Sunday, November 25, 2018

MP- चचाई जलप्रपात के नीचे जीवित धकेले गए हज़ारों गोवंश, चचाई जलप्रपात पशुओं के लिए बनाया गया कालापानी ( मामला रीवा ज़िले के सिरमौर थाना क्षेत्र अन्तर्गत चचाई जलप्रपात का जहां पर हज़ारों फीट गहरी घाटी के नीचे धकेल दिए हज़ारों गोवंश, पानी, चारा, छाया, धूप सभी का बना संकट, अस्तित्व पर बना खतरा, शासन प्रशासन बना तमाशबीन)

दिनांक 26 नवंबर 2018, स्थान - चचाई जलप्रपात रीवा, मप्र

 (शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र) 

   ज़िले की गहरी घाटियों और जलप्रपातों के अंदर से एक बार फिर बुरी खबर आई है. आवारा पशुओं से परेशान लोगों और किसानों ने एकबार फिर आवारा पशुओं के हज़ारों की संख्या के झुंड को गहरी घाटियों के नीचे धकेल दिया है जिनके लिए अब उनके जीवन का संकट उत्पन्न हो चुका.

   चचाई जलप्रपात के अंदर का है मामला 

     पिछले दिनों मरहा घाट के नीचे जो गोवंशों को धकेले जाने का मामला सामने आया था उसी कड़ी में सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा शोध करने पर ज्ञात हुआ की चचाई रेस्ट हाउस से लगे हुए और जलप्रपात के नीचे जाने के रास्ते से हज़ारों गोवंशों को समय समय पर हज़ारों फीट गहरी घाटियों के नीचे उतारा जा रहा है. जानकार सूत्रों से पता चला की यह घटनाक्रम कोई अकेला नही है और नियमित अंतराल में मवेशियों को घाट के नीची मौत के घाट उतारा जा रहा है. 

   पशुओं के लिए कालापानी की सजा

    वास्तव में देखा जाय तो दिनांक 24 एवं 25 नवंबर 2018 को सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोवंश राइट्स एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी एवं ध्यान फाउंडेशन नई दिल्ली के सदस्य विनोद सिंह द्वारा जो फ़ोटो और वीडियो डिटेल्स हज़ार फीट गहरी घाटी के नीचे से इकट्ठे किये गए वह आत्मा तक को भी दहला देने वाले हैं.

    चचाई घाट के नीचे से बड़ी मुश्किल से उतरकर देखा गया तो पाया गया की यह रास्ता मानव के ही चलने योग्य नही तो भला इसमे चारपाये डोमेस्टिक मवेशी कैसे निकल सकते थे. यह घटना वाकई पशु क्रूरता की बेइंतेहा और हद पर करने वाली घटना थी जिंसमे इन मवेशियों को जबरन मार मारकर घाट के नीचे उतारा गया था. काफी मवेशियों के चोट के निशान भी पाए गए हैं.

   टेढ़ा मेढ़ा खाइयों से भरा पथरीला दुर्गम है रास्ता

    हज़ारों फीट नीचे घाट में पहुचने से पहले ही मात्र सौ दो सौ फीट गहराई से ही मवेशियों और जानवरों के मरे और सड़ी हुई दुर्गंध आने लगी थी. जिस स्थान पर चचाई वाटरफॉल में ज्यादा पानी भरा हुआ दीखता है वहां ऊपर से देखने पर कुछ समझ नही आ रहा था. यह रास्ता भी इतना फिसलन भरा था की इससे नीचे उतर पाना बहुत कठिन कार्य था. लेकिन किसी तरह से पेड़ों और झाड़ियो को पकड़ पकड़कर नीचे उतरा गया. एक स्थान पर यह रास्ता ब्लॉक भी दिखा जिंसमे वहीं आसपास के छोटे पत्थर लगाकर रास्ता को ब्लॉक कर दिया गया था. आसपास लकड़ी काटने वाले लकड़हारों से जानकारी मिली की जो लोग इन पशुओं को घाट के नीचे उतार देते हैं वह इन रास्तों को बाद में बन्द किये हैं जिससे यह गोवंश वापस न पलट पाएं और यहीं अपनी जान गवां दें जिससे लोगों को आवारा पशुओं से हमेशा के लिए निजात मिल जाए.

  रास्ते में मिले दर्ज़नों मृत मवेशी और उनके कंकाल

    इस बीच घाट के नीचे बड़ी मुश्किल से उतरते हुए कई मवेशियों के मृत कंकाल और बदबू मारती हुई डेड बॉडी भी मिली जिनको की सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लिया गया. यह सबूत पर्याप्त थे जो इस बात की गवाही दे रहे थे की पशु क्रूरता के चलते ही इन मवेशियों की मौतें हुईं हैं.

    यहां तक की घाट के ऊपर से ही एक मवेशी एक बड़े पेंड के नीचे मृत देखा जा सकता था जिसकी की ऊपर से फ़ोटो भी लेने के प्रयास किये गए थे. वह अभी भी मौजूद है.

   रेतीले भाग में पाए गए सैकड़ों जीवित गोवंश

    इस बीच पेड़ों और झाड़ियों को पकड़ पकड़कर उतरते हुए जब कुछ समतल भाग में पहुचा गया तो वहां पर काफी रेत दिखी जिंसमे पैर धस रहा था. वहीं पर बगल में वाटरफॉल का पानी भी जमा हुआ था जिंसमे बहाव नही था. ऐसा लगा की यहां पर आकर मवेशी इसीलिए इकठ्ठे हुए थे क्योंकि यहां पर पानी का स्रोत उपलब्ध था. आसपास देखने पर पता चला की जंगली पेड़ों की ऐसी पत्तियां जिन्हें यह घरेलू पशु नही खाते इसके अतिरिक्त और कोई भी चारा अथवा पशुओं के खाने योग्य वहां पर कुछ नही पाया गया. कुछ आसपास हरे बांस के पौधे पाए गए लेकिन बांस की जो पत्तियां नजदीक थीं उनको तो पहले ही यह पशु खा चुके थे परंतु अब बांस की पत्तियां भी उपलब्ध नही थीं जो काफी ऊंचाई में थीं. 

