दिनांक 13 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
दिनांक 11 अगस्त सोमवार से कलश यात्रा के साथ प्रारंभ हुई श्रीमद भागवत भक्ति ज्ञान महायज्ञ 2025 का दिनांक 13 अगस्त को तीसरा दिन रहा. इस बीच व्यासपीठ पर विराजमान डॉक्टर भगवताचार्य गौरीशंकर शुक्ला द्वारा भागवत ज्ञान महायज्ञ में आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी के प्रेत योनि से उद्धार का वर्णन किया गया. इसके साथ अश्वथामा द्वारा पांडव पुत्रों का वध, अर्जुन द्वारा अश्वथामा वध की प्रतिज्ञा, द्रोपदी द्वारा ऐसा कृत्य न करने से रोकना, गर्भ में राजा परीक्षित के आने से अश्वथामा द्वारा नष्ट करने का उपक्रम, श्रीकृष्ण के द्वारा राजा परीक्षित की रक्षा करना आदि कथा प्रसंगों का वर्णन किया गया.
*कर्मयोग ही श्रेष्ठ, विहित कर्म से विमुख होकर शांति की प्राप्ति नहीं – डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला*
इस बीच भागवत के कथा प्रसंगों की चर्चना और व्याख्या करते हुए डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला ने बताया की श्रीकृष्ण कर्मयोगी हैं. उनका जीवन न केवल भारत के लोगों के लिए अनुकरणीय है बल्कि सम्पूर्ण विश्व और मानवजाति के लिए एक प्रेरणा का श्रोत है. व्यक्ति कैसे समाज में रहते हुए निष्काम कर्मयोग में रत रहकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है इसकी शिक्षा उन्होंने श्रीमद भगवद गीता में दी है. व्यक्ति के कर्म की जिम्मेदारी उसकी स्वयं की है वह उससे पलायन नहीं कर सकता. मनुष्य कर्म तो कर सकता है लेकिन उस कर्म फल पर उसका अधिकार नहीं है. मनुष्य के अंतःकरण में मात्र दो शत्रु बसते हैं वह हैं काम और क्रोध. अतः काम क्रोध के वशीभूत होकर किये जाने वाले कर्म बंधनकारी होते हैं और शास्त्रों में नर्क के द्वार बताए गए हैं. नर्क कहीं और नहीं बल्कि कर्मों के बंधन में जकड़ना ही नरक है.
बताया गया है की श्रीकृष्ण का चरित्र सर्वज्ञ है. श्री कृष्ण मानव को यह शिक्षा देते हैं है की सत्कर्म कर पाप से बचा जा सकता है. श्रीकृष्ण कहते हैं की मानव का स्वभाव ऐसा होता है की वह बिना कर्म किये रह नहीं सकता इसलिए कर्मों से पलायन तो संभव ही नहीं है. व्यक्ति दो प्रकार के ही कर्म सकता है. या की वह अच्छा कर्म करेगा अथवा बुरा कर्म करेगा. यदि वह सत्कर्म करेगा तो उसका फल अच्छा होगा और यदि गलत कर्म करेगा तो उसका फल बंधनकारी और विनाशक होगा. इसलिए मानव को चाहिए की सदैव वह सत्कर्म और धर्मविहित कर्म ही करे. इसी से मानव मोक्ष की प्राप्ति करेगा.
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*
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