Sunday, November 25, 2018

MP- चचाई जलप्रपात के नीचे जीवित धकेले गए हज़ारों गोवंश, चचाई जलप्रपात पशुओं के लिए बनाया गया कालापानी ( मामला रीवा ज़िले के सिरमौर थाना क्षेत्र अन्तर्गत चचाई जलप्रपात का जहां पर हज़ारों फीट गहरी घाटी के नीचे धकेल दिए हज़ारों गोवंश, पानी, चारा, छाया, धूप सभी का बना संकट, अस्तित्व पर बना खतरा, शासन प्रशासन बना तमाशबीन)

दिनांक 26 नवंबर 2018, स्थान - चचाई जलप्रपात रीवा, मप्र

 (शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र) 

   ज़िले की गहरी घाटियों और जलप्रपातों के अंदर से एक बार फिर बुरी खबर आई है. आवारा पशुओं से परेशान लोगों और किसानों ने एकबार फिर आवारा पशुओं के हज़ारों की संख्या के झुंड को गहरी घाटियों के नीचे धकेल दिया है जिनके लिए अब उनके जीवन का संकट उत्पन्न हो चुका.

   चचाई जलप्रपात के अंदर का है मामला 

     पिछले दिनों मरहा घाट के नीचे जो गोवंशों को धकेले जाने का मामला सामने आया था उसी कड़ी में सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा शोध करने पर ज्ञात हुआ की चचाई रेस्ट हाउस से लगे हुए और जलप्रपात के नीचे जाने के रास्ते से हज़ारों गोवंशों को समय समय पर हज़ारों फीट गहरी घाटियों के नीचे उतारा जा रहा है. जानकार सूत्रों से पता चला की यह घटनाक्रम कोई अकेला नही है और नियमित अंतराल में मवेशियों को घाट के नीची मौत के घाट उतारा जा रहा है. 

   पशुओं के लिए कालापानी की सजा

    वास्तव में देखा जाय तो दिनांक 24 एवं 25 नवंबर 2018 को सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोवंश राइट्स एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी एवं ध्यान फाउंडेशन नई दिल्ली के सदस्य विनोद सिंह द्वारा जो फ़ोटो और वीडियो डिटेल्स हज़ार फीट गहरी घाटी के नीचे से इकट्ठे किये गए वह आत्मा तक को भी दहला देने वाले हैं.

    चचाई घाट के नीचे से बड़ी मुश्किल से उतरकर देखा गया तो पाया गया की यह रास्ता मानव के ही चलने योग्य नही तो भला इसमे चारपाये डोमेस्टिक मवेशी कैसे निकल सकते थे. यह घटना वाकई पशु क्रूरता की बेइंतेहा और हद पर करने वाली घटना थी जिंसमे इन मवेशियों को जबरन मार मारकर घाट के नीचे उतारा गया था. काफी मवेशियों के चोट के निशान भी पाए गए हैं.

   टेढ़ा मेढ़ा खाइयों से भरा पथरीला दुर्गम है रास्ता

    हज़ारों फीट नीचे घाट में पहुचने से पहले ही मात्र सौ दो सौ फीट गहराई से ही मवेशियों और जानवरों के मरे और सड़ी हुई दुर्गंध आने लगी थी. जिस स्थान पर चचाई वाटरफॉल में ज्यादा पानी भरा हुआ दीखता है वहां ऊपर से देखने पर कुछ समझ नही आ रहा था. यह रास्ता भी इतना फिसलन भरा था की इससे नीचे उतर पाना बहुत कठिन कार्य था. लेकिन किसी तरह से पेड़ों और झाड़ियो को पकड़ पकड़कर नीचे उतरा गया. एक स्थान पर यह रास्ता ब्लॉक भी दिखा जिंसमे वहीं आसपास के छोटे पत्थर लगाकर रास्ता को ब्लॉक कर दिया गया था. आसपास लकड़ी काटने वाले लकड़हारों से जानकारी मिली की जो लोग इन पशुओं को घाट के नीचे उतार देते हैं वह इन रास्तों को बाद में बन्द किये हैं जिससे यह गोवंश वापस न पलट पाएं और यहीं अपनी जान गवां दें जिससे लोगों को आवारा पशुओं से हमेशा के लिए निजात मिल जाए.

  रास्ते में मिले दर्ज़नों मृत मवेशी और उनके कंकाल

    इस बीच घाट के नीचे बड़ी मुश्किल से उतरते हुए कई मवेशियों के मृत कंकाल और बदबू मारती हुई डेड बॉडी भी मिली जिनको की सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लिया गया. यह सबूत पर्याप्त थे जो इस बात की गवाही दे रहे थे की पशु क्रूरता के चलते ही इन मवेशियों की मौतें हुईं हैं.

    यहां तक की घाट के ऊपर से ही एक मवेशी एक बड़े पेंड के नीचे मृत देखा जा सकता था जिसकी की ऊपर से फ़ोटो भी लेने के प्रयास किये गए थे. वह अभी भी मौजूद है.

