Monday, October 29, 2018

मप्र- बकिया बराज नहर में धकेली सैकड़ों गायों पर हो रहीं राजनीति, क्रेडिट लेने का चल पड़ा दौर (मामला सतना जिले में रामपुर थाना अन्तर्गत बकिया बराज नहर में धकेले गए गोवंशों का जहां पर वास्तविक समस्या और उसके समाधान के स्थान पर हो रही राजनीति)

दिनांक 30 अक्टूबर 2018, स्थान - सतना-रीवा बॉर्डर बकिया बराज से करहिया चचाई गेट, मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी, ग्राउंड जीरो से)

   पिछले दो कई दिनों से सतना ज़िला एवं रामपुर थाना क्षेत्र अन्तर्गत आने वाले बकिया बराज नहर के अंदर सैकड़ों गोवंशों को धकेल दिए जाने का जो मामला प्रकाश में आया था उसमे कर कराकर कार्यवाही तो हुई और गोवंशों को काफी मसक्कत के बाद निकाला भी गया लेकिन चुनाव को देखते हुए कुछ राजनीतिक किश्म के लोग उन्ही गोवंशों पर अब राजनीतिक रोटी सेंकना भी प्रारम्भ कर दिए हैं. गोवंशों को सुरक्षित निकालने में किसका कितना योगदान रहा और कैसे निकाले गए इन बातों से हटकर गौ संवर्धन बोर्ड रीवा के सदस्य और उपाध्यक्ष और कुछ अन्य संगठन अपना नाम चमकाने के उद्देश्य से जमकर क्रेडिट लेने के प्रयाश कर रहे हैं.

   तटस्थता के उद्देश्य और समाज के सामने वास्तविक सच्चाई लाने के लिए आइए प्रकाश डालते हैं इस पूरे प्रकरण पर. जानते हैं क्या है सच्चाई और हंगामा है क्यों बरपा.

गोवंशों को सुरक्षित निकलने में मदद क्या है कोई एहसान? गौसंवर्धन बोर्ड का काम ही हैं गायों की सुरक्षा

  वास्तव में देखा जाए तो मप्र में विशेष तौर पर गौसंवर्धन बोर्ड का गठन कर उसके अध्यक्ष को एक राज्यमंत्री का दर्जा और एवन क्लास की सुविधा प्रदान किये जाने के पीछे का यही उद्देश्य है की मप्र में निरंतर कई वर्षों से गोवंशों के साथ हो रही प्रताड़ना को कम किया जाकर इनके पोषण एवं पुनर्वाश हेतु सार्थक और दूरगामी प्रयास किये जाएं और इन गोवंशों की सुरक्षा की जाए लेकिन इसके उलट पिछले कई वर्षों से यह देखा गया है मप्र गोसंवर्धन बोर्ड अपने कार्य में पूरी तरह से असफल रहा है. मप्र सरकार ने गायों की सुरक्षा को राजनीतिक आधार बनाकर चुनाव आते ही गो मंत्रालय तक बनाये जाने की घोषणा तो कर डाली है लेकिन इसके वाबजूद भी पूरे प्रदेश में गोवंशों की स्थिति में कोई विशेष सुधार नही हुआ है.

मीडिया में खबर आते ही प्रशासन की टूटी निद्रा

   पिछले कई दिनों से लोकल पब्लिक द्वारा बकिया बराज नहर में असमाजिक आपराधिक तत्वों द्वारा डम्पर और ट्रेक्टर के माध्यम से सैकड़ों गोवंशों को सूखी नहर में डंप किये जाने का मामला चल रहा था. गांववालों ने यह जानकारी संबंधित थाना रामपुर में भी पहुचाई थी लेकिन आम आदमी की इस वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में न तो कोई सुनवाई है और न ही को कीमत इसलिए कोई कार्यवाही नही हो रही थी. इस बीच जब खबर व्हाट्सएप्प एवं सोशल मीडिया के मॉध्यम से दिनाँक 26 एवं 27 अक्टूबर को प्रकाश में आई तो सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पशुओं के अधिकार के लिए लड़ने वाले लोगों द्वारा भी प्रयाश प्रारम्भ किये गए. 

फंसी गायों की जानकारी उच्चस्तर तक भेजी गई 

  इस बीच सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट द्वारा बकिया बराज नहर की घटना की जानकारी सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया आदि के माध्यम से होते हुए गौ संवर्धन बोर्ड मप्र के अध्यक्ष अखिलेश्वरानंद, एनिमल वेलफेयर बोर्ड के अध्यक्ष एसपी गुप्ता, मप्र से एनिमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य राम रघुवंशी, एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया के समिति में जुड़े हुए दर्जनों सदस्यों जिंसमे मोहन सिंह अहलूवालिया सहित पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली विभिन्न संस्थाएं जैसे पीपल फ़ॉर एनिमल्स, ध्यान फाउंडेशन के सुदर्शन कौशिक, ज़िला सतना के एसपी एवं रामपुर थाना टी आई, ट्विटर के माध्यम से मुख्यमंत्री मप्र शासन, प्रधानमंत्री भारत सरकार सहित अन्य संबंधित जिम्मेदारों के समक्ष रखी गई जिस पर लगभग हर स्थान से प्रेशर लगाया गया और जितनी प्रशासनिक स्तर की मशीनरी सतना एवं रीवा जिले में पशुओं के लिए उपलब्ध थी सभी एक्टिव हुए जिंसमे पशु चिकित्सा विभाग का ज़िला एवं संभागीय दस्ता, नगर निगम रीवा का पशुओं को पकड़ने वाला दस्ता, बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र के प्रबंधक सहित अन्य कई स्वयंसेवी संगठन और उनके लोगों ने भी अपना अपना योगदान दिया. 

  किन लोगों ने नहर से गोवंशों को चलकर सुरक्षित निकाला

    इस सम्पूर्ण अभियान में बकिया बराज नहर से लेकर करहिया चचाई गेट तक का लगभग 14 किमी के आसपास का सफर जिन लोगों ने पूरा किया और गोवंशों को चलाकर नहर के बीचोंबीच से चचाई गेट तक पहुचाया उनमे से नगर निगम के ड्राइवर, बैकुंठपुर से गोरक्षक  नितिन गौतम एवं विनीत गौतम, खुलासा न्यूज़ लाइव से ज़िला ब्यूरो आनंद द्विवेदी, कैथा से कार्यकर्ता संतोष केवट, एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी सहित एक दो अन्य गोवंश प्रेमी नहर के बीचोंबीच पूरे 14 किमी पैदल सफर तय करते हुए चचाई गेट के पास तक पहुचे जहां पर चचाई नहर के पास स्थित गेट को खोला गया और लगभग साढ़े तीन सौ की संख्या में गोवंशों की निकाला गया.

