Monday, October 29, 2018

मप्र- बकिया बराज नहर में धकेली सैकड़ों गायों पर हो रहीं राजनीति, क्रेडिट लेने का चल पड़ा दौर (मामला सतना जिले में रामपुर थाना अन्तर्गत बकिया बराज नहर में धकेले गए गोवंशों का जहां पर वास्तविक समस्या और उसके समाधान के स्थान पर हो रही राजनीति)

दिनांक 30 अक्टूबर 2018, स्थान - सतना-रीवा बॉर्डर बकिया बराज से करहिया चचाई गेट, मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी, ग्राउंड जीरो से)

   पिछले दो कई दिनों से सतना ज़िला एवं रामपुर थाना क्षेत्र अन्तर्गत आने वाले बकिया बराज नहर के अंदर सैकड़ों गोवंशों को धकेल दिए जाने का जो मामला प्रकाश में आया था उसमे कर कराकर कार्यवाही तो हुई और गोवंशों को काफी मसक्कत के बाद निकाला भी गया लेकिन चुनाव को देखते हुए कुछ राजनीतिक किश्म के लोग उन्ही गोवंशों पर अब राजनीतिक रोटी सेंकना भी प्रारम्भ कर दिए हैं. गोवंशों को सुरक्षित निकालने में किसका कितना योगदान रहा और कैसे निकाले गए इन बातों से हटकर गौ संवर्धन बोर्ड रीवा के सदस्य और उपाध्यक्ष और कुछ अन्य संगठन अपना नाम चमकाने के उद्देश्य से जमकर क्रेडिट लेने के प्रयाश कर रहे हैं.

   तटस्थता के उद्देश्य और समाज के सामने वास्तविक सच्चाई लाने के लिए आइए प्रकाश डालते हैं इस पूरे प्रकरण पर. जानते हैं क्या है सच्चाई और हंगामा है क्यों बरपा.

गोवंशों को सुरक्षित निकलने में मदद क्या है कोई एहसान? गौसंवर्धन बोर्ड का काम ही हैं गायों की सुरक्षा

  वास्तव में देखा जाए तो मप्र में विशेष तौर पर गौसंवर्धन बोर्ड का गठन कर उसके अध्यक्ष को एक राज्यमंत्री का दर्जा और एवन क्लास की सुविधा प्रदान किये जाने के पीछे का यही उद्देश्य है की मप्र में निरंतर कई वर्षों से गोवंशों के साथ हो रही प्रताड़ना को कम किया जाकर इनके पोषण एवं पुनर्वाश हेतु सार्थक और दूरगामी प्रयास किये जाएं और इन गोवंशों की सुरक्षा की जाए लेकिन इसके उलट पिछले कई वर्षों से यह देखा गया है मप्र गोसंवर्धन बोर्ड अपने कार्य में पूरी तरह से असफल रहा है. मप्र सरकार ने गायों की सुरक्षा को राजनीतिक आधार बनाकर चुनाव आते ही गो मंत्रालय तक बनाये जाने की घोषणा तो कर डाली है लेकिन इसके वाबजूद भी पूरे प्रदेश में गोवंशों की स्थिति में कोई विशेष सुधार नही हुआ है.

मीडिया में खबर आते ही प्रशासन की टूटी निद्रा

   पिछले कई दिनों से लोकल पब्लिक द्वारा बकिया बराज नहर में असमाजिक आपराधिक तत्वों द्वारा डम्पर और ट्रेक्टर के माध्यम से सैकड़ों गोवंशों को सूखी नहर में डंप किये जाने का मामला चल रहा था. गांववालों ने यह जानकारी संबंधित थाना रामपुर में भी पहुचाई थी लेकिन आम आदमी की इस वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में न तो कोई सुनवाई है और न ही को कीमत इसलिए कोई कार्यवाही नही हो रही थी. इस बीच जब खबर व्हाट्सएप्प एवं सोशल मीडिया के मॉध्यम से दिनाँक 26 एवं 27 अक्टूबर को प्रकाश में आई तो सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पशुओं के अधिकार के लिए लड़ने वाले लोगों द्वारा भी प्रयाश प्रारम्भ किये गए. 

