दिनांक 01 जनवरी 2020, स्थान - रीवा मप्र
बाबूलाल दाहिया आज एक ऐसा नाम है जिसे पूरा देश भलीभांति जानता है।
बाबूलाल दाहिया को उनके कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए और जैविक खेती के प्रोत्साहन और रिसर्च के लिए पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जा चुका है। बाबूलाल दाहिया समय समय पर अपने लेख लिखते और प्रकाशित करते रहते हैं, स्टेज पर दाहिया जी को आमंत्रित किया जाता है जहाँ पर उनके कार्यक्रम होते हैं।
अभी हाल ही में उन्होंने जैविक खेती और किसानों गोवंसो की स्थिति पर प्रश्नोत्तरी के रूप में एक लेख लिखा है जिसे यहाँ पर पाठकों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रश्न न 1- क्या जैविक खेती में कमाई के सुनहले अवसर उपलब्ध है?
उत्तर 1 - जैविक खेती में कमाई के अवसर नही है। वह मात्र आजीविका का साधन हो सकता है। क्यो कि उसका मूल्य जहर युक्त अनाज से मात्र दूना तिगुना हो सकता है। किंतु अनाज का मूल्य पहले से ही अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के मुकाबले 10 गुना घटा हुआ है।
आइये हम 70 के दशक से आज की तुलना करते है जब हरित क्रांति शुरू हुई थी।
अन्तरराष्ट्रीय मूल्य का मापदण्ड सोना है जो सत्तर के दशक में 200 रुपये का दश ग्राम था।
उन दिनों गाँव के एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी को बेतन भी 200 रुपये ही मिलता था। यानी कि उसे 10 ग्राम सोना प्रतिमाह पहले भी मिलता था और आज यदि 40 हजार रुपये उसका बेतन है तो आज भी 10 ग्राम सोना उसे मिल रहा है।
किन्तु किसान का कितना घट गया देखे?
मेरे बड़े भाई ने 70 के दशक में अपना 5 मन यानी 2 क्विंटल चावल बेचा और एक तोला यानी की लगभग दश ग्राम सोना खरीद लिया। किन्तु यदि आज मैं 10 ग्राम सोना खरीदना चाहू तो मुझे अपना 20 क्विंटल चावल और 25 क्विंटल गेंहू बेचना पड़े गा। यानी कि अनाज का रेट 10 गुना घट गया। जिसका आशय यह हुआ कि 70 के दशक के 1 रुपए की क्रय शक्ति घट कर 10 पैसे रह गई।
हरित क्रांति आने पर उत्पादन तिगुना बढ़ गया यानी 10 पैसा 30 पैसा हो गया ।
पर किसान 70 के दशक के मुकाबले फिर भी 70 पैसे प्रति रुपया घाटे में है।
अगर उसे जैविक खेती में दूना मूल्य मिला तो उसका 10 पैसा 20 पैसे के बराबर होगा और तिगुना हो गया तो 30 पैसे के बराबर ही। इससे अधिक लाभ आम किसान नही पाएगा।
हाँ यह लाभ अवश्य होगा कि वह कर्ज के बोझ से मुक्त रहेगा। बाकी जो जैविक खेती को लाभ का धंधा बता रहे है वह भी वे ब्यापारी टाइप के लोग हैै जो अब रासायनिक खाद के स्थान पर अपना जैविक खाद बाजार में उतार किसानों को लूटना चाहते है।
हाँ यदि किसान के अनाज को जैविक प्रमाणीकरण के बाद विदेश भेजा जाए तो अवश्य उसमे अच्छा मूल्य मिलता है।
किन्तु सर्टीफिकेशन में इतना झाम है कि आम किसान उसे कर ही नही सकता।
पश्न न 2 - आप किस तरह जैविक खेती से जुड़े है।
उत्तर क्रमांक 2 - खेती हमारे परिवार का पैतृक धंधा था जो कई पीढ़ियो से जुड़ा था। और किसान बालक होने के नाते बहुत सारा खेती के जुताई कटाई गहाई ,मड़ाई, का ज्ञान उन दिनों किसान बालको को पढ़ाई के समय भी करने पड़ते थे इसलिए सारी जानकारी यू ही हो जाती है।