    पशु ज्यादा भागने में असमर्थ, काफी बैठ चुके थे

     इन पशुओं को थोड़ा और भी करीब से देखा गया तो पाया गया की यह पशु चल फिर पाने में पूरी तरह से असमर्थ थे. कुछ अभी जो चल फिर पा रहे थे वह कुछ यंग थे. जो गोवंश ज्यादा उम्र वाले थे वह अब बैठ चुके थे. एक दो मवेशी ऐसे भी दिखे जिनके शरीर में गहरे चोट के निशान थे और खून बह रहा था. चूंकि वहां पर वेटेरिनरी फैसिलिटी उपलब्ध नही थी अतः उसके लिए कुछ नही किया जा सका.

  सबसे बड़ा प्रश्न  - वन विभाग के अंदर पशु क्रूरता का जिम्मेदार कौन?

    सबसे प्रथम बात तो यह है की चचाई जलप्रपात के नीचे पूरी तरह से एक आरक्षित क्षेत्र है जहां वन विभाग और शाशन की निगाह रहती है. बताया गया की यहाँ पर एक परमानेंट बीट गॉर्ड भी है लेकिन वह कभी भी अपनी ड्यूटी देने नही आता. इस बीच पिछले तीन चार दिनों में घाटी के नीचे टांगी और कुल्हाड़ी लिए हुए काफी लकड़हारे भी मिले जो बेहिचक और बेरोकटोक लकड़ियां काट रहे थे और पूंछने पर बताया की यहां उनका रोज का धंधा है कोई कुछ नही बोलता.

    इससे स्पष्ट है की सबसे जिम्मेदार वन एवं पर्यावरण विभाग ही है जिसने इस प्रकार की पशु क्रूरता होने दिया और इसमे कोई रोंक नही लगाई. सूत्रों और ग्रामीणों ने यहां तक बताया की यह सब वन विभाग की सह से ही किया जा रहा है. बताया गया की वन विभाग के कर्मचारी ग्रामीणों से पैसे लेते हैं और पशुओं को घाट के नीचे उतरवाते हैं. लकड़हारों ने बताया की जब कोई मुंसी और बीट गार्ड यहां पर आता है वह हमसे पैसे ले लेता है और हमे छोंड़ देता है.

  अब क्या है आगे का रास्ता?

   अब सबसे बड़ी बात यह है की हज़ारों की संख्या में फंसे हुए इन गोवंशों को निकालने के लिए क्या किया जाए? क्या इस चचाई घाट की दुर्दान्त पहाड़ियों और घाटियों के बीच से इन गोवंशों को निकाला जाना संभव है? चूंकि मानव तक को उतरने और चढ़ने में भारी मुश्किल का सामना करना पड़ता है ऐसे में घाट के नीचे हज़ारों फीट गहरी खाई में उतार दिए गए इन गोवंशों को ऊपर कैसे लाया जाय यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है. 

   आसपास के ग्रामीणों से जानकारी मिली की यही पथरीले और कठिन रास्ते हैं जिनसे एक एक करके इनको ऊपर लाया जा सकता है अन्यथा फिर घाट के नीचे ही नीचे लगभग 20 किमी दूरी पथरीले भाग से होते हुए इन्हें आगे निकाल दिया जाय. यद्यपि दोनो ही स्थितियों में कार्य बहुत मुश्किल है.

  पुलिश प्रशासन, वन एवं ज़िला प्रशासन का मिले सहयोग

     इस रेस्क्यू अभियान में पुलिश, वन एवं अन्य ज़िला प्रशासन का सहयोग चाहिए होगा वरना यह कार्य इतना आसान नही होगा. संभव है इसमे एक सप्ताह के आसपास का समय लग जाए. क्योंकि झुंड में इन मवेशियों को निकालने का कार्य संभव नही होगा. इन्हें एक एक करके ही निकाला जा सकेगा.

    इस बीच पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाओं और उच्चस्तरीय मंत्रालयों और विभागों के हस्तक्षेप से काम में आसानी होगी.

संपर्क - डीएफओ रीवा श्री विपिन पटेल - 9424793326

   सीसीएफ रीवा संभाग श्री अतुल खेड़ा - 9424793325

कलेक्टर रीवा श्रीमती प्रीति मैथिल नायक 

 - 9977742118,

 कमिश्नर रीवा संभाग - 9425088190

  संलग्न - संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें चचाई वाटरफॉल के नीचे धकेले गए हज़ारों की संख्या में हज़ारों फीट गहरी घाटी के नीचे फंसे गोवंश.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

Sunday, November 18, 2018

पैकन गांव, मैरहा, तिवरिगवां-मनबोदसिंह सहित देवतालाब क्षेत्र में मात्र 3 दिनों में बदले गए आधा दर्जन से अधिक ट्रांसफार्मर (मामला ज़िले के मऊगंज बिजली डिवीजन अन्तर्गत देवतालाब डीसी में पैकन गांव एवं तिवरिगवां-मनबोदसिंह ग्राम का जहां पर 25 केवी एवं 63 केवी के कई जले ट्रांसफार्मर बदले गए, उच्चस्तर तक रखी गई थी बात, मीडिया में आने से भी बना था दबाब, एई ने फ़ोन पर दी जानकारी)

दिनाँक 18 नवंबर 2018, स्थान - मऊगंज रीवा मप्र

   (शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)

     ज़िले के मऊगंज बिजली डिवीजन में सैकड़ों फैल ट्रांसफार्मर की समाचार अभी पिछले दिनों मीडिया में छाई हुई थी. ज़िले एवं प्रदेश की मीडिया ने जनता के हित की इस समाचार को काफी ढंग से छापा था साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा बिजली विभाग के चीफ इंजीनियर के एल वर्मा, जबलपुर डिस्कोम सीएमडी, एवं प्रिंसिपल सेक्रेटरी इंद्र केशरी के पास भी बात पहुचा दी गई थी.

