरण में स्पष्ट होता है की सूचना के अधिकार अधिनियम के विपरीत विधि विरुद्ध तरीके से लोक सूचना अधिकारियों द्वारा जानबूझकर जानकारी के नाम पर एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय के बीच घुमाया जा रहा है. सवाल यह है की कार्यालय कलेक्टर जिसके आदेश पर जांच शुरू हुई उसका कहना है की जानकारी उसके पास नही है. जिस कार्यालय को पीआईओ कलेक्टर द्वारा मूल आर टी आई आवेदन 6(3) के तहत अंतरित किया गया वह कह रहा है की जानकारी उसके पास भी नही है तो आखिर जानकारी हवा में कहां गायब हो गई.
 ट्विटर में आयुक्त ने बताया पीआईओ के बीच मैच फिक्सिंग जैसा खेल
   इस बीच ट्विटर पर की गई कार्यवाही की जानकारी देते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने काफी तल्ख टिप्पड़ी की और कहा ऐसे लगता है जैसे लोक सूचना अधिकारियों के बीच मैच फिक्सिंग जैसा चल रहा है जिसमे एक विभाग कह रहा है की जानकारी मेरे पास नही उनके पास है और उनके पास जाओ तो वह बोलते हैं मेरे पास नही तीसरे के पास जाओ. जब तीसरे के पास जाओ वह बोलते हैं पहले के पास जाओ. तो सवाल यह उठता है की मूल जांच का आदेश देने वाला कार्यालय कलेक्टर ही जब ऐसे गैर जिम्मेदाराना बर्ताव करेगा तो अन्य कार्यालयों का क्या कहना.
  आर टी आई की धारा 18 की शक्तियों का प्रयोग लोकतंत्र के लिए अच्छा संदेश
   आज जिस प्रकार से देश प्रदेश में लोक सूचना के अधिकार का मजाक बन चुका था उससे साफ जाहिर है आने वाले दिनों में आम जनता और आर टी आई कार्यकर्ताओं का लोक सूचना के अधिकार कानून से विश्वास उठता जा रहा है. ऐसे में मप्र के वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह एक आशा की किरण जैसे आये हैं जो न केवल सूचना आवेदनों और अपीलों का त्वरित निराकरण करने का हर संभव प्रयाश कर रहे हैं बल्कि मप्र में लोक सूचना के अधिकार का कैसे प्रचार किया जाए कैसे कार्यकर्ताओं में विश्वास पैदा किया जाय वह सभी जरूरी संभव प्रयास भी कर रहे हैं.
   न केवल कार्यालयीन और कागज़ी तौर पर बल्कि सोशल मीडिया व्हाट्सएप एवं ट्विटर जैसे शसक्त आधुनिक सूचना माध्यमों का सहारा लेकर आवेदकों का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें आवश्यक जानकारी दे रहे हैं की वह कैसे और कहां अपील करें, कहां आर टी आई दाखिल करें, कैसे लोक सूचना अधिकारी के भ्रमित करने पर धारा 18 के तहत आयोग में शिकायत भेज सकते हैं आदि.
  आवेदन से लेकर अपील तक थी दौड़, अब जानी धारा 18 की भी ताकत



    पहले आर टी आई में मात्र आवेदन के बाद प्रथम और द्वितीय अपील तक ही ज्यादातर आवेदक सीमित रहते थे और उस पर भी इंतज़ार इतना लंबा होता था की आवेदक स्वयं थक हारकर परेशान हो जाते थे. अब जब धारा 18 के तहत लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध शिकायत पर भी त्वरित कार्यवाही हो रही है ऐसे में ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे लोकतंत्र में नई जान फूंकी जा रही है. अब देखना यह होगा की यह सिलसिला कब तक चलता है और सरकारें इस विषय में और कितने कदम उठा पाती हैं जिससे आरटीआई को और मजबूत और शसक्त बनाया जाए और जन जन तक सूचना पहुच सके और लोकतंत्र में पारदर्शिता आ सके.

     वैसे यह कहना गलत नही होगा की फिलहाल तो मात्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह ही एकमात्र आशा की किरण हैं बांकी सूचना के मामले में देश की स्थिति तो सभी को स्पष्ट ही है.
संलग्न - कृपया संलग्न देखने का कष्ट करें राज्य सूचना आयुक्त महोदय श्री राहुल सिंह जी द्वारा धारा 18 की शिकायत पर की गई कार्यवाही की प्रतियां. साथ में राहुल सिंह जी की तस्वीरें. साथ में ट्विटर से स्क्रीनशॉट. आवेदक द्वारा धारा 18 के तहत भेजी गई शिकायत की पीडीएफ फ़ाइल आदि.
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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ग्राम कैथा, पोस्ट अमिलिया, थाना गढ़, तहसील मनगवां, 

जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587