   रेतीले भाग में पाए गए सैकड़ों जीवित गोवंश

    इस बीच पेड़ों और झाड़ियों को पकड़ पकड़कर उतरते हुए जब कुछ समतल भाग में पहुचा गया तो वहां पर काफी रेत दिखी जिंसमे पैर धस रहा था. वहीं पर बगल में वाटरफॉल का पानी भी जमा हुआ था जिंसमे बहाव नही था. ऐसा लगा की यहां पर आकर मवेशी इसीलिए इकठ्ठे हुए थे क्योंकि यहां पर पानी का स्रोत उपलब्ध था. आसपास देखने पर पता चला की जंगली पेड़ों की ऐसी पत्तियां जिन्हें यह घरेलू पशु नही खाते इसके अतिरिक्त और कोई भी चारा अथवा पशुओं के खाने योग्य वहां पर कुछ नही पाया गया. कुछ आसपास हरे बांस के पौधे पाए गए लेकिन बांस की जो पत्तियां नजदीक थीं उनको तो पहले ही यह पशु खा चुके थे परंतु अब बांस की पत्तियां भी उपलब्ध नही थीं जो काफी ऊंचाई में थीं. 

    पशु ज्यादा भागने में असमर्थ, काफी बैठ चुके थे

     इन पशुओं को थोड़ा और भी करीब से देखा गया तो पाया गया की यह पशु चल फिर पाने में पूरी तरह से असमर्थ थे. कुछ अभी जो चल फिर पा रहे थे वह कुछ यंग थे. जो गोवंश ज्यादा उम्र वाले थे वह अब बैठ चुके थे. एक दो मवेशी ऐसे भी दिखे जिनके शरीर में गहरे चोट के निशान थे और खून बह रहा था. चूंकि वहां पर वेटेरिनरी फैसिलिटी उपलब्ध नही थी अतः उसके लिए कुछ नही किया जा सका.

  सबसे बड़ा प्रश्न  - वन विभाग के अंदर पशु क्रूरता का जिम्मेदार कौन?

    सबसे प्रथम बात तो यह है की चचाई जलप्रपात के नीचे पूरी तरह से एक आरक्षित क्षेत्र है जहां वन विभाग और शाशन की निगाह रहती है. बताया गया की यहाँ पर एक परमानेंट बीट गॉर्ड भी है लेकिन वह कभी भी अपनी ड्यूटी देने नही आता. इस बीच पिछले तीन चार दिनों में घाटी के नीचे टांगी और कुल्हाड़ी लिए हुए काफी लकड़हारे भी मिले जो बेहिचक और बेरोकटोक लकड़ियां काट रहे थे और पूंछने पर बताया की यहां उनका रोज का धंधा है कोई कुछ नही बोलता.

    इससे स्पष्ट है की सबसे जिम्मेदार वन एवं पर्यावरण विभाग ही है जिसने इस प्रकार की पशु क्रूरता होने दिया और इसमे कोई रोंक नही लगाई. सूत्रों और ग्रामीणों ने यहां तक बताया की यह सब वन विभाग की सह से ही किया जा रहा है. बताया गया की वन विभाग के कर्मचारी ग्रामीणों से पैसे लेते हैं और पशुओं को घाट के नीचे उतरवाते हैं. लकड़हारों ने बताया की जब कोई मुंसी और बीट गार्ड यहां पर आता है वह हमसे पैसे ले लेता है और हमे छोंड़ देता है.

  अब क्या है आगे का रास्ता?

   अब सबसे बड़ी बात यह है की हज़ारों की संख्या में फंसे हुए इन गोवंशों को निकालने के लिए क्या किया जाए? क्या इस चचाई घाट की दुर्दान्त पहाड़ियों और घाटियों के बीच से इन गोवंशों को निकाला जाना संभव है? चूंकि मानव तक को उतरने और चढ़ने में भारी मुश्किल का सामना करना पड़ता है ऐसे में घाट के नीचे हज़ारों फीट गहरी खाई में उतार दिए गए इन गोवंशों को ऊपर कैसे लाया जाय यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है. 

   आसपास के ग्रामीणों से जानकारी मिली की यही पथरीले और कठिन रास्ते हैं जिनसे एक एक करके इनको ऊपर लाया जा सकता है अन्यथा फिर घाट के नीचे ही नीचे लगभग 20 किमी दूरी पथरीले भाग से होते हुए इन्हें आगे निकाल दिया जाय. यद्यपि दोनो ही स्थितियों में कार्य बहुत मुश्किल है.

  पुलिश प्रशासन, वन एवं ज़िला प्रशासन का मिले सहयोग

     इस रेस्क्यू अभियान में पुलिश, वन एवं अन्य ज़िला प्रशासन का सहयोग चाहिए होगा वरना यह कार्य इतना आसान नही होगा. संभव है इसमे एक सप्ताह के आसपास का समय लग जाए. क्योंकि झुंड में इन मवेशियों को निकालने का कार्य संभव नही होगा. इन्हें एक एक करके ही निकाला जा सकेगा.

    इस बीच पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाओं और उच्चस्तरीय मंत्रालयों और विभागों के हस्तक्षेप से काम में आसानी होगी.

संपर्क - डीएफओ रीवा श्री विपिन पटेल - 9424793326

   सीसीएफ रीवा संभाग श्री अतुल खेड़ा - 9424793325

कलेक्टर रीवा श्रीमती प्रीति मैथिल नायक 

 - 9977742118,

 कमिश्नर रीवा संभाग - 9425088190

  संलग्न - संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें चचाई वाटरफॉल के नीचे धकेले गए हज़ारों की संख्या में हज़ारों फीट गहरी घाटी के नीचे फंसे गोवंश.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

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