Sunday, August 17, 2025

Breaking:// पावन यज्ञस्थली कैथा में भागवत महापुराण का छठा दिन – मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और परशुराम के चरित्र का हो रहा वर्णन// मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का चरित्र अनुकरणीय - डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला//

दिनांक 17 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
   पावन पुनीत यज्ञस्थली कैथा हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में पाप विनाशक मोक्ष प्रदायक श्रीमद भागवत कथा भक्ति ज्ञान महायज्ञ का कार्यक्रम सतत चल रहा है। दिनांक 17 अगस्त 2025 को कथा का छठा दिवस रहा। इस बीच व्यासपीठ पर विराजमान डॉक्टर शुक्ला ने कथा के मार्मिक कथाओं का वर्णन किया।

    *मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का पावन पुनीत चरित्र अनुकरणीय*

  श्रीमद भागवत कथा में श्री नारायण के चौबीस अवतारों में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम और लीला पुरषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण का चरित्र उल्लेखनीय और अत्यंत अनुकरणीय है. भगवान श्रीराम का अवतरण दिन के 12 बजे हुआ बताया गया है और श्रीकृष्ण का अवतरण रात्रि 12 बजे होना बताया गया है. भगवान श्रीराम का चरित्र अत्यंत शांत और सीधा-सरल है जबकि भगवान् श्रीकृष्ण का चरित्र रहस्यमय और अत्यंत गूढ़ है. भगवान् श्रीकृष्ण अर्धरात्रि में अवतरित हुए जबकि भगवान श्री राम मध्यान दिन में. श्रीराम, शिव और श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं. आज सम्पूर्ण हिन्दू-सनातन संस्कृति में प्रत्येक माता-पिता अपने बालक-बालिकाओं का नामकरण इन्ही महान देवस्वरूप और नारी शक्तिओं (सीता, राधा, पार्वती, शक्ति आदि के विभिन्न नाम) के आधार पर करते हैं. नाम मात्र का स्मरण आते ही उस नाम विशेष में छिपे गुण और शक्तियों का ध्यान सहज ही आ जाता है. वैसे आज वर्तमान आधुनिक परंपरा में भारतीय संस्कृति की यह भी विशेषता समाप्त होती प्रतीत हो रही है. आज के बच्चों का नामकरण उनके माता-पिता पश्चिमी सभ्यता के नामों के आधार पर रखना ज्यादा पसंद करते है जो कि हमारे पतित होती संस्कृति का द्योतक है. ऐसे में होगा यह कि एक दिन व्यक्ति अपने आदर्शों को भी पूर्णतया भूल जायेगा. वैसे भी हमारे महान भगवत-स्वरुप पुरुष पहले आदर्श कम और हमारे संस्कृति के वास्तविक चरित्र ज्यादा थे. आज श्रीराम और श्रीकृष्ण वास्तविक चरित्र न होकर आदर्श बताये जा रहे हैं. आने वाले कल में यह भी संभव है कि इन महान चरित्रों को पूर्णतया काल्पनिक चरित्र बताकर एलियन अथवा दुसरे ग्रहों से आया हुआ बताया जाए. ऐसी परिस्थिति मात्र पश्चिमी संस्कृति के अन्धानुकरण और भारतीय संस्कृति और अपने प्रति हीनभावना से उत्पन्न हुई है. यदि इतिहास उठाकर देखा जाय तो सहज ही समझ में आ जायेगा की जो भी संस्कृतियाँ विलुप्तप्राय हुई हैं कहीं न कहीं ऐसे ही कुछ कारण रहे हैं. यद्यपि भारतीय संस्कृति के विषय में ऐसा पूर्ण विश्वास से कहा जा सकता है कि हमारी संस्कृति में जो अन्य संस्कृतियों को आत्मसात कर अपने आप में समाहित कर लेने की क्षमता है वह भारतीय संस्कृति को अन्य संस्कृतियों से अलग बनाती है. परन्तु आज हमे अतिसय आत्मविश्वास में पड़ने के स्थान पर अपनी संस्कृति को समयानुरूप परिवर्धित कर इसे कैसे अधिक सार्थक बनाया जाए इस बात के चिंतन-मनन की आवश्यकता है. इसीलिए आज आवश्यकता है भारतीय शास्त्र-ग्रंथों के वैज्ञानिक-अध्यात्मिक विवेचना की न की उनके आख्यानों को अक्षरसः लेने की. क्योंकि निश्चित रूप से यदि भागवत महापुराण अथवा अन्य हिन्दू शास्त्रों की सभी बातें अक्षरसः ग्रहण की जाएँगी तो वह आज के इस वर्तमान परिवेश में सही नहीं बैठ पाएंगी और संभव है कि इस वर्तमान पीढ़ी में अपने संस्कृति और शास्त्रों के प्रति ज्यादा अविश्वास पैदा करें, इसीलिए आवश्यकता है इनके सही टीका की और विज्ञान संगत व्याख्या की.  


