Monday, July 31, 2023

Breaking: सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवणे और ईई गुर्दवान ने मिलकर 6 दोषियों को बचाने की गढ़ डाली कहानी // कहानी भी ऐसी फर्जी की सबके होश उड़ जाएं // सीईओ और कार्यपालन यंत्री की रात 9 बजे तक चलती है जिला पंचायत में गुफ्तगू // सभी भ्रष्टाचारियों की लगती है एकसाथ मीटिंग // धारा 89 की अंधेरे में सुनवाई के नाम पर चल रहा भ्रष्टाचारियों को बचाने का खेल // रात की सुनवाई में कमीशन और बचाने के खेल को समझ पाना हुआ मुश्किल//

*Breaking: सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवणे और ईई गुर्दवान ने मिलकर 6 दोषियों को बचाने की गढ़ डाली कहानी // कहानी भी ऐसी फर्जी की सबके होश उड़ जाएं // सीईओ और कार्यपालन यंत्री की रात 9 बजे तक चलती है जिला पंचायत में गुफ्तगू // सभी भ्रष्टाचारियों की लगती है एकसाथ मीटिंग // धारा 89 की अंधेरे में सुनवाई के नाम पर चल रहा भ्रष्टाचारियों को बचाने का खेल // रात की सुनवाई में कमीशन और बचाने के खेल को समझ पाना हुआ मुश्किल//*
दिनांक 31 जुलाई 2023 रीवा मध्य प्रदेश।

  मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 तीरथ प्रसाद गुर्दवान मिलकर जिला पंचायत रीवा में मंगलवार रात 9:00 बजे और देर रात्रि तक भ्रष्टाचारियों को बचाने की जुगत में लगे रहते हैं। जानकर ताज्जुब होगा कि मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 89 की जो शक्ति मध्यप्रदेश शासन द्वारा समस्त जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को दी गई है उस सुनवाई का किस कदर बंटाधार किया जा रहा है और कैसे भ्रष्टाचारियों और दोषियों को वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही से विमुक्त किया जा रहा है उसका जीता जागता उदाहरण जिला पंचायत रीवा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी संजय सौरव सोनवणे की कथित कोर्ट में देखा जा सकता है। 
  *स्टॉप डेम निर्माण में पाए गए 6 अधिकारी दोषी फिर भी कैसे हो गए दोषमुक्त जानिए यहां पर*

  ग्राम पंचायत चौरी जनपद पंचायत गंगेव में पीछे के कार्यकाल के दौरान 2016-17 में कुसिअरिया घाट के नाम पर स्टॉप डैम का निर्माण किया जाना बताया गया। जब कुसियरिया घाट में किसी भी प्रकार का स्टॉप डैम का होना नहीं पाया गया तब सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी और चौरी ग्राम पंचायत के गणमान्य नागरिकों ने मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी स्वप्निल वानखेड़े के समक्ष करी जिसके बाद जांच हुई और जांच में तत्कालीन कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 आर एस धुर्वे और दो एसडीओ एसआर प्रजापति एवं जितेंद्र अहिरवार की संयुक्त दल ने जांच में पाया कि कुसियरिया घाट में स्टॉप डैम का निर्माण हुआ ही नहीं है और फिर पूरे मामले की लगभग 09 लाख रुपए की वसूली बना दी गई। जो वसूली बनाई गई उसमें 6 दोषियों को चिन्हित किया गया जिसमें प्रमुख रुप से तत्कालीन चौरी सरपंच सविता जायसवाल, तत्कालीन सचिव सुनील गुप्ता, तत्कालीन सहायक यंत्री अनिल सिंह, तत्कालीन और बर्खास्त उपयंत्री अजय तिवारी, कराधान घोटाले के मास्टरमाइंड तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव प्रमोद कुमार ओझा एवं तत्कालीन सहायक लेखा अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव संतोष कुमार शुक्ला के विरुद्ध बराबर बराबर वसूली बनाई गई। जब यह छः दोषी मामले में चिन्हित किए गए तो इनके द्वारा फर्जी कूट रचित कुछ कागज तैयार कर जवाब दिया गया कि कुसियरिया घाट स्टॉप डैम को स्थल परिवर्तित कर ग्राम खमरिया और खरहरी ग्राम के बीच स्थित नाले पर बना दिया गया है। परंतु खमरिया और खरहरी के आसपास स्थित लगभग आधा दर्जन से अधिक स्टॉप डैम पहले से बनाए गए हैं जो वाटरशेड और अन्य योजनाओं के बताए जा रहे हैं। तब यह कैसे सिद्ध होगा की खमरिया ग्राम में बनाया गया स्टॉप डैम वास्तव में कुसियरिया घाट के स्थान पर बनाया जा रहा स्टॉप डैम ही था? इस बात को लेकर शिकायतकर्ता द्वारा प्रश्न भी खड़ा किया गया कि आखिर बिना संशोधित प्रशासनिक एवं तकनीकी स्वीकृत और बिना सक्षम अधिकारी के आदेश के कैसे कोई सरपंच सचिव अपनी इच्छा से स्थल परिवर्तन कर सकता है। गौरतलब है कि जिस कुसियरिया घाट में स्टॉप डैम का निर्माण होना स्थल परिवर्तित कर बताया जा रहा है उसकी न तो अब तक संशोधित प्रशासनिक स्वीकृत न तकनीकी स्वीकृति न बिल वाउचर न ही मास्टर रोल और न ही मूल्यांकन पुस्तिका उपलब्ध करवाई गई है जिससे यह साबित हो पाए कि आखिर जो स्टॉप डैम बना हुआ बताया जा रहा है वह किसी अन्य योजना और मद का है अथवा स्थल परिवर्तित कर बनाया गया है?
  *स्थल परिवर्तित कर निर्माण कार्य कराए जाने की शक्ति अधिकारिता और इसकी प्रक्रिया पर बड़ा सवाल*