गो संवर्धन बोर्ड का पूरी रेस्क्यू प्रकिया में कितना रहा रोल

   सही मायनों में यदि देखा जाए तो मात्र चुनाव कहें की आचार संहिता का डंडा जिसकी वजह से कुछ हद तक इस बार गो संवर्धन बोर्ड के सदस्य कुछ रुचि लिए वरना आज पिछले कई वर्षों से पूरे रीवा में गोवंशों के साथ निरंतर हो रही अतिशय क्रूरता को रोकने में गोसंवर्धन बोर्ड का न तो कोई पता था और न ही कोई किसी प्रकार का योगदान. 

    चूंकि इस मर्तबा अगले कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और आदर्श आचार संहिता भी लगाए हुई है अतः जब कोई भी घटना जो की संवेदनशीलता की दृष्टि से इतनी व्यापक हो उस पर मीडिया और तमाम उछलने पर स्वाभाविक तौर पर इनको कार्यवाही करने मजबूर होना पड़ा. वरना जब थाना गढ़ क्षेत्र में पनगड़ी-भलघटी, लौंगा, क्योटी, रेहवा एवं नांदघाट के जंगली क्षेत्रों एवं हज़ारों फीट गहरी घाटी के नीचे ज़रीन गोवंशों को जीवित धकेल दिया गया था तब यह गौसंवर्धन बोर्ड और गायों के नाम पर माल ऐंठेने वाले संगठन सब कहां थे? तब तो दिल्ली और चेन्नई से टीमें आईं और गोवंशों की सुरक्षा की तब रीवा प्रशासन और मप्र में गौसंवर्धन बोर्ड और गोरक्षक दलों का कोई रता पता नही था. पर चूंकि अब जाना की चुनाव भी नजदीक है तो मामले को भुनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी.

गोसंवर्धन बोर्ड के नाम पर कुछ सदस्यों ने गाय पर किया राजनीति

   अभी हाल ही में बकिया बराज नहर से लेकर चचाई गेट तक नहर के बीचोंबीच से गोवंशों को निकाले जाने का जो सार्थक प्रयाश सभी के सहयोग से हुआ उसमे अब गौसंवर्धन बोर्ड के कुछ सदस्य और उपाध्यक्ष मात्र अपने नाम से क्रेडिट लेने का प्रयास कर हैं.

 यदि गौसंवर्धन बोर्ड ने थोड़ा बहुत योगदान कर ही दिया तो कौन सा बहुत बड़ा कमाल कर दिया. गौसंवर्धन बोर्ड का तो काम ही है गायों की सुरक्षा करना. लेकिन वास्तव में देखा जाए तो बकिया बराज नहर की घटना के अतिरिक्त गौसंवर्धन बोर्ड का कोई रता पता कभी नही चला. गौसंवर्धन बोर्ड ने गायों के नाम पर रीवा में क्या किया यह कभी समझ नही आया जबकि सभी प्रताड़ना की वारदातें हमेशा से ही गौसंवर्धन बोर्ड के पास तक पहुचाई जाती रही हैं. पोषण की दृष्टि से देखा जाए तो लक्षमनबाग गोशाला में गायों की दुर्दशा किसी से छुपी नही है जबकि हर वर्ष लाखों करोड़ों का बजट दिया जाता है. 

    पर आज जब चुनाव नजदीक है और बोर्ड के कुछ सदस्य जो राजनीतिक दृश्टि से लाभ लेना चाह रहे हैं बकिया बराज नहर की घटना को राजनीतिक रंग देकर अपना स्वयं का महिमा मंडन कर रहे हैं, गलत भ्रामक प्रेस रिलीज के माध्यम से अपने नाम की बड़ाई बता रहे हैं. टीवी में इंटरव्यू और प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर बता रहे हैं की मात्र इन्होंने ने ही इतना सब कार्य किया है बांकी सारे ग्राउंड पर नहर के अंदर मेहनत करने वाले समाजसेवी और वास्तविक गोभक्तों का जैसे कोई योगदान ही नही रहा. यह काफी दुखद तो है ही साथ ही गोवंशों के अधिकार के लिए स्वतंत्र तौर पर कार्य करने वाले गोसेवकों के भी मनोबल को गिराने का प्रयाश है.

सूचना पर 27 अक्टूबर को क्या कहा सतना एसपी ने

    जब सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी की सतना एसपी से मोबाइल फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंने घटना की जानकारी न होने की बात स्वीकारी पर उन्होंने बताया की वह हर संभव मदद करेंगे और आवश्यकता पड़ी तो क्रेन भी भेजकर गोवंशों को निकलवाने का प्रयाश करेंगे. आखिर जब गोसंवर्धन बोर्ड और अन्य संगठन एक्टिव बता रहे हैं तो एसपी को ऐसी भीषण वारदात को सूचना इसके पहले क्यों नही थी?

क्या कहा रामपुर थाना प्रभारी टी आई द्विवेदी ने

   जब कोई भी आपराधिक घटना जो की लॉ एंड आर्डर से सम्बन्धित हो घटित होती है तो उसमे सबसे पहले जानकारी पुलिश विभाग और संबंधित थाने को ही दी जाती है. इस पर जब रामपुर थाना प्रभारी श्री द्विवेदी से पूंछा गया तो उन्होंने घटना घटित होने की बात स्वीकारी और यह भी बताया की पिछले दो तीन दिन से बकिया बराज नहर में गोवंशों के धकेले जाने और उनके फंसे होने की खबर उन्हें कुछ नजदीकी गांववालों से मिली है. थानेदार ने आगे बताया की बीतेकल राजस्व तहसीलदार, पटवारी, आर आई, और नहर मंडल का दस्ता घटना का मौका मुआयना करने गए थे जिंसमे उनके थाने से भी कर्मचारी मौजूद थे. थाना प्रभारी रामपुर ने लगभग ढाई सौ गोवंशों के फंसे होने की वारदात स्वीकारी और बताया था की इन्हें नहर के अदंर ही चचाई गेट की तरफ से निकाले जाने का प्रयास चल रहा था लेकिन कहीं मजदूरों के साथ आसपास के ग्राम के किसानों ने मारपीट कर दी जिसके कारण गोवंशों को निकाला नही जा सका था.

क्या बकिया बराज नहर में यह गोवंशों को धकेलने की एकमात्र घटना है?

    बकिया बराज नहर में घटित हुई यह गोवंश प्रताड़ना की घटना कोई एकमात्र नही है. जब ग्राउंड जीरो पर जाकर वहां के आसपास के राहवाशियों और ग्रामीणों से समाजिक कार्यकर्ता द्वारा जानकारी लेने का प्रयाश किया गया तो वहीं बीड़ा, सेमरिया, बकिया और आसपास के अन्य ग्रामों के लोगों ने बताया की यहां नहर के अंदर इस प्रकार की वारदातें अक्सर ही होती रहती हैं जब कुछ ऐसे ही असमाजिक और आपराधिक तत्व जीवित गोवंशों को डम्पर और ट्रेक्टर ट्राली में भरकर नहर में डंप कर देते हैं. जिससे अत्यंत फिसलन भरी और गहरी नहर से अपने आप निकल पाने में असमर्थ यह गोवंश फंसे रहकर भूंख प्यास से अपनी जान गवां बैठते हैं और न तो इन्हें कोई देखने वाला होता और न ही बचाने वाला. ग्रामीणों द्वारा बताया की इसके पहले भी कई मर्तबा ऐसी वारदातें होती रही हैं जिंसमे शाशन प्रशासन का कोई रता पता नही रहता था. लेकिन इस बार खबर सोशल मीडिया, मीडिया और उच्चस्तर के अधिकारी और गोसेवकों के बीच पहुचने के कारण इस स्तर की कार्यवाही हुई.

