दिनांक 03 नवंबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव रीवा मप्र
(शिवानन्द द्विवेदी, रीवा)
पिछले खरीफ 2018 में जुलाई अगस्त महीने में गंगेव किसान कल्याण एवं कृषि विकाश विभाग में खरीफ फसल के बीज की कालाबाजारी बता कर पूरा बीज निपटा दिया गया. किसान बेचारा जब भी कृषि विभाग आया उसे मायूस होकर खाली हाँथ ही लौटना पड़ा. किसानों को पुराना पहाड़ा पढ़ा दिया गया की खरीफ़ सीजन का बीज चोरी हो गया. चोरी गए बीज में लाखों रुपये के महत्वपूर्ण बीज थे जिनमे अरहर, उडद, मूग आदि के बीज सम्मिलित थे.
रवी 2018-19 के बीज की भी कालाबाजारी की चल रही तैयारी
इस बीच गाहे बगाहे खरीफ तो बीत गया और आ गया रवी 2018-19 का समय जब इस भीषण सूखे अकाल में किसान की पहले ही बुरी तरह से कमर टूट चुकी है ऐसे में यदि कोई किसान हिम्मत करके किसी तरह खेती किसानी करने और स्वयं के बोर के पानी से खेती करने की सोचा और बीज लेने के लिए यदि गंगेव कृषि विभाग का रास्ता अख्तियार भी किया तो उसे बता दिया गया की अभी बीज आया ही नही और जो आया था वह आरएईओ को अलॉट कर दिया गया.
गंगेव कृषि विभाग में कितना बीज आया कोई जानकारी नही
सबसे बड़ी बात पारदर्शिता के अभाव की है. गंगेव किसान कल्याण एवं कृषि विभाग में पारदर्शिता का भारी अभाव रहता है. यहां पर इसकी कोई जानकारी नही रहती की किस स्कीम के तहत कब और कितना बीज आया है और किस किस किसान को दिया गया. न तो कोई नोटिस बोर्ड में जानकारी और न ही किसी प्रकार की जबाबदेही. बस मौखिक फरमान जारी कर दिया जाता है. जब कभी भी किसान कोई भी बीज अथवा उर्वरक लेने कृषि विकाश विभाग जाता है और कोई बीज लेने का प्रयास करता है तो उसे फालतू के टेक्निकल और कागज़ी कचरे में फंसा दिया जाता है. पहुच वाले और दबंग किसानों से तो कोई कागज़ नही मागा जाएगा और ऐसे ही उन्हें कई क्विंटल बीज दे दिए जाएँगे लेकिन जब कोई एक से 2 अथवा 3 हेक्टेयर तक का छोटा किसान जाएगा तो उसे पचास प्रकार की कागज़ी उलझने बतायी जाएंगी जिससे वह परेशान होकर भाग जाए. आधार कार्ड, समग्र आई डी, ऋणपुस्तिका, बी वन, बैंक खाता और पता नही क्या. जब किसान यह सब लेकर भी जाएगा तो उसे फिर कई कैटेगरी के बीज बता दिए जाएंगे जिंसमे कुछ 18 सौ रुपये क्विंटल, कुछ 64 सौ रुपये क्विंटल और कुछ अन्य प्रकार के. किसान इनमे से जो भी बीज खरीदता है उसकी कोई भी रशीद गंगेव कृषि विभाग में नही दी जाती है. किसान कितना भी रशीद की माग करे लेकिन कोई रसीद नही दी जाएगी. यह हाल हैं ब्लॉक लेवल के कृषि कार्यालयों के जहां दावे तो बड़े बड़े किये जाते हैं लेकिन धरातल पर बिल्कुल इसका उल्टा ही देखने को मिलता है.
चने और गेहूं के बीज के ले लिए पैसे पर नही दिए रसीद
गंगेव कृषि विभाग में दिनांक 02 नवंबर को दर्ज़न भर किसानों को बुलाया गया था और बताया गया था की आपको वृहस्पतिवार को बीज वितरित किये जाएंगे. हिनौती, बांस, पताई, गोंदरी आदि ग्रामों से कई किसान बीज मिलने की लालसा लिए गंगेव पहुचे लेकिन जब शुबह 11 बजे कार्यालय वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी किसान कल्याण एवं कृषि विकाश विभाग गंगेव पहुचे तो बताया गया की अभी एसएडीओ वीरेंद्र सिंह चौहान नही हैं अतः अभी बीज नही मिलेगा. इस बीच किसानों ने घंटों इंतज़ार किया तब एसएडीओ पहुचे और किसानों ने अपनी माग रखी तब एसएडीओ ने बताया की अभी हमारी 4 बजे तक मीटिंग चलेगी और 4 बजे के बाद ही देखा जाएगा की किसे बीज देना है किसे नही.