   मात्र दो दिन के भीतर बदले 4 ट्रांसफार्मर

   इस बीच देवतालाब सहायक अभियंता दिनेश पॉल द्वारा अपने नए मोबाइल नंबर से जानकारी दी गई है की मैरहा 875 में रामटहल पटेल एवं भूपति पटेल के घर के पास 25 केवीए के जले हुए ट्रांसफार्मर बदले जाने के साथ ही पिछले दो दिन में  तिवरीगवां-मनबोदसिंह में रामाश्रय पटेल के घर के पास वाला 25 केवीए एवं साथ ही पैकन गांव में ठाकुरान बस्ती में जला 63 केवीए का ट्रांसफार्मर भी बदला दिया गया है.

ग्रामीणों ने ट्रांसफार्मर बदले जाने की पुष्टि की

   इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा जब ग्रामीणों से जानकारी चाही गई तो रामटहल, भूपति, भाग्योदय सिंह एवं रामाश्रय पटेल द्वारा बताया गया की उनका 25 केवीए एवं 63 केवीए के चारों ट्रांसफ़ॉर्मर बदल दिए गए हैं और बिजली की कोई समस्या नही है. सभी कृषकों ने प्रसन्नता जाहिर की है. साथ ही मीडिया एवं सामाजिक प्रयाशों की प्रसंसा की है. बताया की आज जब हमारे जन प्रतिनिधि समस्याओं का समाधान नही करवा रहे और वोट लेकर ओट में छिप जाते हैं और पांच साल दिखाई नही देते ऐसे में मीडिया और सामाजिक प्रयाश हमारे लिए वरदान बन कर आते हैं.

  पैकन गांव, खर्रा, नौढिया 4 ग्रामों के बदले आधा दर्जन से अधिक फेल ट्रांसफार्मर

   देवतालाब के सहायक बिजली अभियंता दिनेश पॉल द्वारा जानकारी दी गई की पैकन गांव में 63 केवीए के ट्रांसफार्मर सहित खर्रा, नौढिया 4, मैरहा 875 आदि ग्रामों के 6 ट्रांसफार्मर पिछले एक सप्ताह के भीतर बदल दिए गए हैं. सहायक अभियंता दिनेश पॉल का ऑफिसियल मोबाइल गुम हो जाने के कारण संपर्क नही हो पाया था जिसकी वजह से किसानों और उपभोक्ताओं में काफी रोष उत्पन्न हुआ था. अब नया मोबाइल नंबर मिल जाने से सहायक अभियंता से संपर्क हो पा रहा है और किसानों की समस्या सुनी जा रही हैं. इस बीच सहायक बिजली अभियंता देवतालाब दिनेश पॉल से चर्चा में उनके द्वारा जानकारी दी गई की विभाग में इस समय ट्रांसफार्मर उपलब्ध हैं और सभी जले ट्रांसफार्मर बदलने के कार्य प्रगति पर हैं. 

  देबतालब एई क्षेत्र में अभी भी फेल हैं दर्जन भर अन्य ट्रांसफार्मर 

     देवतालाब एई द्वारा बताया गया की पुराने जो भी जले हुए ट्रांसफार्मर थे संबल योजना आने के बाद लगभग बदल दिए गए हैं जबकि अभी पिछले कुछ सप्ताह में लगभग 15 तक ट्रांसफार्मर पुनः जलने की खबर आ रही थी जिन्हें उपलब्धता के आधार पर बदला  जा रहा है. बताया गया की देवतालाब सहायक अभियंता कार्यालय में मात्र एक ही गाड़ी है जो सतना स्टोर ट्रांसफार्मर लेने जाती है जिंसमे सभी ट्रांसफार्मर एक साथ नही आ पाते. कभी कभी ऐसा भी होता है की जिस क्षमता का ट्रांसफार्मर चाहिए होता है स्टोर में उपलब्ध भी नही होता अतः इंतज़ार करना पड़ता है. 

  पैकन गांव में जल्द लगेगी 10 खंभों की जली केबल 

      देवतालाब एई द्वारा बताया गया कि  पैकन गांव में लगभग 10 खंभों के बीच की जली हुई केबल बदलने के लिए ठेकेदार को पिछले हफ्ते ही भेजा गया था लेकिन ग्रामीणों द्वारा खंभों के बीचोंबीच रखे हुए पेड़ों को न काटने की वजह से केबल नही लगाई जा सकी थी. 

संलग्न - संलग्न पैकन गांव में ट्रांसफार्मर बदले जाने की प्रक्रिया का दृश्य है कृपया अवलोकन करें.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

Saturday, November 17, 2018

MP - बच्चों की जिंदगी से बड़ा नही मतदान, हाई टेंशन लाइन हटी नही तो मतदान नही - कहना है पताई पंचायत के अभिभावकों का (मामला ज़िले के मनगवां विधानसभा निर्वाचन केंद्र क्रमांक 15 का, जहां पर कई वर्षों से स्कूल परिसर में सिर की ऊंचाई से गई हाई टेंशन लाइन बनी है टेंशन का सबब, ग्रामीणों ने कहा करेंगे मतदान का सामूहिक बहिष्कार, मामला पहुचा मप्र एवं भारत चुनाव आयोग)

दिनाँक 17 नवंबर 2018, स्थान - भठवा/गढ़/गंगेव रीवा मप्र

(शिवानन्द द्विवेद, रीवा मप्र)

    विकाश और भ्रष्टाचार तो एक ऐसा मुद्दा है ही जिनमे काफी लोग मतदान के बहिष्कार और नोटा दबाने की बातें करते रहते हैं, इसके अतिरिक्त भी कई ऐसे इशू हैं जिनके चलते मतदाता चुनाव बहिष्कार की बातें कर रहे हैं. 

  हाई टेंशन लाइन ने मतदाताओं की बढ़ाई टेंशन

   मामला है ज़िले के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र 73 के मतदान केंद्र क्रमांक 15 का जहां पर पताई पंचायत अन्तर्गत अतरैला शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाले स्कूली बच्चों के अभिभावकों ने हाई टेंशन लाइन न हटाये जाने की स्थिति में सामूहिक तौर पर मतदान से बाहिष्कार करने की बातें कही हैं.