खतरनाक स्तर से खुली है नहर, नही है कोई फेंसिंग

   जब ग्राउंड जीरो में जाकर स्थिति का शोध किया गया तो पाया गया की ऐसे आपराधिक तत्वों के लिए यह कार्य और भी आसान था क्योंकि नहर के फैलाव के दोनो तरफ कोई भी फेंसिंग और प्रोटेक्शन वाल नही होने से न केवल मवेशियों के लिए जबकि आम नागरिक और चलते फिरते लोगों के लिए भी नहर के दोनो छोरों में खतरा बना हुआ था. यह भी जानकारी ग्रामीणों द्वारा दी गई की भले ही आपराधिक तत्व रोज मवेशियों को भरकर नहर में न फेंकते हों लेकिन यहां आमतौर कुछ मवेशी और व्यक्ति भी स्वयं भी नहर के दोनो तरफ के छोरों में फिसल कर गिर जाते हैं जिसकी वजह से अपनी जान गवां बैठते हैं अथवा शरीर के अंग टूट कर अपाहिज हो जाते हैं.

    सबसे बड़ी बात यह है जब 35 से 40 फीट वर्टिकल गहरी नहर बनाई गई थी तो क्या इस नहर के दोनो छोरों में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग की व्यवस्था के लिए जल संसाधन विभाग ने बजट नही दिया था? मानाकि हर नहर के दोनो छोरों में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग लगाना थोड़ा मंहगा पड़ सकता है लेकिन जब बात इतनी गहरी और खतरनाक नहर की हो जहां पर एक बार फिसलने के बाद नहर से सुरक्षित निकल पाना आसान न हो तो ऐसे में क्या शासन स्तर से ऐसी खुली हुई समस्त नहरों में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग क्यों न लगायी जानी चाहिए थी?

यदि नहर फेंसिंग होती तो ऐसी वारदातें रोकी जा सकती थी

   सबसे बड़ा प्रश्न यही है जब इतनी गहरी और चौड़ी नहर ग्रामों के बीचोंबीच है तो उसमे प्रोटेक्शन और सुरक्षा की दृष्टि से व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण थीं. खुली नहर छोड़ने का कोई औचित्य नही समझ आता. आज यदि इस नहर के दोनो छोरो में प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग जाली लगाई हुई होती तो संभवतः ऐसे आपराधिक एवं असमाजिक तत्वों के लिए बकिया बराज नहर में गोवंश प्रताड़ना जैसे घृणित कारनामे करने में इतनी आसानी नही होती. 4 से 5 फीट ऊंची प्रोटेक्शन वाल अथवा फेंसिंग निश्चित तौर पर ऐसी वारदात करने वालों के पीछे एक बार आड़े आ जाती और इतना आसान नही होता नहर के बीचोंबीच इन मवेशियों को ऐसे डंप किया जाना.

बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र बताया गया ओवरलोडेड 

   अभी इसी बकिया बराज गोवंश प्रताड़ना वाली घटना के समय ही जब बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र के प्रबंधक अरुण गौतम से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया की वर्तमान में उनके केंद्र में 1750 की संख्या में गोवंश दाखिल हैं और इन लगभग साढ़े तीन सौ गोवंशों के साथ संख्या 2 हज़ार के पार चली जाएगी. जब गोवंश विहार केंद्र की क्षमता के विषय में जानकारी चाही गई तो उन्होंने कोई स्पष्ट जानकारी नही दी और बताया की वैसे वर्तमान में ही गोवंश विहार केंद्र ओवरलोडेड चल रहा है तात्पर्य यह हुआ की जितने गोवंश बसामन मामा में रखे गए हैं उनकी देखरेख पर भी एक तरह से प्रश्नचिन्ह ही है क्योंकि जब क्षमता ही नही है तो उनकी व्यवस्था कैसे होगी.

    वैसे अभी कुछ समय से बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र के विषय में नकारात्मक समाचार आती रही हैं जिंसमे कुछ सूत्रों द्वारा बताया जाता रहा है की बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र तो बना दिया गया है लेकिन व्यवस्था के तौर पर स्थिति चिंताजनक है. सोशल मीडिया में तो कुछ लोगों ने वहां भी गोवंशों के मरने की बातें कहीं है. वहरहाल सच्चाई क्या है वह तो बसामन मामा गोवंश विहार केंद्र सेमरिया में जाकर ही पता लगाया जा सकता है.

मप्र सहित पूरे भारतवर्ष में गोवंशों की स्थित चिंताजनक

   वाकया मात्र मप्र अथवा रीवा जिला तक ही सीमित नही रह गया है. यहां तो पूरे देश में ही गोवंशों को लेकर घमासान मचा हुआ है. आज समाज इतना अधिक स्वार्थी हो चुका है की उसे गोवंशों की जरूरत नही बची है. उसका एक सबसे बड़ा कारण है कृषि उपकरणों और मसीनों का ईजाद और दुग्ध उत्पाद प्राप्ति के अन्य साधन. कभी भारत कृषि प्रधान देश कहलाता था और कृषि को सबसे उत्तम माना जाता था और नौकरी पेशा आदि को कृषि के बाद रखा जाता था. लेकिन अब समय पूरी तरह से बदल चुका है. कृषि सबसे निचले स्तर पर आ चुकी है और नौकरी पेशा सबसे ऊपर. जहां कभी बैलों को हलों में चलाकर खेती की जाकर गोबर और जैविक खादों का उपयोग होता था आज वहां पर मसीनों ट्रेक्टर, थ्रेसर से खेती होकर रासायनिक उर्वरक का प्रयोग चल पड़ा है. कभी ग्रामीण क्षेत्रों में जहां गोबर के कंडों और लकड़ी से भोजन बनाये जाने का प्रचलन था आज वहां पर गैस सिलिंडर की बहुतायत होने से गोबर के कंडों की भी उपयोगिता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है. अब देखा जाए तो गोवंशों का उपयोग मात्र दुग्ध उत्पाद तक ही सीमित रह चुका है और वहां भी अब दूसरे विकल्प सामने आ रहे हैं जिंसमे सोयाबीन, गेहूं और अन्य जैविक माध्यमो से भी दूध और दुग्ध उत्पाद बनाये जाने की तकनीकी प्रक्रिया निकल चुकी है अतः रही सही गोवंशों की उपयोगिता भी अब पूरी तरह से समाप्ति की कगार पर है. अतः जब तक गायें दूध देती हैं तब तक तो लोग  किसी कदर अपने घरों में रखते हैं लेकिन जैसे ही दूध देना बन्द कर देेती हैं अथवा बूढ़ी हो चलती हैं उन्हें घर से बाहर कर दिया जाता है. बछड़ों और बैलों की तो और भी अधिक दुर्दशा हो रही है. आज शहर एवं ग्राम तमाम जाएं तो सड़कों गलियों के किनारों पर घूमते लाठी खाते हुए बैलों का झुंड दिख जाएगा. कहीं कूड़े करकट के ढेर से कचरा खाते हुए तो कहीं जहरीली पॉलिथीन खाते हुए. इस प्रकार हमेशा ही इनके जीवन को संकट बना रहता है. कई बार शहरों की गलियों में आवारा घूमते हुए पशुओं के पेट में मरने के बाद कई किलो पन्नियां निकाली जाती हैं. आज शिवजी का नंदी इस भारतीय समाज के लिए बोझ और गोमाता माता न रहकर मात्र उपभोग की सामग्री बन कर रह गई है जब तक दूध दिया तो ठीक नही दिया तो छोड़ दिया.