  *भागवत कथा प्रसंग में नौवें स्कंध का भी वर्णन*

   पिछले दिनों की कथा प्रसंगों, जिसमे की समुद्र मंथन, देवासुर संग्राम, नारायण का वामन और मत्स्यावतार की चर्चना से सम्बंधित रही, से आगे बढ़ते हुए आते हैं नौवें स्कंध की कथा और भगवान् श्रीराम और परशुराम के अवतारों की कथा में. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का अवतरण त्रेतायुग में बताया गया है. युगों में त्रेता युग द्वापर के पहले आता है इसीलिए भगवान के अवतारों में पहले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का लीला प्रसंग आता है तत्पश्चात लीला पुरषोत्तम श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर में आता है. जहाँ भगवान श्रीराम मर्यादा की प्रतिमूर्ति थे, वहीँ भगवान श्रीकृष्ण अपनी मानव लीलाओं के चलते लीला पुरषोत्तम कहलाये. भागवत महापुराण में अवतारों के क्रम को भलीभांति व्यवस्थित किया गया है. ऐसा माना जाता है कि काल-निर्धारण के क्रम में सबसे सात्विक और सत्यमार्ग की तरफ चलने की प्रेरणा देने वाला युग पहले आएगा और समय के साथ संस्कृतियों के पतन और अनाचार, अन्याय, अनैतिकता, झूठ-फरेब और मानव के नैतिक पतन की तरफ खींचने वाला कलिकाल या कलियुग अंत में आएगा. जैसे ही यह समय चक्र पूर्ण होगा, अन्याय, अत्याचार और अनैतिकता बढ़ने पर महाकाल रुपी वह परमेश्वर इस सृष्टि का संहार कर पुनः नवीन रचना करेंगे, ऐसा सिद्धांत हिन्दू-संस्कृति में माना जाता है. यह सिद्धांत काफी हद तक वैज्ञानिक भी है क्योंकि ऋग्वेद की नासदीय सूक्ति में सृष्टि की उत्पत्ति के पहले की क्या स्थिति थी इसका बहुत ही वैज्ञानिक विवरण आज से हजारों वर्ष पूर्व ही आ जाता है जब आज का तथाकथित विज्ञान पैदा भी नहीं हुआ था. आज का वर्तमान तथाकथित भौतिक/रासायनिक/जेनेटिक विज्ञान भी इस बात को मानता है की बिग-बैंग का जो सिद्धांत और ब्लैक-होल आदि का जो सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है वह काफी हद तक ऋग्वेद में वर्णित सृष्टि के उत्पत्ति के सिद्धांत से ही सम्बंधित है. 

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Saturday, August 16, 2025

Breaking:// जन्म जन्मांतर के सत्कर्मों और सुसंस्कारों से मिलती है भागवत भक्ति// पावन यज्ञस्थली कैथा में भागवत महापुराण का पांचवां दिन - अजामिल के पतन और उद्धार की कथा, समुद्र मंथन देवासुर संग्राम का अध्यात्मिक-वैज्ञानिक दर्शन का वर्णन //

दिनांक 16 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
  यज्ञों की पावन स्थली कैथा हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में दिनांक 12 अगस्त से प्रारंभ हुई भागवत महायज्ञ का कार्यक्रम सतत रूप से चल रहा है। दिनांक 18 अगस्त को कार्यक्रम का विसर्जन हवन एवं विशाल भंडारे के साथ किया जाएगा। इस बीच आचार्य डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला के मुखारबिंद से अमृतमयी, पाप विनाशक, मोक्ष प्रदायक भागवत कथा का प्रवचन और पारायण कार्य निरंतर चल रहा है। 

   *अजामिल-यमदूत-नारायण प्रसंग की अध्यात्मिक विवेचना*

   अजामिल एक पतित ब्राह्मण था. यद्यपि अजामिल के पूर्वकर्म सात्विक और धार्मिक थे परन्तु कुसंस्कार वश अजामिल पतित हो जाता है. लेकिन उसके पूर्व शुभकर्म अंत में प्रभाव दिखाते हैं और ईश्वर अजामिल के मुक्ति का साधन बना देते हैं. समस्त जीव जो जन्म लेता है उसका शरीर त्याग सुनिश्चित है. यमदूत वह हैं जो अंत में शरीर को आत्मा से अलग कर इस नश्वर शरीर को पञ्च महाभूतों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, और आकाश को समर्पित कर देते हैं. आत्मा अज़र, अमर शाश्वत और सनातन है. श्रीमद भगवद गीता में कहा भी गया है. “न जायते म्रियते व कदाचित नायं भूत्वा भविता व न भूयः, अजो नित्यः शाश्वतोअयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे” अर्थात श्रीकृष्ण जी कहते है की हे अर्जुन यह मत भूलो की तुम आत्मा हो यह शरीर नहीं और “यह आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, यह न पहले कभी भूत में कभी जन्मी और न भविष्य में मरने वाली है, यह अज़र अर्थात जरा-रोग रहित है, यह नित्य और शाश्वत है, यह अत्यंत सनातन है, यह शरीर के नष्ट होने के बाद भी नष्ट नहीं होती”.