    दिनाँक 16 नवंबर 2018 को समाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी से चर्चा के दौरान यूट्यूब चैनल के लिए दिए गए अपने लगभग 12 मिनट के इंटरव्यू में उपस्थित दर्ज़नों अभिभावकों ने पीड़ा व्यक्त करते हुए बताया की पिछले कई वर्षों से स्कूल परिसर के भीतर माध्यमिक भवन के ठीक ऊपर से छूती हुई गुजरी हाई टेंशन लाइन के खुले खतरनाक तारों की वजह से गांव वालों को काफी टेंशन है.

   इस विषय में अभिभावकों ने कई मर्तबा स्कूल शिक्षा विभाग से लेकर बिजली विभाग के स्थानीय एवं ज़िले के अधिकारियों तक बातें पहुचाई है लेकिन अब तक मात्र कागज़ी कार्यवाही ही चलती रही है, जबकि धरातल पर स्थिति वैसे ही बनी हुई है.

 हाई टेंशन लाइन हटाएं वरना करेंगे मतदान का बहिष्कार  

   उपस्थित अभिभावकों प्रमोद सिंह, सूर्यपाल सिंह, राजाराम कोरी, रामलाल विश्वकर्मा, रामबहोर कोरी, चंद्रिका कोरी आदि ने बताया की हमारे बच्चों के जीवन में बराबर संकट मंडरा रहा है और कभी भी कोई भीषण हादसा हो सकता है. कई बार स्कूल एवं विजली विभाग को अवगत कराए जाने के बाबजूद भी कार्यवाही न होना बच्चों के जीवन के प्रति प्रशासनिक निर्दयता को दर्शाता है. यदि ऐसा है तो हम भी वोट नही करेंगे चाहे जो जाए. सबसे पहले यहां स्कूल परिसर से हाई टेंशन लाइन हटाये तभी मतदान करेंगे वरना हम सब गांव वाले 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा के चुनाव का खुले तौर पर बहिष्कार करेंगे यह कहना था अभिभावकों का.

11 केवी लाइन की वजह से मतदान के दिन भी हो सकती है दुर्घटना 

    वास्तव में देखा जाए तो जिस प्रकार से हाई टेंशन लाइन के तार छत को छूते हुए निकले हुए हैं उससे मतदान के दिन भी भीड़भाड़ में कोई भी अप्रिय दुर्घटना हो सकती है. अमूमन बताया जाता है की यदि बारिश का मौसम है और शरीर गीला है ऐसे में लगभग ढाई से तीन मीटर दूरी से भी हाई टेंशन लाइन के तार शॉक दे देते हैं. इसके पूर्व भी हाई टेंशन लाइन की वजह से कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं जिनमे पीड़ित का बचना मुश्किल हो जाता है.

जेई एवं डीई ने बताया एस्टीमेट जारी हुआ

   इस बीच जब सामाजिक कार्यकर्ता ने संबंधित बिजली विभाग के अधिकारियों से जानकारी चाही तो त्योंथर डिविजनल इंजीनियर रामचरण पटेल एवं लालगांव कनिष्ठ यंत्री उमाशंकर द्विवेदी द्वारा बताया गया की स्कूल परिसर अथवा कहीं की भी लाइन शिफ्ट करवाने के लिए विभाग के पास कोई बजट नही होता. संबंधित पीड़ित पक्ष जब संबंधित एस्टिमटेड राशि को बिजली विभाग को प्रदान करता है तो लाइन शिफ्ट करने का कार्य विभाग द्वारा कराया जाता है. यह पूँछे जाने पर की जब स्कूल बनी हुई थी तो हाई टेंशन की लाइन परिसर के भीतर से क्यों खींची गई. इस पर जबाब मिला की लाइन पहले से थी और स्कूल भवन का निर्माण बाद में कराया गया अतः जिम्मेदारी और गलती बिजली विभाग की नही बल्कि स्कूल शिक्षा विभाग की है.

क्या कहा रीवा डीईओ अंजनी त्रिपाठी ने

  जब इस विषय में रीवा जिला शिक्षा अधिकारी अंजनी कुमार त्रिपाठी से उनके मोबाइल फ़ोन में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा जानकारी चाही गई तो पहले डीईओ रीवा ने जानकारी नही होने की बात कही. बाद में जैसे ही उन्हें बताया गया की अतरैला स्कूल एवं हिनौती शंकुल केंद्र के प्राचार्य द्वारा एस्टीमेट डीईओ कार्यालय रीवा भेज दिया गया है तब उनका कहना था की यह माध्यमिक शिक्षा विभाग का मामला होने से रमसा द्वारा नही बल्कि डीपीसी द्वारा सुलझाया जाएगा. इस प्रकार डीईओ रीवा ने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया.

 बिजली एवं स्कूल शिक्षा विभाग में मामले को लेकर मचा है हड़कंप

   इस बीच जानकारी मिली है की जिस प्रकार से पताई और उसके आसपास अतरैला आदि ग्रामों मतदाताओं और अभिभावकों ने 28 नवंबर के मतदान के बहिष्कार की बात की है उससे बिजली विभाग सहित स्कूल शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है. स्वयं अतरैला स्कूल माध्यमिक शाला एवं प्राथमिक शाला के हेड भी काफी चिंतित और परेशान नजर आये साथ ही डीईओ रीवा की भी बोलती बन्द दिखी. यद्यपि डीईओ ने डीपीसी पर मामला थोपने की कोशिश की लेकिन कहा की हम मामले को दिखवा रहे हैं.

 हिनौती शंकुल केंद्र के प्राचार्य सबसे अधिक जिम्मेदार

   वास्तव में देखा जाए तो स्थानीय स्तर पर दर्ज़नों शंकुल स्कूलों की जिम्मेदारी मात्र शंकुल केंद्र के प्राचार्य पर हुआ करती है. शंकुल केंद्र का प्राचार्य ही स्थानीय स्तर पर सर्वेसर्वा हुआ करता है. जो जानकारी शंकुल केंद्र के प्राचार्य द्वारा डीईओ एवं डीपीसी को भेजवाई जाती है और जिस तन्मयता के साथ लगकर कार्य करवाया जाता है कार्य उसी हिसाब से हो पाता है.