गोवंश प्रताड़ना और अवहेलना आज एक राष्ट्रव्यापी समस्या

    अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है जब कोई समस्या समाज तक सीमित रहे घर गांव शहर तक सीमित रहे तो ठीक है लेकिन जब वह यहां से निकलकर प्रदेश और देश स्तर की बन जाए तो आखिर उसका क्या समाधान है? क्या इसमे अकेले समाज कुछ कर पायेगा अथवा अकेले सरकार कुछ कर पाएगी? समाज की स्थिति तो पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है और समाज ने तो गोवंशों को अब लगभग पूरी तरह से ही बहिष्कृत कर दिया है लेकिन जब समस्या इस लेवल की हो जाए तो शासन स्तर से क्या कुछ व्यापक और सार्थक प्रयास किये जाने चाहिए. आज मप्र में इसी समस्या को देखते हुए शासन स्तर से चुनाव को देखते हुए और राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से वर्तमान सत्ताधारी सरकार ने तो गोसंवर्धन बोर्ड के बाद गो मंत्रालय तक बनाये जाने की घोषणा कर दी लेकिन क्या घोषणा मात्र करने से कुछ हो पायेगा? आखिर क्या है भारतीय समाज में इन गोवंशों का भावी स्थान? क्या भारतीय समाज में गोवंशों का अस्तित्व बना रहेगा अथवा पश्चिमी सभ्यता की तरह ही भारत में भी आगे चलकर मवेशियों को आहार ही समझा जाएगा और आने वाले समय क्या इन्हें मात्र बूचड़खानों का ही रास्ता दिखाया जाएगा अथवा कोई ऐसा प्रयाश किया जाएगा जिससे भारतीय संस्कृति का अस्तित्व और साथ ही गोवंशों का भी अस्तित्व बना रहे? 

  यह सब अनुत्तरित प्रश्न आज हम सबसे जबाब माग रहे हैं जिनका समाधान करना आज हर एक भारतवाशी का दायित्व है. - (शिवानन्द द्विवेदी की कलाम से)

  संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें, बकिया बराज नहर से करहिया चचाई नहर गेट की तरफ लगभग 14 किमी का सफर नहर के बीचोंबीच तय करते हुए लगभग साढ़े तीन सौ गोवंशों को सुरक्षित निकाले जाने की प्रक्रिया में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा स्वयं उपस्थित रहकर अपने मोबाइल कैमरे से तस्वीरें.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक कार्यकर्ता एवं गोवंश राइट्स एक्टिविस्ट

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 7869992139

Saturday, October 27, 2018

बकिया नहर में फंसी हैं लगभग ढाई सौ गायें, धकेले जाने का आरोप (मामला सतना एवं रीवा के बॉर्डर का जहां पर रामपुर थाना क्षेत्र में बकिया नामक ग्राम एवं नहर के गहराई में सैकड़ों गोवंशों को धकेले जाने की सूचना है जिन्हें निकाल पाने शासन असमर्थ साबित हुआ है)

दिनांक 27 अक्टूबर 2018, स्थान - रामपुर थाना, सतना, मप्र

(शिवानन्द द्विवेदी) 

     आवारा छोड़ दिए गए गोवंशों की बढ़ी हुई संख्या के चलते पशु प्रताड़ना अब और भी अधिक जोर पकड़ रही है. दिन प्रतिदिन देश प्रदेश के अनेक हिस्सों से गोवंश प्रताड़ना के किस्से सामने आते रहते हैं. अभी हाल ही में रीवा ज़िले के रेहवा घाटी में पचासों गोवंशों को जीवित धकेल दिए जाने का मामला ज्यादा पुराना नही हुआ है और सतना ज़िले में इसी तरह की एक और वारदात सामने आ गई है.

सतना के रामपुर थाना क्षेत्र बकिया ग्राम का है मामला 

    प्राप्त जानकारी के अनुसार सतना ज़िले के रामपुर थाना क्षेत्र अन्तर्गत बकिया ग्राम में सैकड़ों गोवंशों को नहर के बीचोंबीच धकेल दिया गया है जिससे सभी गोवंश जिनमे बहुतायत में गायें हैं उसी सूखी नहर में फंसी हुई हैं.

   ग्रामीणों द्वारा बताया गया की कुछ असमाजिक तत्व फसलों की नुकसानी को बचाने के उद्देश्य से गोवंशों के साथ निरंतर अत्याचार कर रहे हैं जिनमे कभी उन्हें नहर के बहाव में धकेल दिया जाता है तो कई स्थानों पर अवैध संचालित बाड़ों में भूखों प्यासा मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. लोगों द्वारा आरोप लगाया गया की शासन प्रशासन तमाशबीन बना बैठा हुआ है और न तो फसल नुकसानी के लिए कुछ कर रहा है और न ही गोवंशों की हो रही निरंतर क्रूरता को रोंक पा रहा है.

   सतना एसपी को दी गई सूचना

   इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा सतना एसपी को उनके मोबाइल फ़ोन में सूचित किया गया जिसकी जानकारी एसपी सतना को पहले से नही थी. इस बीच एसपी सतना ने आश्वासन दिया की वह गायों को सुरक्षित निकालने में हर संभव मदद करेंगे और यदि आवश्यकता पड़ी तो क्रेन का भी सहारा लिया जाएगा. लेकिन अभी तक गायों को निकाला नही जा सका है.