  *पूर्व जन्म के कर्मों और संस्कारों का परिणाम है वर्तमान जन्म*

     यमदूत हैं शरीर को आत्मा से पृथक करने वाले और जीव को उसके जीवनभर के बुरे कर्मो के फल देने वाले तत्व. वहीं नारायण के गण हैं- जीव के सत्कर्म और जीव के शुभ और भले कर्मों का फल देने वाले तत्त्व. यहाँ पर ध्यान देने की बात है की अजामिल के भी कथा प्रसंग से श्रीमद भगवद गीता के ही कर्म-फल और पुनर्जन्म के सिद्धांत को दृढ़ता दी गयी है. भगवान् श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को कुरुक्षेत्र में भगवद गीता के ज्ञान के समय शरीर त्याग के वक्त प्राप्त होने वाले अगले जन्म के विषय में बताया गया है की अंत समय में जो व्यक्ति जिस भाव में अवस्थित रहेगा वह उसी भाव/योनी की प्राप्ति करेगा. यहाँ पर यद्यपि अजामिल एक धर्मात्मा ब्राह्मण था परन्तु पतित होने के बाद भी मात्र अपने पुत्र के नारायण नाम रखने के कारण और अपने अंतिम समय में उसी नाम के उच्चारण के फलस्वरुप भगवान् नारायण के लोक को प्राप्त होना और मोक्ष को प्राप्त करना बताया गया है. संतजनो का अजामिल और उसकी पूर्व की वेश्या पत्नी के घर आना मात्र संयोग नहीं बल्कि अजामिल के पूर्व शुभ सात्विक कर्मो का परिणाम था. इसी प्रकार उस वेश्या का संत समूह से झूंठ न बोलकर सच-सच अपने विषय में बता देना भी व्यक्ति के संगत के प्रभाव को दर्शाता है. यद्यपि वह पूर्व में व्यभिचारिणी वेश्या होते हुए भी जैसे ही अजामिल के सानिध्य में आयी वह गृहस्थ तो बनी ही साथ ही एक स्त्री-धर्म का भी पालन करने के संस्कार उस वेश्या नारी में पड़ गए और यह मात्र अजामिल (और उस वेश्या नारी के) के पूर्व के संस्कार कर्मो से हुआ. अजामिल का नारायण नाम का पुत्र प्राप्त होना, अजामिल का अपने पुत्र नारायण के प्रति अतिसय आसक्ति उत्पन्न होना और अजामिल का “नारायण” नाम के भाव में पूर्णतया दृढ हो जाना अजामिल के पूर्व कर्मों का फल और संस्कार से हुआ.  

  *प्रभु नाम स्मरण मात्र से मिलता है मोक्ष*

    इस प्रकार यह देखा जा सकता है की प्रभु नाम की महिमा और उनकी कृपा प्राप्त करना हमारे वश में नहीं है. यह सब हमारे पूर्व जन्म के संचित शुभ और प्रारब्ध कर्मों का सम्मिलित रूप होता है. पूर्व जन्म को तो नहीं परन्तु वर्त्तमान जन्म को तो सुधारा ही जा सकता है. हिन्दू-सनातन संस्कृति की महानतम उपलब्धि और कालजयी ग्रन्थ श्रीमद भागवत महापुराण के सतत सानिध्य से हम अपने इस जन्म और साथ ही पूर्व और भविष्य के जन्मों को भी सफल बना सकते हैं ऐसा उल्लेख बारम्बार भागवत में आता है. ऐसा भी कहा गया है की किसी भी कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति यदि भगवत-भक्ति का मार्ग ग्रहण करता है तो वह न केवल अपना उद्धार करता है साथ ही अपने कुल के सात जन्मों पूर्व और सात जन्म आगे के वंश का भी उद्धार करता है ऐसी है ईश्वर की शरणागति. श्रीमद भागवत महापुराण जैसे कालजयी ग्रन्थ का अभ्युदय ही इस कलिकाल में अजामिल और इनसे भी अधिक पतित मानवों के उद्धार के लिए हुआ है. आवश्यकता है मात्र सम्पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर शरणागति की.

