Thursday, February 9, 2017

(Rewa, MP) कांकर-डाढ़ पंचायती क्षेत्र में तार से गायों का बाँध दिया जाता है मुह, चारा पानी बिना तड़प कर मरते गौवंश


कांकर-डाढ़ पंचायती क्षेत्र में तार से गायों का बाँध दिया जाता है मुह,
चारा पानी बिना तड़प कर मरते गौवंश


(गढ़/कांकर/गंगेव, रीवा मप्र – शिवानन्द द्विवेदी) गौवंशों के प्रति क्रूरता किसी भी हद तक कम होने का नाम नहीं ले रही है. दिनांक 07 फरवरी की सुबह लगभग नौ बजे एक और ह्रदय विदारक वाकया सामने आया जिसमे एक भूरे-लाल रंग की गाय के मुख में तार बांधकर उसे छोंड दिया गया था. स्वाभाविक है की इस स्थिति में गाय न तो कुछ खा सकती थी और न ही पी सकती थी. मामला था रीवा के त्योंथर तहसील अंतर्गत कांकर पंचायत और डाढ़ पंचायत के आसपास का. भमरिया में अवैध बाड़े में पशुओं के मरने और उनके ऊपर क्रूरता का प्रकरण रिकॉर्ड करने के बाद जैसे ही आगे जाया गया तो पाया गया की कांकर में वन चौकी के पास एक गाय का मुख बुरी तरह से तार से बाँध दिया गया है. वह इधर उधर घूम रही थी पर कुछ भी खाने पीने में असमर्थ थी.
 वन चौकी कांकर के पास उपस्थित चौकी गार्ड को मामला बताया गया तो चौकी गार्ड ने गाय का तार निकालने का प्रयास किया. परन्तु गाय अकेले पकड़ में नहीं आ पाई. इस प्रकार मामले को डाढ़ पंचायत के निवासी पुष्पराज तिवारी, इन्द्रलाल साकेत आदि को बताया गया. तब जाकर चार-पांच लोगों के सहयोग से गाय को किसी तरह पकड़कर उसके मुख में बांधा हुआ तार निकाला गया. सम्पूर्ण घटना की फोटो एवं विडियो रिकॉर्डिंग भी कर ली गयी है जो की यूट्यूब में भी अपलोड कर दी गयी है जिसे पूरी दुनिया देख सकती है
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घटना का स्थल पंचनामा बनाकर गढ़ पुलिश को सूचित किया गया
     
गाय के मुख में बंधे तार और उसे निकालने के सम्पूर्ण प्रकरण का स्थल पंचनामा भी बनाया गया. जिसमे वहां पर उपस्थित सभी लोगों ने अपना हस्ताक्षर किया जो की यहाँ पर संलग्न भी है. पूछताछ करने पर भी यह जानकारी नहीं हो पायी की वह कौन से असमाजिक क्रूर व्यक्ति थे जिन्होंने ऐसा घोर कृत्य किया. सम्पूर्ण घटना की जानकारी गढ़ थाना प्रभारी बी आर सिंह को भी मोबाइल फ़ोन के माध्यम से दे दी गयी. लेकिन दुर्भाग्य यह है की गौवंन्शों और पशुओ के साथ निरंतर हो रही क्रूरता और अत्याचार पर अब तक रीवा जिले में रोक नहीं लग पा रही है.

लालगांव के हर्दी-अटरिया में बने अवैध बाड़े में दिनांक 09 फरवरी
को कुछ और गायों का हुआ दुखद अंत

     इसी बीच दिनांक 09 फरवरी दिन वृहस्पतिवार को लालगांव पंचायत स्थित हर्दी-अटरिया नामक स्थान पर जाया गया तो वहां का नज़ारा देखकर होश उड़ गए. जिस हर्दी-अटरिया के अवैध बाड़े को पुलिश बंद बता रही थी वहां पर पुनः वही बाड़ा बना हुआ पाया गाय. इतना ही नहीं जाब बाड़े की व्यवस्था देखा गया तो पता चला की सी ई ओ जनपद पंचायत गंगेव के माध्यम से प्राप्त हुआ कटीला तार अभी भी बाड़मे लगाया हुआ है. इस बात से साफ़ जाहिर होता है की पूरे ब्लाक गंगेव में बने अवैध बाड़ों में कहीं न कहीं शासन प्रशासन की सः है अन्यथा आम आदमी में इतनी जुर्रत कहाँ की वह कानून को इतनी आसानी से हाँथ में ले सके.  
घटना स्थल पर कटीले तारों के अन्दर बनाये गए बाड़ों में तीन चार गायें दयनीय स्थिति में नज़र आयें जो बहुत जल्दी मरने वाली थीं और एक गाय तो मृत बाड़े में ही पड़ी हुई थी जिसके शरीर से बदबू भी आ रही थी जो की बाड़े में महामारी फ़ैलाने का साफ़ साफ़ इशारा कर रही थी. इस प्रकार देखा जा सकता था की जिन असामाजिक तत्वों और गौ हत्यारों ने अवैध तरीके से बाड़ा बनाया हुआ था उन्होंने न तो कोई उचित चारे पानी की व्यवस्था की हुई थी और न ही मृत पड़े सड़ांध लिए मवेशी को उठाने की ही कोई व्यवस्था थी. आज गौवंशों के प्रति क्रूरता दिन पर दिन बढती जा रही है. कहीं न कहीं यह स्वर्हती मानव आज गौवंशों की वश्यकता कम हो जाने के कारण बैलों को आवारा छोंड दे रहा है जिससे वह तथाकथित किसानों की फसलों को नुकसान पंहुचा रहे हैं और जिसके कारण लोग कानून को धता बताकर गौवंशों के ऊपर निरंतर अत्याचार कर रहे हैं.