टी आई रामपुर को दी सूचना

   इस बीच जानकारी टी आई रामपुर को भी उनके मोबाइल नंबर पर दी गई क्योंकि मामला थाना रामपुर के अन्तर्गत आता है. टी आई रामपुर द्वारा अवगत कराया गया की उन्हें पहले से घटना की जानकारी थी और दिनांक 26 अक्टूबर को राजस्व अमला जिंसमे तहसीलदार एवं पटवारी एवं साथ ही नहर मंडल के अधिकारी मौका मुआयना करने पहुचे थे और गायों को नहर से बाहर निकालने का प्रयास किया है. आगे बताया गया की बकिया ग्राम से प्रारम्भ होकर लगभग 12 से 14 किलोमीटर तक मवेशियों को मजदूरों की मदद से नहर के बीचोंबीच से हांककर ले जाया गया लेकिन जैसे ही मजदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पहुचें वहां पर ग्रामीणों ने मजदूरों के साथ मारपीट करके भगा दिया जिससे मवेशी पुनः उसी स्थिति में आ गए हैं. 

   यह पूँछे जाने पर की जब मवेशियों को हांका जा रहा था तब राजस्व और पुलिश अमला कहां था तो बताया गया की तहसीलदार आईडिया बता कर वापस चले गए थे और इसी प्रकार पुलिश भी अपने दूसरे कार्यों में लग गई थी जिसकी वजह से मजदूर अकेले पड़ने के कारण ग्रामीण लोगों के कोपभाजन बने.

  कितने मवेशी अभी फंसे हैं और कैसे निकलेंगे ?

  टी आई रामपुर द्वारा जानकारी उपलब्ध कराई गई की अभी भी कुल ढाई सौ से अधिक गायें अथवा गोवंश फंसी हुई हैं जिन्हें एक दो दिन में बाहर निकाला जाना अनिवार्य है अन्यथा समस्या पैदा होगी और गोवंश मर जाएंगे. जबकि आम ग्रामीण सूत्रों द्वारा बताया गया कि ढाई सौ नही बल्कि हज़ारों गोवंश नहर के बीचोंबीच फंसे हुए हैं।

   टी आई रामपुर ने अपनी यथासंभव मदद उपलब्ध कराने की बात तो कही है लेकिन अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए बताया है की आगे जहां से मवेशियों को बाहर निकाला जाना है वह सतना क्षेत्र में न होकर सिरमौर एवं सेमरिया थाना क्षेत्र में आता है. अतः एसडीएम सिरमौर थाना सिरमौर एवं कलेक्टर रीवा से ही मदद ली जाकर मामले को सुलझाया जा सकेगा.

संलग्न - बकिया नहर में फंसी हुई गायों की तस्वीर जिनमे से पचासों मर भी चुकी हैं।

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शिवनांद द्विवेदी

सामाजिक मानवाधिकार कार्यकर्ता

रीवा मप्र 9589152587, 7869992139

Wednesday, October 24, 2018

शरद पूर्णिमा पर संगीतमय मानस का आयोजन - कैथा पावन यज्ञस्थली में परम्परागतरूप से प्रत्येक पूर्णिमा पर आयोजित होता है मानस का कार्यक्रम

दिनांक 24 अक्टूबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव रीवा मप्र

(रीवा, शिवानन्द द्विवेदी) 

      प्रत्येक पूर्णिमा को परंपरागत रूप से कैथा की पावन भूमि पर संगीतमय मानस का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. कार्तिक मास की शरद पूर्णिमा पर इस कार्यक्रम का अपना एक विशेष महत्व हो जाता है. इस बीच काफी संख्या में भक्त श्रद्धालुगण उपस्थित रहेंगे.

   शरद पूर्णिमा के साथ ही बढ़ने लगती है ठंडक

    शरद पूर्णिमा से यह माना जाता है की शरद ऋतु प्रारम्भ हो जाती है. वातावरण में हल्की फुल्की ठंडक आने से वातावरण सुंदर हो जाता है. वर्षा काल के अंत के साथ ही शरद ऋतु के आगमन से तापमान गिरने लगता है. दिवाली तक ऐसा माना जाता है की ठंडक और बढ़ने लगती है.

   मानस में सहयोगी

    इस बार आयोजित हो रहे श्रीरामचरित मानस के कार्यक्रम में जो भक्तगण सहयोगी होंगे उनमे से सिद्धमुनि द्विवेदी, गोकुल केवट, बृजभान केवट, दिनेश लोनिया, संजय लोनिया, गणेश पटेल, रामनरेश पटेल, शिवसागर द्विवेदी, बबलू चौबे, कुंजमणि तिवारी, अम्बिका पटेल, धर्मराज, रंजीत, शिवमूर्ति केवट आदि लोग होंगे.

कलयुग केवल नाम अधारा 

   श्रीराम चरित मानस में बताया गया है की कलयुग में केवल भगवान का नाम ही आधार है. त्रेता, द्वापर सतयुग आदि युगों में ईश्वर और मोक्ष प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार से जतन किये जाते थे जिंसमे योग, हवन, यज्ञ, दान तप आदि होते थे लेकिन कलयुग में शास्त्रों में बताया जाता है की मात्र ईश्वर नाम का चिंतन स्मरण और मनन करने एवं ईश्वर नाम की कीर्तन करने मात्र से इस भव बंधन से मुक्ति मिल जाती है.  

  मानस की पूर्णाहुति पर प्रसाद वितरण 

   दिनाँक 25 अक्टूबर को मानस के समापन पर प्रसाद वितरण का कार्यक्रम रखा जाएगा. इस बीच भारी संख्या में भक्त श्रद्धालुगणों की उपस्थिति की उम्मीद की जा रही है।

संलग्न - संलग्न तस्वीरों में देखें श्रीहनुमान मंदिर प्राँगण में आयोजित कार्यक्रम.

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शिवानन्द द्विवेदी, 

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यक्रता,

ज़िला रीवा मप्र, 9589152587, 7869992139

Monday, October 22, 2018

वर्षों से बन्द नलकूप सुधारे, लोगों को मिली राहत, पीएचई टीम की कार्यवाही (मामला ज़िले के गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत बांस ग्राम का जहां पर महीनों से बिगड़े हुए दर्ज़नों नलकूपों में से कुछ सुधारे गए, लोगों को मिली राहत, कई नलकूपों में जलस्तर गम्भीर स्थिति में, लोगों ने मोटर पंप लगाने की माग की)

दिनांक 23 अक्टूबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(रीवा, शिवानन्द द्विवेदी)

    अल्पवृष्टि की वजह से सम्पूर्ण रीवा संभाग में पीने के पानी को लेकर जद्दोजहद प्रारम्भ हो चुकी है. कभी पानी समस्या फरवरी मार्च से प्रारम्भ हुआ करती थी लेकिन इस वर्ष अभी से जलसंकट मंडराने लगा है. 

    जैसा की विदित है की पूरे ज़िले एवं संभाग में कम बारिस की वजह से किसानों की खड़ी फसलें सूखने की कगार पर है. पहले भी अल्पवृष्टि की वजह से बुवाई में देरी हुई और आधे से अधिक भूमि बुवाई बिना रह गई. जहां किसी प्रकार से बुवाई शुरू भी हुई वहां बाद में पानी की कमी से फसलें सूखने लगी हैं.

