दिनाँक 22 फरवरी 2018, स्थान - सिरमौर तहसील गदही ग्राम से, रीवा मप्र।
(शिवानंद द्विवेदी, रीवा मप्र)
बिना ज्यादा भूमिका बनाये सीधे मुद्दे में आ जाते हैं। मूलभूत मानवाधिकारों में से अति महत्वपूर्ण पानी पीने के अधिकार की कितनी सुरक्षा ये सरकारें कर पा रही हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज 21 वीं सदी में भी लोग 5 किमी दूर जंगल मे जाकर झरने से पानी ला रहे हैं और उसी से जीवन यापन कर रहे हैं। कहने को तो यह क्षेत्र मनगवां विधानसभा का है जहां पर एक मोहतरमा प्रतिनिधित्व की कमान संभाले हुए हैं जो इन तथाकथित पिछड़े समूहों की तारणहार भी बताई जाती हैं। लेकिन जब इन हरिजन आदिवाशी रहवाशियों से पूंछा गया तो पता चला कि कई मर्तबा हम समूहों में एकत्रित होकर अपनी समस्याएं इन जनप्रतिनिधियों के समक्ष रखे लेकिन कोई सुनवाई नही हुई है। आज जबकि पूरा देश जानता है कि सांसद और विधायक निधि के नलकूपों की क्या स्थितियां हैं। इनमे ज्यादातर व्यक्तिगत उपयोग में लाये जा रहे हैं जिनमे या की पंप डाले होते हैं अथवा किसी के घर आंगन में व्यक्तिगत उपयोग के लिए लगे होते हैं। ऐसे में क्या सार्वजनिक उपयोग के लिए इन सांसदों, पंचायतों और विधायकों अथवा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के पास कोई नलकूप नही हैं?
संलग्न तस्वीरों में जो लोग अपने सिर हाँथ में डिब्बे लिए प्रदर्शन कर रहे हैं यह वाकया गंगेव ब्लॉक सिरमौर तहसील अंतर्गत आने वाली हिनौती पंचायत के कुख्यात (भमरिया गदही क्षेत्र अवैध पशु बाड़ों के लिए इस क्षेत्र में कुख्यात है जहां गौहत्याएं हुई हैं) गदही नामक ग्राम का है जहां सरकारी राजस्व के भूभाग में भूमिहीन हरिजन आदिवाशी बसे हुए हैं और आज कई सालों से पीने के पानी के लिए गुहार लगा रहे हैं।
- शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक मानवाधिकार कार्यकर्ता रीवा मप्र। 7869992139
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