बैलों और पशुओं की देशव्यापी सीमित नसबंदी समाधान का एक पहलू

   यद्यपि सुनने में तो थोडा अटपटा लग सकता है पर कहना पड़ेगा की यदि आज बैलों और गौवंशों की आवश्यकता इस समाज को कम है तो क्यों न पशुपालन और पशु चिकत्सा विभाग के सहयोग से सरकारें इन पशुओं की नसबंदी करवा दें. इससे कम से कम यह तो होगा की एक जनरेशन के बाद दूसरी जनरेशन सीमित हो जाएगी जिससे इन बेजुबान एवं मूक गौवंशों और पशुओं के ऊपर अत्याचार होने से बचाया जा सकता है. अब जहाँ तक सवाल है मानव की उपयोगिता का तो यदि आज इस कलयुगी मानव को गौवंश और गायें बूढ़े माँ बाप की तरह भार बन गयी हैं तो इस मानव को दुग्ध उत्पाद खाने पीने का भी कोई अधिकार नहीं होना चाहिए. राईट टू मिल्क प्रोडक्ट यानि दुग्ध उत्पाद काधिकार के अंतर्गत सरकारें ऐसा संवैधानिक नियम कानून लायें जिसमे हर वह व्यक्ति जो दुग्ध उत्पाद का सेवन करे उसे गौवंशों की सुरक्षा और एनिमल वेलफेयर के लिए एक निश्चित टैक्स देना पड़े तब जाकर गौवंसों की स्थिति में सुधार हो सकता है और उनके पालन और सुरक्षा के लिए देश व्यापी बजट का आवंटन कर कार्य किया जा पायेगा. शासन-प्रशासन के साथ समाज की भी जिम्मेदारी गौवंशों की सुरक्षा के लिए तय होनी चाहिए और जो भी जिम्मेदारी से भागे उसके ऊपर ऐसे बनाये गए राईट टू मिल्क प्रोडक्ट अधिनियम के तहत दुग्ध उत्पाद से वंचित किया जाना चाहिए.  

जिले में पशु सुरक्षा और पशु क्रूरता सम्बन्धी सभी अधिनियम निष्क्रिय

कहने को तो पशुओं और गौवंशों की सुरक्षा के लिए इतने कानून बने हैं पर देखना होगा की उन नियमों का पालन क्या कहीं भी पूरे मप्र में सही तरीके से हो पा रहा है. मप्र में विशेष तौर पर गौवंश प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक वर्ष 2010/12 में पारित किया गया जिसमे गौवंशों के वध पर और प्रताड़ना पर पांच हज़ार तक का जुर्माना और अधिकतम सात साल के कैद का प्रावधान है और यह अपराध संज्ञेय भी है साथ ही आरोपी को अपने आप को दोषमुक्त सिद्ध करना पड़ेगा ऐसा प्रावधान है. इसी प्रकार पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अंतर्गत भी कई प्रावधान हैं जिन्हें यदि कड़ाई से लगाया जाये तो पशुओं और गौवंशों के विरुद्ध अत्याचार और क्रूरता काफी हद तक बंद की जा सकती है. भारतीय दंड संहिता की धारा 428 एवं 429 के अंतर्गत भी पशुओं के विरुद्ध क्रूरता पर एफ आई आर दर्ज कर कार्यवाही करने का प्रावधान है.

संलग्न – त्योंथर ब्लाक के कांकर पंचायत में वन चौकी कांकर के पास गौ के मुख में बंधे तार को निकलने का विडियो और कुछ फोटो.
https://www.youtube.com/watch?v=SgOqXzwNb38&t=4s

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Shivanand Dwivedi
(Social, Environmental, RTI and Human Rights Activists)
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