राधे राधे

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Friday, August 15, 2025

Breaking// ईश्वर प्राणिधान एवं योग से मन और इन्द्रियों पर प्राप्त होता है नियंत्रण - डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला

दिनांक 15 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
  यज्ञों की पावन पुनीत स्थली कैथा हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में पापविनाशक मोक्षप्रदायक श्रीमद भागवत भक्ति ज्ञान महायज्ञ 2025 का प्रवचन एवं परायण कार्य सतत चल रहा है। डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला ने भागवत महापुराण के कई महत्वपूर्ण कथाओं का प्रवचन किया। इस बीच उन्होंने अजामिल, दुर्वासा, समुद्र मंथन आदि कथा प्रसंगों की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया। 


  *ईश्वर नाम की महिमा एवं मन इन्द्रियों पर नियंत्रण का वर्णन*

     डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला जी ने बताया की शास्त्रों में वर्णित अजामिल के कथा प्रसंगों से यह भी भली भांति स्पष्ट हो जाता है की व्यक्ति को अपने दशों इन्द्रियों एवं मन से क्या कर्म करने चाहिए. आँख से क्या देखे और मन में क्या विचार लाये. अजामिल ने अपनी नजर को विचलित किया और कामावेश में स्त्री चरित्र को देखा इसलिए उसके मन में वही बात कौंध गयी. यदि वह ईश्वर का स्मरण करता हुआ अपने आँखों पर नियंत्रण किया होता तो यह अवस्था उत्पन्न नहीं होती. मन तो इन्द्रियों के ही अधीन है. इन्द्रियों से जो देखेंगे वही मन और बुद्धि में प्रविष्ट होता है. वही विचार और भाव मन में बन जाता है. अतः मन और इन्द्रियों को साधने और नियंत्रण की बात हिन्दू धर्म शास्त्रों, योग, वेदांत आदि में निरन्तर जोर दिया जाता रहा है. यह हमारी ऋषि मुनि मनीषी और वेदांत योग शास्त्री की उच्चतम बुद्धिमत्ता का ही फल है की हमारे दर्शन और अन्य शास्त्रों में मन बुद्धि इन्द्रियों पर निरंतर शोध होता आ रहा है. अष्टांग योग में तो मन इन्द्रियों को नियंत्रण की पूरी विधियाँ ही बताई गयीं हैं. पतंजलि योग सूत्र में चार अध्यायों में योग विज्ञान का पूरा वर्णन मिलता है. मन इन्द्रियों पर नियंत्रण से क्या क्या अनुभूतियाँ प्राप्त हो सकती हैं उसका भी पूरा वर्णन मिलता है साथ ही अंततः कैवल्य प्राप्ति अथवा मोक्ष प्राप्ति की स्थिति का भी पूरा वर्णन मिलता है.

      अजामिल के कथा प्रसंग से उस परमेश्वर परम ब्रह्म के विभिन्न नामों की महिमा का भी वर्णन मिलता है. वैसे भी सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रभु के नाम की महिमा का वर्णन मिलता है. वर्तमान कलयुग में तो यहाँ तक कहा गया है की इस युग में मात्र भगवान् के नाम का सतत मन ही मन स्मरण ही आधार है. कलयुग में तो यहाँ तक कहा गया की सभी यज्ञों का फल मात्र नाम जप में ही सन्निहित है. अतः व्यक्ति को चाहिए की वह भगवान् के नाम का सतत स्मरण करता रहे और इसी से उसे मुक्ति मिल जायेगी.     
       श्रीकृष्ण जी ने श्रीमद भगवद गीता में यहाँ तक कहा की मृत्यु के समय जो भाव व्यक्ति के मन मस्तिष्क में रहता है उसे वही योनी की प्राप्ति होती है. अतः सतत मन ही मन भगवान् के नाम का स्मरण करते रहने से व्यक्ति उसी भगवान् के भाव में स्थिर होने लगता है और एक भाव में आरूढ़ होने से वह मृत्यु के समय भी उसी भाव में रहेगा। अतः श्रीकृष्ण जी कहते हैं की मेरे ऊपर निर्भर रहने वाला, मेरे ही नाम और भाव में आरूढ़ रहने वाला व्यक्ति मुझी को प्राप्त होता है. 

      पावन यज्ञ स्थली कैथा में भागवत महायज्ञ का विसर्जन 18 अगस्त 2025 को हवन एवं  विशाल भंडारे के साथ होगा.

      पावन यज्ञ स्थली कैथा में अमृतमयी, पाप विनाशक, एवं मोक्ष प्रदायक श्रीमद भागवत कथा का श्रवण पान करने के लिए आप सभी सादर आमंत्रित हैं.