  बड़ा सवाल यह है कि जब किसी कार्य के लिए स्थल परिवर्तन किया जाता है तो उसके लिए विधिवत ग्रामसभा के प्रस्ताव से लेकर पुरानी तकनीकी स्वीकृत को निरस्त करते हुए नई तकनीकी स्वीकृति नए स्थल से संबंधित भूमि के चयन संबंधी दस्तावेज जैसे जमीन का नक्शा खसरा पटवारी प्रतिवेदन एवं संशोधित प्रशासकीय स्वीकृति भी जारी की जाती है। लेकिन जहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा तीरथ प्रसाद गुर्दवान द्वारा सांठगांठ कर फर्जी ग्रामसभा का प्रस्ताव और सहायक यंत्री का पंचनामा बनवा लिया गया है वहीं स्टॉप डैम की माप पुस्तिका कहां किसके पास है और माप पुस्तिका में क्या मेजरमेंट दर्ज है इसका कोई अता पता नहीं है और न ही संशोधित प्रशासकीय स्वीकृति और तकनीकी स्वीकृति उपलब्ध कराई गई है। 

   जानकारों और नियम की मानें तो संशोधित प्रशासकीय और तकनीकी स्वीकृति जारी करने के बाद उसकी एक प्रति समस्त वरिष्ठ कार्यालयों जैसे कलेक्टर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मध्यप्रदेश शासन सहित कार्यपालन यंत्री को तत्समय भेजी जाती है। लेकिन स्टॉप डैम मामले पर फर्जी ग्रामसभा के प्रस्ताव और फर्जी सहायक यंत्री के पत्र के अतिरिक्त कहीं कोई दस्तावेज और अभिलेख उपलब्ध नहीं करवाए गए हैं जिससे कि इस बात की प्रमाणिकता सिद्ध हो कि जो स्टॉप डैम कुसियरिया घाट के स्थल को परिवर्तित करते हुए अन्यत्र बनाया गया है क्या वह वास्तव में वही है अथवा नहीं। 
  *सबसे बड़ा सवाल कि क्या माप पुस्तिका में दर्ज मेजरमेंट के सत्यापन के बिना किसी भी प्रकार की जांच मान्य है?*

  अब यहां पर गौरतलब है कि जिन 6 दोषियों को मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा तीरथ प्रसाद गुर्दवान लेनदेन कर बचाने का प्रयास कर रहे हैं इसमें बड़ा सवाल यह है कि क्या बिना माप पुस्तिका में दर्ज माप के सत्यापन बगैर किसी भी प्रकार से कोई तकनीकी जांच मान्य की जा सकती है? माप पुस्तिका एक ऐसा दस्तावेज होता है जिसमें किसी भी निर्माण कार्य से संबंधित माप दर्ज होती है जिसके मेजरमेंट से यह पता लगाया जा सकता है कि बनाया गया स्ट्रक्चर क्या तकनीकी मापदंडों के अनुसार बनाया गया है अथवा नहीं। परंतु यहां पर कार्य की मापपुस्तिका तक उपलब्ध नहीं करवाई गई है जिससे इस बात की प्रमाणिकता ही नहीं है की मौके पर जो स्ट्रक्चर अन्यत्र ग्राम में बना हुआ बताया जा रहा है आखिर वह किस मद और किस योजना के तहत बनाया गया है।
  *पूर्णता प्रमाण पत्र स्टॉप डैम कुसियरिया घाट के नाम से जारी हुआ तब कैसे हो गया स्थल परिवर्तन?*

