Thursday, November 15, 2018

MP - मप्र की विकाश गाथा का प्रतीक - मनगवां चाकघाट हाईवे में सोहागी पहाड़

दिनांक 15 नवंबर 2018, स्थान - सोहागी पहाड़, रीवा मप्र

( शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)

    पिछले पांच वर्षों से अधिक समय से बनाई जा रही रीवा ज़िले की बहुचर्चित मनगवां-चाकघाट हाईवे सड़क आज तक नही बन पायी है जबकि इसमे अब तक देश दुनिया की नामी गिरामी कंपनियों ने काम किया है. टॉपबर्थ, दिलीप बिल्डकॉम और बंसल जैसी कंपनियों ने इस सड़क कार्य में हाँथ आजमाया है और अब वर्तमान में बंसल कंपनी द्वारा ही कार्य किया जा रहा है. टॉपबर्थ कंपनी द्वारा कार्य का टेंडर लिया जाकर दिलीप बिल्डकॉम कंपनी को पेटी कॉन्ट्रैक्ट में दिया गया था जिंसमे बताया गया कि लेनदेन को लेकर आपसी विवाद और समय पर गुणवत्तापूर्ण तरीके से पूरा न कर पाने के कारण ठेका निरस्त हुआ. इसके बाद पुनर्निविदा के चलते बंसल कंपनी को कार्य सौंपा गया. बंसल द्वारा आज तक कार्य पूरा नही किया गया जिसका परिणाम है पिछले पांच से अधिक वर्षों से मनगवां और चाकघाट के बीच रहने वाले और यहां इस सड़क मार्ग से प्रतिदिन आवागमन करने वाले आम जन मानस से लेकर वीआईपी तक की फजीहत.

  सोहागी पहाड़ में स्थिति सबसे खतरनाक

    मनगवां से चाकघाट सड़क मार्ग में सोहागी नामक पहाड़ आता है जो किसी भी रोड निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है. पिछले पांच से अधिक वर्षों से हो रहा यह सड़क निर्माण का कार्य आज मात्र सोहागी पहाड़ में ही आकर रुका हुआ है. टेढ़ा मेढ़ा और ऊंचाई गहराई से भरा यह पहाड़ काफी मुश्किल है. अब जो भी कपंनियां कार्य कर रही हैं उन सबका अंतिम और सबसे मुश्किल कार्य इसी पहाड़ को तोड़कर यहां से सड़क मार्ग निकलना है।

  ऐसा क्या है इस सड़क में की पांच साल से अधिक का समय लग गया

   अब प्रश्न यह है की आज भी क्या मॉनव 17 वीं सताब्दी में जीवन यापन कर रहा है जबकी मसीनी उपकरणों का अभाव रहता था और मॉनव ज्यादातर कार्य हाँथ से करता था. आज तो 21 वीं सदी का दौर है जबकि ऐसी मसीनों का ईजाद हो चुका है जहाँ पर कोई मुश्किल से मुश्किल कार्य भी कुछ दिनों अथवा महीनों में पूरा किया जा सकता है. तब प्रश्न यह उठता है की आखिर यह सरकारें क्या कर रही हैं. क्या सरकारों में बैठे सिविल कंस्ट्रक्शन के इंजीनियर और इनके नीति निर्धारक इन बातों का ध्यान नही रखते की जिस कंपनी को यह टेंडर देकर कार्य सौंप रहे हैं वह कार्य करने योग्य भी हैं की नही. आखिर टेंडर देते समय कोई तो समय निर्धारण हुआ होगा की इतने वर्षों में कार्य को पूरा किया जाकर सरकार के हवाले किया जाना है. वास्तव में बात यह है की कमीशन के खेल में पूरी सरकार और इनके सिपहसालार ही लिप्त हैं तो भला कार्यवाहि फिर कौन करेगा. कार्यवाही करने के लिए पाक साफ और मजबूत होना पड़ता है. कमीशन खोर थोड़े ही कार्यवाही करते हैं. 

  सोहागी पहाड़ में वर्षों से मानक स्तर से कई गुना अधिक प्रदूषण 

    सोहागी पहाड़ की स्थिति आज इतनी भयावह हो चुकी है की यहां पर दुर्घटनाएं तो बहुत आम बातें हैं और लगभग रोज ही कोई न कोई अप्रिय दुर्घटना हो रही है. मनगवां से चाकघाट वाया सोहागी पहाड़ से गुजरने वाले हर एक सख्स की हालात यह है की यदि उसका मेडिकल चेकअप कराया जाये तो खतरनाक बीमारियां मिलेंगी जिंसमे फेंफड़ों और सांस की बीमारियां जैसे सिलकोसिस, टीबी, और अन्य बीमारियां सम्मिलित हैं. 