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Thursday, August 14, 2025

MP//Rewa//- कैथा में भागवत कथा का तीसरा दिवस// जीव का जगत से आसक्ति मात्र माया है, जीवात्मा का ईश्वर से सम्बन्ध ही सच्चा - डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला// एकं सद विप्रः बहुधा बदंति अर्थात सत्य एक है ज्ञानीगण उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारते हैं//

दिनांक 14 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
     पावन यज्ञस्थली कैथा प्राचीन हनुमान मंदिर प्रांगण में श्रीमद भागवत महायज्ञ का दिनांक 14 अगस्त को तीसरा दिवस रहा. इस बीच व्यासपीठ पर विराजमान डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला जी के द्वारा विभिन्न कथा प्रसंगों का वर्णन किया गया.

   तीसरे दिन की कथा प्रसंगों में – सती कथा, ध्रुव चरित्र का वर्णन, अजामिल उपाख्यान, जड़ भरत कथा प्रसंग आदि का वर्णन हुआ

  *ईश्वरीय न्याय में मात्र घोटालेबाज को ही डर सताता है – डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला*


   डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला ने बताया की भगवान सभी को कुछ न कुछ देता है और जिसको जो दिया है उसका एक दिन हिसाब लेता है. जिसके हिसाब में घोटाला होता है मात्र ऐसे व्यक्तियों को ईश्वरीय न्याय से भय लगता है. जो अपना कर्म सच्चाई और पूरी निष्ठा से किया है वही ईश्वर की परीक्षा में सफल होता है. जिसका हिसाब बराबर रहता है वही निर्भय होता है और उसी को शांति मिलती है. बताया गया की काल के भी महाकाल परमात्मा है और उनकी शरण में जाने से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है.
 
  *जीव का जगत से आसक्ति मात्र माया है, जीवात्मा का ईश्वर से सम्बन्ध ही सच्चा - डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला*

  आचार्य ने बताया की जीव इस जगत के मोह में पड़कर भ्रमित हो जाता है और इसी दृश्य संसार को ही वास्तविक मान बैठता है जबकि जीव का इस जगत के साथ सम्बन्ध मात्र माया है। शास्त्रों में बताया गया है की जीवात्मा का ईश्वर से सम्बन्ध ही सच्चा है। पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, आदि लौकिक सम्बन्ध मात्र जगत की दृष्टि से हैं जबकि पारलौकिक और अध्यात्मिक दृष्टि से यह सब आभासी संबध है और मात्र इस वर्तमान जीवन तक ही सीमित रहते हैं। यद्यपि अपने इन लौकिक संबंधों का भी निष्ठा पूर्वक और अनासक्त भाव के साथ निर्वहन करना मानव का दायित्व है। शास्त्रोक्त एवं तात्विक दृष्टि से देखा जाय तो यह सभी सम्बन्ध माया मात्र हैं। भगवान् के साथ सम्बन्ध रखते हुए अपने कर्त्तव्य मार्ग पर अविचल चलते रहना चाहिए। ईश्वर के साथ सम्बन्ध रखना चाहिए।

  *एको ब्रह्म द्वितीयो नस्ति अर्थात ईश्वर एक है दूसरा नहीं*

 आचार्य ने बताया की ईश्वर के सभी स्वरुप समान हैं और एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति सिद्धांत से एक हैं। व्यक्ति को ईश्वर का जो स्वरुप अच्छा लगे उसी स्वरुप पर ध्यान कर अपने इष्ट के तौर पर ध्यान करें। एकं सद विप्रः बहुधा बदंति अर्थात सत्य एक है ज्ञानीगण उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। श्रीकृष्ण जब हाँथ में धनुष-बाण धारण करते हैं तो वह श्रीराम कहे जाते हैं और जब चक्र-गदा धारण करते हैं तो वह विष्णु कहे जाते हैं और जब अधर्म अत्याचार बढ़ता है और तांडव कर डमरू धारण कर हाँथ में त्रिशूल लेकर अधर्मियों का संहार करते हैं तो शिव कहलाते हैं। ईश्वर के सभी स्वरुप सामान हैं और उनमे भिन्नता नहीं करनी चाहिए। जिसको ईश्वर का जो स्वरुप अच्छा लगे उसे उसी का स्मरण पूजन और ध्यान करना चाहिए।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

Wednesday, August 13, 2025

MP//Rewa// कैथा में भागवत महायज्ञ का दूसरा दिन// कर्मयोग ही श्रेष्ठ, विहित कर्म से विमुख होकर शांति की प्राप्ति नहीं – डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला

दिनांक 13 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
     दिनांक 11 अगस्त सोमवार से कलश यात्रा के साथ प्रारंभ हुई श्रीमद भागवत भक्ति ज्ञान महायज्ञ 2025 का दिनांक 13 अगस्त को तीसरा दिन रहा. इस बीच व्यासपीठ पर विराजमान डॉक्टर भगवताचार्य गौरीशंकर शुक्ला द्वारा भागवत ज्ञान महायज्ञ में आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी के प्रेत योनि से उद्धार का वर्णन किया गया. इसके साथ अश्वथामा द्वारा पांडव पुत्रों का वध, अर्जुन द्वारा अश्वथामा वध की प्रतिज्ञा, द्रोपदी द्वारा ऐसा कृत्य न करने से रोकना, गर्भ में राजा परीक्षित के आने से अश्वथामा द्वारा नष्ट करने का उपक्रम, श्रीकृष्ण के द्वारा राजा परीक्षित की रक्षा करना आदि कथा प्रसंगों का वर्णन किया गया.

