Monday, February 19, 2018

(Rewa, MP) ज़िले के पहाड़ी इलाकों में बढ़ गया जलसंकट, पंचायत एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग बना अनजान (मामला डाढ़ पंचायत त्योंथर ब्लॉक रीवा का, पानी पीने के मानवाधिकार की उड़ाई जा रही धज्जियां)

दिनांक 20 फरवरी 2018, स्थान - त्योंथर ब्लॉक रीवा मप्र

  (शिवानंद द्विवेदी, रीवा मप्र)

   अभी पिछले दिनों हरिजन बस्ती नेवरिया का मामला प्रकाश में आया था जिसमे कुछ 10 साल तक के  स्कूली बच्चे साईकल में डिब्बे बाल्टी लिए हुए सेदहा स्कूल मोड़ हिनौती-लालगांव सड़क मार्ग के पास 5 किमी दूर से पानी भरकर ला रहे थे। आज सरकारें गरीबों के उत्थान की दुहाई देती नही थक रही और यूनिसेफ से लेकर चाइल्ड चैरिटी फण्ड के लिए अरबों खरबों डॉलर का पैसा देशी विदेशी संस्थाओं से उठा रही हैं लेकिन निश्चित तौर पर बच्चों का इस प्रकार 5 किमी दूर से पानी भरकर साईकल में लाना सरकार के सारे दावों को पूरी तरह से नग्न कर देने वाला वाकया था। 

      अब चूंकि जलसंकट इतना भीषण हो चुका है कि आज किसी भी ग्राम पंचायत में जाएं तो हमे लोग साईकल में डिब्बे लिए हुए पानी ढोते नज़र आ ही जायेंगे। लगभग रोज ही इस प्रकार की खबरें हमे मीडिया में छपी मिल ही जाएंगी।

       दिनांक 20 फरवरी की शुबह ग्राम पंचायत डाढ़ में ग्रामीणों द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता को मोबाइल में इसी जलसंकट की भीषण समस्या के विषय मे बताया गया जिस पर मौके पर उपस्थित होकर देखा गया कि डाढ़ पंचायत जनपद पंचायत त्योंथर के 50 से ऊपर हैंडपम्प पाइप की कमी और अन्य खराबी के कारण बन्द पड़े हैं। कुछ तो हैंडपम्प जलस्तर नीचे जाने की वजह से बंद हैं। लेकिन ज्यादातर हैंडपम्प कर विषय मे डाढ़ के ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि पंचायत एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा सही रखरखाव न होने की वजह से बंद पड़े हैं। जबकि देखा जाए तो इस विषय मे त्योंथर क्षेत्र के कार्यपालन यंत्री पी एस बुन्देला एवं ज़िले के कार्यपालन यंत्री शरद कुमार सिंह को कई मर्तबा बताया जा चुका है। इन सबका एक ही घिसा पिटा जबाब रहता है कि दिखवा रहे हैं लेकिन कहीं कुछ होता नजर नही आ रहा है। 

     त्योंथर क्षेत्र की जिम्मेदारी लिए हुए कार्यपालन यंत्री पी एस बुंदेला का कहना था कि ठेके प्रथा के चलते सीधे ठेकेदार से बात करें पर जब ठेकेदार से बात की जाती है तो ठेकेदार का कहना होता है कि पी एच ई हमे कोई सामग्री उपलब्ध नही करवा रहा है अतः हम कुछ नही कर सकते।

     आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि मानवाधिकारों में से एक पानी पीने के अधिकार का क्या होगा? क्या मानवाधिकार और मूलभूत संवैधानिक अधिकार मात्र किताबों की और पढ़ने पढ़ाने की बातें हैं। आखिर यदि सहरी क्षेत्र के लिए घर घर मे पाइप कनेक्शन से पानी सप्लाई किया जाता है और जल संकट उत्पन्न होने पर टैंकर से पानी पहुचाया जाता है तो पिछड़े ग्रामों के लिए भी पानी की समुचित व्यवस्था क्यों नही की जाती? क्या अधिकारियों, कमर्चारियों और शहरी क्षेत्र के लोगों नागरिकों के लिए विशेष संवैधानिक अधिकार हैं और पिछड़े बना दिये गए ग्रामो  के लिए ये पैमाने बिल्कुल अलग हैं? आखिर ऐसे में कोई ग्रामीण इन नियम कायदों संवैधानिक नियमों पर क्यों विश्वास करेगा? 

    आज सूखे अकाल की इस भीषण स्थिति में पानी को लेकर जो परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं इससे साफ जाहिर है कि अप्रैल प्रारम्भ होते होते स्थितियां और भी अधिक भयावह हो जाएंगी। ऐसे में तमाम मानवाधिकार की सुरक्षा की दुहाई देने वाली इन सरकारों के लिए बहुत बड़ा प्रश्न है कि कम बोलने वाले और कम विकशित इन ग्रामीणों के मानवाधिकारों की रक्षा सुरक्षा यह कैसे करेंगे? क्या मात्र दिखावा ही चलता रहेगा और मानवाधिकार की रक्षा के नाम पर देशी विदेशी संस्थाओं से माल ऐंठने का काम चलता रहेगा अथवा कहीं कुछ वास्तविक धरातल पर भी होगा।

संलग्न - कई किमी दूर से साईकल पर पानी ढोने पर मजबूर ग्रामवशी। त्योंथर ब्लॉक पहाड़ी क्षेत्र। रीवा मप्र।

   - शिवानंद द्विवेदी सामाजिक कार्यकर्ता रीवा मप्र। 7869992139


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