Sunday, February 19, 2017

(Rewa, MP) कैथा में गो भागवत का चौथा दिवश- मातरः सर्वभूतानांगावः अर्थात गाय समस्त प्राणियों की माता है


दिनांक – 19/02/2017
स्थान –  (रीवा, मप्र)


कैथा में गो भागवत का चौथा दिवश- मातरः सर्वभूतानांगावः
अर्थात गाय समस्त प्राणियों की माता है

(गढ़, रीवा मप्र – शिवानन्द द्विवेदी) दिनांक 17 फरवरी से गो भागवत कथा का जो पावन प्रवचन प्रारंभ हुआ वह सतत चल रहा है. दिनांक 20 फरवरी दिन सोमवार के प्रवचन में आचार्य श्री चंद्रमणि पयासी जी महाराज के मुखारविंद से अविरल प्रवाहित हो रहे प्रवचन में गाय को समस्त प्राणियों की माता बताया गया अर्थात मातरः सर्वभूतानांगावः यानि गाय समस्त प्राणियों की माता है. इसीलिए भारतीय संस्कृति में उत्पन्न हुए और पनपे सभी साधक जैसे शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, शिख, आदि सभी भारतीय धर्म-सम्प्रदायों में थोड़ी बहुत पूजा भिन्नता होते हुए भी उनके मूल में गोमाता के प्रति आदर भाव और सम्मान भरा हुआ है.

भारतीय संस्कृति में गाय को माता कहकर इसीलिए संबोधित किया गया है क्योंकि गाय सभी दिव्य गुणों की स्वामिनी है, खान है, और पृथ्वी पर साक्षात् देवी के समान है इसीलिए इसे कामधेनु भी अर्थात सभी धर्म विहित कामनाओं की पूर्ति करने वाली है ऐसा कहकर संबोधित किया गया है. सनातन धर्म ग्रंथों में कहा गया है की सर्वेदेवाःस्थितादेहेसर्वदेवमयीहिगौ: अर्थात गाय की देह में सभी देवी देवताओं का वास हुआ चित्रण किया गया है इसीलिए संस्कृत भाषा में इसे सर्वदेवमयीहि कहा गया है. संसार के अति प्राचीनतम ग्रंथों वेदों में गाय की महत्वा और विशेषता का वर्णन कई शूक्तियों में मिलता है. 
गो महिमा के वर्णन में आगे आया की इनके गोबर में साक्षात् लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाश में विचरण करने वाले देवता, गोमाता के रंभाने की आवाज़ में प्रजापति और इनके थनों में समुद्र प्रतिष्ठित है. ऐसी मान्यता है की जो व्यक्ति प्रातः स्नान करके गो स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है. भविष्यपुराण, स्कन्दपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, महाभारत आदि ग्रंथों में गोमाता के अंग प्रत्यंग की विशेषताओं और देवी देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन आया है.

कामधेनु नंदिनी, गुरु वशिष्ठ एवं विश्वामित्र कथानक

इसी प्रवचन में आगे वसिष्ठ गुरु की कामधेनु नंदिनी का किस्सा चल रहा है जिसमे एक बार महोदया के राजा एवं गाधी पुत्र विश्वरथ जब युध्य क्षेत्र से लौट रहे थे तो गुरु वशिष्ठ जी के आश्रम रुकते हैं. गुरु वशिष्ठ जी की धर्मपत्नी ने बड़े ही आदर सत्कार के साथ विश्वरथ एवं उनकी थकी भूखी सेना का स्वागत किया. यह सब देख कर विश्वरथ आश्चर्य चकित होकर गुरु वशिष्ठ से पूंछते हैं की हमारी इतनी बड़ी सेना का सत्कार अकेले आपने कैसे कर लिया? आखिर आपके इस छोटे से आश्रम में इतनी बड़ी सेना के लिए व्यवस्था कैसे बन पाई. इस पर गुरु वशिष्ठ और उनकी धर्मपत्नी कामधेनु नंदिनी का पूरा किस्सा महोदया के राजा विश्वरथ को बता देते हैं. इस पर विश्वरथ मन में नंदिनी को प्राप्त करने की लालसा लिए वहां से चले जाते हैं. कुछ समय पश्चात जब देश में घोर अकाल पड़ता है तो अन्न दाने के लिए तरसती महोदया राज्य की जनता के लिए कहीं से कोई व्यवस्था न बन पाने से परेशान होकर राजा विश्वरथ अपने मंत्रियों को गुरु वशिस्ठ के आश्रम भेजकर कामधेनु नंदिनी को लाने के लिए भेजते हैं. इस पर गुरु वशिष्ठ मंत्रियों को आश्रम की गाय नंदिनी पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है  इस प्रकार बताकर वापस कर देते हैं. गुरु वशिष्ठ जी का कहना ठीक था की देश में घोर अकाल महोदया के राजा विश्वरथ की अति महत्वकांक्षी प्रवृत्ति और अनायास कुसमय युध्य छेड़ने से पड़ा है इसके लिए महोदय के राजा ही जिम्मेदार हैं. हिंसात्मक प्रवृत्ति से अधर्म प्रवृत्ति बढ़ने से अकाल सूखा की स्थिति निर्मित हुई है. यदि नंदिनी विश्वरथ को दे दी जाती है तो वह आश्रम की संपत्ति का अपमान होगा जिससे आश्रम में निवासरत हजारों छात्र और ऋषि-मुनि की व्यवस्था कैसे से हो पायेगी. क्योंकि नंदिनी कामधेनु गाय थी जो सभी धर्मविहित मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली थी जिसके फलस्वरूप आश्रम में कभी कोई वस्तु की कमी नहीं पड़ती थी. आगे चलकर गुरु वशिष्ठ एवं राजा विश्वरथ में तकरार बढती है और विश्वरथ स्वयं तपोवल हासिल कर माता गायत्री के वरदान से विश्वरथ से महर्षि विश्वामित्र कहलाये. यह कहानी आगे चल रही थी.

!!! सादर धन्यवाद !!!

संलग्न – प्राचीन श्री हनुमान मंदिर प्रांगण कैथा की कुछ तस्वीरें. धर्मार्थ समिति कैथा का लोगो.
             

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Shivanand Dwivedi
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