फंसी गायों की जानकारी उच्चस्तर तक भेजी गई 

  इस बीच सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट द्वारा बकिया बराज नहर की घटना की जानकारी सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया आदि के माध्यम से होते हुए गौ संवर्धन बोर्ड मप्र के अध्यक्ष अखिलेश्वरानंद, एनिमल वेलफेयर बोर्ड के अध्यक्ष एसपी गुप्ता, मप्र से एनिमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य राम रघुवंशी, एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया के समिति में जुड़े हुए दर्जनों सदस्यों जिंसमे मोहन सिंह अहलूवालिया सहित पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली विभिन्न संस्थाएं जैसे पीपल फ़ॉर एनिमल्स, ध्यान फाउंडेशन के सुदर्शन कौशिक, ज़िला सतना के एसपी एवं रामपुर थाना टी आई, ट्विटर के माध्यम से मुख्यमंत्री मप्र शासन, प्रधानमंत्री भारत सरकार सहित अन्य संबंधित जिम्मेदारों के समक्ष रखी गई जिस पर लगभग हर स्थान से प्रेशर लगाया गया और जितनी प्रशासनिक स्तर की मशीनरी सतना एवं रीवा जिले में पशुओं के लिए उपलब्ध थी सभी एक्टिव हुए जिंसमे पशु चिकित्सा विभाग का ज़िला एवं संभागीय दस्ता, नगर निगम रीवा का पशुओं को पकड़ने वाला दस्ता, बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र के प्रबंधक सहित अन्य कई स्वयंसेवी संगठन और उनके लोगों ने भी अपना अपना योगदान दिया. 

  किन लोगों ने नहर से गोवंशों को चलकर सुरक्षित निकाला

    इस सम्पूर्ण अभियान में बकिया बराज नहर से लेकर करहिया चचाई गेट तक का लगभग 14 किमी के आसपास का सफर जिन लोगों ने पूरा किया और गोवंशों को चलाकर नहर के बीचोंबीच से चचाई गेट तक पहुचाया उनमे से नगर निगम के ड्राइवर, बैकुंठपुर से गोरक्षक  नितिन गौतम एवं विनीत गौतम, खुलासा न्यूज़ लाइव से ज़िला ब्यूरो आनंद द्विवेदी, कैथा से कार्यकर्ता संतोष केवट, एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी सहित एक दो अन्य गोवंश प्रेमी नहर के बीचोंबीच पूरे 14 किमी पैदल सफर तय करते हुए चचाई गेट के पास तक पहुचे जहां पर चचाई नहर के पास स्थित गेट को खोला गया और लगभग साढ़े तीन सौ की संख्या में गोवंशों की निकाला गया.

गो संवर्धन बोर्ड का पूरी रेस्क्यू प्रकिया में कितना रहा रोल

   सही मायनों में यदि देखा जाए तो मात्र चुनाव कहें की आचार संहिता का डंडा जिसकी वजह से कुछ हद तक इस बार गो संवर्धन बोर्ड के सदस्य कुछ रुचि लिए वरना आज पिछले कई वर्षों से पूरे रीवा में गोवंशों के साथ निरंतर हो रही अतिशय क्रूरता को रोकने में गोसंवर्धन बोर्ड का न तो कोई पता था और न ही कोई किसी प्रकार का योगदान. 

    चूंकि इस मर्तबा अगले कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और आदर्श आचार संहिता भी लगाए हुई है अतः जब कोई भी घटना जो की संवेदनशीलता की दृष्टि से इतनी व्यापक हो उस पर मीडिया और तमाम उछलने पर स्वाभाविक तौर पर इनको कार्यवाही करने मजबूर होना पड़ा. वरना जब थाना गढ़ क्षेत्र में पनगड़ी-भलघटी, लौंगा, क्योटी, रेहवा एवं नांदघाट के जंगली क्षेत्रों एवं हज़ारों फीट गहरी घाटी के नीचे ज़रीन गोवंशों को जीवित धकेल दिया गया था तब यह गौसंवर्धन बोर्ड और गायों के नाम पर माल ऐंठेने वाले संगठन सब कहां थे? तब तो दिल्ली और चेन्नई से टीमें आईं और गोवंशों की सुरक्षा की तब रीवा प्रशासन और मप्र में गौसंवर्धन बोर्ड और गोरक्षक दलों का कोई रता पता नही था. पर चूंकि अब जाना की चुनाव भी नजदीक है तो मामले को भुनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी.