    प्रदूषण चेक करने वाली संस्थाएं और उस पर कार्यवाही करने वाली संस्थाएं जैसे पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड आदि तो ऐसा लगता है जैसे अस्तित्व में हैं ही नही. रीवा संभाग और संभवतः पूरे मप्र में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसी संस्थाएं नाकाम और अक्षम साबित हुई हैं. क्रशर प्लांट से निकलने वाला डस्ट और फैलने वाला प्रदूषण, वाहनों से निकलने वाले धुंए और धूल का प्रदूषण, निर्माणाधीन सड़कों में अमानक स्तर पर उड़ने वाल धूल डस्ट का प्रदूषण, आखिर इन सब प्रदूषण की समस्याओं का समाधान कौन करेगा? कहां है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य ऐसी संस्थाएं? कहां गई जनता के हित की बात करने वाली सरकारें?

   सिलिकोसिस एक जानलेवा बीमारी

          सिलिकोसिस फेंफड़ों से संबंधित एक ऐसी बीमारी है जो महीन धूल के कणों से उत्पन्न होती है. सिलिका की धूल सांस के साथ खिंचकर फेंफड़ों के अंदर जाने से फेंफड़ों में छोटे छोटे नोड्यूल बन जाते हैं. सिलिका एक यौगिक है जो सिलिका व ऑक्सीजन के योग से बनता है जो खनिजों में पाया जाता है. इसे पीसने पर उस पत्थर के अत्यंत बारीक कण धूल के रूप में सांस के साथ जाकर फेंफड़ों में जम जाते हैं व फेंफड़ों की कार्यक्षमता को कम कर देते हैं. ये धूल के कण फेंफड़ों के ऊपर परत बना देते हैं जिस कारण ऑक्सीजन फेंफड़ों में शोषित नही हो पाती है और बाद में यह सिलिकोसिस नामक बीमारी के रूप में बदल जाती है. 

  सिलिकोसिस और प्रदूषण की समस्याओं का कानूनी प्रावधान 

    वास्तव में देखा जाए तो व्यक्ति को जानबूझकर प्रदूषण में धकेल देना और खतरनाक बीमारियों का तोहफा देना व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन है. 

   फैक्ट्री मजदूरों के हित में शासन द्वारा कारखाना अधिनियम 1948, खनन अधिनियम 1952, अंतरराज्यीय पलायन मजदूर कानून 1979, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम, असंगठित कामगार व सामाजिक सुरक्षा कानून आदि के अन्तर्गत यह कंनूनी अपराध हैं. इसके अतिरिक्त भी मध्य प्रदेश असंगठित कामगार कल्याण अधिनियम 2003, मध्यप्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम 1982, मध्य प्रदेश स्लेट पेंसिल कर्मकार कल्याण मॉडल, मप्र भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल जैसे कानूनों के दिशा निर्देश भी लागू हैं.

   मानव अधिकार संरक्षण कानून के अन्तर्गत है मुआबजे पुनर्वाश का प्रावधान 

      मॉनव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अन्तर्गत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी यह अनुसंसा की हुई है की यदि सिलकोसिस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यह माना जाएगा की उसके जीवन के अधिकार की अवहेलना हुई है जिसके लिए वह पीड़ित मुआबजा और पुनर्वाश का अधिकारी होगा. 

    नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल का हो हस्तक्षेप 

   प्रदूषण के अमानक स्तर और निरंतर पर्यावरण की हो रही अपूरणीय क्षति के चलते पूरे मामले में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल का हस्तक्षेप होना चाहिए. सबसे बड़ी बिडम्बना यह है की राष्ट्रीय हरित ट्राइब्यूनल एक हज़ार के स्टाम्प और फीस के साथ ही प्रकरण पर कार्यवाही करता है और दुनिया भर के टेक्निकल प्रोब्लम्स रहते हैं. जबकि जनहित याचिका के कांसेप्ट की तरह ही नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल में भी मात्र सीधे प्रकरण की एक दो फ़ोटो के साथ समस्या को लिखित रूप से भेजे जाने अथवा ईमेल कर दिए जाने के साथ ही स्वतः संज्ञान ले लेना चाहिए.

    इसलिए जनता के व्यापक हित से जुड़े हुए मामलों पर स्वतः संज्ञान और सीधे हस्तक्षेप का प्रावधान होना चाहिए इसमे यह नही देखा जाना चाहिए कि कोई शिकायतकर्ता बने और जब शिकायत आये तभी कार्यवाही हो। आखिर त्योंथर से मनगवां वाया सोहागी से गुजरने वालों में क्या कलेक्टर, डीएम, जस्टिस, सीएम, और प्रिंसिपल सेक्रेटरी नही होते होंगे? क्या वर्ष भर में ऐसे उच्चाधिकारी इस सड़क मार्ग से नही गुजरते होंगे? मानाकि यह बन्द एसी गाड़ियों में गुजरते होंगे लेकिन क्या आम जनता के दुख दर्द और तकलीफों को नही समझ सकते? समस्या तो यह है कि जब कुछ करना ही नही चाहते और इक्षाशक्ति ही नही है तो कहां से कुछ होगा? 

संलग्न - संलग्न तस्वीरों में सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा धूल डस्ट और प्रदूषण से भरे सोहागी सड़क मार्ग में घंटे भर खड़ा होकर वीडियो क्लिपिंग बनाई गई और साथ ही फ़ोटोग्राफ लिए गए जिसको समाज और मीडिया के समक्ष रखा जा सके और इस पर कार्यवाही हो सके.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

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