क्योंकि पचास साठ के दशक में दशहरे से दीपावली तक उन दिनों बकायदे फसली छुट्टी होती थी तब हम धान की गहाई ज्वार की तकाई आदि कार्यो में परिवार की मदद करते थे।
जैविक खेती विरासत में मिली, जहरीली हुई हरित क्रांति के बाद
रही बात जैविक की तो जो खेती हमे बिरासत में मिली वह पहले पूर्णतः जैविक ही थी। क्योकि जहरीली तो वह हरित क्रांति आने के बाद हुई।
उन दिनों गाय बैल हमारे परिवार के अंग थे। उनसे हमारा मूक समझौता सा था कि हम गायो को घास खिलाते वे हमें दूध देती। हमारे घास से वे तंदुरस्त होती उनके दूध से हम।
गाय ने बछड़ा जना हमने उसे हल में चलाया। किन्तु जो उत्पादन हुआ उसमे अनाज हमारा और भूसा पुआल चुनी चोकर गाय बैल का।
गाय बैल ने गोबर किया किसान ने कम्पोष्ट बनाया और गाड़ी में भरा जिसे खेत तक बैल ही खींच कर ले गए किन्तु अपने अपने हिस्से की वस्तु पाने के बराबर के अधिकारी।
और जीवन पर्यंत किसान से सेवा लेने के हकदार।
किन्तु यह जैविक अजैविक की बात तो 1965-66 के आस पास तब शुरू हुई जब देश मे हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ।
पर उसका कारण यह था कि आजादी के बाद हमारी स्वास्थ सेवाए बढ़ गई जिससे हैजा चेचक प्लेग जैसी तमाम जानलेवा बीमारी समाप्त हो गई उसके कारण जनसंख्या बढ़ी। पर उस अनुपात में हमारा अनाज का उत्पादन नही बढ़ा। फलस्वरूप नारा लगने लगा कि
रोटी कपड़ा और मकान।
मांग रहा है हिंदुस्तान।।
उसे तत्कालीन सरकार ने चुनौती के रूप में लिया और देश मे हरित क्रांति आई। किन्तु वह पहले तीन चीजो पर ही टिकी थी।
1 - उन्नत किस्म का बीज।
2- रसायनिक उर्वरक।
3- सिचाई के साधन।
और फिर वही से जैविक अजैविक खेती का विभाजन हुआ।
पश्न न 3 - किसानों को क्या सुझाव देना चाहते है ?
उत्तर 3 - किसानों को मैं यह कहना चाहता हूं कि आप जितना बाहरी बीज मंगाते जाएंगे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रसायनिक कीटनासी नीदानासी आदि के चक्कर मे पड़ते जाएंगे। देखने मे आप का खेत खूब हरा भरा दिखेगा उपज भी होगी पर वह आप के लिए नही सेठो के लिए किसान को उसमे उतना ही मिलेगा जैसे भैस 10-12 लीटर दूध देती है किंतु उसके बच्चे के हिस्से में एक लीटर भी नही आता।
इसलिए वह यहां के परम्परागत किस्मो को अपनाए जो यहां की परिस्थितिकी में हजारों साल से रचे बसे है।
जैविक खेती से लौटेगा गोमाता का सम्मान
वे कम वर्षा में पक जाते है, ओस में पक जाते है। आगे पीछे के बोये साथ साथ पक जाते है।इसलिये वर्तमान आसन्न संकट जलवायु परिवर्तन और भूमण्डलीय ऊष्मता रोकने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। वे रोग और बीमारी सहन करने में सक्षम तना बड़ा होने के कारण घास उन्हें नही दबा पाती अस्तु नींदानाशक कीटनाशक डालने की जरूरत नही पड़ती। उत्पादन कम होगा किन्तु किसान कर्ज के बोझ से मुक्त रहेगा।
साथ ही घर से बाहर की गई गाय का महत्व भी बढ़ेगा।
साभार - बाबूलाल दाहिया, पद्मश्री की कलम से। विशेष आग्रह पर प्राप्त।
संलग्न - बाबूलाल दाहिया जी की फ़ोटो आदि।
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शिवानन्द द्विवेदी
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
जिला रीवा मप्र, मोबाइल 9589152587
1 comment:
बहुत बढ़िया आलेख
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