गोसंवर्धन बोर्ड के नाम पर कुछ सदस्यों ने गाय पर किया राजनीति

   अभी हाल ही में बकिया बराज नहर से लेकर चचाई गेट तक नहर के बीचोंबीच से गोवंशों को निकाले जाने का जो सार्थक प्रयाश सभी के सहयोग से हुआ उसमे अब गौसंवर्धन बोर्ड के कुछ सदस्य और उपाध्यक्ष मात्र अपने नाम से क्रेडिट लेने का प्रयास कर हैं.

 यदि गौसंवर्धन बोर्ड ने थोड़ा बहुत योगदान कर ही दिया तो कौन सा बहुत बड़ा कमाल कर दिया. गौसंवर्धन बोर्ड का तो काम ही है गायों की सुरक्षा करना. लेकिन वास्तव में देखा जाए तो बकिया बराज नहर की घटना के अतिरिक्त गौसंवर्धन बोर्ड का कोई रता पता कभी नही चला. गौसंवर्धन बोर्ड ने गायों के नाम पर रीवा में क्या किया यह कभी समझ नही आया जबकि सभी प्रताड़ना की वारदातें हमेशा से ही गौसंवर्धन बोर्ड के पास तक पहुचाई जाती रही हैं. पोषण की दृष्टि से देखा जाए तो लक्षमनबाग गोशाला में गायों की दुर्दशा किसी से छुपी नही है जबकि हर वर्ष लाखों करोड़ों का बजट दिया जाता है. 

    पर आज जब चुनाव नजदीक है और बोर्ड के कुछ सदस्य जो राजनीतिक दृश्टि से लाभ लेना चाह रहे हैं बकिया बराज नहर की घटना को राजनीतिक रंग देकर अपना स्वयं का महिमा मंडन कर रहे हैं, गलत भ्रामक प्रेस रिलीज के माध्यम से अपने नाम की बड़ाई बता रहे हैं. टीवी में इंटरव्यू और प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर बता रहे हैं की मात्र इन्होंने ने ही इतना सब कार्य किया है बांकी सारे ग्राउंड पर नहर के अंदर मेहनत करने वाले समाजसेवी और वास्तविक गोभक्तों का जैसे कोई योगदान ही नही रहा. यह काफी दुखद तो है ही साथ ही गोवंशों के अधिकार के लिए स्वतंत्र तौर पर कार्य करने वाले गोसेवकों के भी मनोबल को गिराने का प्रयाश है.

सूचना पर 27 अक्टूबर को क्या कहा सतना एसपी ने

    जब सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी की सतना एसपी से मोबाइल फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंने घटना की जानकारी न होने की बात स्वीकारी पर उन्होंने बताया की वह हर संभव मदद करेंगे और आवश्यकता पड़ी तो क्रेन भी भेजकर गोवंशों को निकलवाने का प्रयाश करेंगे. आखिर जब गोसंवर्धन बोर्ड और अन्य संगठन एक्टिव बता रहे हैं तो एसपी को ऐसी भीषण वारदात को सूचना इसके पहले क्यों नही थी?