रखरखाव के अभाव में नलकूपों की ददुर्दशा

    लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी द्वारा नलकूपों का रखरखाव महीनों और वर्षों से सही तरीके से न किये जाने के कारण राइज़र पाइप नही लगे होने से स्थिति भयावह हो गई है. सामाजिक कार्यकर्ता के हस्तक्षेप के कारण दिनांक 22 अक्टूबर को गंगेव पीएचई टीम ने बांस ग्राम का दौरा किया जहां पर दर्ज़नों नलकूपों के काम न करने और राइज़र पाइप की कमी बतायी गई थी. जिस पर सप्ताह बाद पीएचई के ठेकेदारों द्वारा पुरानी पाइप लेकर बदलने का कार्य किया गया. लगभग 7 पाइप बदली गईं जिनमे से ज्यादातर पुरानी पाइप लगाई गईं.

  इन नलकूपों की बदली गईं सामग्री

    गंगेव पीएचई के ठेकेदार द्वारा जिन जिन नलकूपों में सुधार कार्य कराया गया उनमे से निम्नलिखित हैं - 1) बांस सहकारी समिति एवं शासकीय प्राथमिक स्कूल के पास स्थित नलकूप 2) बांस शासकीय हाई स्कूल के पास स्थित नलकूप 3) मुस्लिम समुदाय के मस्जिद के पास 4) छोटेलाल प्रजापति के घर के पास 5) उमेश सेन के घर के पास. इन सभी नलकूपों में जलस्तर 35 से 40 फीट के अंदर नोट किया गया जो इस क्षेत्र के लोगों के लिए अच्छी बात थी. बताया गया की बांस ग्राम में स्थित स्कूल के पास तालाब की वजह से सभी नलकूपों में जलस्तर ठीक बना रहता है.

      इस प्रकार मात्र पांच नलकूपों का सुधार कार्य कराया गया जबकि दो अन्य नलकूपों में जल का अभाव पाया गया. देवी मंदिर बांस के पास स्थित नलकूप भठा हुआ पाया गया वहीं कल्लू पटेल के घर के पास स्थित नलकूप  में जलस्तर 130 फीट के नीचे मिला जिसे चालू किया जाना मुश्किल कार्य था क्योंकि 14 राइज़र पाइप डालने पर पाइप लाइन टूटने का डर था. अमूमन अधिकतम 12 से 13 राइज़र पाइप डाले जाने का प्रावधान रहता है।

अभी भी बंद हैं दर्ज़न भर नलकूप

     लोगों द्वारा बताया गया की बांस ग्राम के सरकारी नलकूप मैकेनिक जेपी गर्ग की अकर्मण्यता के चलते अभी भी बांस ग्राम के दर्ज़न भर नलकूप बन्द पड़े हुए हैं. ग्रामीणों द्वारा जानकारी दी गई की शिसवा ग्राम के पूर्व नलकूप मैकेनिक लोलर मिश्रा द्वारा कार्य कराया जाता था लेकिन जब से लोलर का स्थानांतरण हुआ तब से जेपी गर्ग ने चार्ज लिया है लेकिन जेपी गर्ग कभी भी मौके पर नही आया जिसकी वजह से वर्षों से बन्द नलकूपों में कोई सुधार कार्य नही हुआ. 22 अक्टूबर को दो गाड़ी आये ठेकेदार के मैकेनिक द्वारा जब नलकूपों को खोला गया तो सभी पाइपों में जंग लगी हुई थी और घूर कचड़ा भरा हुआ था इससे साफ पता चल रहा था की इन नलकूपों को वर्षों से नही खोला गया था. 

  पताई एवं पनगड़ी पंचायत के भी बन्द हैं दर्ज़नों नलकूप

    इस दौरान आसपास के ग्राम क्षेत्रों के उपस्थित ग्राम पताई एवं पनगड़ी के निवासियों प्रमोद सिंह एवं विजय पांडेय आदि द्वारा जानकारी दी गई की जिस प्रकार बांस ग्राम के नलकूप बन्द पड़े हैं उसी प्रकार उनके भी ग्राम पंचायतों में दर्ज़नों नलकूप वर्षों से बन्द पड़े हुए हैं जिन्हें देखने वाला कोई नही है. सभी ने अपने अपने ग्राम के नलकूपों का तत्काल सुधार कार्य कराए जाने की माग की है.

  संलग्न - संलग्न तस्वीर में दिनाँक 23 अक्टूबर 2018 को गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत बांस ग्राम में पीएचई टीम द्वारा नलकूप सुधार कार्य किया गया. मौके पर लिया गया फोटोग्राफ.

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शिवानन्द द्विवेदी

सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता

ज़िला रीवा मप्र, मोब 9589152587, 78699992139

Sunday, October 21, 2018

कैथा सरपंच के सहयोग से सरहंगई पूर्वक स्वत्व की जमीन हड़पने का प्रयास (मामला जिले के थाना गढ़ अन्तर्गत इटहा ग्राम का जहां पर पीड़ित भूमिस्वामी रामजी पटेल पिता भुअर पटेल की 45 डिसमिल जमीन को सरहंगई पूर्वक हड़पने का प्रयाश किया जा रहा है, पीड़ित ने थाना में लगाई गुहार, आरोपियों पर नही हुई कोई कार्यवाही)

दिनांक 21 अक्टूबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव रीवा मप्र

(रीवा, शिवानन्द द्विवेदी)

   संवैधानिक रूप से प्रदत्त महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए आपराधिक किश्म के तत्वों द्वारा नियम कायदों की धज्जियां उड़ाकर किस तरह से कानून को हाँथ में लिया जा रहा है इसके नित नए मामले सामने आते रहते हैं.

    इसी प्रकार के एक मामले में थाना गढ़ अन्तर्गत इटहा ग्राम निवासी रामजी पटेल पिता भुअर पटेल द्वारा बताया गया की उनकी पट्टे की आराज़ी में कैथा सरपंच संत कुमार पटेल उर्फ भल्लू एवं उसके साथी अशोक पटेल आदि के द्वारा सरहंगई पूर्वक मनगवां की इटहा हल्का नंबर 2 की ग्राम इटहा की आराज़ी नंबर 156 रकबा 0.182 हेक्टेयर लगभग 45 डिसमिल को हड़पने का प्रयाश किया जा रहा है. 

