दिनांक 15 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
यज्ञों की पावन पुनीत स्थली कैथा हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में पापविनाशक मोक्षप्रदायक श्रीमद भागवत भक्ति ज्ञान महायज्ञ 2025 का प्रवचन एवं परायण कार्य सतत चल रहा है। डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला ने भागवत महापुराण के कई महत्वपूर्ण कथाओं का प्रवचन किया। इस बीच उन्होंने अजामिल, दुर्वासा, समुद्र मंथन आदि कथा प्रसंगों की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया।
*ईश्वर नाम की महिमा एवं मन इन्द्रियों पर नियंत्रण का वर्णन*
डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला जी ने बताया की शास्त्रों में वर्णित अजामिल के कथा प्रसंगों से यह भी भली भांति स्पष्ट हो जाता है की व्यक्ति को अपने दशों इन्द्रियों एवं मन से क्या कर्म करने चाहिए. आँख से क्या देखे और मन में क्या विचार लाये. अजामिल ने अपनी नजर को विचलित किया और कामावेश में स्त्री चरित्र को देखा इसलिए उसके मन में वही बात कौंध गयी. यदि वह ईश्वर का स्मरण करता हुआ अपने आँखों पर नियंत्रण किया होता तो यह अवस्था उत्पन्न नहीं होती. मन तो इन्द्रियों के ही अधीन है. इन्द्रियों से जो देखेंगे वही मन और बुद्धि में प्रविष्ट होता है. वही विचार और भाव मन में बन जाता है. अतः मन और इन्द्रियों को साधने और नियंत्रण की बात हिन्दू धर्म शास्त्रों, योग, वेदांत आदि में निरन्तर जोर दिया जाता रहा है. यह हमारी ऋषि मुनि मनीषी और वेदांत योग शास्त्री की उच्चतम बुद्धिमत्ता का ही फल है की हमारे दर्शन और अन्य शास्त्रों में मन बुद्धि इन्द्रियों पर निरंतर शोध होता आ रहा है. अष्टांग योग में तो मन इन्द्रियों को नियंत्रण की पूरी विधियाँ ही बताई गयीं हैं. पतंजलि योग सूत्र में चार अध्यायों में योग विज्ञान का पूरा वर्णन मिलता है. मन इन्द्रियों पर नियंत्रण से क्या क्या अनुभूतियाँ प्राप्त हो सकती हैं उसका भी पूरा वर्णन मिलता है साथ ही अंततः कैवल्य प्राप्ति अथवा मोक्ष प्राप्ति की स्थिति का भी पूरा वर्णन मिलता है.
अजामिल के कथा प्रसंग से उस परमेश्वर परम ब्रह्म के विभिन्न नामों की महिमा का भी वर्णन मिलता है. वैसे भी सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रभु के नाम की महिमा का वर्णन मिलता है. वर्तमान कलयुग में तो यहाँ तक कहा गया है की इस युग में मात्र भगवान् के नाम का सतत मन ही मन स्मरण ही आधार है. कलयुग में तो यहाँ तक कहा गया की सभी यज्ञों का फल मात्र नाम जप में ही सन्निहित है. अतः व्यक्ति को चाहिए की वह भगवान् के नाम का सतत स्मरण करता रहे और इसी से उसे मुक्ति मिल जायेगी.
श्रीकृष्ण जी ने श्रीमद भगवद गीता में यहाँ तक कहा की मृत्यु के समय जो भाव व्यक्ति के मन मस्तिष्क में रहता है उसे वही योनी की प्राप्ति होती है. अतः सतत मन ही मन भगवान् के नाम का स्मरण करते रहने से व्यक्ति उसी भगवान् के भाव में स्थिर होने लगता है और एक भाव में आरूढ़ होने से वह मृत्यु के समय भी उसी भाव में रहेगा। अतः श्रीकृष्ण जी कहते हैं की मेरे ऊपर निर्भर रहने वाला, मेरे ही नाम और भाव में आरूढ़ रहने वाला व्यक्ति मुझी को प्राप्त होता है.
पावन यज्ञ स्थली कैथा में भागवत महायज्ञ का विसर्जन 18 अगस्त 2025 को हवन एवं विशाल भंडारे के साथ होगा.
पावन यज्ञ स्थली कैथा में अमृतमयी, पाप विनाशक, एवं मोक्ष प्रदायक श्रीमद भागवत कथा का श्रवण पान करने के लिए आप सभी सादर आमंत्रित हैं.
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*
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