  *कर्मयोग ही श्रेष्ठ, विहित कर्म से विमुख होकर शांति की प्राप्ति नहीं – डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला*

   इस बीच भागवत के कथा प्रसंगों की चर्चना और व्याख्या करते हुए डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला ने बताया की श्रीकृष्ण कर्मयोगी हैं. उनका जीवन न केवल भारत के लोगों के लिए अनुकरणीय है बल्कि सम्पूर्ण विश्व और मानवजाति के लिए एक प्रेरणा का श्रोत है. व्यक्ति कैसे समाज में रहते हुए निष्काम कर्मयोग में रत रहकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है इसकी शिक्षा उन्होंने श्रीमद भगवद गीता में दी है. व्यक्ति के कर्म की जिम्मेदारी उसकी स्वयं की है वह उससे पलायन नहीं कर सकता. मनुष्य कर्म तो कर सकता है लेकिन उस कर्म फल पर उसका अधिकार नहीं है. मनुष्य के अंतःकरण में मात्र दो शत्रु बसते हैं वह हैं काम और क्रोध. अतः काम क्रोध के वशीभूत होकर किये जाने वाले कर्म बंधनकारी होते हैं और शास्त्रों में नर्क के द्वार बताए गए हैं. नर्क कहीं और नहीं बल्कि कर्मों के बंधन में जकड़ना ही नरक है.

   बताया गया है की श्रीकृष्ण का चरित्र सर्वज्ञ है. श्री कृष्ण मानव को यह शिक्षा देते हैं है की सत्कर्म कर पाप से बचा जा सकता है. श्रीकृष्ण कहते हैं की मानव का स्वभाव ऐसा होता है की वह बिना कर्म किये रह नहीं सकता इसलिए कर्मों से पलायन तो संभव ही नहीं है. व्यक्ति दो प्रकार के ही कर्म सकता है. या की वह अच्छा कर्म करेगा अथवा बुरा कर्म करेगा. यदि वह सत्कर्म करेगा तो उसका फल अच्छा होगा और यदि गलत कर्म करेगा तो उसका फल बंधनकारी और विनाशक होगा. इसलिए मानव को चाहिए की सदैव वह सत्कर्म और धर्मविहित कर्म ही करे. इसी से मानव मोक्ष की प्राप्ति करेगा.

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Tuesday, August 12, 2025

Breaking// श्रीमद भागवत महायज्ञ का पहला दिन - ईश्वर दृष्ट नही है, ईश्वर दृष्टा हैं ( कैथा की पावन पुनीत स्थली पर चल रही भागवत कथा में चल रहा प्रथम एवं द्वितीय स्कंध का वर्णन, 18 को हवन भंडारे के साथ होगा कथा का विसर्जन)

दिनांक 12 अगस्त 2025, स्थान - रीवा मप्र
    विंध्य क्षेत्र में जनजागरण का केंद्र कैथा श्रीहनुमान श्री शिव मंदिर प्रांगण में आयोजित श्रीमद भागवत महापुराण महायज्ञ का दिनाँक 12 अगस्त को प्रथम दिवश रहा। इस बीच 11 अगस्त को कलश यात्रा एवं 12 अगस्त को बैठकी के साथ प्रारम्भ हुई कथा निरंतर चल रही है। अमृतमयी मोक्षप्रदायक भगवत कथा का प्रवचन एवं परायण का कार्य भगवताचार्य डॉक्टर श्री गौरीशंकर शुक्ला के मुखारविंद से किया जा रहा है जिसका रसास्वादन करने के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्त श्रद्धालुगण उपस्थित होकर अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं।

*प्रथम एवं द्वितीय स्कंध तक कि कथा*

   इस बीच दिनाँक 12 अगस्त दिन मंगलवार को श्रीमद भागवत कथा के प्रथम एवं द्वितीय स्कंध की कथा प्रसंगों का वर्णन किया गया जिसमें सच्चिदानंद स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण का वंदन, गोकर्ण कथा, भागवत सप्ताह महायज्ञ की विधि, सुदामा जी की निष्काम भक्ति, गोपियों की निष्काम भक्ति, वैराग्य से ही ज्ञान सम्भव, भक्ति में सभी का अधिकार, परीक्षित की जन्मकथा, श्रीकृष्ण की काम विजय, कलयुग का आगमन, जगत की उत्पत्ति की कथा, भगवत्सेवा से ही सुख की प्राप्ति, सुख-दुःख का कारण माया आदि कथा प्रसंग सम्मिलित रहे।