   वर्ष 2014-15 में हुआ नामांतरण का आदेश  

   पीड़ित द्वारा बताया गया की मनगवां तहसीलदार अन्तर्गत राजस्व प्रकरण क्रमांक 31/ए6/2014-15 दिनाँक 13/04/15 के अनुसार रामजी पटेल ने अपनी इटहा ग्राम की आराज़ी नंबर 156 रकबा 0.182 के नामांतरण के लिए आवेदन दिया गया था.  बताया गया प्रकरण में दर्ज इस्तेहार का भी प्रकाशन किया गया और इस्तेहार में कोई आपत्ति नही प्राप्त हुई. अनावेदक विक्रेता गोविंद पटेल पिता सुदामा पटेल को भी तहसीलदार ने समन भेजा जिंसमे विक्रेता गोविंद पटेल दवारा बताया गया की उसने रामजी पटेल को अपनी उक्त जमीन रकबा 0.182 हेक्टेयर बेंच दी है और उसका नामांतरण रामजी पटेल के नाम किया जाना है. इस प्रकार पटवारी प्रतिवेदन अनुसार इटहा की उक्त आराज़ी नंबर 156 रकबा 0.182 हेक्टेयर को रामजी पटेल के नाम किया जाना न्यायसंगत पाया जाकर तहसीलदार के आदेश अनुसार नामांतरण एवं कंप्यूटर फीडिंग रामजी पटेल पिता भुअर पटेल निवासी इटहा के नाम की जाकर नियमानुसार ऋणपुस्तिका एवं कंप्यूटराइज्ड खसरा रामजी पटेल को प्रदान किया गया. तहसीलदार का यह आदेश मप्र भूराजस्व संहिता सन 1959 की धारा 109, 110 के तहत दर्ज हुआ.

  पीड़ित भूमिस्वामी ने विक्रेता को दिया एक लाख 35 हज़ार 

   पीड़ित भूमिस्वामी रामजी पटेल द्वारा बताया गया की उसने पूर्व भूमिस्वामी एवं विक्रेता गोविंद पटेल को इटहा ग्राम की उक्त आराज़ी नंबर 156 रकबा 0.182 हेक्टेयर खरीदी के लिए वर्ष 2003 में एक लाख 35 हज़ार रुपये दिया था जिसका की लिखित पुख्ता प्रमाण गवाह सहित मौजूद हैं. तदुपरांत 2003 से ही वर्तमान भूमिस्वामी रामजी पटेल का कब्जा उक्त भूमि पर बरकरार रहा है. और वर्ष 2014-15 में जाकर उक्त आराज़ी एवं रकबे का रामजी पटेल के नाम नामांतरण आदेश हुआ. नामांतरण में देरी  विषयक मामले में पीड़ित भूमिस्वामी रामजी पटेल द्वारा बताया गया की हल्का पटवारी इटहा नंबर 2 द्वारा समय पर प्रतिवेदन प्रस्तुत न किये जाने की वजह से नामांतरण में देरी हुई थी.

   पूर्व भूमिस्वामी ने अन्य के नाम करवा दी रजिस्ट्री

   मामले में नया टर्न तब आया जिंसमे पूर्व भूमिस्वामी एवं विक्रेता गोविंद पटेल ने उक्त 0.182 हेक्टेयर रकबे की आराज़ी नंबर 156 को इटहा निवासी एक अन्य व्यक्ति अशोक पटेल पिता सत्यभान पटेल को भी बेंच दिया और अशोक पटेल के नाम उक्त आराज़ी नंबर 156 रकबा 0.182 हेक्टेयर की रजिस्ट्री भी करवा दिया. अब मामला ऐसा हो गया है की वर्ष 2003 से निरंतर कब्जा पट्टेदार रामजी पटेल की खड़ी फसल को अशोक पटेल सरहंगई पूर्वक सरपंच संत कुमार उर्फ भल्लू के साथ मिलकर काट लिया और रामजी पटेल को  आपराधिक धमकी दिया की यदि सामने आये तो मौत के घाट उतार दूंगा. 

    ज्ञातव्य हो की कैथा पंचायत में नियम कानून को धता बताकर निजी जमीन पर अवैध कब्जा और निर्माण की कई वारदातें कैथा सरपंच संत कुमार पटेल उर्फ भल्लू कर चुका है जिंसमे अभी हाल ही कोर्ट में विचाराधीन मामला कैथा सरपंच बनाम श्यामलाल, राजबहोर, राजेन्द्र शुक्ला वगैरह भी चल रहा है. कैथा ग्राम की इस आराज़ी में भी सरहंगई पूर्वक शासकीय संपत्ति के दुरुपयोग से पीसीसी सड़क निर्माण कर लिया गया है जिस पर गढ़ पुलिश द्वारा कोई कार्यवाही नही की गई. पीड़ितों ने पुलिश पर आरोप लगाया की पैसे की लेनदेन करके मामले को रफा दफा कर लिया गया.

गढ़ पुलिश को किया शिकायत, पुलिश पर पैसा लेने का आरोप

    पीड़ित रामजी पटेल पिता भुअर पटेल निवासी इटहा द्वारा बताया गया की उसने दिनाँक 08/10/2018 एवं 18/10/2018 को थाना प्रभारी गढ़ के नाम शिकायत की है और अपने जान माल और संपत्ति की शुरक्षा की माग की है. लेकिन बताया गया की गढ़ पुलिश की डायल 100 गाड़ी मौके वारदात पर चार बार आने के वाबजूद भी विपक्षी पार्टी से पैसा खाकर चली गई और प्रकरण पर पर ध्यान नही दिया और न ही सरहंगों पर कोई कार्यवाही ही किया.

    पीड़ित रामजी पटेल पिता भुअर पटेल द्वारा बताया गया की कैथा सरपंच संत कुमार उर्फ भल्लू पटेल एक सरहंग आपराधिक किश्म का व्यक्ति है जिसके ऊपर पंचायती भस्ट्राचार से लेकर अन्य दर्ज़न भर मामले सक्षम न्यायालय सहित विभिन्न थानों में दर्ज हैं और आये दिन इस प्रकार की आपराधिक वारदातें करता रहता है जिंसमे आम गरीब जनों को अनायास ही परेशान करना उनकी जमीन हड़पने में मदद करना और गाली गलौज मारपीट यह सब आम है. इस प्रकार पीड़ित रामजी पटेल को भय है की कहीं उसके घर परिवार को न मार दिया जाए क्योंकि पीड़ित ने बताया की संत कुमार पटेल उर्फ भल्लू सरपंच एवं अशोक पटेल ने रामजी और उसके परिवार को जान से खत्म करने की आपराधिक धमकी भी दी हुई है. 

    पीड़ित ने बताया की अब यदि थाना गढ़ पुलिश सुनवाई नही करती है तब वह जाकर एसपी एवं आई जी के यहां गुहार लगाएंगे और अपनी जान माल की सुरक्षा की मांग करेंगे साथ ही आपराधिक तत्वों के ऊपर सख्त कार्यवाही की भी माग कर रहे हैं.

संलग्न - संलग्न पीड़ित रामजी पटेल पिता भुअर पटेल निवासी ग्राम इटहा थाना गढ़ रीवा की आराज़ी नंबर 156 रकबा 0.182 की ऋणपुस्तिका एवं कंप्यूटराइज्ड खसरा की कॉपी साथ ही पुलिश को दिए गए आवेदनों की प्रतिलिपि.