क्या कहा रामपुर थाना प्रभारी टी आई द्विवेदी ने

   जब कोई भी आपराधिक घटना जो की लॉ एंड आर्डर से सम्बन्धित हो घटित होती है तो उसमे सबसे पहले जानकारी पुलिश विभाग और संबंधित थाने को ही दी जाती है. इस पर जब रामपुर थाना प्रभारी श्री द्विवेदी से पूंछा गया तो उन्होंने घटना घटित होने की बात स्वीकारी और यह भी बताया की पिछले दो तीन दिन से बकिया बराज नहर में गोवंशों के धकेले जाने और उनके फंसे होने की खबर उन्हें कुछ नजदीकी गांववालों से मिली है. थानेदार ने आगे बताया की बीतेकल राजस्व तहसीलदार, पटवारी, आर आई, और नहर मंडल का दस्ता घटना का मौका मुआयना करने गए थे जिंसमे उनके थाने से भी कर्मचारी मौजूद थे. थाना प्रभारी रामपुर ने लगभग ढाई सौ गोवंशों के फंसे होने की वारदात स्वीकारी और बताया था की इन्हें नहर के अदंर ही चचाई गेट की तरफ से निकाले जाने का प्रयास चल रहा था लेकिन कहीं मजदूरों के साथ आसपास के ग्राम के किसानों ने मारपीट कर दी जिसके कारण गोवंशों को निकाला नही जा सका था.

क्या बकिया बराज नहर में यह गोवंशों को धकेलने की एकमात्र घटना है?

    बकिया बराज नहर में घटित हुई यह गोवंश प्रताड़ना की घटना कोई एकमात्र नही है. जब ग्राउंड जीरो पर जाकर वहां के आसपास के राहवाशियों और ग्रामीणों से समाजिक कार्यकर्ता द्वारा जानकारी लेने का प्रयाश किया गया तो वहीं बीड़ा, सेमरिया, बकिया और आसपास के अन्य ग्रामों के लोगों ने बताया की यहां नहर के अंदर इस प्रकार की वारदातें अक्सर ही होती रहती हैं जब कुछ ऐसे ही असमाजिक और आपराधिक तत्व जीवित गोवंशों को डम्पर और ट्रेक्टर ट्राली में भरकर नहर में डंप कर देते हैं. जिससे अत्यंत फिसलन भरी और गहरी नहर से अपने आप निकल पाने में असमर्थ यह गोवंश फंसे रहकर भूंख प्यास से अपनी जान गवां बैठते हैं और न तो इन्हें कोई देखने वाला होता और न ही बचाने वाला. ग्रामीणों द्वारा बताया की इसके पहले भी कई मर्तबा ऐसी वारदातें होती रही हैं जिंसमे शाशन प्रशासन का कोई रता पता नही रहता था. लेकिन इस बार खबर सोशल मीडिया, मीडिया और उच्चस्तर के अधिकारी और गोसेवकों के बीच पहुचने के कारण इस स्तर की कार्यवाही हुई.

खतरनाक स्तर से खुली है नहर, नही है कोई फेंसिंग

   जब ग्राउंड जीरो में जाकर स्थिति का शोध किया गया तो पाया गया की ऐसे आपराधिक तत्वों के लिए यह कार्य और भी आसान था क्योंकि नहर के फैलाव के दोनो तरफ कोई भी फेंसिंग और प्रोटेक्शन वाल नही होने से न केवल मवेशियों के लिए जबकि आम नागरिक और चलते फिरते लोगों के लिए भी नहर के दोनो छोरों में खतरा बना हुआ था. यह भी जानकारी ग्रामीणों द्वारा दी गई की भले ही आपराधिक तत्व रोज मवेशियों को भरकर नहर में न फेंकते हों लेकिन यहां आमतौर कुछ मवेशी और व्यक्ति भी स्वयं भी नहर के दोनो तरफ के छोरों में फिसल कर गिर जाते हैं जिसकी वजह से अपनी जान गवां बैठते हैं अथवा शरीर के अंग टूट कर अपाहिज हो जाते हैं.

    सबसे बड़ी बात यह है जब 35 से 40 फीट वर्टिकल गहरी नहर बनाई गई थी तो क्या इस नहर के दोनो छोरों में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग की व्यवस्था के लिए जल संसाधन विभाग ने बजट नही दिया था? मानाकि हर नहर के दोनो छोरों में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग लगाना थोड़ा मंहगा पड़ सकता है लेकिन जब बात इतनी गहरी और खतरनाक नहर की हो जहां पर एक बार फिसलने के बाद नहर से सुरक्षित निकल पाना आसान न हो तो ऐसे में क्या शासन स्तर से ऐसी खुली हुई समस्त नहरों में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग क्यों न लगायी जानी चाहिए थी?