मीटिंग के बहाने कालाबाजारी के बनते हैं प्लान
वास्तव में देखा जाए तो मीटिंग का तो कोई औचित्य ही नही बनता. क्योंकि जब दर्ज़नों किसानों को बृहस्पतिवार के दिन कृषि विभाग में बुलाया जाता है तो सीधे उनकी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए. पूरे सपताह भर में मात्र बृहस्पतिवार ही एक ऐसा दिन होता है जब सभी कृषि विस्तार अधिकारी अर्थात आरएईओ या ग्राम सेवक गंगेव कृषि विभाग में मिलेंगे नही तो इन ग्राम सेवकों न तो कृषि विभाग में और न ही ग्रामों में दर्शन होते हैं. ग्राम सेवकों के स्थान पर कार्य करने के लिए आजकल किसान मित्र भी बनाये गए हैं लेकिन इन किसान मित्रों का भी कोई रता पता नही रहता. सभी मात्र अपना हित साधने में रुचि रखते हैं. अपना लाभ देखते हैं. जिन किसान मित्रों और आरएईओ से अधिकारियों को ज्यादा माल मिलता है उन किसान मित्रों और आरएईओ को ज्यादा बीज दे दिया जाएगा. यह किसान मित्र और आरएईओ उस बीज को उन्ही किसानों को बेंचकर उसका पैसा कुछ स्वयं डाइजेस्ट कर जायेगे और शेष अधिकारियों को दे देंगे इस प्रकार की बातें अक्सर किसानों और अन्य ग्रामीणों द्वारा बताए जाते हैं.
सूचना के अधिकार के तहत जानकारी छुपाने का प्रयाश
बात इतने तक ही सीमित नही रहती है बल्कि यदि कोई सज्ञान देशवासी इन कार्यालयों में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत कुछ जानकारी भी मांगता है वह भी छुपाने का प्रयाश किया जाता है और पारदर्शिता के अभाव में पूरा काला व्यापार अंदर ही अंदर चलता रहता है. जबकि कई बार किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा यह माग निरंतर की जाती रही है की बताएं कौन कौन सा बीज और उर्वरक अथवा अन्य योजना सम्बन्धी सामग्री किसानों के लिए आई है और किस किस रेट में अथवा कितनी सब्सिडी में सब उपलब्ध है, किसे किसे वितरित की गई इसकी सीजनवार समस्त जानकारी नोटिस बोर्ड में चस्पा की जाए जिससे यह पता चल सके की कौन कौन से किसानों क्या क्या बीज मिला है और किसे नही मिला है. लेकिन ऐसा कुछ भी नही किया जाता है और किसानों को मजबूर किया जाता है की या की वह मायूस होकर थक हारकर कृषि विभाग के चक्कर लगाकर वापस लौट जाएं अथवा हंगामा करें और तब जाकर उन्हें शांत करने के उद्देश्य से ऊंट के मुँह में जीरा डाल दिया जाए. यह सब तमाशा मात्र रवी अथवा खरीफ 2018 में ही नही देखने को मिला है बल्कि वर्षों से यही सब चल रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा यह बातें गंगेव कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के समक्ष कई वर्षों से उठाई जाती रही हैं लेकिन इसे कभी भी गंभीरता से नही लिया जाता. हर बार की यही स्थिति है की जब दर्ज़नों किसान कार्यालय में इकट्ठा होते हैं और जब जमकर अपने हक की मग करते हैं तब जाकर इनके कानो में जूं रेंगती है.
ग्राम सेवक बिना कार्य के ही उठा रहे पेमेंट
केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किसानों के हित में जो भी थोड़े बहुत कदम समय समय पर उठाये जाते हैं उनका सही तरीके से क्रियान्वयन नही हो पाने की वजह से ज्यादातर किसान सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होकर अपने जीवन स्तर को ऊपर नही उठा पा रहे हैं जिससे उनके पीढ़ी दर पीढ़ी उसी गरीबी और उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं. किसान और भी गरीब और उपेक्षित होता जा रहा है और इन सबके पीछे का कारण है सरकारी कर्मचारियों और नेताओं द्वारा किसानों का शोषण. कहने को हर एक ग्राम के लिए दो तीन पंचायतों के बीच में एक ग्राम सेवकों एवं आरएईओ नियुक्त किये गए हैं साथ ही दो तीन गांव के बीच में किसान मित्र भी बना दिए गए हैं. ग्राम सेवकों की पेमेंट आज 50 हज़ार के आसपास है इसी प्रकार प्राइवेट किश्म के किसान मित्रों को भी एक हज़ार रुपये प्रतिमाह के हिसाब से दिए जा रहे हैं लेकिन किसान मित्रों की तो बात छोड़िए, यहां 50 हज़ार रुपये प्रतिमाह पाने वाला ग्राम सेवक स्वयं किसान सेवक न होकर उसका मालिक बन चुका है. आज किसी भी ग्राम में जाकर पता लगाया जा सकता है और यह बहुत ही मुश्किल होगा की पता चल जाए की उस ग्राम का ग्राम सेवक कौन है. आज ग्राम सेवकों की भर्ती न होने की वजह से भी कई आरएईओ पद खाली पड़े हैं जिनमे अन्य ग्राम सेवकों को प्रभार देकर एक ग्राम सेवक की ड्यूटी 2 से तीन आरएईओ में लगा दी गई है. फिर भी यदि देखा जाए तो कम से कम सप्ताह में एकबार हर किसी ग्राम में जाकर किसानों को सूचित किया जाकर किसी समुचित सार्वजनिक जगह पर ग्राम सेवक किसानों की मीटिंग ले सकता है और जानकारी दे सकता है की किसानों के लिए उस समय सरकार क्या क्या योजना लेकर आई है और कैसे किसान उसका लाभ ले सकते हैं. लेकिन इसके उलट जो भी योजनाएं आती हैं ग्राम सेवक किसानों से छुपाते हैं. कोई जागरूक किसान जब जाकर जानकारी कहीं से प्राप्त करते हैं तब जाकर उन्हें मिल पाती है. ग्राम सेवकों का कोई पता नही रहता की कहां हैं और कैसे मिलेंगे. ये किसी भूमि सम्बन्धी अथवा जल क्षमता का कोई प्रमाण पत्र बनवाना है तो भी ग्राम सेवकों को सीधा पिसान लेकर ढूंढना पड़ता है.