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शिवानन्द द्विवेदी

(सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता)

ज़िला रीवा मप्र, 9589152587, 7869992139

Tuesday, October 2, 2018

मानवाधिकार आयोग की शिकायत पर पीएचई अमला पहुचा जांच करने (मामला ज़िले के गंगेव ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले ग्राम भमरिया, नेवरिया, बड़ोखर एवं कैथा का जिनमे नलकूप न होने अथवा खराब होने की स्थिति में उत्पन्न हुआ भीषण जलसंकट, जब मामला मानवाधिकार आयोग पहुचा तो जांच करने पहुचे एसडीओ, उपयंत्री टीम)

दिनांक 03 अक्टूबर 2018, स्थान - गढ़/गंगेव, रीवा मप्र

(कैथा से, शिवानन्द द्विवेदी)

  कृत्रिम जलसंकट उत्पन्न होना मानवाधिकार हनन की समस्या है. क्या पीएचई विभाग और पंचायत विभाग की जिम्मेदारी नही है की ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब तबके के लिए पानी की उपलब्धता बनाएं? क्या आज जितने भी नलकूप उत्खनन के कार्य विधायक एवं सांसद निधि आदि से हो रहे हैं उनमे से कोई भी सही और उपयुक्त स्थान पर कराए जा रहे हैं? आज किसी भी ग्राम में जाया जाय तो पाया जाएगा की रसूखदारों, नेताओं के चमचों के घर आंगन में बोरवेल हैं और उनमे उनके निजी मोटर पंप तो पड़े हुए हैं लेकिन जिन गरीबों को वास्तव में इन नलकूपों की आवश्यकता है उनके लिए आज 21 वीं सदी में भी पिछली 18 वीं सदी जैसी ही समस्या बनी हुई है. इन गरीबों की समस्या को देखने सुनने वाला कोई भी नही है. कागजों पर तो दुनियाभर की योजनाएं संचालित हो रही हैं लेकिन वास्तविक धरातल पर कहीं कोई रता पता नही है.

मानवाधिकार आयोग के समक्ष पहुचा जलसंकट का मामला

   बता दें की जब निचले एवं जिलास्तर से जलसंकट की भीषण स्थिति का कोई सार्थक समाधान निकलता नही दिखा तब सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी द्वारा मामले को तत्काल अध्यक्ष मप्र राज्य मानवाधिकार आयोग भोपाल के समक्ष रख दिया गया जिंसमे कॉपी सीएम, सीएस,  अन्य पीएचई विभाग एवं ज़िला रीवा कलेक्टर एवं कमिश्नर को भी भेजी गई. इसी बात पर तत्काल संज्ञान भी हुआ और पिछले दिनों 1 अक्टूबर 2018 को पीएचई विभाग द्वारा जानकारी चाही गई की कहां कहां नलकूप नही हैं और कहां इनकी आवश्यकता है. इस पर समस्त जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा संबंधितों को उपलब्ध कराई गई.

गांधी जयंती 2 अक्टूबर को पीएचई विभाग का बना मुहूर्त, हुआ सर्वे

   इस प्रकार समस्त जानकारी उपलब्ध कराए जाने के बाद पीएचई विभाग के गंगेव उपयंत्री अखिलेश उइके, हुज़ूर तहसील के अनुविभागीय अधिकारी पीएचई एसके श्रीवास्तव, सिरमौर पीएचई डिवीज़न के अनुविभागीय अधिकारी श्री काम्बले, कैथा क्षेत्र के नलकूप मिस्त्री अश्वनी पटेल सहित अन्य जांच सर्वे टीम क्रमशः गंगेव  ब्लॉक अन्तर्गत आने वाले हिनौती, कैथा, एवं सेदहा पंचायत के नेवरिया, भमरिया, नेवरिया, कैथा, एवं बड़ोखर ग्राम में हरिजन आदिवाशियों की बस्ती में उपस्थित हुए और सर्वे किया. जो जानकारी पेपर पत्रिकाओं के मॉध्यम से उपलब्ध कराई गई थी और आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई थी वह सब मौके पर सत्य पायी गई.

    कैथा पंचायत अन्तर्गत आने वाली शासकीय प्राथमिक पाठशाला के सामने एकमात्र नलकूप का पानी भी पीने योग्य नही था जिसके सैंपल लेकर लेबोरेटरी जांच के लिए भेजा गया है. इसी प्रकार प्राचीन देवी मंदिर कैथा के पास आवाद लगभग 50 की आवादी के लोगों के लिए भी पानी की समस्या थी जिसका की सर्वे करके तत्काल निराकरण किये जाने के आश्वासन अधिकारियों द्वारा उपस्थित जनसामान्य को दिए गए.

यहाँ यहाँ हुआ सर्वे, अब लगेंगे नए नलकूप

   गंगेव ब्लॉक के जिन ग्राम पंचायतों एवं ग्रामों में पीएचई विभाग के उच्चधिकारियों द्वारा सर्वे कार्य किया गया और नए नलकूप उत्खनन के प्रपोजल सरकार को भेजे गए उनमे से सेदहा पंचायत के नेवरिया ग्राम में लगभग 50 की आवादी वाले हरिजनों के लिए एक नलकूप, सेदहा/हिनौती पंचायत बॉर्डर से लगे लगभग 100 की आवादी वाले हरिजन आदिवाशियों की भमरिया बस्ती के लिए एक नलकूप, हिनौती पंचायत के बड़ोखर ग्राम की हरिजन बस्ती की लगभग 250 से अधिक की आवादी वाली बस्ती के लिए, जहाँ के नलकूप खराब थे उनके लिए एक नया नलकूप, कैथा पंचायत में शासकीय प्राथमिक पाठशाला के सामने पुराने नलकूप के कार्य न करने के कारण एक अन्य नलकूप, एवं कैथा पंचायत में ही प्राचीन देवी मंदिर प्राँगण के पास निवासरत लगभग 50 की आवादी वाले शुक्ला-पटेल-हरिजन परिवार एवं साथ ही धार्मिक आस्था के केंद्र देवी मंदिर में जल चढ़ाने के लिए भी एक नलकूप के उत्खनन का सर्वे किया गया एवं उपस्थित हुज़ूर एवं सिरमौर एसडीओ, गंगेव उपयंत्री द्वारा बताया गया की प्रस्ताव बनाकर कार्ययोजना में सम्मिलित कराया जाएगा जिससे जल्द से जल्द पानी सम्बन्धी मानवाधिकार की समस्या का समाधान हो सके और आम जनता जल संकट से निजात पा सके.

संलग्न - कृपया संलग्न तस्वीरों में देखने का कष्ट करें, सर्वे एवं जांच के दौरान उपस्थित एसडीओ, उपयंत्री, नलकूप मैकेनिक आदि की टीम एवं जानकारी प्रदान करते आमजनमानस और पीड़ित लोग.

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शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता,

ज़िला रीवा, मप्र, मोबाइल 9589152587, 7869992139