Thursday, May 18, 2023

Breaking: कंपैक्शन की कमी का खामियाजा भुगत रहा हनुमना का जूड़ा बांध// ऐसा भ्रष्टाचार की घटिया काम ही बना गवाह// रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता ने कहा मुर्दा ही गवाही देंगे// भीटे की मिट्टी में नहीं किया गया कंपेक्शन जिससे पिचिंग ऊपर और सतह नीचे// देखिए कैसे विस्तार से रिटायर्ड अधिकारियों ने जल संसाधन विभाग का बजाया बाजा//

*Breaking: कंपैक्शन की कमी का खामियाजा भुगत रहा हनुमना का जूड़ा बांध// ऐसा भ्रष्टाचार की घटिया काम ही बना गवाह// रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता ने कहा मुर्दा ही गवाही देंगे// भीटे की मिट्टी में नहीं किया गया कंपेक्शन जिससे पिचिंग ऊपर और सतह नीचे// देखिए कैसे विस्तार से रिटायर्ड अधिकारियों ने जल संसाधन विभाग का बजाया बाजा//*
 दिनांक 19 मई 2023 रीवा मप्र।

   पानी तेरी अजब कहानी। किसी वैज्ञानिक और चिंतक ने कहा है की अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। यह बात काफी हद तक जायज भी है। जीवन में पानी का कितना महत्व है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं की सरकार की अरबों खरबों करोड़ की योजनाएं मात्र पानी के लिए ही केंद्रित हैं। भारत में तो सरकारें तक पानी के लिए बनती बिगड़ती हैं। शायद कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच का कावेरी जल विवाद तो आपको याद ही होगा। चांद के बाद अब मंगल ग्रह में भी वैज्ञानिक पानी की खोज में लगे हुए हैं लेकिन धरती पर मानव को आवश्यक पानी मिले इसकी चिंता किसे है यह सवाल के घेरे में है? घर आंगन में पानी पहुंचाने वाली योजनाओं में नल जल और अब जल जीवन मिशन का नाम भी चर्चा में है। पर जैसा की भारत में अधिकतर होता है जहां कोई देखने वाला अथवा आवाज उठाने वाला नहीं होता वहां सच्चाई भी दफन कर दी जाती हैं। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पानी आपूर्ति करने के लिए वाटर शेड के बाद अब प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना भी चलाई जा रही है। 
  
     खैर यह तो सब हुई भूमिका। अब आइए आपको ले चलते हैं रीवा जिले के बांधों और नहरों की ओर जहां इस एपिसोड में आपको हम दिखाते हैं जूड़ा बांध की एक और दुर्दशा। जी हां हनुमना तहसील का जूड़ा बांध वाकई काफी बड़ा बांध है जो कोलहा सहित दर्जनों आसपास के ग्रामों की लाइफ लाइन हो सकता है पर दुखद बात यह है की जिस प्रकार इसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाया गया वह अब किसी से छुपा नहीं और आप इसे पिछले एपिसोड में देख चुके हैं।

  *बांध के भीट का कंपैक्शन नहीं जिससे भीट की सतह में हुआ बैठाव*

  रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता नागेंद्र मिश्रा ने एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी को बताया की जब जूड़ा बांध बनाया गया तो इसे बनाते समय तकनीकी मापदंडों का बिल्कुल पालन नहीं किया गया। सामान्य तौर पर बांध के भीटे में मिट्टी डालते समय उसे सतह दर सतह वाइब्रेटर और रोलर से दबाकर बैठाया जाता है जिससे बांध में मजबूती आती है। इसमें मिट्टी का चयन भी तकनीकी मापदंडों के हिसाब से किया जाता है। कुछ सिलेक्टेड किस्म की मिट्टी का ही बांध के भीटे में उपयोग किया जाता है परंतु यहां पैसे हजम करनें के उद्देश्य से ठेकेदार और कमीशनखोर अधिकारी मिलकर सब खा गए और न तो सही मिट्टी का उपयोग किया गया और न ही उन तकनीकी मापदंडों का पालन किया गया। जाहिर है उस समय न तो इस प्रकार मीडिया था और न ही जिम्मेदार जमीर वाले इंजीनियर जो देखते की किस प्रकार जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी हुई।
  *विजय मिश्रा ठेकेदार के बताए जा रहे कारनामे*

    प्राप्त जानकारी के अनुसार बांध और नहर का काफी काम रीवा जिले के  एक चर्चित ठेकेदार विजय मिश्रा द्वारा किया गया है। बताया गया की विजय मिश्रा की नेताओं और अधिकारियों से सांठगांठ होने के कारण अधिकतर कार्य के टेंडर इनको ही मिलते हैं। जिस प्रकार से कार्य की घटिया गुणवत्ता और अमानक वेस्ट बियर वाल और नहरों की स्थिति देखी गई उससे स्पष्ट है की इतना कमीशन शायद कोई और नहीं बल्कि विजय मिश्रा जैसे ठेकेदार ही दे सकते हैं। बाकी जहां तक सवाल कमीशन से परहेज को लेकर है तो भला जलसंसाधन विभाग के अधिकारियों और नेताओं को भला काहे का परहेज।

  *बांध से किसानों को नहरों से नहीं मिल रहा कोई पानी*

   इस बीच एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी हनुमना के जूड़ा बांध के नजदीक स्थित ग्राम टटिहारा के कुछ किसानों से भी चर्चा की तो किसानों ने बताया की जब से बांध बना है उन्हे इससे कोई पानी नसीब नही हुआ। बताया गया की जो नहरें बांध से आगे की तरफ उनके खेतों को तोड़ काटकर बनाई गई हैं उनमें पानी नहीं पहुंच पा रहा है। हालांकि यह हम आपको आगे के एपिसोड में दिखाएंगे की इसके पीछे क्या कारण हैं और आपको मिलवाएंगे विशेषज्ञ इंजीनियर से।
फिलहाल इस एपिसोड में बस इतना ही।
  अब आइए आपको सुनाते हैं आगे विशेषज्ञों ने क्या बताया।

   बने रहिए हमारे इस स्पेशल श्रृंखला में जिसमे हम आपको सैर कराएंगे स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक के ग्रामीण भारत की बदहाली और किसानों की पीड़ा की।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मप्र*

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