यदि नहर फेंसिंग होती तो ऐसी वारदातें रोकी जा सकती थी

   सबसे बड़ा प्रश्न यही है जब इतनी गहरी और चौड़ी नहर ग्रामों के बीचोंबीच है तो उसमे प्रोटेक्शन और सुरक्षा की दृष्टि से व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण थीं. खुली नहर छोड़ने का कोई औचित्य नही समझ आता. आज यदि इस नहर के दोनो छोरो में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग जाली लगाई हुई होती तो संभवतः ऐसे आपराधिक एवं असमाजिक तत्वों के लिए बकिया बराज नहर में गोवंश प्रताड़ना जैसे घृणित कारनामे करने में इतनी आसानी नही होती. 4 से 5 फीट ऊंची प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग निश्चित तौर पर ऐसी वारदात करने वालों के पीछे एक बार आड़े आ जाती और इतना आसान नही होता नहर के बीचोंबीच इन मवेशियों को ऐसे डंप किया जाना.

बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र बताया गया ओवरलोडेड 

   अभी इसी बकिया बराज गोवंश प्रताड़ना वाली घटना के समय ही जब बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र के प्रबंधक अरुण गौतम से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया की वर्तमान में उनके केंद्र में 1750 की संख्या में गोवंश दाखिल हैं और इन लगभग साढ़े तीन सौ गोवंशों के साथ संख्या 2 हज़ार के पार चली जाएगी. जब गोवंश विहार केंद्र की क्षमता के विषय में जानकारी चाही गई तो उन्होंने कोई स्पष्ट जानकारी नही दी और बताया की वैसे वर्तमान में ही गोवंश विहार केंद्र ओवरलोडेड चल रहा है तात्पर्य यह हुआ की जितने गोवंश बसामन मामा में रखे गए हैं उनकी देखरेख पर भी एक तरह से प्रश्नचिन्ह ही है क्योंकि जब क्षमता ही नही है तो उनकी व्यवस्था कैसे होगी.

    वैसे अभी कुछ समय से बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र के विषय में नकारात्मक समाचार आती रही हैं जिंसमे कुछ सूत्रों द्वारा बताया जाता रहा है की बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र तो बना दिया गया है लेकिन व्यवस्था के तौर पर स्थिति चिंताजनक है. सोशल मीडिया में तो कुछ लोगों ने वहां भी गोवंशों के मरने की बातें कहीं है. वहरहाल सच्चाई क्या है वह तो बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र सेमरिया में जाकर ही पता लगाया जा सकता है.