   अतरैला शासकीय पूर्व माध्यमिक पाठशाला के मामले में शंकुल केंद्र हिनौती के प्रभारी प्राचार्य रमाकांत चतुर्वेदी को कई मर्तबा फ़ोन से लेकर व्यक्तिगत एवं आवेदनों के माध्यम से अभिभावकों एवं सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा भी सूचित किया गया है लेकिन स्कूली बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते हुए हिनौती स्कूल शानुल प्राचार्य ने मामले को गम्भीरता से लिया ही नही जिसका की परिणाम है शंकुल के अंदर आने वाली स्कूलों में रमसा और डीपीसी के पास फण्ड होने के वाबजूद भी समय पर विद्युत लाइनें शिफ्ट न किया जाना. जिसका की परिणाम यह हुआ की व्यथित अभिभावकों ने लोकतंन्त्र के सबसे पड़े पर्व मतदान दिवस को भी मतदान से बहिष्कार करने का फैसला लिया है. जिसकी पूरी जिम्मेदारी स्कूल शिक्षा विभाग की बनती है.

  देखना होगा चुनाव आयोग क्या एक्शन लेता है

   अब देखना यह होगा की मतदान के बहिष्कार के इस मामले में केंद्रीय एवं मप्र चुनाव आयोग क्या एक्शन लेता है. इस बीच अतरैला स्कूल परिसर में हाई टेंशन लाइन के सम्पूर्ण मामले सहित अभिभावकों के यूट्यूब इंटरव्यू को मप्र राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त सहित भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ओपी रावत को भी सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा ट्विटर एवं ईमेल के मॉध्यम से भेज दी गई है और ग्रामीण अभिभावकों की पीड़ा व्यथा को समझते हुए मामले पर तत्काल संज्ञन लेते हुए हाई टेंशन लाइन तत्काल शिफ्ट करवाकर भय रहित वातावरण में मतदान कराए जाने की माग की गई है.  

संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें किस तरह से अतरैला स्कूल परिसर में छत को छूते हुए हाई टेंशन लाइन 11 केवी के खुले तार झूल रहे हैं साथ ही स्कूल परिसर में उपस्थित छात्र, शिक्षक और अभिभावक. ट्विटर एवं ईमेल के माध्यम से मुख्य चुनाव आयुक्त भारत निर्वाचन आयोग सहित अन्य विभागों को भेजे गए ईमेल की प्रतियां के स्क्रीनशॉट.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

Friday, November 16, 2018

मऊगंज बिजली डिवीज़न में फैल हैं सैकड़ों ट्रांसफार्मर, उपभोक्ता परेशान (मामला ज़िले के मऊगंज बिजली डिवीज़न का जिंसमे संबल योजना के बाद भी फैल पड़े हैं सैकड़ों ट्रांसफार्मर, मऊगंज डिविज़नल इंजीनियर परस्ते एवं देवतालाब एई दिनेश पॉल की चल रही मनमानी, आम जनता परेशान फ़ोन तक रिसीव नही करते)

दिनाँक 16 नवंबर 2018, स्थान - मऊगंज रीवा मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)

   यद्यपि मप्र सरकार की संबल योजना एवं बिजली बिल माफी स्कीम के तहत प्रदेश सरकार ने काफी हद तक आम जनता और उपभोक्ताओं को राहत देने का प्रयास किया लेकिन कई जगहों पर इन योनाओं को लेकर बिजली विभाग गंभीर नही है. 

मऊगंज डिवीज़न में फैल हैं सैकड़ों ट्रांसफार्मर

  सूत्रों से प्राप्त विभागीय जानकारी के अनुसार ज़िले के मऊगंज बिजली डिवीज़न में अभी भी सैकड़ों ट्रांसफार्मर ऐसे हैं जो महीनों से फैल हैं जिन्हें बदला नही जा सका है. देवतालाब विद्युत वितरण केंद्र अंतर्गत ही अभी दर्ज़नों ट्रांसफार्मर फैल जले पड़े हैं जिन्हें बदलना अनिवार्य है लेकिन विभागीय उदासीनता के चलते अब तक बदले नही गए जिससे आम जनता और उपभोक्ताओं सहित किसानों को काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

अकाल में अन्नदाता की सबसे बड़ी दुर्दशा

   आम उपभोक्ताओं के साथ साथ सबसे अधिक समस्या किसानों को हो रही है. खरीफ वर्ष 2018 में धान की कटाई के बाद परती पड़ चुके खेतों को उठाने के लिए सिंचाई के लिए बिजली की आवश्यकता है, साथ ही जोत दिए गए खेतों में भी पलेवा लगाने वास्ते बिजली की जरूरत है लेकिन जले हुए ट्रांसफार्मर के कारण कुछ नही हो पा रहा जिससे एकबार फिर किसान के पास आत्महत्या के अतिरिक्त कोई दूसरा चारा नही बचेगा.

किसानों के वाहन खर्च में बुलाते हैं अधिकारी

   देवतालाब सहायक अभियंता अन्तर्गत मैरहा 875, तिवारीगवां-मनबोदसिंह  एवं पैकन गांव आदि ग्रामों के किसानों भूपति पटेल, रामस्वरूप पटेल, भाग्योदय सिंह आदि किसानों ने बताया की असिस्टेंट इंजीनियर देवतालाब दिनेश पॉल द्वारा कहा गया की ट्रांसफार्मर ले जाने के लिए वाहन नही है अतः अपने अपने ट्रेक्टर लेकर आओ तब ट्रांसफार्मर दिया जाएगा. जब कुछ किसान ट्रेक्टर लेकर बिजली कार्यालय गए तो सहायक अभियंता दिनेश पॉल अपना आधिकारिक मोबाइल स्विच ऑफ करके भाग गया. इसके बाद किसानों ने मऊगंज डिविजनल इंजीनियर परस्ते से भी संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन परस्ते ने मोबाइल कॉल ही रिसीव नही किया जिससे किसानों में आक्रोश व्याप्त है. किसानों का कहना था की हज़ारों रुपये का तेल खर्चा करके ट्रेक्टर लेकर बिजली कार्यालय ट्रांसफार्मर देने के लिए बुलाया लेकिन ट्रांसफार्मर नही दिया.