  *ईश्वर दृश्य नही बल्कि स्वयं सर्वदृष्टा है* 

   डॉक्टर शुक्ला ने बताया कि ईश्वर दृश्य नही बल्कि ईश्वर दृष्टा है। ईश्वर ने ही आंखों को देखने की शक्ति दी है लेकिन इतनी शक्ति नही दी कि वह उन नग्न आंखों से ईश्वर को देख सकें। ईश्वर दृश्य नही है क्योंकि सांसारिक आंखें सर्वव्यापी परमात्मा को नही देख सकतीं उसके लिए अन्तरचक्षु की आवश्यकता होती है। जब ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज का उदय हृदय में होगा तभी वह सर्वव्यापक परमात्मा देखा जा सकेगा।फिर हम शुख दुःख लाभ हानि जय पराजय और द्वैत भाव से ऊपर उठकर सभी मे उसी परमात्मा को अनुभव करेंगे। यही वेदांत का सिद्धांत भी है। वेदांत वेदों का निचोड़ ज्ञान है। 

   *भक्ति की शक्ति से ईश्वर दृश्य हो जाता है*

   डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ल ने बताया कि भक्ति की शक्ति ही आत्मा और मन मे जमे हुए बाहरी विकारों, मोह माया, दुर्गुणों, द्वेष ईर्षा आदि बुरे संस्कारों और भावों को धोकर मन और आत्मा में सन्निहित ज्ञान पुंज को खोल देती है। उस भक्ति को प्राप्त करने के श्रीरामचरित मानस में 9 मार्ग बताए हैं जिन्हें नवधा भक्ति कहा गया है। बताया गया कि भगवान श्रीराम ने भीलनी शबरी को नवधा भक्ति का राज बताया था।

  भक्ति जब बढ़ती है और अपने चरम पर पहुचती है तब भगवान को भी भक्त के लिए दृश्य होना पड़ता है। 
  
   *वृंदावन क्या है? हृदय ही वृंदावन है*

    डॉक्टर शुक्ला ने बताया कि मॉनव हृदय वास्तव में वृंदावन जैसा ही है। जिस प्रकार भागवत महापुराण में आया कि वृंदावन में भक्ति ज्ञान और वैराग्य निवास करते हैं और कलिकाल के प्रभाव से ज्ञान और वैराग्य मूर्छित हो जाते हैं जबकि भक्ति छिन्न भिन्न हो जाती है ऐसे में नारद मुनि स्वयं चिंतित हो जाते हैं। भोग प्रधान जीवन मे भगवान गौंड़ हो गए हैं धन और पैसा मुख्य हुआ है। भक्ति हृदय में निवास करती है और भक्ति भगवान की ही शक्ति है। आचार्य ने बताया कि ऐसे लोग भी जो ऐसी धारणा पालकर रखे हुए हैं कि वह भगवान और भक्ति कुछ नही मानते उनके भी हृदय में भक्ति निवास करती है। ईश्वर पर आस्था न भी रखने वाले लोग जब अत्यंत दुखी होते हैं तब वह भी यह विचार करते हैं कि यह सृष्टि किसी शक्ति के अधीन ही है और ऐसे नास्तिक भी अंततः ईश्वरीय शक्तियों पर विश्वास करते हैं। 

    इस प्रकार वृंदावन रूपी हृदय में ज्ञान वैराग्य और भक्ति की अलख जगाने से हमारा हृदय ही देवस्थल बन जाता है और परमशान्ति की प्राप्ति होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
     श्रीहनुमान मन्दिर प्रांगण में चल रही श्रीमद भगवत कथा 18 अगस्त 2025 तक चलेगी। महापुराण कथा का विसर्जन हवन एवं भंडारे के साथ किया जाएगा जिसमे सभी भक्त श्रद्धालुओं को सादर आमंत्रित किया गया है।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Breaking: साप्ताहिक भागवत कथा का कार्यक्रम कलश यात्रा के साथ प्रारंभ// यज्ञों की पावन स्थली कैथा में प्रारंभ हुई साप्ताहिक श्रीमद भागवत महायज्ञ// आचार्य डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला के मुखार बिंद से कथा का होगा प्रवचन और पारायण कार्य// सोमवार 18 अगस्त को हवन भंडारे के साथ होगा समापन//

