दिनांक 14 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
पावन यज्ञस्थली कैथा प्राचीन हनुमान मंदिर प्रांगण में श्रीमद भागवत महायज्ञ का दिनांक 14 अगस्त को तीसरा दिवस रहा. इस बीच व्यासपीठ पर विराजमान डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला जी के द्वारा विभिन्न कथा प्रसंगों का वर्णन किया गया.
तीसरे दिन की कथा प्रसंगों में – सती कथा, ध्रुव चरित्र का वर्णन, अजामिल उपाख्यान, जड़ भरत कथा प्रसंग आदि का वर्णन हुआ
*ईश्वरीय न्याय में मात्र घोटालेबाज को ही डर सताता है – डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला*
डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला ने बताया की भगवान सभी को कुछ न कुछ देता है और जिसको जो दिया है उसका एक दिन हिसाब लेता है. जिसके हिसाब में घोटाला होता है मात्र ऐसे व्यक्तियों को ईश्वरीय न्याय से भय लगता है. जो अपना कर्म सच्चाई और पूरी निष्ठा से किया है वही ईश्वर की परीक्षा में सफल होता है. जिसका हिसाब बराबर रहता है वही निर्भय होता है और उसी को शांति मिलती है. बताया गया की काल के भी महाकाल परमात्मा है और उनकी शरण में जाने से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है.
*जीव का जगत से आसक्ति मात्र माया है, जीवात्मा का ईश्वर से सम्बन्ध ही सच्चा - डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला*
आचार्य ने बताया की जीव इस जगत के मोह में पड़कर भ्रमित हो जाता है और इसी दृश्य संसार को ही वास्तविक मान बैठता है जबकि जीव का इस जगत के साथ सम्बन्ध मात्र माया है। शास्त्रों में बताया गया है की जीवात्मा का ईश्वर से सम्बन्ध ही सच्चा है। पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, आदि लौकिक सम्बन्ध मात्र जगत की दृष्टि से हैं जबकि पारलौकिक और अध्यात्मिक दृष्टि से यह सब आभासी संबध है और मात्र इस वर्तमान जीवन तक ही सीमित रहते हैं। यद्यपि अपने इन लौकिक संबंधों का भी निष्ठा पूर्वक और अनासक्त भाव के साथ निर्वहन करना मानव का दायित्व है। शास्त्रोक्त एवं तात्विक दृष्टि से देखा जाय तो यह सभी सम्बन्ध माया मात्र हैं। भगवान् के साथ सम्बन्ध रखते हुए अपने कर्त्तव्य मार्ग पर अविचल चलते रहना चाहिए। ईश्वर के साथ सम्बन्ध रखना चाहिए।
*एको ब्रह्म द्वितीयो नस्ति अर्थात ईश्वर एक है दूसरा नहीं*
आचार्य ने बताया की ईश्वर के सभी स्वरुप समान हैं और एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सिद्धांत से एक हैं। व्यक्ति को ईश्वर का जो स्वरुप अच्छा लगे उसी स्वरुप पर ध्यान कर अपने इष्ट के तौर पर ध्यान करें। एकं सद विप्रः बहुधा बदंति अर्थात सत्य एक है ज्ञानीगण उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। श्रीकृष्ण जब हाँथ में धनुष-बाण धारण करते हैं तो वह श्रीराम कहे जाते हैं और जब चक्र-गदा धारण करते हैं तो वह विष्णु कहे जाते हैं और जब अधर्म अत्याचार बढ़ता है और तांडव कर डमरू धारण कर हाँथ में त्रिशूल लेकर अधर्मियों का संहार करते हैं तो शिव कहलाते हैं। ईश्वर के सभी स्वरुप सामान हैं और उनमे भिन्नता नहीं करनी चाहिए। जिसको ईश्वर का जो स्वरुप अच्छा लगे उसे उसी का स्मरण पूजन और ध्यान करना चाहिए।
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*
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