मप्र सहित पूरे भारतवर्ष में गोवंशों की स्थित चिंताजनक

   वाकया मात्र मप्र अथवा रीवा जिला तक ही सीमित नही रह गया है. यहां तो पूरे देश में ही गोवंशों को लेकर घमासान मचा हुआ है. आज समाज इतना अधिक स्वार्थी हो चुका है की उसे गोवंशों की जरूरत नही बची है. उसका एक सबसे बड़ा कारण है कृषि उपकरणों और मसीनों का ईजाद और दुग्ध उत्पाद प्राप्ति के अन्य साधन. कभी भारत कृषि प्रधान देश कहलाता था और कृषि को सबसे उत्तम माना जाता था और नौकरी पेशा आदि को कृषि के बाद रखा जाता था. लेकिन अब समय पूरी तरह से बदल चुका है. कृषि सबसे निचले स्तर पर आ चुकी है और नौकरी पेशा सबसे ऊपर. जहां कभी बैलों को हलों में चलाकर खेती की जाकर गोबर और जैविक खादों का उपयोग होता था आज वहां पर मसीनों ट्रेक्टर, थ्रेसर से खेती होकर रासायनिक उर्वरक का प्रयोग चल पड़ा है. कभी ग्रामीण क्षेत्रों में जहां गोबर के कंडों और लकड़ी से भोजन बनाये जाने का प्रचलन था आज वहां पर गैस सिलिंडर की बहुतायत होने से गोबर के कंडों की भी उपयोगिता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है. अब देखा जाए तो गोवंशों का उपयोग मात्र दुग्ध उत्पाद तक ही सीमित रह चुका है और वहां भी अब दूसरे विकल्प सामने आ रहे हैं जिंसमे सोयाबीन, गेहूं और अन्य जैविक माध्यमो से भी दूध और दुग्ध उत्पाद बनाये जाने की तकनीकी प्रक्रिया निकल चुकी है अतः रही सही गोवंशों की उपयोगिता भी अब पूरी तरह से समाप्ति की कगार पर है. अतः जब तक गायें दूध देती हैं तब तक तो लोग  किसी कदर अपने घरों में रखते हैं लेकिन जैसे ही दूध देना बन्द कर देेती हैं अथवा बूढ़ी हो चलती हैं उन्हें घर से बाहर कर दिया जाता है. बछड़ों और बैलों की तो और भी अधिक दुर्दशा हो रही है. आज शहर एवं ग्राम तमाम जाएं तो सड़कों गलियों के किनारों पर घूमते लाठी खाते हुए बैलों का झुंड दिख जाएगा. कहीं कूड़े करकट के ढेर से कचरा खाते हुए तो कहीं जहरीली पॉलिथीन खाते हुए. इस प्रकार हमेशा ही इनके जीवन को संकट बना रहता है. कई बार शहरों की गलियों में आवारा घूमते हुए पशुओं के पेट में मरने के बाद कई किलो पन्नियां निकाली जाती हैं. आज शिवजी का नंदी इस भारतीय समाज के लिए बोझ और गोमाता माता न रहकर मात्र उपभोग की सामग्री बन कर रह गई है जब तक दूध दिया तो ठीक नही दिया तो छोड़ दिया.

गोवंश प्रताड़ना और अवहेलना आज एक राष्ट्रव्यापी समस्या

    अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है जब कोई समस्या समाज तक सीमित रहे घर गांव शहर तक सीमित रहे तो ठीक है लेकिन जब वह यहां से निकलकर प्रदेश और देश स्तर की बन जाए तो आखिर उसका क्या समाधान है? क्या इसमे अकेले समाज कुछ कर पायेगा अथवा अकेले सरकार कुछ कर पाएगी? समाज की स्थिति तो पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है और समाज ने तो गोवंशों को अब लगभग पूरी तरह से ही बहिष्कृत कर दिया है लेकिन जब समस्या इस लेवल की हो जाए तो शासन स्तर से क्या कुछ व्यापक और सार्थक प्रयास किये जाने चाहिए. आज मप्र में इसी समस्या को देखते हुए शासन स्तर से चुनाव को देखते हुए और राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से वर्तमान सत्ताधारी सरकार ने तो गोसंवर्धन बोर्ड के बाद गो मंत्रालय तक बनाये जाने की घोषणा कर दी लेकिन क्या घोषणा मात्र करने से कुछ हो पायेगा? आखिर क्या है भारतीय समाज में इन गोवंशों का भावी स्थान? क्या भारतीय समाज में गोवंशों का अस्तित्व बना रहेगा अथवा पश्चिमी सभ्यता की तरह ही भारत में भी आगे चलकर मवेशियों को आहार ही समझा जाएगा और आने वाले समय क्या इन्हें मात्र बूचड़खानों का ही रास्ता दिखाया जाएगा अथवा कोई ऐसा प्रयाश किया जाएगा जिससे भारतीय संस्कृति का अस्तित्व और साथ ही गोवंशों का भी अस्तित्व बना रहे? 

  यह सब अनुत्तरित प्रश्न आज हम सबसे जबाब माग रहे हैं जिनका समाधान करना आज हर एक भारतवाशी का दायित्व है. - (शिवानन्द द्विवेदी की कलाम से)

  संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें, बकिया बराज नहर से करहिया चचाई नहर गेट की तरफ लगभग 14 किमी का सफर नहर के बीचोंबीच तय करते हुए लगभग साढ़े तीन सौ गोवंशों को सुरक्षित निकाले जाने की प्रक्रिया में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा स्वयं उपस्थित रहकर अपने मोबाइल कैमरे से तस्वीरें.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोवंश राइट्स एक्टिविस्ट

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139