इन इन किसानों को लौटना पड़ा खाली हाँथ
गंगेव कृषि विभाग में उपस्थित हुए किसानों ने जब जमकर हंगामा किया तो कुछ किसानों को तो चने और गेहूं का बीज दे दिया गया लेकिन दर्ज़नों किसान ऐसे थे जिन्हें मायूस होकर वापस ही लौटना पड़ा.
कैथा से शैलेन्द्र पटेल, राजेश पटेल, नरेंद्र पटेल, जगदीश पटेल, जगदीश पांडेय, भैयालाल पांडेय, दसरथ केवट, संपूर्णानंद द्विवेदी, सिद्धमुनि द्विवेदी, बड़ियोर से पुष्पराज सिंह, सुमंत सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह, काशी सिंह, बड़ोखर से सुरसरी सिंह, मुनेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह, शिवेंद्र सिंह, बीरेंद्र सिंह, दंगल सिंह, तेजप्रताप सिंह, मणिराज पटेल, सोरहवा से रामनरेश पटेल, हरीबन्स पटेल, राजबहोर पटेल, गणेश पटेल, सहित अन्य कई किसान ऐसे थे जिन्हें कागजों के मकड़जाल में उलझा दिया गया और बताया गया की उनकी जमीन एक जगह नही है और दूर दूर है इसलिए उन्हें बीज नही दिया जा सकता जबकि सभी उपस्थित किसान बीज के लिए बिलबिलाते रहे.
आंख से सामने आया दो गाड़ी सैकड़ों बोरी बीज
इस बीच दिनाँक 01 नवंबर को जब शुबह से ही किसान गंगेव कृषि विभाग में उपस्थित थे तो दो डग्गा बीज आंख के सामने ही आया जिंसमे चने और गेहूं के सैकड़ों बोरिया प्रत्येक डग्गा सम्मिलित थीं. बोलेरो का पिक अप वाहन को गांव में डग्गा बोला जाता है.
अब प्रश्न यह उठता है की गंगेव कृषि विभाग में पहले से ही काफी बीज भरा पड़ा है जिंसमे पूरा स्टोर हाउस फुल है और उसपर बैठने वाले कार्यालय में भी बीज भरा है ऐसे में जब दो गाड़ी पिकअप चना और गेंहू फिर आया है तो उसे क्या किया जाएगा. आखिर उपस्थित किसानों को क्यों नही दिया जा रहा था.
एक ही बीज को क्लस्टर एवं बीज ग्राम योजना का बताया
गंगेव कृषि विभाग में एक बात जो देखने को मिली उसमे एक ही प्रकार के बीज को अलग अलग योजना के नाम पर दिया गया. जिन किसानों के पास एक हेक्टेयर और उससे अधिक की जमीन थी उन्हें क्लस्टर प्रदर्शन बताकर चना का बीज 250 रुपये प्रति 75 किलो एवं गेहूं 150 रुपये प्रति क्विंटल बताकर दिया गया. और जिन किसानों की जमीन एक हेक्टेयर से थोड़ा कम थी उन्हें बीज ग्राम योजना बताकर वही चने का बीज 3150 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से एवं गेहूं का वही बीज 1800 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से दिया गया. इस पर उपस्थित कुछ किसानों ने इसका विरोध किया और दिए जा रहे बीज की रशीद भी मांगी लेकिन किसानों को कोई रशीद नही दी गई.
संलग्न - गंगेव किसान कल्याण एवं कृषि विकाश विभाग कार्यालय में उपस्थित किसानों की तस्वीरें. अपने अधिकारों की माग कर रहे किसान. बीजों से भरी गाड़ी और खाली हाँथ लौटते किसान.
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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587,
7869992139
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Nice
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