दिनांक 16 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
यज्ञों की पावन स्थली कैथा हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में दिनांक 12 अगस्त से प्रारंभ हुई भागवत महायज्ञ का कार्यक्रम सतत रूप से चल रहा है। दिनांक 18 अगस्त को कार्यक्रम का विसर्जन हवन एवं विशाल भंडारे के साथ किया जाएगा। इस बीच आचार्य डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला के मुखारबिंद से अमृतमयी, पाप विनाशक, मोक्ष प्रदायक भागवत कथा का प्रवचन और पारायण कार्य निरंतर चल रहा है।
*अजामिल-यमदूत-नारायण प्रसंग की अध्यात्मिक विवेचना*
अजामिल एक पतित ब्राह्मण था. यद्यपि अजामिल के पूर्वकर्म सात्विक और धार्मिक थे परन्तु कुसंस्कार वश अजामिल पतित हो जाता है. लेकिन उसके पूर्व शुभकर्म अंत में प्रभाव दिखाते हैं और ईश्वर अजामिल के मुक्ति का साधन बना देते हैं. समस्त जीव जो जन्म लेता है उसका शरीर त्याग सुनिश्चित है. यमदूत वह हैं जो अंत में शरीर को आत्मा से अलग कर इस नश्वर शरीर को पञ्च महाभूतों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, और आकाश को समर्पित कर देते हैं. आत्मा अज़र, अमर शाश्वत और सनातन है. श्रीमद भगवद गीता में कहा भी गया है. “न जायते म्रियते व कदाचित नायं भूत्वा भविता व न भूयः, अजो नित्यः शाश्वतोअयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे” अर्थात श्रीकृष्ण जी कहते है की हे अर्जुन यह मत भूलो की तुम आत्मा हो यह शरीर नहीं और “यह आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, यह न पहले कभी भूत में कभी जन्मी और न भविष्य में मरने वाली है, यह अज़र अर्थात जरा-रोग रहित है, यह नित्य और शाश्वत है, यह अत्यंत सनातन है, यह शरीर के नष्ट होने के बाद भी नष्ट नहीं होती”.
*पूर्व जन्म के कर्मों और संस्कारों का परिणाम है वर्तमान जन्म*
यमदूत हैं शरीर को आत्मा से पृथक करने वाले और जीव को उसके जीवनभर के बुरे कर्मो के फल देने वाले तत्व. वहीं नारायण के गण हैं- जीव के सत्कर्म और जीव के शुभ और भले कर्मों का फल देने वाले तत्त्व. यहाँ पर ध्यान देने की बात है की अजामिल के भी कथा प्रसंग से श्रीमद भगवद गीता के ही कर्म-फल और पुनर्जन्म के सिद्धांत को दृढ़ता दी गयी है. भगवान् श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को कुरुक्षेत्र में भगवद गीता के ज्ञान के समय शरीर त्याग के वक्त प्राप्त होने वाले अगले जन्म के विषय में बताया गया है की अंत समय में जो व्यक्ति जिस भाव में अवस्थित रहेगा वह उसी भाव/योनी की प्राप्ति करेगा. यहाँ पर यद्यपि अजामिल एक धर्मात्मा ब्राह्मण था परन्तु पतित होने के बाद भी मात्र अपने पुत्र के नारायण नाम रखने के कारण और अपने अंतिम समय में उसी नाम के उच्चारण के फलस्वरुप भगवान् नारायण के लोक को प्राप्त होना और मोक्ष को प्राप्त करना बताया गया है. संतजनो का अजामिल और उसकी पूर्व की वेश्या पत्नी के घर आना मात्र संयोग नहीं बल्कि अजामिल के पूर्व शुभ सात्विक कर्मो का परिणाम था. इसी प्रकार उस वेश्या का संत समूह से झूंठ न बोलकर सच-सच अपने विषय में बता देना भी व्यक्ति के संगत के प्रभाव को दर्शाता है. यद्यपि वह पूर्व में व्यभिचारिणी वेश्या होते हुए भी जैसे ही अजामिल के सानिध्य में आयी वह गृहस्थ तो बनी ही साथ ही एक स्त्री-धर्म का भी पालन करने के संस्कार उस वेश्या नारी में पड़ गए और यह मात्र अजामिल (और उस वेश्या नारी के) के पूर्व के संस्कार कर्मो से हुआ. अजामिल का नारायण नाम का पुत्र प्राप्त होना, अजामिल का अपने पुत्र नारायण के प्रति अतिसय आसक्ति उत्पन्न होना और अजामिल का “नारायण” नाम के भाव में पूर्णतया दृढ हो जाना अजामिल के पूर्व कर्मों का फल और संस्कार से हुआ.
*प्रभु नाम स्मरण मात्र से मिलता है मोक्ष*
इस प्रकार यह देखा जा सकता है की प्रभु नाम की महिमा और उनकी कृपा प्राप्त करना हमारे वश में नहीं है. यह सब हमारे पूर्व जन्म के संचित शुभ और प्रारब्ध कर्मों का सम्मिलित रूप होता है. पूर्व जन्म को तो नहीं परन्तु वर्त्तमान जन्म को तो सुधारा ही जा सकता है. हिन्दू-सनातन संस्कृति की महानतम उपलब्धि और कालजयी ग्रन्थ श्रीमद भागवत महापुराण के सतत सानिध्य से हम अपने इस जन्म और साथ ही पूर्व और भविष्य के जन्मों को भी सफल बना सकते हैं ऐसा उल्लेख बारम्बार भागवत में आता है. ऐसा भी कहा गया है की किसी भी कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति यदि भगवत-भक्ति का मार्ग ग्रहण करता है तो वह न केवल अपना उद्धार करता है साथ ही अपने कुल के सात जन्मों पूर्व और सात जन्म आगे के वंश का भी उद्धार करता है ऐसी है ईश्वर की शरणागति. श्रीमद भागवत महापुराण जैसे कालजयी ग्रन्थ का अभ्युदय ही इस कलिकाल में अजामिल और इनसे भी अधिक पतित मानवों के उद्धार के लिए हुआ है. आवश्यकता है मात्र सम्पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर शरणागति की.
राधे राधे
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*
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