दिनांक 11 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
  यज्ञों की पवनस्थली कैथा हनुमान जी मंदिर प्रांगण में साप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा का प्रारंभ सोमवार दिनांक 11 अगस्त 2025 को कलश यात्रा के साथ हुआ। गौरतलब है की हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में श्रीमद् भागवत महायज्ञ का कार्यक्रम परंपरागत रूप से आयोजित किया जाता रहा है। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी आचार्य डॉक्टर गौरीशंकर शुक्ला जी के मुखारविंद से अमृतमयी पाप विनाशक मोक्ष प्रदायक श्रीमद भगवत भक्ति ज्ञान महायज्ञ का प्रवचन एवं परायण कार्य किया जाएगा। 

  *कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कलश यात्रा में सम्मिलित हुए श्रद्धालु*

  बैठकी के पूर्व दिनांक 11 अगस्त को कलश यात्रा का कार्यक्रम रखा गया जिसमें आसपास के नजदीकी ग्राम कैथा सोरहवा मिसिरा बड़ोखर करहिया हिनौती इटहा अकलसी आदि ग्रामों के काफी संख्या में भक्त श्रद्धालुगण सम्मिलित हुए। कलश यात्रा का प्रारंभ हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण कैथा से प्रारंभ होकर श्रीमद् शारदा देवी मंदिर प्रांगण कैथा तक रहा जहां देवी मंदिर प्रांगण में कलश स्थापना के साथ वापस कलश यात्रा हनुमान जी मंदिर प्रांगण में पहुंची जहां पर कलश की स्थापना की गई। 

*18 अगस्त दिन सोमवार को हवन भंडारे के साथ कार्यक्रम का होगा विसर्जन*

  परंपरागत तौर पर हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में प्रारंभ हुई श्रीमद भागवत कथा का विसर्जन हवन और भंडारे के साथ दिनांक 18 अगस्त 2025 को किया जाएगा। 
   हवन और भंडारे में सम्मिलित होने के लिए आयोजक मंडल ने समस्त भक्त श्रद्धालुओं को सादर आमंत्रित किया है।

*संलग्न* - कार्यक्रम से संबंधित तस्वीरें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

Saturday, August 9, 2025

सीईओ जिला पंचायत धारा 89, 40 और 92 की कार्यवाही पर दें विशेष ध्यान -एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी

Breaking// सीईओ जिला पंचायत धारा 89, 40 और 92 की कार्यवाही पर दें विशेष ध्यान -एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी// जिला पंचायत रीवा और मऊगंज में पंचायतों में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर शिवानंद द्विवेदी ने जिला पंचायत की कार्यप्रणाली को ठहराया जिम्मेदार// जिला पंचाउत सीईओ नहीं कर रहे सुनवाई, धारा 40 92 के आदेश वर्षों से नहीं हुए पारित// वर्तमान में पिछले 7 माह से मेहताब सिंह गुर्जर हैं सीईओ जिला पंचायत रीवा// जिला पंचायत सदस्य लालमणि त्रिपाठी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने खाली जिला सीईओ के पद के लिए किया था आंदोलन//


दिनांक 10 अगस्त 2025 रीवा मप्र।


  एक बार फिर जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी मेहताब सिंह गुर्जर की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी ने कहा की जिला पंचायत में पंचायत राज अधिनियम की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। उन्होंने आरोप लगाए की मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993-94 की धारा 89, 40 एवं 92 की कार्यवाही ठप्प जैसी पड़ी हुई है जिसके लिए पूरी तरह मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा जिम्मेदार है। उन्होंने कहा की मात्र दिखावे के तौर पर कुछ पंचायत की सुनवाईयां की जा रही हैं और साथ में कोई निर्णय भी पारित नहीं किया जा रहे हैं लेकिन ऐसी सैकड़ो पंचायतें हैं जिन पर व्यापक स्तर का भ्रष्टाचार व्याप्त है लेकिन कोई कार्यवाही न किए जाने से भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद हैं। आपको बता दें कि पंचायत राज अधिनियम में धारा 89 की सुनवाई की शक्ति पहले अनुविभागीय एवं दंडाधिकारी को थी जिसके बाद ट्रांसफर कर सुनवाई किए जाने की शक्ति संबंधित जिला कलेक्टरों को दे दी गई थी। परंतु वर्तमान व्यवस्था में अब इस अर्धन्यायिक व्यवस्था की जिम्मेदारी मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत को होती है। जब से मध्य प्रदेश में सुनवाई की यह शक्ति मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायतों के पास आई है तब से न केवल रीवा जिले में बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में ही यही हाल है। जानकारों का मानना है की क्योंकि मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत स्वयं भी पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से ही संबंधित वरिष्ठ अधिकारी होते हैं इसलिए वह भ्रष्ट सरपंच सचिव इंजीनियर और अपने कर्मचारियों को बचाने का प्रयास करते हैं जिसके कारण इस अर्धन्यायिक व्यवस्था में सवाल खड़े हो गए हैं। 


  देखिए पूरे मामले को लेकर के सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने क्या कुछ कहा है।


*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*