  मऊगंज बिजली विभाग के अधिकारी कर रहे मनमानी

   राष्ट्रीय किसान संगठन मऊगंज के पदाधिकारी भाग्योदय सिंह एवं अन्य ग्रामीणों द्वारा बताया गया की इसके पहले भी डिवीज़न में बिजली की समस्याओं को लेकर उनके संगठन द्वारा बिजली विभाग मऊगंज को ज्ञापन सौंपा गया था जिंसमे उन्होंने डिवीज़न में फैल पड़े ट्रांसफार्मर को बदलने से लेकर केबल बदलने, बिजली बिल ठीक करने, 4 हॉर्स पावर के कनेक्शन को तीन हॉर्स पावर कर ठीक करने और अन्य कई मामलों को लेकर सौंपे गए ज्ञापन में मऊगंज डिविज़नल इंजीनियर परस्ते द्वारा लिखित आश्वासन देने के बाद भी कोई कार्यवाही अब तक नही की गई है.

मउगंज बिजली अधिकारी काम के बदले चाहते हैं पैसा

   किसानों और मऊगंज के उपभोक्ताओं का कहना था की यह बिजली अधिकारी चाहते हैं की उन्हें कुछ चढ़ोत्तरी दिया जाए और इसी अपेक्षा में आवश्यक कार्य को भी लटका कर रखते हैं. सभी ग्रामीणों सहित राष्ट्रीय किसान संगठन के कार्यकर्ताओं ने मऊगंज डीई परस्ते एवं देवतालाब एई दिनेश पॉल पर असहयोग एवं घूंसखोरी का आरोप लगाते हुए इन्हें हटाये जाने की माग की है.

संलग्न - मऊगंज बिजली डिवीज़न अन्तर्गत देवतालाब एई और अन्य जगहों में फैल सैकड़ों ट्रांसफार्मर में से पैकन गांव में 63 केवीए का जला ट्रांसफार्मर और 10 पोल की जली केबल के पास एकत्रित किसान और अन्य ग्रामीण उपभोक्ता.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

Thursday, November 15, 2018

बिजली विभाग की कार्यवाही, शिफ्ट हुआ करहिया स्कूल परिसर एवं मतदान केंद्र क्रमांक 135 का खुला बिजली तार, मीडिया में आई थी बात, खबर और सामाजिक प्रयाशों का हुआ सार्थक असर (मामला ज़िले के कटरा विद्युत वितरण केंद्र का जहाँ पर खुले सिर की ऊंचाई से झूलते तारों की वजह से ग्रामीणों ने मतदान बहिष्कार की कही थी बात)

दिनाँक 15 नवंबर 2018, स्थान- कटरा रीवा मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)

    त्योंथर विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र क्रमांक 135 में खुले खतरे के निशान से झूलते बिजली के तारों की बातें सामने आईं थी. मामला था शासकीय प्राथमिक पाठशाला करहिया के स्कूल परिसर में बनाये गए मतदान केंद्र क्रमांक 135 का जिंसमे खुले हुए बिजली के तार किसी भी समय अप्रिय घटना का आमंत्रण दे रहे थे. 

स्पार्किंग की वजह से फसल से लदा ट्रेक्टर हुआ था आग के हवाले

       इसके पूर्व भी पिछले जून मई-जून महीने में जब बिजली के खुले हुए तारों की वजह से डाढ़ पंचायत सरपंच सुरेंद्र मिश्रा का ट्रेक्टर देखते देखते स्पार्किंग की बजह से आग के हवाले हो गया था तब भी ग्रामों और स्कूल परिसर में खुले झूलते बिजली के तारों की बातें सामने आईं थी और लाइन को शिफ्ट करने की बात रखी गई थी लेकिन तब इस पर कोई  सार्थक कार्यवाही नही हुई थी. लेकिन अब जब शौभाग्य योजनान्तर्गत अरबों खरबों का बजट उपलब्ध है और चुनाव भी नजदीक है जब मामला सोशल मीडिया एवं प्रिंट मीडिया में रखा जाकर सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा संबंधित चीफ इंजीनियर के एल वर्मा एवं जबलपुर डिस्कोम सीएमडी को ट्विटर एकाउंट में सूचित किया गया तो कार्यवाही हुई. 

लाइन शिफ्ट न होने पर मतदान से करना था बहिष्कार

      सबसे बड़ी बात यह थी की ग्रामीणों ने लाइन शिफ्ट न करने पर मतदान से बहिष्कार की बात कही थी जिसका परिणाम यह हुआ की दिनाँक 15 नवंबर 2018 को तीन पोल खड़ा करके बिजली शिफ्ट कर दी गई. साथ ही ट्रांसफार्मर का टूटा हुआ पोल भी सपोर्ट लगाकर ठीक किये जाने का प्रयाश किया जा रहा है. उपस्थित ठेकेदार प्रतिनिधि बद्री प्रसाद पांडेय निवासी पनगड़ी-पताई द्वारा बताया गया की ट्रांसफार्मर में अतिरिक्त पोल लगाकर दो तीन दिनों में सही कर दिया जाएगा.

  स्कूली बच्चों और अभिभावकों में प्रसन्नता

    इस बीच करहिया प्राथमिक पाठशाला परिसर से खतरे के निशान से झूलते हुए बिजली के तारों को शिफ्ट किये जाने से आसपास के ग्रामों डाढ़, करहिया, बड़ोखर, हिनौती आदि ग्रामों के अभिभावकों और स्कूली बच्चों सहित शिक्षकों में प्रसन्नता है. सभी ने सामाजिक कार्यों की सराहना की और कहा की यह कार्य यहां के जन प्रतिनिधियों द्वारा कराए जाने चाहिए लेकिन जन प्रतिनिधि ग्रामीणों की समस्या पर ध्यान नही देते और चुनाव जीतकर फुरसत हो जाते हैं. इसके बाद आम जनता को पांच साल दर दर की ठोकर खाने को मजबूर होना पड़ता है. 