  दूसरा बड़ा सवाल यह है की कुसियरिया घाट में 10 लाख 50 हजार की लागत से तकनीकी स्वीकृत अनुसार जो स्टॉप डैम का निर्माण प्रस्तावित किया गया था उसमें जारी पूर्णता प्रमाण पत्र में अभी भी स्टाफ डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी ही दर्ज है। जबकि पूर्णता प्रमाण पत्र किसी भी निर्माण कार्य से संबंधित अंतिम दस्तावेज होते हैं तो यदि किसी भी प्रकार से नियमानुसार स्थल परिवर्तन किया गया होता तो निश्चित तौर पर नए स्थल खमरिया ग्राम के नाम पर पूर्णता अथवा उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी किया जाता न की पुराने स्थल के नाम पर। परंतु जिस प्रकार पुराने स्थल कुसियरिया घाट के नाम पर ही स्टॉप डैम निर्माण का पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया गया है इससे यह सिद्ध होता है की फर्जी तरीके से राशि का आहरण कर लिया गया और स्टाफ डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी बताया गया लेकिन जब मामले की शिकायत हुई और जब सभी छह अधिकारी दोषी पाए गए और वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए प्रस्ताव जिला पंचायत की तरफ भेजा गया तब बचाव में फर्जी तरीके से अभिलेखों को गढ़ने का काम किया गया जिसमें अब इनकी पोल खुल गई है। 
*गबन और फर्जी दस्तावेजों के गढ़ने पर भारतीय दंड  संहिता की इन धाराओं के तहत बनता है अपराध*

  यदि विशेषज्ञों की माने तो जिस प्रकार से स्टॉप डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी के नाम पर फर्जी पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया जाकर पूरी राशि 10.50 लाख रुपए का गबन तत्कालीन सरपंच सचिव उपयंत्री सहायक यंत्री मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव एवं सहायक लेखा अधिकारी के द्वारा किया गया और बाद में मामले को दबाने के लिए फर्जी ग्राम सभा का प्रस्ताव और सहायक यंत्री का फर्जी पत्र बनवाया जाकर फोर्जरी की गई है इससे भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत संज्ञेय और गंभीर धाराओं 467, 468, 471, 409, 420 एवं 34 सहित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) एवं 13(2) के तहत अपराध पंजीबद्ध किया जाना चाहिए।
*मामले में सीईओ संजय सौरभ सोनवणे और कार्यपालन यंत्री तीरथ प्रसाद गुर्दवान की स्पष्ट भूमिका*

  जिस प्रकार कई बार जांचों में सिद्ध होते हुए इस बात की तस्दीक जांच रिपोर्ट में की गई और स्टॉप डैम निर्माण कुसियरिया घाट ग्राम चौरी में नहीं बनाया गया और सिरमौर तहसीलदार के प्रतिवेदन में भी यह बात सामने आ चुकी है फीर ऐसे में जिस प्रकार संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री गुर्दवान द्वारा मामले में फर्जीवाड़ा करवाते हुए 6 दोषी अधिकारियों को वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही से भी मुक्त किए जाने का गंदा खेल खेला जा रहा है ऐसे में सीईओ संजय सौरव सोनवणे और कार्यपालन यंत्री तीरथ प्रसाद गुर्दवान दोनों की भूमिका स्पष्ट तौर पर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने और भ्रष्टाचार में संलिप्तता दर्शाती है।

*संलग्न* - मामले से संबंधित जांच प्रतिवेदन और 6 दोषियों को वसूली से विमुक्त किए जाने संबंधी कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा टीपी गुर्दवान का प्रतिवेदन एवं वीडियो बाइट आदि प्राप्त करें।

*स्पेशल ब्यूरो रिपोर्ट रीवा मध्य प्रदेश*

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