दिनांक 17 अगस्त 2025 रीवा मप्र।
पावन पुनीत यज्ञस्थली कैथा हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में पाप विनाशक मोक्ष प्रदायक श्रीमद भागवत कथा भक्ति ज्ञान महायज्ञ का कार्यक्रम सतत चल रहा है। दिनांक 17 अगस्त 2025 को कथा का छठा दिवस रहा। इस बीच व्यासपीठ पर विराजमान डॉक्टर शुक्ला ने कथा के मार्मिक कथाओं का वर्णन किया।
*मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का पावन पुनीत चरित्र अनुकरणीय*
श्रीमद भागवत कथा में श्री नारायण के चौबीस अवतारों में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम और लीला पुरषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण का चरित्र उल्लेखनीय और अत्यंत अनुकरणीय है. भगवान श्रीराम का अवतरण दिन के 12 बजे हुआ बताया गया है और श्रीकृष्ण का अवतरण रात्रि 12 बजे होना बताया गया है. भगवान श्रीराम का चरित्र अत्यंत शांत और सीधा-सरल है जबकि भगवान् श्रीकृष्ण का चरित्र रहस्यमय और अत्यंत गूढ़ है. भगवान् श्रीकृष्ण अर्धरात्रि में अवतरित हुए जबकि भगवान श्री राम मध्यान दिन में. श्रीराम, शिव और श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं. आज सम्पूर्ण हिन्दू-सनातन संस्कृति में प्रत्येक माता-पिता अपने बालक-बालिकाओं का नामकरण इन्ही महान देवस्वरूप और नारी शक्तिओं (सीता, राधा, पार्वती, शक्ति आदि के विभिन्न नाम) के आधार पर करते हैं. नाम मात्र का स्मरण आते ही उस नाम विशेष में छिपे गुण और शक्तियों का ध्यान सहज ही आ जाता है. वैसे आज वर्तमान आधुनिक परंपरा में भारतीय संस्कृति की यह भी विशेषता समाप्त होती प्रतीत हो रही है. आज के बच्चों का नामकरण उनके माता-पिता पश्चिमी सभ्यता के नामों के आधार पर रखना ज्यादा पसंद करते है जो कि हमारे पतित होती संस्कृति का द्योतक है. ऐसे में होगा यह कि एक दिन व्यक्ति अपने आदर्शों को भी पूर्णतया भूल जायेगा. वैसे भी हमारे महान भगवत-स्वरुप पुरुष पहले आदर्श कम और हमारे संस्कृति के वास्तविक चरित्र ज्यादा थे. आज श्रीराम और श्रीकृष्ण वास्तविक चरित्र न होकर आदर्श बताये जा रहे हैं. आने वाले कल में यह भी संभव है कि इन महान चरित्रों को पूर्णतया काल्पनिक चरित्र बताकर एलियन अथवा दुसरे ग्रहों से आया हुआ बताया जाए. ऐसी परिस्थिति मात्र पश्चिमी संस्कृति के अन्धानुकरण और भारतीय संस्कृति और अपने प्रति हीनभावना से उत्पन्न हुई है. यदि इतिहास उठाकर देखा जाय तो सहज ही समझ में आ जायेगा की जो भी संस्कृतियाँ विलुप्तप्राय हुई हैं कहीं न कहीं ऐसे ही कुछ कारण रहे हैं. यद्यपि भारतीय संस्कृति के विषय में ऐसा पूर्ण विश्वास से कहा जा सकता है कि हमारी संस्कृति में जो अन्य संस्कृतियों को आत्मसात कर अपने आप में समाहित कर लेने की क्षमता है वह भारतीय संस्कृति को अन्य संस्कृतियों से अलग बनाती है. परन्तु आज हमे अतिसय आत्मविश्वास में पड़ने के स्थान पर अपनी संस्कृति को समयानुरूप परिवर्धित कर इसे कैसे अधिक सार्थक बनाया जाए इस बात के चिंतन-मनन की आवश्यकता है. इसीलिए आज आवश्यकता है भारतीय शास्त्र-ग्रंथों के वैज्ञानिक-अध्यात्मिक विवेचना की न की उनके आख्यानों को अक्षरसः लेने की. क्योंकि निश्चित रूप से यदि भागवत महापुराण अथवा अन्य हिन्दू शास्त्रों की सभी बातें अक्षरसः ग्रहण की जाएँगी तो वह आज के इस वर्तमान परिवेश में सही नहीं बैठ पाएंगी और संभव है कि इस वर्तमान पीढ़ी में अपने संस्कृति और शास्त्रों के प्रति ज्यादा अविश्वास पैदा करें, इसीलिए आवश्यकता है इनके सही टीका की और विज्ञान संगत व्याख्या की.
*भागवत कथा प्रसंग में नौवें स्कंध का भी वर्णन*
पिछले दिनों की कथा प्रसंगों, जिसमे की समुद्र मंथन, देवासुर संग्राम, नारायण का वामन और मत्स्यावतार की चर्चना से सम्बंधित रही, से आगे बढ़ते हुए आते हैं नौवें स्कंध की कथा और भगवान् श्रीराम और परशुराम के अवतारों की कथा में. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का अवतरण त्रेतायुग में बताया गया है. युगों में त्रेता युग द्वापर के पहले आता है इसीलिए भगवान के अवतारों में पहले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का लीला प्रसंग आता है तत्पश्चात लीला पुरषोत्तम श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर में आता है. जहाँ भगवान श्रीराम मर्यादा की प्रतिमूर्ति थे, वहीँ भगवान श्रीकृष्ण अपनी मानव लीलाओं के चलते लीला पुरषोत्तम कहलाये. भागवत महापुराण में अवतारों के क्रम को भलीभांति व्यवस्थित किया गया है. ऐसा माना जाता है कि काल-निर्धारण के क्रम में सबसे सात्विक और सत्यमार्ग की तरफ चलने की प्रेरणा देने वाला युग पहले आएगा और समय के साथ संस्कृतियों के पतन और अनाचार, अन्याय, अनैतिकता, झूठ-फरेब और मानव के नैतिक पतन की तरफ खींचने वाला कलिकाल या कलियुग अंत में आएगा. जैसे ही यह समय चक्र पूर्ण होगा, अन्याय, अत्याचार और अनैतिकता बढ़ने पर महाकाल रुपी वह परमेश्वर इस सृष्टि का संहार कर पुनः नवीन रचना करेंगे, ऐसा सिद्धांत हिन्दू-संस्कृति में माना जाता है. यह सिद्धांत काफी हद तक वैज्ञानिक भी है क्योंकि ऋग्वेद की नासदीय सूक्ति में सृष्टि की उत्पत्ति के पहले की क्या स्थिति थी इसका बहुत ही वैज्ञानिक विवरण आज से हजारों वर्ष पूर्व ही आ जाता है जब आज का तथाकथित विज्ञान पैदा भी नहीं हुआ था. आज का वर्तमान तथाकथित भौतिक/रासायनिक/जेनेटिक विज्ञान भी इस बात को मानता है की बिग-बैंग का जो सिद्धांत और ब्लैक-होल आदि का जो सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है वह काफी हद तक ऋग्वेद में वर्णित सृष्टि के उत्पत्ति के सिद्धांत से ही सम्बंधित है.
*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*