   लालगांव डीसी अन्तर्गत अतरैला स्कूल में भी झूल रही मौत

   बता दें की पिछले वर्षों से उठाये जा रहे एक अन्य मामले में भी हालात करहिया स्कूल जैसे ही हैं. गंगेव ब्लॉक के पताई पंचायत अन्तर्गत शासकीय पूर्व माध्यमिक पाठशाला अतरैला में भी इससे भी अधिक खतरनाक हाई टेंशन लाइन के तार सिर की ऊंचाई से झूल रहे हैं लेकिन कई मर्तबा स्कूल प्रशासन एवं ग्रामीणों द्वारा मामले को लगातार संबंधित जिम्मेदारों के समक्ष रखे जाने के बाबजूद भी आज तक हाई टेंशन लाइन शिफ्ट नही की जा सकी है. अपना रोष व्यक्त करते हुए पताई पंचायत गंगेव ब्लॉक के ग्रामीणों एवं अभिभावकों ने बताया की यदि समस्या का समाधान किया जाकर स्कूल परिसर से हाई टेंशन लाइन शिफ्ट नही की गई तो वह भी चुनाव का बहिष्कार करेंगे क्योंकि बच्चों की जिंदगी उन्हें ज्यादा प्यारी है.

संलग्न - संलग्न तस्वीरों में देखें कटरा डीसी अन्तर्गत शासकीय प्राथमिक पाठशाला करहिया जिसे मतदान केंद्र क्रमांक 135 बनाया गया है वहां पर दिनांक 15 नवंबर 2018 को खतरनाक स्तर पर खुले झूलते हुए बिजली के तारों को शिफ्ट कर दिया गया. कार्य करते बिजली विभाग के वर्कर.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139

MP - मप्र की विकाश गाथा का प्रतीक - मनगवां चाकघाट हाईवे में सोहागी पहाड़

दिनांक 15 नवंबर 2018, स्थान - सोहागी पहाड़, रीवा मप्र

( शिवानन्द द्विवेदी, रीवा मप्र)

    पिछले पांच वर्षों से अधिक समय से बनाई जा रही रीवा ज़िले की बहुचर्चित मनगवां-चाकघाट हाईवे सड़क आज तक नही बन पायी है जबकि इसमे अब तक देश दुनिया की नामी गिरामी कंपनियों ने काम किया है. टॉपबर्थ, दिलीप बिल्डकॉम और बंसल जैसी कंपनियों ने इस सड़क कार्य में हाँथ आजमाया है और अब वर्तमान में बंसल कंपनी द्वारा ही कार्य किया जा रहा है. टॉपबर्थ कंपनी द्वारा कार्य का टेंडर लिया जाकर दिलीप बिल्डकॉम कंपनी को पेटी कॉन्ट्रैक्ट में दिया गया था जिंसमे बताया गया कि लेनदेन को लेकर आपसी विवाद और समय पर गुणवत्तापूर्ण तरीके से पूरा न कर पाने के कारण ठेका निरस्त हुआ. इसके बाद पुनर्निविदा के चलते बंसल कंपनी को कार्य सौंपा गया. बंसल द्वारा आज तक कार्य पूरा नही किया गया जिसका परिणाम है पिछले पांच से अधिक वर्षों से मनगवां और चाकघाट के बीच रहने वाले और यहां इस सड़क मार्ग से प्रतिदिन आवागमन करने वाले आम जन मानस से लेकर वीआईपी तक की फजीहत.

  सोहागी पहाड़ में स्थिति सबसे खतरनाक

    मनगवां से चाकघाट सड़क मार्ग में सोहागी नामक पहाड़ आता है जो किसी भी रोड निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है. पिछले पांच से अधिक वर्षों से हो रहा यह सड़क निर्माण का कार्य आज मात्र सोहागी पहाड़ में ही आकर रुका हुआ है. टेढ़ा मेढ़ा और ऊंचाई गहराई से भरा यह पहाड़ काफी मुश्किल है. अब जो भी कपंनियां कार्य कर रही हैं उन सबका अंतिम और सबसे मुश्किल कार्य इसी पहाड़ को तोड़कर यहां से सड़क मार्ग निकलना है।

  ऐसा क्या है इस सड़क में की पांच साल से अधिक का समय लग गया

   अब प्रश्न यह है की आज भी क्या मॉनव 17 वीं सताब्दी में जीवन यापन कर रहा है जबकी मसीनी उपकरणों का अभाव रहता था और मॉनव ज्यादातर कार्य हाँथ से करता था. आज तो 21 वीं सदी का दौर है जबकि ऐसी मसीनों का ईजाद हो चुका है जहाँ पर कोई मुश्किल से मुश्किल कार्य भी कुछ दिनों अथवा महीनों में पूरा किया जा सकता है. तब प्रश्न यह उठता है की आखिर यह सरकारें क्या कर रही हैं. क्या सरकारों में बैठे सिविल कंस्ट्रक्शन के इंजीनियर और इनके नीति निर्धारक इन बातों का ध्यान नही रखते की जिस कंपनी को यह टेंडर देकर कार्य सौंप रहे हैं वह कार्य करने योग्य भी हैं की नही. आखिर टेंडर देते समय कोई तो समय निर्धारण हुआ होगा की इतने वर्षों में कार्य को पूरा किया जाकर सरकार के हवाले किया जाना है. वास्तव में बात यह है की कमीशन के खेल में पूरी सरकार और इनके सिपहसालार ही लिप्त हैं तो भला कार्यवाहि फिर कौन करेगा. कार्यवाही करने के लिए पाक साफ और मजबूत होना पड़ता है. कमीशन खोर थोड़े ही कार्यवाही करते हैं. 

  सोहागी पहाड़ में वर्षों से मानक स्तर से कई गुना अधिक प्रदूषण 

    सोहागी पहाड़ की स्थिति आज इतनी भयावह हो चुकी है की यहां पर दुर्घटनाएं तो बहुत आम बातें हैं और लगभग रोज ही कोई न कोई अप्रिय दुर्घटना हो रही है. मनगवां से चाकघाट वाया सोहागी पहाड़ से गुजरने वाले हर एक सख्स की हालात यह है की यदि उसका मेडिकल चेकअप कराया जाये तो खतरनाक बीमारियां मिलेंगी जिंसमे फेंफड़ों और सांस की बीमारियां जैसे सिलकोसिस, टीबी, और अन्य बीमारियां सम्मिलित हैं. 

    प्रदूषण चेक करने वाली संस्थाएं और उस पर कार्यवाही करने वाली संस्थाएं जैसे पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड आदि तो ऐसा लगता है जैसे अस्तित्व में हैं ही नही. रीवा संभाग और संभवतः पूरे मप्र में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसी संस्थाएं नाकाम और अक्षम साबित हुई हैं. क्रशर प्लांट से निकलने वाला डस्ट और फैलने वाला प्रदूषण, वाहनों से निकलने वाले धुंए और धूल का प्रदूषण, निर्माणाधीन सड़कों में अमानक स्तर पर उड़ने वाल धूल डस्ट का प्रदूषण, आखिर इन सब प्रदूषण की समस्याओं का समाधान कौन करेगा? कहां है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य ऐसी संस्थाएं? कहां गई जनता के हित की बात करने वाली सरकारें?

   सिलिकोसिस एक जानलेवा बीमारी

          सिलिकोसिस फेंफड़ों से संबंधित एक ऐसी बीमारी है जो महीन धूल के कणों से उत्पन्न होती है. सिलिका की धूल सांस के साथ खिंचकर फेंफड़ों के अंदर जाने से फेंफड़ों में छोटे छोटे नोड्यूल बन जाते हैं. सिलिका एक यौगिक है जो सिलिका व ऑक्सीजन के योग से बनता है जो खनिजों में पाया जाता है. इसे पीसने पर उस पत्थर के अत्यंत बारीक कण धूल के रूप में सांस के साथ जाकर फेंफड़ों में जम जाते हैं व फेंफड़ों की कार्यक्षमता को कम कर देते हैं. ये धूल के कण फेंफड़ों के ऊपर परत बना देते हैं जिस कारण ऑक्सीजन फेंफड़ों में शोषित नही हो पाती है और बाद में यह सिलिकोसिस नामक बीमारी के रूप में बदल जाती है. 

  सिलिकोसिस और प्रदूषण की समस्याओं का कानूनी प्रावधान 

    वास्तव में देखा जाए तो व्यक्ति को जानबूझकर प्रदूषण में धकेल देना और खतरनाक बीमारियों का तोहफा देना व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन है. 

   फैक्ट्री मजदूरों के हित में शासन द्वारा कारखाना अधिनियम 1948, खनन अधिनियम 1952, अंतरराज्यीय पलायन मजदूर कानून 1979, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम, असंगठित कामगार व सामाजिक सुरक्षा कानून आदि के अन्तर्गत यह कंनूनी अपराध हैं. इसके अतिरिक्त भी मध्य प्रदेश असंगठित कामगार कल्याण अधिनियम 2003, मध्यप्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम 1982, मध्य प्रदेश स्लेट पेंसिल कर्मकार कल्याण मॉडल, मप्र भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल जैसे कानूनों के दिशा निर्देश भी लागू हैं.

   मानव अधिकार संरक्षण कानून के अन्तर्गत है मुआबजे पुनर्वाश का प्रावधान 

      मॉनव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अन्तर्गत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी यह अनुसंसा की हुई है की यदि सिलकोसिस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यह माना जाएगा की उसके जीवन के अधिकार की अवहेलना हुई है जिसके लिए वह पीड़ित मुआबजा और पुनर्वाश का अधिकारी होगा. 

    नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल का हो हस्तक्षेप 

   प्रदूषण के अमानक स्तर और निरंतर पर्यावरण की हो रही अपूरणीय क्षति के चलते पूरे मामले में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल का हस्तक्षेप होना चाहिए. सबसे बड़ी बिडम्बना यह है की राष्ट्रीय हरित ट्राइब्यूनल एक हज़ार के स्टाम्प और फीस के साथ ही प्रकरण पर कार्यवाही करता है और दुनिया भर के टेक्निकल प्रोब्लम्स रहते हैं. जबकि जनहित याचिका के कांसेप्ट की तरह ही नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल में भी मात्र सीधे प्रकरण की एक दो फ़ोटो के साथ समस्या को लिखित रूप से भेजे जाने अथवा ईमेल कर दिए जाने के साथ ही स्वतः संज्ञान ले लेना चाहिए.

    इसलिए जनता के व्यापक हित से जुड़े हुए मामलों पर स्वतः संज्ञान और सीधे हस्तक्षेप का प्रावधान होना चाहिए इसमे यह नही देखा जाना चाहिए कि कोई शिकायतकर्ता बने और जब शिकायत आये तभी कार्यवाही हो। आखिर त्योंथर से मनगवां वाया सोहागी से गुजरने वालों में क्या कलेक्टर, डीएम, जस्टिस, सीएम, और प्रिंसिपल सेक्रेटरी नही होते होंगे? क्या वर्ष भर में ऐसे उच्चाधिकारी इस सड़क मार्ग से नही गुजरते होंगे? मानाकि यह बन्द एसी गाड़ियों में गुजरते होंगे लेकिन क्या आम जनता के दुख दर्द और तकलीफों को नही समझ सकते? समस्या तो यह है कि जब कुछ करना ही नही चाहते और इक्षाशक्ति ही नही है तो कहां से कुछ होगा? 

संलग्न - संलग्न तस्वीरों में सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा धूल डस्ट और प्रदूषण से भरे सोहागी सड़क मार्ग में घंटे भर खड़ा होकर वीडियो क्लिपिंग बनाई गई और साथ ही फ़ोटोग्राफ लिए गए जिसको समाज और मीडिया के समक्ष रखा जा सके और इस पर कार्यवाही हो सके.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139